बड़ा अंडू और छोटा अंडी : अफ्रीकी लोक-कथा

Bada Andu Aur Chhota Andi : African Folk Tale

एक गाँव में एक आदमी रहता था जिसके दो पत्नियाँ थीं। इत्तफाक से दोनों पत्नियों ने एक ही दिन दो बेटों को जन्म दिया। एक ने सुबह को, और दूसरी ने तीसरे पहर को।

सुबह पैदा हुए बेटे का नाम रखा गया अंडू बाबा, और तीसरे पहर में पैदा हुए बेटे का नाम रखा गया अंडी करामी।

जन्म के दिन से ही वे दोनों बिल्कुल एक जैसे लगते थे और एक साथ ही रहते थे। जब वे जवान हो गये तो उनके पिता ने उनके लिये दो अलग अलग मकान बनवा दिये।

अंडू बाबा के मकान के आगे लगा डुरूमी का पेड़, और अंडी करामी के मकान के आगे लगा चेदिया का पेड़।

कुछ दिनों के बाद अंडी करामी की माँ मर गयी तो उसके पिता ने उसको अंडू बाबा की माँ की देखभाल में रख दिया। उस दिन से तो वे दोनों हर समय एक साथ ही रहने लगे। यहाँ तक कि कोई एक दूसरे के बिना खाना भी नहीं खाता था।

जब वे कुछ और बड़े हो गये तो उनके पिता ने उन दोनों की शादी कर दी, और वह भी एक ही दिन। जब शादी की रस्में खत्म हो गयीं तो अंडी करामी बातें करने के विचार से अंडू बाबा के घर गया।

वे दोनों रात गये तक बातें करते रहे। बाद में अंडू बाबा बोला — “अंडी, अब काफी समय हो गया है अब तुम अपने घर जाओ। चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आता हूँ। ”

अंडी करामी बोला — “कमाल है, हम और तुम इतनी बढ़िया बातें कर रहे हैं और तुम कहते हो कि मैं घर चला जाऊँ। ”

अंडू बाबा बोला — “बुरा न मानो अंडी, मैं तो तुम्हारी पत्नी के बारे में सोच रहा था। ंमैं नहीं चाहता कि वह तुमसे रूठ कर मेरे बारे में यह कहे कि मैं फालतू आदमी तुमको उससे दूर रखता हूँ। इसलिये चलो, घर चलो। ”

अंडी को यह बात समझ में आ गयी और वह जाने के लिये तैयार हो गया। अंडू बाबा अंडी को घर तक छोड़ने गया, मगर वह खुद अंडी के घर बैठ गया और फिर वहाँ वे दोनों रात भर बातें करते रहे। सारी रात बीत गयी थी परन्तु उनकी तो बातें हीं खत्म होने पर ही नहीं आ रही थीं। लग रहा था जैसे वे बरसों बाद मिले हों।

अंडी करामी ने अपनी पत्नी से कहा — “ंमुझे थोड़ा पानी दो, मैं हाथ मुँह धो कर अंडू बाबा के घर जा रहा हूँ। ” अंडी करामी की पत्नी ने उसको पानी ला दिया और अंडी करामी हाथ मुँह धो कर अंडू बाबा के साथ उसके घर चला गया।

लेकिन जब वे अंडू बाबा के घर आ गये तो अंडू बाबा ने फिर उसे चेतावनी दी — “देखो, औरतों को अक्ल कम होती है, उनके दिमाग में सन्तुलन की भी कमी होती है इसलिये तुमको घर पर ही अधिक समय बिताना चाहिये नहीं तो तुम्हारा अपनी पत्नी से झगड़ा हो जायेगा। ”

उस दिन के बाद से अंडी करामी सोता तो अपने घर में था परन्तु सुबह शाम अंडू बाबा के घर जरूर जाता था और वे दोनों साथ ही खाना खाते थे। पर अंडू बाबा की पत्नी को भोजन का यह हिस्सा बाँट अच्छा नहीं लगता था।

एक दिन उसने अपने पति के लिये एक खास पकवान बनाया और जैसे ही अंडू बाबा उसे खाने बैठा कि अंडी करामी आ गया। अंडू बाबा बोला — “आओ आओ, बड़े मौके से आये हो, आओ तुम भी मेरे साथ ही खाना खा लो। ”

लेकिन अंडी करामी को यह देख कर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा कि अंडू बाबा उसके बिना ही खाना खा रहा था। उसने बहाना बनाते हुए कहा — “ंमैंने अभी दवा खायी है इसलिये मैं अभी कुछ नहीं खा सकता, तुम खाओ। ”

अंडी करामी वहाँ कुछ देर बैठ कर जल्दी ही अपने घर वापस चला गया और अपने एक नौकर से अपना घोड़ा सजाने को कहा।

जब सब कुछ तैयार हो गया तो वह घोड़े पर बैठ कर अंडू बाबा के घर गया और बोला कि वह यात्र पर जा रहा है।

अंडू बाबा ने पूछा — “लेकिन तुम जा कहाँ रहे हो?”

अंडी करामी बोला — “मुझे खुद ही नहीं पता कि मैं कहाँ जा रहा हूँ, पर जिस दिन भी मेरे चेदिया के पेड़ की पत्तियाँ झड़ें तो तुम समझ लेना कि मैं इस दुनिया में नहीं हूँ। ”

अंडू बाबा बोला — “क्या सचमुच ऐसा है?”

अंडी करामी बोला — “हाँ सचमुच ही ऐसा है। ” और यह कह कर अंडी करामी ने अपने घोड़े की लगाम सँभाली और अपनी यात्र पर चल दिया।

अंडी करामी और उसका नौकर अभी कुछ ही दूर गये थे कि उनको एक आलूबुखारे का पेड़ दिखायी दिया जिस पर दो आलूबुखारे लगे हुए थे।

वह अपने नौकर से बोला — “तुम वह दो आलूबुखारे देख रहे हो न? उनमें से एक आलूबुखारा तुम तोड़ लो और दूसरा उसके लिये छोड़ दो, शायद वह कभी इधर आ निकले। ”

नौकर ने उनमें से एक आलूबुखारा तोड़ लिया। अंडी करामी ने आधा आलूबुखारा खुद खाया और आधा अपने नौकर को दे दिया।

चलते चलते रात हो गयी थी इसलिये रात बिताने के लिये वे लोग एक शहर में रुके। वहाँ एक शीनट का पेड़ लगा हुआ था।

उसमें दो शीनट लगे थे। सोे उसमें से उसने एक शीनट तोड़ लिया, आधा खुद खाया और आधा अपने नौकर को दे दिया, और दूसरा शीनट अंडू बाबा के लिये उसी पेड़ पर छोड़ दिया।

शहर में जिस घर में उन्होंने खाना खाया उस घर के मालिक ने शाम के खाने के लिये चार मुर्गे मारे थे।

जब वह उनको अंडी करामी के पास लाया तो उसने उन मुर्गों में से दो मुर्गे उसे वापस कर दिये और कहा — “आप मेहरबानी कर के इन्हें मेरे लौटने तक बचा कर रखें। ”

अगले दिन अंडी करामी अपनी यात्र पर फिर से निकल पड़ा। दूसरे दिन वे जिस घर में रुके वहाँ उनके लिये एक भेड़ मारा गया।

वहाँ भी उसने आधा भेड़ वापस करके घर के मालिक से कहा — “मेहरबानी करके आप इसे मेरे लौटने तक बचा कर रखें। ”

तीसरे दिन वे जिस शहर में रुके वहाँ एक कुँए में एक आदमी खाने वाला राक्षस रहता था। वहाँ के लोग उसे खुश करने के लिये साल में एक बार खाने के लिये एक लड़की दिया करते थे।

इस शहर में वे एक बुढ़िया के घर ठहरे। अंडी करामी ने घोड़े को खोल कर उसे एक पेड़ से बाँध दिया और बुढ़िया से एक बालटी माँगी ताकि वे अपने घोड़े को कुँए से ला कर पानी पिला सकें।

बुढ़िया बोली — “बेटा, तुम नहीं जानते कि तुम क्या कह रहे हो। उस कुँए में तो एक आदमखोर राक्षस रहता है। हर साल हम लोग उसको एक लड़की खाने के लिये देते हैं।

अगर हम ऐसा न करें तो हमें पानी नहीं मिल सकता और इस समय तो हम लोग घर से बाहर बिल्कुल भी नहीं निकल सकते। ”

अंडी बोला — “माँ जी, आप मुझे बालटी तो दीजिये। उस राक्षस को मैं देख लूँगा। ”

अंडी करामी बुढ़िया से बालटी ले कर कुँए की ओर चल दिया। उस दिन उस राक्षस को देखने की गाँव के सरदार की बेटी की बारी थी सो सरदार की बेटी वहाँ बैठी उस राक्षस का इन्तजार कर रही थी।

अंडी करामी ने अपनी बालटी पानी निकालने के लिये कुँए में डाली तो उसे लगा कि किसी ने उसकी बालटी पकड़ ली है।

अंडी करामी बोला — “जो कोई भी कुँए के अन्दर हो वह मेरी बालटी छोड़ दे और यदि वह मुझसे लड़ना चाहता है तो बाहर आ कर लड़े। ”

कुँए में राक्षस था। वह वहीं से बोला — “ठीक है, तुम अपनी बालटी खींच लो। पर यह सोच लो कि बालटी के पीछे पीछे मैं भी बाहर आ रहा हूँ। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम यहाँ से चले जाओ। ”

अंडी करामी ने अपनी बालटी ऊपर खींच ली और तलवार निकाल कर राक्षस से लड़ने को तैयार हो गया। जैसे ही राक्षस का सिर कुँए के बाहर आया तलवार के एक ही झटके से उसने उसका सिर काट दिया।

राक्षस का सिर कटा शरीर तुरन्त कुँए में गिर पड़ा। उसका शरीर कुँए में गिरने से कुँए में एक ज़ोर की आवाज हुई और कुँए का पानी उछल कर सारे शहर में बिखर गया।

राक्षस को मारने के बाद अंडी करामी ने उसकी पूँछ भी काट ली। उसने सरदार की बेटी को वापस उसके घर भेज दिया।

नौकर को पानी ले कर बुढ़िया के पास भेज दिया और वह खुद राक्षस का सिर व पूँछ ले कर घर चल दिया। सुबह होने पर लोगों ने देखा कि सारे शहर में तो पानी फैला पड़ा है।

इतने में सरदार की बेटी ने भी अपने पिता को इस अजनबी के बारे में सब कुछ बता दिया।

सरदार बोला — “तुमको छोड़ कर वह अजनबी फिर कहाँ चला गया?”

सरदार की बेटी बोली — “वह तो बुढ़िया के घर ठहरा है। ”

सरदार ने अपने नौकर से कहा कि वह उसको तुरन्त ही उसके घर ले कर आये।

अंडी करामी ने सरदार के नौकर से पूछा — “मैं तो कल रात ही यहाँ आया हूँ, सरदार को कैसे मालूम हुआ कि मैं यहाँ हूँ?”

नौकर बोला — “यह न सोचिये। सरदार ने आपको बुलाया है सो मेहरबानी करके आप हमारे साथ चलें। ”

इधर अंडी करामी सरदार के घर जा रहा था और उधर सरदार के घर में शादी की तैयारियाँ हो रही थीं।

जैसे ही वह सरदार के घर पहुँचा, सरदार बोला — “अपनी बेटी की जान बचाने के लिये मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूँ और इसके लिये मैं तुमको “यारीमा” का “खिताब” देता हूँ। ”

और फिर उसने अपनी बेटी का हाथ उसके हाथ में दे दिया। दोनों की शादी हो गयी और वे दोनों सरदार के दिये हुए एक घर में रहने लगे।

कुछ समय बाद एक खास तरह की चिड़िया का एक झुंड उस शहर में आया तो यह समाचार सरदार के महल में पहुँचा। सरदार ने अपने लोगों को हुकुम दिया — “जल्दी जाओ और उन चिड़ियों को उड़ा दो। ”

अंडी करामी ने जब यह सुना तो वह भी दूसरे घुड़सवारों के साथ वे चिड़ियें उड़ाने चल दिया।

उन सबके आते ही चिड़ियों का वह झुंड पहाड़ी की तरफ उड़ चला। अंडी करामी भी उनके पीछे पीछे चल दिया। पहाड़ी के पास पहुँचते ही वहाँ एक रास्ता खुल गया और वे चिड़ियाँ उस रास्ते में से हो कर पहाड़ी के अन्दर उड़ चलीं।

अंडी करामी घुड़सवारों में सबसे आगे था। वह भी उसी रास्ते से उनके पीछे पीछे चलता गया। उसके अन्दर जाते ही पहाड़ी में बना वह रास्ता अपने आप ही बन्द हो गया।

दूसरे घुड़सवार उससे बहुत पीछे थे। वे जब तक पहाड़ी के पास तक पहुँचे पहाड़ी वाला रास्ता बन्द हो चुका था। वे नाउम्मीद हो कर घर वापस लौट आये। घर पर भी उन्होंने अंडी करामी को कहीं नहीं देखा तो वे बोले “यारीमा मर गया, यारीमा मर गया”।

इसी समय अंडी करामी के घर के सामने लगे चेदिया पेड़ की शाख से एक पत्ती गिरी। अंडू बाबा उधर से ही जा रहा था। उसने चेदिया के पेड़ की पत्ती गिरती देखी तो बोला — “लगता है अंडी करामी अब नहीं रहा, जल्दी से मेरा घोड़ा तैयार करो। ” और तुरन्त ही वह भी यात्र पर चल दिया।

चलते चलते वह भी उसी आलूबुखारे के पेड़ के पास आया जिस पेड़ पर अंडी करामी ने अंडू बाबा के लिये एक आलूबुखारा छोड़ा था। उसने देखा कि आलुबुखारा सूख गया था। उसने समझ लिया कि अवश्य ही वह आलूबुखारा अंडी करामी ने उसके लिये छोड़ा होगा।

आगे चलने पर उसे एक शीनट का पेड़ मिला। वहाँ से भी उसने अंडी करामी का छोड़ा हुआ एक शीनट तोड़ा और बोला — “लगता है कि यह शीनट भी अंडी करामी ने मेरे लिये ही छोड़ा होगा। ”

अब अंडू बाबा पहले गाँव में उसी घर में रुका जिसमें अंडी करामी रुका था। दोनों की सूरत बहुत मिलती जुलती थी सो घर के मालिक को लगा कि अंडी करामी वापस आ गया।

घर का मालिक बोला — “अजनबी, तुम वापस आ गये? हमने तुम्हारे लिये अभी भी वे दोनों मुर्गे रख छोड़े हैं। ” कह कर वह दोनों मुर्गे ले आया जो अंडी करामी छोड़ गया था।

अगले शहर में भी यही हुआ। अंडी करामी की रखी आधी भेड़ भी अंडू बाबा को मिल गयी।

अन्त में अंडू बाबा उस शहर में पहुँचा जहाँ अंडी करामी ने राक्षस मारा था। उसको देखते ही लोग बोले — “यारीमा आ गया, यारीमा आ गया”।

सरदार ने सुना तो अपने नौकरों द्वारा उसे अपने घर बुलवाया। अंडू बाबा का “यारीमा” के रूप में उस महल में स्वागत किया गया।

अगले दिन वे चिड़ियाँ फिर आयीं। सरदार ने फिर घुड़सवारों को उन चिड़ियों के पीछे भेजा। इस बार अंडू बाबा भी उनके साथ चल दिया।

चिड़ियाँ जब पहाड़ी के पास पहुँचीं तो वहाँ उस दिन की तरह फिर से रास्ता खुल गया और वे उस रास्ते से अन्दर चली गयीं और रास्ता बन्द हो गया।

यह देख कर अंडू बाबा ने पहाड़ी पर अपनी तलवार से वार किया और पहाड़ी में रास्ता खुल गया। लो, उस पहाड़ी में से तो अंडी करामी बाहर निकल आया।

बाहर निकल कर अंडी करामी बोला — “मैं अंडी हूँ राक्षस को मारने वाला। ”

उधर अंडू खुशी से चिल्लाया — “और मैं अंडू हूँ पहाड़ी को खोलने वाला। ” दोनों भाई एक दूसरे से लिपट गये और खुशी खुशी सरदार के महल को वापस आये।

सरदार ने जब दोनों को देखा तो बोला — “यह तुम्हारा भाई होगा। ”

अंडी बोला — “जी हाँ, यह मेरा बड़ा भाई है। ”

सरदार बोला — “यदि ऐसा है तो मैं इसको “गलाडीमान गारी” का खिताब देता हूँ। और यारीमा, तुम घर जा कर अपनी पत्नी से मिलो वह कबसे तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है। ”

फिर वे दोनों भाई वहीं रहने लगे और अपने घर ही नहीं गये।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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