जैसा तुम चाहो (नाटक कहानी के रूप में) : विलियम शेक्सपियर
As You Like It (English Play in Hindi) : William Shakespeare
पुराने समय की बात है । किसी देश में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा दयालु, धर्मप्रिय और परोपकारी था। उस राजा का एक वजीर था, जो राजा के विपरीत स्वभाववाला था । कुटिलता, अधर्म और स्वार्थ उसकी रग-रग में शामिल थे। उसकी दृष्टि हमेशा राजसिंहासन पर लगी रहती थी । वह किसी-न-किसी तरह से उस पर अधिकार कर लेना चाहता था। राजा की रोजा नामक एक पुत्री थी, वहीं वजीर की बेटी का नाम शीलिया था। रोजा और शीलिया में गहरी मित्रता थी। दोनों एक-दूसरे के बिना रहने की कल्पना तक नहीं कर सकती थीं । इसलिए उनका अधिकांश समय साथ-साथ बीतता था ।
आखिरकार एक दिन षड़यंत्र रचकर वजीर ने राजा को वहाँ से भागने को विवश कर दिया और स्वयं सिंहासन का अधिकारी बन बैठा। राजा ने अपने कुछ वफादार साथियों के साथ जंगल में चले जाने का निश्चय कर लिया। रोजा भी उसके साथ जाने की तैयारी करने लगी । लेकिन जाने से पूर्व एक बार वह अपनी सखी से मिलना चाहती थी। अतः वह अंतिम बार शीलिया से मिलने आई । बिछड़ने की बात सोचकर दोनों की आँखों से आँसू बहने लगे। वे एक-दूसरे के गले से लिपटकर पुराने दिनों को याद करने लगीं।
दोनों एक-दूसरे के बिना कैसे रहेंगी, यह सोच-सोचकर वे दुखी होने लगीं । शीलिया किसी कीमत पर रोजा को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहती थी। अतः वह हठ करते हुए बोली, “रोजा, हमारे पिता परस्पर कितने भी गहरे शत्रु क्यों न हों, लेकिन हमारी मित्रता का बंधन कभी नहीं टूट सकता। हम हमेशा एक साथ रही हैं और हमेशा एक ही साथ रहेंगी। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं जाने दूँगी। यदि किसी ने तुम्हें मुझसे दूर करने की कोशिश की तो मैं अपने प्राण त्याग दूँगी ।"
अंततः बेटी के हठ के आगे वजीर को झुकना पड़ा और उसने रोजा को शीलिया के साथ रहने की इजाजत दे दी। बेटी की खुशी के लिए राजा ने भी उसकी बात स्वीकार कर ली और अकेला ही जंगल में चला गया। शुभ मुहूर्त में वजीर का राज्याभिषेक हुआ और वह देश का नया राजा घोषित हो गया।
एक बार नगर में एक बहुत सुंदर युवक आया। उसकी कोमल देह, सौम्य चेहरा और मासूम आँखें हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थीं। अभी उसकी उम्र अधिक नहीं थी, परंतु नगर में कदम रखते ही उसने शाही पहलवानों को कुश्ती की चुनौती दे डाली। जिसने भी यह बात सुनी, उसके मुँह से युवक के लिए दर्द भरी ठंडी आह निकल गई। लोगों ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह अपनी चुनौती पर अड़ा रहा। उसकी मृत्यु की कल्पना करके युवतियाँ रो पड़ती थीं। सभी मान चुके थे कि उसकी आयु बहुत कम है।
राजा ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली थी। फिर उसने एक द्वंद्व युद्ध का आयोजन किया, जिसमें युवक और शाही पहलवानों को अपना दमखम दिखाने का पूरा अवसर मिलना था।
निर्धारित दिन पूरा नगर रंगभूमि में एकत्र हो आया। वे दबी जुबान में युवक के साहस की प्रशंसा करते हुए उसकी कुशलता की प्रार्थना कर रहे थे । अखाड़े के बीचोबीच वह युवक निर्भय सिंह की भाँति खड़ा हुआ था। उसके सामने शाही पहलवान तलवार लिये उसका मस्तक काटने को आतुर हो रहे थे।
इस द्वंद्व को देखने के लिए राजा के साथ रोजा और शीलिया भी आई थीं। युवक का साहस देखकर रोजा मन- ही-मन उसकी प्रशंसा कर रही थी । लेकिन उसे इस बात का भय भी था कि शाही पहलवानों के सामने यह युवक अधिक देर तक नहीं टिक पाएगा । उसका मन बार-बार कह रहा था कि वह युवक के पास जाकर उसके हाथ से तलवार छीन ले और उसे अपने सीने से लगाकर यहाँ से कहीं दूर ले जाए।
शर्म और लज्जा के कारण उसके गाल लाल हो गए थे। उसने अपने पास बैठी शीलिया से कहा, “शीलिया, यह द्वंद्व नहीं, पागलपन है । यह युवक व्यर्थ में अपने प्राण देने को व्याकुल हो रहा है । शाही पहलवान कब इसकी गरदन काट डालेंगे, इसे पता भी नहीं चलेगा । इस दंगल को किसी तरह से रुकवाओ, अन्यथा इसके जमीन पर गिरने से पहले मेरे दिल की धड़कनें थम जाएँगी। मैं इसकी मृत्यु कदापि नहीं देख सकती।”
शीलिया समझ गई कि रोजा मन-ही-मन युवक से प्रेम करने लगी है। अतः उसने युवक की प्राणरक्षा का निश्चय कर लिया। वह अपने स्थान पर खड़ी हुई और युवक की प्रशंसा करते हुए बोली, “तुम जैसा वीर युवक हमने आज तक नहीं देखा। हम तुम्हारी इस वीरता और साहस का सम्मान करते हैं। दंगल में शाही पहलवानों के सामने निडर होकर खड़ा होना ही तुम्हारी वीरता को प्रमाणित करता है । इसलिए अब तुम्हें द्वंद्व करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम द्वंद्व का हठ छोड़ दो, अन्यथा व्यर्थ में ही मारे जाओगे।"
"राजकुमारी, इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है । मैं किसके लिए जीवित रहूँगा? यही कारण है कि मैं प्राणों का मोह त्यागकर द्वंद्व के लिए यहाँ आया हूँ। मैंने एक बार जो निश्चय कर लिया है, उससे पीछे हटना मेरे वश में नहीं है। वैसे भी, वीर व्यक्ति के मुख से निकले वचन कभी वापस नहीं लौटते हैं। इसलिए आप मुझे द्वंद्व की आज्ञा दें ।"
शीलिया रोजा की ओर देखकर धीरे से बोली, “ रोजा, मैंने इस युवक को बचाने की भरसक कोशिश की है। लेकिन जब यह स्वयं अपने प्राण दे देना चाहता है तो भला हम इसे कैसे रोक सकते हैं! उचित यही है कि हम शांत होकर द्वंद्व को देखें।"
रोजा के चेहरे पर पीड़ा के भाव उभर आए। कुछ ही देर में यह युवक मारा जाएगा, इस बात ने उसे बुरी तरह से व्यथित कर दिया था।
राजा ने द्वंद्व आरंभ करने की आज्ञा दे दी । शाही पहलवान ने शीघ्रता से अपनी तलवार निकालकर आक्रमण वार को बचाया और पलटकर प्रहार कर दिया। युवक भी अपनी तलवार निकाल चुका था । उसने पहलवान पर वार किया। और फिर दंगल देखनेवाले दर्शकों की आँखें फटी की फटी रह गईं, वे बार-बार आँखें मलने लगे। युवक ने एक ही वार में पहलवान की तलवार के दो टुकड़े कर दिए थे। पूरा अखाड़ा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। युवक की बिजली के समान फुरती और प्रहार देखकर रोजा आश्चर्यचकित थी। उसके चेहरे पर पीड़ा और दुख के स्थान पर प्रसन्नता के भाव दिखाई देने लगे।
राजा की आज्ञा से प्रधानमंत्री ने आगे बढ़कर युवक की पीठ थपथपाई और प्रश्न किया, “हे युवक! तुम कौन हो? तुम्हारा नाम क्या है और तुम कहाँ से आए हो? तुम किसके पुत्र हो? तुम जैसे वीर को किसने जन्म दिया है? हम सभी तुम्हारा परिचय जानने के लिए व्याकुल हैं।"
वहाँ उपस्थित सभी लोग युवक का परिचय जानने को उत्सुक थे, साथ ही रोजा को इस प्रश्न के उत्तर की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा थी। वह ध्यानपूर्वक युवक को निहारने लगी । युवक ने सिर झुकाकर राजा को प्रणाम किया और अपना परिचय देते हुए बोला, “महाराज, मेरा नाम ऑरलैंडो है। मैं वीर रोलैंड का पुत्र हूँ, जो कभी इस दरबार में एक प्रतिष्ठित दरबारी रह चुके हैं ।"
"तुम रोलैंड के पुत्र हो ? उसी रोलैंड के जो पुराने राजा के घनिष्ठ मित्र थे ।" राजा ने चौंकते हुए प्रश्न किया। “जी, आपने बिलकुल ठीक पहचाना। मेरे पिता और पुराने राजा परस्पर बहुत गहरे मित्र थे ।" युवक विनम्र स्वर में बोला।
"बस युवक, हमें तुम्हारा और परिचय नहीं जानना । तुम्हें शायद यहाँ के कानून नहीं मालूम, इसलिए तुमने इस राज्य की सीमा में प्रवेश करने का दुसाहस किया है। ऑरलैंडो, यहाँ शत्रुओं और उनके वंशजों का प्रवेश निषेध है। इसका उल्लंघन करनेवाले को हम हाथी के पैरों तले कुचलवा देते हैं । तुम्हारे पिता भी हमारे शत्रुओं में सम्मिलित हैं। हम चाहें तो इसी समय तुम्हें दंडित कर सकते हैं । परंतु तुम अभी नासमझ और नादान हो, इसलिए हम तुम्हारा अपराध क्षमा करते हैं और इस राज्य से अतिशीघ्र चले जाने का आदेश देते हैं ।" राजा ने युवक को घूरते हुए अपना निर्णय सुनाया।
इधर, युवक का परिचय जानकर रोजा मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हो रही थी। इतने समय के बाद उसे कोई ऐसा व्यक्ति मिला था, जो उसके पिता के मित्र का पुत्र था। वह उसके साथ बहुत सी बातें करना चाहती थी, उसके साथ अधिक-से-अधिक समय बिताना चाहती थी । लेकिन राजा का आदेश सुनकर वह भौंचक्की रह गई। उसके पिता को छीननेवाला आज उसके चहेते युवक को भी उससे अलग कर रहा था । उदासी और निराशा से उसका चेहरा मुरझा गया।
रोजा की यह दशा शीलिया से छिपी नहीं थी । वह अपनी सखी को किसी कीमत पर उदास नहीं देख सकती थी । अत: वह पिता के पास गई और उन्हें समझाते हुए बोली, “पिताजी, आपकी शत्रुता ऑरलैंडो के पिता के साथ थी। इसमें भला इसका क्या दोष है ? किसी की गलती की सजा उसकी संतान को देना कहाँ का न्याय है? कृपया आप पुरानी शत्रुता को भूलकर ऑरलैंडो को क्षमा कर दें।"
“बेटी, जैसे सर्प की भाँति उसकी संतान की भी डसने की प्रवृत्ति होती है, उसी प्रकार शत्रु की संतान को भी अपना शत्रु समझना चाहिए। वह कभी भी हमारा अहित कर सकती है। अतः मैं अपने किसी शत्रु को क्षमा नहीं कर सकता। शत्रु की पुत्री होने के कारण मेरे लिए रोजा भी किसी शत्रु से कम नहीं है । मैं केवल तुम्हारी खुशी के कारण उसे सहन कर रहा हूँ, अन्यथा मैं कभी का उसे राज्य से बाहर निकलवा चुका होता । परंतु लगता है कि अब पानी सिर से ऊपर निकलता जा रहा है। इसलिए अपनी सखी से कह दो कि वह यह राज्य छोड़कर आज ही यहाँ से चली जाए।'' राजा ने जहर उगलते स्वर में कहा ।
पिता की बात सुनकर शीलिया हतप्रभ रह गई। अब तक वह यही सोचती आई थी कि उसके पिता रोजा को भी अपनी पुत्री के समान प्यार करते हैं । परंतु आज उसकी आँखों पर बँधी पट्टी उतर गई थी । वह हठ करते हुए बोली, “पिताजी, अगर मैं ही उसे न जाने दूँ, तब आप क्या करेंगे?"
"मैं तुम्हें भी उसके साथ राज्य से निकल जाने का आदेश दे दूँगा । अगर तुम अपनी सखी के बिना नहीं रह सकतीं तो तुम भी खुशी-खुशी उसके साथ जा सकती हो।" राजा ने दो-टूक जवाब दिया।
यद्यपि उसने शीलिया को भी जाने के लिए कह दिया था, फिर भी उसे विश्वास था कि एक मामूली लड़की के लिए उसकी पुत्री कभी भी राजसी सुखों और ऐश्वर्यों को नहीं छोड़ सकती । परंतु यह उसका भम था। शीलिया ने उसी समय रोजा के साथ राज्य छोड़ने का निश्चय कर लिया था।
उसी दिन सूर्यास्त के साथ-साथ दोनों सखियों ने महल छोड़ दिया। उन्होंने सुना था कि रोजा के पिता आर्डन नामक जंगल में अपने साथियों के साथ आदिवासियों का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अब वे ही उनके एकमात्र सहारा थे। अतः दोनों उन्हीं को ढूँढ़ने चल पड़ीं । परंतु आर्डन जंगल किस ओर है, इसके बारे में वे पूरी तरह से अनजान थीं। चूँकि मार्ग में कई वन और बीहड़ रास्ते थे, इसलिए उन्होंने अपने वेश बदल लिये थे। लंबी होने के कारण रोजा ने पुरुष का तथा शीलिया ने ग्वालिन का वेश बना लिया था । वेश बदलने के साथ-साथ उन्होंने अपने नाम भी बदल लिये थे। रोजा ने अपना नाम गैनीमीड और शीलिया ने एलिना रख लिया था।
जिन राजकुमारियों ने कभी रेशमी कालीन से नीचे पैर नहीं रखा था; जिनके पैरों में हमेशा फूल सजते थे, आज समय बदलने के कारण वही राजकुमारियाँ काँटों भरे रास्ते पर चल रही थीं ।
चलते-चलते वे जंगल को पार कर दूसरी सीमा पर जा पहुँचीं । वे निरंतर कई घंटों से चल रही थीं, इसलिए उन्हें भूख-प्यास लग आई थी। तभी वहाँ एक गड़रिया दिखाई दिया, जो अपनी भेड़-बकरियों को हाँकते हुए घर को लौट रहा था। गैनीमीड ने आगे बढ़कर उससे पूछा, "क्या हमें रात गुजारने के लिए यहाँ कोई जगह मिल सकती है? हम बहुत दूर से आ रहे हैं और कुछ देर विश्राम करना चाहते हैं ।"
गड़रिया सरल और अतिथिप्रिय था । विनम्र स्वर में बोला, “यहाँ जगह मिलना बहुत मुश्किल है। लेकिन आप घबराएँ नहीं। मेरा घर पास ही है। आज रात आप वहीं चलकर विश्राम करें। मुझसे जो बन सकेगा, आपका सत्कार करूँगा।" यह कहकर वह उन्हें अपने घर ले आया और उनकी खूब खातिरदारी की।
गड़रिए का रूखा-सूखा भोजन उन्हें पकवान के समान लग रहा था। उन्होंने पेट भरकर खाना खाया और बिस्तर पर जाकर लेट गए। सोने से पूर्व उन्होंने परस्पर आगे की योजना पर विचार किया । वे जानते थे कि मंजिल पाने में अभी उन्हें अनेक दिन लग जाएँगे। अतः उन्होंने निश्चय किया कि वे कुछ दिन उसी गाँव में रहकर वहाँ की भाषा और रहन-सहन के तरीके सीखेंगे। इससे न तो उन्हें भविष्य में किसी प्रकार की परेशानी होगी और न ही कोई उन्हें पहचान सकेगा। साथ-ही-साथ वह राजा के बारे में भी आवश्यक जानकारी जुटा लेंगे। इसके बाद वे दोनों लंबी तानकर गहरी नींद में सो गए।
सुबह उठते ही उन्होंने गड़रिए को बुलाया और उसे मुहरों की थैली देते हुए बोले, “यहाँ के शांत और सुंदर वातावरण ने हमारा मन मोह लिया है। इसलिए हम कुछ दिन यहीं रहना चाहते हैं। लेकिन हमारे यहाँ रहने से तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं होगी?"
“इसमें परेशानीवाली कौन सी बात है ? यह घर आपका है और मैं आपका सेवक हूँ । आप जब तक चाहें, यहाँ रह सकते हैं। मेरे लिए इससे बढ़कर प्रसन्नता की बात और क्या होगी ? " गड़रिया मुहरों की थैली कमर में खोंसते हुए बोला।
गड़रिए के जाने के बाद दोनों तैयार हुए और घूमने के लिए बाहर निकले। वहाँ रोजा को प्रत्येक वृक्ष और चट्टान पर अपना नाम लिखा दिखाई दिया। उसे बहुत आश्चर्य हो रहा था। कुछ वृक्षों पर उसके नाम के साथ प्रेम और विरह के गीत भी लिखे हुए थे। रोजा समझ गई कि अवश्य यह कार्य ऑरलैंडो का है । और एक दिन उसे पहाड़ों पर ऑरलैंडो दिखाई दे गया । उसकी हालत पागलों जैसी हो गई थी। वह रोजा को पुकारते हुए भटक रहा था।
रोजा के दिल से वेदनायुक्त एक आह निकली और वह ऑरलैंडो को बाँहों में भरने के लिए तड़प उठी। लेकिन शीघ्र ही उसने अपनी भावनाओं को सीने में ही दफना दिया। अभी स्वयं को उसके समक्ष प्रकट करने का उचित अवसर नहीं आया था। फिर भी, वह उसके पास जाकर बोली, “हे युवक! इस भयंकर वन में तुम किसे पुकारते फिर रहे हो? यह रोजा कौन है ?"
ऑरलैंडो ने नजर उठाकर गैनीमीड को देखा । एक पल के लिए उसे लगा कि शायद उसने उसे कहीं देखा है। परंतु दिमाग पर बहुत जोर देने के बाद भी उसे कुछ याद नहीं आया । वह सोच भी नहीं सकता था कि जिसे पुकारते हुए वन-वन भटक रहा है, वही उसके सामने खड़ी थी। वह धीरे से बोला, "रोजा मेरी प्रेयसी है । मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ। उसी की याद में तड़पकर मैं यहाँ भटक रहा हूँ।"
अपने प्रति ऑरलैंडो की दीवानगी देखकर रोजा भाव-विभोर हो गई। आज तक किसी ने उसे इतना प्यार नहीं किया था। उसका दिल किया कि वह ऑरलैंडो को चूम ले । लेकिन फिर खुद को सँभालते हुए बोली, “मित्र, तो तुमने ही यहाँ के वृक्षों और चट्टानों पर रोजा का नाम लिखा है । मित्र, मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय बता सकता हूँ, जिससे तुम प्रतिदिन रोजा से मिल सकते हो।"
“ऐसा कौन सा उपाय है, जो मुझे मेरी रोजा से मिलवा देगा? जल्दी बताओ, मैं उससे मिलने को बेचैन हो रहा हूँ।''ऑरलैंडो ने उत्सुकतावश कहा।
“मित्र, पास ही मेरा घर है। तुम प्रतिदिन वहाँ आ जाया करो। मैं रोजा बनकर तुमसे प्रेम भरी बातें किया करूँगा। तुम मुझसे वैसे ही बात करना, जैसी तुम रोजा के साथ करना चाहते हो। इससे तुम्हारा दिल बहल जाया करेगा। यदि ईश्वर चाहेगा तो एक दिन तुम्हें तुम्हारी रोजा अवश्य मिलेगी।"
उपाय सुनकर ऑरलैंडो बहुत खुश हुआ और उसने अगले दिन से गैनीमीड के घर जाना आरंभ कर दिया। वह उसे ‘रोजा' कहकर पुकारता था। धीरे-धीरे उसे लगने लगा कि वह उसके बिना नहीं रह सकता।
एक दिन ऑरलैंडो जब रोजा से मिलने आ रहा था तो मार्ग में एक वृक्ष के नीचे उसे एक पुरुष सोता दिखाई दिया। वह उसका भाई ओलिवर था । ध्यान से देखने पर ऑरलैंडो उसे पहचान गया। ओलिवर ने उसपर कई अत्याचार किए थे। पिता की संपत्ति हड़पने के लिए उसने ऑरलैंडो को घर से बाहर निकलवा दिया था। फिर उसे मारने के लिए अनेक षड़यंत्र रचे । एक बार उसने उसे मकान में जिंदा जलाने की कोशिश की। परंतु वह वहाँ से सुरक्षित निकल आया। फिर तलवारबाज भेजकर उसे मारने का प्रयास किया। लेकिन किस्मत का धनी ऑरलैंडो वहाँ से भी बच निकला।
आज कई दिनों के बाद उसे ओलिवर दिखाई दिया था। लेकिन उसे देखकर ऑरलैंडो का मन घृणा और क्रोध से भर उठा। वह चुपचाप वहाँ से जाने लगा। तभी उसे एक शेरनी दिखाई दी, जो दबे पाँव सोते हुए ओलिवर की ओर बढ़ रही थी। यद्यपि ओलिवर ने हमेशा उसका बुरा चाहा था, परंतु फिर भी वह उसका भाई था। वह अपनी आँखों के सामने उसे मरते हुए नहीं देख सकता था । उसने बिना एक पल की देरी किए तलवार निकाली और शेरनी पर आक्रमण को तैयार हो गया।
उसे अपनी ओर आते देख शेरनी सतर्क हो गई और ओलिवर को छोड़कर ऑरलैंडो पर झपट पड़ी। उसने पंजे के वार से उसे घायल कर दिया। लेकिन वह हार माननेवालों में से नहीं था । उसने तलवार शेरनी के पेट में घुसेड़ दी। एक भयंकर गर्जना करके शेरनी वहीं ढेर हो गई। इसी बीच ओलिवर की आँख खुल गई थी। सारी बात समझ में आते ही उसका मन पश्चात्ताप से भर उठा। वह ऑरलैंडो के पैरों में गिर पड़ा और अपने पापों की क्षमा माँगने लगा।
उसके बहते आँसू देखकर ऑरलैंडो के मन का मैल भी धुल गया। उसने उसे गले से लगा लिया। चूँकि ऑरलैंडो बुरी तरह से जख्मी हो गया था, इसलिए उसने रोजा को वहीं बुलाने के लिए ओलिवर को भेजा।
इधर, रोजा और शीलिया बड़ी बेसब्री से ऑरलैंडो के आने की प्रतीक्षा कर रही थीं। 'बहुत देर हो चुकी है, अब तक तो उसे आ जाना चाहिए।' दोनों के दिमाग में यही बात घूम रही थी।
तभी ओलिवर ने घर में प्रवेश किया और सबसे पहले एलिना को देखा। उसके रूप-सौंदर्य ने ओलिवर को मोहित-सा कर दिया। वह उसे एकटक देखते हुए वहीं खड़ा रहा। एलिना का भी कुछ ऐसा ही हाल था। ओलिवर के गठीले बदन, नीली आँखों और प्यारी मुसकान ने उसका सबकुछ छीन लिया था। रोजा एक ओर खड़ी दोनों को देख रही थी। वह समझ गई कि एलिना को भी उसका मनपसंद जीवन साथी मिल गया है। उसने ओलिवर से उसका परिचय पूछा।
“मेरा नाम ओलिवर है । मैं ऑरलैंडो का भाई हूँ । उसे एक शेरनी ने घायल कर दिया है। इस समय वह पहाड़ की चोटी पर बैठा आप लोगों की प्रतीक्षा कर रहा है । आप जल्दी से मेरे साथ वहाँ चलें ।" वह एक साँस में सबकुछ बोल गया।
तत्पश्चात् तीनों शीघ्रता से ऑरलैंडो के पास पहुँचे। रोजा ने उसके घावों पर मरहम-पट्टी की। वहीं अवसर देखकर ओलिवर ने ऑरलैंडो से कहा कि वह एलिना से प्यार करने लगा है और उससे विवाह करना चाहता है। ऑरलैंडो प्रसन्नता से भर उठा। लेकिन सहसा उसके चेहरे पर उदासी छा गई । वह दुखी स्वर में बोला, “तुम कितने भाग्यवान् हो, ओलिवर ! तुम जिसे प्रेम करते हो, वह तुम्हारे पास है । न जाने मेरी रोजा कहाँ होगी! वह मुझे मिलेगी भी या नहीं ?"
"इसका मतलब यह है कि तुम मुझे अपनी रोजा नहीं मानते हो?" गैनीमीड ने चुटकी ली।
“मैं तुम्हें रोजा समझकर तुमसे अपने दिल की सारी बातें करता हूँ। लेकिन चाहकर भी तुम्हारे अंदर मुझे मेरी रोजा दिखाई नहीं देती। काश, मेरी रोजा मेरे पास आ सकती !" यह कहकर ऑरलैंडो ने ठंडी आह भरी ।
"ऑरलैंडो ! सब नजरों का खेल होता है। यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारी वास्तविक रोजा बन सकता हूँ।'' गैनीमीड उसे पुनः छेड़ते हुए बोला ।
"मित्र, तुम क्यों मेरे साथ मजाक कर रहे हो? ऐसा कभी नहीं हो सकता ।" ऑरलैंडो निराश स्वर में बोला। 'तो फिर लो, तुम्हारी रोजा तुम्हारे सामने आ गई है ।" यह कहकर गैनीमीड ने अपना पुरुष वेश उतार फेंका। अचानक रोजा को सामने देखकर ऑरलैंडो आश्चर्य से भर उठा। उसे सबकुछ स्वप्न की तरह लग रहा था । उसने अपनी बाँहें फैला दीं और रोजा दौड़कर उनमें समा गई। इस प्रकार दोनों प्रेमियों का मिलन हो गया।
फिर शीलिया ने उन्हें अपने वहाँ आने का प्रयोजन बताया। ओलिवर महाराज के ठिकाने के बारे में अच्छी तरह से जानता था। वह सभी को साथ लेकर उनके पास पहुँच गया। उस समय महाराज के शरीर पर जंगली पोशाक थी। उनकी दाढ़ी और बाल बहुत बढ़ चुके थे। ऐसे रूप में भी रोजा ने उन्हें पहचान लिया और उनसे लिपटकर स्नेह जताने लगी।
इसके बाद शीलिया ने उनका दोनों युवकों से परिचय करवाया। अपने मित्र के पुत्रों को देखकर महाराज बड़े प्रसन्न हुए। इससे अधिक प्रसन्नता उन्हें तब हुई जब उन्हें पता चला कि ऑरलैंडो रोजा से और ओलिवर शीलिया से विवाह करना चाहते हैं ।
और फिर अगले दिन ही महाराज ने विधिपूर्वक दोनों प्रेमी जोड़ों को विवाह के सूत्र में बाँध दिया। दोनों नवविवाहित जोड़े जब महाराज का आशीर्वाद ले रहे थे, तभी वहाँ एक दूत आया। उसके पास एक पत्र था। महाराज पत्र पढ़ने लगे। उसमें लिखा था—
'महाराज !
कुछ दिन पूर्व आपकी हत्या के उद्देश्य से मैं वन में आया था। यहाँ मेरी भेंट एक साधु से हुई। उनके ज्ञानवर्द्धक उपदेशों और दर्शन मात्र से मेरी आँखें खुल गई । जिस लोभ और मोह में फँसकर मैंने आपके साथ विद्रोह करने का पाप किया था, मेरे मन ने उन्हें त्याग दिया है। अब न तो मुझमें मोह बाकी है और न किसी प्रकार का लोभ। मेरा मन पूरी तरह से विरक्त हो चुका है। अत: महाराज, मैं आपको आपका राज्य सौंपकर अपना बाकी जीवन ईश्वर-भक्ति में बिताना चाहता हूँ। आशा है, मेरे अक्षम्य अपराधों को क्षमा करके आप मुझे क्षमा कर देंगे।
पत्र मिलते ही आप वापस लौट आएँ और मुझ पापी को प्रायश्चित्त का अवसर दें।
आपका सेवक'
इस शुभ पत्र ने उस शाम को और प्रसन्नता से भर दिया। महाराज की छीनी हुई सारी खुशियाँ उन्हें पुनः प्राप्त हो गईं ।
(रूपांतर - महेश शर्मा)