बदसूरत मेंढ़क : इराकी लोक-कथा

Badsurat Mendhak : Iraqi Folk Tale

बलसोरा के बादशाह का राज्य धनधान्य से पूर्ण था । किसी भी प्रकार की कोई कमी न थी । उनकी एक प्यारी-सी बेटी थी जिनी । उसके काले घुंघराले बाल, घनी पलकें, तीखे नयन-नक्श, हर किसी को अपनी ओर आकृष्ट करते रहते थे ।


अनेक राजकुमार राजकुमारी जिनी का हाथ थामने का प्रयास कर चुके थे । पर जिनी सबका मजाक उड़ाती रहती थी । वह किसी में कोई कमी निकाल देती, किसी में कोई । जिनी के पिता उसके जन्मदिन पर हर वर्ष कोई न कोई सुंदर उपहार दिया करते थे । जिनी को उन उपहारों में सोने की सुंदर हीरों जड़ी गेंद बेहद प्रिय थी ।
खाली वक्त होने पर जिनी अपने महल के बाहर सुंदर बगीचे में गेंद खेल कर मन बहलाया करती थी ।

एक दिन जिनी गेंद को जोर-जोर से उछालकर खेल रही थी । जैसे ही सूर्य की किरणों में गेंद चमकती थी, उसकी रोशनी चारों ओर फैल जाती थी । उस रोशनी को देखने में जिनी को बड़ा आनंद आ रहा था ।

एक बार गेंद अचानक जोर से उछली और बगीचे के बीचोंबीच बने तालाब में जा गिरी । गेंद पहले लिली के पत्ते पर रुकी । जिनी गेंद पकड़ने के लिए दौड़ी, पर तब तक गेंद पानी में जा चुकी थी । सोने की गेंद होने के कारण गेंद पानी में डूब गई ।

जिनी एकदम उदास हो गई । उसने अपना हाथ पानी में बढ़ाने की कोशिश की, पर गेंद का कहीं अता-पता नहीं था । तभी अचानक उसे एक फूल पर बैठा एक हरा-सा बदसूरत मेंढ़क दिखाई दिया ।

जिनी को रोना आने लगा था कि अचानक मेंढ़क बोला - "यदि तुम मेरी बात मानो तो मैं तुम्हारी गेंद निकाल सकता हूं ।"
जिनी तो अपनी गेंद के लिए पागल-सी हुई जा रही थी, बोली - "मैं तुम्हारी सारी बातें मानने को तैयार हूं । पर ऐ मेंढ़क, पहले तुम मेरी गेंद बाहर निकाल दी ।"

मेंढ़क बोला - "ऐसी जल्दी भी क्या है ? पहले मेरी बात तो सुनो । मैं तालाब में रहते-रहते थक गया हूं । यदि मैं तुम्हारी गेंद निकाल दूं तो मैं तुम्हारी सोने की थाली में तुम्हारे साथ खाना खाऊंगा ।"
जिनी जल्दी में बोली - "मुझे मंजूर है, पर मेरी गेंद तो जल्दी निकालो ।"

"तुम्हें मेरी दो शर्तें और माननी होंगी । मैं तुम्हारे चांदी के गिलास में ही पानी पीऊंगा और तुम्हारे मखमली बिस्तर पर ही सोऊंगा । यदि तुम्हें मंजूर हो तो बताओ । मैं तुभी तुम्हारी गेंद निकालूंगा ।" मेंढ़क बोला ।

जिनी ने किसी भी बात को ध्यान से सुने बिना स्वीकृति दे दी । मन में सोचने लगी कि मेंढ़क कुछ पागल लगता है । मेरे हां करने से क्या फर्क पड़ता है । मेंढ़क चन्द क्षणों में चमकीली गेंद बाहर ले आया ।
जिनी इतराती हुई बिना मेंढ़क का धन्यवाद किए गेंद लेकर चल दी । वह घर के अंदर आकर गेंद रखकर अपने माता-पीता के साथ खाना खाने बैठ गई ।

संगीत की मीठी-मीठी धुन बज रही थी, सब लोग मद्धम रोशनी में खाना खाने में व्यस्त थे । मेहमान भी मधुर धुनें सुनते हुए भोजन का आनंद ले रहे थे । जिनी बादशाह व रानी के साथ मेज पर बैठी सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन खाने लगी । जिनी के पीछे खड़े नौकर उसके हाथ-पैर साफ कर उसकी खाने में मदद करने लिए उसके पीछे खड़े हो गए ।

अचानक दरवाजे पर 'हांप-हांप' की आवाज सुनाई दी । सभी का ध्यान उस आवाज की ओर आकृष्ट हो गया । जिनी मेंढ़क को बिल्कुल भूल चुकी थी । उसने नौकर को दरवाजे पर जाकर देखने का आदेश दे दिया ।

मेंढ़क ने नौकर से कहा - "मुझसे राजकुमारी जिनी ने अपने साथ भोजन करने का वादा किया है, अत: मैं भोजन करने आया हूं ।" मेंढ़क की बात सुनकर नौकर हत्प्रभ रह गया ।

नौकर ने जिनी से आकर कहा तो जिनी गुस्से में बोली - "नहीं, मैं किसी मेंढ़क को नहीं जानती, दरवाजा बंद कर दो ।" नौकर दरवाजा बंद करने जाने लगा तो बलसोरा के बादशाह बोले - "प्यारी जिनी, याद करो, कहां तुमने किसी मेंढ़क से वादा तो नहीं किया । हम शाही लोग किसी से वादा करके तोड़ते नहीं ।"
पिता की बात सुनकर जिनी घबरा गई । उसने देखा सभी मेहमानों की निगाहें उसी पर टिकी थीं । जिनी ने चुपचाप मेंढ़क को अंदर लाने की स्वीकृति प्रदान कर दी ।

मेंढ़क बोला - "जिनी, मैं तुम्हारे पास बैठकर भोजन करूंगा ।" जिनी ने मेंढ़क को अपनी कुर्सी पर बिठा लिया । तो मेंढ़क बोला - "तुमने मुझे अपनी थाली में भोजन कराने का वादा किया था, मैं तुम्हारी थाली में भोजन करूंगा, मुझे मेज पर पहुंचा दो ।"

मेंढ़क की बात सुनकर जिनी को बहुत गुस्सा आ रहा था, परंतु वह अपने पिता की निगाह देखकर चुप हो गई । उसने मेंढ़क को चुपचाप थाली के पास बिठा दिया । मेंढ़क के भोजन शुरू करते ही जिनी ने अपने हाथ रूमाल से पोंछ लिए । उसे बदसूरत मेंढ़क से बेहद चिढ़ हो रही थी ।

जिनी ने अपने खूबसूरत चांदी के गिलास में पानी पीना शुरू कर दिया । मेंढ़क बोला - "जिनी मुझे भी अपने गिलास में पानी दो न, मुझे बड़ी प्यास लगी है ।" मेंढ़क की बात सुनकर जिनी ने गिलास अपनी तरफ खींच लिया और गुस्से से मेंढ़क को देखने लगी ।

इस पर मेंढ़क बोला - "गुस्सा क्यों होती हो जिनी, तुम्हीं ने तो वादा किया था कि अपने चांदी के गिलास में मुझे पानी पिलाओगी ।" जिनी ने खिसियाते हुए गिलास मेंढ़क की तरफ बढ़ा दिया और चुपचाप उठ कर चल दी ।

मेंढ़क के मुंह से जिनी बार-बार अपना नाम सुनकर जली-भुनी जा रही थी । तभी मेंढ़क बोला - "अपना तीसरा वादा भूल गईं क्या ? मुझे भी बड़ी नींद आ रही है, अपने साथ मुझे भी ले चलो ।"

जिनी गुस्से में बोली - "नहीं, कभी नहीं ।" तभी बादशाह प्यार से जिनी से बोले - "प्यारी बेटी, तुम्हें वादा करने से पहले सोचना चाहिए था । अब वादा किया है तो मेंढ़क को भी अपने साथ ले जाओ ।"

जिनी के पीछे 'हांप-हांप' कर उछलता हुआ मेंढ़क भी चल दिया । दो सीढ़ी ऊपर जाने के बाद ही मेंढ़क बोला - "मैं बहुत थक गया हूं, मुझे भी ले चलो उठाकर जिनी ।" जिनी ने चुपचाप मेंढ़क को उठा लिया और सोचने लगी कि इसे खाली कमरे में छोड़ दूंगी ।

थोड़ा आगे जाकर जिनी ने मेंढ़क को एक खाली कमरे में बंद कर दिया और अपना कमरा अंदर से बंद करके सोने चली गई । जिनी अब निश्चिंत थी कि मेंढ़क को दूसरे कमरे में बंद कर दिया है । इसी निश्चिंतता के कारण जिनी को लेटते ही नींद आ गई ।

पर कुछ ही मिनटों बाद दरवाजे पर 'हांप-हांप' की ठक-ठक सुनाई दी । जिनी की आंख खुल गई और वह डर गई, कहीं उसके पिता को मेंढ़क की आवाज सुनाई न दे जाए, उसने चुपचाप दरवाजा खोल दिया और जमीन पर पड़े कालीन पर मेंढ़क को सो जाने को कह कर स्वयं पलंग पर लेट गई ।
पर मेंढ़क जिनी को तंग किए जा रहा था और जिनी झुंझलाते हुए भी कुछ करने में असमर्थ थी । सुलाना चाहती हो । अपना वादा भूल गईं क्या ?"

"वादा, वादा, वादा..." जिनी गुस्से में भर उठी । उसने मेंढ़क को उठाकर जोर से खिड़की के बाहर फेंक दिया, पर यह क्या, वह पलट भी न पाई थी कि उसने देखा कि बगीचे में गिरते ही मेंढ़क राजकुमार बन गया है । चांदनी में राजकुमार का यौवन और भी निखर रहा था ।

राजकुमार को देखकर जिनी ठगी सी रह गई, ऊपर से ही बोली - "तुम कौन हो ? मैं तुमसे मिलना चाहती हूं ।" राजकुमार ने जिनी को नीचे आने का इशारा किया ।

जिनी मेंढ़क से जितना ऊब चुकी थी, राजकुमार के पास जाने को उतना ही व्याकुल हो उठी । वह राजकुमार के पास पहुंची तो राजकुमार से मेंढ़क के बारे में पूछा, राजकुमार ने मेंढ़क के बारे में बताया ।

"मैं भी तुम्हारी तरह सिर्फ सुंदर चीजों से प्यार करता था । एक बार मैं शिकार पर गया था कि जंगल में मुझे एक बदसूरत परी मिली । मैं उसे देखकर हंस पड़ा । बस, उस बदसूरत परी ने मुझे श्राप दे दिया कि तुम जिस सुंदरता पर घमंड करते हो वह बदसूरती में बदल जाएगी और तुम हमेशा के लिए एक बदसूरत मेंढ़क बन जाओगे ।"

मैंने परी से बहुत क्षमा-याचना की तो परी ने मुझे श्रापमुक्त होने का तरीका बता दिया कि यदि कोई खूबसूरत राजकुमारी किसी चांदनी रात में तुम्हें गुस्से में मारेगी तो तुम पुन: पुराने स्वरूप में आ जाओगे । यदि मैं इस प्रकार की शर्तें न रखता और रात में तुम्हारे बिस्तर पर सोने की जिद न करता तो हरगिज रात में मुझे गुस्से से मारने वाली तुम जैसी राजकुमारी न मिलती और में श्रापमुक्त न होता ।

बगदाद के राजकुमार मोबारेक की बात सुनकर राजकुमारी जिनी का दिल पसीज उठा और वह उसे इज्जत के साथ महल में ले आई । सुबह को उसका परिचय अपने माता-पिता से करवया । फिर बहुत धूमधाम से राजकुमारी जिनी और राजकुमार मोबारेक की शादी हो गई ।

(रुचि मिश्रा मिन्की)

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