अक्लमन्द वजीर शहजादा : पंजाबी लोक-कथा

Aqlmand Wazir Shezada : Punjabi Lok-Katha

एक समय की बात है कि एक शहर में एक राजा रहा करता था। उसके सात विवाह हुए थे, परन्तु उसके यहाँ कोई सन्तान नहीं थी। वह इस बात को लेकर हमेशा परेशान रहता था। वह बहुत से सन्त-महात्माओं के पास गया, परन्तु उसे इस बात का पता कहीं से भी नहीं चला कि उसके भाग्य में कोई सन्तान है भी या नहीं।

एक बार वह एक साधु के पास गया और उसकी बारह वर्षों तक सेवा की। साधु उस पर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने राजा को कहा, "वत्स ! जो कुछ माँगना है, माँग लो।" राजा ने कहा, “महाराज ! मेरे पास आपका दिया हुआ सब कुछ है।" साधु ने फिर से पूछा, "वत्स ! जो कुछ माँगना है, माँग लो।" राजा ने फिर वही उत्तर दिया। साधु ने फिर से पूछा, “वत्स ! यह तीसरा वचन है, खाली न जाए। जो कुछ चाहिए, माँग लो। राजा ने कहा, “महात्मा जी ! मुझे एक पुत्र दे दो।" साधु ने कहा, "वत्स ! आज से नौ माह पश्चात् तुम्हारे घर एक पुत्र जन्म लेगा।" साधु ने राजा को घर भेज दिया।

राजा अपने घर वापस आया। ठीक नौ महीने बाद उसके घर एक पुत्र ने जन्म लिया। अब राजा की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा। उस साधु को श्रद्धांजलि देते हुए राजा ने उसका नाम साधु दयाल रखा। जब साधु दयाल बड़ा हुआ तो वह वज़ीर के लड़के के साथ खेलने के लिए जाया करता था। जब वह सोलह वर्ष से ऊपर का हुआ, तो उसकी मित्रता वज़ीर के लड़के के साथ गहरी हो गई। वे दोनों हमेशा इकट्ठे ही रहते और खाते-पीते तो राजा ने सोचा, मेरे पुत्र की आदतें खराब होती जा रही हैं। किसी-न-किसी तरह इनमें फूट डाली जाए, ताकि साधु दयाल वज़ीर-पुत्र से अलग हो जाए।

यह सोचकर राजा ने कुछ ठगनियों को बुलवाया और उनसे पूछा, "तुम क्या कर सकती हो ?” उनमें से एक ने कहा, “महाराज ! मैं आसमान को फाड़ दूंगी।" दूसरी ने कहा, “मैं उस फटे हुए आसमान को टाँका लगा दूंगी।" राजा ने उन दोनों को रोके रखा और शेष को वापस भेज दिया। फिर राजा ने उन दोनों को कहा कि मेरा पुत्र साधु दयाल विवाह नहीं करा रहा और वह हर समय वज़ीर के लड़के के साथ रहता है। उसे वज़ीर के लड़के से सदा के लिए अलग करना है। एक ठगनी ने कहा, "मेरे लिए एक-एक सूट और आभूषण बनवा दो।" राजा के पास कोई कमी न थी। उसको सूट और आभूषण बनवा कर दे दिए और कह दिया, “वज़ीर का लड़का और साधु दयाल शिकार पर जाएँगे। तुम उनको काले बाग के पास मिलना।'

इतने में वह दोनों घोड़ों पर सवार होकर शिकार के लिए चल पड़े। ठगनी ने खड़े होकर उन्हें रुकने का इशारा किया तो साधु दयाल ने वज़ीर के लड़के को कहा, “वह देखो ! कितनी सुन्दर औरत खड़ी है और हमें हाथ से इशारा कर रही है। तुम उसके पास जाओ और उसकी बात सुनो।" वज़ीर का लड़का उसकी तरफ गया।

वह बिना बोले हाथ मारकर होंठ हिलाती रही और कुछ समय पश्चात् वह वापस चली गई और वज़ीर का लड़का साधु दयाल के पास आया और उसे बताया कि वह तो कुछ भी नहीं कहती।

दूसरे दिन फिर से वैसा ही हुआ। जब वे दोनों शिकार खेलने के लिए गए तो वही औरत जो एक दिन उनके आगे खड़ी थी, फिर से आकर खड़ी हो गई और उसने फिर से अपने बाजुओं को उठाया।

राजा के लड़के ने वज़ीर के लड़के को कहा, "तुम ही जाकर पता लगाओ कि वह क्या कह रही है ? वज़ीर के लड़के ने कहा, "तुम ही जाओ।" राजा के लड़के ने कहा, "मैं एक राजकुमार हूँ। मैं तुम्हें किस लिए अपने साथ रखता हूँ ?" अब वजीर का लड़का उस औरत के पास चला गया और पूछने लगा, 'हे देवी! आप क्या कह रही थी? किन्तु राजकुमार कहने लगा कि वज़ीर के लड़के ने कुछ भी नहीं कहा। इससे दयाल साधु दयाल क्रोधित होकर अपने महल में आ गया। महल में आकर उसने अपने पिताजी को कहा, "पिताजी ! इस नीच लड़के को मेरी आँखों से दूर कर दो। इसे काटकर इसके रक्त का एक गिलास भरकर मैं पीना चाहता हूँ।" यह सुनकर राजा ने कहा, “क्या बात हो गई ? राजकुमार ने कहा, "पिताजी ! कोई बात नहीं। आप बस इसे जल्दी ही मरवा दो। अब राजा ने वज़ीर के लड़के को कहा, “तुम किसी और शहर में जाकर दुकान कर लो और मैं तुम्हें पाँच हज़ार रुपए दूंगा।" वज़ीर का लड़का मान गया और दुकान करके वहाँ प्रसन्नतापूर्वक रहने लगा।

अब साधु दयाल ने सोचा, “मैं अब किसे मित्र बनाऊँ ?" फिर उसने एक सुनार के लड़के को अपना मित्र बना लिया और उसे एक घोड़ा भी दे दिया।

एक बार वे दोनों शिकार खेलने के लिए गए, तो उन्हें एक काला हिरण दिखाई दिया। उन्होंने अपने घोड़े उसके पीछे लगा दिए। हिरण बहुत दूर निकल गया। साधु दयाल को प्यास लगी। उसने सुनार के लड़के को कहा, "मित्र ! तुम किसी वृक्ष पर चढ़कर देखो कि कहीं तालाब या नहर है, जहाँ से हम पानी पी सकें।" यह सुनकर सुनार के लड़के ने कहा, "हम तो आभूषण बनाने वाले हैं। मुझे क्या पता कि वृक्ष पर कैसे चढ़ा जाता है।" राजकुमार ने सोचा, “यदि इसके स्थान पर वज़ीर का लड़का होता, तो वह अवश्य ही पानी ला देता।" अब राजकुमार स्वयं ही उस वृक्ष पर चढ़ गया। कुछ दूरी पर पानी भाप बनकर उड़ रहा था। वह वहीं गए और दोनों ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई।

कुछ समय पश्चात् उन्होंने देखा कि एक किश्ती आ रही है और उसमें सूर्य के समान चमक झलक रही है। उन्होंने घोड़े बाँधे और खड़े होकर उस तरफ देखने लग गए। इतने किश्ती निकट आ गई। उसमें एक बहुत सुन्दर लड़की बैठी थी, जोकि आभूषणों से लदी हुई थी। उसके शरीर और चेहरे से जैसे बिजली चमक रही थी। साधु दयाल ने उससे पूछा, "तुम्हारा क्या नाम है ? यह सुनकर उस लड़की ने सुरमे की सिलाई अपनी आँखों में डाल ली। राजा के लड़के ने पूछा, "तुम्हारा शहर कौन-सा है ?" उस लड़की ने अपनी चूड़े वाली बाजू ऊपर कर ली। फिर जब उससे कुछ और पूछा कि तुम्हारी कहीं मँगनी हुई है ? या तुम्हारा कहीं विवाह हुआ पड़ा है ? तो उसने चाँदी का एक सिक्का उठाकर अपने हाथ पर रखा और उस पर राख डाल दी। फिर वह किश्ती पर बैठ कर चली गई। अब राजकुमार वहीं पर गिर गया और विलाप करने लग गया। वह कहने लगा, "मुझे वजीर का पुत्र और वही लड़की चाहिए"। सुनार का लड़का घोड़े पर सवार होकर जल्दी से घर गया और राजा को सारी बात बता दी। राजा ने वजीर के लड़के को सन्देश भेजकर वापस बुला लिया। फिर राजा और वज़ीर का लड़का साधु दयाल के पास गए।

वहाँ पहुँचने पर राजा का लड़का उठा और वज़ीर के लड़के को गले लगा कर रोने लग गया। फिर वज़ीर के लड़के ने राजा के लड़के को कहा, "अब तुम बताओ कि कल उस लड़की ने तुम्हें क्या कहा था ?" तो साधु दयाल ने कहा, "जब मैंने उससे उसका नाम पूछा, तो उसने सुरमे की सलाई अपनी आँखों में डाल ली।" वज़ीर के लड़के ने कहा, "उसका नाम नैनाबाद शहजादी है।" फिर राजा के लड़के ने कहा, "जब मैंने उससे उसका नाम पूछा, तो उसने लोटा उल्टा कर दिया। वज़ीर के लड़के ने कहा, “उसका नाम लोटा साहिब है। राजकुमार ने कहा, 'जब मैंने उससे पूछा कि क्या तुम्हारी सगाई हुई है या तुम्हारा विवाह हुआ है, तो उसने चाँदी का रुपया निकाल कर उछालकर अपनी हथेली पर रखा और उस पर राख डाल दी।" वज़ीर के लड़के ने कहा, 'न तो उसकी मँगनी हुई है, न ही उसका विवाह हुआ है। उसने वह रुपया अपने हाथ पर रखकर यह बताया है कि यह रुपया तुम्हारे हाथ में है। इसका मतलब यह है कि तुम उससे विवाह करो। जो उसने रुपए पर राख डाली, उससे उसने यह बताया कि यदि तुम उससे विवाह न करोगे तो तुम्हारे सिर में राख।” फिर राजकुमार ने कहा, "जब मैंने उससे कहा कि उसके शहर का क्या नाम है ? तो उस लड़की ने अपने चूड़े वाली बाजू खड़ी कर दी। यह सुनकर वज़ीर के लड़के ने कहा, "उसके शहर का नाम है, चूहड़पुर।” वज़ीर के लड़के ने कहा, "मित्र ! जो कुछ भी हुआ, वह ठीक ही हुआ। अब तुम उस शहर की ओर चलो और उस सुन्दर लड़की से मिलो।"

दूसरे दिन दोनों अपने घोड़ों पर सवार होकर उस शहर की ओर चल पड़े। चलते-चलते वे चूहड़पुर पहुंच गए। वज़ीर के लड़के ने कहा, “लो मित्र ! अब हम यहाँ आ गए, जहाँ हमने आना था। उन्होंने रहने के लिए स्थान खोजना आरम्भ कर दिया तो वे एक महरी के घर पहुँच गए और उससे रहने के लिए जगह माँगी। उस महरी ने उन्हें रात व्यतीत करने के लिए स्थान दे दिया। रात को वे खाना खाकर सो गए।

अगले दिन वज़ीर के लड़के ने महरी से पूछा, “क्या यहाँ के राजा की लड़की अविवाहित है ? यह सुनकर महरी को क्रोध आ गया और उसने उनको कहा, "आप कृपा करके यहाँ से चले जाइए। आगे से मेरे घर भूल कर भी नहीं आना। यदि तुमने राजा की लड़की के सम्बन्ध में कोई बात की तो राजा तुम्हें मार डालेगा। आगे वह कहने लगी, “जो भी व्यक्ति राजा की लड़की की बात करता है, राजा उसकी आँखें निकलवा देता है, साथ ही उसके हाथ भी काट देता है। अन्त में उस व्यक्ति की कुत्तों से चीर-फाड़ करवा देता है।" आगे उसने कहा, "मैं उस राजा के यहाँ महरी का काम करती हूँ। मैं ही उस राजा की लड़की के महल में जल भरा करती हूँ।"

अब वज़ीर के लड़के ने उस महरी के हाथ में पाँच स्वर्ण मोहरे रख दी और कहा, “तुम जाकर उस लड़की को कह देना कि जिसके साथ तुमने किश्ती में बैठे हुए नदी किनारे संकेत भाषा में बात की थी। अब वे तुम्हें लेने के लिए आ गए हैं। महरी ने राजा की लड़की को सारी बात बता दी, तो उसने कहा, "आज शाम को मेरे पास से उनके लिए भोजनादि ले जाना।" महरी ने कहा, "जी अच्छा। मैं ले जाऊँगी।” अब राजकुमारी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा।

जब महरी वापस आ गई, तो उसने उन दोनों को सारी बात बता दी। दोनों प्रसन्न हो गए। शाम को महरी भोजनादि लेने के लिए महल चली गई, राजकुमारी ने उन्हें सुन्दर थाल परोस कर दे दिए। महरी भोजन लेकर पहुंची और उन दोनों को खाने के लिए दे दी। वे दोनों खाने के लिए बैठ गए।

राजा के लड़के के थाल में वज़ीर के लड़के ने एक मन्दिर की तस्वीर बनी हुई देखी। उसने राजा के लड़के को कहा, “मित्र रुको ! अभी तुम भोजन मत करना।” साधु दयाल ने बड़ी हैरानी से पूछा, "कहो मित्र ! क्या बात है ?" अब वज़ीर के लड़के ने कहा, "मित्र ! इस थाल की तरफ देखो। इसमें एक तस्वीर है। इसमें उत्तर दिशा की तरफ एक मन्दिर है। नैना बादशाही ने तुम्हें आज रात नौ बजे उस मन्दिर में बुलाया है। तुम भोजन खाकर वहाँ जाकर मन्दिर में बैठ जाना। राजा की लड़की रात के समय आएगी, तुम उसको बुला लेना।"

राजा का लड़का मन्दिर में चला गया। जब रात को नौ बजे राजकुमारी आई, तो राजकुमार साधु दयाल ने उसे बुलाया नहीं, तो वह फिर लगभग पाँच सात मिनट रुककर वहाँ से चली गई, फिर वह भी वापस चला गया और उसने वज़ीर के लड़के को सारी बात बता कर पूछा, "मित्र ! अब क्या हुआ ? वह तो पाँच-सात मिनट रुककर चली गई।" वज़ीर के लड़के ने उसे रौब से कहा, "कल तुम फिर उसी मन्दिर जाना और अब उसे अवश्य ही बुला लेना।" राजकुमार ने कहा, “मित्र ! अब मैं अवश्य ही उसे बुला लूँगा।"

अगले दिन रात के समय साधु दयाल फिर से उसी मन्दिर में जाकर बैठ गया। राजकुमारी वहाँ आई तो उसने उसे बुलाकर उसके साथ बहुत सारी बातें कीं। बाहर पहरेदार खड़े थे। उन्होंने राजकुमारी को मन्दिर में बातें करते हुए सुन लिया । अब उन्होंने शीघ्रता से मन्दिर को बन्द कर दिया और राजा को शीघ्रता से सन्देश भेज दिया, "महाराज ! राजकुमारी मन्दिर में किसी अज़नबी के साथ बातें करते हुए पकड़ी गई। हमने उन दोनों को मन्दिर में कैद कर लिया है। आप आकर उन्हें देख लो।"

राजकुमारी को इस बात का आभास हो गया कि वह बहुत मुश्किल में फँस गए हैं। उसने राजकुमार को कहा, "तुम ही इस मुश्किल का कोई हल निकालो नहीं तो मेरे पिताजी हम दोनों की कुत्तों से चीर-फाड़ करवा देंगे।” राजकुमार ने उत्तर दिया, “हे राजकुमारी ! मैंने कभी भी किसी मुश्किल का सामना नहीं किया है। वह तो वज़ीर का लड़का है जो महरी के घर रह रहा है। मैं ऐसा करता हूँ कि किसी व्यक्ति को स्वर्ण की पाँच मुद्राएँ देकर सन्देश भिजवा देता हूँ।" राजकुमार मन्दिर की छत पर चढ़ गया और बाहर जाते हुए एक व्यक्ति को बुलाकर उसे पाँच स्वर्ण मुद्राएँ देकर कहा कि उस महरी के घर के आगे जाकर कह देना, "जो कट्टा मक्की चर रहा था, वह पकड़ा गया। यदि किसी का हो तो उसे छुड़ा लो।" उस व्यक्ति ने वैसे ही कह दिया जैसे उसे कहा गया था।

वज़ीर के लड़के को इस बात का पता चल गया कि अब वे फँस चुके हैं। उसने शीघ्रता से महरी को जगाया और उसे पाँच स्वर्ण मुद्राएँ देकर कहा, "जल्दी से मुझे मिठाई का थाल लाकर दे दो।” महरी ने उसे हलवाई से मिठाई लाकर दे दी। वज़ीर के लड़के ने कहा, 'मुझे अपने वस्त्र दे दो।" महरी ने अपने पुराने वस्त्र उसे दे दिए। अब वज़ीर का लड़का मिठाई का थाल और औरतों वाली पोशाक पहनकर मन्दिर को चल पड़ा। उसने वहाँ पहुँचकर पहरेदारों से भीतर जाने की आज्ञा माँगी, तो उन्होंने कहा, “तुम भीतर नहीं जा सकती।"

उसने कहा, “मेरा पति फौज़ से वापस लौटा है, मैंने उनके लिए मन्नत माँगी थी। मैं मन्नत पूरी करने के बाद ही अपने पतिदेव से बात कर पाऊँगी और यह थाल तुम्हें ही देना है। मैंने सिर्फ थोड़ा-सा प्रसाद ही साथ लेकर जाना है जो अपने पतिदेव को खिलाना है। यह सुनकर पहरेदार कुछ ठण्डे पड़ गए और उन्होंने उसे भीतर जाने की आज्ञा दे दी।

भीतर जाकर वज़ीर के लड़के ने राजकुमारी को कहा, “तुम मेरे वस्त्र पहनकर यह थाल उठाकर चली जाओ। यह थाल पहरेदारों को दे देना।" राजकुमारी ने इसी प्रकार किया और वह वहाँ से निकल गई। राजा दिन निकलने पर मन्दिर आया। मन्दिर का दरवाज़ा खोलकर देखा गया तो भीतर पुरुष थे। वह यह देखकर हैरान हो गया।

राजा ने उनसे पूछा, "तुम यहाँ कैसे आए ?" उन दोनों ने कहा, "महाराज ! हम मुसाफिर हैं और रात व्यतीत करने के लिए यहाँ आ गए। हम आपस में अपने सुख-दुःख की बातें कर रहे थे तो इन पहरेदारों ने हमें यहाँ बन्द कर दिया। हमने बड़ी मुश्किल से रात व्यतीत की है।"

राजा को उनकी बात सही लगी और उसने पहरेदारों को फाँसी देने का आदेश जारी कर दिया। पहरेदारों ने कहा, "महाराज ! आप अपनी पुत्री का हाथ एक बार उबलते हुए तेल की कड़ाही में डलवा कर देखो। राजा ने यह बात मान ली। राजा ने तेल की कड़ाही रखवा दी। उधर वज़ीर के लड़के ने राजकुमार को कहा, “मित्र ! आप एक भिखारी का रूप धारण कर लो। जब राजकुमारी कड़ाही के पास आए तो तुम एक चिलम हाथ में लेकर आग लेने के बहाने शोर मचाते हुए, धक्के खाते हुए, गिरते-पड़ते हुए राजकुमारी से टकरा जाना।” राजकुमार ने ऐसा ही किया।

जब राजकुमारी कड़ाही के पास गई, तो राजकुमार साधु दयाल आग लेने के बहाने से भिखारी के रूप में उस लड़की से टकरा गया। अब राजकुमारी को पता लग गया कि यह वही राजकुमार है। उसने कहा, "इस भिखारी के अतिरिक्त यदि कोई और ने मुझे छुआ तो मेरा हाथ जलकर राख हो जाए।” इतनी बात कहकर उसने कड़ाही में छलाँग लगाई, तो कड़ाही एकदम ठण्डी हो गई और राजकुमारी बाहर निकल आई। राजा ने उन पहरेदारों को मारने का आदेश जारी कर दिया, तो राजकुमारी ने कहा, "पिताजी ! इनको शक हो गया होगा। कृपा करके आप इन्हें मत मरवाइए।" राजकुमारी के कहने पर राजा ने उन पहरेदारों को छोड़ दिया।

फिर राजकुमारी ने अपने पिता को कहा, "पिताजी ! मैंने अपना वर खोज लिया है। मेरा विवाह कर दो। राजा ने उसका विवाह साधु दयाल के साथ कर दिया। दोनों मित्र अपने राज्य लौट आए। राजकुमार और राजकुमारी बड़ी प्रसन्नता से रहने लगे।

साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ

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