एटिला (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण

Attila (English Story in Hindi) : R. K. Narayan

बड़ी आशा से उन्होंने इस कुत्ते का नाम 'एटिला' रखा था-यूरोप के कुख्यात संहारक 'एटिला द हूण' के नाम पर। वे चाहते थे कि शक्ति, सामथ्र्य और मारकता में यह उसी की तरह प्रभावशाली हो।

तब यह दो महीने का था : चौखूटे जबड़े, लाल आँखें, दबी हुई नाक, और बड़ा-सा सिर, इस सबसे यही लगता था कि बड़ा होकर यह खूखार साबित होगा और अपना नाम सार्थक करेगा। उसे खरीदने का फौरी कारण यह था कि मुहल्ले में चोरियाँ और डाके अचानक बहुत बढ़ गये थे और पुलिस की अपेक्षा कुत्ते की मदद लेना ज्यादा सही लगा। काफी तलाश के बाद एक आदमी मिला जो कुत्तों का काम करता था। उसने एक महीने का काले-सफेद रंग का पिल्ला दिखाया और बोला, 'एक महीने बाद इसे ले जाना। छह महीने में यह काफी बड़ा और भरोसे लायक हो जायेगा।" उसने हमारे सामने एक कागज फैला दिया जिसमें कुत्ते की नस्लों की विस्तृत जानकारी थी। इसके अनुसार इस कुत्ते की नसों में बहुत शानदार नस्ल का खून बह रहा था। सब बहुत प्रभावित हुए।

इसे ही लेने का निश्चय करके उन्होंने बयाने की रकम दी, फिर एक महीने बाद पचहत्तर रुपये चुकाकर कुत्ता खरीद ले आये। जैसा पहले कहा है, कुत्ता देखनेभालने में आकर्षक नहीं था, फिर भी घर के सब लोग उसे घेरकर बैठ गये और क्या नाम रखा जाये, इस पर बहस करने लगे।

सबसे छोटे लड़के के कहा, 'टाइगर नाम अच्छा रहेगा।'

'यह बहुत चालू नाम है, गली का हर दूसरा कुत्ता टाइगर कहलाता है," कई ने कहा, 'सीजर नाम कैसा रहेगा?'

'सीजर! अगर गिनती की जाये तो दक्षिण भारत में ही पंद्रह हजार सीजर हमें मिल जायेंगे।'

'अच्छा, फायर नाम...।"

'बहुत बढ़िया है यह नाम!'

'और थडर?'

'सादा नाम है...'

'ग्रिप ?'

'बचकाना है....।"

सब चुप हो गये। कुछ देर बाद किसी ने कहा, 'एटिला', ' यह नाम आते ही खुशी की लहर दौड़ गयी। आदमी या जानवर किसी का इससे अच्छा नाम नहीं रखा जा सकता।

लेकिन समय बीतने के साथ कुत्ते ने भयंकरता के स्थान पर मानवता का इतना ज्यादा व्यवहार दिखाना शुरू किया जो जरूरत से ज्यादा लगने लगा। क्या 'एटिला द हूण' भी ऐसा ही था? उसके नाम पर युग का नामकरण किया गया था। बचपन में वह कैसा रहा होगा, क्योंकि इस उम्र में सब बच्चे दूसरों को प्यार करते हैं। यह जानकारी हासिल करने के लिए इन लोगों ने इतिहास की किताबें छान डालीं। पता चला कि बचपन में वह अपने दोस्तों और माँ-बाप के दोस्तों से इस तरह कसकर लिपट जाता था कि उसे खींच-खींचकर हटाया जाता। जब वह चौदह साल का हुआ, तब उसने अपनी असलियत दिखानी शुरू की; एक दोस्त ने जब उसकी चीजों को हाथ लगाया तो उसने तुरंत चाकू उठाकर उसके पेट में घुसेड़ दिया। उसका भविष्य व्यक्त होने लगा था। हमारा कुत्ता भी उसी तरह कुछ और बड़ा होकर उससे लगाई उम्मीदें पूरी करने लगेगा।

लेकिन यह विश्वास सही साबित नहीं हुआ। उसकी ऊँचाई बीस इंच जा पहुँची, शरीर भी काफी बड़ा हो गया और चेहरा भी भयानक निकल आया लेकिन व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। घर में तरह-तरह के लोग रोज आते-पोस्टमैन, साधु बिल जमा करने वाले, व्यापारी और दोस्त-रिश्तेदार-उन सबका एटिला एक तरह स्वागत-सा करता। गेट पर कोई आवाज होती तो वह उठकर खड़ा हो जाता और आगंतुक की तरफ देखने लगता। जब वह भीतर घुसता तो एटिला उसकी तरफ तेजी से दौड़ता लेकिन इससे ज्यादा कुछ न करता। आने वाला उसकी तरफ देखकर जैसे ही जरा-सा मुस्कराता, वह हथियार डाल देता। अब वह ऐसा कुछ व्यवहार करता, मानो उसकी तरफ दौड़ने के लिए माफी माँग रहा हो। वह सिर झुकता, बदन निकालता मानो कह रहा हो; 'आपने मेरे दौड़ने का गलत मतलब निकाला है। मैं तो आपका स्वागत कर रहा था।' फिर जब तक आने वाला उसका सिर थपथपाकर यह भरोसा न दिला देता कि माफ कर दिया है, उसकी व्यथा कम न होती।

धीरे-धीरे वह यह सोचने लगा कि उसकी इस हरकत से आने वाले को परेशानी जरूर होती है तो उसने उन पर ध्यान देना की बंद कर दिया। अब वह बिलकुल चुप रहता और उसकी तरफ देखकर पूँछ भर हिला देता। घरवालों को उसका यह रुख जरा भी पसंद नहीं था। उन्हें लगता था कि यह तो बड़े शर्म की बात है।

'अब इसका नाम बदलकर अंधा कीड़ा क्यों ना रख दिया जाये?" किसी ने सलाह दी।

घर की मालकिन ने कहा, 'खाता तो यह हाथी की तरह है। इसे चावल और मीट खिलाने में जितना खर्च होता है, उतने में तो दो पहरेदार रखे जा सकते हैं। सवेरे कोई आता है और सारे फूल चुरा ले जाता है लेकिन एटिला कुछ नहीं करता।'

'फूलों के चोर को पकड़ने के अलावा भी उसे जरूरी काम हैं', सबसे छोटे लड़के ने, जो उसका समर्थक था, कहा।

'क्या काम हैं ये ?'

'कोई सवेरे-सवेरे आकर फूलों को चुरा ले जाये तो क्या इस वक्त भी उसे ही निगरानी करनी पड़ेगी?'

'क्यों नहीं? खूब खाने-पीने वाले कुत्ते को सोने की जगह यह काम करना चाहिए। तुम्हें अपने कुत्ते के लिए शर्मिदा होना चाहिए।'

'माँ वह रात भर नहीं सोता। मैं उसे कई दफा कोठी के चारों ओर घूमकर चक्कर लगाते और रखवाली करते देखता हूँ।'

'अच्छा! तो वह रात भर रखवाली करता है ?'

'जरूर करता है," लड़का बोला।

'यह सुनकर तो मुझे डर लगने लगा है," माँ ने कहा। 'अब उसे रात को कमरे में बंद कर दिया करो, नहीं तो वह किसी बाहर वाले को बुलाकर सारी कोठी दिखा देगा। इसके बिना चोर पूरी चोरी नहीं कर सकेगा। अगर वह भूकना भी शुरू कर दे तो कुछ बात बने। इतना शांतिप्रिय कुत्ता मैंने दुनिया में आज तक नहीं देखा।'

लड़का यह सुनकर बहुत दुखी हुआ। इस आरोप ने उसे बहुत परेशान किया लेकिन कुत्ते ने दूसरे ही दिन इसे सच सिद्ध कर दिया।

रंगा शहर से तीन मील दूर रहता था। वह सड़कों की मरम्मत करने वालों के साथ कुली के रूप में काम करता था। रात को वह अक्सर घरों में घुसने का मजा लेने की हिम्मत भी दिखाता था। इससे उसे कुछ और लाभ हो जाता था। उसी रात एक बजे के करीब उसने इस कोठी की एक खिड़की की सलाखें तोड़ीं और भीतर घुस गया। दीवाल के सहारे सरक-सरक कर उसने घर की सब अलमारियाँ और बक्स खोल डाले और कीमती जेवरों की पोटली बनाकर बाहर निकलने की तैयारी करने लगा।

खिड़की तोड़कर निकलने के लिए उसने जो जगह बनाई थी, उसमें जैसे ही उसने एक पैर आगे रखा, पाया कि नीचे एटिला खड़ा उसकी ओर उत्सुकता से देख रहा है। रंगा ने सोचा कि उसका आखिरी वक्त आ गया है। उसे भय था कि कुत्ता भौंकेगा। लेकिन एटिला ने यह नहीं किया। एक क्षण उसने प्रतीक्षा की, फिर उठ खड़ा हुआ और चोर की गोद में अपने आगे के पैर रख दिये। फिर कान पीछे किये, रंगा के हाथ चाटे और आँखें गोलकर उसकी ओर देखा। रंगा फुसफुसाया, 'मुझे उम्मीद है तुम भौंकोगे नहीं।'

'चिंता मत करो, मैं ऐसा जीव नहीं हूँ," एटिला ने मानो कहा।

'जरा रुको। मुझे यहाँ से निकलने दो, ' रंगा ने कहा।

कुत्ते ने समझदारी दिखाते हुए पैर उठा लिये और पीछे हट गया।

'यहाँ देखो," रंगा ने पीछे की ओर इशारा करते हुए कहा, 'यहाँ बिल्ली है।' एटिला ने उस तरफ कान घुमाये और लपका। उसे देखकर कोई भी यह कहता कि यह बिल्ली को फाड़ डालेगा, लेकिन बिल्ली सचमुच होती तो वह उससे गपशप करना ही चाहता था।

कुत्ता जैसे ही वहाँ से हटा, रंगा ने फाटक की तरफ दौड़ना शुरू किया। एक क्षण और मिलता तो वह बाहर कूद जाता। लेकिन कुत्ता उसका इरादा समझ गया और तेजी से दौड़कर वहाँ पहुँच गया। लगा कि उसने बुरा माना है। 'यह ठीक है क्या, ' जैसे यह कहा, 'तुम मुझसे दूर क्यों होना चाहते हो?'

उसने अपनी भारी-भरकम पूँछ नीचे डाल दी और इतना दुखी लगने लगा कि चोर ने उसका सिर थपथपाया, जिससे वह प्रसन्न हो उठा। चोर ने फाटक खोला और बाहर निकला। कुत्ता उसके साथ हो लिया। उसकी इच्छा थी कि स्वतंत्रता से घूमे-फिरे। अब इसके लिए रास्ता साफ हो गया था।

एटिला को अपना नया दोस्त इतना पंसद आया कि वह एक क्षण के लिए भी उसका साथ नहीं छोड़ता था। रंगा जब खाने-पीने के लिए बैठता तो वह भी उसके पास बैठ जाता, और जब सोता तो उसकी चटाई के बगल में सो रहता, जब नहानेधोने जाता तो वह भी तालाब के किनारे इंतजार करता और जब काम पर होता तो सड़क के किनारे बैठा रहता।

ऐसी गहरी दोस्ती रंगा को परेशान करने लगी। वह कहता, 'भैया, मुझे मिनट भर तो अकेला रहने दो।' लेकिन एटिला ने यह प्रार्थना स्वीकार नहीं की और गोंद की तरह उससे चिपका रहा।

एटिला के गायब हो जाने से कोठी में हलचल मच गयी। माँ ने कहा, 'मैंने क्या कहा था, इसे ताले में बंद कर दी। अब उसे चोर ही ले गया है। कितने शर्म की बात है ! किसी को बता भी नहीं सकते।'

लड़का बोला, 'यह संयोग हो सकता है। वह जरूर खुद ही गया होगा। अगर वह यहीं होता तो चोर घुसने की हिम्मत ही न करता।'

'जो हो, मेरा ख्याल है कि हमें चोर को धन्यवाद देना चाहिए कि वह एटिला को अपने साथ ले गया। और मान लेना चाहिए कि जेवर उसे इनाम में दिये गये हैं।' पुलिस में जो शिकायत दर्ज की है, उसे भी वापस ले लेना चाहिए।

फिर एक हफ्ते बाद एटिला सबका हीरो बन गया और सब शिकायतें खत्म हो गई। एक दिन सबसे बड़ा लड़का बाजार जा रहा था। उसने देखा कि एटिला किसी के पीछे चल रहा है।

'हे!" लड़का जोर से चिल्लाया। आवाज सुनकर रंगा ने पीछे मुड़कर देखा और तेजी से भागना शुरू कर दिया। एटिला ने भी यह सोचकर कि उसका दोस्त उससे पिंड छुड़ाना चाहता है, उसके पीछे भागना शुरू कर दिया।

लड़का चिल्लाया, 'एटिला... ' और उसने भी दोनों का पीछा करना शुरू कर दिया। एटिला ने मुड़कर देखा और अपने दोस्त को रुकता न देख, और भी तेजी से भागना शुरू किया। रंगा ने भी अपनी रफ्तार बढ़ा दी। एटिला किसी भी तरह उसे रोकना चाहता था, इसलिए आगे लपककर उसका रास्ता रोकने की कोशिश करने लगा। रंगा सँभल न पाया और उसके ऊपर गिर पड़ा।

जमीन पर उसके गिरते ही उसकी जेब से एक जेवर नीचे गिर पड़ा-इसे वह चोरी के जेवरों के व्यापारी के पास लिये जा रहा था। लड़के ने पहचान लिया कि जेवर उसकी बहन का है, इसलिए वह एकदम रंगा पर चढ़ बैठा। फौरन भीड़ इकट्ठी हो गयी और पुलिस आ गयी।

अब एटिला हीरो बन गया। घर की मालकिन भी उसके प्रति सदय हो गयी। बोली, 'एटिला के लिए हम जो भी कहें, वह बहुत चालाक जासूस है। बहुत गहरा बन्दा है वह।'

यह अच्छी बात थी कि एटिला बोल नहीं सकता था। नहीं तो वह रंगा से अलग होने के लिए दुखी होने लगता और उसकी इज्जत खाक में मिल जाती।

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