बहादुर किसान : जापानी लोक-कथा
Bahadur Kisan : Japanese Folktale
सिनोहीतो नाम का एक योद्धा जापान के कुमाकोतो शहर में रहता था। एक बार उसे किसी कारणवश एक अन्य शहर की यात्रा पर जाना पड़ा। वह अपना सामान और तलवार लेकर यात्रा पर चल पड़ा। यात्रा के दौरान मार्ग में उसे एक घने जंगल से गुजरना पड़ा। जंगल में सिनोहितो को जंगली जानवरों की आवाजे सुनाई दे रही थी, जिन्हे सुनकर वह बहुत भयभीत हो गया। सिनोहितो शहर में तो अपने साथियों के सामने अपनी वीरता की डींगे हाँकते नहीं थकता था, लेकिन वास्तव में वह बहुत डरपोक था।
भयानक जंगली पशुओं की आवाजें सुनकर कई बार तो सिनोहितो का वापस लौट जाने का मन हुआ, लेकिन किसी तरह हिम्मत बांधकर वह आगे बढ़ता रहा। वह सोच रहा था, "कितना अच्छा होता अगर जंगल की इस भयानक यात्रा में कोई मित्र भी मेरे साथ होता!"
उसी समय एक अन्य योद्धा सियोमोरी भी उसी जंगल में यात्रा कर रहा था। उसके पास भी काफी सामान था। सिनोहितो की भाँति वह भी डींगे हाँकने में ही वीर था। वह भी मन ही मन जंगल मे किसी साथी के मिल जाने की कामना कर रहा था।
मार्ग में दोनों योद्धाओं की मुलाकात हो गई। फिर तो दोनो ने एक साथ ही अपनी यात्रा पूरी करने का निश्चय किया। आगे की यात्रा प्रारंभ करने के कुछ ही देर बाद उन्हें एक किसान मार्ग में आगे जाता हुआ दिखा। उसे देख कर दोनों योद्धाओं के दिमांग में एक विचार आया। वे दोनों तेजी से चलकर किसान के पास पहुंच गए। फिर सिनोहितो उस किसान से बोला, "दोस्त, इस जंगल मे अकेले घूमते हुए तुम्हे डर नही लग रहा? यदि किसी जंगली जानवर ने तुम्हे मार डाला तो तुम्हारे परिवार का क्या होगा?"
यह सुनकर किसान का चेहरा भय से पीला पड़ गया और वह बोला, "बहादुर योद्धाओ, मेरा एक छोटा बच्चा है। अगर इस जंगल में मुझे कुछ हो गया तो मेरा बच्चा अनाथ हो जाएगा। यदि आप मुझे घर तक छोड़ देंगे तो आपकी बहुत कृपा होगी।" तब सियोमोरी ने उसे ढाढ़स बँधाते हुए कहा, "मित्र, चिंता ना करो। तुम्हारी रक्षा हम अपनी तलवार से करेंगे। बस, तुम्हें हमारा एक छोटा सा काम करना पड़ेगा। "
यह सुनकर किसान बोला, "आप काम बताइए, मैं आपका हर काम करने को तैयार हूं।"
सिनोहितो ने कहा, "हम यात्रा करते हुए बहुत दूर से यह भारी सामान लादकर आ रहे हैं। इसलिए हमें थकावट अनुभव हो रही है क्या तुम हमारा सामान उठाकर चल सकते हो?"
किसान को तो मेहनत का काम करने की आदत थी। उसने तुरंत उनका सामान उठा लिया। फिर वे तीनों आगे की यात्रा पर बढ़ चले। कुछ ही दूर चलने के बाद दोनों योद्धाओं ने किसान की कमियां निकालनी शुरू कर दी।
किसान की आलोचना करता हुआ सिनोहीतो बोला, "यह तो निरा बेवकूफ है। इससे तो यह भी नहीं पता कि हमारे जैसे योद्धाओं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।"
सियोमोरी ने उसकी हां में हां मिलाते हुए कहा, "तुम बिल्कुल सही कहते हो, दोस्त। यह तो कोल्हू का बैल समझ में आता है। अकल से इसकी खास दुश्मनी लगती है। इसे तो सामान उठाकर ठीक तरह से चलना भी नहीं आता।"
किसान को उनकी बातें सुनकर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन उसने उस समय शांत रहना ही उचित समझा। वह उन दोनों को सबक सिखाने के लिए उचित अवसर का इंतजार कर रहा था।
थोड़ी ही देर में दोनों योद्धा आपस में बातें करने में मग्न हो गए और किसान की ओर से उनका ध्यान हट गया। तभी किसान ने अचानक सियोमोरी की तलवार म्यान से खींचकर उसकी गर्दन पर रख दी। फिर वह गरज कर उनसे बोला, "प्राण बचाना चाहते हो तो अपने सारे पैसे मेरे हवाले कर दो।"
भय के कारण 'बहादुर' योद्धाओं की घिग्घी बंद गई थी। सिनोहितो का तो भय के कारण तलवार निकालने का साहस भी न हो रहा था। अपनी जान खतरे में देखकर दोनों योद्धाओं ने तुरंत अपना सारा धन किसान को सौंप दिया। अब किसान ने उनका ही नहीं बल्कि अपना सारा सामान भी उनके सिरों पर लादकर उनसे आगे चलने को कहा। दोनों योद्धाओं ने तुरंत ही किसान के "आदेश" का पालन किया। थोड़ी ही देर में भयानक जंगल से निकलकर एक गांव में पहुंच गए। योद्धाओं को इस प्रकार सामान ढोते और किसान को उनके पीछे चलते देखकर गांव वालों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
हाथ में तलवार लिए किसान ने गांव वालों से पूछा, "क्या तुम लोगों ने कभी ऐसे 'बहादुर' योद्धाओं को इस तरह तलवार की नोक पर सिर पर सामान ढोते हुए कभी देखा है?" गांव वालों के बीच स्वयं को इस प्रकार दयनीय अवस्था में पाकर दोनों योद्धा शर्म से भूमि में गडे जा रहे थे। इस प्रकार किसान ने उन 'बहादूर' योद्धाओं को सबक सिखाया।
(शैलेश सोलंकी)