बगुले का पैर : फ्रेंच/फ्रांसीसी लोक-कथा
Bagule Ka Pair : French Folk Tale
एक समय की बात है, इटली के एक गांव में एक बहादुर सामंत रहता था। उसे जंगली जानवरों के शिकार का बहुत शौक था। एक दिन जब सामंत जंगल से गुजर रहा था तो उसने वहां एक बड़े बगुले को देखा, जो तालाब में खड़ा होकर मछलियां पकड़ रहा था। वह देखकर उसने अपने बंदूक से निशाना लगाकर गोली चलाई और उस बगुले का शिकार कर लिया।
बगुले का शिकार करने के बाद सामंत अपने महल में वापस लौट आया। महल में आकर वह अपने रसोईए से बोला, "आज रात मेरे कुछ मित्र भोजन के लिए आएंगे। इस बगुले को उनके लिए इस तरह तैयार करो कि वे उंगलियां चाटते रह जाए।"
सामंत का आदेश मिलते ही रसोईया तुरंत अतिथियों के लिए भोजन तैयार करने में जुट गया। कुछ देर बाद सामंत ने रसोई में आकर उससे फिर कहा, "इस बगुले को बहुत ध्यान से पकाना। मैंने अतिथियों को विशेष रूप से इसी बगुले का स्वाद लेने के लिये बुलाया है।"
सामंत के निर्देश पर रसोइए ने उस बगुले को खूब ध्यान से पकाया। उसने बगुले का मांस खूब अच्छी तरह भूना। फिर उसमें मसाले मिलाकर स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किया। उस व्यंजन की सुगंध इतनी अच्छी थी कि रसोईए का भी उसे चखने का मन हुआ। उसने सोचा कि बगुले का एक पैर थोड़ा-सा चख लेने से किसी को क्या पता लगेगा। लेकिन बगुले का पैर इतना जायकेदार था कि रसोया पूरा पैर ही खा गया।
तब तक सामंत के अतिथि उसके घर पर आ पहुंचे। अतिथियों को भोजन कराने के लिए सामंत ने रसोइए को तुरंत भुना हुआ बगुला लाने का आदेश दिया। रसोईया एक बड़ी तश्तरी में वह बगुला रखकर भोजन-कक्ष मे जा पहुंचा और उसने उसे मेज पर सजा दिया।
सामंत के अतिथियों को उस व्यंजन का स्वाद बहुत अच्छा लगा। उन्होंने उसे खूब चटकारे लेकर खाया और उस बगुले का शिकार करने के लिये सामंत की प्रशंसा के पुल बांध दिए। जब सभी लोग भोजन कर रहे थे, तभी सामंत ने देखा कि बगुले का सिर्फ एक पैर था। यह देखकर उसने अपने रसोइए को वहां बुलाया और उससे गुस्से में बोला, "मेज पर जो बगुला रखा है, उसके मात्र एक ही पर है। बगुले का दूसरा पैर कहां है?"
सामंत की बात सुनकर रसोईया डर से काँपने लगा। लेकिन शीघ्र ही उसने स्वयं पर नियंत्रण करते हुए कहा, "मालिक, निश्चय ही आपको कुछ गलतफहमी हुई है। बगुलों के तो एक ही पैर होता है।"
उसका जवाब सुनकर सामंत क्रोध से दांत पीसते हुए बोला, "तो तुम मुझे मूर्ख समझते हो! चलो मेरे साथ और खुद देख लो की बगूले के एक पैर होते हैं अथवा दो पैर।" भला रसोइया अपने मालिक की आज्ञा कैसे टाल सकता था? वह डरते-डरते बोला, "जैसा आप कहें, मालिक!"
अगले दिन सामंत रसोइए को उसी तालाब पर ले गया, जहां उसने बगुले का शिकार किया था। पूरे रास्ते भयभीत रसोईया भगवान से प्रार्थना करता रहा कि वह उसे बचा ले। जब वे दोनों तालाब पर पहुंचे तो रसोईया वहां बगुले को देखकर प्रसन्न हो गया। उस समय सारे बगुले अपनी आदत के अनुसार एक ही पैर पर ही खड़े हुए थे। यह देखकर वह उत्साह के साथ सामंत से बोला, "देखिए, सारे बगुले एक ही पैर पर खड़े हैं। मैंने तो आपसे पहले ही कहा था कि बगुलो के एक ही पैर होता है, लेकिन उस समय आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ था।"
यह सुनकर सामंत ने रसोइए को घूरकर देखा। अब तो रसोईया बहुत घबराया। फिर सामंत ने जोर से ताली बजाई। उसकी ताली की आवाज सुनकर सारे बगुले डर गए और तुरंत अपना दूसरा पैर निकालकर उड़ गए।
यह देख कर सामान अपने रसोईया पर चिल्लाया, "अब बोलो, और कुछ बचा है कहने के लिये?" चतुर रसोइए ने तुरंत कहा, "मालिक, आपने खाने की मेज पर उस समय ताली क्यों नहीं बजाई? यदि आप उसी समय ताली बजा देते तो भूना हुआ बगुला अपना दूसरा पैर भी निकाल देता!"
(शैलेश सोलंकी)