अप्सराओं-सी स्त्रियाँ : अब्दर रज्जाक समरकन्दी
(अब्दर-रज्जाक समरकन्दी (1413-82) फारस के बादशाह शाह रुक का राजदूत बनकर भारत आया था। प्रस्तुत हैं उसके कुछ रोचक संस्मरण।)
एक दिन एक व्यक्ति मेरे पास आया, उसने एक खुशखबरी सुनायी। उसने बताया कि बीजानगर के बादशाह ने, जो कि एक विशाल और शक्तिशाली राज्य का स्वामी है, समेरी (कालीकट का राजा) के पास एक पत्र भेजा है, जिसमें यह इच्छा प्रकट की गयी है कि सम्राट खाकन के राजदूत को उसकी सेवा में भेज दिया जाए। राजा से इजाजत लेकर मैं बीजानगर की ओर चल दिया। जहाज से मैं मंगलौर के बन्दरगाह पर पहुँचा जोकि बीजानगर राज्य की सरहद पर था। वहाँ मैंने एक सुन्दर मन्दिर देखा, जैसा मन्दिर शायद ही दुनिया में हो, उस भव्य मन्दिर में चार चबूतरे थे। एक चबूतरे पर सोने की एक मानवीय मूर्ति बनी हुई थी। यह मूर्ति अद्भुत और विलक्षण थी।
मार्ग में मुझे कई नगर मिले। चलते-चलते मैं एक ऐसे पर्वत के पास पहुँचा, जिसकी चोटियाँ आकाश को छू रही थीं और उसके चरणों में सघन वन फैला हुआ था, जिसमें सूर्य की किरणें भी पार नहीं हो सकती थीं। मैं इस वन को पार करके एक ऐसे नगर में पहुँचा, जिसका नाम बैलोर था। उसमें मकान प्रासादों जैसे थे और उसकी स्त्रियाँ अप्सराओं जैसी थीं। अप्रैल के अन्त में मैं बीजानगर पहुँच गया। राजा ने मेरे स्वागत के लिए कुछ राज्याधिकारी भेजे और मुझे एक सुन्दर मकान में ठहराया। बीजानगर का राज्य बहुत बड़ा था। इसकी सरहदें बंगाल और बेलीनार (मैलीबार) तक फैली हुई थीं। इस राज्य में तीन सौ बन्दरगाहें थे। मैंने एक हजार हाथी देखे, जो पर्वतों की तरह थे और जिनका आकार दैत्यों के समान था।
बीजानगर ऐसा नगर था, जोकि किसी आँख ने न तो अभी तक देखा था, न किसी कानों ने ऐसा नगर सुना था। नगर के गिर्द एक बड़ी फसील थी और सात दुर्ग थे। राजा के प्रासाद के सामने चार बाजार थे। बाजार लम्बे और चौड़े थे। फूल-व्यापारियों ने अपनी दुकानों के सामने चबूतरे बनवाये हुए थे, जिन पर बिक्री के लिए फूलों को सजाया हुआ था। नगर के लोग फूलों के बिना जीवित नहीं रह सकते थे। वह फूलों को अन्न की तरह आवश्यक समझते थे।
राजा के दिये गये मकान में मैंने कुछ दिन आराम किया। एक दिन राजा ने मुझे दरबार में बुलाया। मैं दरबार में हाजिर हुआ और मैंने राजा की सेवा में पाँच खूबसूरत घोड़े और अन्य वस्तुएँ भेंट कीं। मैंने राजा को तीन बार झुककर सलाम किया। राजा ने बड़ी रुचि से मेरा स्वागत किया और अपने पास बिठाया। जब उसने सम्राट का पत्र देखा, तो कहा-मेरा हृदय सचमुच बहुत खुश हुआ है कि एक महान सम्राट ने अपना राजदूत मेरे दरबार में भेजा है। गरमी बहुत थी, इसलिए मैं पसीने से सराबोर हो गया। राजा को मुझ पर तरस आ गया। उसने एक पंखा मँगवाया और एक दास को डुलाने का आदेश दिया। उसने मुझे पान के दो पैकेट दिये। पाँच सौ रुपये और कई अन्य उपहार दिये। कुछ देर बाद मैं इजाजत लेकर अपने मकान की ओर लौट आया।