बदली घमंडी तितली : इंडोनेशियाई लोक-कथा
Badli Ghamand Titli : Indonesian Folk Tale
एक थी तितली बहुत ही सुंदर, बहुत ही प्यारी। उसके रेशमी पंख जो देखता, बस देखता ही रह जाता। इंद्रधनुष के रंग समाए थे उसके पंखों में तितलियों की वह रानी थी। सभी तितली रानी की बहुत प्रशंसा करते थे। अपनी प्रशंसा सुनकर तितली सातवें आसमान पर पहुँच गई थी। कई बार उसका मन करता था कि वह अपने आपको देखे कि वह कैसी दिखती है ? एक दिन वह नदी के पास के पेड़-पौधों पर घूम रही थी। नदी में उसका प्रतिबिंब नजर आ रहा था। अपना प्रतिबिंब देखकर वह दंग रह गई। बहुत खूबसूरत रंग उसके पंखों में भरे थे। उसके पंखों के रंगों का तालमेल ऐसा था, जो बहुत कम देखने को मिलता है। पंखों की रेशमी बनावट उसे और आकर्षक बना रही थी। आज वह समझी कि सब उसकी प्रशंसा क्यों करते हैं ?। अब तो उसे यह महसूस होने लगा था कि उसमें अवश्य ही कोई विशेष बात है, जो अन्य तितलियों में नहीं है, इसलिए तो हर जगह पर सिर्फ और सिर्फ उसे ही आमंत्रित किया जाता है, ताकि वह अपनी सुंदरता से कार्यक्रम में चार चाँद लगा सके।
एक दिन वह फूलों पर बैठी मकरंद पी रही थी, तभी एक चिड़िया उड़ती हुई वहाँ आई । चिड़िया को ऊँचाई तक उड़ते देख वह उसे निहारती रही । चिड़िया वहीं पास आकर बैठ गई। वह हाँफ रही थी । तितली उसे देखकर बोली, "तुम, हाँफ क्यों रही हो?" चिड़िया बोली, "मुझे लंबी दूरी की यात्रा करनी है। अभी मैं तेजी से उड़ते हुए जा रही थी, इस कारण थक गई। थोड़ा सुस्ताने के लिए मैं यहाँ आकर बैठ गई हूँ। मुझे दूर पार जाना है। वहाँ मेरी बहनें मेरा इंतजार कर रही हैं। हम सभी चिड़ियाँ एक मंगल गान गाएँगी। मुझे भी वह गान गाना है। वहाँ के राजा के दरबार में उस गान का प्रस्तुतीकरण किया जाएगा।" यह सुनकर तितली को लगा कि राजा के दरबार में उसे तो सबसे पहले जाना चाहिए और अपने रेशमी पंखों से उसे मोहित करना चाहिए। वह बोली, "मैं भी तुम्हारे साथ दूर तक चलती हूँ। मैंने कभी लंबी यात्रा नहीं की।"
तितली की बात सुनकर चिड़िया व्यंग्य से बोली, "अरे, तुम्हारे ये नाजुक से पंख भला इतनी लंबी यात्रा कहाँ कर पाएँगे, जरा सी बारिश या तूफान आया, तो तुम तो गई। समझो। तुम यहीं बैठकर पुष्प का मकरंद पियो। ज्यादा दूर तक जाना तुम्हारे बस की बात नहीं।" तितली को चिड़िया का व्यंग्य पसंद नहीं आया। वह चुपचाप उसके पीछे-पीछे उड़ चली । चिड़िया जल्दी ही दूर आकाश में चली गई, तभी बादल घिर आए और बारिश की बूँदें धरती को भिगोने लगीं। तितली बारिश को देखकर भय से पीली पड़ गई।
तेज हवा के झोंके और बारिश की बूँदों के साथ वह एक घोड़ागाड़ी में जा गिरी। घोड़ागाड़ी में वह एक कोने में दुबक गई, ताकि बारिश से उसका बचाव हो सके। तभी घोड़ागाड़ी में से दो गाड़ीवान निकले।
पहला बोला, "मालिक बारिश रुकने तक आराम करने चले गए हैं। यही सही समय है, जब हम अपने आदमियों को यह सूचना दें कि मालिक के पास बहुत धन है। वे उसे रास्ते में जंगल में घेर लें और उसे मारकर सारा धन अपने कब्जे में ले लें। उस धन को हम बराबर बाँट लेंगे।"
इस पर दूसरा गाड़ीवान बोला, 'हमारा मालिक कुछ ज्यादा ही दयालु है। वह अपनी मेहनत से कमाए गए धन को जरूरतमंदों में बाँटकर बेवकूफी करता है। इस बार उसके इस धन को हम लूट लेंगे और उसका काम भी तमाम कर देंगे। फिर हमें उसके यहाँ नौकर बनकर नहीं रहना पड़ेगा।" यह सुनकर तितली दंग रह गई। पंख गीले होने से वह बेहद घबरा गई थी। उसे ऐसा लगने लगा था, जैसे कि उसका अंतिम समय आ गया हो। लेकिन गाड़ीवानों की बात सुनकर वह दंग रह गई ।
उन गाड़ीवानों में से एक ने एक ऐसी वस्तु निकाली, जिसमें प्रतिबिंब नजर आता था। उसने अपनी पगड़ी बदली और अपने साथियों को सूचित करने चला गया। प्रतिबिंब दिखानेवाली वस्तु को उसने उस ओर रख दिया, जहाँ तितली चिपकी हुई बैठी थी। वह वस्तु दरअसल एक दर्पण था । दर्पण में तितली ने स्वयं को देखा तो दंग रह गई। बारिश में भीगने के कारण उसके पंख बदरंग से हो गए थे। पंखों की रेशमी झिलमिल गीले पंखों में कहीं नजर नहीं आ रही थी। यह देखकर तितली की आँखों में आँसू आ गए। वह समझ गई कि वह व्यर्थ ही अपने पर अभिमान करती थी। अब वह सिर्फ एक बात सोच रही थी कि इन धोखेबाज और धूर्त गाड़ीवानों से दयालु मालिक की जान कैसे बचाई जाए ? तभी एक मधुमक्खी उड़ती हुई वहाँ आ पहुँची । तितली को देखकर वह बोली, "अरे, तुम बारिश से बचने के लिए यहाँ आई हो, मैं भी । "
मधुमक्खी की बात सुनकर तितली बोली, "हाँ बहन, मैं बारिश से बचने के लिए ही यहाँ आई हूँ। मेरे पंख भी गीले हो चुके हैं, यदि वे टूट गए तो मेरा भी अंत हो जाएगा।" यह सुनकर मधुमक्खी बोली, "अरे, तुम घबराओ मत ! मैं तुम्हारी मदद करूँगी। मैं तुम्हें मरने नहीं दूँगी।" उसकी बात सुनकर तितली बोली, "मुझे अब मेरे मरने की चिंता नहीं है, बल्कि घोड़ागाड़ी में सफर कर रहे उस दयालु धनवान् मालिक की चिंता है, जिसे उसके धूर्त और मक्कार गाड़ीवान मारकर उसका धन लूटना चाहते हैं।" फिर उसने मधुमक्खी को सारी बात बताई।
मधुमक्खी बोली, "बहन, तुम चिंता मत करो। यहीं पास में ही पेड़ पर मेरा छत्ता है। मैं मधुमक्खियों की रानी हूँ । मैं अन्य मधुमक्खियों को बुलाकर इन गाड़ीवानों और इनके धूर्त साथियों को ऐसा सबक सिखाऊँगी कि ये जीवन भर कभी किसी का धन लूटने की कोशिश नहीं करेंगे। पर तुम्हारे पंख ।" तितली बोली, “अब तो बारिश बंद हो गई है। ठंडी-ठंडी हवा चल रही है। मेरे पंख हवा से सूख जाएँगे, मैं फिर पहले जैसी हो जाऊँगी। इस समय हमें मालिक को बचाना है।"
बारिश बंद होते ही मालिक घोड़ागाड़ी में बैठ गया। दूसरा गाड़ीवान भी अपने साथियों को सूचना देकर आ पहुँचा था । जैसे-जैसे गाड़ी आगे बढ़ती रही, वैसे-वैसे घना जंगल आता गया । मधुमक्खी ने अन्य मधुमक्खियों को खबर कर उन्हें जंगल में भेज दिया था। जैसे ही गाड़ीवान और उनके साथियों ने मालिक पर धावा बोला, वैसे ही मधुमक्खियों ने उन्हें डंक चुभो दिए। मधुमक्खी के डंक से हथियार दूर जा गिरे। मालिक को अब तक अपने धूर्त और बेईमान गाड़ीवानों की हकीकत का पता चल गया था। मधुमक्खियों के डंक से सभी कराह रहे थे और बेहोश हो गए थे। मालिक ने मधुमक्खी का हृदय से धन्यवाद 'किया। अब तक तितली के पंख सूख चुके थे। वह भी बाहर निकल आई थी। मालिक मधुमक्खी और तितली को साथ देखकर समझ गया कि आज मेरी जान तितली और मधुमक्खी के कारण ही बची है। वह उन दोनों की ओर देखकर बोला, 'आज तुम दोनों के कारण ही मेरी जान बची है। आज से हम सब दोस्त हैं।" फिर उसने तितली को अपनी कलाई पर बैठाया और उसे हलके से सहलाकर उसका धन्यवाद किया। अब तितली के पंख पहले की तरह रेशमी होकर चमक रहे थे।
आज तितली बहुत खुश थी, लेकिन इसलिए नहीं कि वह सुंदर थी, बल्कि इसलिए कि आज उसने एक नेक और दयालु मनुष्य की जान बचाई थी। मालिक के सकुशल वहाँ से जाने के बाद तितली मधुमक्खी से बोली, "आज मेरे घमंड का अंत हो गया है, साथ ही मुझे तुम्हारे रूप में एक बहुत अच्छी दोस्त भी मिल गई है। मुझसे मिलने आती रहना । " मधुमक्खी ने मुसकराकर सहमति जताई। इसके बाद तितली वापस अपनी सखियों की ओर लौट चली - एक नई मुसकान और उमंग के साथ।
(साभार : रेनू सैनी)