अपराधियों की कोर्ट-कचहरी (अंग्रेजी कहानी) : चार्ल्स डिकेंस

Apradhion Ki Court-Kachehri (English story in Hindi) : Charles Dickens

हम अपने स्कूल के उन दिनों को नहीं भूल सकते, जब हम लड़के न्यूगेट जेल के बाहर से जाते हुए उसे भय-मिश्रित सम्मान से देखते थे। उसकी खुरदरी मोटी दीवारें और नीची ऊँचाई के भारी-भारी दरवाजे बड़े भयानक दिखते थे। उन दरवाजों को देखकर ऐसा लगता था, जैसे वे इस उद्देश्य से ही बने हैं कि वे लोगों को अंदर तो आने दें, पर एक बार उसके अंदर जाने के बाद वे लोग कभी भी बाहर न निकल पाएँ। फिर कैदियों को पहनानेवाली हथकड़ियाँ/बेडियाँ वहाँ लटकी रहती थीं, जिसे हम समझते थे कि असली लोहे की है और वहाँ इसलिए टॅगी है जिससे कि जरूरत पड़ने पर जल्दी से उतारकर उसे अपराधी को पहना दिया जाए। हम यह सोचते कभी नहीं थकते थे कि किस प्रकार से वहाँ पर सामने बैठे कोचवान आपस में हर वक्त हँसीमजाक करते रहते थे तथा तमाम समय दारू पीते रहते थे।

अकसर हम घूमते-फिरते उस जगह पहुँच जाते थे, जहाँ लोगों को कोड़ों से पीटा जाता था और मैदान के उस पार वह जगह, जहाँ पर हत्या आदि जैसे जघन्य अपराध करनेवालों को फाँसी देने के लिए टिकटी पर लटकाया जाता था और अन्य तमाम खौफनाक उपकरण रखे रहते थे तथा वहाँ पर एक दरवाजे पर एक नेम प्लेट लगी हुई थी, जिस पर 'मिस्टर केंच' खुदा हुआ था। यह हमारी समझ से बाहर था कि यह विशिष्ट अधिकारी कहीं और भी रह सकता था। इस तरह के बचकाना सपनों के दिन गुजर गए थे और इसके साथ ही इस तरह के तमाम खुश-मिजाजी के ऊल-जुलूल विचार भी। पर अभी भी हमारे अंदर उन मौलिक भावनाओं के कुछ अवशेष बचे हुए थे और अब भी जब हम उस कारागार के सामने से गुजरते थे तो एक बार सहसा काँप उठते थे।

लंदन में ऐसा कौन सा राहगीर होगा, जिसने आते-जाते कभी भी उस घनी बाड़ के अंदर ने देखा हो, जिससे कैदियों को इस अँधेरे व उदास कैदखाने के अंदर न ले जाया जा रहा हो और उसने वहाँ रखी कुछ चीजों को जिज्ञासा भरी निगाहों से न देखा हो। भारी-भारी दरवाजे, जिसमें लोहे की परतें चढ़ी थीं और जिसके ऊपर लोहे के बरछे लगे थे, जिसके ऊपर से आप मुश्किल से झाँककर नीचे देख सकते थे, जहाँ पर बदसूरत-सा आदमी, खूब चौड़ा हैट पहने, बेल्यर का रूमाल लिये और जिसने एक भूरा कोट पहना हुआ था, जो कि लंबे कोट से थोड़ा छोटा था और स्पोर्ट्स जैकेट से थोड़ा बड़ा था और उसके हाथ में एक बहुत बड़ी भारी सी चाबी होती थी। और सारे आज पर्याप्त भाग्यशाली हुए और वहाँ से उस वक्त गुजर रहे हों जब गेट खोला जा रहा हो, तब फिर आप उस निवास के पीछे एक और गेट देख सकते थे, जो कि बिल्कुल पहलेवाले बाहरी गेट की तरह होता था और वहाँ पर तीन-चार और 'टर्न-कीज' (चाबीवाले सिपाही) आग के चारों ओर बैठे नजर आते, जिनकी वेशभूषा भी बिल्कुल पहलेवाले 'टर्न-कीज' की तरह होती थी। उस आग की रोशनी में सफेदी किए हुए भवन में ये सब चीजें दिख जाती थीं। हम मिसेज फ्राई का बहुत आदर करते हैं; पर निश्चय ही उनको मिसेज रेडक्लिफ से ज्यादा रोमांटिक चीजें-उपन्यास, कहानियाँ लिखने चाहिए थे।

हम कुछ समय पहले आराम से, खरामा-खरामा पुराने ओल्ड बैली गेट के पास से गुजर रहे थे; जबकि दो एक-से दिखनेवाले गेट को एक टर्न-की सिपाही ने खोला। हम यूँ ही जल्दी से पीछे की ओर मुड़े और देखा कि दो व्यक्ति सीढियों से नीचे उतर रहे थे। हम अपने को वहाँ पर रुककर उन्हें देखने से रोक नहीं पाए।

उसमें से एक तो उम्रदराज व अच्छी दिखनेवाली महिला थी और उसके साथ-साथ 14-15 साल का एक लड़का था। वह औरत जोर-जोर से रोए जा रही थी और उसके हाथ में एक बंडल भी था। लड़का उसके पीछे-पीछे थोड़ी दूरी पर चल रहा था। वह लड़का उसका अपना बेटा था, जिसको पाल-पोसकर बड़ा करने के लिए उसने बिना उफ-ओह किए तमाम कष्ट झेले थे, उस दिन की उम्मीद पर जब वह बड़ा होकर उसको इतना कष्ट झेलते हुए देखकर कुछ कमा-धमाकर उसको कुछ खिला-पिला सकेगा तथा स्वयं भी ठीक से रहेगा। पर अब ऐसा लग रहा था जैसे कि वह गलत संगत में पड़ गया था। काहिलपने या आलस्य ने उसे अपराध की दुनिया में धकेल दिया था और अब वह किसी छोटी-मोटी चोरी के लिए कोर्ट में पेश किया गया था। वह काफी दिन जेल में रह चुका था तथा थोड़ी सी और सजा काटने के बाद आज सुबह उसे रिहा किया जाना था। यह उसका पहला गुनाह था और उसकी गरीब बूढी माँ इस उम्मीद से जेल के दरवाजे पर उसका इंतजार कर रही थी कि वह उसे घर चलने के लिए प्रेरित करेगी।

हम उस लड़के को कभी भूल नहीं सकते थे। वह सीढियों से बहुत सतर्क होकर एक साहस और दृढ़ निश्चय के साथ उतर रहा था और अपने सिर को बार-बार बड़ी बहादुरी से हिला रहा था। वे लोग कुछ कदम चलकर रुक गए। माँ ने उसके कंधे पर पीड़ा व अनुनय करते हुए हाथ रखा और लड़के ने अचानक अपना सिर मना करते हुए उठाया। वह एक बड़ी चमकदार सुबह थी और सूर्य की खुशनुमा रोशनी में हर चीज बड़ी साफ-सुथरी व अच्छी लग रही थी। लड़के ने अपने चारों ओर आश्चर्य से होकर देखा, क्योंकि जेल की उदास और अँधेरी कोठरी के बाहर वह बहुत दिनों बाद निकला था। शायद उसकी माँ की दुर्दशा ने उसके ऊपर कुछ असर डाला या संभवतः इस बात का असर हुआ कि वह भी एक खुशमिजाज बच्चा था और केवल माता ही उसकी एकमात्र दोस्त और उसकी सबसे अच्छी साथिन थी। इन्हीं खयालों से वह फूटफूटकर रोने लगा और जल्दी से एक हाथ से अपना चेहरा ढककर और दूसरा हाथ अपनी माँ के हाथ में रखकर वह उसके साथ बाहर चला गया।

जिज्ञासावश हम ओल्ड बेली के दोनों कोर्टों में चले गए। पहली बार जो आदमी वहाँ जाएगा, उसे यह बात जरूर नजर आएगी कि कितनी निर्लिप्तता व शांत भाव से वहाँ सारा काम चलता रहता है—बिना किसी लगाव के। प्रत्येक ट्रायल या मुकदमा महज एक औपचारिकता-सी लगती थी और एक बिजनेस की तरह उसे निपटाया जाता था। वहाँ पर कायदा-कानून तो बहुत दिखाई पड़ता है पर दया-करुणा का सर्वथा अभाव प्रतीत होता था। लोगों को दिलचस्पी तो बहुत होती थी, परंतु सहानुभूति नहीं होती थी। वहाँ पर जज बैठे होते थे, जिनकी मान-प्रतिष्ठा से सब लोग परिचित होते थे और जिनके बारे में हमें ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं थी। फिर वहाँ पर केंद्र में लॉर्ड मेयर बैठे रहते थे, जो उतने ही शांत दिखते थे, जितने कि उनके सामने रखा भारी सा गुलदस्ता और वह अपनी सरकारी शानो-शौकत के साथ वहाँ विराजमान रहते थे। फिर वहाँ शेरिफ बैठे होते थे, जिनकी भी शान-शौकत लॉर्ड मेयर के बराबर ही होती थी। फिर वहाँ बैरिस्टर (वकील) होते थे, जो अपनी-अपनी जगह और अपनी राय से काफी प्रतिष्ठित होते थे। फिर वहाँ दर्शक गण होते थे, जिन्होंने वहाँ पर आने के लिए कुछ फीस भरी होती थी और जो सोचते थे कि यह सब तमाशा उनके मनोरंजन के लिए किया गया था। अब आप कोर्ट में बैठे सारे समूह पर एक निगाह डालिए तो आपको पता चलेगा कि कुछ लोग तो सुबह का अखबार पढ़ने में मशगूल थे, कुछ अन्य लोग धीरे-धीरे आपस में फुसफुसाकर बातें कर रहे होते थे और कुछ अन्य लोगों को तो आप ऊँघते या सोते ही पाएँगे। इन सब लोगों को देखकर तो यह लगता था कि जो मसला किसी अभागे आदमी के लिए जीवन-मृत्यु का मामला हो सकता था, वह इनके लिए कुछ खास मायने नहीं रखता था। पर एक क्षण के लिए आप अपनी नजरें कठघरे में खड़े तथाकथित अपराधी की ओर ले जाइए तो आपको उसकी दर्दनाक स्थिति का पता चल जाएगा। आपको पता चलेगा कि कितनी बेचैनी से वह वहाँ पिछले दस मिनट से खड़ा था और उसके सामने जो झाड़-फूस आदि रखे थे, उनसे कितनी तरह के काल्पनिक चित्र वह बना रहा था। उसके चेहरे के स्याह पड़े पीलेपन को नोट करिए, खासकर जब कोई गवाह उसके सामने पेश किया जाता था और किस प्रकार से वह अपनी स्थिति बदलता था और पसीजे हुए माथे को अपने बुखारवाले हाथों से पोंछता था; जबकि उस केस की सुनवाई खत्म हो जाती थी, जैसे उसे इस बात का इल्म था कि ज्यूरी को उसके बारे में सबसे खराब बातें पता थीं।

उसके पक्ष के वकील ने उसके बचाव में अपना बयान पूरा किया। जज ने फिर से पूरे केस और गवाहों के बयान का सारांश बताया और कैदी ज्यूरी की ओर ऐसी आशा भरी निगाहों से देखता है जैसे कि कोई प्राण की आशा खो बैठा मरीज अपने डॉक्टर की ओर देखता है कि शायद वह उसे किसी प्रकार से बचा सके। ज्यूरी आपस में हलकी आवाज में एक-दूसरे से परामर्श करते हैं और आप इस खामोशी में उस आदमी के दिल की धड़कन को भी सुन सकते हैं, जो यहाँ बेचैनी से एक फूल की डंडी को चबाने लगता था और वह यह कोशिश करता था कि उसके चेहरे की बेचैनी बाहर न झलके। वे लोग अपनी-अपनी जगहों पर बैठ जाते हैं और एक सन्नाटा छा जाता है, जब फोरमैन (अहलमद) जजों का फैसला सुनाता है-'...अपराधी' है।

गैलरी में बैठी हुई औरतो में से एक चीख उठती है और कैदी उस ओर देखता है, जहाँ से आवाज आई थी। कैदी को जेलर फुरती से कठघरे में से निकालकर बाहर की ओर चल पड़ता था। कोर्ट का क्लर्क एक चपरासी को आदेश देता है कि चीखने-चिल्लाने वाली औरत को फौरन अदालत के कमरे से बाहर कर दिया जाए। और फिर वे नया केस ले लेते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

इसकी तुलना में न्यू कोर्ट में जो बाल अपराधियों के मुकदमे व दलीलें होती हैं, वे बहुत चालाकी भरी होती हैं। उदाहरण के तौर पर, एक 13 साल के लड़के पर ब्रिटिश नागरिक की जेब काटने का आरोप है और उस पर अदालत में कार्यवाही की जा रही थी। उससे कहा जाता है कि वह अपनी सफाई या निर्दोष होने पर बयान दे। वह फिर ज्यूरी के सदस्यों पर टिप्पणी करता है तथा कहता है कि सारे गवाहों ने कोर्ट के सामने गलत या झूठे बयान दिए हैं और उनके ऊपर 'पर्जरी' (Perjury) का आरोप है तथा सारे पुलिसवाले उसके खिलाफ थे। पर इस बयान के सही होने की चाहे जितनी संभावना हो, कोर्ट इसे मानने को तैयार नहीं है और फिर कुछ इस प्रकार का दृश्य या वार्तालाप होता है-

कोर्ट : "क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है, जो तुम्हारे चरित्र के बारे में सत्यापन कर सकता हो?"

लड़का : "हाँ माई लॉर्ड, कोर्ट के बाहर 15 गवाह खड़े हैं और वे कल भी सारे दिन आपके बुलावे का इंतजार करते रहे; जबकि इन्होंने बताया था कि कल मेरा ट्रायल होने वाला है।"

कोर्ट : "उन गवाहों के बारे में पता करो और बुलाओ।"

अब एक ठिगना व मोटा सा अहलकार बाहर जाकर आवाज लगाता है कि गवाह हाजिर हो। और उसकी आवाज धीरे-धीरे हल्की होती जाती है, जैसे-जैसे वह सीढियाँ उतरकर नीचे आँगन में जाता है।

पाँच मिनट बाद वह गरम होता हुआ वापस आया और मोटी सी खरखराती आवाज में बोला (जो उसे पहले से ही पता था), "साहब, वहाँ पर ऐसे कोई गवाह नहीं हैं।"

इस पर वह लड़का जोर-जोर से चीखने-चिल्लाने और अपने हथेलियों से अपनी आँखों को रगड़ने लगा, जैसे कि वह रो रहा हो और आँसू पोंछ रहा हो और अपनी अबोधता तथा भोलेपन के आहत होने का नाटक करने लगा। ज्यूरी ने उसी वक्त उसे अपराधी करार कर दिया और वह फिर से आँसू बहाने का नाटक करने लगा। बेंच द्वारा पूछे गए एक सवाल के उत्तर में जेल सुपरिटेंडेंट ने बताया, "यह लड़का मेरे चार्ज में पहले भी दो बार जेल में रह चुका है।"

इस बात पर उस लड़के ने कहा, "सर, मेरी मदद कीजिए। मैंने इसके पहले कभी कोई जुर्म नहीं किया था। सही कह रहा हूँ, साब, कभी भी पहले मैंने कोई गड़बड़ नहीं किया था। यह सब इसलिए है कि मेरा एक जुड़वाँ भाई है और वह गड़बड़ी करता है तथा ये मुझे पकड़ लाते हैं। मैं सही कह रहा हूँ साब, मुझमें और उसमें कोई फर्क नहीं है और किसी को यह फर्क पता नहीं चलता है।"

उसकी इस दलील का भी, डिफेंस की अन्य दलीलों की तरह, कोर्ट पर कोई असर नहीं पड़ा और उसे 7 साल की सजा सुना दी गई। अपना गुस्सा जताने के लिए वह कठघरे में से अपने आप बाहर नहीं निकला, बल्कि पुलिसवालों को जबरदस्ती उसे वहाँ से पकड़कर ले जाना पड़ा। उसको इस बात की बहुत खुशी थी कि वह जिसको जितना परेशान कर सकता था, किया।

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