बाघ, बंदर और दढ़ियल खाडू (मेढे) की कथा : मृणाल पाण्डे

Bagh Bandar Aur Dadhiyal Khadu (Medhe) Ki Katha : Mrinal Pande

(गढवाल की यह लोककथा मूल रूप में हमको 19वीं सदी के घुमंतू रूसी भारतविद् इवान पावलोविच मिनायेव के उत्तराखंड के दलित वर्ग की लोककथाओं के एक दुर्लभ संकलन में मिली। अपनी तरफ से छौंक हमने इसमें लगाई जागर संगीत की गाथाओं की जिनको नाथपंथी दलित गायक वादक आज भी गा गा कर सुनाते हैं। निजी या इलाकाई अनहोनी के निवारण के लिये नाथपंथी दलित टोली से ‘जागर’ लगवाना आम है। ढोल थाली बजा कर औतरिया की देह में उतरने को लोकदेवताओं को गा गा कर न्योता जाता है: परथमे गुरु गोरख राऊ, सिव संभो, गौरा, हनुमान फिर लोकदेवता : ऐडी, सैम,हरू, खेतरपाल, कालू,आंछरी-माछरी और योद्धा मुसलमान पीर: मैमंदा (महमूद) जो घुमंतू नाथपंथी जोगी बन घूमते हुए उत्तराखंड आए और यहीं रम कर लोक देवताओं में शामिल हो गये। मैमंदा पीर का नाम और कथा तो जोशीमठ से मिले नाथपंथी ग्रंथ ‘गुरु पादुका’ में भी है। कहते हैं वे नाथपंथी पीरों साधुओं की एक अलबेली जोद्धा फौज में लंगडे तैमूर की सेना के खिलाफ भी लड़े थे। जागर गायक उनको बावन पीरों का पीर और वीरों का वीर बताते हैं।उनका कोई मंदिर नहीं, पर परसादी में इनके नाम सवा सेर आटे का रोट, सवा सेर सिन्नी और पान तथा बीड़ी चढाने का विधान है। )

तो कथा शुरू करें।

**************

बहुत दिन हुए एक था सियार और एक थी उसकी पत्नी।पत्नी गर्भवती हुई।जब बच्चे पैदा होने का समय पास आया तो सियारनी सियार से बोली जल्दी से कोई गढा खोजो।सियार ने गढा खोजा जहाँ सियारनी ने सियार जैसी ही शकल के कई बच्चे जने।बच्चे मां का दूध पी पी कर मुटाने लगे।पहले का समय होता तो शायद बाघ एक को भी न छोड़ता।पर इन दिनों बन का हाल अजब था।बच्चों की चिल्लपिल्ल सुन कर भी अब तक कोई बाघ गढे के पास नहीं आया।

अब ऐसा तो नहीं हो सकता कि जंगल में राजा बाघ ही न हो।पर हुआ ये कि बन के राजा को एक बनैले हाथी ने मार डाला था।तब से विचलित बाघिन और उसका बच्चा एकदम से सुन्न और अपनी गुफा के कोने में ही समय बिताने लगे थे।बाघिन कभी कहे कि जा बेटा कोने से निकल, बाहर जा कर गरज, शिकार कर, पर वह गुफा में ही रहता।बाघिन खुद ही कभी शिकार को बाहर जाती तो एकाध मृग मार कर आहार लाती।

होते होते जंगल के पशु पक्षी बाघिन के बेटे को कुण बाघ (कोने में रहनेवाला बाघ) कहने लगे।

बाघिन को बडी फिकर जैसी लग गई।अभी तो मैं सर पर हूं, लेकिन आगे इस छोरे और हमारे इस हरेभरे जंगल का क्या होगा?

‘जरा देख तो बेटा किसके छौने जनमे हैं? कुन कुन जैसी सुनती हूं|’ मां के कहने पर उत्सुकतावश गुफा से निकल कर कुण बाघ उस गढे के पास जा खडा हुआ जहाँ सियार-सियारनी और उनके बच्चे थे।बाघ आया देख कर सियारनी घबरा गई।सियार चतुर था।उसने ने फुसफुसा कर बीबी से कुछ कहा और दूसरी तरफ से निकल कर खुद पहाड़ पर चढ गया।

कुण बाघ को गोलमटोल बच्चों का भोला खेल भला लग रहा था।वह उन पर झपट्टा मारने की बजाय चुपचाप उनको खेलता हुआ देखने लगा।

इधर पहाड़ की चोटी से सियार का इशारा मिला तो अब अचानक सियारनी ने अपने पंजों से बच्चों को खुजलाना शुरू कर दिया।किलकते बच्चे अब जोर जोर से रोने लगे।इस पर पहाड़ की चोटी पर खडे सियार ने जोर से पूछा, ये बच्चे ऐसा कलकलाट काहे करते हैं री? तो सियारनी बोली, ‘ये गड्ढे पर खडा बाघ देख के जिद कर रहे हैं कि ये तुम्हारा कल का मारा बाघ नहीं खाना चाहते। इनको ताजा बाघ का मांस खाना है।’

बाघ को लगा कि ये तो शायद मुझे भी मेरे बाप की तरह मार न डालें।ये मुझे मारेंगे तो बाहर आ कर मेरी महतारी इनको नहीं छोड़ेगी।सो बच्चों को बचाने को वह निकल लिया।

उसे वापिस जाते देख कर पेड़ पर पत्तों के बीच से बकबकुआ बंदर ने कहा, ‘यार बलवान बाघ की औलाद होकर भी तुम सियार की बात से डर कर भाग रहे हो? अरे गड्ढे में सियारनी ही तो है भला वह तुमको खा सकती है?’

‘मुझे तो उसके बच्चों की फिकर है।‘ इतना कह कर बाघ जाकर अपनी गुफा में घुस गया।

बकबकुआ बंदर तो महा खुराफाती हुआ।पेट में कोई बात ना पचै।कत्तई। जंगल से बाहर जो चरागाह थी, वहाँ जाकर उसने सब घास चरनेवालों को कहना शुरू कर दिया कि रे, जंगल का छोटा बाघ तो मन्ने बडा ही शाकाहारी टैप कुण बाघ लागे है।सामने चिचियाते सियार के चेंचडे भी नहीं छूता।

पास चरता महाघमंडी नामका खाडू बोला, ‘लगता है इब तो वन में वैजीटेरियन दोस्तों की फौज करेगी मौज ! जो चाहे बच्चों समेत सीधे जंगल के भीतर भी चरने को घुस आये।अंय?’

हो गया।घमंडीलाल था तो मेढा, पर बन के बाहर के इलाके में अपने आप जैसा किसी को नहीं गिनता था।अहा मेरे जैसे घुमावदार सींग, अहा मेरी जैसी दाढी किसकी ? दिन रात मैं मैं करनेवाला खाडू घमंडी लाल सोचता था।मन में दबे अरमान ठहरे बाघों जैसा बनने के।

बकबकुआ बंदर की बात सुन उसने मुडिया उठा कर मैं मैं का नारा लगाया तो भेडें भागी आईं।

‘क्यों? इस घनी दाढी के साथ दो बडे बडे सींगों का मुकुट धारे हुए मैं कैसा दिखता हूं?’ भेडों के झुंड से उसने पूछा। अब भेड़ की तो भेड़चाल ! हर एक दूसरी का मुख ताके, कि अगली जो कहे सो ही मैं कहूं।

खाडू उनको चुप देख कर बोला, ‘जंगल का राजा कहलाने लायक ना?’

एक सुर में भेडें बोलीं, ‘बिलकुल!’

‘तुम मेरा साथ दो तो मैं जंगल का राजा बन कर क्रांति ला दूं।बाघों से मुक्त वन बना दूं जहाँ बस भेड़ जात काबिज़ होगी।हाथी भालू तो हमारे ही जैसे शाक पात खानेवाले हुए, उनको अपनी टोली में ले आऊंगा।बाकी मांस खानेवालों को सींग मार मार के मैं इस वन से भगा दूंगा।’ महाघमंडी खाडू ने कहा।

भेड़चाल शुरू हो गई।

महाघमंडी के पीछे हर रोज़ बेशर्मी से भेड़ों के जत्थे के जत्थे ‘खाडूराजा का नमो नमो‘, करते वन में घुस कर उलट पुलट करने लगे।साथ में चिपक कर चली आई बकरियों की मुफत में मौज।

एक से एक सुंदर झाडियां सरोवर किनारे की दूब वनौषधियां मिटने लगीं।बकरियां टीलों पर लगे बबूल और बेरी तक चट करने लगीं।

इस बात की चर्चा बाघिन के कानों में पडी तो उसे चिंता हुई।बिनु भय होय न प्रीति ! पर उसका छोरा जीवों का शिकार करने या किसी पर गरजने में कतई यकीन ना करै।बैठा रहे गुफा में।ज्यादे कहो तो कह दे कि अम्मा, खून खराबा करने से क्या? सत्यमेव जयते।

अब जोगी जती बन के तौ यू राज काज ना चलैगो, वह सोचती।जंगल में भेड़-बकरियों का राज हुआ तब तौ जंगल के जंगल उजड़ते देरी ना होवेगी |

आखिर चतुर बाघिन ने अपने मैके संदेस भेजा।के करूं? आज जंगल की सीमा पर भेड़ें हैं, पर नज़र उनकी मेरी गुफा पर है।छोरे से कहूं तो हंस कर टाल दे।अकेली मैं के करूं?

जवाब आया देर मती कर।आज भाड की लकडी जलती है, तो टाल पर धरी हंसती है, बिन जाने कि कल उसकी बारी।तेरे छोरे पर तो लगता है बैरियों ने मंतर डाल दिया है।तेरा भाई आ रहा है जागर लगवाने डंगरिया समेत।

तू जागर की तैयारी कर।डंगरिया के बदन में उतरे देवता-पीर फकीरों से पूछ कि छोरे का भरम और महाघमंडी बेशरम कैसे निपटै?’

यथासमय जागर लगा।औजी ने बजाना शुरू किया ढोल।

‘जै हंकारो, तल धरती सर अकास,सिद्ध करियै कामना, डम्म डम्म,

परथमै जनता, जनता से उपज्ये संता, संता कलुआ पीर,

तू बैरियों सूं धका धैंधैं, बैरियाँ मन कंपण धैं धैं ..तुमरो ही आधार..’

डंगरिया का बदन काँपते देख गाना और जोर से होने लगा:

‘ओम नमो गुरु को आदेश, परथम सुमिरों बटुकनाथ,गुरु गोरख राई,चंडिका माई,नृसिंग,पिंगला माई, गोरख राई, लोहे का कोटा, तांबे को पात्रा, निकलो बाहिर मैमंदा पीर मसाण..पठाण का नाती, बाबा वीर मैमंदा तू कैसो आयो? हाम हाम करतो आयो, छामछाम करतो आयो,धरती अगास फिरंतो रे बाबा पीर मैमंता!’

बाबा मैमंदा का डंगरिया पर आना था कि सीधा वो गया बाघ के सामने जो बाघिन की बगल में बैठा था : ‘सद्गुरु, सद्गुरु’ बाघिन का भाई बाघ का मामा बोला, ’इस पिंड पर पडो छल हर लो गुरू, समसाणवाला है तो लाल कपडा टांग देंगे, खाडू का भेजा है तो सवा सेर गोश्त का कलिया देंगे।जै जस दे धरती माता, जस दे भूमि का भूम्याल देवा, जै जस दे खितरपाल, इस पिंड का छल करी, छिद्र करी, भूत पिरेत की बाधा, हर ले साईं, गुरु को आदेश!’

बाद को खुराफाती बकबकुआ बंदर ने खाडू को बताया कि इतना कह कर अचांचक्क एक जोत सी फूटी और कलियाने पीर का जोद्धा मैमंदा डंगरिया से निकल कर सीधे बाघ के भीतर समा गया।

जोत का समाना था कि चुपचाप बैठा बाघ का बघेरा अचानक उठ खडा हुआ।बाजे बजने लगे, ‘धका धैं धका धैं ! रणसाज सजावा धका धैं धैं! टीका लगावा, धका धैं धैं!’

बकबकुआ की बात सुन कर खाडू महाघमंडी जोर से हंसा।साथ की सारी भेडें हंसीं।बिना जाने कि काहे हंसती हैं।सबसे देर तक हंसा गंजा सियार जो खाडू का सबसे भरोसेमंद सलाहकार बन गया था।हट बुद्धू ऐसा भी होता है कहीं?

‘आप क्रोनौलौजी समझिये!’ आखिरकार हंसी रुकने पर सियार जंगल के पशुओं से बोला।‘ये सब नाटक है।इनके पास न सेना है, न ही लडने के लिये तेज जैसा हमारे खाडू जी में है।अभी ये कुछ न करेंगे, पण अब हम और महाघमंडी जी की पूंछ में पूंछ बाँध कर एक साथ कल रण में उतरेंगे और इस बाघ बाघिन की हमेशा के लिये छुट्टी करायेंगे।हुंह धका धैं धैं!’

खाडू हंसा, गंजा सियार हंसा, भेडें देर तक हंसती रहीं, ‘धका धैं धैं !’

सुबह हुई।धरती जगी।अक्कास जगा।बाँके बन में बाघ जागता था।लोहे को लोहा काटता है, उसके कान में मैमंदा बोला |

बाघ बाहर आया।उस गड्ढे के पास गया जहां सियार के बच्चे थे।सियार टीले पर जा पहुंचा था।बाघ ने देखा वहां उसके साथ दाढी वाला महाघमंडी खाडू भी खड़ा था।दोनो मित्रों ने एक रस्सी बंट कर अपनी पूंछें आपस में बाँध रखी थीं।बाघ को देख कर खाडू और सियार हमले को तैयार हुए।तभी बाघ के गले से एक भयंकर हुंकार गर्जना फूटी जिसे सुन कर सियारी तो बेहोश हो गई और घबरा कर सियार लड़खड़ा कर चोटी से ऐसा फिसला कि हुम हुम करते खाडू को भी जबर्दस्ती अपने साथ नीचे गहरी खाई में खींच ले गया। बघेरे ने चोटी पर जा कर देखा दोनो तलहटी में एक दूसरे की पूंछ से बंधे मरे पड़े थे।

‘सिखाई हुई अकल और घमंड में दूसरे जीव की नकल अंत में ऐसा ही घात कराती है,’ मैमंदा पीर ने बाघ के भीतर से बाहर निकल कर कहा।‘अब तू सुधर, वन को सुधार। भेड़ बकरियों की चिंता किये बिना सियारी और उसके चेंचडों को गड्ढे में पडा रहने दे।

‘सबसे भला शासक वह, जिसका होना न होना परजा न जाणै।और जब कुछ भी अच्छा होवे, परजा को लगे यह उसका अपना किया है।’

यह कह कर मैमंदा पीर बावन पीरों का पीर, बावन वीरों का वीर अलोप हो गया।

  • मुख्य पृष्ठ : मृणाल पाण्डे हिन्दी कहानियाँ
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां