बाबा यागा : रूसी लोक-कथा

Baba Yaga : Russian Folk Tale

बाबा यागा-1

रूस की बाबा यागा की यह लोक कथा सिन्डरैला की कहानी जैसी है। सिन्डरैला की कहानियाँ केवल यूरोप में ही नहीं बल्कि दुनियाँ भर में अपने अपने तरीके से कही सुनी जाती हैं।

वैसे तो बाबा यागा रूस की काफी लोक कथाओं का एक बहुत ही लोकप्रिय चरित्र है फिर भी उसकी यह सिन्डरैला की कहानी भी बहुत मशहूर है। यह कहानी 1873 में प्रकाशित की गयी थी।

एक बार की बात है कि रूस देश में एक बूढ़े पति पत्नी रहते थे। बूढ़े की पत्नी मर गयी तो उसने दूसरी शादी कर ली। उसकी पहली पत्नी से उसके एक छोटी सी बेटी थी।

उस बेटी की सौतेली माँ उसको बिल्कुल भी नहीं चाहती थी। वह उसको बहुत मारती थी और हमेशा यही सोचती रहती कि कैसे वह उसको जान से मार दे।

एक दिन उस लड़की का पिता कहीं बाहर गया हुआ था तो उसकी सौतेली माँ ने उससे कहा — “तुम अपनी आन्टी यानी मेरी बहिन के घर जाओ और उससे सुई धागा ले आओ मैं तुम्हारे लिये एक पोशाक बनाना चाहती हूँ।”

अब उसकी यह आन्टी बाबा यागा थी। यह लड़की बेवकूफ नहीं थी सो वह पहले अपनी असली आन्टी को पास गयी और बोली — “गुड मौर्निंग आन्टी।”

“गुड मौर्निंग बेटी। कहो कैसे आना हुआ।”

“माँ ने मुझे अपनी बहिन के पास सुई धागा लाने के लिये भेजा है ताकि वह मेरे लिये एक पोशाक बना दे।”

तब उसकी आन्टी ने उसे बताया कि उसकी यह आन्टी बाबा यागा है और वहाँ जा कर उसको क्या करना चाहिये।

उसने कहा — “बेटी, उसके घर के पास में एक बिर्चका पेड़ खड़ा है। वह तुमको तुम्हारी आँख पर मारेगा इसलिये तुम उसके तने के चारों तरफ एक रिबन बाँध देना।

इसके अलावा उसके घर के दरवाजे चूँ चूँ करेंगे और अपने आप ही ज़ोर ज़ोर से खुलेंगे और बन्द होंगे। इसके लिये तुम उनके कब्जों में थोड़ा सा तेल डाल देना तो वे चुप रहेंगे। वहाँ कुछ कुत्ते होंगे जो तुमको फाड़ कर रख देंगे। तुम उनको यह डबल रोटी फेंक देना तो वे तुमको खायेंगे नहीं। वहाँ एक बिल्ली है जो तुम्हारी आँख निकाल लेगी उसको तुम यह सूअर का माँस खिला देना। इससे वह भी चुप रहेगी।” कह कर उसकी आन्टी ने उसको एक रिबन, थोड़ा सा तेल, कुछ डबल रोटी और सूअर का माँस दे दिया। लड़की ने ये सब चीज़ें लीं और बाबा यागा के घर की तरफ चल दी।

चलते चलते वह उसके घर आ गयी। उसने देखा कि वहाँ एक मकान खड़ा हुआ है और उसमें पतली पतली टाँगों वाली बाबा यागा बैठी बैठी कुछ बुन रही है।

लड़की उस मकान के अन्दर आयी और बोली — “गुड मौर्निंग़ आन्टी।”

“गुड मौर्निंग बेटी। आओ कैसे आना हुआ?”

लड़की बोली — “माँ ने मुझे आपसे सुई धागा लाने के लिये भेजा है ताकि वह मेरी एक पोशाक सिल सकें।”

बाबा यागा बोली — “ठीक है। तब तक तुम यहाँ बैठो और यह बुनो मैं तुम्हारे लिये सुई धागा लाती हूँ।” लड़की बुनने के लिये खड्डी के पीछे बैठ गयी और कपड़ा बुनने लगी।

बाबा यागा उस लड़की को वहीं छोड़ कर बाहर चली गयी और अपनी नौकरानी से बोली — “जरा जा कर नहाने का पानी गरम कर दो और मेरी भानजी को नहला दो। हाँ ध्यान रखना कि उस पर तुम कड़ी नजर रखो। मैं उसका नाश्ता करना चाहती हूँ।” पर लड़की उस खड्डी के पीछे इतनी डरी हुई बैठी थी कि वह ज़िन्दा कम और मरी हुई ज़्यादा लग रही थी।

उसने डरते हुए बाबा यागा की नौकरानी से कहा — “देखना आग जलाने वाली लकड़ी को थोड़ा गीला कर देना ताकि वे कम जलें। और हाँ देखो नहाने का पानी भी चलनी में भर कर लाना ताकि उसको लाने में तुमको देर लगे।”

और इसके बदले में उसने उस नौकरानी को एक रूमाल भेंट में दिया।

बाबा यागा ने कुछ देर इन्तजार किया और फिर खिड़की पर आ कर अपनी भानजी से पूछा — “बेटी, क्या तुम अभी भी बुन रही हो? क्या तुम अभी भी बुन रही हो बेटी?”

लड़की ने जवाब दिया — “हाँ आन्टी, मैं अभी भी बुन रही हूँ।”

बाबा यागा यह सुन कर चली गयी। लड़की ने बिल्ली को सूअर के माँस का एक टुकड़ा दिया और उससे पूछा — “क्या यहाँ से बचने का कोई तरीका नहीं है?”

बिल्ली बोली — “है न। लो यह कंघी लो और यह एक तौलिया लो और इनको ले कर यहाँ से चली जाओ। बाबा यागा तुम्हारा पीछा करेगी पर तुम अपना कान जमीन पर जरूर लगा लेना। इससे तुमको उसके आने की आहट सुनायी देगी। जब तुम यह देखो कि वह तुम्हारे बहुत पास आ गयी है तो पहले अपने पीछे यह तौलिया फेंक देना। जमीन पर गिरते ही वहाँ एक चौड़ी और बहुत चौड़ी नदी बन जायेगी।

वैसे तो बाबा यागा उस नदी को ही पार नहीं कर पायेगी, पर अगर उसने वह नदी को पार कर भी ली और तुमको पकड़ने की कोशिश की तो तुम फिर से जमीन पर कान लगा लेना और अगर तुम फिर से देखो कि वह तुम्हारे बहुत पास आ गयी है तो यह कंघी अपने पीछे फेंक देना।

इस कंघी के गिरते ही वहाँ एक घना और बहुत घना जंगल पैदा हो जायेगा। उस जंगल को वह पार नहीं कर पायेगी और उसको कोई और रास्ता लेना ही पड़ेगा तब तक तुम वहाँ से भाग जाना।”

लड़की ने बिल्ली से वह कंघी और तौलिया लिया, उसको धन्यवाद दिया और वहाँ से भाग ली।

बाबा यागा के कुत्तों ने उसका पीछा करने की कोशिश की पर उसने उनके लिये डबल रोटी फेंक दी और उन्होंने उसको जाने दिया।

जब वह उसके घर के दरवाजे से बाहर निकलने लगी तो वह दरवाजा खुल भिड़ कर शोर मचाता सो उसने उसके कब्जों में तेल डाल दिया जिससे वह खुलने भिड़ने पर शोर नहीं मचायें और इस तरह उसने शोर नहीं मचाया। इस तरह वह लड़की वहाँ से भी चुपचाप निकल गयी।

रास्ते में बिर्च के पेड़ ने उसकी आँख निकाल ली होती पर वहाँ पहुँचते ही उसने उसके चारों तरफ एक रिबन बाँध दिया तो उसने भी उसको वहाँ से गुजर जाने दिया।

लड़की के वहाँ से जाने के बाद बिल्ली बाबा यागा की खड्डी पर बुनने के लिये बैठ गयी। वहाँ बैठ कर उसने बाबा यागा की बुनाई करने की बजाय उसकी सारी बुनाई खराब कर दी।

थोड़ी देर बाद बाबा यागा फिर खिड़की पर आयी और पूछा — “बेटी, क्या तुम अभी बुन रही हो?”

बिल्ली ने कुछ आवाज बदल कर जवाब दिया — “हाँ मैं अभी बुन रही हूँ आन्टी, मैं अभी बुन रही हूँ।”

बाबा यागा को वह आवाज कुछ अलग सी लगी तो वह अपने मकान के अन्दर दौड़ी। उसने देखा कि वह लड़की तो वहाँ से जा चुकी है और उसकी बिल्ली उसकी जगह वहाँ पर बैठी है। अपनी बिल्ली को वहाँ खड्डी पर बैठे देख कर वह गुस्से से भर गयी और उसने बिल्ली को गाली देना और पीटना शुरू कर दिया कि उसने लड़की की आँखें क्यों नहीं निकालीं। उसने उसको वहाँ से जाने ही क्यों दिया।

बिल्ली बोली — “मैंने तुम्हारी बहुत सेवा की है पर तुमने मुझे कभी भी हड्डी से ज़्यादा कुछ नहीं दिया पर उसने मुझे सूअर का माँस दिया। मैं उसकी आँखें क्यों निकालती?”

यह सुन कर बाबा यागा कुत्तों पर, दरवाज़े पर, बिर्च के पेड़ पर और फिर नौकरानी पर उन सबको गलियाँ देने के लिये दौड़ी कि उन्होंने अपना अपना काम क्यों नहीं किया।

तो कुत्ते बोले — “हमने तुम्हारी इतनी सेवा की पर तुमने हमको जली रोटी के सिवा कुछ नहीं दिया पर देखो उसने हमको कितनी मुलायम डबल रोटी दी हम उसको फाड़ खा नहीं सकते थे।”

दरवाजा बोला — “हमने तुम्हारी इतनी सेवा की पर तुमने हमारे कब्जों में कभी पानी भी नहीं दिया पर देखो उसने हमारे कब्जों में तेल लगाया है वह कितनी अच्छी थी। हम चूँ चूँ नहीं कर सकते थे।”

बिर्च का पेड़ बोला — “मैंने तुम्हारी इतनी सेवा की पर तुमने मेरे चारों तरफ एक धागा भी नहीं बाँधा पर देखो उसने मेरे चारों तरफ कितना सुन्दर रिबन बाँधा है। मैं उसकी आँख कैसे निकाल लेता?”

नौकरानी बोली — “मैंने आपकी इतनी सेवा की पर आपने मुझे फटे कपड़ों के सिवा कुछ नहीं दिया पर देखो उसने मुझ कितना सुन्दर रूमाल दिया है। मैं क्या करती?”

यह सुन कर वह पतली टाँगों वाली बाबा यागा अपनी ओखली में बैठी और उस लड़की को पकड़ने के लिये अपना मूसल ले कर उड़ ली। साथ में वह अपनी झाड़ू से अपनी उड़ान का रास्ता भी साफ करती जाती थी।

लड़की ने अपना कान जमीन से लगा दिया और जब उसने सुना कि बाबा यागा उसका पीछा कर रही थी और उसके पास तक आ गयी थी तो उसने बिल्ली का दिया हुआ तौलिया अपने पीछे फेंक दिया।

वह तौलिया तो जमीन पर गिरते ही एक बहुत ही चौड़ी नदी बन गया। नदी तक आने पर जब बाबा यागा ने देखा कि वह वह नदी पार नहीं कर सकती तो गुस्से से उसने अपने दाँत किटकिटाये और अपने बैलों को लाने के लिये अपने घर चली गयी।

घर से बैलों को ले कर वह नदी के पास तक आयी। बैलों ने उस नदी का एक एक बूँद पानी पी लिया जिससे वह नदी काफी सूख गयी और बाबा यागा ने उस लड़की को पकड़ने के लिये अपनी यात्रा फिर से शुरू की।

पर लड़की ने फिर से जमीन से अपने कान लगा कर सुना तो उसको फिर से उसके आने की आहट सुनायी दी। जब वह आहट काफी पास आ गयी तो अब की बार उसने अपने पीछे बिल्ली के दी हुई कंघी फेंक दी। कंघी के जमीन पर पड़ते ही वहाँ एक घना और बहुत ही घना जंगल पैदा हो गया। वह जंगल इतना घना था कि बाबा यागा उसको देख कर फिर से गुस्से से दाँत कटकटाने लगी। पर बहुत कोशिशों के बाद भी वह उस जंगल को पार नहीं कर सकी इसलिये उसको घर वापस चले जाना पड़ा।

इस समय तक लड़की का पिता घर वापस आ गया था। उसने अपनी पत्नी से पूछा — “मेरी बिटिया कहाँ है?”

उसकी पत्नी बोली — “वह अपनी मौसी के घर गयी है।”

तभी वह लड़की भी हाँफती हाँफती वहाँ आ पहुँची।

उसके पिता ने पूछा — “तू कहाँ थी?”

लड़की बोली — “ओह पिता जी, माँ ने मुझे सुई धागा लाने के लिये मौसी के घर भेजा था ताकि वह मेरे लिये एक पोशाक बना सके। पर वह मौसी तो बाबा यागा थी और वह मुझे खाना चाहती थी।”

“तो फिर तू उससे बची कैसे?”

“मैं उससे ऐसे बची।” कह कर उसने अपने पिता को सारा हाल बता दिया।

जैसे ही पिता ने अपनी बेटी से उसके बाबा यागा से बचने का हाल सुना तो वह अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा हुआ और उसने उसको गोली मार दी।

वह और उसकी बेटी दोनों फिर आराम से रहे और सब कुछ उनके साथ ठीक रहा।

बाबा यागा-2

यह पिछली वाली कहानी का दूसरा रूप है।

बहुत पुरानी बात है कि एक बूढ़ा आदमी अपनी बेटी नताशा के साथ अपनी झोंपड़ी में रहता था। उसकी पत्नी मर चुकी थी। पर वे दोनों आपस में बहुत खुश थे।

सुबह सुबह नाश्ते की मेज पर जब वहाँ डबल रोटी और जैम रखा रहता था तो दोनों बहुत खुशी खुशी उसे खाते थे और पीकेबू खेलते थे। कभी इस तरफ और कभी दूसरी तरफ। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था कि उस बूढ़े आदमी के दिमाग में एक दिन यह ख्याल आया कि उसको दूसरी शादी करनी चाहिये।

सो उसने दूसरी शादी कर ली। बच्ची को एक सौतेली माँ मिल गयी और बस उसी दिन से सब कुछ बदल गया। अब उनकी नाश्ते की मेज पर कोई डबल रोटी और जैम नहीं होता था। अब वे पीकेबू भी नहीं खेलते थे।

केवल यही नहीं बल्कि हालत इससे भी ज़्यादा खराब हो गयी थी। अब उस बच्ची को चाय की मेज पर बैठने भी नहीं दिया जाता था। सौतेली माँ का कहना था कि छोटे बच्चों को चाय नहीं पीनी चाहिये और जैम के साथ डबल रोटी भी बहुत कम खानी चाहिये। अब वह उसको डबल रोटी के ऊपर वाले टुकड़े दे कर घर से बाहर भेज देती कि वह कहीं और बैठ कर उनको खा ले।

फिर वह सौतेली माँ अपने पति के साथ बैठती और उसको यह बताती कि जो कुछ भी गलत हुआ वह सब उस बच्ची की ही गलती थी। और वह बूढ़ा अपनी नयी पत्नी की बात पर विश्वास कर लेता।

बेचारी नताशा घर के बाहर कम्पाउंड में जा कर शैड में बैठ जाती डबल रोटी के उन सूखे टुकड़ों को अपने आँसुओं से गीला करके अकेली बैठ कर खा लेती।

कुछ देर बाद वह अपनी सौतेली माँ की चिल्लाहट सुनती। वह उसको चाय के बरतन साफ करने के लिये, घर साफ करने के लिये, फर्श साफ करने और सबके कीचड़ भरे जूते साफ करने के लिये अन्दर बुला रही होती।

एक दिन उस सौतेली माँ को लगा कि वह अब इस बच्ची को और एक मिनट भी सहन नहीं कर सकती पर उसकी यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह उससे हमेशा के लिये छुटकारा कैसे पाये। तो उसको अपनी भयानक बहिन बाबा यागा की याद आयी जिसकी टाँगें हड्डियों की थीं और जो जंगल में रहती थी। बस उसके दिमाग में एक नीच विचार घूम गया।

अगले दिन उसका पति पास के एक गाँव में अपने दोस्तों से मिलने गया तो जैसे ही वह चला गया उसने नताशा को बुलाया और उससे कहा — “देख तू मेरी बहिन के पास जा। वह जंगल में रहती है। उससे कमीज मरम्मत करने के लिये सुई धागा ले आ।”

पर नताशा काँपते हुए बोली — “सुई धागा तो यहीं रखा है।”

उसको मालूम था कि उसकी सौतेली माँ की यह बहिन जादूगरनी बाबा यागा थी और जो भी बच्चा उसके पास जाता था वह फिर बाद में कहीं नहीं देखा गया।

सौतेली माँ बहुत ज़ोर से अपने दाँत किटकिटा कर बोली — “चुप रह। क्या मैंने तुझसे कहा नहीं कि तुझे अपनी छोटी मौसी के पास कमीज की मरम्मत करने के लिये सुई धागा लाने जंगल जाना है?”

नताशा ने काँपते हुए पूछा — “लेकिन मैं उसको ढूँढूँगी कहाँ।”

क्योंकि उसने सुन रखा था कि बाबा यागा अपने शिकारों का एक बहुत बड़ी ओखली में बिठा कर अपने हाथ में मूसल ले कर उनका हवा में पीछा करती थी और अपने लोहे के दाँतों से वह उनको खा जाती थी।

सौतेली माँ ने उसकी नाक पकड़ी और उसे नोच कर पूछा — “यह तेरी नाक है। क्या तू इसे महसूस कर सकती है?”

बच्ची बोली “हाँ।”

“बस तो तू जंगल जाने वाली इस सड़क पर चली जा। आगे जा कर तुझे एक गिरा हुआ पेड़ मिलेगा। वहाँ से तू बाँये हाथ को मुड़ जाना। वहाँ से सीधे जा कर तुझे तेरी आन्टी का घर दिखायी पड़ जायेगा। अब तू जा ओ आलसी लड़की।”

फिर उसने बच्ची के हाथ में एक रूमाल थमा दिया जिसमें उसने पुरानी डबल रोटी के कुछ टुकड़े, कुछ चीज़ और कुछ माँस बाँध दिये थे।

नताशा वह रूमाल ले कर चल दी। उसने एक बार पीछे मुड़ कर देखा तो उसने देखा कि उसकी सौतेली माँ घर के दरवाजे पर अपने सीने पर हाथ बाँधे खड़ी थी और उसकी तरफ देख रही थी। इसलिये वह सिवाय आगे जाने के कुछ और कर ही नहीं सकती थी।

उसने वह सड़क पकड़ी जो जंगल की तरफ जाती थी। जंगल पार करके वह गिरे हुए पेड़ के पास तक आ गयी। वहाँ से वह बाँये हाथ को मुड़ गयी।

उसकी नाक वहाँ से अभी भी दुख रही थी जहाँ उसकी सौतेली माँ ने उसको नोचा था सो उसको मालूम था कि उसको तो आन्टी के घर जाना ही था।

आखिर वह हड्डियों की टाँगों वाली जादूगरनी बाबा यागा की झोंपड़ी के पास आ ही गयी। उस झोंपड़ी के चारों तरफ ऊँची सी एक बाड़ लगी हुई थी।

जब उसने उस बाड़ में लगा दरवाजा खोलने की कोशिश की तो वह बहुत ज़ोर से चरचराया। ऐसा लग रहा था जैसे उसको हिलने में बहुत कष्ट हो रहा हो।

नताशा ने इधर उधर देखा तो उसको जंग लगा तेल का एक डिब्बा दिखायी दे गया। “ओह मैं कितनी खुशकिस्मत हूँ। इसमें तो थोड़ा सा तेल अभी भी बाकी है।”

उसने उस डिब्बे में बचे हुए तेल की कुछ बूँदें उस दरवाजे के कब्जों में डाल दीं। अब दरवाजा बिना कोई आवाज किये खुल गया।

इस दरवाजे के अन्दर ही बाबा यागा की झोंपड़ी थी। बाबा यागा की यह झोंपड़ी और दूसरी झोंपड़ियों जैसी नहीं थी जैसी कि उसने देखी थीं।

क्योंकि यह झोंपड़ी तो एक बहुत बड़े मुर्गे की टाँगों पर खड़ी हुई थी और उसके कम्पाउन्ड में इधर उधर चलती फिरती भी थी। जैसे ही नताशा उस झोंपड़ी के पास पहुँची तो बाबा यागा का घर नताशा के चेहरे की तरफ घूम गया। ऐसा लग रहा था जैसे उसके घर को सामने की खिड़कियाँ उसकी आँखें हों और उसका सामने का दरवाजा उसका मुँह हो।

उस घर के कम्पाउंड मे बाबा यागा की एक नौकरानी खड़ी हुई थी जो बहुत ज़ोर ज़ोर से रो रही थी क्योंकि बाबा यागा ने उसे कुछ काम दे रखे थे। वह अपने आँसू अपनी बनियान से पोंछ रही थी। नताशा उसको इस हाल में खड़ा देख कर बोली — “ओह मेरे पास एक रूमाल है।”

उसने अपना रूमाल खोला उसे झाड़ कर साफ किया और उसमें रखा खाना उसकी जेब में रख दिया और वह रूमाल उसको दे दिया। उस नौकरानी ने फिर उस रूमाल से अपने आँसू पोंछे और मुस्कुरा दी।

झोंपड़ी के पास ही एक बहुत बड़ा कुत्ता था जो एक पुरानी हड्डी चबा रहा था। उसको देख कर नताशा बोली — “ओह मैं कितनी खुशकिस्मत हूँ कि मेरे पास तुम्हारे लिये भी कुछ खाने को है। लो यह डबल रोटी और माँस लो और इसे खाओ।”

उसने अपनी जेब से कुछ डबल रोटी और माँस निकाला और उसे कुत्ते को देते हुए बोली — “यह थोड़ा पुराना तो है पर मुझे यकीन है कि यह कम से कम कुछ भी न होने से कुछ होने के बराबर तो अच्छा है।”

कुत्ते ने तुरन्त ही उस खाने को लपक लिया और खा कर अपने होठ चाटने लगा। कुत्ते को खाना खिला कर नताशा झोंपड़ी के दरवाजे की तरफ बढ़ी। डर से काँपते हुए उसने दरवाजा खटखटाया तो अन्दर से नीच बाबा यागा की आवाज आयी “अन्दर आ जाओ।”

नताशा धीरे से उस झोंपड़ी के अन्दर घुसी तो वहाँ तो हड्डी की टाँगों वाली जादूगरनी बाबा यागा एक खड्डी102 पर बैठी कपड़ा बुन रही थी।

उस झोंपड़ी के एक कोने में एक पतली दुबली काली बिल्ली बैठी थी जो एक चूहे के बिल की तरफ देख रही थी।

उसने बिल्कुल न डरने का बहाना करते हुए कहा “गुड डे आन्टी।”

“गुड डे मेरी भानजी।”

“मेरी सौतेली माँ ने मुझे तुम्हारे पास कमीज की मरम्मत करने के लिये सुई धागा लाने के लिये भेजा है।”

बाबा यागा अपने लोहे के दाँत दिखा कर हँसती हुई बोली — “क्या अभी अभी?” क्योंकि वह जानती थी कि उसकी बहिन अपनी सौतेली बेटी से कितनी नफरत करती थी।

उसने फिर कहा — “ठीक है तू यहाँ इस खड्डी पर बैठ और मेरा कपड़ा बुन तब तक में तेरे लिये सुई धागा ले कर आती हूँ।” वह छोटी बच्ची वहाँ खड्डी पर बैठ कर बाबा यागा का कपड़ा बुनने लगी और बाबा यागा सुई धागा लाने बाहर चली गयी।

उसने अपनी नौकरानी से फुसफुसाते हुए कहा — “देख मेरी बात सुन। नहाने के लिये खूब गरम पानी कर दे और उससे मेरी भानजी को अच्छी तरह से मल मल कर साफ करके नहला दे। आज मैं उसको खाने में खाऊँगी।”

वह नौकरानी पानी निकालने के लिये जग लेने के लिये अन्दर आयी तो नताशा ने उससे कहा — “मैं तुमसे प्रार्थना करती हूँ कि आग बहुत जल्दी ही मत जला लेना। और नहाने का पानी भी चलनी में ले कर जाना ताकि पानी उसमें से गिरता जाये।”

नौकरानी ने उससे तो कुछ नहीं कहा पर उसने नहाने का पानी गरम करने में वाकई काफी समय लगाया।

बाबा यागा खिड़की पर आयी ओर अपनी मीठी सी आवाज में बोली — “ओ मेरी छोटी भानजी क्या तू मेरा कपड़ा बुन रही है?” नताशा ने जवाब दिया “हाँ आन्टी मैं बुन रही हूँ।”

यह सुन कर बाबा यागा वहाँ से चली गयी। जब बाबा यागा वहाँ से चली गयी तब नताशा ने उस पतली दुबली काली बिल्ली से पूछा जो अभी भी चूहे के बिल की तरफ देख रही थी — “तुम यहाँ क्या कर रही हो?”

“मैं यहाँ चूहा ढूँढने के लिये बैठी हूँ। मैंने तीन दिन से खाना नहीं खाया है।”

नताशा बोली “ओह कितनी खुशकिस्मती की बात है कि मेरे पास अभी कुछ चीज़ बची है।” सो वह चीज़ निकाल कर उसने उस काली बिल्ली को दे दी।

चीज़ खा कर बिल्ली बोली — “ओ छोटी लड़की क्या तुम यहाँ से निकलना चाहती हो?”

“ओह प्यारी बिल्ली बिल्कुल बिल्कुल। पर मैं निकलूँगी कैसे। मुझे तो ऐसा लगता है कि बाबा यागा तो मुझे अपने लोहे के दाँतों से चबा ही जायेगी।”

बिल्ली बोली — “यही तो करना चाहती है वह। पर मैं तुम्हारी सहायता करना जानती हूँ।”

उसी समय बाबा यागा खिड़की पर फिर आ गयी और बोली — “क्या तू अभी भी मेरा कपड़ा बुन रही है ओ मेरी अच्छी भानजी?”

नताशा खड्डी से दूर हटते हुए बोली “हाँ मैं अभी भी बुन रही हूँ आन्टी।” उसकी खड्डी अभी क्लिकिटी क्लैक क्लिकिटी क्लैक की आवाज के साथ चलती जा रही थी।

यह सुन कर बाबा यागा वहाँ से चली गयी।

उसके जाने के बाद बिल्ली नताशा से बोली — “देखो एक कंघी स्टूल पर रखी है और तुम्हारे नहाने के लिये एक तौलिया भी लाया रखा है। जब तक बाबा यागा अभी नहाने वाले घर में है तुम उन दोनों को ले कर यहाँ से तुरन्त भाग जाओ।

तुम्हारे जाने के बाद बाबा यागा तुम्हारा पीछा करेगी। जब वह तुम्हारा पीछा करे तो तुम यह तौलिया अपने पीछे फेंक देना तो यह एक बड़ी और चौड़ी नदी बन जायेगा। इससे उसको तुम तक पहुँचने में कुछ देर लगेगी।

जब वह नदी पार कर ले तब तुम यह कंघी अपने पीछे फेंक देना। इस कंघी के फेंकते ही वहाँ एक इतना घना जंगल पैदा हो जायेगा कि वह उसको कभी पार नहीं कर पायेगी। और फिर तुम सुरक्षित रूप से अपने घर पहुँच जाओगी।”

“पर अगर मैं यहाँ से भागी तो यह खड्डी तो रुक जायेगी जिससे उसे यह पता चल जायेगा कि मैं यहाँ से जा चुकी हूँ।”

वह पतली दुबली काली बिल्ली बोली — “उसको मैं देख लूँगी बस तुम भाग जाना।”

सो वह बिल्ली नताशा की जगह खड्डी पर बैठ गयी। नताशा ने पहले देखा कि बाबा यागा अभी अपने नहाने वाले घर में है या नहीं और फिर यह पक्का करने के बाद कि वह अभी वहीं है कंघी और तौलिया ले कर भाग ली।

कुत्ते ने जब किसी को भागते हुए देखा तो वह उसको फाड़ खाने को दौड़ा तो उसने देखा कि वह कौन थी — “अरे यह तो वही लड़की है जिसने मुझे डबल रोटी और माँस खाने को दिया था।”

वह बोला “भगवान तुम्हारी यात्रा कामयाब करें।” और यह कह कर वह अपने पंजों में अपना सिर छिपा कर लेट गया। नताशा ने उसका सिर सहलाया और गरदन खुजायी और आगे बढ़ गयी। जब वह कम्पाउंड के दरवाजे के पास आयी तो दरवाजा बिल्कुल बिना आवाज किये ही खुल गया क्योंकि उसने उसके कब्जों में पहले ही तेल लगा दिया था। और बस फिर वह और आगे भागी चली गयी।

इधर वह काली बिल्ली बाबा यागा की खड्डी पर बैठ गयी थी सो खड्डी में से फिर आवाज होने लगी थी पर उसने तो उसका धागा बहुत बुरी तरह से उलझा दिया था।

बाबा यागा एक बार फिर अपनी खिड़की पर आयी और बोली — “ओ मेरी अच्छी भानजी क्या तू अभी भी बुन रही है?”

काली बिल्ली ने धागे को और ज़्यादा उलझाते हुए कहा “हाँ मैं अभी भी बुन रही हूँ आन्टी।”

बाबा यागा बोली — “अरे यह तो मेरे खाने की आवाज नहीं है।” और वह तुरन्त ही अपने लोहे के दाँत किटकिटाती हुई अपनी झोंपड़ी में आ गयी।

उसने देखा कि खड्डी पर वह छोटी लड़की तो नहीं थी बल्कि वह तो उसकी पतली दुबली काली बिल्ली थी जो धागा उलझाये जा रही थी उलझाये जा रही थी।

वह बिल्ली पर कूद पड़ी और उससे पूछा — “तूने उस छोटी लड़की की आखें क्यों नहीं निकाल लीं?”

बिल्ली ने अपनी पूँछ मोड़ी और कमर थोड़ी ऊँची की और बोली — “जितने साल भी मैंने तुम्हारी सेवा की है तुमने मुझे केवल पानी ही दिया है अपना खाना मैंने अपने आप ही ढूँढा है। उस लड़की ने मुझे असली चीज़ दी।”

यह सुन कर बाबा यागा को गुस्सा आ गया उसने बिल्ली को पकड़ कर बहुत ज़ोर से हिला दिया।

फिर वह अपनी नौकरानी के पास गयी और उसका गला पकड़ कर बोली — “तुझको नहाने का पानी गरम करने में इतनी देर क्यों लग गयी?”

नौकरानी काँपते हुए बोली — “मेरी इतने सालों की सेवा में तुमने मुझे एक चिथड़ा भी नहीं दिया पर उस लड़की ने देखो मुझे कितना सुन्दर रूमाल दिया।”

बाबा यागा ने उसको गालियाँ दीं और अपने कम्पाउंड की तरफ भागी। वहाँ जा कर देखा तो उसका दरवाजा तो खुला पड़ा था। वह दरवाजे पर चिल्लायी — “जब उसने तुम्हें खोला तो तुम चिल्लाये क्यों नहीं?”

दरवाजा बोला — “ये इतने सारे साल जो मैंने तुम्हारी सेवा की तुमने मेरे ऊपर एक बूँद तेल भी कभी नहीं डाला। अब तक तो मैं अपनी चिल्लाहट की आवाज सुनते सुनते भी थक गया था पर अब उस लड़की ने मेरे कब्जों में तेल लगाया तो देखो अब मैं बिना किसी आवाज के खुल और बन्द हो सकता हूँ।”

बाबा यागा ने ज़ोर से मार कर दरवाजा बन्द किया और फिर तेज़ी से घूम कर कुत्ते की तरफ देखा और पूछा — “और तू कुत्ते, जब वह घर से बाहर निकली थी तो तूने उसको फाड़ कर क्यों नहीं खा लिया?”

कुत्ता बोला — “मैंने इतने साल तुम्हारी सेवा की पर तुमने मुझे पुरानी हड्डी के सिवा कुछ भी नहीं दिया पर उस लड़की ने मुझे असली डबल रोटी और माँस दिया।”

यह सब सुन कर बाबा यागा चारों तरफ घूम घूम कर उन पर चिल्लाने लगी और उन सबको मारने लगी।

जब वह उन सब पर चिल्लाते चिल्लाते और मारते मारते थक गयी तो वह अपनी बहुत बड़ी वाली ओखली में बैठी और उसको एक बहुत बड़े मूसल से पीटती हुई कि वह और तेज़ चले हवा में उड़ गयी।

बहुत जल्दी ही वह भागती हुई नताशा के पास पहुँच गयी।

उसने जल्दी ही पता कर लिया कि वह जंगल में भागी जा रही है। वह बोली — “तू मुझसे बच कर नहीं जा सकती।” और उसने अपनी ओखली नताशा के पास तक भगा दी।

नताशा तो बहुत तेज़ी से भागी जा रही थी। वह इतनी तेज़ पहिले कभी नहीं भागी थी।

जल्दी ही उसने बाबा यागा की ओखली की आवाज सुनी तो पहले तो वह डर गयी पर फिर उसको उस दुबली पतली काली बिल्ली के शब्द याद आये और उसने अपने पीछे तौलिया फेंक दिया।

वह तौलिया बढ़ता गया बढ़ता गया और फिर एक बहुत बड़ी और चौड़ी नदी बन गया। अब बाबा यागा और नताशा के बीच एक बहुत बड़ी और चौड़ी नदी थी। नताशा ने एक बार पीछे मुड़ कर देखा और फिर आगे भाग ली।

जब बाबा यागा नदी के किनारे आयी तो उसे देख कर बहुत ज़ोर से चिल्लायी और उसने अपना मूसल जमीन पर फेंक दिया क्योंकि वह जानती थी कि वह इस जादुई नदी को पार नहीं कर सकती।

गुस्से में आ कर वह अपने घर भाग गयी। वहाँ से उसने अपनी गायों को इकठ्ठा किया और उन्हें नदी के पास ले कर आयी और उनसे कहा कि वे उस नदी का पानी पियें। गायों ने उस नदी का सारा पानी पी लिया।

तब तक नताशा काफी दूर तक भाग ली थी। उसको लगा कि अब वह बाबा यागा के जाल से निकल चुकी थी पर वह तो डर के मारे जम सी ही गयी जब उसने देखा कि वह काली बाबा यागा उसके पीछे आसमान में उड़ती चली आ रही है।

उसको लगा कि अब तो बस उसका अन्त ही आ गया है कि तभी उसको बिल्ली की कंघी की याद आयी कि उसने उसके बारे में क्या कहा था।

उसने तुरन्त ही वह कंघी निकाली और अपने पीछे फेंक दी। वह कंघी बढ़ती गयी बढ़ती गयी और उसके सारे दाँत एक घने जंगल में बदल गये। वह जंगल इतना घना था कि बाबा यागा खुद भी उस जंगल को पार नहीं कर सकती थी।

और वह जादूगरनी हड्डियों की टाँगों वाली गुस्से से अपने लोहे के दाँत बजाती नाउम्मीद हो कर अपने घर वापस लौट आयी।

उधर वह लड़की भी बहुत थकी हुई अपने घर पहुँची। वह अपने घर में अन्दर घुसने से और अपनी सौतेली माँ से मिलने से डर रही थी सो उसने घर के बाहर वाले शैड में इन्तजार करना ठीक समझा। वह वहीं बैठ गयी।

जब उसने देखा कि उसका पिता घर वापस आ गया तब वह उसके पास दौड़ी गयी। उसके पिता ने पूछा — “कहाँ थी तू? और यह तेरा चेहरा इतना लाल क्यों है?”

उधर जब सौतेली माँ ने लड़की को देखा तो वह डर गयी और उसकी आँखें चमकने लगीं। वह तब तक दाँत पीसती रही जब तक कि उसके दाँत टूट नहीं गये।

पर नताशा को अब कोई डर नहीं था। वह तो अपने पिता के पास पहुँच कर उसके घुटनों पर चढ़ गयी थी और उसको सब कुछ बता रही थी।

जब उसके पिता ने सुना कि उसकी पत्नी ने उसकी बेटी को बाबा यागा के घर उसको खाने के लिये भेज दिया था तो उसने उसको घर से बाहर निकाल दिया और फिर कभी घर में नहीं घुसने दिया।

उसके बाद से वह अपनी बेटी की देखभाल खुद ही करने लगा ओर फिर कभी किसी अजनबी को अपने दोनों के बीच नहीं आने दिया।

अब फिर से मेज के ऊपर डबल रोटी और जैम सजने लगे थे। पिता और बेटी दोनों फिर से पीकेबू खेलने लगे थे। उसके बाद से वे दोनों खुशी खुशी रहे।

बाबा यागा-3

बाबा यागा की सिन्डरैला की यह लोक कथा इससे पहले वाली दोनों लोक कथाओं पर आधारित है।

एक बार मिश्र में चार जानवर एक जगह मिले और आपस में यह बहस करने लगे कि उन्होंने सिन्डरैला को देखा है। अब क्योंकि वे चारों जानवर चार देशों से आते थे इसलिये वे चारों जानवर सिन्डरैला को कैसे देख सकते थे।

तब चारों जानवरों ने अपनी अपनी कहानी सुनायी कि उन्होंने सिन्डरैला को कैसे देखा था और उनकी सिन्डरैला ही असली सिन्डरैला क्यों थी।

ये चारों जानवर थे मिश्र का बाज़ की शक्ल का होरस देवता, जर्मनी का कबूतर, फ्रांस के चूहे और बाबा यागा के घर में रहने वाली यह बिल्ली। होरस, कबूतर और चूहों ने अपनी अपनी कहानी सुना दी थी और अब बिल्ली की बारी थी। यह बिल्ली क्योंकि बाबा यागा के घर में रहती थी इसलिये इसका दावा था कि इसकी देखी हुई लड़की ही असली सिन्डरैला थी। सो यह थी वह कहानी जो उसने उन सबको सुनायी।

बिल्ली बोली — “तुम सब लोगों की सब कहानियाँ बहुत ही अच्छी थीं पर अब मैं तुमको एक कहानी सुनाती हूँ तब तुमको शायद लगे कि यही सच्ची सिन्डरैला थी।

यह बहुत पुरानी बात है जब मैं रूस में एक नीच आदमखोर बुढ़िया बाबा यागा के पास ही रहती थी। उसको तुम लोग चुड़ैल भी कह सकते हो।

वह केवल बुरे और नीच लोगों से ही वास्ता रखती थी इसलिये मैं भी केवल वैसे ही आदमियों और स्त्रियों को देख पाती थी जो भयानक होते थे और जिनके दिल में बुरे विचार होते थे।

मैं वह दिन कभी नहीं भूल सकती जिस दिन सच्ची सिन्डरैला हमारे घर आयी। वह सबसे ज़्यादा दयावान लड़की थी जो मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में देखी। उसका चेहरा तो कितना भी खतरा क्यों न हो शान्त ही रहता था।

एक दिन वह बाबा यागा के घर आयी और पुकारा —

“आन्टी।”

मैं यह शब्द सुन कर चौंक गयी क्योंकि बाबा यागा ने अपने परिवार के बारे में तो कभी बताया ही नहीं था तो फिर यह उसकी भानजी कहाँ से आ गयी। मैंने सोचा देखना पड़ेगा।

मुझे तुरन्त ही लगा कि जरूर ही यह कोई जाल था और मैं ठीक थी। मुझे बाद में पता चला कि उसकी सौतेली माँ ने बाबा यागा से यह सौदा कर लिया था कि वह उस लड़की को बाबा यागा के पास भेजेगी और बाबा यागा उसको खा लेगी।

हालाँकि मैं ऐसे खराब सौदों से अलग ही रहती थी क्योंकि मैं उन खराब कामों की सजा से बचना चाहती थी जो वह बाबा यागा लोगों के साथ करती थी पर उस दयावान लड़की को देख कर तो मुझे उस पर बहुत ही दया आ गयी।

उसने मुझे खाने के लिये सूअर का माँस दिया। मुझको तो यह देख कर ही रोना आ गया क्योंकि यह तो किसी ने मेरी ज़िन्दगी में मेरे लिये सबसे अच्छी बात की थी।

मुझे कभी किसी ने कभी कोई अच्छा खाना नहीं दिया था। बस इसके बाद फिर मुझे लगा कि मुझे इस लड़की को बाबा यागा से उसे खाने से बचाना है।

मेरे पास दो बहुत ही कीमती चीज़ें थीं – एक तो तौलिया जो जमीन पर गिरने पर बहुत चौड़ी और गहरी नदी बन सकता था और दूसरा एक कंघा जो जमीन पर गिरने से बहुत घना जंगल बन सकता था।

और यह उसको पहले से ही मालूम था कि भौंकते हुए कुत्तों से कैसे बचना है या बिर्च के पेड़ से कैसे बचना है और चूँ चूँ करते दरवाजे के कब्जों से कैसे निपटना है। उसने बताया कि यह सब तो उसकी सगी मौसी ने उसको पहले ही बता दिया था।

जब मैं अपने पास रखी हुई वे दोनों चीजें लाने गयी तो उसने मुझे अपनी कुछ कहानी सुनायी। उसकी माँ काफी दिन पहले ही मर गयी थी और उसके पिता ने दूसरी स्त्री से शादी कर ली थी। यह दूसरी स्त्री एक बहुत ही बुरी स्त्री थी। उस स्त्री की अपनी भी दो बेटियाँ थीं और वह यह चाहती थी कि वह लड़की मर जाये। उसकी वह सौतेली माँ उससे बहुत नफरत करती थी और उसको अपनी बेटियों की तरह से प्यार नहीं करती थी।

उस दिन उसने उस लड़की को बाबा यागा से सुई धागा लाने के लिये भेजा था। यह उसने उस लड़की के लिये एक जाल बिछाया था जिससे कि बाबा यागा उसको भयानक तरीके से मार कर खा जाये।

उसकी यह कहानी किसी का भी दिल तोड़ देने वाली थी। मैं तो उसकी कहानी को सुन ही नहीं सकी। वह कितनी अच्छी लड़की और अपने ही घर में किस तरीके से रह रही थी जहाँ कि उसको सबसे ज़्यादा सुरक्षित रहना चाहिये था।

तभी हमने बाबा यागा के आने की आवाज सुनी और सिन्डरैला खिड़की से बाहर भाग गयी। उसने भौंकते हुए कुत्तों को बिस्किट खिलाये तो उन्होंने भौंकना और उसका पीछा करना बन्द कर दिया। उसने दरवाजों के कब्जों पर तेल लगा दिया तो उन्होंने चूँ चूँ करना बन्द कर दिया। उसने पेड़ के चारों तरफ एक रिबन बाँध दिया तो उसने उसको मारा नहीं।

जब बाबा यागा को यह पता चला कि मैं उस लड़की की रक्षा कर रही हूँ तो वह बहुत गुस्सा हुई और उसने मुझे उससे मेरी बेवफाई पर बहुत मारा।

पर मैंने उसकी मार की कोई चिन्ता नहीं की क्योंकि मैंने तो एक दयावान लड़की को वहाँ से जान बचा कर भाग जाने में उसकी सहायता ही की थी।

इससे दुनियाँ में कम से कम कुछ अच्छाई तो ज़िन्दा रहेगी और इसके लिये मैं बाबा यागा की कितनी भी मार खा सकती थी।

बाबा यागा वहाँ से उस लड़की का पीछा करने और उसको पकड़ने के लिये भागी। बाद में उस शाम को मुझे पता चला कि बाबा यागा उसको पकड़ ही नहीं पायी थी।

उसने बताया कि बीच में एक बहुत ही चौड़ी और गहरी नदी पता नहीं कहाँ से पैदा हो गयी थी जिसको उसे अपने बैलों से पार करना पड़ा। फिर उसके बाद एक घना जंगल भी पता नहीं कहाँ से पैदा हो गया था जिसको तो वह पार ही नहीं कर सकी और उसको वापस आना पड़ा।

इस सबके बारे में मैंने अपना आश्चर्य दिखाया पर मुझे मालूम था कि सचमुच में क्या हुआ होगा। उस लड़की ने सुरक्षित घर पहुँचने के लिये मेरे दिये हुए तौलिये और कंघे का ही इस्तेमाल किया होगा।

फिर मुझे उस लड़की का पता नहीं चला कि उसका क्या हुआ। यह उस दिन से जब मैंने उस लड़की की सहायता की थी कुछ साल बाद की बात है जब मैंने उस लड़की के बारे में एक बिल्ली से केवल सुना ही सुना था। असल में मुझे एक बिल्ली मिली थी जो इस कहानी जैसी ही एक कहानी सुना रही थी।

मैने उससे उस लड़की के बारे में पूछा तो मुझे पता चला कि वह तो वही लड़की थी – मेरी सिन्डरैला। उसने अपनी सौतेली माँ के बुरे व्यवहार की पूरी कहानी अपने पिता को सुना दी थी और उसके पिता ने अपनी उस दूसरी पत्नी को गोली से मार दिया था।

उसकी बहादुरी और दया उसको असली सिन्डरैला बना देती है। वह एक बहुत ही अच्छी बच्ची थी। मैं अपने आपको बड़ी खुशकिस्मत समझती हूँ कि मैं एक ऐसी बच्ची से मिली।” और इस तरह उस बिल्ली ने अपनी कहानी खत्म की।

होरस बोला — “तुम्हारी कहानी तो बहुत ही अच्छी थी पर मैं अभी भी यही समझता हूँ कि मेरी कीमती सिन्डरैला ही असली सिन्डरैला थी।

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