बाघ और बिल्ली : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा

Bagh Aur Billi : Lok-Katha (Himachal Pradesh)

मैं तुम्हें ही मार के खाऊंगा अब मौसी। तुम्हारा नर्म-नर्म मांस बड़ा ही स्वाद होगा। बाघ के बच्चे ने बिल्ली को खुंखार नजरों से घूरते हुए कहा। वह यह भी भूल गया था कि उसकी मां मरने पर बिल्ली ने ही उसे पाला-पोशा था।

बिल्ली का तीसरा नेत्र खुला उसने सामने की ओर संकेत किया- अरे उधर देख बेटा, वहां पर मुझसे भी बढ़िया स्वादु शिकार है।

बाघ का बच्चा, उस ओर गौर से देखने लगा तो पलक झपकते ही बिल्ली साथ के पेड़ पर चढ़ गई। सामने शिकार न देख और बिल्ली को इधर उधर न पाकर उसे पेड़ पर चढ़ा देखकर उसेन पैंतरा बदला- अरे मौसी, मैंने तो मजाक में तुम्हें खाने की बात कही थी। मेरी प्यारी-प्यारी मौसी तुमने मुझे अपना दूध पिलाया, ताकतवर बनाकर शिकार करने के सारे करतब सिखाए, पर तुमने मुझे पेड़ पर चढ़ना क्यों नहीं सिखाया ? उतरो नीचे मेरी प्यारी मौसी, मुझे पेड़ पर चढ़ना सीखा दो न ?

बाघ के बच्चे ने बहुत मीठे-मीठे और पटाते हुए बिल्ली मौसी से कहा।

अरे बस कर बाघ बेटा, मैं तेरी आंखों में सच पढ़ चुकी हूं। दो दांत वाला चार दांत वाले को क्या ठगेगा। तुम्हें भी बेटा मैंने हर विद्या सिखाई पर पेड़ पर चढ़ना अभी सिखाना था किन्तु तुमने कृत्घनता दिखा ही दी। मेरी दादी सच कहती थी कि बाघ और सांप कभी अपने नहीं हो सकते। अब तुझे पेड़ पर चढ़ना कभी नहीं सीखा सकती। मैं तेरे झांसे में आने वाली नहीं, अब तू जा जहां जाना है। बिल्ली ने अब बिना स्नेह और ममता के कहा था।

अब बाघ का बच्चा अपना छोटा सा मुंह लेकर रह गया था। उसे अपनी फिसली जीभ पर गुस्सा आने लगा था।

(साभार : कृष्ण चंद्र महादेविया)

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