बासी भोजन : कोंकणी/गोवा की लोक-कथा

Baasi Bhojan : Lok-Katha (Goa/Konkani)

एक गाँव में माँ अपने दो बच्चों के साथ बहुत ही खुशहाली से रहती थी। अपने पति के गुजर जाने के बाद उसने पुत्र और पुत्री | को पाल-पोसकर बड़ा कर दिया। साथ ही साथ उसने अपने बच्चों को बड़ी संस्कारशील शिक्षा दी। माँ का आचरण भी बहुत ही संस्कारसंपन्न था। पास-पड़ोस के लोग भी उसे बड़ी शीलवान महिला मानकर उसका आदर्श अन्य महिलाओं को अपनाने को कहते थे। दिन ऐसे ही गुजर रहे थे। बच्चे तो बढ़ने लगे, माँ बूढ़ी होने लगी। अचानक एक दिन वह बहुत बीमार पड़ी। वैद्य को दिखाया गया, दवाइयाँ लीं, फिर भी कोई सुधार नहीं आया। अब तो मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, उसकी समझ में आया। बेटे और बेटी को समीप बिठाकर बेटे से कहा, "बेटा, अब मेरी जिंदगी के ज्यादा दिन नहीं बचे। मुझे तो तुम दोनों की चिंता लगी है। अपनी बहन का खयाल रखना। अच्छे संस्कारवाला लड़का देखकर उसकी शादी कर देना।" दोनों बच्चे रो पड़े। बेटे ने माँ को वचन दिया कि "तुम चिंता मत करो, मैं अपनी बहन को बड़े ही अच्छे ढंग से रखूँगा ।" माँ की बीमारी बढ़ती गई और एक दिन उसकी साँस टूट गई। दोनों बच्चों को बहुत दुःख हुआ ।

दिन गुजरते गए। एक दिन भाई ने बहन से कहा, “देख बहना, पहले मैं शादी करता हूँ। एक लड़की है मेरी नजर में काफी अच्छे घराने की है। अगर मैं पहले शादी करूँगा तो तुम्हारी शादी करने के लिए कोई दिक्कत बीच में नहीं आएगी। " बहन तो समझदार थी। उसने सहमति दे दी। भाई ने ऊँचे घराने में शादी की। जैसे ही उसकी शादी हुई, वह बहन से दूर-दूर जाने लगा। अपनी पत्नी के बहकावे में आकर बहन से बातचीत करना भी छोड़ दिया। उसकी पत्नी तो अपनी ननद से बात तक नहीं करती थी, उसकी शादी की बात तो दूर की थी। देखो, 'कैसा भाई है, माँ के मर जाने के बाद अपनी आप शादी कर ली, बहन को घर का कामकाज करने के लिए रखा है । ' पास-पड़ोस के लोग कानाफूसी करने लगे। 'देखो, कैसा भाई है, स्वयं शादी कर ली और बहन को काम करने के लिए घर में रखा है। माँ के संस्कारों को तो वह भूल ही गया।'

लोगों के ताने सुनकर उसने बहन की शादी करवा देना उचित समझा। और एक बहुत ही गरीब घराने में उसका रिश्ता जोड़ा। उसका पति तो दुबला पतला था । गरीबी के कारण दवाइयाँ भी ठीक से नहीं मिलती थीं। उसके साथ अपनी बहन की शादी करवाकर भाई तो बंधन से मुक्त हो गया, पर बहन अपने हालात पर रोने लगी। उसे बार-बार माँ की याद आती थी। वो दिन-रात रोती, पर हालात अभी भी बदले नहीं थे। भाई की अमीरी बढ़ती गई, बड़ा घर, गाड़ी, पत्नी के लिए महँगी-महँगी साड़ियाँ, आभूषण वगैरह, महँगे सामानों से घर भरा पड़ा था । लक्ष्मी तो उनके घर में जैसे पानी भर रही थी। अपनी बहन को तो वह पूरी तरह भूल चुका था। बहन के बेटे का अपने मामा के घर जाने का बहुत मन करता था। मगर उनकी गरीबी के कारण मामा तो उनसे रिश्ता ही नहीं रखना चाहता था ।

एक दिन बच्चों के मामा ने पूरे गाँव को दावत देनी चाही। पूरे गाँव के लोगों को उसने खाने का न्योता दिया, मगर बहन को नहीं बुलाया। इस बात की खबर बच्चों को लगी। उन्होंने अपनी माँ से कहा, "हम जाएँगे मामा के घर, उन्होंने नहीं बुलाया तो भी चलेंगे। आखिर वह मामा है हमारा । " बच्चों की जिद के आगे वह हार गई। माँ की याद करके उसे रोना आ गया। वह बिन बुलाए मेहमान, अपने बच्चों को लेकर मायके चल पड़ी। दूर से मामी ने उनको आते हुए देखा तो वह गुस्सा हो गई। उसने पति से कहा, "भिखारी आए हैं। उनको बाहर ही बिठा देना ।"

अपनी भाभी के शब्द सुनकर बहन को बहुत दुःख पहुँचा, पर वह बच्चों के साथ चुपचाप बैठी रही। गाँव के लोगों को तो पंच पकवान दिए और बहन को बासी भोजन दिया। उसकी आँखें आँसूओं से भर गईं। अन्न खाने लायक नहीं था, सो बासी भोजन अपने आँचल में बाँधकर बच्चों को लेकर अपने घर लौट आई। उसने आँगन में आकर तुलसी वृंदावन के सामने जमीन में गड्ढा खोदकर भोजन उसी में डालकर दबा दिया और सब पानी पीकर सो गए। दूसरे दिन बहन जब उठी, तो उसे आश्चर्य हुआ। जिस जगह उसने बासी भोजन गाड़ दिया था, उसी जगह पर तुलसी का एक पौधा निकल आया। उसने हल्के हाथों से मिट्टी हटा करके पौधा निकाला तो उसे उसके नीचे जमीन में सोने के सिक्कों से भरा हुआ एक मटका दिखाई दिया। उसने फावड़ा लेकर वह मटका निकाल लिया ।

बहन रातोरात अमीर बन गई। बड़ा घर, गाड़ी, बच्चों को अच्छे कपड़े, पति को दवाइयाँ अब तो सबकुछ अच्छा हो गया। उनके घर में तो अब हर दिन दीवाली होने लगी। इतनी अमीरी पाकर भी बहन अपनी माँ के संस्कारों को भूली नहीं थी। वह पास-पड़ोस के लोगों की मदद करने लगी। सभी जगह उसका नाम रोशन हो गया। उसकी कीर्ति चारों ओर फैल गई। भाई तक बात पहुँची। भाई ने फिर से पूरे गाँव को भोजन कराने की तैयारी की। पहले बहन और उसके पूरे परिवार को बड़े सम्मान से बुलाया। सारे आभूषण व कीमती परिधान पहनकर बहन का कुटुंब चल पड़ा। उनके बैठने के लिए चाँदी के पाट, सोने की ताट पर भोजन । बहन और उसके परिवार ने एक बार पंगत को देखा और दूसरी बार वे सभी नीचे जमीन पर बैठे। सोने का ताट चाँदी के पाट पर रखा और बहन अपना एक-एक आभूषण निकालकर ताट के पदार्थों पर रखने लगी। माँ जो कर रही है, वही बेटों और पति ने .दोहराया। भैया-भाभी हैरान हो गए। यह क्या हो रहा है। उनको तो पता नहीं चला।

थोड़ी देर बाद भैया ने बहन को पूछा, “ये क्या हो रहा है। आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हो ?" बहन हँसकर बोली, 'भैया-भाभी, आज आपने हमें खाने पर बुलाया है, मगर वह न्योता हमें नहीं, बल्कि हमारी अमीरी को दिया था। आप दोनों को याद होगा, जब पहली बार आपने गाँव को भोजन का न्योता दिया। बिन बुलाए मेहमान की तरह मैं अपने दो बेटों के साथ यहाँ आई । आपने हमें भिखारी कहा था। उस समय हम भूखे थे और खाने की सख्त जरूरत थी, तब हमारे सामने बासी भोजन भिखारी की तरह रखा। अब हमारा बड़ा मकान है। भरपूर अन्न खा सकते हैं। गहने - गाड़ी सबकुछ है। अब किसी चीज की जरूरत नहीं है। सो आपने हमारी अमीरी को खाने का न्योता दिया है। इसलिए मैं खाने के ऊपर ये गहने रख रही हूँ। ऐसा कहकर पूरे परिवार ने अपने गहने, ताट के पदार्थों के ऊपर रखे और फिर स्वाभिमान से अपने घर की ओर चल पड़े।

(साभार : पौर्णिमा केरकर)

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