औरत (अज्ञात) : कमलेश्वर
(15वीं सदी की इस चीनी कथा का लेखक अज्ञात है। इसे ‘किन-कूकी-कुआन’ से लिया गया है।)
सदियों पहले की बात है। शान्त ग्रामांचल में च्वांग नामक दार्शनिक रहता था। ग्राम-समाज में उसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। च्वांग की पहली पत्नी की मृत्यु हुई, दूसरी पत्नी को उसने तलाक दिया और अब तीसरी सुन्दरी पत्नी के साथ वह सुख से रहता था।
एक रोज च्वांग घूमता हुआ पहाड़ी के पास से गुजर रहा था। उसने देखा, वहाँ एक गीली कब्र के पास एक बहुत खूबसूरत औरत बैठी है। वह कब्र पर पंखा झल रही थी। च्वांग यह दृश्य देखकर चकित रह गया। वह उस सुन्दरी के पास गया और बोला, “आप यहाँ क्या कर रही हैं?”
सुन्दरी बोली, “मैं अपने पति की कब्र के सूखने का इन्तजार कर रही हूँ। मरते समय उन्होंने मुझसे वचन ले लिया था कि मैं कम-से-कम कब्र की मिट्टी सूखने तक दूसरी शादी नहीं करूँगी। अब बताइए, मैं क्या करूँ? यह मिट्टी सूखने को नहीं आती!”
च्वांग यह सुनकर रहम से भरकर बोला, “आप तो थक जाएँगी। लाइए, पंखा मुझे दीजिए, मैं जल्दी से सुखा देता हूँ।”
च्वांग ने बड़ी जल्दी मिट्टी को सुखा दिया। उसके उपकार को चुकाने के लिए उस सुन्दरी ने एक नया पंखा तथा बालों में लगा चाँदी का हेयरपिन निकालकर उसकी ओर बढ़ाया।
च्वांग ने पंखा तो ले लिया, पर हेयरपिन अपनी पत्नी के डर के कारण उसने नहीं लिया।
जैसे ही वह घर पहुँचा, पत्नी ने सवाल किया, “यह पंखा कहाँ से लाये हो?”
च्वांग ने पूरी दास्तान बता दी। सुनते ही उसकी पत्नी थू-थू करने लगी, “ऐसी औरतें औरत जात पर कलंक हैं...” और उसने वह पंखा तोड़-ताड़ कर फेंक दिया।
“अरे, सब यही करती हैं,” च्वांग ने कहा।
“क्या!” उसकी पत्नी बिफरी, “सबको क्यों कहते हो... शर्म नहीं आती!”
“खैर छोड़ो...” कहकर च्वांग दूसरे कमरे में चला गया।
और हुआ यह कि कुछ ही दिनों बाद च्वांग बुरी तरह बीमार पड़ा। जब कोई उम्मीद नहीं रह गयी, तो च्वांग ने पत्नी को पास बुलाकर कहा, “मैं अब विदा लेता हूँ। गुस्से में तुमने उस दिन वह पंखा तोड़-ताड़कर फेंक दिया, वह इस वक्त तुम्हारे काम आता... मेरी कब्र की मिट्टी सुखाने के...”
“अपशब्द मत बोलो...” पत्नी की आँखों में आँसू छलछला आये, “सब औरतें एक-सी नहीं होतीं। अगर तुम्हें विश्वास न होता हो तो मैं अभी, इसी क्षण जान दे सकती हूँ, ताकि तुमसे पहले मैं विदा हो जाऊँ...”
और यह सुनकर च्वांग बड़ी शान्तिपूर्वक मर गया। उसकी पत्नी गहरे दुख में डूब गयी। वह विलाप करने लगी। मातम मनाया जाने लगा। दुख प्रकट करने वालों का ताँता लग गया।
च्वांग की विधवा पत्नी के दरवाजे पर एक बेहद सुन्दर सजीला-सलोना जवान आकर घोड़े से उतरा। वह वेशभूषा से राजकुमार लग रहा था।
आते ही राजकुमार ने पश्चात्ताप प्रकट किया। वह बोला, “विद्वान च्वांग को गुरु बनाने आया था, पर मेरा दुर्भाग्य कि वे अब नहीं रहे...” इतना कहकर राजकुमार ने चार बार वहाँ की धरती को चूमा, जहाँ शव बक्से में बन्द रखा हुआ था।
और जब च्वांग की पत्नी के पास राजकुमार संवेदना प्रकट करने पहुँचा, तो विधवा पत्नी अपने को उसे देखने से रोक नहीं पायी। वह राजकुमार पर मुग्ध हो गयी। उसने अनुरोध किया राजकुमार कुछ दिनों वहीं रहें और उसके पति के लिखे ग्रन्थ का अध्ययन करें।
धीरे-धीरे च्वांग की विधवा राजकुमार के प्रति इतनी आकर्षित हो गयी कि उसने अपनी इच्छा प्रकट कर दी।
राजकुमार भी आकर्षित हो चुका था। उसने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
जब विवाह सम्पन्न हो गया, तो च्वांग की पत्नी और राजकुमार सुहागरात मनाने कमरे में पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही राजकुमार को दौरा पड़ा और वह बेहोश होकर गिर पड़ा।
च्वांग की पत्नी घबराकर नौकर के पास दौड़ी। नौकर ने बताया कि राजकुमार की इस बीमारी की एक ही दवा है कि किसी आदमी का भेजा निकालकर फौरन सुँघाया जाए।
च्वांग की पत्नी ने तत्काल एक निर्णय लिया। उसने गँडासा उठाया, पति की शव पेटी को काटना शुरू किया। ऊपर की लकड़ी टूटते ही उसका पति च्यांग जीवित होकर उठ बैठा।
यह देखकर पत्नी हक्की-बक्की रह गयी, फौरन सँभलकर बोली, “मुझे लगा, तुम जीवित हो... इसी से मैंने पेटी काट डाली।...”
“पर ये शादी के कपड़े कैसे?” च्वांग ने पूछा।
“इसलिए कि मैं तुम्हारा स्वागत मातमी कपड़ों में कैसे करती...” कहते हुए वह वहीं ठिठकी खड़ी रही।
च्वांग अपनी पत्नी को लेकर बड़े कमरे में आया, तो यह देखकर हैरान हुआ कि वहाँ सुहागसेज सजी हुई थी और च्वांग की पत्नी यह देखकर दंग रह गयी कि बेहोश राजकुमार का नामोनिशान नहीं था।
च्वांग ने कहा, “जरा एक प्याला शराब दो!” और जैसे ही च्वांग की पत्नी प्याला भरने के लिए पीठ करके खड़ी हुई च्वांग बोला, “यह राजकुमार की तरह कौन आदमी यहाँ खड़ा है... क्यों? उधर सेज के पास देखो...”
च्वांग की पत्नी ने डरते-डरते उधर देखा - राजकुमार सेज के पास खड़ा था। घबराकर उसने पीछे अपने पति की ओर देखा, च्वांग वहाँ नहीं था।