बच्चे तो जरूर समझ लेंगे (तमिल कहानी) : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (राजाजी)

Bacche To Jaroor Samajh Lenge (Tamil Story in Hindi) : Chakravarti Rajagopalachari

‘‘देवलोक की भाषा संस्कृत है।’’ एक दिन शास्त्रीजी ने कहा।

‘‘प्रभु तो तमिल में ही बोलता है।’’ कुछ और लोगों ने बहस की तो झट से उत्तर भारत के चंद सज्जनों ने कहा—
‘‘भगवान् हिंदी में बोलता है, उस सरलतम हिंदी में, जो समस्त जनों की आम भाषा है।’’

यह सुनते ही चार-पाँच बंगाली महाशय धीमे से हँसे।
‘‘नहीं-नहीं, वास्तव में ईश्वर की व शिव की भाषा तो हमारी मराठी है।’’ सबको नकारते हुए कुछ मराठी सज्जन तुरंत बोले।
इस पर एक अंग्रेज पादरी ने कहा, ‘‘एय! जन्नत की भाषा अंग्रेजी है।’’
‘‘गलत, बिल्कुल ही गलत, लैटिन है, सुरलोक की भाषा, जिसका इस्तेमाल अब कोई नहीं करता।’’ ये शब्द एक अन्य पादरी के थे।
‘‘मगर सत्य तो कुछ और ही है। अल्लाहताला तो अरबी भाषा में बोला करता है और दूसरी भाषाओं का इस्तेमाल बिरले ही करता है।’’
‘‘अच्छा, एक सवाल मैं करूँ?’’ उन्होंने कहा, ‘‘कुरान कौन सी भाषा में है। आखिरकार अरबी में है न? तो संशय किस बात का? खुदा की जबान अरबी ही है।’’

इस भाषायी बहस में भाग लेने के लिए कुछ और जन वहाँ आ पहुँचे, फिर क्या कहना था। बिल्कुल कोलाहल ही कोलाहल! किसी भी किस्म का समझौता न हो सका तो आखिरकार उन्होंने सीधे-सीधे प्रभु के सम्मुख जाकर मामला निपटाने का निश्चय कर लिया।
आपस में बातचीत करते हुए जब सब नीचे उतरे।
‘‘भइया, सुना नहीं भगवान् तो शुद्ध हिंदी में ही बोला।’’
‘‘परमेश्वर के मुँह से निकले मराठी वाक्य सुने नहीं क्या?’’ फौरन सवाल किया किसी ने।

तभी चार-पाँच बंग-बंधु बोले, ‘‘प्रभु के शब्द बांग्ला में थे, इसीलिए देवभाषा बस वही है।’’
इस तरह अरबी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी, चीनी, स्पेनिश आदि भाषाएँ बोलनेवालों ने कहा कि उनकी भाषा ही भगवान् की भाषा है।

चंद पंछी एक वृक्ष पर बैठकर यह वाद-विवाद देख रहे थे। वे आपस में बाले, ‘बिल्कुल अजीबो-गरीब है’ मानव जाति की बेवकूफी, ईश्वर ने तो इन परिंदों की भाषा का इस्तेमाल किया।’’
‘‘भगवान् के डैने परदे के भीतर बैलर एकदम चमक उठे, कितना मनमोहक दृश्य था वहाँ! पंछी बोला।
‘‘भगवान् की सूँड़ नहीं देखी तुमने?’’ एक हाथी का प्रश्न था अपनी पत्नी से।
‘‘मैंने तो आड़ से उसके दाँत ही देखे।’’ उसने कहा

तभी एक तपस्वी ने कहा, ‘‘वाह! कैसी मौन मूरत।’’
अकस्मात् एक संगीतज्ञ बोले, ‘‘प्रभु का मधुर संगीत सुनने के उपरांत एक गीत की आवश्यकता नहीं।’’
इसपर एक नास्तिक ने अपनी राय प्रकट की—
‘‘विभिन्न लोगों को विभिन्न लगनेवाली यह चीज तो यथार्थ नहीं, इनसान मिथ्या है।’’
‘‘मिथ्या नहीं।’’ तुरंत ही तमिल पंडित ने बताया नास्तिक को।
‘‘माया बिल्कुल एक अव्यक्त चीज है, जो सबसे परे है। इसलिए तो तमिल भाषी उसे ‘कटवुल’ कहता है। वह यों है। ऐसा निर्णय करना सरासर दुष्कर है।’

एक नास्तिक ने बताया—
‘‘आखिरकार इधर खडे़ होकर यों बहस करने से क्या फायदा? आओ, हम सब नदी के तट पर चलकर जरा हवाखोरी करते हुए बहस करें।’’ सहसा सुनाई पड़ा।
‘‘यह एक कथा के रूप में बच्चों को सुना दो।’’ गणेश के ये शब्द सुने तो मैंने संशय प्रकट किया।
‘‘बच्चे समझ लेंगे क्या?’’

‘‘केवल बुड्ढे ही नहीं समझ पाएँगे, बच्चे तो जरूर समझ लेंगे।’’

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