बाबा, आपके लिए डोको : असमिया लोक-कथा
Baba, Aapke Liye Doko : Lok-Katha (Assam)
पुराने जमाने की बात है। किसी पहाड़ी इलाके में एक बूढ़ा रहता था। उसका एक बेटा था। वह अपने बेटे को जान से भी ज्यादा प्यार करता था। बेटे की शिक्षा-दीक्षा, चूडाकर्म, विवाह सभी संस्कार उसने जी-जान लगाकर किया। समय बीतने के साथ उसकी उम्र ढलने लगी। वह ठीक से चल-फिर भी नहीं सकता था। वह बेटे और बहू के भरोसे जीवन के शेष दिन काट रहा था।
समय के साथ-साथ बूढ़े की बहू ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। वह शुक्ल पक्ष की चंद्रमा की भाँति बड़ा होने लगा। बूढ़े की स्थिति और भी नाजुक हो गई। उसके पाँव चलने फिरने के लिए जवाब देने लगे। अब केवल एक ही स्थान पर पड़े रहने के सिवा उसके पास कोई दूसरा चारा नहीं था। उसकी सेवा करने में उसके बेटे और बहू की कोई दिलचस्पी नहीं थी।
एक दिन बेटे ने सोचा, ‘ये बुढ्ढा बिस्तर पर पड़े-पड़े सिर्फ खाता रहता है। हिलता-डुलता तक नहीं। टट्टी-पेशाब तक के लिए नहीं हिल सकता। और कितने दिन जिंदा रहेगा पता नहीं। यमराज इसे जल्दी क्यों नहीं उठा लेता! बेहतर होगा कि किसी घने जंगल में ले जाकर छोड़ दूँ। बाघ-भालू अपना आहार बना लेंगे। इससे छुटकारा पाने के लिए यही एक उपाय है। हमें भी आनन्द मिलेगा और बूढ़े को भी मुक्ति मिलेगी।’
यह सोचकर बेटा सलाह माँगने के लिए अपनी पत्नी के पास गया। पत्नी भी बूढ़े ससूर की सेवा करते-करते थक चुकी थी। अपने पति की बात उसे झुंच गई। उसने पति के प्रस्ताव पर तुरंत अपनी सहमति की मुहर लगा दी।
इसके बाद बेटे ने अपने पिता को एक बड़े से डोको’ (बाँस की बनी टोकरी) में रखा और पीठ पर लादकर जंगल की ओर चलने लगा। उसके साथ उसका छोटा बेटा भी चलने लगा। जंगल दूर नहीं था। बूढ़े को वाध ‘क्य के कारण न ठीक से सुनाई देता था और न ही दिखाई देता था। उसे पता नहीं चला कि बेटा उसे कहाँ ले जा रहा है। उसे लगा कि बेटा उसे पीठ पर लादकर बाबा गोरखनाथ के दर्शन कराने ले जा रहा है इसलिए वह बिना कुछ बोले टोकरी के अंदर बैठा रहा।
घने जंगल में पहुँचने के बाद बेटे ने पिता से भरे डोको को जमीन पर उतारा। बूढ़े की आँख लग गई थी। दूर हिंसक जानवरों का गर्जन सुनाई दे रहा था। बेटा सोचने लगा कि बूढ़ा अब चंद पलों का मेहमान है। बूढ़े पिता को जंगल में छोड़कर वह अपने बेटे को लेकर तुरंत वापस लौटने लगा। थोड़ी दूर चलने के बाद बेटे ने कहा- “पापा रूको, हम एक चीज भूल गए हैं।”
पिता ने कहा- “क्या?”
बेटा- “हमें डोको वापस ले चलना होगा।”
पिता- “क्यों?”
बेटा- “यह डोको मुझे चाहिए।”
पिता- “क्यों, तुम इसका क्या करोगे?”
बेटा- “जब आप बूढ़े हो जाएंगे, तो मैं आपको भी इसी में डालकार जंगल में फेंक आउँगा।”
बेटे के इस वाक्य को सुनकर पिता सन्न रह गया। नन्हें बेटे ने उसकी बंद आँखें खोल दीं। वह तुरंत मुड़ा और तेज कदमों से भागते हुए अपने पिता के पास पहुँच गया। वह उनसे लिपटकर रोने लगा। अपने किए के लिए माफी माँगी और उन्हें वापस घर ले आया। उसके बाद उनके मरण तक जी-जान से उनकी सेवा की।
(सीख– हमारे बच्चे हमारे कर्मों के साक्षी होते हैं अतः ऐसा काम कभी न करें जो बाद में बच्चे हम पर दोहराए।)
‘डोको’ बाँस की बनी टोकरी है, जो भारी सामान पीठ पर ढोने के लिए प्रयोग किया जाता है।
(साभार : डॉ. गोमा देवी शर्मा)