आश्रय (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण

Ashraya (English Story in Hindi) : R. K. Narayan

अचानक बरसात शुरू हो गई। उसे जो अकेली सुरक्षा प्राप्त हो सकती थी, वह था, सड़क के किनारे खड़ा, विशाल तने और ऊपर फैली शाखाओं वाला बरगद का पेड़। वह निरपेक्ष भाव से नीचे गिरते पानी को देखता रहा, जिसका झोंका कभी-कभी उसकी तरफ़ आ जाता था। वह एक पिल्ले को, जिसका शरीर एकदम भीग गया था, और दो बैलों को जो सड़क के किनारे पड़े केले के पत्ते खा रहे थे, चुपचाप देखता रहा। अचानक उसे यह महसूस हुआ कि पेड़ की अगली टेढ़ी हुई डाल के नीचे एक आदमी और खड़ा है। फूलों की हलकी-सी सुगंध उसकी तरफ़ आई, तो वह अपनी उत्सुकता नहीं दबा सका, और वह धीरे-धीरे उधर सरक कर, जहां वह खड़ी थी, एकदम उसी के सामने जा खड़ा हुआ। उसकी पहली प्रतिक्रिया, ‘ओह’ करने की हुई, पर वह यह न कर सका और चौंक-सा गया। स्त्री उसे देखकर घबरा गई और चीखने-चीखने को हो उठी। वह शान्त हुआ तो बोला,’आप डरिए नहीं, मैं चला जाता हूं।’ लम्बी जुदाई के बाद अपनी पत्नी से मिलने पर यह प्रतिक्रिया मूर्खता की थी। वह वापस अपनी जगह चला गया। लेकिन कुछ देर बाद वह लौटा और पूछने लगा,’तुम यहां कैसे?’
उसे लगता था कि वह जवाब नहीं देगी, लेकिन जवाब आया,’बरसात के कारण।’

‘अच्छा,’ वह मज़ाक के तौर पर बोला और उसे ख़ुश करने के लिए हंसा। फिर बोला,’मैं भी इसी कारण यहां आया,’ और जवाब की मूर्खता महसूस की।
स्त्री चुप रही। मौसम की बात जब चाहे की जा सकती है, इसी का सहारा लेकर वह आगे बोला,‘अचानक होने लगी यह बारिश।’ स्त्री ने उसकी उपेक्षा की और दूसरी तरफ़ देखने लगी। उसने विषय को आगे घसीटने की कोशिश की, कहा,‘अगर मुझे ज़रा भी अंदेशा होता, तो मैं या तो घर में ही रहता या छाता लेकर निकलता।’ उसने इस वक्तव्य पर भी ध्यान नहीं दिया, यह लगा जैसे एकदम बहरी हो। वह पूछना चाहता था, क्या कानों में कुछ हो गया है? लेकिन चुप रहा, क्योंकि उसे लगा कि वह चिढ़ जाएगी। परेशानी की अवस्था में वह कुछ भी कर सकती थी। संकट की उस आख़िरी रात तक उसे उसकी तीव्रता का अनुमान ही नहीं हुआ था।

वैवाहिक जीवन में दोनों के बीच अनेक बार संकट की स्थिति आई थी। हर दूसरे घंटे दुनिया के हर विषय पर उनके मत एक-दूसरे के विरुद्ध होते थे। हर सवाल पर संकट खड़ा होता और कोई भी ऐसा न होता जिसकी उपेक्षा की जा सके। विषय कुछ भी हो सकता था-रेडियो सीलोन सुनें या ऑल इंडिया रेडियो, अंग्रेज़ी फिल्म देखी जाए या तमिल, चमेली की ख़ुशबू बहुत तेज़ होती है या नहीं, गुलाब को बहुत अच्छा कहा जाए या नहीं, वगैरह वगैरह। किसी भी विषय पर बहस हो सकती थी और तनाव पैदा होता, जिससे दोनों के बीच कई दिन तक बातचीत बन्द हो जाती, और फिर समझौता होता तथा गाढ़ी दोस्ती हो जाती। दोस्ती के ऐसे ही दिनों में एक बार दोनों ने एक लम्बा-चौड़ा समझौता-पत्र भी तैयार किया जिसके अनेक अनुबन्ध थे, और पूजा के कमरे में देवताओं के सामने जिस पर हस्ताक्षर किए गए और निश्चय किया गया कि इसका कभी उल्लंघन नहीं किया जाएगा और अब उनकी लड़ाइयां हमेशा के लिए समाप्त हो गईं। लेकिन बहुत जल्द इसका पहला वचन, कि ‘अब हम कभी नहीं लड़ेंगे।’ चौबीस घंटे बाद ही तोड़ दिया गया, और इसके बाद के सब अनुबंध जिनमें घरेलू मतभेद के सब मुद्दे, जैसे-रोज़मर्रा के ख़र्चे, खाना अच्छा बनाया नहीं, बजट की बहस, ससुराल की चर्चा-जिसके सब पहलुओं पर विस्तार से निर्णय लिए गए थे आदि-आदि विषयों का कोई महत्त्व नहीं रहा।

अब बरसात में भीगते हुए उसे ख़ुशी हुई कि वह घिर गई है। कुछ दिन पहले, जो अब लम्बा अरसा महसूस होता था, उस रात जब उसने उसके बाहर जाने के बाद घर का दरवाज़ा बन्द कर लिया था, उसे उसकी कोई ख़बर नहीं मिली थी। दोनों में हमेशा की तरह खाने पर बहस हुई थी, उसने इस पर घर छोड़ने की धमकी दी थी, जिसके जवाब में उसने कहा था,‘तो फिर जाओ,’ और यह कहकर दरवाज़ा खोल दिया था, और रात में ही वह चली गई थी। इसके बाद उसने कई दिन तक दरवाज़े की कंडी नहीं लगाई और आशा करता रहा कि शायद वह वापस लौट आए, लेकिन वह नहीं आई।

अब उसने हिम्मत करके कहा,‘तुमसे मिलने की उम्मीद नहीं थी,’ और उसने जवाब दिया,‘तुम सोचते हो कि मैं जाकर डूब मरूंगी?’
वह बोला,‘डर तो लगा था, हां।’
‘तुमने अगल-बगल के कुंओं और तालाबों में तलाश की होगी?’
‘या नदी में’ उसने जोड़ा।
‘नहीं की’
‘अगर तुम यह करते तो मुझे ताज्जुब होता।’
वह बोला,‘लेकिन तुम डूबने तो गई नहीं फिर कैसे सोचती हो कि मैं तुम्हें ढूंढ़ता?’
यह सुनकर उसने ज़मीन पर पैर पटका और बोली,‘साफ़ है कि तुम्हारे दिल नहीं है।’
‘तुम एकदम तर्कहीन हो,’ वह बोला
‘हे भगवान, तुमने तो मेरा चरित्र पढ़ना शुरू कर दिया। यह तो मेरा दुर्भाग्य ही है कि इस वक़्त अचानक बारिश होने लगी और मुझे यहां आना पड़ा।’
‘नहीं, बारिश अच्छी हुई, जिसने हमें फिर से मिला दिया। क्या अब मैं पूछ सकता हूं कि इतने-दिन तुम कहां और क्या करती रहीं?’
‘जवाब देना ज़रूरी है क्या?’ उसे उसकी आवाज़ में चिन्ता की एक लहर महसूस हुई, जिससे वह ख़ुश हुआ। क्या उसे वापस आने को तैयार किया जा सकता है? यह वाक्य पूरा बनकर उसका ज़बान पर उतर आया, लेकिन उसने उसे रोक लिया और वापस कर दिया। सिर्फ़ यह पूछा,‘तुम्हें कभी मेरी चिन्ता नहीं हुई? तुम यह जानना नहीं चाहती कि इतने महीने मैं क्या करता रहा?’ उसने जवाब नहीं दिया। सिर्फ़ ऊपर से नीचे गिरता पानी देखती रही।

हवा की दिशा अचानक बदल गई और पानी का एक फुहारा उसके चेहरे पर आ गिरा। दूसरे को बहाना मिल गया कि रूमाल निकाल कर उसकी तरफ़ लपका। वह छिटककर अलग होने लगी और चीखी,‘मेरी चिन्ता मत करो।’

‘बहुत भीग गई हो...’ पेड़ की एक डाल भी हिली और उसका पानी भी उस पर गिरा। वह उंगली से इशारा करके कहने लगा,‘बेकार भीग रही हो तुम। ज़रा इस तरफ़ खिसक आओ। तुम चाहो तो मैं तुम्हारी जगह खड़ा हो जाता हूं। उसे उम्मीद थी कि इस चिन्ता से वह प्रभावित होगी लेकिन उसने जवाब दिया,‘मेरी चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है।’ सड़क पर बहती पानी की धार को वह आंख मिचकाकर देखने लगी। ‘मैं तुम्हारे लिए दौड़कर छाता ले आता हूं या टैक्सी...’
इस पर उसने आंखें तरेरीं और चलने को हुई। दूसरे ने ऐसा ही कुछ और कहा जिस पर वह पूछने लगी, ‘मैं तुम्हारा खिलौना हूं क्या?’
‘मैंने खिलौने लायक तो कोई बात कही नहीं।’
‘तुम सोचते हो कि जब चाहे मुझे उठा लो और जब चाहे फेंक दो। यह खिलौनों के साथ ही किया जाता है।’
‘मैंने तुम्हें जाने के लिए तो नहीं कहा?’
‘अब में ऐसा कुछ सुनने को तैयार नहीं,’ वह बोली।
‘मैं शायद यह कहने के लिए मरा जा रहा हूं कि मुझे बहुत अफ़सोस है,’ वह कहने लगा।
‘हो सकता है, लेकिन यह किसी और से कहो।’
‘और कौन है यह कहने के लिए?’ उसने पूछा।
‘यही तो तुम्हारी समस्या है, है न?’ उसने पूछा।
‘इससे मुझे कोई मतलब नहीं।’
‘तुम्हारे पास दिल है या नहीं?’ उसने आजिज़ी से कहा।
‘जब मैं कहता हूं कि मुझे अफ़सोस है, तब मेरा विश्वास करो। अब मैं बदल गया हूं’
‘मैं भी,’वह बोली। ‘अब मैं पुरानी वाली नहीं रही। मैं किसी से कोई उम्मीद नहीं करती और न निराश होती हूं।’
‘यह नहीं बताओगी कि इतने दिन क्या किया?’ उसने आजिज़ी से कहा। उसने सिर हिला दिया।

वह बोला,‘किसी ने बताया कि तुम हरिजन सेवा या कोई वैसा काम कर रही हो। देखो, मैं तुम्हारी कितनी जानकारी रखता हूं।’ उसने जवाब में कुछ नहीं कहा। उसने पूछा,‘सारा वक़्त तुम यहां रहती हो या...?’ ज़ाहिर था कि वह उसका पता जानने की कोशिश कर रहा था। उसने बारिश पर एक नज़र डाली, फिर मायूस नज़र से उसे देखा। वह बोला,‘यह बारिश मैंने तो बुलाई नहीं है। हमें इसका एक साथ सामना करना है।’

‘यह ज़रूरी नहीं है। इस तरह मुझे कोई नहीं रोक सकता,’ यह कहकर वह एकदम उठी और बारिश में ही भागने लगी। वह पीछे से चिल्लाया,‘रुको, रुक जाओ। मैं वादा करता हूं कि और कुछ नहीं कहूंगा। वापस आ जाओ, और मत भीगो।’ लेकिन वह रुकी नहीं और पानी के परदे के पीछे ग़ायब हो गई।

  • आर. के. नारायण की अंग्रेज़ी कहानियाँ और उपन्यास हिन्दी में
  • भारतीय लेखकों की अंग्रेज़ी कहानियां और उपन्यास हिन्दी में
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां