अपराध और दंड (रूसी उपन्यास) : फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की - अनुवाद : नरेश नदीम

Crime and Punishment (Russian Novel in Hindi) : Fyodor Dostoevsky

अपराध और दंड : (अध्याय 6-भाग 1)

रस्कोलनिकोव के लिए एक अजीब दौर का आरंभ हुआ : लगता था, उसके ऊपर घना कुहरा उतर आया हो जिसने उसे घोर निराशा भरे अकेलेपन की चादर में लपेट दिया हो और उससे निकलने का कोई रास्ता न हो। बाद में - बहुत बाद में - इस जमाने को याद करके उसने महसूस किया कि इसमें ऐसे पल भी आए थे जब चीजों को देखने-समझने की क्षमता धुँधलाती महसूस हो रही थी, और यह सिलसिला आखिरी तबाही आने तक चलता रहा था, बस बीच में कभी-कभी ठहर जाता था। उसे यकीन हो चला था कि उस जमाने में, कई बातों के बारे में उसके विचार गलत थे, मसलन कुछेक घटनाओं की तारीख और अवधि के बारे में। बहरहाल, बाद में जब उसने उन घटनाओं को याद किया और उनकी वजह तलाश करने की कोशिश की तो दूसरे लोगों से हासिल की गई जानकारी को बाँध-जोड़ कर उसने अपने बारे में कई ऐसी बातों का पता लगाया जो उसे पहले नहीं मालूम थीं। मिसाल के तौर पर वह एक घटना को कोई दूसरी घटना का नतीजा समझ लेता था, जिसका अस्तित्व केवल उसकी कल्पना में था। कभी-कभी उस पर चिंता की ऐसी दुखदायी और बीमार भावना छा जाती थी, जो बौखलाहट का रूप ले लेती थी। लेकिन उसे ऐसे पल भी याद थे, ऐसे घंटे, बल्कि पूरे-पूरे दिन, जब उस पर गोया पहलेवाली बौखलाहट के विपरीत भरपूर उदासीनता छा जाती थी, उसी बीमार लाचारी जैसी उदासीनता, जो कभी-कभी मरने से फौरन पहले कुछेक लोगों पर छा जाती है। उन अंतिम दिनों में, कुल मिला कर, ऐसा लगता था कि वह अपनी स्थिति को पूरी तरह और साफ-साफ समझने से कतराने की चिंता करता रहता था। उन दिनों तात्कालिक महत्व की कुछ ऐसी बातें दिमाग पर खास तौर पर बोझ बनी रहती थीं, जिनकी वजह को फौरन समझना जरूरी होता था। लेकिन उसे अपनी चिंताओं से बच निकलने से कितनी ही खुशी क्यों न होती रही हो, उसने इतना जरूर महसूस किया कि जो आदमी उस जैसी स्थिति में हो, उसके लिए उन चिंताओं की ओर एकदम ध्यान न देना लाजमी तौर पर तबाही का कारण बन सकता था।

वह खास कर स्विद्रिगाइलोव की वजह से चिंतित था, बल्कि यह कहना गलत न होगा कि उसके सारे विचार स्विद्रिगाइलोव पर केंद्रित थे। जब से स्विद्रिगाइलोव ने कतेरीना इवानोव्ना की मौत के समय सोन्या के कमरे में रस्कोलनिकोव के आगे उन धमकी भरे और उसकी नजरों में असंदिग्ध, शब्दों का इस्तेमाल किया था, तब से ऐसा लगने लगा था कि उसके विचारों का स्वाभाविक प्रवाह टूट चुका था। वैसे इस नई बात से रस्कोलनिकोव को बेहद चिंता हुई थी, फिर भी उसे इसका कारण जानने की कोई जल्दी महसूस नहीं होती थी। कभी-कभी जब वह शहर के किसी दूर-दराज, एकांत हिस्से में, किसी घटिया शराबखाने की मेज पर अपने आपको विचारों में खोया हुआ पाता और उसे ठीक से यह भी याद नहीं आता कि वह वहाँ पहुँचा कैसे, तब वह अचानक स्विद्रिगाइलोव के बारे में सोचने लगता था। वह अचानक हैरानी के साथ और बहुत स्पष्ट रूप से यह महसूस करने लगा था कि उसे जितनी जल्दी हो सके, उस आदमी के साथ मेल-जोल पैदा करना चाहिए, उससे कोई पक्का समझौता कर लेना चाहिए। अपने आपको एक दिन शहर के बाहर पा कर वह यह भी कल्पना करने लगा कि वह स्विद्रिगाइलोव का इंतजार कर रहा था, कि उसने उससे वहीं मिलने की बात तय की थी। फिर एक बार ऐसा भी हुआ कि पौ फटने से पहले उसकी आँख खुली, तो वह झाड़ियों के बीच जमीन पर पड़ा था और उसे यह भी याद नहीं आ रहा था कि वह वहाँ पहुँचा कैसे था। लेकिन कतेरीना इवानोव्ना की मौत के दो-तीन दिनों के अंदर वह स्विद्रिगाइलोव से कई बार मिला था, और लगभग हर बार सोन्या के कमरे में मिला था, जहाँ वह देखने में बिना किसी काम के जाता था। ऐसी हर भेंट लगभग हमेशा ही बस एक मिनट के लिए हुई। वे एक-दूसरे से कुछ शब्द कहते थे लेकिन कभी उस चीज के बारे में बातें नहीं करते थे, जिसमें उन दोनों को सबसे ज्यादा दिलचस्पी थी, गोया दोनों के बीच अपने आप फिलहाल उस बारे में कुछ भी न कहने का फैसला हो गया हो। कतेरीना इवानोव्ना की लाश अभी तक ताबूत में रखी थी। स्विद्रिगाइलोव कफन-दफन के इंतजाम में लगा हुआ था। सोन्या भी बहुत व्यस्त थी। पिछली मुलाकात में स्विद्रिगाइलोव ने रस्कोलनिकोव को बताया था कि उसने कतेरीना इवानोव्ना के बच्चों का पूरा-पूरा बंदोबस्त और बहुत ही संतोषजनक बंदोबस्त कर दिया था। अपनी जान-पहचान के कुछ लोगों से पूछताछ करके उसने कुछ ऐसे लोगों का पता लगाया था जिनकी मदद से उन तीन अनाथ बच्चों को उचित संस्थाओं में फौरन रखा जा सकता था। उसने यह भी बताया कि उसने उनके नाम जो पैसा जमा कराया था, उसकी वजह से भी बहुत मदद मिली क्योंकि जिन बच्चों के पास अपना कुछ पैसा होता है, उनका बंदोबस्त कंगाल बच्चों की अपेक्षा कहीं ज्यादा आसानी से हो जाता है। उसने सोन्या के बारे में भी कुछ कहा था, एक-दो दिन में रस्कोलनिकोव से खुद आ कर मिलने का वादा किया था, और इस बात का जिक्र किया था कि वह उसकी 'सलाह' लेना चाहता है, कि वह उसके साथ 'सारी बातें सुलझा लेने' के लिए बहुत ही बेचैन है, और यह कि उसे उससे कुछ 'काम की' बातें करनी हैं। यह बातचीत ड्योढ़ी में या सीढ़ियों पर होती थी। स्विद्रिगाइलोव ने एक बार एक पल रस्कोलनिकोव की आँखों में आँखें डाल कर बड़े गौर से देखा और फिर अपनी आवाज नीची करके उसने अचानक पूछा :

'लेकिन रोदिओन रोमानोविच, तुम इतने परेशान क्यों दिखाई दे रहे हो तुम तो लगता है कहीं खोए हुए हो, सचमुच! सब कुछ देखते रहते हो और सुनते रहते हो लेकिन लगता है, तुम्हारी समझ में कुछ भी नहीं आता। चिंता छोड़ो यार, खुश रहो! हम लोगों की बातचीत होने के बाद देखना; अफसोस की बात है कि इस वक्त मैं खुद अपने और दूसरे लोगों के मुआमलों में बुरी तरह उलझा हुआ हूँ।' उसने अचानक कहा, 'हर इनसान को खुली हवा की जरूरत होती है, हवा की, हवा की! ...सबसे बढ़ कर बस इसी एक चीज की!'

अचानक वह पादरी और उसके सहायक को रास्ता देने के लिए एक ओर को हट गया। वे लोग मृतात्मा के लिए प्रार्थना करने सीढ़ियों से ऊपर आ रहे थे। स्विद्रिगाइलोव ने इसका बंदोबस्त कर दिया था कि रोज दो बार यह प्रार्थना हुआ करे। स्विद्रिगाइलोव तो अपने काम से चला गया लेकिन रस्कोलनिकोव कुछ पल खड़ा सोचता रहा और फिर पादरी के पीछे-पीछे सोन्या के कमरे में चला गया।

वह चौखट पर ठिठक गया। प्रार्थना शुरू हुई - मंद गति से, शांत और उदास भाव से। बचपन के दिनों से ही वह हमेशा यह महसूस करता आया था कि मृत्यु के विचार में और मृत्यु की उपस्थिति की चेतना में कोई बहुत ही मनहूस और रहस्यमय, डरावनी चीज थी। इसके अलावा यह बात भी कि किसी मृत के शोक की प्रार्थना में गए उसे बहुत दिन हो गए थे। पर यहाँ तो कुछ और भी था - कोई बहुत ही भयानक और बेचैन करनेवाली बात। उसने बच्चों की ओर देखा : वे सभी ताबूत के पास घुटनों के बल बैठे थे। पोलेच्का रो रही थी। उनके पीछे सोन्या चुपके-चुपके, डरते-डरते, रोते हुए प्रार्थना कर रही थी। 'बात क्या है,' रस्कोलनिकोव ने अचानक सोचा, 'कि पिछले कुछ दिनों से उसने मेरी ओर देखा तक नहीं और न ही मुझसे कोई बात की!' कमरे में धूप फैली हुई थी; लोबान के धुएँ के बादल उठ रहे थे; पादरी एक आयत पढ़ रहा था, 'हे प्रभु, इसे चिर शांति दो'। पूरी प्रार्थना के दौरान रस्कोलनिकोव वहीं मौजूद रहा। उन्हें आशीर्वाद देने और उनसे विदा लेने के समय लगा कि पादरी ने एक अजीब ढंग से मुड़ कर अपने चारों ओर देखा। रस्कोलनिकोव प्रार्थना के बाद सोन्या के पास गया और सोन्या ने अचानक उसके हाथ अपने हाथों में ले कर सर उसके कंधे पर टिका दिया। उसके जरा देर की इस दोस्ताना अदा से रस्कोलनिकोव हैरत में पड़ गया; उसे यह बात बेहद अजीब लगी। हे भगवान, तो क्या उसके दिल में मेरे लिए जरा भी घृणा और तिरस्कार का भाव नहीं था उसके हाथ कतई काँप नहीं रहे थे... यह तो अपने आपको अपमानित करने की चरम सीमा है। उसने कम-से-कम इसे इसी रूप में समझा। सोन्या ने कुछ नहीं कहा। रस्कोलनिकोव ने उसका हाथ धीरे से दबाया और बाहर चला गया। वह बहुत कुढ़न का अनुभव कर रहा था। अगर वह उस पल कहीं चला जाता और वहाँ बाकी जीवन एकदम अकेला रहता, तो भी अपने आपको धन्य समझता। लेकिन मुसीबत यह थी कि इधर कुछ समय से यूँ तो वह निपट अकेला रहा, पर फिर भी वह कभी यह महसूस नहीं किया कि वह अकेला है। कभी-कभी वह शहर से बाहर निकल जाता, शाहराह पर चलता रहता, और एक दिन तो एक छोटे से जंगल में भी जा पहुँचा लेकिन जगह जितनी ही सुनसान होती थी, उसे पास ही किसी की डरावनी मौजूदगी का उतना ही अधिक एहसास होता था, किसी की ऐसी मौजूदगी का जो उसमें भय उतना पैदा नहीं करती थी जितना उसे झुँझला देती थी। तब वह जल्दी से वापस शहर आ जाता, भीड़ में घुल-मिल जाता, किसी रेस्तराँ या शराबखाने में जा कर बैठ जाता, या पैदल चलता हुआ कबाड़ी बाजार या भूसामंडी पहुँच जाता। वहाँ उसे अधिक शांति मिलती और वह अधिक अकेला भी महसूस करता। एक शाम एक शराबखाने में लोग गीत गा रहे थे। वहाँ वह लगभग घंटे भर बैठा गीत सुनता रहा, और उसे याद था कि उसे उसमें बहुत आनंद आया था। लेकिन अंत में वह फिर बेचैन हो उठा, गोया उसका जमीर उसे कचोके दे रहा हो : 'यहाँ बैठा मैं गाने सुन रहा हूँ जबकि मुझे यही नहीं करना चाहिए, क्यों?' वह बरबस सोचने लगा। लेकिन उसे फौरन लगा कि उसे अकेले यही बात परेशान नहीं कर रही थी। कोई बात ऐसी भी थी जिसे फौरन तय करना जरूरी था लेकिन बात क्या थी, इसे वह न तो साफ तौर पर देख सका और न शब्दों से व्यक्त कर सका। हर चीज कैसी बुरी तरह उलझी हुई मालूम होती थी। 'नहीं,' उसने सोचा, 'इससे तो लड़ना कहीं बेहतर होगा! इससे कहीं बेहतर यह होगा कि वह फिर पोर्फिरी से टक्कर ले... या स्विद्रिगाइलोव से टकरा जाए... या किसी समन का, किसी हमले का सामना करे!' वह शराबखाने से बाहर निकल गया और लगभग दौड़ने लगा। न जाने क्यों दुनिच्का और अपनी माँ का खयाल आने पर वह अचानक बौखला उठा। यह उसी रात की बात है जब उसकी आँख पौ फटने से पहले क्रेस्तोव्स्की द्वीप की कुछ झाड़ियों के बीच खुली थी, उसकी हड्डियों तक में सर्दी समा गई थी और उसे बुखार महसूस हो रहा था। वह घर की तरफ बढ़ चला था और बहुत तड़के वहाँ पहुँचा था। कुछ घंटे सोने के बाद उसका बुखार तो उतर चुका था, लेकिन वह काफी देर तक सो कर उठा था : तीसरे पहर के दो बजे।

उसे याद आया उसी दिन कतेरीना इवानोव्ना को दफन किया जानेवाला था और उसे इसी बात की खुशी थी कि वह उसके जनाजे में नहीं गया। नस्तास्या उसके लिए जब कुछ खाना लाई तो उसने जी भर कर खाया-पिया, किसी मरभुक्खड़ की तरह। दिमाग में पहले से ज्यादा ताजगी आ गई थी, और तब वह जितनी शांति अनुभव करने लगा था, उतनी उसने उससे पहले तीन दिन में कभी नहीं की थी। एक पल के लिए उसे उससे पहले के बौखलानेवाले खौफ के दौरों पर कुछ आश्चर्य भी हुआ। इतने में दरवाजा खुला और रजुमीखिन अंदर आया।

'खूब, तो खाना खा रहे हो... इसका मतलब है कि बीमार नहीं हो,' रजुमीखिन ने कुर्सी खींच कर मेज की दूसरी तरफ रस्कोलनिकोव के सामने बैठते हुए कहा। वह बहुत परेशान था और उसने इसे छिपाने की कोशिश नहीं की। वह स्पष्ट झुँझलाहट के साथ बोल रहा था, लेकिन बिना किसी जल्दी के बिना आवाज ऊँची किए हुए। साफ था कि वह किसी खास, बल्कि गैर-मामूली, काम से आया था।

'देखो,' उसने सधी आवाज में कहना शुरू किया, 'जहाँ तक मेरा सवाल है, मेरी बला से तुम सब लोग भाड़ में भी जाओ... लेकिन मैं अब उस जगह पहुँच चुका हूँ जहाँ मैं यह महसूस करने लगा हूँ कि मेरी समझ में कुछ भी नहीं आता। भगवान के लिए, यह मत समझना कि मैं तुमसे जवाब माँगने आया हूँ। मेरी बला से! ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं! अगर तुम मुझे खुद अपनी सारी बातें, सारे मनहूस भेद, बताना चाहो तब भी ऐन मुमकिन यही है कि मैं सुनने के लिए न रुकूँ। मैं उठ कर फौरन चला जाऊँगा। मैं निजी तौर पर सबसे पहले और आखिरी बार जिस बात का पता लगाने आया हूँ वह यह है कि तुम सचमुच पागल हो कि नहीं। देखो, कुछ लोग तुम्हारे बारे में यही राय रखते हैं (यहाँ भी और वहाँ भी) कि तुम या तो पागल हो या पागल होनेवाले हो। मैं तुम्हें साफ-साफ बता दूँ, मैं खुद इस राय को मानने को तैयार था। पहली बात तो यह कि तुम्हारी बेवकूफी भरी और कुछ हद तक नफरत पैदा करनेवाली हरकतों की वजह से (मैं लगे हाथ यह भी कह दूँ कि उनकी कोई वजह समझ में नहीं आती), और दूसरी यह कि इधर हाल में अपनी माँ और बहन के साथ तुम्हारा बर्ताव ही ऐसा था। जैसा बर्ताव तुमने किया, वैसा तो महज कोई पिशाच, कोई नीच या कोई पागल ही कर सकता था। इससे साबित होता है कि तुम जरूर पागल हो...'

'क्या तुम उनसे हाल में भी मिले?'

'अभी-अभी। तो क्या उस दिन के बाद तुम उनसे नहीं मिले? तुम आखिर भटकते कहाँ रहते हो, मैं तो यह जानना चाहता हूँ। मैं यहाँ तीन बार पहले भी आ चुका। तुम्हारी माँ बीमार हैं। कल से उनकी तबीयत बहुत खराब है। वे तुम्हारे पास आना चाहती थीं। तुम्हारी बहन ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वह किसी तरह सुनती ही नहीं थीं। बोलीं : अगर वह बीमार है, अगर पागल हो रहा है, तो उसकी मदद करना उसकी माँ का फर्ज है। इसलिए हम सब यहाँ साथ आए क्योंकि उन्हें अकेले तो नहीं आने देते। रास्ते भर उनसे हम शांत रहने की मिन्नतें करते रहे। हम अंदर भी आए, लेकिन तुम कहीं बाहर गए हुए थे। वे दस मिनट तक यहीं बैठी राह देखती रहीं, और हम लोग चुपचाप पास में खड़े रहे। फिर वे उठीं और बोलीं : अगर वह बाहर गया हुआ है तो मतलब यह है कि वह चंगा होगा या अपनी माँ को भूल गया है। यह उसकी माँ के लिए बड़े अपमान की बात है और उसे यह शोभा नहीं देता कि माँ उसके दरवाजे पर खड़ी हो कर उससे प्यार की भीख माँगे। घर वापस आते ही उन्होंने चारपाई पकड़ ली। अब उन्हें बुखार है। कहती हैं : मैं देख रही हूँ, 'उसके पास अपनी छोकरी के लिए काफी वक्त है'। उन्हें विश्वास है कि तुम्हारी छोकरी वह सोफ्या सेम्योनोव्ना है और उसे वे तुम्हारी मँगेतर या रखैल, मुझे नहीं मालूम क्या समझती हैं। मैं फौरन सोफ्या सेम्योनोव्ना के यहाँ गया। बात यह है यार कि मैं एक पूरे मामले की तह तक पहुँचना चाहता हूँ। वहाँ पहुँच कर मैंने एक ताबूत रखा हुआ देखा। बच्चे रो रहे थे और सोफ्या सेम्योनोव्ना उन्हें मातमी कपड़े पहना रही थी। तुम वहाँ नहीं थे। मैंने एक नजर झाँक कर देखा, फौरन माफी माँग कर वापस चला आया और फौरन जा कर तुम्हारी बहन को सारी बात बता दी। लिहाजा यह सारी बात बकवास ही है। तुम्हारी कोई छोकरी नहीं है, और तुम शायद सरासर, पूरी तरह पागल हो। और अब तुम यहाँ बैठे उबले गोश्त से यूँ चिपके हुए हो जैसे तीन दिन से मुँह में कौर न गया हो। माना कि खाना तो पागल भी खाते हैं, पर मैं देख सकता हूँ कि तुम... पागल नहीं हों। हालाँकि तुमने मुझसे अभी तक एक शब्द भी नहीं कहा है! मैं कसम खा कर कह सकता हूँ कि तुम कतई पागल नहीं हो। इसलिए तुम सब जाओ भाड़ में क्योंकि जाहिर है इसमें कोई भेद है, कोई रहस्य है और अगर मैं तुम्हारे रहस्यों का पता लगाने में अपना सर खपाऊँ, तो मुझ पर लानत बरसे। इसलिए मैं तुमसे बस यह बताने आया हूँ कि तुम्हारे बारे में मैं क्या सोचता हूँ,' उसने उठते हुए अपनी बात खत्म की। '...अपने दिमाग पर से बोझ उतारने के लिए। इसलिए कि अब मुझे मालूम है कि मुझे क्या करना है!'

'तुम अब क्या करनेवाले हो?'

'तुमसे मतलब कि मैं क्या करनेवाला हूँ?'

'देखो, खबरदार! तुम शराब पीना न शुरू कर दो!'

'कैसे... तुमने कैसे अंदाजा लगाया?'

'हे भगवान, यह तो सीधी-सी बात है!'

रजुमीखिन कुछ पलों तक चुप रहा।

'तुम हमेशा बहुत समझदार रहे,' अचानक उसने जोश में कहा, 'और कभी पागल नहीं रहे... कभी नहीं। तुम एकदम ठीक कहते हो : मैं शराब ही पीने लगूँगा। तो लो, मैं चला।' यह कह कर वह दरवाजे की ओर बढ़ा।

'रजुमीखिन, मैं अपनी बहन से तुम्हारे बारे में ही बातें कर रहा था। मेरा खयाल है परसों।'

'मेरे बारे में! लेकिन परसों तुम उनसे कहाँ मिले?' रजुमीखिन अचानक ठिठका। उसके चेहरे का रंग जरा उतर गया। साफ लग रहा था कि उसका दिल धीरे-धीरे लेकिन भारीपन के साथ धड़क रहा था।

'वह यहाँ अकेली आई थी। यहीं बैठ कर मुझसे बातें करती रही।'

'यह बात?'

'हाँ।'

'उनसे तुमने क्या बातें की... मेरा मतलब है, मेरे बारे में क्या कहा?'

'मैंने उसे बताया कि तुम बहुत भले, ईमानदार और मेहनती इनसान हो। हाँ, उसे मैंने यह नहीं बताया कि तुम उससे प्यार करते हो, क्योंकि यह तो वह आप ही जानती है।'

'आप ही जानती हैं?'

'बिलकुल! तो मैं कहीं भी जाऊँ, मेरा जो भी हाल हो, तुम उन लोगों के साथ ही रहना, उनकी देखभाल करना। यह समझ लो रजुमीखिन कि उन्हें मैं तुम्हारे हवाले कर रहा हूँ... कि मुझे पता है, तुम्हें उससे कितना प्यार है और इसलिए कि मुझे पक्का यकीन है कि तुम एक नेक इनसान हो। मुझे यह भी पता है कि अगर इस वक्त उसे तुमसे प्यार नहीं भी हो, तो भी आगे चल कर वह तुमसे प्यार कर सकती है। अब तुम खुद ही फैसला करो कि तुम्हें शराब शुरू करनी चाहिए या नहीं।'

'रोद्या... देखो... खैर... जाने दो यह बात! लेकिन तुम भला कहाँ जाने की सोच रहे हो मेरा मतलब है, अगर यह कोई भेद की बात है तो मैं जवाब के लिए तुम पर जोर नहीं डालूँगा। हाँ, मैं... मैं इस भेद का पता तो लगा ही लूँगा... और मुझे पूरा यकीन है कि यह सब खुराफात है... सरासर बकवास है, और यह सारा सिलसिला तुमने ही शुरू किया है। फिर भी, तुम आदमी बहुत अच्छे हो! बहुत अच्छे...'

'खैर, मैं तो आप ही तुम्हें बताने जा रहा था, लेकिन तुमने मेरी बात बीच में ही काट दी। अभी एक मिनट पहले तुम्हारे मुँह से यह सुन कर मैं बहुत खुश हुआ था कि तुम मेरे किसी भेद का पता लगाने की कोशिश नहीं करोगे। फिलहाल तो भेद को भेद ही रहने दो। तुम बड़े अच्छे हो, और उसके बारे में परेशान मत हो। वक्त आने पर हर बात तुम्हें मालूम हो जाएगी... मेरा मतलब है, जब तुम्हारे जानने का वक्त आएगा। कोई मुझे कल बता रहा था कि आदमी के लिए जो चीज जरूरी है, वह है ताजा हवा, हवा! मैं अभी उसके पास जा कर यही मालूम करना चाहता था कि इससे उसकी मुराद क्या थी।'

रजुमीखिन विचारमग्न और अंदर से हिला हुआ नजर आ रहा था। लग रहा था, वह किसी बात के बारे में सोच रहा है।

'यह एक राजनीतिक षड्यंत्रकारी है, इसमें कोई शक नहीं! और यह भी तय है कि यह जान की बाजी लगा कर कुछ करनेवाला है... इसके अलावा कुछ और हो भी नहीं सकता और... और दुनिच्का इस बात को जानती है,' उसने मन-ही-मन सोचा।

'तो तुम्हारी बहन तुमसे मिलने आती हैं,' उसने एक-एक शब्द पर जोर दे कर कहा, 'और तुम खुद ऐसे किसी आदमी से मिलने के लिए बेचैन हो जो कहता है कि हमें हवा की और ज्यादा जरूरत है, हवा की और... मैं समझता हूँ कि वह खत भी इसी तरह की कोई चीज है,' उसने अपनी बात खत्म करते हुए कहा, गोया अपने आपसे बातें कर रहा हो।

'कौन-सा खत?'

'आज सबेरे उनके पास एक खत आया जिसे पढ़ कर वे बहुत परेशान हो गईं। बहुत ही परेशान। मैं तुम्हारे बारे में बातें करने लगा तो मुझे लगभग डाँट कर चुप करा दिया। फिर... फिर बोलीं कि शायद जल्दी ही हमको एक-दूसरे से अलग होना पड़े। फिर किसी बात के लिए मेरा शुक्रिया अदा करने लगीं, और उसके बाद अपने कमरे में जा कर कमरा अंदर से बंद कर लिया।'

'उसके पास कोई खत आया था?' रस्कोलनिकोव ने कुछ सोचते हुए कहा।

'हाँ। तुम्हें नहीं मालूम हूँ!'

दोनों चुप रहे।

'तो रोद्या, मैं चला। देखो यार... एक जमाना वह भी था जब... खैर, चलता हूँ! मुझे जाना भी है। मैं शराब के चक्कर में नहीं पड़ूँगा, अब उसकी कोई जरूरत नहीं रही... खतरे की कोई बात नहीं।'

उसे जाने की जल्दी थी, लेकिन बाहर निकलते हुए जब वह दरवाजा बंद करने लगा तो अचानक दरवाजा फिर खोल कर रस्कोलनिकोव की ओर देखे बिना बोला :

'अरे हाँ, तुम्हें वह कत्ल तो याद है न पोर्फिरी और... वह बुढ़िया तो मैं तुम्हें यह बता दूँ कि हत्यारे का पता चल चुका है। उसने अपना अपराध मान लिया है और सारे सबूत भी बरामद करा दिए हैं। वह उन्हीं मजदूरों में से था जो घर की रंगाई-पुताई कर रहे थे। कमाल की बात है न? याद है, मैं यहीं पर, उन्हीं की पैरवी कर रहा था। तुम यकीन करोगे कि जिस वक्त दरबान और दो गवाह सीढ़ियों से ऊपर जा रहे थे तब उसने जान-बूझ कर अपने पर से शक हटाने के लिए अपने साथी के साथ सीढ़ियों पर मार-पीट और हँसी-मजाक का वह नाटक रचा था। ऐसी नौजवानी में इतनी चालाकी ऐसी हाजिर-दिमागी! यकीन नहीं आता किसी तरह, लेकिन उसने हर बात की वजह साफ कर दी है और सब कुछ साफ तौर पर कबूल कर लिया है। पर मैं भी कैसा बेवकूफ बना! मैं तो समझता हूँ कि मक्कारी और सूझबूझ में उसका जवाब नहीं है। वह हमारे बड़े-बड़े कानून के पंडितों की आँखों में धूल झोंकने में उस्ताद है, सो ताज्जुब की कोई बात नहीं है इसमें! बहरहाल, ऐसे लोग भी इस दुनिया में क्यों न मिलें जहाँ तक इस नाटक को जारी न रख पाने और अपना अपराध कबूल कर लेने की बात है, तो यह भी एक वजह है कि उसका यकीन किया जाए। बात और भी यकीन के लायक हो जाती है... लेकिन उस दिन मैं कैसा बेवकूफ बना! उसकी पैरवी में जमीन-आसमान के कुलाबे मिला दिए!'

'आह... पर यह तो बताओ कि ये सब बातें तुम्हें कैसे मालूम हुईं, और तुम्हें इसमें इतनी दिलचस्पी क्यों है?' रस्कोलनिकोव ने साफ तौर पर उत्तेजित हो कर पूछा।

'हे भगवान, इसमें मेरी दिलचस्पी की भी एक ही कही! क्या सवाल है! मुझे यह बात औरों के अलावा पोर्फिरी से भी मालूम हुई। सच तो बल्कि यह है कि लगभग सारी बातें उसी ने बताईं।'

'पोर्फिरी ने'

'हाँ, पोर्फिरी ने।'

'हूँ तो क्या... क्या कहा उसने?' रस्कोलनिकोव ने चौंक कर पूछा।

'अरे उसने तो सारी बातें बड़े ही खूबसूरत ढंग से समझाईं। मनोवैज्ञानिक ढंग से, अपने ही खास ढंग से।'

'उसने समझाया... तुम्हें उसने खुद समझाया?'

'हाँ, खुद उसने। तो मैं चला। बाद में तुम्हें और भी बातें बताऊँगा। माफ करना, अब मैं भागूँगा। देखो, बात यह है कि एक जमाना था जब मैं सोच करता था... पर जाने दो, अभी नहीं बाद में बताऊँगा... अब मैं नशे में चूर होना नहीं चाहता, तुमने तो मुझे शराब के बिना ही मदहोश कर दिया है। मैं नशे में हूँ, रोद्या! एक बूँद भी पिए बिना नशे में हूँ। खैर, फिर मिलेंगे। बहुत जल्द मैं फिर आऊँगा।'

वह चला गया।

'किसी राजनीतिक षड्यंत्र में यह शामिल है, यह तो तय बात है... एकदम पक्की,' रजुमीखिन ने धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरते हुए आखिरी तौर पर सोचा। 'और इसने अपनी बहन को भी उसमें घसीट लिया है। दुनिच्का जैसी लड़की के साथ ऐसा होना ऐन मुमकिन है। दोनों छिप-छिप कर मिलने भी लगे हैं... और उसने भी इशारे-इशारे में मुझसे यह बात कही! हाँ, उसकी बातों से... उसके हाव-भाव से... और उसके इशारों से तो यही लगता है कि यह बात सच होगी! वरना इस गुत्थी का और क्या हल हो सकता है मैं सोचता था... हे भगवान, मैंने ऐसी बात सोची कैसे! मैं पागल था कि मैंने इस तरह की बात सोची और इस तरह उसके साथ बड़ी ही ज्यादती की। उस दिन रात को गलियारे में लैंप के नीचे उसी ने मुझे ऐसा सोचने पर मजबूर किया। लानत है! कैसा बेहूदा, भोंडा और कायरता भरा विचार था! भला हो उस निकोलाई का कि उसने अपना अपराध मान लिया! उसकी वजह से कितनी मदद मिली है सारी बात समझने में। इसकी बीमारी, इसकी अजीब-अजीब हरकतें... यूनिवर्सिटी में भी यह उखड़ा-उखड़ा और उदास रहा था... लेकिन उस खत का भेद क्या है मैं समझता हूँ, उसमें भी कोई बात जरूर है। किसका खत था? मुझे तो शक है... खैर, पता तो मैं लगा ही लूँगा!'

दुनिच्का का अजीब-गरीब व्यवहार याद करके उसका दिल डूबने लगा। वह तेज कदम बढ़ाता हुआ चलता रहा।

रजुमीखिन के जाते ही रस्कोलनिकोव उठा, खिड़की की ओर घूमा और कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक टहलने लगा, गोया उसे यह याद भी न रहा हो कि कमरा कितना छोटा था, और... वह एक बार फिर सोफे पर बैठ गया। लग रहा था, वह बिलकुल बदल गया है। तो आगे एक संघर्ष और भी है... मतलब कि बाहर निकलने का रास्ता भी है!

'हाँ, रास्ता तो है! हवा की बेहद कमी हो रही है... काफी घुटन है यहाँ!' उसे लगा, वह किसी बहुत बड़े बोझ के नीचे दबा हुआ है जो उसे जमीन से उठने नहीं दे रहा, गोया उसे किसी ने नशीली दवा पिला दी हो। उस दिन पोर्फिरी के दफ्तर में निकोलाई के साथ जो कुछ हुआ था, उसके बाद से वह बहुत जकड़ा हुआ, घुटा-घुटा महसूस करने लगा था। उसी दिन निकोलाईवाली घटना के बाद सोन्या के कमरेवाली बात हुई थी। उस घटना में उसने जो कुछ किया और अंत में जो कुछ कहा, उसकी उसने पहले से कल्पना तक नहीं की थी... हाँ, वह कमजोर हो गया था, और सो भी अचानक और पूरी तरह! एक ही झटके में! उस वक्त वह सोन्या की इस बात से सहमत था कि अपने अंतःकरण पर ऐसी चीज का बोझ ले कर वह चल नहीं सकेगा! और स्विद्रिगाइलोव? स्विद्रिगाइलोव एक पहेली था... यह सच था कि उसे स्विद्रिगाइलोव की वजह से काफी चिंता रहती थी, लेकिन न जाने क्यों यह उस तरह की चिंता नहीं थी। शायद उसे स्विद्रिगाइलोव से भी टकराना पड़े। शायद उसके लिए स्विद्रिगाइलोव को पछाड़ देने की गुंजाइश भी बहुत थी। लेकिन पोर्फिरी की बात एकदम अलग थी।

तो पोर्फिरी ने रजुमीखिन को सारी बात समझाई। मनोवैज्ञानिक ढंग से... उसने फिर अपना वही मनहूस मनोविज्ञान घुसेड़ा! पोर्फिरी उस दिन उसके दफ्तर में उन दोनों के बीच जो कुछ हुआ था उसके बाद, और निकोलाई के आने से पहले उन दोनों में जो झड़प हुई थी उसके बाद, जिसकी बस एक वजह हो सकती थी... क्या यह मुमकिन था कि पोर्फिरी एक पल के लिए भी यह यकीन कर ले कि निकोलाई अपराधी था! (पिछले कुछ दिनों में रस्कोलनिकोव को पोर्फिरी के साथ उस झड़प के अलग-अलग टुकड़े कई बार याद आए थे; पूरी घटना को याद करना उसकी बर्दाश्त से बाहर था।) उस दिन ऐसी बातें भी कही गई थीं, दोनों के बीच इस तरह के इशारे भी हुए थे, दोनों ने ऐसी नजरों से एक-दूसरे को देखा था, ऐसे लहजे में बातें कही गई थीं और आखिर में यहाँ तक नौबत पहुँच गई थी कि इतना सब कुछ होने के बाद निकोलाई (जिसे पोर्फिरी ने उसके पहले ही शब्द और उसकी पहली ही मुद्रा से एक खुली किताब की तरह पढ़ लिया था) उसके विश्वास को डिगा नहीं सकता था।

पर कमाल तो यह था कि अब रजुमीखिन भी शक करने लगा था! उस दिन गलियारे में लैंप के नीचे जो कुछ हुआ उसका भी असर पड़े बिना नहीं रहा इसीलिए तो वह भागा-भागा पोर्फिरी के पास गया था। ...लेकिन पोर्फिरी क्यों उसे धोखे में रखना चाहता था? रजुमीखिन का ध्यान निकोलाई की ओर मोड़ने के पीछे उसकी क्या चाल थी? उसके मन में कोई तो बात होगी। उसके कुछ इरादे तो होंगे! तो वे इरादे क्या थे? वह सच है कि उस सुबह के बाद से बहुत सारा वक्त गुजर गया था - बहुत अधिक वक्त - और पोर्फिरी की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई थी। यह यकीनन कोई बहुत अच्छा संकेत नहीं है...' रस्कोलनिकोव गहरी सोच में डूबा हुआ था। बाहर जाने के इरादे से उसने अपनी टोपी उठाई। इतने दिनों में पहली बार उसे महसूस हुआ कि उसके दिमाग पर जो बादल छाए हुए थे, वे छँट गए हैं। 'मुझे स्विद्रिगाइलोव से तो निबटना ही होगा,' उसने सोचा, 'हर कीमत पर और जल्द से जल्द निबटना होगा। शायद वह भी इसी की राह देख रहा है कि मैं उसके पास आऊँ।' उस पल उसके थके हुए मन में इतनी नफरत भर गई कि वह उन दो में से किसी को कत्ल भी कर सकता था : स्विद्रिगाइलोव को या फिर पोर्फिरी को। उसने कम-से-कम यही महसूस किया कि अभी नहीं तो बाद में तो वह ऐसा कर ही सकता है। 'देखेंगे... देखेंगे,' वह बार-बार मन ही मन कहता रहा।

लेकिन उसने अभी दरवाजा खोला ही था कि उसकी मुठभेड़ पोर्फिरी से हो गई। वह उससे ही मिलने आ रहा था। एक पल के लिए रस्कोलनिकोव भौंचक रह गया, लेकिन बस एक पल के लिए। अजीब बात है कि उसे पोर्फिरी को देख कर ताज्जुब तक नहीं हुआ और उससे कुछ खास डर भी नहीं लगा। वह बस चौंक पड़ा लेकिन जल्द ही, लगभग फौरन ही, अपने आपको इस बात के लिए तैयार कर लिया कि जो भी होना हो, वह हो ही ले। 'शायद यही अंत है! लेकिन वह इस तरह, चूहे की तरह चुपके-चुपके ऊपर कैसे आया कि उसकी आहट तक मैंने नहीं सुनी! कहीं छिप कर कान लगाए सुन तो नहीं रहा था!'

'तुम्हें एक मेहमान के आने की उम्मीद तो रही नहीं होगी, दोस्त' पोर्फिरी जोर-से हँस कर बोला। 'मैं एक अरसे से तुमसे मिलने का इरादा कर रहा था। इधर से गुजर रहा था तो सोचा कि क्यों न पाँच मिनट के लिए मिलता चलूँ और देखूँ कि तुम्हारा क्या हाल है। बाहर जा रहे हो? मैं ज्यादा वक्त नहीं लूँगा। अगर तुम्हें एतराज न हो तो एक सिगरेट पी लूँ।'

'कृपा करके आसन लीजिए पोर्फिरी पेत्रोविच, तशरीफ रखिए!' रस्कोलनिकोव इतनी शिष्टता और मित्रता के भाव से मेहमान से बैठने को कह रहा था कि वह खुद अगर देखता तो उसे ताज्जुब होता। तो अब टकराव का वक्त करीब आ रहा है! आदमी आध घंटा किसी कातिल के साथ बिताता है और उसकी साँस अटकी रहती है, लेकिन जब छुरा उसकी गर्दन पर रख दिया जाता है तो उसे कतई कोई डर नहीं लगता। रस्कोलनिकोव पोर्फिरी के सामने आन बैठा और पलक झपकाए बिना उसे देखने लगा। पोर्फिरी ने आँखें सिकोड़ कर देखा और सिगरेट जलाने लगा।

'खैर, तो कहिए, कुछ कहिए तो सही!' लग रहा था कि शब्द रस्कोलनिकोव के दिल से फूटे पड़ रहे थे। 'आप कुछ बोलते क्यों नहीं, जनाब!'

अपराध और दंड : (अध्याय 6-भाग 2)

'इन सिगरेटों को ही देखो,' पोर्फिरी ने सिगरेट जला लेने के बाद धुआँ फूँकते हुए कहना शुरू किया। 'मुझे पता है कि ये मेरे लिए अच्छी नहीं हैं लेकिन इन्हें मैं नहीं छोड़ सकता। हर वक्त खाँसी आती रहती है, गले में खराश रहती है, दम फूलता है। तुम जानते ही हो, मैं जरा डरपोक किस्म का बंदा हूँ। अभी उस दिन मैं एक स्पेशलिस्ट के पास गया था - डॉ. बोतकिन के पास। वे हर मरीज को देखने में कम-से-कम आधा घंटा लगाते हैं, लेकिन मुझे देख कर बस हँस पड़े। ठोंक-बजा कर देखा, सीने पर आला लगा कर देखा। फिर मुझसे बोले, तंबाकू तुम्हारे लिए बुरी है, फेफड़ों पर असर हो गया है। लेकिन मैं इसे छोड़ूँ कैसे... इसकी जगह ले सके, ऐसी क्या चीज है मुसीबत यह है कि शराब मैं छूता नहीं, हा-हा-हा! मैं तो समझता हूँ सारी मुसीबत यही है। देखो, बात यह है कि अपने आप में कोई भी चीज अच्छी या बुरी नहीं होती; आदमी-आदमी की और वक्त-वक्त की बात होती है!'

'अपनी वही कानूनी चालें फिर तो नहीं चल रहा?' रस्कोलनिकोव ने झुँझला कर सोचा। पिछली मुलाकात का सारा दृश्य अचानक उसकी आँखों के सामने आ गया और एक बार फिर उसने उसी भावना को तेजी से उभरता हुआ महसूस किया जिसे उसने उस समय महसूस किया था।

'परसों भी तुमसे मिलने आया था मैं, शाम को,' पोर्फिरी कमरे में चारों ओर नजरें दौड़ाते हुए कहता रहा। 'तुम्हें पता नहीं, यहाँ आया था, इसी कमरे में। इधर से हो कर गुजर रहा था... आज ही की तरह, सो दिल में सोचा, क्यों न एक मिनट के लिए मिलता चलूँ सो मैं आया। तुम्हारे कमरे का दरवाजा भाड़ के मुँह जैसा खुला हुआ था। मैंने इधर-उधर देखा, तुम्हारी नौकरानी तक को नहीं बताया, और वापस चला गया। तुम दरवाजे में ताला नहीं लगाते, क्यों?'

रस्कोलनिकोव का चेहरा और भी गंभीर हो गया। लगता था, पोर्फिरी ने उसके विचारों को भाँप लिया था।

'मैं तुमसे ही बातें करने आया हूँ, दोस्त! लेकिन सिर्फ बातें करने! यहाँ आने की वजह बताना मेरे लिए जरूरी है, बल्कि मेरा फर्ज है,' वह कुछ मुस्कराते हुए कहता रहा, और उसने धीरे से रस्कोलनिकोव का घुटना थपथपाया। लेकिन लगभग उसी पल उसका चेहरा गंभीर और विचारमग्न हो गया। रस्कोलनिकोव को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उसकी भंगिमा में उदासी की भी जरा-सी परछाईं थी। उसे उसने कभी ऐसा नहीं देखा था, बल्कि कभी सोचा तक नहीं था कि वह कभी ऐसा भी नजर आ सकता है। 'मैं समझता हूँ पिछली मुलाकात के वक्त हम दोनों के बीच झड़प जैसी कोई बात हो गई थी। यह सच है कि पहली मुलाकात में भी हम दोनों के बीच कुछ झड़प-सी हुई थी... लेकिन अब एक ही बात करनी है। अब मैं तुमसे बस इतना कहना चाहता हूँ कि मैंने तुम्हारे साथ शायद ज्यादती की है। हाँ, मुझे यही खयाल आता रहता है कि मैंने ज्यादती की है। तुम्हें याद है, हम लोग पिछली बार किस तरह एक-दूसरे से अलग हुए थे, कि नहीं याद है तुम बुरी तरह झुँझलाए हुए थे। तुम्हारी टाँगें बुरी तरह काँप रही थीं, और मेरी भी। देखो, मैं समझता हूँ कि उस दिन जो कुछ भी हुआ वह बहुत भद्दा था; उसमें शरीफों जैसी कोई बात नहीं थी। हम लोग तो शरीफ ही हैं, कि नहीं कुछ भी हो जाए हम सबसे पहले और सबसे बढ़ कर शरीफ ही रहेंगे। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। लेकिन तुम्हें याद होगा, हम लोग किस हद तक आगे बढ़ गए थे... सच पूछो तो बेहूदगी की हद तक।'

'कहना क्या चाहता है? यह मुझे समझता क्या है?' रस्कोलनिकोव आश्चर्य में पड़ा सोचता रहा, और सर उठा कर नजरें जमाए हुए पोर्फिरी को घूरता रहा।

'अब मैंने तय किया है कि हमारे लिए यही बेहतर होगा कि हम दोनों एक-दूसरे से दिल खोल कर बातें करें,' पोर्फिरी अपना सर थोड़ा पीछे करके कहता रहा, गोया उसे अपने पुराने शिकार को परेशान करना अच्छा न लग रहा हो और जैसे उसने तिरस्कार के साथ अपने पुराने तरीकों और तरकीबों को दूर फेंक दिया हो। 'तो इस तरह की झड़पें और शंकाएँ बहुत दिन तक नहीं चल सकतीं। वह तो कहो कि निकोलाई ने आ कर उस झड़प को खत्म करा दिया, वरना हम दोनों के बीच न जाने क्या हो जाता। वह कमीना पूरे वक्त मेरे कमरे के पीछे ही जमा रहा... कभी तुम सोच भी सकते थे जाहिर है तुम्हें भी यह बात मालूम है, और मैं यह भी जानता हूँ कि वह बाद में तुमसे मिलने आया था। लेकिन उस वक्त तुम जो समझते थे, वैसा कुछ भी नहीं हुआ था। मैंने किसी को नहीं बुलवाया था और उस वक्त किसी तरह का कोई हुक्म नहीं दिया था। तुम पूछोगे -क्यों नहीं पर मैं तुम्हें क्या बताऊँ इस सबका असर मुझ पर भी पड़ा था। दरबानों को भी मैं मुश्किल से बुलवा सका था। (मैं समझता हूँ, तुमने बाहर जाते वक्त दरबानों को देखा होगा।) देखो, बात यह है कि उस वक्त मुझे कोई बात सूझी थी - बिजली की तरह ही वह विचार मेरे दिमाग में कौंधा था। जैसा कि तुम देखोगे दोस्त, मुझे तो उसी वक्त पक्का यकीन हो चुका था। मैंने सोचा, क्यों न आजमा कर देखूँ। हो सकता है कोई चीज थोड़ी देर के लिए मेरे हाथों से निकल जाए, लेकिन आखिर में यकीनन कोई दूसरी चीज हाथ लग जाएगी, और दोस्त, कम-से-कम मैं जो चीज चाहता हूँ उसे हाथ से निकलने नहीं दूँगा। मैं समझता हूँ दोस्त, कि तुम स्वभाव से ही चिड़चिड़े हो। तुम्हारी दूसरी खूबियों को देखें तो जरूरत से कुछ ज्यादा ही चिड़चिड़े हो और इसे मैं अपनी बहुत बड़ी कामयाबी समझता हूँ कि मैंने कुछ हद तक उसकी थाह पा ली है। तो यह बात मुझे उसी वक्त समझ लेनी चाहिए थी कि आदमी उठे और अपने बारे में सारी सच्चाई उगल दे, ऐसा हमेशा नहीं होता। कभी-कभी जरूर होता है, अगर आप किसी तरकीब से उसे इतना गुस्सा दिला दें कि वह आपे से एकदम बाहर हो जाए, लेकिन आमतौर पर ऐसा नहीं होता। यह बात मुझे समझ लेनी चाहिए थी। खैर, मैंने सोचा था कि मुझे तो असल में एक छोटे से तथ्य की, एक बहुत ही छोटे-से तथ्य की, कुल जमा एक तथ्य की जरूरत है, किसी ऐसी चीज की जो मेरे काम आ सके, कोई ऐसी चीज जो ठोस हो, बस निरा मनोविज्ञान न हो। इसलिए कि मैं सोचता था, अगर कोई आदमी अपराधी है तो वक्त आने पर आपको उससे उसी के बारे में कोई ठोस नतीजा हासिल होना चाहिए; और आपको ऐसा कोई नतीजा मिलने का भी भरोसा रखने का हक है, जिसकी आपको कतई कोई उम्मीद न हो। मैं आपके स्वभाव पर उम्मीद लगाए बैठा था जनाब, सबसे बढ़ कर आपके स्वभाव पर। लेकिन मैं समझता हूँ, मुझे उस वक्त तुम्हारा जरूरत से ज्यादा भरोसा था।'

'लेकिन... लेकिन आप अभी भी उसी तरह की बातें क्यों ठोंके जा रहे हैं,' रस्कोलनिकोव ने आखिर बड़बड़ा कर पूछा। उसे ठीक से यह भी नहीं मालूम था कि उससे पूछा क्यों जा रहा है। 'यह भला किस चीज के बारे में बातें कर रहा है,' उसने कुछ भी न समझ कर अपने आपसे पूछा। 'क्या यह मुझे सचमुच बेकुसूर समझता है?'

'तो मैं इस तरह की बातें क्यों कर रहा हूँ? बात यह है कि मैं अपनी सफाई देने आया हूँ; यूँ कहो कि मैं इसे अपना फर्ज समझता हूँ। तुम्हें मैं सब कुछ बता देना चाहता हूँ, हर बात जिस तरह से हुई ऐन उसी तरह। मैं समझता हूँ, मेरे दोस्त, कि मैंने तुम्हें बहुत तकलीफ पहुँचाई है। मैं कोई दानव नहीं हूँ। मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि उस आदमी के लिए इन सब बातों को झेलने का क्या मतलब होता है, जो निराश होने के बावजूद स्वाभिमानी हो, होशियार हो और बेचैन, खास कर बेचैन हो। बहरहाल, मैं तुम्हें बहुत ही इज्जतदार समझता हूँ, बल्कि तुम्हारे स्वभाव से उदारता की एक झलक भी है। वैसे मैं तुम्हारी हर राय से सहमत नहीं हूँ, और यही मुनासिब समझता हूँ कि मैं फौरन तुम्हें साफ-साफ और पूरी ईमानदारी के साथ यह बात बता दूँ, क्योंकि सबसे बड़ी बात तो यह है कि मैं तुम्हें धोखा देना नहीं चाहता। यह पता लगा लेने के बाद कि तुम किस तरह के आदमी हो, मुझे आप ही तुमसे कुछ लगाव जैसा हो गया। शायद मेरे इस तरह बातें करने की वजह से तुम मुझ पर हँसोगे! खैर, इसका तुम्हें अधिकार है। मैं जानता हूँ, मुझे तुम शुरू से ही नापसंद करते थे, क्योंकि सच तो यह है कि तुम मुझे पसंद करो भी तो क्यों करो! मेरे बारे में तुम चाहे जो सोचो, मैं अपनी तरफ से कोई कोशिश उठा रखना नहीं चाहता कि मेरे बारे में तुम्हारी जो राय बन गई है, उसे मिटा दूँ और तुम्हें बता दूँ कि मैं एक ऐसा आदमी हूँ जिसके दिल में भावनाएँ भी हैं, जिसके पास एक जमीर है। सच कह रहा हूँ मैं।'

पोर्फिरी गरिमा के साथ ठहर गया। रस्कोलनिकोव के दिल में अचानक एक नया डर समा गया। वह अचानक यह सोच कर सहम गया कि पोर्फिरी उसे बेकुसूर समझता है।

'मैं सारी बातें तुम्हें उसी तरह सिलसिलेवार बताऊँ जिस तरह कि वे हुईं, यह तो शायद ही जरूरी हो' पोर्फिरी कहता रहा। 'मुझे डर है कि अगर मैं चाहूँ भी तो मैं ऐसा नहीं कर सकूँगा। भला बातों को विस्तार से कैसे समझाया जा सकता है शुरू में तरह-तरह की अफवाहें फैली थीं। वे किस तरह की अफवाहें थीं और उन्हें कब या किसने फैलाया था, किस तरह... फैलाया था तुम किस तरह इस चक्कर में आ गए - यह सब भी बताने की, मैं समझता हूँ, कोई खास जरूरत नहीं है। जहाँ तक मेरा सवाल है, पूरा सिलसिला इत्तफाक से शुरू हुआ, जो हो भी सकता था और नहीं भी। कौन-सा इत्तफाक मैं समझता हूँ इस बात की चर्चा करने की भी कोई जरूरत नहीं है। इन सब बातों से - इन अफवाहों और इत्तफाकों से - मेरे मन में एक विचार उठा। मैं साफ-साफ मानने को तैयार हूँ - क्योंकि अगर मुझे मानना ही है तो सारी बातें ही मैं क्यों न मान लूँ - कि मुझे सबसे पहले तुम पर शक हुआ था। बात यह है कि गिरवी रखी गई चीजों के साथ बुढ़िया जो सुराग छोड़ गई थी वे बिलकुल बेकार हैं। इस तरह के तो सैकड़ों सुराग मिल सकते हैं। पुलिस थाने में जो कुछ हुआ, उसका ब्योरा भी मुझे उसी वक्त मालूम हुआ। वह भी बिलकुल इत्तफाक से। लेकिन ये बातें मुझे ऐसे आदमी से मालूम हुईं जो ऐसी बातों को बयान करने का खास गुर जानता है और जिसने, खुद इस बात को जाने बिना, मुझे उस घटना का एक बहुत ही उम्दा ब्योरा दिया। यह सब भी बस ताबड़तोड़ हुआ। एक चीज से दूसरी चीज निकलती गई, मेरे दोस्त, यहाँ तक कि मेरे लिए अपना ध्यान एक खास दिशा में मोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया। सौ खरगोशों से जिस तरह एक घोड़ा नहीं बन सकता, उसकी तरह सौ शुबहों को मिला कर एक सबूत नहीं बनता। मैं समझता हूँ यह अंग्रेजी की एक कहावत है, और यह सीधी-सादी समझदारी की बात है। लेकिन किसी आदमी को जिस चीज की धुन हो जाए, उस पर वह काबू नहीं पा सकता... खुद अपनी धुन पर। फिर छानबीन करनेवाला वकील भी तो आदमी ही होता है। मुझे उस पत्रिका में तुम्हारा लेख भी याद था। तुम्हें याद होगा, तुम जब पहली बार आए थे तो हम लोगों ने उस पर विस्तार से बहस की थी। उस वक्त मैंने उसका मजाक उड़ाया था, लेकिन वह मैंने तुम्हें उकसाने के लिए किया था कि तुम मुझे कुछ और बातें बताओ। मैं एक बार फिर कहता हूँ, तुम जरूरत से ज्यादा बेसब्रे हो, मेरे दोस्त, और बीमार भी... बहुत ज्यादा बीमार। तुम बहादुर हो, स्वाभिमानी और जिद्दी हो, गंभीर विचारोंवाले हो, और... और भारी मुसीबत झेल चुके हो। यह सब कुछ मुझे काफी दिनों से मालूम है... मेरे लिए भी ये भावनाएँ अनजानी नहीं हैं, और इसलिए मैंने तुम्हारा लेख अपनी किसी जानी-पहचानी चीज की तरह पढ़ा था। वह सब तो तुमने अपनी रातों की नींद हराम करके, बहुत उत्तेजना की हालत में, धड़कते दिल से और अपने उत्साह को दबा कर सोचा होगा। पर नौजवानों के लिए यह दबा हुआ, स्वाभिमान से भरा उत्साह बहुत खतरनाक होता है! उस वक्त मैंने तुम्हारे लेख का मजाक उड़ाया, लेकिन इतना मैं बता दूँ कि साहित्यप्रेमी होने के नाते नौजवानों की सच्ची लगन से की गई इन पहली साहित्यिक कोशिशों के बारे में मेरे अंदर एक कमजोरी भी रही है। धुआँ, कुहासा, और उस कुहासे में एक टूटती हुई तान की आवाज। तुम्हारा लेख कल्पनातीत और बेतुका है, लेकिन उसमें सच्ची लगन की कैसी ताजगी है, कितना निष्कलंक, नौजवानों जैसा स्वाभिमान है... सब कुछ दाँव पर लगा देने का साहस है। वह एक बीभत्स लेख जरूर है, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने तुम्हारा लेख पढ़ा और अलग रख दिया और... और उसे अलग रखते ही सोचा : यह आदमी किसी दिन मुसीबत में पड़ेगा! इसलिए तुम्हीं बताओ कि पहले जो कुछ हो चुका था, उसे देखते हुए यह कैसे मुमकिन था कि बाद में जो कुछ हुआ मैं उसकी धारा में न बह जाता लेकिन भगवान जानता है, मैं कुछ नहीं कह रहा। इस वक्त मैं किसी भी खास बात का दावा नहीं कर रहा। मैंने तो बस उस वक्त अपने दिमाग में कुछ टाँक लिया था। मैंने सोचा, आखिर क्या है इसमें कुछ भी तो नहीं है, मेरा मतलब है कतई कुछ नहीं। शायद रत्ती भर भी नहीं। फिर मेरे जैसे छानबीन करनेवाले वकील के लिए यह ठीक भी नहीं कि वह इस तरह की बातों की धार में बह जाए। मुझे तो उस आदमी, निकोलाई से निबटना है और मेरे पास ऐसे ठोस तथ्य हैं जिनसे उसके अपराधी होने का संकेत मिलता है... और कोई कुछ भी कहे, तथ्य तो तथ्य ही होता है। वह भी तो मेरे पास अपनी मनोदशा ले कर ही आया था। मुझे उससे इसलिए निबटना है कि यह जिंदगी और मौत का सवाल है। इस वक्त मैं यह सफाई क्यों दे रहा हूँ। इसलिए कि मैं चाहता हूँ तुम्हें हर बात मालूम हो जाए, और यह भी मैं नहीं चाहता कि उस मौके पर मैंने तुम्हारे साथ दुश्मनी का जो सुलूक किया था, उसकी वजह से तुम्हारे दिल से मेरे खिलाफ कोई शिकायत बनी रहे। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि उसमें दुश्मनीवाली कोई बात नहीं थी... हा-हा! क्या खयाल है तुम्हारा उस वक्त तुम्हारे कमरे की तलाशी ली गई थी, कि नहीं ली गई थी... हा-हा! सो भी उस वक्त, जब तुम बीमार थे। लेकिन याद रखना, सरकारी तौर पर नहीं... तलाशी भी मैंने खुद नहीं ली थी, लेकिन तलाशी ली गई थी। तुम्हारे कमरे की एक-एक चीज, एक-एक तिनके को उलट-पुलट कर देखा गया था, और सो भी उस वक्त जब मामला अभी ताजा-ताजा था, लेकिन बेकार। मैंने सोचा, अब वह आदमी मेरे पास आएगा, खुद मेरे पास आएगा, और बहुत जल्द आएगा। दोषी होगा तो जरूर ही आएगा। कोई दूसरा होता तो न आता, लेकिन यह जरूर आएगा। तुम्हें याद है किस तरह तुम्हारे साथ अपनी बातचीत के दौरान रजुमीखिन ने सारा भेद उगल दिया था... यही सोच कर हमने यह मंसूबा बनाया था ताकि तुम भड़को। इसीलिए जान-बूझ कर अफवाहें फैलाईं ताकि तुमसे बातें करते वक्त रजुमीखिन सारा भेद खोल दे, क्योंकि वह ऐसा शख्स है कि अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सकता। तुम्हारे गुस्से और खुली ढिठाई का निशाना सबसे पहले बना जमेतोव : समझ में नहीं आता, शराबखाने में तुमने उसके सामने साफ-साफ कैसे कह दिया कि उसे मैंने मारा है! बेहद हिम्मत और ढिठाई की बात थी, और मैं मन में यह सोचने पर मजबूर हो गया कि यह आदमी अगर सचमुच अपराधी है तो डट कर लड़ेगा! तब मैंने यही सोचा था। इसीलिए मैं इंतजार करता रहा... बड़ी बेचैनी से तुम्हारा इंतजार करता रहा। रहा जमेतोव तो उस दिन तो तुमने उसकी धज्जियाँ उड़ा कर रख दी थीं, और... देखो, मुसीबत यह है कि यह सारा कमबख्त मनोविज्ञान... इसकी भी काट दोहरी होती है! तो मैं तुम्हारा इंतजार करता रहा, और इतने में क्या देखता हूँ कि तुम आ गए! मेरा दिल धक से रह गया। आह! मैं पूछता हूँ, उस दिन सबेरे तुम्हारे आने की जरूरत ही क्या थी तुम क्यों आए तुम्हारी हँसी... जिस वक्त तुम अंदर आए उस वक्त की हँसी... याद है मैंने तो फौरन ही उसके पीछे छिपा हुआ भेद ताड़ लिया था। लेकिन अगर मैं उस तरह तुम्हारा इंतजार न कर रहा होता तो तुम्हारी उस हँसी में मुझे कभी कोई खास बात न दिखाई देती। सही दिमागी हालत का मतलब यही होता है... रजुमीखिन... अरे हाँ, वह पत्थर! तुम्हें उस पत्थर की याद है वह पत्थर जिसके नीचे चीजें छिपाई गई थीं पूरी तरह ऐसा लगता था कि मैंने किसी के बगीचे में उसे देखा है... किसी के बगीचे की बात तुमने जमेतोव से कही थी, और फिर दूसरी बार मेरे दफ्तर में कही थी, कि नहीं फिर जब हमने तुम्हारे लेख की छानबीन शुरू की, जब तुमने उसका मतलब समझाना शुरू किया, तो तुम्हारे हर शब्द में मुझे दो अर्थ नजर आने लगे, जैसे हर शब्द के नीचे कोई दूसरा शब्द छिपा हो! तो मेरे दोस्त, इसी तरह से मैं मील के आखिरी पत्थर तक पहुँचा और उससे जब मैंने सर टकराया तब मुझे होश आया। हे भगवान, मैंने अपने आपसे कहा, मैं कर क्या रहा हूँ! इसलिए अगर कोई चाहे तो इस पूरे सिलसिले को सर के बल खड़ा कर दे और वही स्वाभाविक लगने लगेगी। मैं परेशान हो कर तड़प उठा। मैंने अपने मन में कहा : नहीं, इससे काम नहीं चलेगा। मेरे पास कुछ ठोस होना चाहिए जिसका मैं सहारा ले सकूँ। इसलिए जब मुझे दरवाजे की घंटीवाली बात पता चली तो मैं सन्न रह गया। अंदर ऐसी खलबली मची कि मैं काँपने लगा। मैंने दिल में सोचा, आखिरकार कोई ठोस चीज हाथ आई। यही है वह! तब मैंने इस बात पर पूरी तरह सोच-विचार करने की भी जरूरत नहीं समझी। बस जी ही नहीं चाहा। उस पल काश मैं अपनी आँखों से देख पाता कि तुम किस तरह सौ गज तक उस कमबख्त के साथ गए जिसने तुम्हारे मुँह पर तुम्हें 'हत्यारा' कहा था और रास्ते भर तुम्हें उससे एक भी सवाल पूछने की हिम्मत नहीं हुई! ...रीढ़ की हड्डी में ऊपर से नीचे तक सिहरन का दौड़ना! और दरवाजे की घंटी बजाना! क्या यह सब कुछ उस वक्त हुआ था जब तुम बीमार थे जब तुम नीमबेहोशी की हालत में थे? इसलिए, मेरे दोस्त, तुम्हारे साथ मैंने जिस तरह के मजाक किए थे, उन पर तुम्हें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए। पर तुम ठीक उसी वक्त क्यों आए क्या, एक मानी में ऐसा नहीं था कि गोया कोई तुम्हें भी पीछे से धकेल रहा हो! धकेल रहा था न? अब अगर निकोलाई हम दोनों के बीच में न आया होता... निकोलाई की याद तो है न? अच्छी तरह याद है न? उसकी गोया आसमान से टपक पड़ा था! तूफानी बादल से बिजली टूटी हो! कड़कती हुई बिजली! और मैं उससे मिला किस तरह था बिजली के टूट कर गिरने पर मेरा कोई यकीन नहीं था। रत्तीभर नहीं! तुमने खुद भी देखा था! लेकिन, भगवान जानता है, बाद में भी... तुम्हारे चले आने के बाद भी, जब वह मेरे कुछ सवालों के समझदारी भरे ऐसे जवाब देने लगा कि मुझे भी उस पर ताज्जुब होने लगा, तब भी मैंने उसकी किसी बात का यकीन नहीं किया! अटल रहने का मतलब यही होता है। नहीं, मैंने मन में सोचा, ऐसा नहीं हो सकता! इसमें निकोलाई का कोई हाथ नहीं।'

'रजुमीखिन ने मुझे अभी-अभी बताया कि आपको अभी तक निकोलाई के ही अपराधी होने का यकीन है और यह भी कि रजुमीखिन को खुद आपने यकीन दिलाया है कि निकोलाई ही अपराधी है...'

उसकी साँस फूलने लगी। अपनी बात वह पूरी नहीं कर सका। एक अवर्णनीय उत्तेजना के साथ वह उस आदमी की बातें सुनता रहा था, जिसने उसके भेद का पता लगा लिया था पर जो अब अपनी ही पिछली बात से मुकर रहा था। वह इस पर यकीन कर भी नहीं पा रहा था और उसे यकीन था भी नहीं। उसके शब्दों में, जो अभी तक अस्पष्ट थे, वह किसी ठोस, अकाट्य चीज की लगातार तलाश कर रहा था।

'मिस्टर रजुमीखिन!' पोर्फिरी चिल्लाया, गोया रस्कोलनिकोव के मुँह से, जो अभी तक बिलकुल चुप था, यह सवाल सुन कर उसे बहुत खुशी हुई हो। 'हा-हा-हा! अरे! मुझे मिस्टर रजुमीखिन को रास्ते से तो हटाना ही था : दो आदमी हों तो संगत कहलाती है, तीन हों तो भीड़। मिस्टर रजुमीखिन का इस मामले से कोई संबंध नहीं है। बाहर का आदमी है वह। मेरे पास वह भागा-भागा आया था, चेहरा बिलकुल उतरा हुआ... लेकिन, छोड़ो भी उसे, इस मामले में उसे क्यों लाते हो रहा निकोलाई, तो क्या तुम जानना चाहोगे कि वह किस तरह का आदमी है... मेरा मतलब उसके बारे में मेरी क्या राय है पहली बात तो यह है कि वह अभी बच्चा है, अभी बालिग भी नहीं हुआ... मैं यह तो नहीं कहूँगा कि वह सचमुच बुजदिल है, लेकिन मेरा मतलब है... यूँ समझ लो... कि वह एक तरह से कलाकार है। उसके बारे में मेरी इस तरह की राय पर हँसो मत। वह मासूम है और जल्द ही किसी भी बात के असर में आ सकता है। बहुत ही भावुक है... कमाल का आदमी। गाना जानता है, नाचना जानता है, और किसी ने मुझे बताया कि परियों की कहानियाँ तो इतनी अच्छी सुनाता है कि लोग मीलों दूर से सुनने आते हैं। अभी तक स्कूल जाता है, और तुम उसकी ओर उँगली भी उठा दो तो हँसते-हँसते उसके आँसू निकल आते हैं। शराब इतनी पीता है कि उसे कुछ सुझाई नहीं देता। इसलिए कि शराब पिए बिना नहीं रह सकता, बल्कि जब मौत आती है तब पीता है। इसलिए कि लोग उसे शराब पिलाते हैं। एकदम बच्चों जैसा है! उसने कानों की बालियाँ तो चुरा ली थीं लेकिन यह नहीं समझा था कि वह कोई गलत काम कर रहा है... उसका कहना तो यह है कि जो चीज पड़ी मिल जाए उसे रख लो! जानते हो, वह पुरातनपंथियों में से है, और पुरातनपंथी भी क्या, बस किसी पंथ का है। उसके परिवार में कुछ लोग 'भगोड़े' भी थे, और अभी हाल में वह खुद गाँव में दो साल तक किसी पहुँचे हुए फकीर का मुरीद रह चुका है। ये सारी बातें मुझे खुद निकोलाई से और उसके जरायस्क साथियों से मालूम हुईं। अरे, एक वक्त तो ऐसा भी था जब यह आदमी भाग कर जंगल में चले जाना और संन्यासी बन जाना चाहता था। बड़ा जोश था उसमें, रात-रात भर पूजा-पाठ किया करता था, पुरानी 'सच्ची' किताबें पढ़ता रहता था और उनके पीछे सब कुछ भूल जाता था। पीतर्सबर्ग ने उस पर बहुत असर डाला। खास तौर पर यहाँ की औरतों का असर पड़ा और जाहिर है, शराब का भी। बहुत जल्दी ही असर में आ जाता है। सो फकीर-वकीर सब कुछ भूल गया। मैं पक्के तौर पर जानता हूँ कि उसे एक कलाकार बहुत पसंद करने लगा था, उससे मिलने जाया करता था, और इसलिए वह इसी चक्कर में फँस गया। तो हुआ यह कि उसके दिल में ऐसा डर समाया कि उसने फाँसी लगा कर मर जाने की कोशिश की फिर उसके बाद भाग जाने की भी कोशिश की। हमारी कानूनी कार्रवाइयों के बारे में आम लोगों में जो विचित्र धारणाएँ बुरी तरह फैल गई हैं, उनका भला कोई क्या करे! कुछ लोग तो अदालत के ही नाम से डरते हैं। मुझे नहीं मालूम कि इसमें किसका कुसूर है। मैं तो बस यह उम्मीद किए बैठा हूँ कि हमारी नई अदालतें इस हालत को बदलेंगी। मैं भगवान से भी यही मनाता रहता हूँ कि वे ऐसा कर सकें। खैर, लगता है निकोलाई को जेल में उस फकीर की याद आई। वह बाइबिल भी पढ़ने लगा। क्या तुम्हें मालूम है दोस्त, कि कुछ लोग तकलीफ उठाने का क्या मतलब समझते हैं सवाल किसी की खातिर तकलीफ उठाने का नहीं होता, बल्कि महज तकलीफ उठाने की खातिर तकलीफ उठाने का हो जाता है। मतलब यह कि आदमी को तकलीफ तो उठाना ही चाहिए, और अगर तकलीफ हाकिमों की तरफ से मिले तो फिर क्या पूछना! मुझे एक कैदी का मामला याद आता है... बहुत ही सीधा-सादा आदमी था बेचारा, जेल में पूरा साल आतिशदान पर बैठ कर रात-रातभर बाइबिल पढ़ते हुए काट दिया और बाइबिल पढ़ने का ऐसा असर हुआ उस पर कि एक दिन उसने ईंट का टुकड़ा उठाया और बिना किसी वजह के जेलर को दे मारा, जिसने उसे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाया था। और ईंट फेंका भी तो कैसे! जान-बूझ कर उससे कई गज दूर-इस बात का पक्का हिसाब लगा कर कि उसे कोई चोट न लगे। यह तो तुम जानते ही हो कि कोई कैदी अगर जेल के किसी अफसर पर घातक हमला करता है तो उसके साथ क्या सुलूक किया जाता है। तो उसने 'तकलीफ' उठाई और... इसीलिए मुझे शक होता है कि निकोलाई भी उठाना चाहता है... या इसी तरह की कोई और बात है। मैं यह बात पक्के तौर पर जानता हूँ... ठोस सबूतों की बुनियाद पर। लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि मैं जानता हूँ। तो क्या तुम यह नहीं मानते कि इनमें से ऐसे अनोखे लोगों का निकल आना पूरी तरह मुमकिन है अरे... ऐसा तो जहाँ देखो, वहीं होता रहता है। अब वह फिर उसी फकीर के चक्कर में पड़ रहा है... फाँसी लगा कर मरने की कोशिश के बाद उसे उसके बारे में सब कुछ याद आने लगा। लेकिन मुझे यकीन है कि मुझे वह खुद ही सब कुछ बताएगा। खुद आ कर मुझे बताएगा। क्या तुम समझते हो कि वह ऐसा नहीं करेगा? बस देखते जाओ... अपराध स्वीकार करते हुए उसने जो बयान दिया है, उसे वह वापस ले लेगा! मुझे उम्मीद है कि अब वह किसी भी वक्त आ कर ऐसा कर सकता है। मुझे यह निकोलाई बहुत ही अच्छा लगने लगा है, और मैं उसे बखूबी समझने की कोशिश कर रहा हूँ। क्यों, क्या खयाल है तुम्हारा? हा-हा-हा! तो कुछ बातों के बारे में उसके जवाब सचमुच समझदारी के थे। साफ जाहिर है कि उसने सारी जरूरी जानकारी जमा कर रखी थी और काफी होशियारी से तैयारी की थी। लेकिन कुछ दूसरी बातों के बारे में वह एकदम कोरा मालूम होता है; उनके बारे में उसे कुछ भी नहीं मालूम और उसे शक भी नहीं होता कि उसे कुछ नहीं मालूम। नहीं, दोस्त, यह करतूत निकोलाई की नहीं है! हमारा साबका एक पूरी तरह अनोखे मामले से पड़ा है, एक बहुत ही निराशाजनक मामले से, बिलकुल आजकल के मामले से, एक ऐसे मामले से जो ठेठ हमारे इस जमाने का है, जब लोगों के दिलों में खोट और बदी पैदा हो गई है, जब बार-बार हमें यह सुनने को मिलता है कि इससे खून में नई जान पड़ जाती है, जब ऐश-आराम को जिंदगी में काम की अकेली चीज समझा जाने लगा है, इस मामले में हमारा साबका पड़ा है किताबी सपनों से, एक ऐसे दिल से जो सिद्धांतों के चक्कर में पड़ कर छलनी हो चुका है... हमारा साबका पड़ा है पहला कदम उठाने के पक्के संकल्प से, लेकिन यह एक खास किस्म का संकल्प है; उस आदमी ने यह काम करने की ठानी, और फिर गोया कि वह किसी पहाड़ी से नीचे गिर पड़ा, या गिरजाघर की मीनार से नीचे कूद पड़ा, और अपराध के स्थल पर इस तरह प्रकट हुआ, गोया उसको उसकी मर्जी के खिलाफ वहाँ लाया गया हो। वह सामनेवाला दरवाजा बंद करना तो भूल गया लेकिन कत्ल कर दिया... एक सिद्धांत की खातिर दो जानें ले लीं। उसने उन्हें कत्ल तो कर दिया लेकिन दौलत समेटने की अक्ल नहीं आई... तब जो कुछ उसने लिया भी उसे भी पत्थर के नीचे छिपा दिया। जब बाहर से लोग दरवाजा भड़भड़ा रहे थे और घंटी बजा रहे थे, दरवाजे के पीछे खड़े उसने घोर कष्ट के क्षण बिताए। पर वे भी उसके लिए काफी नहीं थे - नहीं, वह आधी बेहोशी की हालत में एक बार फिर उसी खाली फ्लैट में गया... एक बार फिर उसे घंटी की आवाज को याद करने और एक बार फिर रीढ़ की हड्डी में ऊपर से नीचे तक सिहरन की लहर महसूस करने की जरूरत महसूस हुई... हो सकता है यह सब उसने बीमारी के दौरान किया हो; लेकिन इसके बारे में तुम क्या कहोगे... उसने कत्ल किया है, लेकिन अब भी अपने आपको ईमानदार समझता है; दूसरे लोगों को नफरत की नजर से देखता है; उतरा हुआ चेहरा लिए शहीद बना फिरता है। नहीं रोदिओन रोमानोविच, ये सब बातें मैं निकोलाई के बारे में नहीं कह रहा। निकोलाई का इन सबसे क्या लेना। इससे पहले जो कुछ भी कहा जा चुका था, वह सुनने से लगता था कि कोई आदमी अपनी ही बातों का खंडन कर रहा है। इसलिए उसके बाद ये अंतिम शब्द बहुत ही अप्रत्याशित थे।' रस्कोलनिकोव बुरी तरह काँप उठा, गोया उसके दिल में किसी ने छुरा उतार दिया हो।

'फिर कौन... कौन कातिल है?' उसने हाँफते हुए पूछा, गोया वह अपने आप पर काबू न रख पा रहा हो। पोर्फिरी को इस सवाल पर इतना गहरा ताज्जुब हुआ कि वह अपनी कुर्सी में धँस कर बैठ गया, मानो उसे इस सवाल की उम्मीद भी न रही हो।

'मतलब क्या है तुम्हारा कि कातिल कौन है...?' उसने रस्कोलनिकोव की ही बात दोहराई, मानो उसे अपने कानों पर विश्वास न हो रहा हो। 'क्यों, कातिल तुम हो, दोस्त! तुम हो,' उसने रस्कोलनिकोव के कान में फुसफुसा कर विश्वास के स्वर में कहा।

रस्कोलनिकोव सोफे से उछल पड़ा, कुछ पलों तक स्थिर खड़ा रहा, और फिर एक शब्द भी बोले बिना फिर बैठ गया। चेहरा रह-रह कर फड़क रहा था।

'तुम्हारे होठ पहले की ही तरह फिर फड़क रहे हैं,' पोर्फिरी कुछ सहानुभूति के साथ बुदबुदाया, 'मुझे लगता है, प्यारे कि तुम मेरी बात ठीक से नहीं समझे,' कुछ देर रुक कर उसने फिर कहा। 'इसीलिए तुम इतने हैरान हुए हो। मैं यहाँ जान-बूझ कर तुम्हें सब कुछ बताने और अपने सारे पत्ते तुम्हारे सामने रखने के लिए ही आया था।'

'मैंने नहीं किया यह काम,' रस्कोलनिकोव ने शरारत करते हुए पकड़े गए और सहमे हुए बच्चे की तरह बहुत ही धीमे लहजे में कहा।

'नहीं, दोस्त, यह तुम्हारा ही काम है। कोई दूसरा हो ही नहीं सकता,' पोर्फिरी ने कठोरता से और अटल विश्वास के साथ कहा।

दोनों चुप हो गए। उनकी यह खामोशी एक असाधारण देरी तक बनी रही, कोई दस मिनट तक। रस्कोलनिकोव ने अपनी कुहनियाँ मेज पर टिका दीं और चुपचाप अपने बालों में उँगलियाँ फेरने लगा। पोर्फिरी चुपचाप बैठा उसकी ओर देखता रहा। अचानक रस्कोलनिकोव ने तिरस्कार के साथ पोर्फिरी की ओर देखा।

'आप फिर वही खेल शुरू कर बैठे, पोर्फिरी पेत्रोविच' वह बोला, 'वही पुराने हथकंडे ताज्जुब होता है कि आप उनसे तंग क्यों नहीं हुए।'

'हे भगवान, हथकंडे इस वक्त मेरे किस काम के अगर यहाँ गवाह मौजूद होते तब कोई बात भी होती, लेकिन हम लोग तो दबे-दबे लहजे में एक-दूसरे से अपने दिल की बात कह रहे हैं। तुम देख ही रहे हो कि मैं यहाँ तुम्हारा पीछा करने, तुम्हें खरगोश की तरह पकड़ने नहीं आया। इस वक्त मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम अपना अपराध मानते हो कि नहीं। अपनी हद तक तो मुझे वैसे भी पक्का यकीन हो चुका है।'

'अगर ऐसी बात है तो आप यहाँ आए किसलिए थे?' रस्कोलनिकोव ने चिढ़ कर पूछा। 'मैं आपसे वही सवाल एक बार फिर पूछना चाहूँगा : अगर आप समझते हैं कि मुजरिम मैं हूँ तो मुझे गिरफ्तार क्यों नहीं कर लेते?'

'मुनासिब सवाल है। मैं एक-एक बात करके इसका जवाब दूँगा : सबसे पहली बात तो यह है कि मैं नहीं समझता, तुम्हें फौरन गिरफ्तार करने से मुझे कोई फायदा होगा।'

'मतलब क्या है आपका कि आपको कोई फायदा नहीं होगा? अगर आपको पक्का यकीन है कि मैं अपराधी हूँ तो आपका फर्ज बनता है कि...'

'आह, इस बात से मेरे पक्के यकीन का क्या लेना-देना? इस वक्त तो ये अटकल की बातें हैं। मैं तुम्हें आराम करने के लिए जेल में क्यों डालूँ? तुम अगर खुद मुझसे ऐसा करने को कह रहे हो, तो यह बात तुम जानते होगे। मिसाल के लिए मैं अगर अभी उस कमबख्त कारीगर से तुम्हारा सामना करा दूँ तो तुम्हारे लिए उससे बस इतना कहना काफी होगा कि 'पिए हुए तो नहीं हो? मुझे किसने देखा तुम्हारे साथ? मैंने तो तुम्हें बस शराब के नशे में चूर समझा था, और तुम सचमुच पिए हुए थे!' तो इसके जवाब में मैं तुमसे कहता तो क्या... खास तौर पर इसलिए कि तुम्हारे बयान पर उसकी बात के मुकाबले ज्यादा आसानी से यकीन किया जा सकता था। इसलिए कि उसकी बात के पक्ष में मनोविज्ञान के अलावा कुछ भी नहीं होता, जिसकी उस तरह के आदमी से बहुत उम्मीद नहीं की जाती, जबकि तुम्हारा तीर ठीक निशाने पर बैठता, क्योंकि वह बदमाश पीता तो पानी की तरह है और सारे इलाके में पक्के शराबी के रूप में बदनाम है। इसके अलावा मैं खुद तुम्हारे सामने साफ-साफ मान चुका हूँ कि यह मनोविज्ञान दोधारी तलवार है, जिसकी एक धार दूसरी से ज्यादा पैनी है। इसके अलावा अभी तक तुम्हारे खिलाफ कोई भी सबूत मेरे पास नहीं है। हालाँकि मैं तुम्हें गिरफ्तार तो करूँगा, और सच तो यह है कि मैं - कायदे-कानून के खिलाफ जा कर - तुम्हें इसकी चेतावनी देने के लिए ही यहाँ आया हूँ, फिर भी मैं तुमसे साफ-साफ कहता हूँ - और यह भी कायदे-कानून के खिलाफ है - कि ऐसा करने से मुझे कोई फायदा नहीं होगा। दूसरे, मैं यहाँ इसलिए आया कि...'

'यह 'दूसरे' किसलिए?' रस्कोलनिकोव अब भी हाँफ रहा था।

'इसलिए कि, जैसाकि मैं पहले ही बता चुका हूँ, मैं तुम्हारे सामने अपनी सफाई पेश करना अपना फर्ज समझता हूँ। मैं नहीं चाहता कि तुम मुझे राक्षस समझो, खास कर इसलिए कि, तुम मानो या न मानो, मैं सच्चे दिल से तुम्हारा भला चाहता हूँ। इसी वजह से मैं यहाँ, तीसरी बात, तुम्हारे पास एक बहुत दो-टूक और सीधा सुझाव ले कर आया हूँ - तुम पुलिस के पास जाओ और सारी बातें साफ-साफ मान लो। इससे तुम्हारा भला तो होगा ही, मुझे भी खयाल है, फायदा होगा क्योंकि मुझे इस सारे लफड़े से छुटकारा मिल जाएगा। मैं तुमसे दिल खोल कर साफ बात कह रहा हूँ कि नहीं?'

रस्कोलनिकोव एक मिनट तक सोचता रहा।

'देखिए,' वह बोला, 'आप खुद ही मान रहे हैं कि आपने मेरे खिलाफ जो भी मामला बनाया है, उसकी बुनियाद सिर्फ मनोविज्ञान पर है। लेकिन फिर भी लगता ऐसा है कि आप अचानक गणित में घुस पड़े हैं। अगर आप इस वक्त गलती कर रहे हों तो...।'

'नहीं दोस्त, मैं गलती नहीं कर रहा। मेरे पास एक सुराग है, एक छोटा-सा सुराग जो अचानक मेरे हाथ लग गया था। तकदीर ने साथ दिया!'

'किसी तरह का सुराग?'

'मैं नहीं बताऊँगा। बहरहाल, अब मुझे और ज्यादा ढील देने का कोई हक भी नहीं। मुझे तुमको गिरफ्तार करना ही पड़ेगा। इसलिए देखो, अब मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, और मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ वह तुम्हारी भलाई के लिए कर रहा हूँ। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ दोस्त, कि यही बेहतर होगा।'

रस्कोलनिकोव एक कड़वी हँसी हँसा।

'यह हँसी की बात नहीं, सरासर ढिठाई है। समझ लीजिए कि मैं अपराधी हूँ (जिसे मैं कतई नहीं मानता), तो मैं आपके पास आ कर अपना अपराध क्यों मानूँ, जबकि आप खुद कह रहे हैं कि अगर मुझे जेल भेजा भी गया तो यह ऐसी ही बात होगी जैसे मुझे वहाँ आराम करने के लिए बिठा दिया गया हो?'

'आह, मेरे दोस्त, शब्दों पर पूरी तरह यकीन मत किया करो। जेल जाना शायद आराम के लिए तो नहीं ही हो! बहरहाल, यह तो बस एक सिद्धांत है, और सो भी मेरा सिद्धांत; और तुम्हारे लिए मेरी बात कोई प्रामाणिक तो है नहीं! हो सकता है मैं इस वक्त भी तुमसे कुछ छिपा रहा हूँ। तुम कहीं यह उम्मीद तो नहीं करते कि मैं तुम्हारे सामने अपने सारे पत्ते खोल कर रख दूँगा हा-हा! दूसरे, इस बात से तुम्हारा क्या मतलब कि तुम्हें क्या फायदा होगा यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आती कि अगर अपना अपराध मान लोगे तो तुम्हारी सजा कितनी कम हो जाएगी जरा सोचो तो सही कि तुम अपना अपराध कब स्वीकार कर रहे होगे... किस वक्त सोचो! ठीक उस वक्त जब एक दूसरा आदमी मान चुका है कि अपराध उसने किया है और सारे मामले को बुरी तरह उलझा कर रख दिया है। मैं तुमसे भगवान की कसम खा कर कहता हूँ कि मैं 'वहाँ' ऐसा बंदोबस्त कर दूँगा कि तुम्हारा अपराध स्वीकार करना सबके लिए एक अचंभे की बात बन जाएगा। हम लोग मनोविज्ञान के बारे में सब कुछ भूल जाएँगे और मैं तुम्हारे बारे में सभी शुबहों को बेबुनियाद बताऊँगा ताकि तुम्हारा अपराध एक तरह का दिमागी उलझाव मालूम हो; सच पूछो तो वह उलझाव ही था। मैं ईमानदार आदमी हूँ, दोस्त, और अपना वचन पूरा करूँगा।'

रस्कोलनिकोव चुप रहा। उसने उदासी के साथ अपना सर झुका लिया, देर तक कुछ सोचता रहा और आखिरकार फिर मुस्कराया। लेकिन इस बार उसकी मुस्कराहट बहुत उदास और फीकी-फीकी थी।

'मुझे यह सब नहीं चाहिए,' उसने कहा, मानो वह पोर्फिरी से अपना अपराध छिपाने की कोशिश भी न कर रहा हो। 'ऐसा करने से कोई फायदा नहीं! मुझे सजा में आपकी यह कमी नहीं चाहिए!'

'आह, मुझे इसी का डर था!' पोर्फिरी ने अनायास ही सहृदयता से कहा। 'मुझे डर था कि तुम अपनी सजा में कमी करवाना नहीं चाहोगे।'

रस्कोलनिकोव ने उदासी और गंभीरता से उसकी ओर देखा।

'जिंदगी को इस तरह मत ठुकराओ, दोस्त,' पोर्फिरी कहता रहा, 'अभी तो तुम्हारे सामने सारी जिंदगी पड़ी है। यह कहने का भला क्या मतलब कि तुम अपनी सजा कम करवाना नहीं चाहते तुम भी बहुत बेसब्रे हो!'

'अभी क्या चीज मेरे आगे पड़ी है?'

'जिंदगी! पैगंबर बने फिरते तो हो पर तुम्हें मालूम क्या है? ढूँढ़ो और तुम्हें मिलेगा : शायद यह ईश्वर का तुम्हें अपने पास तक पहुँचने का रास्ता बताने का ढंग था। फिर यह कोई हमेशा के लिए तो होगा नहीं... मेरा मतलब है, पाँवों में बेड़ियाँ...'

'आप मेरी सजा कम करवाएँगे...?' रस्कोलनिकोव हँसा।

'आह, कहीं बदनामी का बुर्जुवा विचार तो तुम्हें परेशान नहीं कर रहा? मैं समझता हूँ तुम इसी बात से डर रहे हो, चाहे तुम्हें खुद इसका पता न हो, क्योंकि तुम अभी नौजवान हो। तो भी, कम-से-कम तुम्हारे लिए अपना अपराध मान लेने में डर या शर्म की कोई बात नहीं है।'

'भाड़ में जाए!' रस्कोलनिकोव ने तिरस्कार और घोर विरक्ति के भाव से धीमे स्वर में कहा, जैसे वह इस बारे में बात भी करना न चाहता हो। वह एक बार फिर उठा, गोया कमरे से बाहर चला जाना चाहता हो, लेकिन फिर बैठ गया। उसके चेहरे पर घोर निराशा का भाव एकदम स्पष्ट था।

'भाड़ में जाए, क्यों यही बात है न... तुम्हारे साथ मुसीबत की बात यह है कि तुम्हें अब किसी चीज पर भरोसा नहीं रहा, और शायद तुम यह समझते हो कि मैं खुल्लमखुल्ला तुम्हारी खुशामद कर रहा हूँ। लेकिन तुम्हें जिंदगी का अभी तजरबा ही कितना है तुम सचमुच कितनी बातें समझते हो... बस एक सिद्धांत गढ़ लिया, और अब यह सोच कर शरमा रहे हो कि वह गलत साबित हो गया और बहुत मौलिक भी नहीं निकला। वह भले ही पक्का दुष्ट निकला हो लेकिन तुम तो ऐसे दुष्ट नहीं हो! तुम कतई ऐसे दुष्ट नहीं हो। तुम कम-से-कम अपने को एक अरसे से धोखा तो नहीं देते आ रहे हो... तुम तो एकदम से राह के आखिरी छोर पर जा पहुँचे। जानते हो, तुम्हारे बारे में मेरी क्या राय है? मेरी राय में तुम इस तरह के आदमी हो कि आँतें भी बाहर निकाल ली जाएँ तो वह अपने सतानेवालों को मुस्करा कर देखेगा... मानो उसे कोई ऐसी चीज मिल गई हो जिस पर वह विश्वास रख सकता हो या उसे भगवान मिल गया हो। तो, उसे खोजो और तुम जिंदा रहोगे। तुम्हें बहुत अरसे से जिस चीज की जरूरत रही है वह है, हवा-पानी में बदलाव। लेकिन तकलीफ उठाना भी कोई ऐसी बुरी बात नहीं। उठाओ तकलीफ! अगर निकोलाई तकलीफ उठाना चाहता है तो शायद ठीक ही चाहता है। मैं जानता हूँ किसी चीज पर विश्वास रखना इतना आसान नहीं है, लेकिन बहुत ज्यादा चालाक मत बनो। अपने को बिना सोच-विचार किए जिंदगी के हवाले कर दो, चिंता मत करो, और जिंदगी तुम्हें सीधे किनारे पर पहुँचा देगी, तुम्हें अपने पाँव खड़ा कर देगी। किस किनारे पर यह मैं क्या जानूँ, मैं तो बस इतना जानता हूँ कि अभी तुम्हारे आगे काफी लंबी जिंदगी पड़ी है। मैं जानता हूँ, तुम इस वक्त मेरी बातों को एक रटे-रटाए उपदेश का हिस्सा समझ रहे हो, लेकिन बाद में चल कर शायद तुम्हें इनकी याद आएगी, शायद ये ही बातें किसी दिन तुम्हारे काम आएँ। इसीलिए मैं तुमसे इस वक्त बातें कर रहा हूँ। मैं समझता हूँ, यह अच्छा ही हुआ कि तुमने एक बुढ़िया की जान ली। अगर तुम्हें कोई और सिद्धांत सूझा होता तो शायद तुम इससे भी हजार गुनी बदतर कोई हरकत कर बैठते। तुम्हें भगवान का उपकार मानना चाहिए। कौन जाने, शायद भगवान किसी काम के लिए तुम्हें जिंदा रखे हुए हो। तुम्हें अपना दिल छोटा करना नहीं चाहिए, न इतना डरना चाहिए। या ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे सामने जो महान प्रायश्चित है उससे डर रहे हो... नहीं, उससे डरना तुम्हारे लिए शर्म की बात होगी। ऐसा कदम उठाने के बाद तुम्हें हिम्मत रखनी चाहिए। अब यह न्याय का सवाल बन चुका है। इसलिए वही करो जो न्याय का तकाजा है। मैं जानता हूँ तुम किसी चीज में विश्वास नहीं रखते, लेकिन मेरी बात मानो, जिंदगी तुम्हें हर मुसीबत से बाहर निकाल ले जाएगी। कुछ वक्त बीतेगा तो वह तुम्हें अच्छी भी लगने लगेगी। तुम्हें बस जिस चीज की जरूरत है वह है हवा, हवा, हवा!'

रस्कोलनिकोव न चाहते हुए भी चौंक पड़ा।

'आप हैं कौन?' वह जोर से चीखा। 'आप भला कहाँ के पैगंबर हैं? आप शांति के किस ऊँचे शिखर पर खड़े हो कर मुझसे ये भविष्यवाणियाँ कर रहे हैं?'

'मैं कौन हूँ मैं ऐसा आदमी हूँ जिसे जिंदगी से अब और कुछ नहीं चाहिए। ऐसा आदमी जो फिर भी महसूस करता और हमदर्दी रखता है... जिसे शायद कुछ बातें मालूम भी हैं, लेकिन जिसे जिंदगी से अब कुछ और नहीं चाहिए। मगर तुम्हारी बात बिलकुल दूसरी है : भगवान ने तुम्हें जिंदगी दी है। (यूँ भगवान ही जानता है कि कहीं तुम्हारी जिंदगी भी तो महज एक धुआँ बन कर खत्म नहीं हो जाएगी और तुम्हारा कुछ भी नहीं बनेगा।) अगर तुम अपने आपको दूसरी ही श्रेणी के लोगों में गिनते हो तो इससे क्या होता है? तुम्हारे जैसे आदमी को इसका अफसोस तो हो नहीं सकता कि तुमसे तुम्हारा ऐश-आराम छिन जाएगा। कोई अगर बहुत दिनों तक तुम्हें नहीं भी देखे तो क्या हो जाएगा असल चीज समय नहीं बल्कि खुद तुम हो। सूरज बनो, हर आदमी तुम्हें देखेगा। लेकिन सूरज को सबसे पहले सूरज तो होना पड़ेगा। अब तुम किस बात पर मुस्करा रहे हो कि मैं शिलर जैसा कोई आदमी हूँ... मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, तुम यह सोच रहे हो कि मैं तुम्हारी खुशामद करने की कोशिश कर रहा हूँ। शायद ऐसा ही हो... हा-हा-हा! बेहतर शायद यही हो दोस्त कि तुम मेरी हर बात ज्यों का त्यों न मान लो! शायद तुम्हें मेरा यकीन करना नहीं भी चाहिए - पूरी तरह तो हरगिज नहीं - मैं हूँ ही ऐसा शख्स। लेकिन इतना मैं और कहना चाहूँगा : मैं समझता हूँ, तुम खुद इसका फैसला कर सकते हो कि मैं ईमानदार हूँ या नहीं।'

'आप मुझे कब गिरफ्तार करेंगे?'

'मैं समझता हूँ, डेढ़ या दो दिन तुम्हें मैं और आजादी से घूमने दूँगा। सोच लो, दोस्त! भगवान से प्रार्थना करो और याद रखो कि इससे तुम्हारा भला ही होगा। मैं इसका तुम्हें यकीन दिलाता हूँ।'

'और अगर मैं भाग जाऊँ तो?' रस्कोलनिकोव ने कुछ विचित्र ढंग से मुस्करा कर पूछा।

'नहीं, तुम नहीं भागोगे। कोई किसान होता तो भाग जाता, कोई फैशनेबुल समाज का होता तो भाग जाता, वह किसी दूसरे के विचारों का गुलाम है, क्योंकि उसकी तरफ तुम अपनी कानी उँगली से भी इशारा कर दो तो वह जिंदगी भर किसी भी चीज पर विश्वास करने को तैयार हो जाएगा। लेकिन तुम अब अपने सिद्धांत पर विश्वास नहीं रख सकोगे, इसलिए अपने साथ क्या ले कर भागोगे और भागते रहने से भी तुम्हें क्या मिलेगा... भागते रहना बहुत ही गंदा और मुश्किल काम है, और तुम्हें जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है वह है जिंदगी में एक खास हैसियत... और मुनासिब हवा। जिस तरह की हवा तुम चाहते हो, क्या वह तुम्हें वहाँ मिल सकेगी? तुम भाग भी जाओ तो अपने आप वापस आओगे। हम लोगों के बिना तुम्हारा काम नहीं चलेगा। मैं अगर तुम्हें कालकोठरी में डाल दूँ तो वहाँ तुम महीने, दो महीने, या शायद तीन महीने रहोगे, और तब तुम्हें याद आएगा कि मैंने तुमसे क्या कहा था। तब तुम खुद मेरे पास आओगे, और बहुत मुमकिन है कि तुम खुद भी इस बात पर ताज्जुब करो। आने से एक घंटा पहले तक भी तुम्हें यह पता नहीं होगा कि तुम मेरे पास अपना अपराध स्वीकार करने आ रहे हो। सच... मैं यह सोचे बिना नहीं रह सकता कि आखिर में तुम 'तकलीफ ही स्वीकार करने' का फैसला करोगे। तुम इस वक्त मेरी बात नहीं मानोगे, लेकिन यह बात खुद तुम्हारी समझ में आ जाएगी क्योंकि मेरे दोस्त, तकलीफ उठाना बहुत बड़ी बात है। इस तरह मुझे मत देखो। मैं जानता हूँ, मैं मोटा हो गया हूँ। लेकिन कोई बात नहीं। मैं जानता हूँ - मेरी बात पर हँसो नहीं - कि तकलीफ उठाने में कोई बात जरूर है। हाँ, निकोलाई ठीक कहता है। नहीं दोस्त, तुम नहीं भाग सकोगे।'

रस्कोलनिकोव उठ खड़ा हुआ और अपनी टोपी उठा ली। पोर्फिरी भी उठ खड़ा हुआ।

'खुली हवा लेने जा रहे हो? सुहानी शाम है, बस आँधी न आए। लेकिन आई भी तो कुछ खास बुरा न होगा। हवा साफ हो जाएगी...'

पोर्फिरी ने भी अपनी टोपी उठा ली।

'कहीं यह न समझ लीजिएगा,' रस्कोलनिकोव ने कठोर स्वर में जोर दे कर कहा, 'कि आपके सामने आज मैंने कोई अपराध स्वीकार किया है। आप बहुत अजीब आदमी हैं और मैंने आपकी बातें कौतूहल के मारे ही सुनी हैं, कोई अपराध नहीं स्वीकार किया है। याद रखिएगा।'

'जाहिर है, जाहिर है, इतना मैं जानता हूँ... याद रखूँगा मैं। देखो तो सही कितना काँप रहे हो। फिक्र न करो दोस्त, जैसा तुम चाहोगे वैसा ही होगा। थोड़ा-बहुत घूम-फिर लो; लेकिन यह याद रखना कि मैं तुम्हें बहुत दिनों तक इस तरह घूमने नहीं दूँगा। बहरहाल, मैं तुमसे मेरे साथ एक एहसान करने को जरूर कहूँगा,' पोर्फिरी ने अपनी आवाज नीची करते हुए कहा। 'बात कुछ टेढ़ी है, लेकिन है जरूरी। मेरा मतलब यह है कि अगर कभी तुम यह फैसला करो (याद रहे, मैं एक पल के लिए भी ऐसा नहीं समझता कि तुम ऐसा फैसला करोगे, और सच तो यह है कि मेरी राय में तुममें इसकी क्षमता भी नहीं है), लेकिन अगर तुम अगले कोई चालीस या पचास घंटों में यह फैसला करो कि तुम इस मामले को किसी दूसरे तरीके से खत्म करना चाहते हो - मेरा मतलब है, अपने आपको खत्म कर देना चाहते हो (एकदम बेतुका विचार है, और मैं माफी चाहता हूँ कि मैं इस तरह का इशारा कर रहा हूँ), तो मुझे बहुत खुशी होगी अगर तुम एक छोटी-सी पर्ची पर पूरा ब्यौरा लिख कर मेरे लिए छोड़ जाओ। बस दो लाइनें - दरअसल, दो छोटी लाइनों से ज्यादा मुझे कुछ चाहिए भी नहीं... और बराय मेहरबानी उस पत्थर की बात लिखना न भूलना। इसी में तुम्हारी सज्जनता होगी। अच्छा, तो मैं चलता हूँ। कोई बुरी बात न सोचना और कोई गलत फैसला न करना!'

पोर्फिरी झुक कर, रस्कोलनिकोव से नजरें चुराता हुआ बाहर चला गया। रस्कोलनिकोव खिड़की के पास जा कर चिड़चिड़ाहट के साथ और बेसब्री से उस वक्त तक इंतजार करता रहा जब तक उसके हिसाब से पोर्फिरी काफी दूर न चला गया हो। फिर वह भी जल्दी से कमरे के बाहर चला गया।

अपराध और दंड : (अध्याय 6-भाग 3)

उसे स्विद्रिगाइलोव से जल्द से जल्द मिलने की बेचैनी थी। उस आदमी से वह क्या पाने की उम्मीद कर सकता था, यह तो उसे भी नहीं मालूम था, लेकिन लगता था उस पर उस शख्स का किसी न किसी तरह का दबाव था। इस बात को एक बार समझ लेने के बाद वह अब चैन से नहीं बैठ सकता था। अलावा इसके, अब वक्त भी आन पहुँचा था।

रास्ते में एक सवाल उसे खास तौर पर परेशान करता रहा : क्या स्विद्रिगाइलोव पोर्फिरी से मिलने गया था?

जहाँ तक वह समझ पा रहा था - और यह बात वह कसम खा कर कहने को तैयार था - वह नहीं गया था। उसने एक बार फिर ध्यान से इस सवाल पर सोचा, पोर्फिरी के साथ अपनी मुलाकात की छोटी से छोटी बात को भी याद किया, और इसी नतीजे पर पहुँचा : वह नहीं गया था; कतई नहीं गया था!

लेकिन अगर वह पोर्फिरी के पास अभी तक नहीं गया था तो क्या अब जाएगा या नहीं?

उस वक्त उसे पूरा-पूरा यकीन था कि वह नहीं जाएगा। क्यों... इसकी कोई वजह वह नहीं बता सकता था, लेकिन अगर बता भी सकता तो इस वक्त वह इस पर ज्यादा वक्त खराब करने को तैयार नहीं था। ये सारी बातें उसे परेशान तो करती थीं, पर न जाने क्यों ऐसा लगता था कि उसे इनकी कोई परवाह नहीं है। यह एक अजीब बात थी, और इस पर शायद कोई यकीन भी न करता, लेकिन उसे न तो अपनी वर्तमान स्थिति की बहुत चिंता थी और न अपने निकट भविष्य की। उसे चिंता किसी और ही बात की थी, एक ऐसी बात की जो कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी, एक ऐसी बात की जो खास अहमियत रखती थी। एक ऐसी बात की जिसका किसी दूसरे से कोई संबंध नहीं था; लेकिन वह बिलकुल ही दूसरी बात थी और उसका महत्व भी बहुत खास था। अलावा इसके वह एक गहरे नैतिक पतन का एहसास भी कर रहा था, हालाँकि आज उसका दिमाग जितनी अच्छी तरह काम कर रहा था, उतनी अच्छी तरह इधर हाल में कभी नहीं किया था।

खैर, जो कुछ हो चुका था उसके बाद इन छोटी-मोटी कठिनाइयों पर काबू पाने का क्या सचमुच कोई फायदा था... मिसाल के लिए, क्या इस बात का कोई फायदा था कि स्विद्रिगाइलोव को पोर्फिरी से मिलने से रोकने की योजना बनाई जाए और उसके लिए कोई साजिश की जाए या स्विद्रिगाइलोव जैसे आदमी को समझने, उसके बारे में मालूम करने की कोशिश करने और उस पर वक्त खराब करने का

आह, इन सब बातों से वह कितना तंग आ चुका था!

फिर भी, इन तमाम बातों के बावजूद वह स्विद्रिगाइलोव से मिलने के लिए भागा चला जा रहा था; कहीं ऐसा तो नहीं था कि वह उससे किसी नई बात की उम्मीद रख कर जा रहा था कुछ हिदायतों की बच निकलने के किसी रास्ते की डूबते को तिनके का सहारा होता है! क्या नियति या कोई सहज भावना, उन दोनों को एक-दूसरे के करीब ला रही थीं? शायद वह सिर्फ महसूस कर रहा था। शायद यह घोर निराशा थी। शायद उसे स्विद्रिगाइलोव की नहीं, किसी दूसरे ही आदमी की जरूरत थी और स्विद्रिगाइलोव तो बस रास्ते में आ गया था। सोन्या की लेकिन अब वह सोन्या के पास क्यों जाए? एक बार फिर आँसुओं की भीख माँगने? अलावा इसके उसे सोन्या से डर भी लग रहा था। उसकी निगाह में सोन्या एक निर्मम भर्त्सना की, एक अटल निर्णय की प्रतीक थी। वहाँ तो बस यह था कि या तो सोन्या का रास्ता हो या उसका अपना। खास तौर पर उस समय वह अपने को उसने मिलने के लिए तैयार नहीं कर पा रहा था। इससे कहीं अच्छा शायद यह होता कि वह स्विद्रिगाइलोव को आजमा कर देखे और यह मालूम करे कि वह किस किस्म का आदमी है। वह अपने दिल की गहराई में इस बात को मानने पर मजबूर था कि उसे बहुत अरसे से किसी वजह से उसकी जरूरत थी।

तो भी ऐसी क्या चीज थी जो उन दोनों के बीच एक जैसी थी उन दोनों ने जो कत्ल किए थे वे भी तो एक ही तरह के नहीं थे। अलावा इसके वह आदमी बेहद आपत्तिजनक, बेहद अनैतिक, परले दर्जे का कमीना और धोखेबाज, और शायद कीने से भरा हुआ भी था। उसके बारे में कैसे-कैसे भयानक किस्से कहे जाते थे। यह सच था कि कतेरीना इवानोव्ना के बच्चों के लिए वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन कौन जाने उसका मकसद क्या था या इन बातों के पीछे रहस्य क्या था उस आदमी के पास तरह-तरह के मंसूबों की कभी कोई कमी तो रही नहीं।

उन दिनों रस्कोलनिकोव के दिमाग पर एक और विचार छाया हुआ था जिसने उसे बहुत परेशान कर रखा था, हालाँकि उसने उसे अपने दिमाग से निकालने की पूरी कोशिश की थी क्योंकि वह उसके लिए बहुत कष्टदायक था। कभी-कभी वह यह सोचे बिना रह नहीं सकता था कि स्विद्रिगाइलोव उसका पीछा करता आ रहा था और अब भी कर रहा था, कि स्विद्रिगाइलोव ने उसका भेद पा लिया था, कि स्विद्रिगाइलोव के दिल में दूनिया के बारे में भी कुछ मंसूबे रह चुके थे। और अगर ये मंसूबे अब भी हों तो यह लगभग तय था कि उसके दिल में ऐसे मंसूबे अब भी थे। अगर उसका भेद पा लेने और इस तरह उसे अपने शिकंजे में कस लेने के बाद, वह इसे दूनिया के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल करे तो क्या होगा?

यह विचार जो उसे सपने में भी सताता रहता था, उसके मन में कभी इतने जोरदार ढंग से नहीं उठा था जिस तरह इस वक्त उठ रहा था जबकि वह स्विद्रिगोइलोव के पास जा रहा था। इस विचार के उठते ही वह गुस्से से पागल हो उठता था। पहली बात तो यह थी कि इससे हर चीज बदल जाएगी, उसकी अपनी स्थिति भी। उसे अपना भेद दूनिया को फौरन बता देना होगा। उसे शायद पूरी तरह आत्मसमर्पण कर देना होगा ताकि दूनिया को कोई नासमझी का कदम उठाने से रोका जा सके। वह खत दूनिया को उसी दिन सबेरे कोई खत मिला था। पीतर्सबर्ग में भला उसे किसने खत भेजा होगा (शायद लूजिन ने?), यह सच था कि रजुमीखिन वहाँ नजर रख रहा था, लेकिन रजुमीखिन कुछ नहीं जानता। क्या उसे रजुमीखिन को फौरन अपना भेद बता देना चाहिए? यह विचार रस्कोलनिकोव के लिए काफी अप्रिय था।

बहरहाल, उसे स्विद्रिगाइलोव से जल्द-से-जल्द मिलना होगा। उसने मन-ही-मन अंतिम निर्णय किया। खैरियत की बात यह थी कि इस बारे में ब्यौरे की बातों का उतना महत्व नहीं था जितना मुख्य बात का। लेकिन अगर... अगर वह सचमुच ऐसा कुछ कर सकता हो, अगर दूनिया के खिलाफ स्विद्रिगाइलोव सचमुच कोई मंसूबा बना रहा हो तो...

पिछले एक महीने की घटनाओं से थक कर रस्कोलनिकोव इतना चूर हो चुका था कि इस तरह के सवालों का एक ही फैसला कर सकता था - 'फिर तो मैं उसे मार डालूँगा।' उसने क्रूर निराशा के भाव से यह बात सोची। और बेहद उदास हो गया। यह देखने के लिए कि वह किधर जा रहा था और कहाँ तक पहुँच चुका था, वह सड़क के बीच में रुक गया। वह ओबुखोव्स्की एवेन्यू में था, भूसामंडी से कोई तीस-चालीस गज दूर, जहाँ से वह चला था। बाईं ओर के मकान की पूरी दूसरी मंजिल में एक रेस्तराँ था। सारी खिड़कियाँ पूरी खुली हुई थीं। खिड़कियों के रास्ते जो कुछ नजर आ रहा था उससे पता चलता था कि रेस्तराँ खचाखच भरा हुआ है। खाने के कमरे से गाने की; एक वायलिन और क्लेरिनैट की आवाजें और एक तुर्की ढोल की ढम-ढम की आवाजें आ रही थीं। औरतों की चीखें सुनाई दे रही थीं। यह सोच कर कि वह ओबुखोव्स्की एवेन्यू में मुड़ा ही क्यों था, वह वापस जाने ही वाला था कि उसे अचानक स्विद्रिगाइलोव दिखाई पड़ गया। रेस्तराँ की एक सबसे दूरवाली खुली खिड़की के पास वह मुँह में पाइप लगाए, चाय की मेज के सामने बैठा हुआ था। इस संयोग पर उसे बेहद आश्चर्य हुआ, बल्कि यूँ कहिए कि वह धक से रह गया। स्विद्रिगाइलोव उसे चुपचाप देख रहा था। रस्कोलनिकोव को यह बात बरबस खटकी : उसे ऐसा क्यों लगा कि स्विद्रिगाइलोव उठना चाह रहा था ताकि इससे पहले कि उसे देखा जा सके, वह वहाँ से चपुचाप खिसक जाए। रस्कोलनिकोव ने भी फौरन यूँ जताया कि जैसे उसने उसे देखा न हो, बल्कि किसी दूसरी ही दिशा में किसी दूसरी ही चीज को देख रहा हो, लेकिन वह कनखियों से बराबर उसे देखे जा रहा था। उसका दिल बेचैनी से धड़क रहा था। उसका अनुमान ठीक था। स्विद्रिगाइलोव साफ तौर पर यह नहीं चाहता था कि कोई उसे देख सके। उसने मुँह से पाइप निकाला और छिपाने की कोशिश करने लगा। लेकिन ज्यों ही वह उठा और अपनी कुर्सी पीछे खिसकाई, उसे जरूर यह एहसास हुआ होगा कि रस्कोलनिकोव ने उसे देख लिया था और लगातार उस पर नजर रखे हुए था। इस समय उन दोनों के बीच जो कुछ हुआ वह बहुत कुछ उस दृश्य जैसा ही था जो रस्कोलनिकोव के कमरे में उनकी पहली मुलाकात के समय सामने आया था, जब रस्कोलनिकोव सो रहा था। स्विद्रिगोइलोव के चेहरे पर एक कमीनी मुस्कराहट उभरी जो धीरे-धीरे फैल कर चौड़ी होती गई। दोनों को ही मालूम था कि दूसरे ने उसे देख लिया है और उस पर नजर रख रहा है। आखिरकार स्विद्रिगाइलोव ठहाका मार कर हँसा।

'खूब! जी चाहे तो अंदर आ जाओ... मैं यहाँ हूँ!' उसने खिड़की में से पुकार कर कहा।

रस्कोलनिकोव सीढ़ियाँ चढ़ कर रेस्तराँ में जा पहुँचा।

उसने देखा, स्विद्रिगाइलोव खाने के बड़े कमरे से लगे और उसके पीछे एक बहुत ही छोटे कमरे में बैठा था जिसमें बस एक खिड़की थी। खाने के बड़े कमरे में कई व्यापारी, सरकारी नौकर और बहुत से दूसरे लोग जान लड़ा कर गानेवालों की टोली के शोर के बीच बीस छोटी-छोटी मेजों पर बैठे चाय निगल रहे थे। कहीं से बिलियर्ड की गेंदों के टकराने की आवाज आ रही थी। स्विद्रिगाइलोव के सामने मेज पर शैंपेन की एक खुली बोतल और एक आधा भरा गिलास रखा हुआ था। उसी कमरे में हाथ में छोटा-सा आर्गन लिए हुए एक लड़का था और कोई अठारह साल की, तंदुरुस्त और लाल-लाल गालोंवाली एक लड़की भी थी, जो धारीदार स्कर्ट उड़स कर पहने हुए थी और सर पर फीतों से सजी टाइरोलियन हैट लगाए हुए थी। बगलवाले कमरे में गाने के शोर के बावजूद वह आर्गन की धुन पर ऊँची भर्राई हुई आवाज में कोई बाजारू गाना गा रही थी...

'अच्छा, अब रहने दो!' रस्कोलनिकोव के अंदर आते ही स्विद्रिगाइलोव ने उसे टोकते हुए कहा।

लड़की ने गाना फौरन बंद कर दिया और बड़े अदब से खड़ी इंतजार करती रही। बाजारू गाना गाते समय भी उसके चेहरे पर आदर और गंभीरता का यही भाव था।

'फिलिप, एक गिलास लाना!' स्विद्रिगाइलोव ने आवाज दी।

'मैं शराब नहीं पिऊँगा,' रस्कोलनिकोव ने कहा।

'जैसी तुम्हारी मर्जी, लेकिन गिलास तुम्हारे लिए माँगा भी नहीं। लो पियो, कात्या! आज मैं कोई और गाना नहीं सुनूँगा। तुम जा सकती हो!' उसने कात्या के लिए एक गिलास भरा और एक पीला नोट निकाल कर उसे दिया। कात्या ने एक घूँट में गिलास खाली कर दिया, जैसा कि औरतें आम तौर पर करती हैं यानी बीस चुस्कियाँ लेने के लिए बीच में रुके बिना, नोट लिया, स्विद्रिगाइलोव का हाथ चूमा, जो स्विद्रिगाइलोव ने बड़ी गंभीर मुद्रा बना कर उसे करने दिया, और कमरे के बाहर चली गई। लड़का भी आर्गन लिए हुए उसके पीछे-पीछे चला गया। उन दोनों को सड़क पर से लाया गया था। स्विद्रिगाइलोव को पीतर्सबर्ग आए अभी मुश्किल से एक हफ्ता हुआ था, लेकिन इन थोड़े दिनों में ही उसके सारे तौर-तरीके एक खास ढंग के बन चुके थे। वेटर फिलिप जल्द ही उसका 'पुराना दोस्त' बन चुका था, और बड़ी मुस्तैदी से उसका हर हुक्म बजा लाने को तैयार रहता था। खाने के कमरे में जानेवाला दरवाजा आम तौर पर बंद रहता था। इस छोटे कमरे में स्विद्रिगाइलोव को हर तरह की सुख-सुविधा मिलती थी और वह शायद पूरा-पूरा दिन उसी में काट देता था। रेस्तराँ बहुत गंदा और सस्ता था; शायद दूसरे दर्जे का भी नहीं था।

'मैं आप ही से मिलने जा रहा था,' रस्कोलनिकोव ने कहना शुरू किया। 'आपकी खोज में। लेकिन न जाने क्यों मैं भूसामंडी से ओबुखोव्स्की एवेन्यू की तरफ मुड़ गया। मालूम नहीं, किसलिए। मैं इधर कभी नहीं आता। आम तौर पर भूसामंडी से दाहिनी ओर मुड़ जाता हूँ। फिर यह आपके यहाँ जाने का रास्ता भी तो नहीं है। सड़क का नुक्कड़ मुड़ते ही आप पर मेरी नजर पड़ी! अजीब बात है!'

'साफ-साफ क्यों नहीं कहते कि चमत्कार है?'

'इसलिए कि शायद यह महज इत्तफाक है।'

'आह, तुम लोग भी अजीब हो,' स्विद्रिगाइलोव ठहाका मार कर हँसा। 'मानोगे नहीं, हालाँकि दिल में चमत्कारों में विश्वास रखते हो। तुमने अभी कहा कि 'शायद' यह इत्तफाक था। पर मेरे दोस्त, जब खुद अपनी राय जाहिर करने का सवाल आता है तो तुम यहाँ के लोग इतने बुजदिल हो जाते हो कि सोचा भी नहीं जा सकता। मैं तुम्हारी बात नहीं कर रहा। तुम अपने दिमाग से सोचते हो और इस बात से डरते भी नहीं। यही वजह है कि मेरे मन में तुम्हारे बारे में जानने की इच्छा पैदा हुई।'

'इसके अलावा और कोई बात नहीं थी?'

'क्यों, क्या इतना काफी नहीं है?'

स्विद्रिगाइलोव सचमुच तरंग में था, हालाँकि थोड़ा ही था। उसने आधा गिलास शराब ही पी थी।

'मुझे तो लगता है कि आप जिस चीज को मेरा अपना दिमाग कहते हैं उसका पता लगने से पहले ही आप मुझसे मिलने आए थे,' रस्कोलनिकोव ने अपनी राय जाहिर की।

'खैर, दूसरी ही बात थी उस वक्त। हर किसी का काम करने का अपना ढंग होता है। जहाँ तक चमत्कार का सवाल है, तो मैं तुम्हें इतना ही बता सकता हूँ कि तुम पिछले दो-तीन दिन से सोते रहे हो। इस रेस्तराँ के बारे में मैंने खुद तुम्हें बताया था, और यहाँ तुम्हारे आने में ऐसी कोई चमत्कार की बात नहीं है। मैंने तुम्हें यहाँ आने का रास्ता बताया था, इस जगह के बारे में बताया था, यह बताया था कि यह जगह कहाँ है और यह भी बताया था कि मैं यहाँ किस वक्त मिल सकता हूँ। याद नहीं?'

'मुझे याद नहीं पड़ता,' रस्कोलनिकोव ने हैरान हो कर जवाब दिया।

'चलो, तुम्हारी बात माने लेता हूँ। मैंने दो बार तुम्हें इसके बारे में बताया था। सो पता अनजाने ही तुम्हारे दिमाग में चिपका रह गया होगा और तुम आप ही मेरे बताए हुए रास्ते पर चलते हुए इस सड़क पर मुड़े होगे, हालाँकि यह बात तुम्हें खुद मालूम नहीं रही होगी। तुम्हें इसके बारे में अभी उस दिन जब मैं बता रहा था तब मेरे खयाल में तुम समझे नहीं थे। दोस्त, तुम खुद अपना भेद बहुत ज्यादा खोलते चलते हो। एक बात और। मुझे पूरा यकीन है कि पीतर्सबर्ग में ऐसे बहुत से लोग हैं जो चलते-चलते अपने से बातें करते रहते हैं। यह आधे पागलों का शहर है। अगर यह वैज्ञानिकों का राष्ट्र होता तो हमारे डॉक्टर, वकील और यह दार्शनिक यहाँ पीतर्सबर्ग में अपने-अपने क्षेत्रों में बहुमूल्य खोजें कर सकते थे। तुम्हें पीतर्सबर्ग जैसी जगह आसानी से नहीं मिलेगी जहाँ आदमी के दिमाग पर इतनी सारी विचित्र, कठोर और निराशाजनक चीजों का असर पड़ता रहता है। जरा सोचो, अकेले यहाँ की जलवायु का ही कितना असर पड़ता होगा! और यह रूस के प्रशासन का केंद्र भी है, और इसके चरित्र की झलक हर चीज में दिखाई देना लाजमी है। लेकिन इस वक्त मैं यह बात समझाना नहीं चाहता। बात यह है कि तुम्हारे जाने बिना ही मैं अब तक कई बार तुम्हें गौर से देख चुका हूँ। जब तुम अपने घर से निकलते हो, तब तुम अपना सर ऊँचा किए रखते हो। बीस कदम के बाद तुम्हारा सर झुक जाता है और तुम अपने हाथ पीठ पीछे बाँध लेते हो। आँखें खोले चीजों पर तुम नजर तो डालते हो लेकिन साफ मालूम होता है कि न तो अपने सामने की कोई चीज देखते हो और न अपने दोनों तरफ की। आखिर में तुम्हारे होठ हिलने लगते हैं और तुम खुद से बातें करने लगते हो। इसके ही साथ अकसर तुम अपना एक हाथ दूसरे से छुड़ा कर कविता-पाठ जैसा कुछ करने लगते हो। आखिर में तुम बीच सड़क रुक जाते हो और देर तक वहीं खड़े रहते हो। पर जनाब, बहुत बुरी बात है यह। मेरे अलावा दूसरे लोगों का ध्यान भी इस बात की ओर जा सकता है, और हो सकता है कि तुम ऐसा न चाहो। जाहिर है, मैं इसकी जरा भी परवाह नहीं करता, न ही यह उम्मीद करता हूँ कि मैं तुम्हारी यह बीमारी ठीक कर सकता हूँ। अलबत्ता तुम मेरा मतलब समझ गए होगे, कि नहीं?'

'आप क्या यह बात जानते हैं कि मेरा पीछा किया जा रहा है?' रस्कोलनिकोव ने पैनी नजरों से स्विद्रिगाइलोव को देखते हुए पूछा।

'नहीं, मुझे इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं,' स्विद्रिगाइलोव ने इस तरह जवाब दिया, गोया उसे यह सुन कर ताज्जुब हुआ हो।

'खूब, तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए,' रस्कोलनिकोव माथे पर बल डाल कर बुदबुदाया।

'अच्छी बात है, तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ देते हैं।'

'मुझे तो आप यह बताइए कि अभी जब मैं सड़क से ऊपर खिड़की की ओर देख रहा था तो मुझसे आप छिप क्यों रहे थे। आप अगर यहाँ आम तौर पर पीने आते हैं और दो बार मुझसे यहाँ आ कर मिलने को कह चुके हैं तो आपने मुझसे नजर चुरा कर यहाँ से खिसकने की कोशिश क्यों की? मैं सब देख रहा था।'

'हा-हा! और जब मैं तुम्हारे चौखट पर खड़ा था और तुम आँखें बंद किए सोफे पर पड़े थे तो सोने का बहाना क्यों कर रहे थे, जबकि तुम सो नहीं रहे थे मैंने भी अच्छी तरह सब कुछ देखा था।'

'हो सकता है कि... मेरे ऐसा करने की कोई वजह रही हो, जैसा कि आप खुद जानते हैं।'

'मेरे पास भी ऐसा करने की वजह हो सकती है, हालाँकि तुम उसे नहीं जान सकोगे।'

रस्कोलनिकोव ने अपनी दाहिनी कुहनी मेज पर टिका ली और दाहिने हाथ की उँगलियों से ठोड़ी को नीचे से सहारा दे कर गौर से स्विद्रिगाइलोव को घूरने लगा। वह लगभग एक मिनट तक उसके चेहरे को नजरें जमा कर देखता रहा, क्योंकि हमेशा से ही वह उसके चेहरे से बहुत प्रभावित था। वह एक अजीब किस्म का चेहरा था जो देखने में मुखौटे जैसा लगता था : सफेद चेहरा, लाल गाल, गहरे लाल होठ, हलके रंग के सन जैसे बालों की दाढ़ी और सुनहरे बाल जो अभी तक काफी घने थे। लेकिन उसकी आँखें जरूरत से कुछ ज्यादा ही नीली लगती थीं, और नजर जरूरत से ज्यादा बोझिल और निश्चल थी। इस खूबसूरत चेहरे में, जो उसकी उम्र को देखते हुए बेहद नौजवान चेहरा था, कोई बात ऐसी जरूर थी जिससे नफरत पैदा होती थी। स्विद्रिगाइलोव की पोशाक गर्मियोंवाले हलके कपड़े की बनी हुई थी और लगता था, उसे अपनी कमीज पर खास गर्व था। उसकी एक उँगली पर बड़ी-सी अँगूठी थी, जिसमें कीमती नग जड़ा हुआ था।

'मुझे क्या आपके पीछे भी वक्त बर्बाद करना होगा?' रस्कोलनिकोव ने अचानक ब्रेसब्री से कसमसाते हुए सीधे मतलब की बात कही। 'हो सकता है आप कोई मुसीबत खड़ी करना चाहें और बहुत ही खतरनाक साबित हों, लेकिन आपकी वजह से मैं अपनी जिंदगी में कोई उलझाव पैदा करने को तैयार नहीं हूँ। आपको मैं साफ-साफ बता देना चाहता हूँ कि मुझे अपनी उतनी चिंता कतई नहीं जितनी आप शायद समझते हैं। इतना समझ लीजिए जनाब, मैं आपसे साफ-साफ यह कहने आया हूँ कि अगर आप अभी भी मेरी बहन की तरफ वही पहलेवाले इरादे रखते हैं, और अगर यह समझते हैं कि आपको अभी हाल में मेरे बारे में जिस बात का पता लगा है उसे इस्तेमाल करके आप अपनी मंशा पूरी कर लेंगे, तो इससे पहले कि आप मुझे जेल भिजवाएँ, मैं आपको जान से मार दूँगा। मेरी कोरी धमकियाँ देने की आदत नहीं है और मैं समझता हूँ, आप यह जानते ही होंगे कि मैं अपनी बात का पक्का हूँ। दूसरे, अगर आपको मुझसे कोई बात कहनी है -क्योंकि मुझे हर वक्त ऐसा लगता रहता है कि आपको मुझसे कोई बात कहनी है - तो वह बात आप मुझे फौरन बता दीजिए। इसलिए कि वक्त बहुत कीमती है और बहुत मुमकिन है कि जल्द ही देर हो जाए और वह बात बताने का वक्त न रहे।'

'ऐसी जल्दी क्या है? कहीं जाना है क्या?' स्विद्रिगाइलोव ने हैरानी से उसे देखते हुए पूछा।

'हर आदमी का काम करने का अपना ढंग होता है,' रस्कोलनिकोव ने बेचैनी से और गंभीर हो कर जवाब दिया।

'अभी तुमने खुद मुझे ललकारा था कि मैं तुमसे साफ-साफ बातें करूँ और अब तुम मेरे पहले ही सवाल का जवाब देने से इनकार कर रहे हो,' स्विद्रिगाइलोव ने मुस्कराते हुए अपनी राय जाहिर की। 'मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि तुम समझते हो, मेरे मन में कोई बात है, और इसीलिए तुम मुझे शक की नजर से देखते हो। खैर तुम्हारी हालत को देखते हुए यह बात पूरी तरह समझ में आती है। लेकिन यह चाहते हुए भी कि मैं तुम्हारे साथ दोस्ती निभाऊँ, मैं तुम्हें यह समझाने की कोशिश नहीं करूँगा कि ऐसा समझना तुम्हारी भूल है। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि यह कोई ऐसी बात नहीं जिसमें दिमाग खपाया जाए। सच तो यह है कि तुमसे किसी खास बात के बारे में चर्चा करने का मेरा कोई इरादा भी नहीं था।'

'तो फिर आपको मेरी इतनी क्या जरूरत पड़ी थी आप ही तो मुझे तलाश करते घूम रहे थे, कि नहीं?'

'तुम्हें बस देखने-समझने की एक दिलचस्प चीज मानते हुए। तुम्हारे लिए मेरे मन में सिर्फ इसलिए दिलचस्पी पैदा हुई थी कि तुम जिस हालत में थे, वह अजीब थी। जी, यही बात थी! अलावा इसके तुम एक ऐसी नौजवान महिला के भाई हो जिनमें मेरी काफी दिलचस्पी रही है और जिनसे मैंने तुम्हारे बारे में इतना कुछ सुना था कि मैं लाजमी तौर पर इसी नतीजे पर पहुँचा कि उन पर तुम्हारा गहरा असर रहा है। क्या इतना काफी नहीं है? हा-हा-हा! तो भी मैं यह मानने को तैयार हूँ कि तुम्हारा सवाल कुछ टेढ़ा है और उसका जवाब देना मेरे लिए मुश्किल है। मिसाल के लिए, तुम मेरे पास न सिर्फ एक खास मकसद से आए हो, बल्कि इसलिए भी आए हो कि तुम कोई नई बात जानने के लिए बेचैन हो। है न यही बात है न?' स्विद्रिगाइलोव काइयाँ मुस्कराहट के साथ बार-बार अपना सवाल पूछता रहा। 'अच्छा, तब तुम क्या कहोगे अगर मैं कहूँ कि यहाँ आते वक्त रास्ते में रेल पर मैं यही आस लगाए हुए था कि तुम मुझे कोई नई बात बताओगे और मुझे तुमसे कोई अनमोल चीज मिलेगी देखा न, हम दोनों किस कदर दौलतमंद हैं!'

'आप मुझसे क्या पाना चाहते थे?'

'मैं भला क्या बताऊँ सच पूछो तो मुझे खुद मालूम नहीं। तुम देख रहे हो न कि मैं किस तरह के गंदे होटल में अपना वक्त बिताता हूँ, और यह मुझे अच्छा भी लगता है या शायद यह कहना बेहतर होगा कि यह जगह मुझे उतनी अच्छी नहीं लगती है जितनी यह बात लगती है कि कोई ऐसी जगह हो जहाँ मुझे सुख मिल सके। मिसाल के लिए, उस बेचारी कात्या को लो-तुमने देखा था न उसे ...अगर मैं कोई पेटू होता, या क्लबों में अच्छा खाने का शौकीन होता तो कोई बात भी होती, लेकिन यह रहा वह खाना जो मैं खाता हूँ।' (यह कह कर उसने कोने में रखी एक छोटी-सी मेज की तरफ इशारा किया जिस पर टीन की एक तश्तरी में बहुत ही बुरी बीफस्टेक का बचा हुआ टुकड़ा और आलू के कुछ कतले पड़े थे।) 'अरे हाँ, तुमने खाना खा लिया है क्या? मैं अभी थोड़ा-सा खा चुका हूँ, अब कुछ खाने को जी नहीं चाहता। मिसाल के लिए, मैं शराब नहीं पीता। शैंपेन छोड़ कोई हल्की शराब भी नहीं पीता और उसका भी पूरी शाम में एक गिलास। उतने से ही मेरे सर में दर्द होने लगता है। इस वक्त तो मैंने बस अपना हौसला बढ़ाने के लिए थोड़ी-सी मँगा ली थी, क्योंकि अभी मुझे किसी से मिलने जाना है। इसीलिए तुम मुझे एक खास किस्म की दिमागी हालत में देख रहे हो। मैंने स्कूली लड़कों की तरह छिपने की कोशिश इसीलिए की थी कि मुझे डर था, तुम इस वक्त मेरे लिए मुसीबत बन जाओगे। लेकिन,' उसने घड़ी निकाल कर देखा, 'मैं समझता हूँ तुम्हारे लिए एक घंटे का वक्त अभी मेरे पास है। इस वक्त साढ़े चार बजे हैं। देखो, बात यह है कि मेरा बहुत जी चाहता है कि मेरे पास करने को कुछ होता। काश, मैं जमींदार होता, या बाप होता, या घुड़सवार फौज का अफसर होता, या फोटोग्राफर होता, या पत्रकार होता... लेकिन मैं तो कुछ भी नहीं हूँ... मुझे कोई काम भी नहीं आता। कभी-कभी मैं बेहद ऊब जाता हूँ। मैं सोच रहा था कि तुम मुझे नई बात बताओगे।'

'लेकिन आप हैं कौन और यहाँ किसलिए आए हैं?'

'मैं कौन हूँ क्यों, तुम्हें मालूम नहीं? मैं एक शरीफ आदमी हूँ, दो साल तक घुड़सवार फौज में नौकरी की, उसके बाद कुछ समय तक यहाँ पीतर्सबर्ग में भटकता रहा, फिर उस औरत से शादी कर ली जो अब मर चुकी है और देहात में रहने लगा। मेरी जिंदगी की कहानी बस यही है!'

'मैं समझता हूँ आप जुआरी भी हैं!'

'नहीं, भला किस तरह का जुआरी मैं हो सकता हूँ! मैं पत्तेबाज हूँ, जुआरी नहीं।'

'आप सचमुच पत्तेबाज रह चुके हैं?'

'हाँ, पत्तेबाज भी रह चुका हूँ।'

'और कभी आपकी पिटाई भी हुई है?'

'हुई है। क्यों?'

'खूब, तो मैं समझता हूँ कि आपके सामने ऐसे मौके भी आए होंगे जब आपने किसी को द्वंद्व के लिए भी ललकारा होगा... आम तौर पर इस तरह की बातों से जिंदगी में आदमी की दिलचस्पी बनी रहती है।'

'मैं तुम्हारी बात को झुठलाना नहीं चाहता। इसके अलावा मैं दार्शनिकों जैसी बातें करने में भी कोई माहिर नहीं हूँ। लेकिन यह मान लेने में मुझे कोई एतराज नहीं है कि यहाँ मैं खास तौर पर औरतों की वजह से ही आया।'

'कुछ ही दिन पहले अपनी बीवी को दफन करके यहाँ आए, क्यों?'

'हाँ, तो,' स्विद्रिगाइलोव निहत्था कर देनेवाली मुस्कान मुस्कराया। 'तो क्या हुआ मुझे लगता है, तुम यह सोचते हो कि औरतों के बारे में मेरा इस तरह बातें करना कोई बेहूदा बात है। क्यों?'

'आपका मतलब यह है कि मैं बदकारी को कोई बुराई समझता हूँ कि नहीं?'

'बदकारी तो तुम यह सोच रहे हो! लेकिन पहले मैं आम तौर पर औरतों के बारे में अपनी राय साफ-साफ बता दूँ। तुम जानते हो, इस वक्त मेरा थोड़ा दिल खोल कर बातें करने को जी चाह रहा है। अब तुम ही बताओ, मैं किसलिए अपने आपको काबू में रखूँ अगर औरतें अच्छी लगती हैं तो मैं उन्हें क्यों छोड़ दूँ कम-से-कम मेरा वक्त तो कट जाता है।'

'तो आप यहाँ सिर्फ बदकारी की उम्मीद ले कर आए हैं?'

'अच्छा, तो क्यों नहीं? इसी को रटने से फायदा! तुम्हारे दिमाग पर बदकारी ही सवार है। हाँ, मैं बदकारी को पसंद करता हूँ। सवाल कम-से-कम सीधा तो पूछा गया। इस बदकारी में कोई चीज ऐसी है जो हमेशा रहती है। कोई ऐसी चीज जिसकी बुनियाद प्रकृति पर होती है, जो महज कल्पना की उड़ान की पाबंद नहीं होती। कोई ऐसी चीज जो खून में हमेशा एक दहकते अंगारे की तरह मौजूद रहती है। कोई ऐसी चीज जो ऐसी आग भड़काती है जिसे उम्र गुजरने के साथ भी एक अरसे तक बुझाया नहीं जा सकता। तुम्हें मानना पड़ेगा कि यह भी वक्त काटने का एक ढंग है, क्यों?'

'इसमें इतना खुश होने की क्या बात है यह एक बीमारी है, सो भी खतरनाक बीमारी।'

'अच्छा, तो तुम यह सोच रहे हो मैं मानता हूँ कि यह एक बीमारी है, हद से आगे बढ़ी, हर चीज की तरह और इस तरह के सिलसिलों में कोई भी आदमी हद से आगे बढ़े बिना रह नहीं सकता। लेकिन पहली बात तो यह है कि इसका दारोमदार इस पर होता है कि कौन किस किस्म का है। दूसरे, हर बात में आदमी को कुछ-न-कुछ संतुलन, कोई-न-कोई हिसाब तो रखना ही पड़ता है, चाहे वह हिसाब कितना ही बुरा हो! अगर ऐसा न हो तो आदमी अपने भेजे में गोली मार कर मर जाए। याद रखना, मैं इस बात को पूरी तरह मानता हूँ कि शरीफ आदमी का कर्तव्य होता है ऐसी ऊब झेलना, लेकिन बहरहाल...'

'तो आप अपने भेजे में गोली मार कर मर सकते हैं?'

'हे भगवान!' स्विद्रिगाइलोव ने उकता कर उसका सवाल टालते हुए कहा। 'मेहरबानी करके इसकी बात न करो,' उसने जल्दी से कहा। उसमें अब वह पहलेवाला डींग मारने का भाव नहीं था; चेहरे का भाव भी बदला हुआ लग रहा था। 'माफ करना, लेकिन मुझे डर है कि मैं एक ऐसी कमजोरी का अपराधी हूँ जिसे माफ नहीं किया जा सकता। मेरे दिल में मौत का डर है और मैं नहीं चाहता कि लोग उसकी चर्चा करें। क्या तुम जानते हो कि मैं थोड़ा-सा रहस्यवादी हूँ?'

'खूब! और वह आपकी बीवी का भूत! वह अब भी आता है?'

'भगवान के लिए उसकी चर्चा न करो! पीतर्सबर्ग में तो वह अभी तक नहीं आया है। लानत है उस पर!' उसने अचानक चिढ़ कर जोर से कहा। 'नहीं, बेहतर हो हम लोग कुछ और बातें करें... लेकिन... अफसोस कि मेरे पास वक्त नहीं है। मैं तुम्हारे पास अब और ज्यादा देर नहीं रुक सकता। वक्त होता तो मैं तुम्हें कुछ-न-कुछ बताता।'

'जा क्यों रहे हैं? कोई औरत है?'

'हाँ, एक औरत है। इत्तफाक से ही मुलाकात हो गई थी... लेकिन मैं उसकी बात नहीं कर रहा था।'

'लेकिन इस सारे घिनौनेपन का आप पर क्या कोई असर नहीं होता? क्या आपमें इस सिलसिले को रोकने की काबिलियत नहीं रही?'

'तुम काबिलियत की बात कर रहे हो? हा-हा! मानना पड़ेगा, दोस्त, कि तुमने मुझे हैरत में डाल दिया, हालाँकि मैं पहले से जानता था कि ऐसा ही होगा। तुम मुझसे बदकारी और जिंदगी की खूबसूरती की बातें कर रहे हो! तुम शिलर हो... आदर्शवादी हो! खैर, यह सब कुछ वैसा ही है जैसा कि होना चाहिए। ताज्जुब तो तब होता जब ऐसा न होता। फिर भी जब जिंदगी में इस तरह की किसी चीज से पाला पड़ता है तो ताज्जुब होता है... अफसोस है कि मेरे पास बहुत थोड़ा वक्त है, जबकि तुम बहुत ही दिलचस्प आदमी हो! अच्छा, यह बताओ, शिलर तुम्हें पसंद है क्या? मुझे तो बेपनाह पसंद है।'

'हे भगवान, आप भी किस कदर शेखीबाज हैं!' रस्कोलनिकोव ने कुछ बेजारी से कहा।

'नहीं दोस्त,' स्विद्रिगाइलोव ने हँसते हुए जवाब दिया। 'लेकिन मैं बहस नहीं करूँगा। शेखीबाज शायद मैं हूँ। अगर किसी को कोई नुकसान न हो तो थोड़ी-सी शेखीबाजी में हर्ज क्या है? देखो, मैंने अपनी बीवी के साथ सात साल देहात में बिताए हैं। इसलिए अब जबकि मेरी मुलाकात तुम्हारे जैसे होशियार, समझदार और बेहद दिलचस्प आदमी से हुई है, तो मुझे बातचीत करके खुशी हो रही है। अलावा इसके, मैंने आधा गिलास शराब भी पी रखी है, और मुझे लगता है वह मुझे कुछ चढ़ भी गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि एक ऐसी बात हुई है जिसने मेरे अंदर काफी जोश भर दिया है, लेकिन जिसके बारे में मैं... एक शब्द भी नहीं कहूँगा। तुम चले कहाँ?' स्विद्रिगाइलोव ने अचानक घबरा कर पूछा।

रस्कोलनिकोव उठने ही वाला था। वह न जाने क्यों उदास हो गया था। उसका दम घुट रहा था और वह कुछ अटपटा-सा महूसस कर रहा था। मन-ही-मन वह पूछ रहा था कि वह यहाँ आया ही क्यों। अब उसे पक्का यकीन हो चुका था कि स्विद्रिगाइलोव दुनिया का सबसे निकम्मा और सबसे बेकार, दुष्ट आदमी था।

'ऐ भले आदमी, भगवान के लिए बैठ भी जाओ! कुछ देर तो और ठहरो,' स्विद्रिगाइलोव ने गिड़गिड़ा कर कहा। 'मुझे कम-से-कम चाय पिलाने का मौका तो दो। थोड़ी देर और बैठो मेरे साथ, और मैं कोई बकवास नहीं करूँगा... मेरा मतलब है अपने बारे में। मैं तुम्हें कुछ और बातें बताऊँगा। चाहो तो मैं तुम्हें यह बताऊँ कि किस तरह एक औरत ने, तुम्हारे शब्दों में, मुझे 'बचाने' की कोशिश की थी... यही सचमुच तुम्हारे पहले सवाल का जवाब होगा क्योंकि वह औरत तुम्हारी बहन थी। तुम्हें बताऊँ वह बात? इससे वक्त काटने में भी मदद मिलेगी।'

'अच्छी बात है, लेकिन उम्मीद है कि आप...'

'अरे, तुम परेशान मत हो! मेरे जैसे गंदे और खोखले इनसान के दिल में भी अव्दोत्या रोमानोव्ना के लिए भरपूर गहरी इज्जत के अलावा और कोई जज्बा नहीं हो सकता।'

अपराध और दंड : (अध्याय 6-भाग 4)

'शायद तुम्हें पता हो (मैंने तो तुम्हें खुद ही बताया था!),' स्विद्रिगाइलोव ने कहना शुरू किया, 'कि मुझे यहाँ कर्ज न चुकाने पर जेल भेज दिया गया था। मेरे ऊपर बहुत बड़ा कर्ज था पर उसे चुकाने के न तो साधन थे न इसकी कोई उम्मीद थी। शायद विस्तार से यह बताना मेरे लिए जरूरी नहीं कि मेरी बीवी ने किस तरह मेरा कर्ज चुका कर मुझे छुटकारा दिलाया था। तुम्हें मालूम है क्या कि औरत कभी-कभी मुहब्बत में कितनी पागल हो जाती है वह बहुत ईमानदार औरत थी और कुछ खास नासमझ भी नहीं थी (हालाँकि वह पढ़ी-लिखी हरगिज नहीं थी।) अब जरा सोचो : इस ईमानदार और ईर्ष्यालु औरत ने रोने-धोने और कहा-सुनी की कई भयानक वारदातों के बाद मुझ पर एक बड़ा एहसान करके मेरे साथ एक तरह का करार कर लिया, जिसे उसने हमारे विवाहित जीवन में हमेशा निभाया। मुसीबत यह थी कि वह उम्र में मुझसे बहुत बड़ी थी। अलावा इसके हर वक्त वह लौंग चबाती रहती थी। पर मैं भी कुछ हद तक पाजी था और मैंने उससे साफ-साफ कह दिया कि मैं उसके साथ पूरी वफादारी नहीं बरत सकता। इस बात को मेरे मान लेने पर वह आग-बगूला हो उठी। लेकिन लगता है, मेरा दो-टूक बात कह देना उसे एक तरह से अच्छा ही लगा, क्योंकि उसने सोचा कि मैंने उसे पहले से ही आगाह कर दिया था और इसका मतलब यह था कि मैं उसे धोखा नहीं देना चाहता था। ईर्ष्यालु औरत के लिए सबसे बड़ी बात यही होती है। आँसुओं की नदियाँ बहाने के बाद हमने आपस में एक अनकहा समझौता कर लिया - पहली बात यह कि मैं कभी उसे छोड़ कर नहीं जाऊँगा और हमेशा उसका शौहर रहूँगा। दूसरे, मैं उसकी इजाजत के बिना कभी कहीं नहीं जाऊँगा। तीसरे, मैं हमेशा के लिए कभी कोई रखैल नहीं रखूँगा। चौथे, इसके बदले में मेरी बीवी कभी इस बात पर एतराज नहीं करेगी कि मैं कभी-कभार अपनी किसी नौकरानी के साथ कोई चक्कर पाल लूँ, लेकिन इस तरह कभी नहीं कि मेरी बीवी को अंदर-ही-अंदर उसका पता न हो। पाँचवें किसी भी हालत में मैं अपने वर्ग की किसी औरत के चक्कर में नहीं पड़ूँगा। छठे, भगवान न करे, अगर कभी मुझे किसी से बहुत गहरा प्यार हो जाए तो मुझे अपनी बीवी को बताना होगा लेकिन इस आखिरी शर्त के बारे में मेरी बीवी को कभी कोई खास चिंता नहीं हुई। वह समझदार औरत थी और इसलिए मुझे ऐसे ऐयाश और बदलचलन के अलावा कुछ और समझ ही नहीं सकती थी, जो किसी से संजीदगी से प्यार नहीं कर सकता था। लेकिन समझदार औरत और ईर्ष्यालु औरत दो अलग-अलग चीजें होती हैं, और सारी मुसीबत यही थी। मगर कुछ लोगों के बारे में एक निष्पक्ष राय कायम करने के लिए सबसे जरूरी यह होता है कि हम अपने चारों ओर की परिस्थितियों और अपने चारों ओर के लोगों के बारे में अपने पहले से कायम किए गए विचारों को और उनकी तरफ अपने आम रवैए को छोड़ें। मैं समझता हूँ, मैं दूसरे किसी भी आदमी के मुकाबले तुम्हारे फैसले पर कहीं ज्यादा भरोसा कर सकता हूँ। तुमने मेरी बीवी के बारे में बहुत से दिलचस्प और बेतुके किस्से सुने होंगे। यह सच है कि उसकी कुछ आदतें बेतुकी थीं, लेकिन मैं तुमसे साफ-साफ कहता हूँ कि मेरी वजह से उसे कई बार जो बहुत गहरी निराशा हुई, उसका मुझे बहुत ही अफसोस है। खैर, मैं समझता हूँ कि एक बेहद प्यार करनेवाली वफादार बीवी के मरने पर एक बेहद प्यार करनेवाले वफादार शौहर की तरफ से भावपूर्ण श्रद्धांजलि के रूप में इतना कहा जाना काफी है। झगड़ों के दौरान मैं ज्यादातर चुप रहता था और पूरी-पूरी कोशिश करता था कि किसी तरह की चिड़चिड़ाहट न दिखाऊँ। अपने शराफत के रवैए की वजह से इसमें मुझे लगभग हमेशा ही कामयाबी भी मिली। उस पर इसका न सिर्फ असर होता था बल्कि वह इसे यकीनन पसंद करती थी। सच बात तो यह है कि ऐसे भी मौके आए, जब वह मुझ पर गर्व तक करती थी। लेकिन इसके बावजूद तुम्हारी बहन की तरफ मेरे झुकाव की बात वह बर्दाश्त न कर सकी। यह बात तो मैं कभी समझ ही नहीं सका कि उसने उस बेपनाह खूबसूरत लड़की को बच्चों की देखभाल के लिए गवर्नेस रखने का जोखिम कैसे मोल लिया! मेरी समझ में इसकी एक ही वजह आती है : कि मेरी बीवी एक भावुक और जोशीली औरत थी, और उसे खुद तुम्हारी बहन से लगाव हो गया था - सचमुच उससे लगाव हो गया था। अव्दोत्या रोमानोव्ना भी कमाल की लड़की थी! जवाब नहीं था उनका! उन्हें देखते ही मैं अच्छी तरह समझ गया कि इस बार मेरी खैर नहीं है और जानते हो, मैंने जी में ठान लिया था कि उनकी तरफ देखूँगा भी नहीं। लेकिन मानो या न मानो अव्दोत्या रोमानोव्ना ने खुद पहल की... और क्या तुम इस पर यकीन करोगे कि शुरू में मेरी बीवी खुद ही मुझसे नाराज होती थी कि मैं तुम्हारी बहन के सामने कभी जबान तक नहीं खोलता था और वह अव्दोत्या रोमानोव्ना की शान में जो कसीदे लगातार पढ़ती रहती थी, उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता था। मुझे नहीं मालूम कि वह क्या चाहती थी। जाहिर है, मेरी बीवी ने अव्दोत्या रोमानोव्ना को मेरे बारे में सब कुछ बता दिया था। उसकी यह बहुत बुरी आदत थी कि वह सभी को हमारे परिवार की तमाम गुप्त बातें बता देती थी और हर आदमी से मेरी शिकायत करती थी। सो भला वह इस सिलसिले में अपनी इस नई और खूबसूरत दोस्त को कैसे नजरअंदाज कर सकती थी! मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वे दोनों मेरे अलावा किसी और चीज के बारे में बात ही नहीं करती थीं, और मुझे इसमें भी शक नहीं है कि अव्दोत्या रोमानोव्ना को जल्द ही उन शर्मनाक और रहस्यमय भयानक किस्सों का पता चल गया होगा जिन्हें लोग मेरे नाम के साथ जोड़ते हैं... मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि तुमने खुद भी इस तरह की कुछ बातें सुनी होंगी।'

'सुनी हैं। लूजिन ने आप पर इल्जाम लगाया था कि आपकी वजह से एक बच्ची की मौत हुई। यह सच है क्या?'

'मुझ पर इतना एहसान करो कि इन बेहूदा किस्सों की चर्चा न करो,' स्विद्रिगाइलोव ने नफरत से इस विषय को पक्के तौर पर टालते हुए कहा। 'अगर तुम खास तौर पर इस बेतुके किस्से के बारे में जानना ही चाहते हो, तो मैं तुम्हें किसी और वक्त बता दूँगा, लेकिन अभी...'

'मैंने लोगों को गाँव में आपके एक नौकर की चर्चा करते भी सुना है और यह कि आपकी ही वजह से उसके ऊपर भी कोई मुसीबत आई थी।'

'छोड़ो इस बात को, तुम एक भले आदमी हो!' स्विद्रिगाइलोव ने एक बार फिर साफ-साफ बेजार हो कर उसे टोका।

'यह वही नौकर था क्या जो मरने के बाद आपके पास आपका पाइप भरने आया था ...मुझे इस बारे में खुद आपने बताया था।' रस्कोलनिकोव की चिड़चिड़ाहट बढ़ रही थी।

स्विद्रिगाइलोव ने रस्कोलनिकोव को गौर से देखा। रस्कोलनिकोव को लगा, कि एक पल के लिए बिजली की लपलपाहट की तरह स्विद्रिगाइलोव की आँखों में एक दुश्मनी की चमक पैदा हुई थी।

'वही था,' स्विद्रिगाइलोव ने अपने आपको सँभाल कर शिष्टता से जवाब दिया। 'मैं देख रहा हूँ कि तुम्हें भी इन सब बातों में काफी दिलचस्पी है, और इसलिए मैं यह अपना फर्ज समझता हूँ कि पहला मुनासिब मौका मिलने पर इन सब बातों के बारे में तुम्हें वह सब कुछ बता दूँ जो तुम जानना चाहते हो। लानत है, अब मेरी समझ में आ रहा है कि कुछ लोगों को मैं सचमुच रोमांटिक लगता रहा हूँगा। तुम खुद समझ सकते हो कि इसके बाद मैंने अपनी बीवी का, जो अब मर चुकी है, कितना एहसान माना होगा कि उसने तुम्हारी बहन को मेरे बारे में बहुत-सी रहस्य भरी और दिलचस्प बातें बता दी थीं। यह तो मैं नहीं कह सकता कि तुम्हारी बहन पर उसका क्या असर हुआ लेकिन इससे मुझे बहरहाल फायदा ही हुआ। अवदोत्या रोमानोव्ना को मुझसे जो कुदरती दुराव था उसके बावजूद और मैं हमेशा जो गुस्से और चिढ़वाली मुद्रा बनाए रहता था उसके बावजूद, आखिरकार उनके दिल में मेरे लिए तरस पैदा हुआ, एक पूरी तरह गए-गुजरे आदमी के लिए तरस पैदा हुआ। पर जब किसी नौजवान लड़की के दिल में किसी के लिए तरस पैदा होता है तो यह बात उस लड़की के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होती है क्योंकि ऐसी हालत में वह लाजिमी तौर पर उसे 'बचाने' की कोशिश करती है; इसकी कोशिश करती है कि वह आदमी अपनी गलतियों को समझे। वह उसे एक नया इनसान बनाना चाहती है, उसके दिल में ज्यादा ऊँची चीजों के लिए दिलचस्पी पैदा करना चाहती है, और उसे एक नई जिंदगी के लिए नए कामों के लिए उभारना चाहती है। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि एक नौजवान लड़की के मन में किस तरह के सपने होते हैं। फौरन ताड़ गया मैं कि यह प्यारी खूबसूरत चिड़िया उड़ कर सीधे मेरे जाल में आ रही है, और मैं भी इसके लिए तैयार हो गया। लगता है दोस्त, तुम्हारी त्योरियों पर बल आ रहे हैं। परेशान न हो, जैसा कि तुम जानते ही हो, इन बातों का कोई नतीजा नहीं निकला। (लानत है, मुझ पर, लगता है बहुत ज्यादा शराब पीने लगा हूँ!) बात यह है कि मैं शुरू से ही हमेशा यही सोचा करता था कि अफसोस तुम्हारी बहन दूसरी या तीसरी सदी ईसवी के किसी राजे-रजवाड़े, किसी सूबे के गवर्नर, या एशिया-ए-कोचक के राजदूत के घर में क्यों नहीं पैदा हुईं। तब वे यकीनन उन लोगों में से होतीं जिन्हें शहीद कर दिया गया, और जब उनके स्तनों को दहकते चिमटों से दागा जाता तब भी वे यकीनन मुस्करातीं। वे हँसी-खुशी शहीद होने को तैयार हो जातीं। और अगर वे चौथी या पाँचवीं सदी में होतीं तो संन्यास ले कर मिस्र के निर्जन रेगिस्तान में चली गई होतीं और वहाँ तीस साल तल कंद-मूल खा कर ध्यान-तपस्या में अपने दिन काट दिए होते। वे इस चीज के लिए तड़प रही हैं, किसी की खातिर भी शहीद होने को तुली बैठी हैं, और अगर उन्हें शहीद होने का मौका न मिला तो बहुत मुमकिन है कि वे खिड़की से छलाँग लगा कर अपनी जान दे दें। मैंने रजुमीखिन नाम के किसी आदमी के बारे में सुना है। सुना है कि वह समझदार आदमी है। (इसका अंदाजा आप उसके परिवार-नाम से ही लगा सकते हैं, क्योंकि वह जिस शब्द से बना है उसका अर्थ 'विवेक' होता है। मैं समझता हूँ, वह धर्मशास्त्र का विद्यार्थी होगा।) खैर, वह अगर तुम्हारी बहन को खुश रख सके, तो काफी अच्छी बात है। मतलब यह मेरा खयाल है, मैं तुम्हारी बहन को अच्छी तरह समझता था और यह मेरे लिए बहुत इज्जत की बात है। लेकिन इसके साथ ही, जैसा कि तुम जानते हो, किसी से भी जान-पहचान की शुरुआत में हर आदमी कुछ ज्यादा ही नादान और नासमझ होता है। हमेशा गलत सिरा पकड़ लेता है। उसे सामने की चीज नहीं दिखाई देती। आखिर वे इतनी खूबसूरत क्यों हैं यह मेरा कसूर तो नहीं है। तो बात यह है कि जहाँ तक मेरा सवाल है, यह सारा सिलसिला मेरे दिल में वासना की एक ऐसी लहर से शुरू हुआ, जिसे दबा सकना मेरे लिए नामुमकिन था। अव्दोत्या रोमानोव्ना बेहद पवित्र और सच्चरित्र हैं, इतनी कि समझना और यकीन करना मुश्किल है। (याद रहे, मैं तुम्हारी बहन के बारे में यह सब कुछ एकदम सच-सच बता रहा हूँ। उनकी पवित्रता और सच्चरित्रता बीमारी की हद तक पहुँच चुकी है, बावजूद इसके कि वे बहुत समझदार हैं, और इसकी वजह से उन्हें बहुत-सी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।) तो हुआ यह कि उन्हीं दिनों हमारे यहाँ एक नई नौकरानी आई - पराशा। काली आँखोंवाली पराशा। वह ऊपर के कामों के लिए रखी गई थी। नई-नई किसी दूसरे गाँव से आई थी और मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था। बला की खूबसूरत थी, लेकिन हद दर्जे की बेवकूफ। एक हंगामा ही खड़ा कर दिया उसने, चीख-चीख कर आसमान सर पर उठा लिया... और छीछालेदार कितनी हुई! अफसोस की बात कि आखिर एक दिन दोपहर के भोजन के बाद अव्दोत्या रोमानोव्ना ने कोशिश करके मुझे बाग के छायादार पेड़ोंवाले एक रास्ते पर खोज निकाला और गुस्से से चमकती हुई आँखों से मुझसे माँग की कि मैं बेचारी पराशा का पीछा छोड़ दूँ। यह शायद पहला मौका था, जब हम दोनों ने बिलकुल अकेले आपस में बातचीत की थी। जाहिर है, मुझे उनकी इस प्रार्थना को पूरा करके बेहद खुशी हुई। मैंने अपनी तरफ से यह जताने की पूरी कोशिश की कि मुझे उनकी बात से ताज्जुब हुआ था और मैं काफी अटपटा महसूस कर रहा था, और सच तो यह है कि मैंने यह नाटक काफी अच्छी तरह खेला। इसके बाद हम दोनों छिप-छिप कर मिलने लगे; गुपचुप बातें होतीं, उपदेश दिए जाते, नसीहतें की जातीं, शिकवे-शिकायतें होतीं, और कभी-कभी आँसुओं तक की नौबत आ जाती... क्या तुम यकीन करोगें... आँसुओं की! दूसरों को सुधारने की धुन कुछ लड़कियों को कहाँ तक पहुँचा देती है! जाहिर है, मैंने हर बात के लिए अपने अभागे सितारों को दोषी ठहराया, यह जताया कि मैं इस अँधेरे से बाहर निकलने के लिए रोशनी की तलाश में तड़प रहा हूँ, और आखिर में औरत का दिल जीतने के सबसे अच्छे और अचूक तरीके का सहारा लिया, उस तरीके का जिसने अभी तक किसी को कभी निराश नहीं किया और जो हर औरत के सिलसिले के एक कारगर साबित होता है। वह जाना-पहचाना तरीका खुशामद का था। दुनिया में साफ बात कहने से ज्यादा मुश्किल कोई काम नहीं और कोई काम चापलूसी से ज्यादा आसान नहीं। अगर आपकी दोटूक बातों में सौवाँ हिस्सा भी झूठ का हो तो फौरन कोई मनमुटाव पैदा हो जाएगा और उसके तुरंत बाद झगड़ा शुरू हो जाएगा। लेकिन, दूसरी तरफ, अगर खुशामद में शुरू से आखिर तक झूठ हो, तब भी वह काफी सुखद होता है और संतोष के साथ सुना जाता है... बहुत भोंडे किस्म का संतोष होता है लेकिन होता तो है। और खुशामद कितना ही भोंडा क्यों न हो, कम-से-कम उसका आधा हिस्सा तो हमेशा ही सच मालूम होता है। यह बात हर तरह के और हर वर्ग के लोगों के बारे में सच है। चरित्रवान से चरित्रवान कन्याकुमारी को भी खुशामद के जरिए शीशे में उतारा जा सकता है। जहाँ तक मामूली इनसानों का सवाल है, वे इसके आगे एकदम बेबस हो जाते हैं। मुझे तो हँसी आती है जब मैं याद करता हूँ कि मैंने एक बार किस तरह समाज में ऊँची हैसियतवाली एक ऐसी महिला को फँसा लिया था जिसे अपने पति, अपने बच्चों और अपनी सच्चरित्रता से बड़ा लगाव था। कितना मजा आया था। और कैसी आसानी से सब कुछ हो गया था! वह महिला भी सचमुच और सही माने में सच्चरित्र थी; कम-से-कम अपने ढंग से तो थी ही। मैंने तो सिर्फ यह दाँव खेला कि यह जताया कि मैं उनकी सच्चरित्रता से पूरी तरह प्रभावित हूँ। मैं बड़ी बेशर्मी से उनकी खुशामद करता था, और ज्यों ही उनसे कुछ पाने में सफल हो गया, यानी कभी मैंने उसका जरा-सा हाथ दबा दिया या कभी उसने मेरी ओर कनखियों से देख लिया, तो मैं फौरन अपने आपको धिक्कारने लगता था कि मैंने जो कुछ पाया था, वह जबरदस्ती पाया था। मैं हमेशा उसे यह बताता रहता था कि वह तो लगातार डट कर मेरा विरोध करती रही थी, इतना डट कर कि अगर मैं बदचलन न होता तो मुझे कुछ भी मिल नहीं पाता। अपने भोलेपन में वह मेरी मक्कारी को पहले से समझ नहीं पाई और इस बात को समझे बिना या किसी तरह का शक किए बिना, अनजाने ही मेरे हथकंडों का शिकार हो गई थी, वगैरह, वगैरह। जो कुछ मैं चाहता था, आखिर मुझे मिल गया, और उन देवीजी को आखिर तक यही पक्का विश्वास रहा कि वह निर्दोष और सच्चरित्र थी, कि उसने अपने किसी कर्तव्य और दायित्व का हनन नहीं किया और यह भी कि उसका पथभ्रष्ट हो जाना बस संयोग की बात थी। तुम तो सोच भी नहीं सकते कि तब वह कितना नाराज हुई, जब मैंने उसे यह बताया कि पूरी ईमानदारी के साथ मैं तो यही समझता था कि आनंद लूटने के लिए वह भी उतनी ही बेचैन थी जितना मैं था। मेरी बीवी बेचारी भी बड़ी आसानी से खुशामद की शिकार हो जाती थी, और अगर मैं चाहता तो उसकी जिंदगी में ही उसकी सारी जमीन-जायदाद अपने नाम लिखवा सकता था। (मुझे डर है कि मैं अब बेहद पीने लगा हूँ और जरूरत से ज्यादा बातें करने लगा हूँ।) मुझे उम्मीद है कि अगर मैं तुम्हें अब यह बता दूँ कि यही बात अव्दोत्या रोमानोव्ना के साथ भी होने लगी थी तो तुम नाराज नहीं होगे। लेकिन मैंने ही अपनी नासमझी और बेसब्री की वजह से सारा बना-बनाया खेल बिगाड़ दिया। हमारी दोस्ती की शुरुआत में ही तुम्हारी बहन ने कई बार (एक बार तो खास तौर पर) उनमें एक ऐसी रोशनी रहती थी जिसकी चमक लगातार ज्यादा तेज और ज्यादा बेझिझक होती जाती थी। यहाँ तक कि उन्हें उस चमक से डर लगने लगा, और आखिर वे उससे नफरत करने लगीं। मैं तफसील की बातों में नहीं जाऊँगा, लेकिन हम दोनों की अनबन हो गई। और इस मंजिल पर पहुँच कर मैंने फिर बेवकूफी की। मैं उनकी आदेश देने की और मुझे सुधारने की कोशिशों का बेहद बदतमीजी से, खुल्लमखुल्ला मजाक उड़ाने लगा। पराशा एक बार फिर मेरी जिंदगी में आ गई... और अकेली वही नहीं, और भी कई आईं। मतलब यह कि एक काफी बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया। मेरे दोस्त, काश तुम अपनी जिंदगी में एक बार भी देख पाते कि तुम्हारी बहन की आँखें कभी-कभी किस तरह चमक सकती हैं! इस बात की कोई परवाह मत करो कि मैं इस वक्त नशे में हूँ, या मैं शराब का एक पूरा गिलास चढ़ा चुका हूँ - मैं तुमसे सच बात कह रहा हूँ। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि तुम्हारी बहन की नजर मेरे सपनों में मुझे सताने लगी। फिर एक ऐसा वक्त भी आया जब उनकी पोशाक की सरसराहट भी मेरे लिए बर्दाश्त के बाहर हो गई। मैं सचमुच सोचने लगा कि मुझे मिरगी का दौरा पड़ जाएगा। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मुझ पर ऐसा जुनून सवार होगा। मेरे लिए तुम्हारी बहन के साथ सुलह-समझौता बहुत जरूरी हो गया था लेकिन अब यह मुमकिन भी नहीं रह गया था। तो फिर तुम्हारी समझ में मैंने क्या किया होगा? गुस्सा आदमी को कितना निकम्मा बना देता है! जब तुम्हें बेहद गुस्सा आ रहा हो तब कोई काम मत करना, मेरे दोस्त! इस बात को ध्यान में रखते हुए कि अव्दोत्या रोमानोव्ना हर एतबार से कंगाल थीं। (माफ करना, मैं यह बात कहना नहीं चाहता था... लेकिन क्या फर्क पड़ता है!), दरअसल इस बात को देखते हुए कि उन्हें अपनी रोजी कमाने के लिए काम करना पड़ता था और अपनी माँ के लिए और तुम्हारे लिए भी बंदोबस्त करना पड़ता था (तुम्हारी त्योरियों पर फिर बल पड़ गए!), मैंने अपना सारा पैसा उन्हें इस शर्त पर दे देने का फैसला किया (उस वक्त भी मैं तीस हजार रूबल जुटा सकता था) कि वे मेरे साथ भाग चलें - अगर उनका जी चाहे तो पीतर्सबर्ग ही सही। इस सिलसिले में यह बताने की तो जरूरत नहीं कि उन्हें मैं उम्र भर प्यार करने का वचन देता, उन्हें यकीन दिलाता कि उन्हें सुखी रखूँगा, वगैरह, वगैरह। यह जानो कि उस वक्त मैं उनके प्यार में इतना पागल हो गया था कि अगर वे मुझसे कहतीं कि मैं अपनी बीवी की गर्दन काट दूँ या उसे जहर दे दूँ और उनसे शादी कर लूँ तो मैं फौरन यही सब कर बैठता! लेकिन, जैसा कि तुम्हें मालूम ही है, सारा किस्सा जिस तरह खत्म हुआ, वह बहुत ही बदनसीबी की बात थी। तुम सोच सकते हो कि तब मुझे कितना ताव आया होगा, जब मैंने यह सुना कि मेरी बीवी ने उस लुच्चे वकील लूजिन को पकड़ कर उसके साथ तुम्हारी बहन की शादी कराने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। सच पूछो तो यह वैसी ही बात होती जैसी कि मैंने उनके सामने सुझाव के तौर पर रखी थी। है न यही बात, है कि नहीं मैं देख रहा हूँ, मेरे दिलचस्प नौजवान दोस्त, कि तुम मेरी बातें बड़े ध्यान से सुनने लगे हो...'

स्विद्रिगाइलोव ने बेचैन हो कर मेज पर जोर से मुक्का मारा। उसका चेहरा तमतमा उठा। रस्कोलनिकोव समझ गया कि अनजाने ही चुस्कियाँ ले-ले कर और घूँट-घूँट करके वह जो डेढ़ गिलास शैंपेन पी गया था, उसका उस पर बुरी तरह असर हुआ था, और उसने इस मौके का भरपूर फायदा उठाने का फैसला किया। वह स्विद्रिगाइलोव को बहुत शक की नजर से देखता था।

'खैर, इसके बाद मुझे तो और भी पक्का यकीन हो गया है कि आप यहाँ मेरी बहन की वजह से ही आए हैं,' उसने स्विद्रिगाइलोव से कुछ भी छिपाए बिना, खुल्लमखुल्ला कहा ताकि वह और भी चिढ़ जाए।

'नहीं, भगवान की कसम, ऐसी बात नहीं!' यूँ लगा कि स्विद्रिगाइलोव ने अपने आपको सँभाल लिया है। 'मैं तो तुम्हें बता ही चुका हूँ ...इसके अलावा, तुम्हारी बहन मेरी सूरत तक देखने को तैयार नहीं हैं।'

'मुझे यकीन है कि ऐसी ही बात होगी, लेकिन अब सवाल इसका भी नहीं रहा।'

'अच्छा, तो तुम्हें यकीन है कि वे कभी ऐसा करने को तैयार नहीं हो सकतीं, क्यों?' स्वद्रिगाइलोव आँखें तरेर कर उसका मजाक उड़ाने के अंदाज से मुस्कराया। 'तुम एकदम ठीक कहते हो। वे मुझसे प्यार नहीं करतीं। लेकिन भरोसे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता कि शौहर और बीवी के बीच, या किसी आशिक और माशूक के बीच कब क्या हो जाए। एक कोना हमेशा ऐसा होता है जो दुनिया की नजरों से छिपा रहता है और उसका पता बस उन्हीं दोनों को होता है। क्या तुम्हें यकीन है कि अव्दोत्या रोमानोव्ना को मुझसे सख्त नफरत है?'

'आपकी कुछ बातों और कुछ शब्दों में मुझे लगता है कि दूनिया के सिलसिले में अभी तक आपके कुछ इरादे हैं, जाहिर है, वे शर्मनाक ही हैं, और आप उन्हें पूरा करने पर तुले हुए हैं।'

'मतलब क्या है तुम्हारा? क्या मैंने ऐसी कोई भी बात कही है या ऐसा कोई भी शब्द इस्तेमाल किया है?' स्विद्रिगाइलोव ने निष्कपट विस्मय से और उसके इरादों के बारे में जो विशेषण इस्तेमाल किया गया था, उसकी ओर ध्यान दिए बिना, चीख कर कहा।

'आप अभी भी इस्तेमाल कर रहे हैं। मिसाल के लिए, आप इतना डरे हुए क्यों हैं, अचानक इतना सहम क्यों गए हैं?'

'मैं और डरा-सहमा हुआ? किससे? तुमसे मेरे दोस्त, डरना तो मुझसे तुम्हें चाहिए। लेकिन यह भी क्या सरासर बकवास है... मैं कुछ नशे में हूँ, यह मैं समझ रहा हूँ। एक बार फिर एक ऐसी बात मेरे मुँह से निकलते-निकलते रह गई, जो मुझे नहीं कहनी चाहिए। लानत है इस शराब पर। वेटर, पानी लाओ!'

उसने बोतल उठा कर खिड़की के बाहर फेंक दी। फिलिप पानी ले कर आया।

'सब बकवास है!' स्विद्रिगोइलोव ने तौलिया भिगो कर सर पर रखते हुए कहा। 'लेकिन मैं बड़ी आसानी से तुम्हारी सारी उलझन दूर कर सकता हूँ; तुम्हारे सारे शक मिटा सकता हूँ। मिसाल के लिए, क्या तुम्हें मालूम है कि मेरी शादी होनेवाली है?'

'आप मुझे बता चुके हैं।'

'बता चुका हूँ मुझे याद नहीं। लेकिन तब मैंने पक्के तौर पर नहीं बताया होगा क्योंकि मैंने तब तक लड़की को देखा भी नहीं था। मेरा बस एक इरादा था। लेकिन अब बाकायदा मँगनी हो चुकी है, सब कुछ तय हो चुका है, और अगर अभी मुझे एक जरूरी कारोबारी काम से न जाना होता तो मैं तुम्हें फौरन वहाँ ले जाता क्योंकि मैं तुम्हारी राय जानना चाहता हूँ। लानत है, मेरे पास अब सिर्फ दस मिनट का वक्त रह गया है। टाइम देख रहे हो? मैं समझता हूँ मैं तुम्हें उसके बारे में बता ही दूँ... मेरा मतलब है अपनी शादी के बारे में, क्योंकि वह अपने ढंग का बहुत ही दिलचस्प सिलसिला है। तुम चले कहाँ जा रहे हो?'

'नहीं, अब नहीं जाऊँगा।'

'तुम्हारा मतलब है कि बिलकुल नहीं जाओगे... देखा जाएगा। मैं तुम्हें वहाँ ले जाऊँगा और अपनी मँगेतर से मिलाऊँगा लेकिन अभी नहीं, क्योंकि शायद तुम्हें जल्द ही जाना पड़ेगा। तुम दाहिनी ओर जाना और मैं बाईं ओर जाऊँगा। मादाम रेसलिख को तो जानते ही होगे? वही औरत जिसके यहाँ मैं रहता हूँ। सुन रहे हो कि नहीं... मेरा मतलब उस औरत से है जिसके बारे में लोग कहते हैं कि वह छोटी बच्ची उसी के घर में डूब कर मर गई थी - इसी जाड़े में... हाँ, तो तुम सुन रहे हो न, भले आदमी खूब! तो, यह सारा किस्सा मेरे लिए उसी ने तय किया है। उसने मुझसे कहा, तुम उकताए हुए रहते हो, तुम्हारा जी भी थोड़ा बहल जाएगा। और यह बात ठीक ही है : मैं बहुत उदास और नीरस आदमी हूँ। क्यों, तुम यह तो नहीं समझते कि मैं बहुत खुशमिजाज हूँ अरे नहीं, मैं बहुत ही उदास आदमी हूँ। किसी को मैं कोई नुकसान नहीं पहुँचाता, बस एक कोने में बैठा रहता हूँ, और कभी-कभी तो तुम तीन-तीन दिन तक मेरे मुँह से एक बात भी नहीं सुनोगे। लेकिन वह औरत... वह मादाम रेसलिख बड़ी चालाक कुतिया है, इतना मैं बताए देता हूँ। जानते हो, उसके मन में क्या बात है वह सोचती है कि मैं अपनी बीवी से उकता जाऊँगा और उसे छोड़ कर चला जाऊँगा। तब मेरी बीवी उसके कब्जे में आ जाएगी और वह उसे जिस तरह चाहेगी इस्तेमाल करेगी, उसे हमारे वर्ग के लोगों के बीच, या शायद और भी ऊँचे लोगों के बीच, घुमाना शुरू कर देगी। उसने मुझे बताया कि लड़की का बाप सरकारी नौकर था, अब पेन्शन पाता है और अपाहिज है, उसकी टाँगों को लकवा मार गया है और पिछले तीन साल उसने अपाहिजोंवाली कुर्सी पर ही काटे हैं। उसने मुझे बताया कि लड़की की माँ बहुत समझदार औरत है। उनके एक बेटा भी है जो किसी दूसरी जगह रहता है, किसी सरकारी नौकरी से लगा हुआ है, और उनकी कोई मदद नहीं करता। एक बेटी की शादी हो चुकी है लेकिन वह उनके यहाँ नहीं आती। उनके दो छोटे भतीजे भी साथ ही रहते हैं। (जैसे उनके अपने ही बच्चे कम हों।) अपनी दूसरी बेटी को उन लोगों ने पढ़ाई पूरी करने से पहले ही स्कूल से निकाल लिया था। एक महीने बाद वह सोलह साल की हो जाएगी और तब कानूनी तौर पर उसकी शादी हो सकती है। यानी कि मेरे साथ। तो हम लोग उनसे जान-पहचान पैदा करने गए। खूब चहल-पहल रही और हंगामा रहा। मैंने अपना परिचय दिया - मैं जमींदार हूँ, मेरी बीवी मर चुकी है, अच्छे घराने का आदमी हूँ, दूर-दूर तक पहुँच है और अपने बल पर अच्छा खाता-पहनता हूँ। क्या हुआ कि मैं पचास साल का हूँ और वह अभी सोलह साल की भी नहीं है कौन इसकी परवाह करता है लेकिन मुँह में पानी तो आ ही जाता है, कि नहीं? बहुत मजेदार बात है, हा-हा! तुम मुझे उसके माँ-बाप से बातें करते देखते! उस वक्त मुझे देखना... पैसा खर्च करके देखने लायक तमाशा था। वह अंदर आई और स्कर्ट के दोनों छोर पकड़ कर बड़ी अदा से झुक कर सलाम किया। जानते हो, वह अभी तक ऊँचा स्कर्ट पहनती है, बहुत प्यारी-सी मुँहबंद कली, डूबते सूरज की लाली की तरह लजाती हुई। (जाहिर है, उन लोगों ने उसे बता दिया होगा। मालूम नहीं औरतों के चेहरों के बारे में तुम क्या राय रखते हो, लेकिन मुझे तो सोलह साल की लड़की - वे छोटी-छोटी बचकानी आँखें, वह लजाना, और संकोच के आँसू - मुझे तो यह सब कुछ सुंदरता से कहीं ज्यादा अच्छा लगता है... और वह तो देखने में है भी तस्वीर जैसी। खूबसूरत सुनहरे बाल, छोटे-छोटे घूँघर पड़े हुए। भरे-भरे कोमल लाल होठ। नन्हे-नन्हे प्यारे-प्यारे पाँव। खैर, हम लोगों का परिचय हुआ। मैंने उन लोगों को बताया कि मुझे बहुत जल्दी है क्योंकि मुझे अपने परिवार के बहुत से मामले निबटाने हैं, और अगले ही दिन - यानी परसों - हमारी बाकायदा मँगनी हो गई। अब मैं जब भी वहाँ जाता हूँ, उसे फौरन अपनी गोद में बिठाता हूँ और वहीं बिठाए रखता हूँ। तो होता यह है कि वह शर्म के मारे डूबते सूरज जैसी लाल हो जाती है, और मैं उसे चूमता रहता हूँ। जाहिर है, उसकी माँ उसे बताती है कि मैं उसका होनेवाला शौहर हूँ और जो कुछ हो रहा है वह ठीक ही है... मतलब यह कि बड़ा मजा आता है! सच पूछो तो इस वक्त मेरी मँगेतरवाली हैसियत शौहरवाली हैसियत से अच्छी है। इस वक्त तो मेरे पास वह चीज है जिसने फ्रांसीसी में la nature et la verite 1 कहते हैं। हा-हा! मैंने उससे बात की है, एक या दो बार, और वह किसी भी तरह नासमझ लड़की नहीं है। कभी-कभी वह नजरें बचा कर मुझे इस तरह देखती है कि एक तीर दिल के पार निकल जाता है। सच कहता हूँ, उसकी सूरत देख कर मुझे रफाएल की मैडोना का चित्र याद आ जाता है। सिस्टीन की मैडोना का चेहरा बिलकुल अनोखा है, एक उदास धर्म-विभोर स्त्री का चेहरा। तुमने तो देखा है न बहरहाल, कुछ उसी किस्म की चीज। मँगनी के अगले दिन मैंने उसे पंद्रह सौ रूबल के तोहफे खरीद कर दिए। हीरों का एक जड़ाऊ सेट, मोतियों का एक सेट और एक काफी बड़ा चाँदी का सिंगारदान, जिसमें तरह-तरह की चीजें थीं। उन्हें देख कर उसका प्यार-सा, भोला-सा चेहरा, उस मैडोना का चेहरा खिल उठा। कल मैंने उसे अपनी गोद में बिठाया था, लेकिन मैंने शायद जरूरत से ज्यादा बे-तकल्लुफी से काम लिया था। लाज से उसकी कान की लवें तक लाल हो गईं और आँखों में आँसू छलक आए, लेकिन वह नहीं चाहती थी कि किसी को इसका पता चले। खुद उसके अंदर एक आग सुलग रही थी। वे सब लोग एक मिनट के लिए बाहर चले गए और वह अचानक मेरे गले से लिपट गई (खुद अपनी मर्जी से पहली बार), अपनी

1. स्वाभाविकता भी और निष्कपटता भी!

छोटी-छोटी बाँहों में मुझे जकड़ लिया और मुझे बार-बार चूमने लगी। उसने कसमें खा-खा कर मुझसे कहा कि वह हमेशा मेरा कहना मानेगी, मेरी अच्छी और वफादार बीवी बनेगी, मुझे सुखी रखेगी, अपना सारा जीवन, उसका एक-एक पल मुझे अर्पित कर देगी, हर चीज त्याग देगी, और इसके बदले में वह सिर्फ इतना चाहती है कि उसे मेरी तरफ से सम्मान मिले। बोली, 'मुझे कुछ नहीं चाहिए, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं चाहिए, किसी तरह का कोई भेंट-उपहार नहीं चाहिए।' यह तो तुम्हें मानना ही पड़ेगा कि अकेले में सोलह साल की ऐसी फरिश्तों जैसी लड़की के मुँह से, जिसके गालों पर कुँआरेपन की मासूमियत की लाली हो और जिसकी आँखों में अथाह खुशी के आँसू हों, ऐसी दिल से निकली हुई बात सुन कर जी तो ललचा ही उठता है। क्या खयाल है तुम्हारा, है न यही बात? इसे कहते हैं कि कोई बात हुई, कि नहीं क्यों अच्छा... सुनो तो... खैर, मैं तुम्हें अपनी मँगेतर के पास ले चलूँगा... लेकिन अभी नहीं!'

'मतलब यह कि आप दोनों की उम्रों में और मानसिक विकास में जो भारी अंतर है, उसी की वजह से आपके मन में वासना जागती है! क्या आप सचमुच इस लड़की से शादी करनेवाले हैं?'

'क्यों नहीं? मैं यकीनन उससे शादी करूँगा। हर आदमी अपने काम की बात सोचता है, और जो अपने आपको सबसे अच्छी तरह धोखा देना जानता है वही सबसे ज्यादा सुखी भी रहता है। हा-हा! पर तुम अचानक ऐसे सदाचारी क्यों बन गए मुझे बख्शो दोस्त, मैं एक अभागा पापी हूँ। हा-हा-हा!'

'लेकिन कतेरीना इवानोव्ना के बच्चों का सारा बंदोबस्त भी तो आपने किया। पर... मैं समझता हूँ कि आपने किसी खास वजह से ऐसा किया होगा... अब सब कुछ मेरी समझ में आ रहा है।'

'मुझे बच्चे आम तौर पर बहुत अच्छे लगते हैं, बहुत ही अच्छे लगते हैं,' स्विद्रिगाइलोव ठहाका मार कर हँसा। 'इस सिलसिले में मैं एक बहुत ही मजेदार किस्सा सुनाता हूँ जो अभी तक खत्म नहीं हुआ। यहाँ आने के बाद पहले ही दिन मैंने कई बदनाम अड्डों का चक्कर लगाया, और... मेरा मतलब यह है कि सात साल बाद मैं एक धारे में बह निकला। तुमने देखा होगा कि मुझे पुराने दोस्तों और मिलनेवालों से फिर से नाता जोड़ने की कोई खास जल्दी नहीं है। सच मैं तो उम्मीद यही करता हूँ कि जितने दिन भी हो सकेगा, उनके बिना ही काम चला लूँगा। बात यह है कि मैं जब अपनी प्यारी बीवी के साथ देहात में रहता था, तो मन बहलाने की उन छोटी-छोटी रहस्यमय जगहों की याद मुझे सताती रहती थी, जहाँ किसी जानकार आदमी को दिलचस्पी की कितनी ही चीजें मिल सकती हैं। लानत है! आम लोग नशे में धुत हो जाते हैं। पढ़े-लिखे नौजवान, जिनके पास कुछ उपयोगी करने को नहीं होता, कभी पूरे न हो सकनेवाले ऐसे सपनों और कोरी कल्पनाओं में खो कर घुलते रहते हैं। जरूरत से ज्यादा सिद्धांत बघारने की वजह से उनकी बढ़त भी मारी जाती है। न जाने कहाँ से ये यहूदी भी एक मुसीबत की तरह आ धमके हैं और पैसा बटोर रहे हैं, जबकि बाकी लोग बदकारी और बदचलनी की जिंदगी बिता रहे हैं। तो हुआ यह कि शहर में पहुँचते ही मेरी नाक में जानी-पहचानी खुशबुएँ समाने लगीं। मैं एक जगह गया जिसे नाच-क्लब कहा जाता था। बदकारी का भयानक अड्डा था वह भी। (मुझे तो यही अच्छा लगता है कि ये अड्डे गंदे हों।) खैर, लोग वहाँ कैन-कैन नाच इस तरह से नाच रहे थे जिस तरह वह कहीं और नहीं नाचा जाता। हमारे जमाने में तो यह नाच कहीं देखने को भी नहीं मिलती थी। हाँ साहब, इसी को तरक्की कहा जाता है। अचानक मैंने तेरह साल की एक लड़की को देखा। बहुत ही खूबसूरत कपड़ों में एक उस्ताद के साथ नाच रही थी, और एक दूसरा उस्ताद सामने था। लड़की की माँ दीवार के पास एक कुर्सी पर बैठी थी। अब तुम ही सोचो कि वह किस तरह का कैन-कैन नाच रहा होगा। लड़की बौखला उठी, शर्म से लाल हो गई, और आखिरकार इतनी बुरी तरह शर्मिंदा हुई, इतनी दुखी हुई कि फूट-फूट कर रोने लगी। लेकिन उस्ताद ने उसे कस कर पकड़ा, उसे ले कर तेजी से चक्कर काटने लगा और उसके सामने अपनी कला दिखाने लगा। हर आदमी जोरों से चिल्ला-चिल्ला कर हँसने लगा और - इस तरह के मौकों पर मुझे कैन-कैन नाच देखनेवाली अपनी यह जनता भी बहुत अच्छी लगती है, तो सब लोग हँसते रहे और चिल्लाते रहे, इसकी सही सजा है। यहाँ बच्चों को लाना ही नहीं चाहिए! खैर, मुझे उनकी रत्तीभर परवाह नहीं थी। अलावा इसके, मुझे क्या मतलब कि लोग जिस तरह से अपना मन बहला रहे थे वह समझदारी से भरा तरीका था या नहीं। मैंने फौरन उसकी माँ के पास एक खाली कुर्सी देखी और झपट कर उस पर आसन जमा लिया। मैंने बताना शुरू किया कि मैं अभी शहर में नया-नया आया था, कि यहाँ के लोग बहुत ही उजड्ड हैं जो न सच्चे गुण को पहचानते हैं और न ही उसका उचित सम्मान करना जानते हैं। यह भी जता दिया मैंने कि मेरे पास ढेरों पैसा है और उन्हें अपनी गाड़ी में घर तक पहुँचाने का वादा किया। मैं उन्हें उनके घर ले गया और उनसे जान-पहचान पैदा की। वे लोग हाल ही में आए थे, और किसी किराएदार से एक छोटा-सा कमरा ले कर उसमें रहते थे। मुझे बताया गया कि माँ और बेटी दोनों मुझसे जान-पहचान पैदा करना अपने लिए बहुत बड़ी इज्जत की बात समझ रही थीं। मैंने यह पता लगा लिया कि उसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी और वे किसी मंत्रालय से कुछ पैसों की मदद लेने लिए शहर आई थीं। मैंने इस काम के लिए अपनी सेवा और पैसों की मदद देने की पेशकश की। पता चला कि वे उस जगह गलती से, यह समझ कर चली गई थी कि वहाँ सचमुच नाचना सिखाया जाता है। मैंने फौरन उस लड़की को फ्रांसीसी भाषा और नाच सिखवाने के लिए अपनी सेवा पेश की। उन्होंने फौरन मेरा सुझाव मान लिया, इसे अपने लिए भारी इज्जत की बात समझा, और मैं अब भी उनसे मिलता रहता हूँ... चाहो तो मैं तुम्हें भी वहाँ ले चलूँ... लेकिन अभी नहीं।'

'आपकी बेहूदा और शर्मनाक कहानियाँ मैं काफी सुन चुका! नीच, बदकार, लंपट!'

'शिलर को तो देखो जरा! एकदम शिलर जैसा! O·u va-t-elle la vertu se nicher?1 जानते हो, मैं सोच रहा हूँ कि मैं तुम्हें ये किस्से सुनाता रहूँ ताकि इनके खिलाफ तुम्हारी झल्लाहट भरी बातें मुझे सुनने को मिलती रहें। मजा आता है!'

'क्यों नहीं! क्या मुझे नहीं पता कि इस वक्त मैं कैसा जोकर लग रहा हूँ,' रस्कोलनिकोव गुस्से से बुदबुदाया।

स्विद्रिगाइलोव की हँसी गूँज उठी। आखिरकार उसने फिलिप को बुलाया, बिल चुकाया और उठने लगा।

'कमाल है, मैं सचमुच नशे में हूँ,' वह बोला। 'खैर, बातचीत काफी अच्छी रही हमारी, मजा आया!'

'मैं समझता हूँ, आपको मजा आना ही चाहिए था,' रस्कोलनिकोव ने भी उठते हुए ऊँची आवाज में कहा। 'आप जैसे घिसे हुए अय्याश को इस तरह के कारनामे बयान करने में मजा तो आएगा ही, जबकि वह वैसी ही परिस्थितियों में और उतने ही बेहूदा किसी और कारनामे की बात सोच रहा हो, तो मुझ जैसे शख्स से बयान करने में... मजा क्यों नहीं आएगा!'

'आह, अगर ऐसी बात है,' स्विद्रिगाइलोव ने रस्कोलनिकोव को गौर से देखते हुए कुछ आश्चर्य से कहा, 'अगर ऐसी बात है तो तुम भी पूरी तरह इनसानों से बेजार हो। कुछ नहीं तो तुम्हारे अंदर ऐसा बनने की संभावनाएँ तो जरूर मौजूद हैं। तुम बहुत कुछ समझ सकते हो, बहुत कुछ... और बहुत कुछ कर भी सकते हो... कर सकते हो न लेकिन, बस बहुत हुआ। मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारे साथ और ज्यादा देर बातचीत नहीं कर सका। लेकिन अभी तो तुम हो ही, बस थोड़ा इंतजार करो...'

स्विद्रिगाइलोव लंबे-लंबे कदम रखता हुआ रेस्तराँ से बाहर निकल गया। रस्कोलनिकोव भी उसके पीछे चल पड़ा। लेकिन स्विद्रिगाइलोव ज्यादा नशे में नहीं था। शराब बस थोड़ी देर के लिए उसे चढ़ी थी और उसका असर तेजी से हर मिनट कम हो रहा था। वह किसी बात के बारे में काफी परेशान था, किसी बहुत जरूरी बात के बारे में... उसकी त्योरियों पर अभी तक बल पड़े हुए थे। साफ था कि उसे किसी ऐसी चीज की फिक्र थी जो उसे परेशान कर रही थी। पिछले कुछ मिनटों के दौरान रस्कोलनिकोव के प्रति भी उसका रवैया अचानक बदल चुका था, हर पल उसके साथ और भी ज्यादा रुखाई से पेश आ रहा था और उसका और भी ज्यादा मजाक उड़ा रहा था। रस्कोलनिकोव का ध्यान इन सब बातों की ओर गया और वह भी कुछ डरा-डरा-सा हो गया। उसके

1. सदाचार कहीं भी डेरा जमा लेता है। (फ्रांसीसी)

दिल में स्विद्रिगाइलोव के बारे में काफी शक पैदा हो रहा था और इसलिए ही उसने उसका पीछा करने का फैसला किया।

वे दोनों सड़क की पटरी पर पहुँचे।

'तुम दाहिनी ओर जाओ और मैं बाईं ओर... या चाहो तो हम आपस में दिशाएँ बदल लें... लेकिन इस वक्त तो हमें अलग होना पड़ेगा, दोस्त! फिर मिलेंगे!' इतना कह कर वह दाहिनी तरफ, भूसामंडी की ओर चल दिया।

अपराध और दंड : (अध्याय 6-भाग 5)

रस्कोलनिकोव उसके पीछे लग गया।

'यह क्या?' स्विद्रिगाइलोव ने पीछे घूम कर देखा और चीख कर बोला। 'मैंने कहा था न...'

'इसका मतलब सिर्फ यह है कि आपको अब मैं आँखों से ओझल नहीं होने दूँगा।'

'क्या...या?'

दोनों रुक कर एक-दूसरे को एक मिनट तक देखते रहे, गोया एक-दूसरे की थाह ले रहे हों।

'आपने आधे नशे की हालत में जो किस्से सुनाए हैं,' रस्कोलनिकोव ने तीखेपन से जवाब दिया, 'उनसे मैं पक्के तौर पर इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि मेरी बहन के सिलसिले में आपने अभी तक अपने बुरे इरादे नहीं छोड़े हैं, बल्कि उन्हें पूरा करने में और भी मुस्तैदी से जुटे हुए हैं। मैं जानता हूँ, आज सबेरे मेरी बहन को एक खत मिला है। इस पूरे दौरान आप चैन से नहीं बैठे... मैं समझता हूँ, बहुत मुमकिन है कि आपने इस बीच अपने लिए एक बीवी भी जुटा ली हो, लेकिन इसका कोई मतलब तो नहीं है। मैं खुद ही पक्का भरोसा कर लेना चाहता हूँ...'

रस्कोलनिकोव खुद नहीं जानता था कि वह क्या चाहता है या किस बात का भरोसा कर लेना चाहता है।

'तो यह बात है! तुम यह तो नहीं चाहते हो कि मैं पुलिस को बुलवाऊँ?'

'बुलवा लीजिए पुलिस को!'

दोनों फिर एक मिनट तक आमने-सामने खड़े रहे। आखिरकार स्विद्रिगाइलोव की मुद्रा बदली। यह महसूस करके कि रस्कोलनिकोव उसकी धमकी से कतई नहीं डरा, उसने अचानक हँसी-मजाक और दोस्ती का रवैया अपना लिया।

'अजीब आदमी हो तुम भी! मैं तो जान-बूझ कर तुम्हारे मामले की चर्चा करने से कतरा रहा था, हालाँकि कुदरती बात है कि मैं उसके बारे में जानने के लिए बेताब हूँ। कमाल की बात है। उसे मैंने किसी दूसरे वक्त के लिए उठा रखा था, लेकिन तुम तो बड़े-से-बड़े संन्यासी को भी उकसा कर उसका मौनव्रत भंग करा सकते हो... तो अच्छी बात है, चलो। लेकिन मैं इतना बता दूँ कि मैं सिर्फ एक मिनट के लिए कुछ पैसे लेने घर जा रहा हूँ। उसके बाद मैं अपने कमरे को ताला मार दूँगा, एक गाड़ी लूँगा और पूरी शाम द्वीपों पर बिताऊँगा। बोलो, अब भी मेरे साथ आना चाहते हो क्या?'

'मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर तक चलूँगा लेकिन अंदर नहीं आऊँगा। मैं सोफ्या सेम्योनोव्ना से मिल कर जनाजे में न आ पाने की माफी माँगना चाहता हूँ।'

'जैसी तुम्हारी मर्जी, लेकिन सोफ्या सेम्योनोव्ना घर पर नहीं हैं। वे बच्चों को ले कर मेरी पुरानी जान-पहचान की एक वृद्ध महिला के पास गई हुई हैं। ऊँचे लोगों में इन महिला का बड़ा नाम है और वे कुछ अनाथालय भी चलाती हैं। जब मैंने कतेरीना इवानोव्ना के तीन बच्चों की देखभाल के लिए इन महिला को पैसे दिए और साथ ही उनके अनाथालयों के लिए भी चंदा दिया तो वह मुझ पर लट्टू हो गईं। फिर मैंने उन्हें सोफ्या सेम्योनोव्ना का पूरा किस्सा ब्यौरे की पूरी भयानकता के साथ सुनाया। इसका जो असर उन पर हुआ, उसे बयान नहीं किया जा सकता। इसीलिए सोफ्या सेम्योनोव्ना को आज उस होटल में बुलाया गया है जहाँ यह महिला गर्मी बिता कर वापस आने के बाद कुछ दिन के लिए ठहरी हुई हैं।'

'कोई बात नहीं। मैं फिर भी चलूँगा!'

'जैसी तुम्हारी मर्जी लेकिन मुझे साथ ले चलने की जिद न करना। बाकी मुझे कोई परवाह नहीं। लो, हम उसके पास तक पहुँच ही गए। खैर, यह बताओ, मेरा यह सोचना ठीक है क्या कि मुझ पर इतना शक इसलिए कर रहे हो कि मैंने समझदारी से काम ले कर अब तक तुमसे एक भी सवाल नहीं पूछा... मेरी बात समझे न तुमने सोचा होगा कि आम तौर पर ऐसा होना नहीं चाहिए था, क्यों मेरा दावा है कि तुमने यही सोचा होगा। खैर, इससे बस यही साबित होता है कि बहुत ज्यादा समझदारी से काम लेना भी गलत है।'

'आपको छिप कर लोगों की बातें सुनने में संकोच तो नहीं होता न?'

'आह, तो तुम यह कहना चाहते थे... क्यों?' स्विद्रिगाइलोव हँसा। 'खैर, मैं समझता हूँ इतना सब कुछ होने के बाद मुझे ताज्जुब तो तब होता अगर तुमने यह बात न कही होती। हा-हा! हो सकता है, जो कुछ तुम करते रहे हो, जिसके बारे में तुम सोफ्या सेम्योनोव्ना को बता भी रहे थे, उसकी कुछ भनक मेरे कानों में पड़ी हो। लेकिन उन सब बातों का भला मतलब क्या निकलता है? शायद मैं वक्त से बहुत पीछे हूँ और कुछ भी नहीं समझ पाता। भगवान के लिए, मुझे कुछ समझाओ मेरे दोस्त। मेरे दिमाग का अँधेरा भी जरा दूर हो। मुझे बताओ कि तुम्हारे सबसे हालिया सिद्धांत क्या हैं।'

'कुछ भी नहीं सुना है आपने! झूठ बोल रहे हैं आप!'

'लेकिन उसकी बात तो मैं कर भी नहीं रहा था, हालाँकि थोड़ा-बहुत सुना जरूर था। नहीं, मेरी मुराद इस वक्त तुम्हारे लगातार आहें भरने और कराहने से है। तुम्हारे अंदर जो शिलर छिपा हुआ है, वह रह-रह कर बेचैन हो उठता है और तुम मुझे अब यह बता रहे हो कि छिप कर दूसरों की बातें न सुना करूँ। अगर ऐसी बात है तो तुम जा कर पुलिस को क्यों नहीं बता देते कि तुम्हारे सिद्धांत में जरा-सी कमी रह गई। अगर तुम्हारा विश्वास यह है कि छिप कर दूसरों की बातें सुनना बुरा है, लेकिन जो कुछ हाथ लगे उससे बूढ़ी औरतों की खोपड़ी खोल देने में कोई हर्ज नहीं है तो तुम्हारे लिए फौरन अमेरिका चले जाना ही बेहतर है। भाग जाओ मेरे नौजवान दोस्त, भाग जाओ! शायद अभी भी इसका वक्त बाकी हो। मैं सच्चे दिल से कह रहा हूँ। तुम्हारे पास पैसा है कि नहीं... किराया मैं दूँगा।'

'मैं इस बारे में कतई नहीं सोच रहा हूँ,' रस्कोलनिकोव ने झल्ला कर बीच में टोकते हुए कहा।

'मैं समझता हूँ (अगर तुम्हारा जी नहीं चाह रहा तो बहुत ज्यादा बातें करने की कोशिश न करो) मैं समझ रहा हूँ कि किस तरह के सवाल तुम्हें परेशान कर रहे हैं... शायद नैतिक सवाल समाज में मनुष्य की स्थिति के सवाल बेहतर है तुम उनसे अपना पीछा छुड़ा लो। तुम्हें उनकी जरूरत भी अब क्या रह गई? हा-हा! इसलिए कि तुम अभी तक एक इनसान हो और एक नागरिक हो लेकिन अगर ऐसी बात है तो तुम्हें यह सिलसिला शुरू ही नहीं करना चाहिए था। तुम्हें ऐसे काम का बीड़ा नहीं उठाना चाहिए था जिसे तुम पूरा नहीं कर सकते थे। तुम अपना भेजा गोली मार कर क्यों नहीं उड़ा देते या ऐसा करने को जी नहीं चाहता?'

'मैं समझता हूँ, आप मुझे जान-बूझ कर उकसाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि मैं आपका पीछा छोड़ दूँ...'

'अजीब आदमी हो! लो, हम लोग पहुँच भी गए। आओ, ऊपर चलें। देखा यह रहा सोफ्या सेम्योनोव्ना के कमरे का दरवाजा। कोई भी अंदर नहीं है। तुम्हें मेरी बात का यकीन नहीं आता? कापरनाउमोव से पूछ लो : वे अपनी चाभी आम तौर पर उसी के पास छोड़ आती हैं। लो, मादाम कापरनाउमोव खुद ही आ गईं। तो (वे कुछ ऊँचा सुनती हैं।) क्या बाहर गई हैं? कहाँ? हो गई तसल्ली? वे जा चुकी हैं और रात तक वापस नहीं आएँगी। चलो मेरे कमरे में चलो। तुम मुझसे मिलने भी तो आनेवाले थे तो लो, आ ही गए। मादाम रेसलिख घर पर नहीं हैं। यह औरत हमेशा किसी न किसी चक्कर में रहती है लेकिन, सच कहता हूँ, है बहुत अच्छी औरत... अगर तुम कुछ और समझदारी से काम लेते तो वह तुम्हारे भी काम आ सकती थी। यह देखो, मैं दराज में से पाँच फीसदी सूदवाली एक हुंडी निकाल रहा हूँ। (देखते हो न अभी मेरे पास और भी हैं?) आज इसे मैं भुनाऊँगा। देख लिया न... माफ करना, मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है। देखो, मैंने दराज में ताला लगा दिया, फ्लैट में भी लगा दिया और यह लो, हम लोग फिर सीढ़ियों पर आ गए। चाहो तो हम लोग एक गाड़ी कर लें : मैं तो द्वीपों की तरफ जा रहा हूँ। तो चलोगे सैर करने? मैं गाड़ी को येलागिन द्वीप तक ले जाना चाहता हूँ। क्या मेरे साथ नहीं आना चाहते? हिम्मत न हारो, चलो सैर करने चलते हैं। मैं समझता हूँ बारिश होगी, लेकिन फिक्र मत करो, छतरी चढ़ा लेंगे...'

स्विद्रिगाइलोव गाड़ी में बैठ चुका था। रस्कोलनिकोव इस नतीजे पर पहुँचा कि कम-से-कम इस वक्त उसके सारे शक बे-बुनियाद हैं। वह कुछ भी कहे बिना पीछे मुड़ा और वापस भूसामंडी की ओर चल पड़ा। अगर उसने एक बार भी पीछे चेहरा घुमाया होता तो देखता कि स्विद्रिगाइलोव ने मुश्किल से सौ गज जा कर गाड़ीवाले को पैसे दे दिए थे और अब सड़क की पटरी पर चला जा रहा था। लेकिन वह नुक्कड़ पर मुड़ चुका था और अब कुछ भी देख नहीं सकता था। एक गहरी नफरत उसे स्विद्रिगाइलोव से दूर, और दूर खींचे लिए जा रही थी। 'क्या एक पल के लिए भी मुझे उस घिनौने बदमाश, अय्याश और लुच्चे से सचमुच कुछ पाने की उम्मीद थी?' वह अनायास ही चीख उठा। यह सच है कि रस्कोलनिकोव ने अपना यह मत बहुत जल्दी में, बिना कुछ सोचे-समझे जाहिर कर दिया था। स्विद्रिगाइलोव में कोई बात तो ऐसी थी जो उसके व्यक्तित्व में रहस्य का नहीं तो कम-से-कम मौलिकता का एक पुट पैदा कर ही रही थी। रस्कोलनिकोव का यह विश्वास भी कायम रहा कि स्विद्रिगाइलोव उसकी बहन का पीछा छोड़नेवाला नहीं था। लेकिन अब सब कुछ उसकी बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा था और वह महसूस कर रहा था कि इस बारे में सोचते रहना उसके लिए पीड़ादायक बनता जा रहा था।

जैसा कि हमेशा होता था, अकेले रह जाने पर वह कोई बीस गज ही चलने के बाद गहरे विचारों में डूब गया। अपने आपको पुल पर पा कर वह रेलिंग के पास जा कर खड़ा हो गया और पानी को देखने लगा। इसी बीच दुनेच्का भी चलती हुई पुल पर आ चुकी थी और उसके पास ही खड़ी थी।

पुल शुरू होते ही वह उसके पास से गुजरा था लेकिन उसे देख नहीं सका था। दुनेच्का ने उसे कभी सड़क पर इस हालत में नहीं देखा था। इसलिए वह बुरी तरह सहम गई। वह चौंकी पर उसकी समझ में यह नहीं आया कि उसे पुकारे या न पुकारे। अचानक दुनेच्का ने स्विद्रिगाइलोव को देखा, जो पुल के दूसरी ओर से जल्दी-जल्दी आ रहा था।

लग रहा था वह बड़े रहस्यमय ढंग से और होशियार रह कर आगे बढ़ रहा था। वह पुल पर नहीं आया बल्कि एक तरफ हट कर पटरी पर ही रुक गया। वह पूरी कोशिश कर रहा था कि रस्कोलनिकोव उसे न देख सके। स्विद्रिगाइलोव ने दूनिया को कुछ देर पहले ही देख लिया था और उसकी तरफ इशारे कर रहा था। दूनिया को लगा, वह उसे इशारा कर रहा है कि अपने भाई को वहीं खड़ा रहने दे और उससे न बोले। इसके साथ ही वह दूनिया को अपने पास भी बुला रहा था।

दूनिया ने ऐसा ही किया। दबे पाँव अपने भाई के पास से हट कर, उसकी नजरें बचाती हुई वह स्विद्रिगाइलोव के पास जा पहुँची।

'जल्द आओ,' स्विद्रिगाइलोव ने दबी आवाज में कहा। 'मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे भाई को हमारी मुलाकात का पता चले। मैं तुम्हें इतना बता दूँ कि अभी मैं उसके साथ यहाँ से थोड़ी ही दूर एक रेस्तराँ में बैठा था, जहाँ वह खुद मुझसे मिलने आया था। बड़ी मुश्किल से मैंने उससे पीछा छुड़ाया। लगता है, मैंने तुम्हें जो खत लिखा था उसकी उसे कुछ सुनगुन मिल गई है और उसके मन में किसी बात का शक पैदा हो चुका है। उसे तुमने तो नहीं बताया इस बारे में? लेकिन तुमने अगर नहीं बताया तो फिर किसने बताया होगा?'

'चलो, हम लोग मोड़ तो घूम चुके,' दूनिया ने बात काटते हुए कहा। 'भैया अब हम लोगों को नहीं देख सकते। मैं आपके साथ अब और आगे नहीं जाने की, जो कुछ बताना है, यहीं बताइए। ऐसी कोई वजह नहीं कि आप मुझे यहाँ सड़क पर न बता सकें।'

'पहली वजह तो यह है कि मैं वह बात यहाँ सड़क पर नहीं बता सकता। दूसरे, मुझे तुमको सोफ्या सेम्योनोव्ना की बात सुनानी है और तीसरे, तुमको कुछ दस्तावेज दिखाने हैं... अच्छी बात है, तुम मेरे साथ अगर नहीं आना चाहतीं तो मैं कोई सफाई नहीं दूँगा और फौरन यहाँ से चला जाऊँगा। पर यह न भूलना कि तुम्हारे जान से प्यारे भाई का कोई भेद पूरी तरह मेरे हाथ में है।'

दूनिया चौंकी और पैनी नजरों से स्विद्रिगाइलोव को देखने लगी; उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि करे तो क्या करे।

'डरती किस बात से हो तुम?' स्विद्रिगाइलोव ने शांत भाव से कहा। 'यह शहर है, कोई देहात नहीं, और वहाँ देहात में भी मैंने तुम्हें जितना नुकसान पहुँचाया था, तुमने मुझे उससे ज्यादा ही नुकसान पहुँचाया, जबकि यहाँ...'

'क्या आपने सोफ्या सेम्योनोव्ना को बता दिया है?'

'नहीं, मैंने उनसे एक बात भी नहीं कही। सच तो यह है कि मुझे यह भी भरोसा नहीं है कि वे इस वक्त घर पर होंगी। वैसे मुझे उम्मीद है कि घर पर ही होंगी। वे आज अपनी सौतेली माँ के जनाजे में गई थीं, और ऐसे दिन वे शायद ही किसी के यहाँ जाएँ। फिलहाल मैं किसी को उसके बारे में नहीं बताना चाहता, और मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हें बता दिया। इस तरह के मामले में जरा-सी भी लापरवाही हो तो पुलिस को यकीनन पता चल जाएगा। मैं यहीं रहता हूँ, इस घर में। लो, हम पहुँच ही गए। वह रहा हमारे घर का दरबान। मुझे अच्छी तरह से जानता है। देखा... झुक कर मुझे सलाम कर रहा है। वह देख रहा है कि मैं एक शरीफ औरत के साथ हूँ, और मुझे यकीन है कि उसने तुम्हारी सूरत भी देख ली है। अगर तुम मुझसे डरती हो और मुझ पर किसी तरह का शक है तो यह बात आगे चल कर तुम्हारे काम आएगी। माफ करना, मैं इस तरह साफ-साफ खुल कर बातें कर रहा हूँ। मैं खुद एक किराएदार से कमरा ले कर रहता हूँ। सोफ्या सेम्योनोव्ना बगलवाले कमरे में रहती हैं। वे भी किराएदार हैं। यह पूरी मंजिल ही किराएदारों को उठाई गई है। तुम बच्चों की तरह क्यों डर रही हो क्या मैं सचमुच डरावना लगता हूँ?'

स्विद्रिगाइलोव का चेहरा तौहीन भरी मुस्कराहट से ऐंठ गया : उसका जी मुस्कराने को नहीं चाह रहा था। उसका दिल जोर से धड़क रहा था और वह साँस भी मुश्किल से ले रहा था। अपनी बढ़ती हुई उत्तेजना को छिपाने के लिए वह जान-बूझ कर जोर-जोर से बोल रहा था। लेकिन दूनिया का ध्यान उसकी इस खास किस्म की उत्तेजना की ओर नहीं गया। वह उसकी यह बात सुन कर बेहद बौखला उठी थी कि वह उससे बच्चों की तरह डर रही थी और वह उसे बहुत डरावना लगता था।

'यूँ तो मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि... कि आप कोई शरीफ इनसान नहीं हैं लेकिन आपसे मुझे जरा भी डर नहीं लग रहा। आप जरा आगे-आगे चलिए,' उसने कहा। देखने में वह एकदम शांत लग रही थी लेकिन उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था।

स्विद्रिगाइलोव सोन्या के कमरे के सामने पहुँच कर रुक गया।

'मैं देख लूँ कि वे घर पर हैं कि नहीं। नहीं, वे नहीं हैं। बहुत बुरा हुआ। लेकिन मैं जानता हूँ कि वे जल्द ही लौट आएँगी। अगर वे बाहर गई हैं तो अनाथ बच्चों के सिलसिले में ही एक महिला से मिलने गई होंगी। उन बच्चों की माँ मर चुकी है। मैंने अपनी ओर से उनकी मदद करने की पूरी कोशिश की और सारा जरूरी बंदोबस्त कर चुका हूँ। अगर सोफ्या सेम्योनोव्ना दस मिनट में वापस नहीं आतीं तो, अगर तुम कहो तो, मैं आज ही उन्हें तुम्हारे पास भेज दूँगा। तो, यहाँ रहता हूँ मैं। ये रहे मेरे दो कमरे। इस दरवाजे के पीछे मेरी मकान-मालकिन मादाम रेसलिख रहती हैं। अब इधर देखो : मैं तुम्हें अपना ज्यादा महत्वपूर्ण दस्तावेज दिखा रहा हूँ। मेरे सोने के कमरे के इस दरवाजे से हो कर दो बिलकुल खाली कमरों में रास्ता जाता है, जो अभी किराए पर नहीं उठे। ये रहे वे कमरे... मैं चाहता हूँ कि तुम इन्हें खास तौर पर, गौर से देखो...'

स्विद्रिगाइलोव दो काफी बड़े कमरों में रहता था जिनमें जरूरत का हर फर्नीचर मौजूद था। दूनिया संदेह भरी नजरों से चारों ओर देखने लगी लेकिन उसे न तो फर्नीचर में ही कोई खास बात दिखाई पड़ी, न उन कमरों की स्थिति में। वैसे कोई बात जरूर ऐसी थी जिसकी ओर शायद उसका ध्यान न गया हो - मिसाल के लिए, यह बात कि स्विद्रिगाइलोव के कमरों के दोनों तरफ के फ्लैट लगभग खाली थे। उसके कमरों में जाने का रास्ता सीधे बाहर के गलियारे में से न हो कर मकान-मालकिन के उन दो कमरों में से था, जो लगभग खाली थे। अपने सोने के कमरे के एक दरवाजे का ताला खोल कर स्विद्रिगाइलोव ने दूनिया को एक और खाली फ्लैट दिखाया जो अभी किराए पर नहीं उठा था। दूनिया ठिठक कर चौखट पर ही खड़ी हो गई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि उससे क्या देखने को कहा जा रहा है। लेकिन स्विद्रिगाइलोव ने उसे जल्दी से समझाना शुरू किया :

'जरा इस दूसरेवाले बड़े और खाली कमरे को देखो। वह दरवाजा देखती हो। उसमें ताला पड़ा है। उसके पास एक कुर्सी रखी है... इन दोनों कमरों में सिर्फ यही एक कुर्सी है। यह कुर्सी मैं अपने कमरे से ले कर आया था ताकि आराम से बैठ कर सुन सकूँ। इस दरवाजे के ठीक पीछे सोफ्या सेम्योनोव्ना की मेज है। उसी के पास बैठ कर वे तुम्हारे भाई से बातें कर रही थीं और मैंने इस कुर्सी पर बैठ कर लगातार दो रातों को, रोज लगभग दो-दो घंटे, उनकी बातें सुनीं। क्या खयाल है तुम्हारा मैं कुछ पता लगा सका हूँगा कि नहीं?'

'आप छिप कर, चोरी से बातें सुन रहे थे?'

'हाँ, मैं चोरी से बातें सुन रहा था। अब आओ, मेरे कमरे में वापस चलें। यहाँ तो बैठने को भी कुछ नहीं है।'

वह दूनिया को ले कर अपने बैठने के कमरे में वापस गया और उसे बैठने को एक कुर्सी दी। खुद वह मेज के दूसरे सिरे पर, उससे कोई सात फुट की दूरी पर, बैठा लेकिन शायद उसकी आँखों में वही ज्वाला धधक उठी थी जिससे दूनिया किसी जमाने में बेहद डरती रहती थी। वह चौंकी और एक बार फिर संदेह भरी नजरों से कमरे में चारों ओर देखने लगी। वह यह सब कुछ अनायास ही कर रही थी और यह नहीं चाहती थी कि उसका संदेह किसी पर प्रकट हो। लेकिन स्विद्रिगाइलोव के कमरों का बाकी कमरों से इस तरह अलग-थलग होना उसे खटक गया। वह उससे पूछनेवाली ही थी कि कम-से-कम उसकी मकान-मालकिन तो घर पर हैं, लेकिन स्वाभिमान के मारे नहीं पूछा। अलावा इसके, वह अपने लिए जो खतरा महसूस कर रही थी, उससे भी बड़ी कोई तकलीफ उसके दिल को खाए जा रही थी। वह बेहद चिंतित थी।

'यह रहा आपका खत,' उसने मेज पर खत रखते हुए कहना शुरू किया। 'आपने जो कुछ लिखा है, वह क्या मुमकिन है? आपने किसी ऐसे अपराध की तरफ इशारा किया है जिसके बारे में यह समझा जा रहा है कि वह मेरे भाई ने किया है। आपका इशारा पूरी तरह साफ है, और आप उससे मुकर नहीं सकते। पर मैं आपको इतना बता दूँ कि आपके यह खत लिखने से पहले भी मैं यह बेसर-पैर का किस्सा सुन चुकी हूँ और मैं इसके एक शब्द पर भी विश्वास नहीं करती। यह पूरी तरह बेतुका और बेहूदा शक है। मुझे यह पूरा किस्सा पता है और यह भी पता है कि इसे कैसे और क्यों गढ़ा गया था। आपके पास कोई सबूत तो हो ही नहीं सकता। आपने इसे साबित करने का वादा किया था... तो, कीजिए साबित! लेकिन इतना मैं आपको पहले से बता दूँ कि मैं आपकी बात का यकीन नहीं करती...'

दूनिया ने ये सारी बातें जल्दी-जल्दी, हाँफते हुए कहीं और एक पल के लिए उसके चेहरे पर लाली दौड़ गई।

'अगर तुम्हें मेरा यकीन न होता तो कभी यहाँ अकेले आने का जोखिम मोल न लेतीं। तुम यहाँ आईं क्यों? अपनी जिज्ञासा मिटाने?'

'मुझे सताइए मत! बताइए मुझे!'

'मुझे इसमें कोई शक नहीं कि तुम बहादुर लड़की हो। मैंने तो यह सोच रखा था कि तुम मिस्टर रजुमीखिन को साथ ले कर आओगी। लेकिन वह तो न तुम्हारे साथ थे और न ही कहीं आस-पास थे। मैंने देखा था... सचमुच बड़ी हिम्मत की तुमने। इससे पता चलता है कि तुम्हें अपने भाई को बचाने की फिक्र है। तुम हर तरह से एक देवी जैसी हो... जहाँ तक तुम्हारे भाई का सवाल है, तो मैं तुम्हें क्या बताऊँ तुमने खुद अभी उनको देखा है। तुम्हारा क्या खयाल है उनके बारे में?'

'आप सिर्फ इसी बात को तो उनके खिलाफ अपने इलजामों की बुनियाद नहीं बना रहे?'

'नहीं, इसे नहीं, बल्कि खुद उनकी कही हुई बातों को। देखो, वे यहाँ सोफ्या सेम्योनोव्ना से लगातार दो रातों को मिलने आए। मैं तुम्हें दिखा चुका हूँ कि वे कहाँ बैठे थे। उन्होंने उसको सारी बात बताई। सब कुछ साफ-साफ मान लिया कि उन्होंने कत्ल किया है। उन्होंने ही उस सूदखोर बुढ़िया का कत्ल किया, जिसके यहाँ उन्होंने खुद भी कुछ चीजें गिरवी रखी थीं। उन्होंने उसकी बहन लिजावेता का भी कत्ल किया, जो पुराने कपड़े बेचती थी। वह इत्तफाक से अपनी बहन के कत्ल के वक्त वहाँ आ पहुँची थी। उन्होंने उन दोनों का कत्ल एक कुल्हाड़ी से किया था जिसे वह अपने साथ ले कर आए थे। उन्होंने यह कत्ल डाका डालने के इरादे से किया था और उनके यहाँ डाका डाला भी। उन्होंने वहाँ से कुछ रकम और कुछ दूसरी चीजें भी... उन्होंने खुद ये सारी बातें, एक-एक शब्द, सोफ्या सोम्योनोव्ना को बताईं, और यह भेद सिर्फ उसी को मालूम है। हाँ, कत्ल में उसने किसी तरह का हिस्सा नहीं लिया था; उसने न कुछ कहा न कुछ लिया, बल्कि जब उसने पहली बार इसके बारे में सुना तो वह भी उसी तरह सहम गई जिस तरह इस वक्त तुम सहम गई हो। फिक्र न करो, वह उनका भेद किसी को नहीं बताएगी।'

'नामुमकिन!' दूनिया बुदबुदाई। उसके होठ मुर्दों की तरह सफेद पड़ चुके थे और वह ठीक से साँस भी नहीं ले पा रही थी। 'एकदम नामुमकिन है! ऐसा करने के लिए कोई भी मकसद नहीं था, कोई भी वजह नहीं थी... यह झूठ है! झूठ है!'

'उन्होंने उसके यहाँ डाका डाला, यही मकसद था। उन्होंने वहाँ से कुछ रकम और कुछ चीजें लीं। यह सच है, जैसा कि उन्होंने खुद माना है, कि उन्होंने उस रकम और उन चीजों का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि उन्हें किसी जगह पत्थर के नीचे छिपा दिया, जहाँ वे अभी तक पड़ी हुई हैं। लेकिन अगर उन्होंने उनका कोई इस्तेमाल नहीं किया तो वजह सिर्फ यह है कि उनकी हिम्मत नहीं हुई।'

'लेकिन यह क्या मुमकिन है कि वे चोरी करें या डाका डालें? वे ऐसा करने की बात क्या सोच भी सकते हैं?' दूनिया जोर से चीखी और अपनी कुर्सी से उछल पड़ी। 'आप तो उन्हें जानते हैं... आपने उन्हें देखा है... क्या आप यह समझते हैं कि वे चोर हो सकते हैं?'

लग रहा था, वह गिड़गिड़ा कर स्विद्रिगाइलोव से प्रार्थना कर रही है। उसके दिल में जो डर था, उसे वह एकदम भूल चुकी थी।

'मुमकिन तो हजारों और लाखों बातें हैं, अव्दोत्या रोमानोव्ना। चोर चोरी करता है, लेकिन अच्छी तरह जानता है कि वह बदमाश है। पर मैंने एक बहुत ही इज्जतदार आदमी का किस्सा सुना है जिसने डाक लूटी थी, और ऐन मुमकिन है, उसने यही सोचा हो कि वह ठीक कर रहा है। जाहिर है कि अगर मुझे भी यह बात किसी और ने बताई होती तो तुम्हारी ही तरह मैं भी यकीन न करता। लेकिन खुद अपने कानों पर विश्वास तो मुझे करना ही पड़ा। उन्होंने सोफ्या सेम्योनोव्ना को सब कुछ समझाया था कि ऐसा क्यों किया। उसे भी शुरू में अपने कानों पर यकीन नहीं आया लेकिन आखिरकार यकीन करना ही पड़ा। देखो न, उन्होंने खुद उसे बताया था।'

'क्यों... उन्होंने यह काम आखिर क्यों किया था?'

'यह एक लंबी कहानी है। बात यह है... मैं कैसे समझाऊँ तुम्हें ...यह एक तरह का सिद्धांत है, एक तरह की ऐसी चीज जिसकी वजह से मुझे यकीन करना ही पड़ता है कि, मिसाल के लिए, एक अकेला अपराध करने में कोई हर्ज नहीं हैं, बशर्ते वह किसी अच्छे मकसद के लिए किया जाए। एक बुराई और सौ नेकी! जाहिर है, वह एक बहुत ही गुणी नौजवान है, उसके हौसले बहुत बुलंद हैं, और उसे यह सोच कर ताव आता है कि अगर उसके पास मिसाल के लिए सिर्फ तीन हजार रूबल होते तो उसकी जिंदगी का पूरा ताना-बाना उसका पूरा भविष्य, कुछ और ही होता, और वे तीन हजार रूबल उसके पास नहीं हैं। साथ ही यह भी जोड़ लीजिए कि ठीक से खाना न मिलने की वजह से, अपने बिल जैसे कमरे की वजह से, अपने फटे-पुराने कपड़ों की वजह से वह हरदम झुँझलाता रहता है, इस बात को साफ तौर पर महसूस करता है कि समाज में उसकी हैसियत की वजह से और साथ ही अपनी माँ और बहन की बेहद बदहाली की वजह से उसे कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यह सबसे बढ़ कर स्वाभिमान और अहंकार की बात है। हालाँकि कौन जाने उसमें बहुत-सी अच्छाइयाँ होते हुए भी शायद... देखो, मैं उन्हें दोष नहीं दे रहा। ऐसा न सोचना। इसके अलावा मुझे इससे कोई सरोकार भी नहीं तो उनका अपना अलग ही एक सिद्धांत था, जो कोई ऐसा बुरा भी नहीं था। इसके अनुसार सारे लोग समझ लो कि दो हिस्सों में बँटे होते हैं, आम लोग और खास किस्म के लोग। तो एक तरफ हैं वे लोग, जो अपनी ऊँची हैसियत की वजह से कानून से परे होते हैं, जो बाकी सभी इनसानों के लिए, आम लोगों के लिए इनसानियत के कचरे के लिए, खुद कानून बनाते हैं। यह एक अच्छा-खासा, छोटा-सा सिद्धांत है; une th¬eorie comme une autre.1 नेपोलियन से वे बुरी तरह प्रभावित थे, बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि वे जिस बात से प्रभावित थे वह यह थी कि ये मेधावी महापुरुष बुराई की मिसालों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे, बल्कि उनके बारे में सोचे बिना ही आगे निकल जाते थे। मैं समझता हूँ, उन्होंने भी यही सोचा होगा कि वे भी एक मेधावी महापुरुष हैं - मतलब यह कि कुछ अरसे के लिए उन्हें इस बात का पूरा-पूरा यकीन रहा होगा। उन्होंने बहुत मुसीबतें उठाई हैं और यह विचार अब भी उन्हें सता रहा है कि कोई उनमें एक सिद्धांत ईजाद करने की क्षमता तो थी, लेकिन संकोच किए बिना सीमा को पार कर जाने की क्षमता नहीं थी, और इसलिए वे मेधावी महापुरुष नहीं हैं। पर यह बात बुलंद हौसलेवाले नौजवानों के लिए, खास तौर पर हमारे इस जमाने के नौजवानों के लिए बहुत ही अपमानजनक होती है...'

'लेकिन उनके जमीर को क्या हुआ? उनके जमीर ने क्या उन्हें धिक्कारा भी नहीं होगा क्या आप इस बात से इनकार करते हैं कि उनको नैतिकता का एहसास है... क्या वे ऐसे आदमी हैं?'


1. सदाचार कहीं भी डेरा जमा लेता है। (फ्रांसीसी)


'लेकिन, अव्दोत्या रोमानोव्ना, इस वक्त हर चीज बेहद उलझी हुई है। मेरा मतलब यह है कि खास तौर पर बहुत ठीक तो वह कभी भी नहीं रही। रूसी आम तौर पर बहुत ही खुले और उदार स्वभाव के होते हैं, उतने ही खुले और विशाल हृदय जितना कि उनका देश है। जो चीज कल्पनातीत हो, जो अस्त-व्यस्त हो, उसकी ओर उनका बेहद झुकाव रहता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है कि आदमी का स्वभाव तो इतना खुला और उदार हो, लेकिन उसमें मेधावी प्रतिभा की कोई झलक न हो। तुम्हें याद है, हम लोगों ने रात के खाने के बाद बाग से लगे बरामदे में बैठ कर इसी सवाल के बारे में कितनी बातें की थीं। तुम्हीं ने मुझे मेरे खुले और उदार स्वभाव पर लताड़ा था। तुम वह बात उसी वक्त शायद कह रही होगी, जब वे यहाँ लेटे हुए अपने विचारों की उधेड़बुन करते रहते थे। देखो, बात यह है कि हम पढ़े-लिखे लोगों की कोई ऐसी खास परंपरा नहीं होती जिन्हें हम पवित्र मानते हों, जब तक कि उनमें से कोई शख्स अपने लिए किताबों में से निकाल कर एक परंपरा गढ़ न ले, या किसी पुराने वृत्तांत से उसकी नकल न करने लगे। लेकिन ज्यादातर ऐसे लोग विद्वान होते हैं, एक तरह से सबकी तरह बेवकूफ, यहाँ तक कि किसी भी व्यावहारिक, दुनियादार आदमी को उनके जैसा होना शोभा नहीं देता। लेकिन तुम मेरे विचार तो मोटे तौर पर जानती ही हो। मैं किसी को दोष नहीं देता, किसी को भी नहीं। मैं खुद ही निकम्मे रईसों में से एक हूँ। न काम करता हूँ और न काम करने का कोई इरादा है। लेकिन इस बात पर हम लोग पहले भी कई बार बहस कर चुके हैं। मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझता हूँ कि अपने विचारों के बारे में तुम्हारे मन में दिलचस्पी पैदा कर सका! ...तुम्हारा चेहरा बहुत पीला पड़ रहा है!'

'उनका यह सिद्धांत मुझे पता है। मैंने ऐसे लोगों के बारे में उनका वह लेख पढ़ा था जिन्हें अपनी मर्जी का कोई भी काम करने का अधिकार होता है... रजुमीखिन ने मुझे वह पत्रिका ला कर दी थी जिसमें वह लेख छपा था...'

'मिस्टर रजुमीखिन ने? तुम्हारे भाई का लेख किसी पत्रिका में... इस तरह का कोई लेख छपा है क्या? मुझे पता नहीं था। दिलचस्प तो बहुत होगा! लेकिन तुम कहाँ चलीं?'

'सोफ्या सेम्योनोव्ना से मिलना है,' दूनिया ने मरी-मरी आवाज में कहा। 'रास्ता किधर है उनके कमरे का शायद अब वे आ गई हों। मुझे उनसे मिलना ही पड़ेगा। वे खुद...'

दूनिया अपनी बात पूरी न कर सकी। साँस ने साथ नहीं दिया।

'सोफ्या सेम्योनोव्ना देर रात गए तक वापस नहीं आने की। मैं नहीं समझता कि आएँगी। चूँकि वे सीधे लौट कर नहीं आईं, इसलिए मैं समझता हूँ कि रात को देर से ही आएँगी...'

'खूब, तो आप झूठ बोल रहे थे! अब मेरी समझ में आया... आप झूठ बोल रहे थे... आप पूरे वक्त झूठ बोलते रहे हैं! मुझे आपकी बातों का यकीन नहीं रहा! नहीं, बिलकुल नहीं!' दूनिया पूरी तरह अपना मानसिक संतुलन खो कर उन्मादियों की तरह चीख उठी। वह लगभग मूर्च्छित हो कर उसी कुर्सी पर धम से गिर पड़ी, जिसे स्विद्रिगाइलोव ने जल्दी से उसकी ओर बढ़ा दिया था।

'क्या हुआ अव्दोत्या रोमानोव्ना भगवान के लिए, होश में आओ। लो, यह पानी पी लो। थोड़ा-सा...'

उसने जरा-सा पानी दूनिया के मुँह पर छिड़का। दूनिया चौंक कर उठी।

'ज्यादती हुई इसके साथ,' स्विद्रिगाइलोव भौहें सिकोड़ कर धीम से बुदबुदाया। 'फिक्र मत करो। यह न भूलो कि उनके बहुत से दोस्त हैं। हम लोग उन्हें बचा लेंगे... उनकी मदद करेंगे। कहो तो उन्हें ले कर मैं विदेश चला जाऊँ। मेरे पास पैसा है, तीन दिन में टिकट का इंतजाम कर सकता हूँ। जहाँ तक कत्ल का सवाल है, तो वे बहुत से नेक काम करेंगे और लोग सब कुछ भुला देंगे। फिक्र न करो, वे अब भी बहुत बड़ी हस्ती बन सकते हैं। जी कैसा है ठीक तो हो न?'

'नीच, पापी, मेरा मजाक उड़ा रहा है तू? मुझे जाने दे!'

'लेकिन कहाँ भला किधर जाओगी तुम?'

'उनके पास। कहाँ हैं वे... मालूम है... यह दरवाजा बंद क्यों है? हम इसी दरवाजे से अंदर आए थे, और यह अब बंद है। तुमने इसमें ताला कब लगाया?'

'हमें जो बातें करनी थीं वे बहुत ही निजी किस्म की थीं... कि नहीं? दरवाजा तो बंद करना ही पड़ता... और मैं तुम्हारा मजाक तो बिलकुल नहीं उड़ा रहा... बस भारी-भरकम शब्दों में बातें करते-करते उकता गया हूँ। लेकिन तुम ऐसी हालत में कहाँ जाओगी क्या तुम चाहती हो कि उनका भेद सबको पता चल जाए? तुम उन्हें पागल कर दोगी और वे अपने आपको पुलिस के हवाले कर देंगे। मैं समझता हूँ, मुझे यह बात तुम्हें बता ही देनी चाहिए कि उनके ऊपर निगरानी रखी जा रही है। उनका पीछा तो इस वक्त भी किया जा रहा है। तुम बस उनका भेद खोलोगी, और कुछ नहीं। जरा सब्र करो। कुछ ही देर पहले मैं उनसे मिला था और उनसे बातें की थीं। उन्हें अब भी बचाया जा सकता है। जरा ठहरो और बैठ जाओ, इसके बारे में हम लोग मिल कर कुछ सोचें। मैंने तुमसे यहाँ आने को इसीलिए कहा था कि तुमसे इस बारे में बातें करना चाहता था, इस बारे में ठीक से विचार करना चाहता था। बैठो!'

'बचाएँगे कैसे? उन्हें बचाया जा सकता है क्या?'

दूनिया बैठ गई। स्विद्रिगाइलोव भी उसके पास बैठ गया।

'इसका दारोमदार तुम पर है, सिर्फ तुम्हारे ऊपर,' उसने बिजली की तरह चमकती हुई आँखों से, लगभग कानाफूसी में कहना शुरू किया। उत्तेजना के मारे वह कुछ शब्दों का ठीक से उच्चारण भी नहीं कर पा रहा था।

दूनिया सहम कर दूर हट गई। वह भी सर से पाँव तक काँप रहा था।

'तुम... बस एक शब्द तुम बोल दो तो वे बच जाएँगे! मैं... मैं उन्हें बचाऊँगा। मेरे पास पैसा है, बहुत से दोस्त हैं, मैं उन्हें फौरन यहाँ से कहीं बाहर भिजवा दूँगा। मैं खुद पासपोर्ट बनवा दूँगा... दो पासपोर्ट। एक उनके एक अपने लिए। बहुत से दोस्त हैं मेरे, काम के लोग हैं... कहो तो तुम्हारा पासपोर्ट भी बनवा दूँ... और तुम्हारी माँ का... रजुमीखिन भला तुम्हारे किस काम का है? मैं तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ जितना वह करता है... तुम्हारे प्यार में पागल हूँ मैं। मुझे अपने लिबास का दामन ही चूम लेने दो। चूम लेने दो! चूम लेने दो! मुझसे उसकी सरसराहट नहीं सही जाती। जो भी करने को कहोगी, मैं करूँगा। कोई भी काम करूँगा। अनहोनी से अनहोनी भी करके दिखाऊँगा। जिस बात पर तुम विश्वास करोगी, उसी पर मैं भी विश्वास करूँगा। मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ, कुछ भी! इस तरह मुझे मत देखो! मत देखो इस तरह! तुम मुझे मारे डाल रही हो! पता है तुम्हें...'

वह पागलों की तरह बड़बड़ाने लगा था। उसे अचानक कुछ हो गया था, जैसे अचानक उसका दिमाग चल गया हो। दूनिया उछल कर दरवाजे की ओर भागी।

'खोलो दरवाजा, दरवाजा खोलो!' वह दरवाजे को हिला-हिला कर चीखने लगी जैसे किसी को मदद के लिए पुकार रही हो। 'दरवाजा खोलो! अरे, कोई बाहर है क्या?'

स्विद्रिगाइलोव उठा और अपने आपको सँभाला। उसके होठों पर, जो अभी तक काँप रहे थे, धीरे-धीरे एक दुष्टता भरी मुस्कान फैल गई।

'घर में कोई नहीं है,' वह शांत स्वर में, एक-एक शब्द को तौलते हुए बोला। 'मकान-मालकिन बाहर गई है... तुम इस तरह चिल्ला कर अपना ही गला खराब कर रही हो। बेकार ही इस तरह झल्ला रही हो।'

'चाभी कहाँ है दरवाजा फौरन खोल दे, कमीने... फौरन!'

'लगता है मैंने चाभी कहीं रख दी है और अब मिल नहीं रही।'

'अच्छा तो तू जबरदस्ती करना चाहता है!' दूनिया ने चिल्ला कर कहा। उसका चेहरा पीला पड़ गया था। वह कमरे के कोने की ओर भागी वहाँ एक छोटी-सी मेज की आड़ में हो गई जो संयोग से उसके हाथ लग गई थी। अब वह चीख नहीं रही थी बल्कि आततायी पर नजरें जमा कर गौर से उसकी एक-एक हरकत को देख रही थी। स्विद्रिगाइलोव भी अपनी जगह से नहीं हिला, बल्कि कमरे के दूसरे सिर पर उसकी ओर मुँह किए खड़ा रहा। कम-से-कम देखने में यही लगता था कि उसने फिर से खुद पर काबू पा लिया था, लेकिन चेहरे का रंग पहले की तरह ही उड़ा हुआ था। वैसे चेहरे पर उपहास भरी मुस्कान अब भी खेल रही थी।

'तुमने अभी-अभी जरबदस्ती की बात कही थी। पर अगर मेरा इरादा तुम्हारे साथ जबरदस्ती करने का रहा होगा तो तुम्हें यह भी मालूम होगा कि मैंने पहले ही हर तरह की सावधानी बरत ली होगी। सोफ्या सेम्योनोव्ना घर पर हैं नहीं, कापरनाउमोव परिवार यहाँ से काफी दूर रहता है, बीच में पाँच कमरे हैं जिनमें ताला पड़ा हुआ है। आखिरी बात यह कि मैं तुमसे कम-से-कम दोगुना ताकतवर हूँ। इसके अलावा किसी बात का डर भी मुझे नहीं है क्योंकि यह तो चाहोगी नहीं कि मैं तुम्हारे भाई का भेद खोल दूँ... क्यों वैसे तुम्हारी बात पर कोई विश्वास भी नहीं करेगा : आखिर कोई तो दूर... लड़की किसी को साथ लिए बिना किसी अकेले आदमी के कमरे में गई ही क्यों? तुम अपने भाई को कुरबान भी कर दो, तब भी कुछ साबित नहीं कर पाओगी; बलात्कार साबित करना बेकार की बात है।'

'कमीना कहीं का!' दूनिया ने गुस्सा से लाल हो कर धीमी आवाज में कहा।

'जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन इतना याद रखना कि यह सब मैं सिर्फ इस तरह कह रहा था कि मान लो ऐसा हो जाए। निजी तौर पर मैं मानता हूँ कि तुम बिलकुल सही कहती हो : बलात्कार एक घिनावनी हरकत है। मैं तो बस यह कहने की कोशिश कर रहा था। कि अगर.. अगर अपने भाई को बचाने के लिए तुम अपनी खुशी से मेरी बात मान लो, जैसा कि मेरा सुझाव है, तब भी तुम्हारा जमीर साफ ही रहेगा क्योंकि उस हालत में तुमने परिस्थितियों से मजबूर हो कर ही किया होगा। वैसे तुम चाहो, और हमारे लिए इस शब्द का इस्तेमाल जरूरी ही हो, तो तुम इसे जबरदस्ती भी कह सकती हो। सोच लो तुम्हारे भाई और तुम्हारी माँ की तकदीर का फैसला तुम्हारे हाथों में है। मैं तो तुम्हारा गुलाम ही रहूँगा... जिंदगी भर। मैं यहाँ बैठ कर तुम्हारे फैसले का इंतजार कर रहा हूँ...'

स्विद्रिगाइलोव इतना कह कर सोफे पर, दूनिया से लगभग आठ कदम की दूरी पर बैठ गया। दूनिया को उसके पक्के इरादे के बारे में जरा भी संदेह नहीं था। और फिर, वह उसे जानती भी तो थी...

अचानक उसने अपनी जेब में से रिवाल्वर निकाला, उसका घोड़ा चढ़ाया और जिस हाथ में रिवाल्वर था उसकी कुहनी मेज पर टिका दी। स्विद्रिगाइलोव उछल कर खड़ा हो गया।

'आहा! तो यह बात है!' वह चौंक कर बोला, लेकिन उसके होठों पर दुश्मनी से भरी मुस्कराहट थी। 'यानी कि अब तो परिस्थिति एकदम बदल गई है। तुम मेरे लिए हर चीज बहुत आसान बनाए दे रही हो, अव्दोत्या रोमानोव्ना! लेकिन तुम्हें रिवाल्वर कहाँ से मिला मिस्टर रजुमीखिन ने तो नहीं दिया हे भगवान! यह तो मेरा ही रिवाल्वर है! मेरा पुराना दोस्त! और मैं इसे ढूँढ़-ढूँढ़ कर थक गया... मैं देख रहा हूँ कि देहात में गोली चलाने का अभ्यास बेकार नहीं गया।'

'यह रिवाल्वर तेरा नहीं पापी, तेरी बीवी का है जिसे तूने मार डाला। मैंने इसे उसी वक्त ले लिया था जब मुझे यह शक होने लगा था कि तू क्या-क्या कर सकता है। अब अगर एक कदम भी आगे बढ़ाया तो मैं कसम खा कर कहती हूँ कि तुझे मार डालूँगी।'

दूनिया पर भूत सवार हो गया था। वह रिवाल्वर का निशाना साधे हुए थी।

'और तुम्हारे भाई का क्या होगा? मैं तो बस यूँ ही, जानने के लिए पूछ रहा हूँ,' स्विद्रिगाइलोव अब भी अपनी जगह से हिले बिना बोला।

'बता दे पुलिस को, तेरा जी चाहे तो! हिलना भी मत! एक कदम भी आगे बढ़ा तो गोली चला दूँगी! तूने अपनी बीवी को जहर दे कर मारा है, यह मुझे मालूम है। तू खुद ही हत्यारा है...'

'तो तुम्हें पक्का यकीन है कि मैंने अपनी बीवी को जहर दिया था?'

'हाँ, तूने दिया जहर! तूने खुद यह बात मुझसे इशारों में कही थी... मुझसे जहर की बात कही थी। मैं जानती हूँ तू जहर लेने शहर गया था... वह तेरे पास तैयार था... तूने दिया जहर... यकीनन दिया, कमीने!'

'लेकिन अगर यह बात सच भी हो, तब भी मैंने तुम्हारी ही खातिर तो ऐसा किया होगा... इसकी वजह तो फिर भी तुम ही रहोगी।'

'झूठ बोलता है तू! मुझे तुझसे हमेशा नफरत रही है, हमेशा...'

'आहा, अव्दोत्या रोमानोव्ना! लगता है तुम यह बात एकदम भूल चुकी हो कि मुझे सुधारने के जोश में तुम कैसे नरम पड़ने और पिघलने लगी थीं। मुझे तुम्हारी आँखों में यह बात साफ-साफ दिखाई देती थी। वह रात याद है... चाँदनी रात, जब बुलबुले चहक रही थीं?'

'झूठा है तू!' दूनिया की आँखें दहकने लगीं। 'तू झूठा है! सरासर तोहमत लगा रहा है!'

'मैं झूठा हूँ, क्यों अच्छी बात है... मान लो मैं झूठ ही बोल रहा हूँ। ठीक, तो मैं झूठ बोल रहा हूँ। औरतों को कम-से-कम यह तो नहीं चाहिए कि किसी को इस तरह की बातों की याद दिलाएँ।' वह खीसें निकाल कर हँस पड़ा। 'मुझे यकीन है कि तुम गोली चलाओगी। अच्छी बात है, चलाओ गोली!'

दूनिया ने रिवाल्वर ऊपर उठाया। उसका रंग एकदम सफेद पड़ चुका था, नीचेवाला होठ सफेद हो कर काँप रहा था, और बड़ी-बड़ी, काली आँखें अंगारों की तरह दहक रही थीं। गोली चलाने का पक्का फैसला करके, बीच की दूरी का अंदाजा लगाते हुए और उसकी हरेक हरकत पर सावधानी से नजर रखते हुए वह उसकी ओर देखने लगी। स्विद्रिगाइलोव को वह इतनी खूबसूरत कभी नहीं लगी थी। जिस क्षण उसने रिवाल्वर ऊँचा किया था उसी समय उसकी आँखों में धधक रही आग में वह झुलसने लगा था। उसका दिल तकलीफ के मारे बैठने लगा। वह एक कदम आगे बढ़ा। गोली चलने की आवाज गूँजी और गोली उसके बालों को छूती हुई, पीछे दीवार में जा कर धँस गई। वह रुका और धीरे से हँसा :

'भिड़ ने डंक मार दिया! और निशाना भी सीधा मेरे को बनाया। यह क्या खून!' उसने दाहिनी कनपटी पर बह रहा खून पोंछने के लिए रूमाल निकाला। गोली उसकी खोपड़ी की खाल को छूती हुई निकली होगी। दूनिया ने रिवाल्वर नीचे कर लिया और स्विद्रिगाइलोव को घूरने लगी। दहशत से कम और गुस्से व हैरानी से ज्यादा। लग रहा था, उसकी समझ में खुद नहीं आ रहा था कि उसने क्या कर दिया था और क्या हो रहा था।

'खैर, निशाना तो चूक गया! अब फिर गोली चलाओ, मैं इंतजार कर रहा हूँ!' स्विद्रिगाइलोव ने अब भी खीसें निकाल कर हँसते हुए, लेकिन थोड़ा उदास हो कर धीमे से कहा। 'तुमने अगर जल्दी न की तो तुम्हें रिवाल्वर का घोड़ा चढ़ाने का वक्त मिले, उससे पहले ही मैं तुम्हें दबोच लूँगा।'

दूनिया चौंक पड़ी। उसने जल्दी से रिवाल्वर का घोड़ा चढ़ा कर उसे ऊपर उठाया।

'मुझे छोड़ दे!' दूनिया घोर निराशा से चिल्लाई। 'मैं कसम खा कर कहती हॅँ, फिर गोली चला दूँगी... मैं... मैं तुझे जान से मार डालूँगी...'

'खैर, तीन फुट की दूरी से तो निशाना नहीं चूकेगा, क्यों लेकिन अगर चूका... तो मैं...' स्विद्रिगाइलोव की आँखें चमक उठीं। वह दो कदम और बढ़ आया।

दूनिया ने घोड़ा दबाया, लेकिन रिवाल्वर ठीक से नहीं चला।

'उसे तुमने ठीक से भरा ही नहीं था। कोई बात नहीं, मैं समझता हूँ उसमें एक गोली अभी और होगी। ठीक से तैयार कर लो। मैं खड़ा हूँ।'

वह दूनिया से बस दो फुट की दूरी पर था। जुनून से भरे पक्के इरादे के साथ उसे देखते हुए वह इंतजार करता रहा। वह उसे उत्तेजना से भरी, दहकती हुई नजरों से घूर रहा था। दूनिया इतना समझ गई कि वह भले मर जाए, उसे नहीं छोड़ेगा और... यकीनन वह उसे मार डालती... बस दो फुट की ही दूरी तो थी...

अचानक उसने रिवाल्वर फेंक दिया।

'फेंक दिया!' स्विद्रिगाइलोव ने हैरान हो कर कहा और गहरी साँस ली। लगा, अचानक उसके दिल पर से एक भारी बोझ हट गया हो। लेकिन यह मौत के डर का बोझ शायद नहीं था, क्योंकि यह डर तो उसने उस समय महसूस भी नहीं किया होगा। उसे किसी दूसरी ही, अधिक भयानक और घिनावनी भावना से छुटकारा मिल गया था, जिसकी तीव्रता की वह स्वयं भी व्याख्या नहीं कर सकता था।

वह आगे बढ़ कर दूनिया के पास गया और नरमी से उसकी कमर को अपनी बाँह में लपेट लिया। दूनिया ने विरोध नहीं किया, लेकिन बुरी तरह काँपते हुए विनती भरी नजरों से उसे देखती रही। वह कुछ कहना चाहता था, लेकिन उसके होठ फड़के और वह एक शब्द भी नहीं बोल सका।

'मुझे जाने दो,' दूनिया ने गिड़गिड़ाती हुई आवाज में कहा।

स्विद्रिगाइलोव काँप उठा। दूनिया की आवाज में एक अजीब-सी अपनाइयत का पुट आ गया था, जो पहले नहीं था।

'तो तुम मुझसे प्यार नहीं करती?' उसने धीरे-से पूछा।

दूनिया ने सर हिला दिया।

'और... कर भी नहीं सकतीं कभी नहीं?' उसने निराश हो कर, धीमी आवाज में कहा।

'कभी नहीं!' दूनिया ने भी धीमी आवाज में कहा।

स्विद्रिगाइलोव के दिल में पलभर तक एक भयानक मगर खामोश संघर्ष चलता रहा। उसने दूनिया को अकथनीय पीड़ा से देखा। अचानक उसने अपनी बाँह खींच ली, पीछे मुड़ा और जल्दी से खिड़की के पास जा कर उसके सामने ठहर गया।

एक पल और बीता।

'यह लो चाभी!' कोट की बाईं जेब से उसने चाभी निकाली और दूनिया की ओर मुड़ कर देखे बिना ही अपने पीछे मेज पर रख दिया। 'यह लीजिए और फौरन यहाँ से चली जाइए!'

वह नजरें जमाए खिड़की से बाहर घूरता रहा।

दूनिया चाभी लेने मेज के पास गई।

'फौरन! जल्दी!' स्विद्रिगाइलोव ने दोहराया। वह अब भी न अपनी जगह से हिला और न ही पीछे मुड़ कर देखा। स्पष्ट था कि उसके उस 'फौरन' में एक भयानक खतरा छिपा हुआ था।

दूनिया समझ गई, चाभी ले कर दरवाजे की ओर लपकी और जल्दी से ताला खोल कर कमरे से बाहर निकल गई। एक ही मिनट में वह बाँध पर पहुँच चुकी थी। इस बात से बेखबर कि वह कर क्या रही है, वह पागलों की तरह... पुल की ओर भागी जा रही थी।

स्विद्रिगाइलोव कोई तीन मिनट तक खिड़की के पास खड़ा रहा। आखिरकार वह धीरे-धीरे मुड़ा, अपने चारों ओर देखा और माथे पर हाथ फेरा। एक अजीब-सी मुस्कराहट से उसका चेहरा विकृत हो गया - दयनीय, उदास, कमजोर मुस्कराहट से, घोर निराशा की मुस्कराहट से। हाथ सूखते हुए खून में सन गया। उसने बेहद क्रोध से उसे देखा। फिर उसने एक तौलिया भिगो कर अपनी कनपटी पोंछी। अचानक उसकी नजर दूनिया के फेंके हुए रिवाल्वर पर जा टिकी जो दरवाजे के पास पड़ा हुआ था। उसने उसे उठा लिया और उलट-पुलट कर देखा। वह तीन गोलियोंवाला पुराने ढंग का एक छोटा-सा रिवाल्वर था। अब भी उसमें दो गोलियाँ बची हुई थीं, और गोली दागने की एक टोपी भी। एक गोली तो अभी और दागी जा सकती थी। उसने पलभर तक कुछ सोचा, रिवाल्वर को जेब में रखा, अपना हैट उठाया और बाहर निकल गया।

अपराध और दंड : (अध्याय 6-भाग 6)

स्विद्रिगाइलोव ने दस बजे तक पूरी शाम घटिया मनोरंजन के एक से दूसरे ठिकाने तक, एक शराबखाने से दूसरे शराबखाने में जा कर काट दी। फिर कहीं से कात्या भी आ टपकी और किसी बेदर्दी साजना के बारे में एक बाजारू गाना गाने लगी, जो 'कात्या को चूमने लगा' था।

स्विद्रिगाइलोव ने कात्या, आर्गन बजानेवाले, गानेवालों की टोली और उन दो क्लर्कों के लिए शराब खरीदी जिनसे उसने सिर्फ इसलिए दोस्ती कर ली थी कि दोनों की नाकें टेढ़ी थीं - एक की दाहिनी ओर, दूसरे की बाईं ओर। स्विद्रिगाइलोव को यह बात कुछ अजीब लगी थी। आखिरकार दोनों ने उसे राजी कर लिया कि वह उसे किसी मनोरंजन पार्क में ले चलें, जिसमें जाने का टिकट उसने ही खरीदा। इस पार्क में सिर्फ एक पतला-सा, तीन साल पुराना फर का पेड़ था और तीन छोटी झाड़ियाँ थीं। इसके अलावा वहाँ एक 'स्टेशन' भी था, जो दरअसल एक तरह का शराबखाना था पर उसमें चाय भी पिलाई जाती थी। उसके बाग में कुछ हरी मेजें और कुर्सियाँ भी पड़ी हुई थीं। वहाँ गानेवालों की एक टोली और म्यूनिख का शराब के नशे में चूर एक जर्मन, जो जोकरों जैसा लगता था और जिसकी नाक लाल थी, लेकिन जो न जाने क्यों देखने में बहुत उदास लगता था, दर्शकों का मनोरंजन कर रहे थे। दोनों क्लर्क कुछ दूसरे क्लर्कों से उलझ पड़े और उनके बीच लड़ाई शुरू हो गई। स्विद्रिगाइलोव को बीच-बचाव के लिए चुना गया। वह पंद्रह मिनट तक उनके बीच समझौता कराने की कोशिश करता रहा, लेकिन उन लोगों ने ऐसा हंगामा खड़ा किया कि कुछ भी समझ पाना नामुमकिन था। तमाम बातों से बस यह पता चलता था कि उनमें से एक ने कोई चीज चुराई थी और उसे किसी यहूदी के हाथ बेच दिया था, जो इत्तफाक से वहाँ मौजूद था, लेकिन उसे जो पैसा मिला था, उसमें से वह अपने दोस्तों को उनका हिस्सा देने को तैयार नहीं था। आखिरकार यह बात सामने आई कि वह चुराई गई चीज चाय का एक चम्मच थी जो उस 'स्टेशन' की संपत्ति थी; उसके गायब होने का पता चल गया था और अब सारा मामला एक अप्रिय मोड़ ले रहा था। स्विद्रिगाइलोव चम्मच के दाम चुका कर उठा और बाहर चला गया। उस वक्त लगभग दस बजे थे। खुद उसने एक बूँद शराब भी नहीं पी थी, और 'स्टेशन' में महज दिखाने के लिए अपने लिए चाय मँगवा ली थी। अँधेरा हो चला था और उमस बढ़ रही थी। दस बजते-बजते आसमान पर डरावने बादल घिर आए। अचानक बिजली कड़की और जोरदार बारिश होने लगी। ये बूँदें नहीं थीं बल्कि पानी की मोटी धार गिर रही थी। हर पल बिजली के कौंधे लपक रहे थे और हर बार बिजली कई-कई सेकेंड तक चमकती थी। स्विद्रिगाइलोव सर से पाँव तक तर-बतर घर लौटा। अपने आपको उसने कमरे में बंद कर लिया, मेज की दराज खोली, अपना सारा पैसा निकाला और दो-तीन कागज फाड़ कर फेंके। फिर, जेब में सारे नोट रख कर वह अपने कपड़े बदलने जा रहा था कि खिड़की के बाहर देख कर और बिजली की कड़क और बारिश की आवाज सुन कर उसने अपना इरादा बदल लिया और हैट उठा कर, कमरे में ताला बंद किए बिना ही बाहर निकल गया। वह सीधा सोन्या के पास गया। वह घर पर ही थी। पर वह अकेली नहीं थी; कमरे में कापरनाउमोव के चार बच्चे भी उसके पास थे। वह उन्हें चाय पिला रही थी। उसने चुपचाप, सम्मान के भाव से स्विद्रिगाइलोव का स्वागत किया, उसके तर-बतर कपड़ों को आश्चर्य से देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं। बच्चे डर कर भाग खड़े हुए।

स्विद्रिगाइलोव मेज पर जा बैठा और सोन्या से भी पास ही बैठने को कहा। वह सहमी-सहमी उसकी बात सुनने को तैयार हो गई।

'मैं शायद अमेरिका चला जाऊँ, सोफ्या सेम्योनोव्ना,' स्विद्रिगाइलोव ने कहा, 'और हो सकता है यह हमारी आखिरी मुलाकात हो। लिहाजा मैं जाने से पहले कुछ बातें निबटा जाना चाहता हूँ। तुम आज उन महिला से मिली थीं... मुझे मालूम है, उन्होंने तुमसे क्या कहा। वह सब मुझे बताने की कोई जरूरत नहीं।' (सोन्या कसमसाई और शरमा गई।) 'उनकी तरह के लोगों का चीजों को देखने का अपना ही एक ढंग होता है। रहे तुम्हारे छोटे भाई-बहन तो उन्हें अच्छी संस्थाओं में रख दिया गया है। उन्हें बाद में चल कर जो पैसा मिलना है, वह मैंने भरोसे के लोगों के पास रखवा दिया है और उनसे बाकायदा रसीदें ले ली हैं। ये रसीदें तुम रखो; शायद बाद में जरूरत पड़े। यह लो! तो अब वह बात तो तय हो गई। ये रहीं पाँच फीसद सूदवाली तीन हुंडियाँ, जो कुल मिला कर तीन हजार रूबल की हैं। इन्हें रखो और जैसे जी चाहे खर्च करो, पर यह बात सिर्फ हम दोनों तक ही रहे, ताकि बाद में चल कर तुम चाहे जो सुनो, यह बात किसी को मालूम न हो। तुम्हें इस पैसे की जरूरत पड़ेगी सोफ्या सेम्योनोव्ना, क्योंकि तुम जिस तरह की जिंदगी बिता रही हो, वह बहुत बुरी है पर अब इस तरह की जिंदगी बिताती रहने की कोई वजह नहीं रही।'

'आप मेरे लिए, बच्चों और कतेरीना इवानोव्ना के लिए पहले ही बहुत कुछ कर चुके हैं,' सोन्या ने जल्दी से कहा, 'मुझे सचमुच इतना मौका नहीं मिला कि मैं ठीक से आपका शुक्रिया अदा कर सकूँ, लेकिन आप यह न सोचिएगा...'

'यह सब कहने की कोई जरूरत नहीं!'

'जहाँ तक इस पैसे का सवाल है, मैं आपकी बहुत ही एहसानमंद हूँ, लेकिन मुझे अब इसकी जरूरत नहीं। मैं अपना पेट पालने भर को कमा ही लेती हूँ, लिहाजा अगर मैं इसे लेने से इनकार कर दूँ तो यह मत समझिएगा कि मैं आपकी एहसानमंद नहीं रही। आप अगर उपकार करना ही चाहते हैं तो यह पैसा...'

'तुम्हारे लिए है, सोफ्या सेम्योनोव्ना तुम्हारे लिए, और अब इस बारे में ज्यादा बातें न करो। मुझे जल्दी है। तुम्हें इसकी जरूरत पड़ेगी। रोदिओन रोमानोविच के सामने दो ही रास्ते हैं : या तो वे अपने भेजे में गोली मार लें या साइबोरिया जाएँ।' (सोन्या ने फटी-फटी आँखों से स्विद्रिगाइलोव की ओर देखा और सर से पाँव तक सिहर उठी।) 'फिक्र न करो, मुझे सब मालूम है। उन्होंने मुझे खुद बताया है। मैं बातूनी नहीं हूँ; मैं किसी को नहीं बताने का। उस दिन तुमने उनसे ठीक ही कहा था कि वे अपने आपको पुलिस के हवाले कर दें और साफ-साफ सब कुछ मान लें। इसमें उनकी कहीं ज्यादा भलाई है। अगर उन्हें साइबेरिया जाना पड़ा तो मैं समझता हूँ कि तुम भी उनक पीछे-पीछे ही जाओगी, कि नहीं फिर तो तुम्हें यकीनन इस पैसे की जरूरत पड़ेगी। तुम्हें उनके लिए इसकी जरूरत पड़ेगी; यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आती क्या? तुम्हें ये पैसे दे कर मैं दरअसल उन्हीं को दे रहा हूँ। इसके अलावा तुमने अमालिया इवानोव्ना से भी तो किराए का बकाया चुकाने का वादा किया था; मैंने तुम्हें उनसे वादा करते हुए सुना था। सोफ्या सेम्योनोव्ना, ये सारी जिम्मेदारियाँ और ये सारे भुगतान बिना सोचे-समझे तुम अपने ऊपर क्यों लेती जा रही हो? तुम्हारे ऊपर उस जर्मन औरत का कोई कर्ज तो है नहीं, कतेरीना इवानोव्ना के ऊपर था। लिहाजा तुम्हें तो उस जर्मन औरत से साफ कहना चाहिए था कि वह भाड़ में जाए। इस तरह तो दुनिया में तुम्हारी जिंदगी नहीं चलेगी। खैर, तुमसे अगर कोई कभी मेरे बारे में पूछे - कल या परसों - (और लोग तुमसे पूछेंगे जरूर) तो यह मत कहना कि मैं इस वक्त तुमसे यहाँ मिलने आया था। भगवान के लिए, उन्हें यह पैसा भी मत दिखाना, न यह बताना कि मैंने तुम्हें ये पैसा दिया है। तो मैं चलता हूँ,' उसने उठते हुए कहा। 'रोमानोव्ना रोमानोविच से मेरा सलाम कहना। और हाँ, यह पैसा फिलहाल मिस्टर रजुमीखिन के पास रखवा देना। मिस्टर रजुमीखिन को तो जानती होगी... जरूर जानती होगी। आदमी सही हैं। उनके पास कल चली जाना, या... जब भी वक्त आए। तब तक के लिए इसे किसी ऐसी जगह रखो, जहाँ यह सुरक्षित रहे।'

सोन्या कुर्सी से उछल कर खड़ी हो गई और उसे भयभीत हो कर देखने लगी। उसका कुछ कहने, कुछ पूछने को बहुत जी चाह रहा था लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही थी। अलावा इसके उसकी समझ में यह भी नहीं आ रहा था कि बात किस तरह शुरू करे।

'ऐसी बारिश में आप... आप जाएँगे कैसे?'

'अरे भई जिन लोगों को अमेरिका जाना होता है, वे बारिश से नहीं डरते, हा-हा! तो अब चलूँ, सोफ्या सेम्योनोव्ना! लंबी उम्र हो... दूसरों का तुमसे काफी भला होगा। और हाँ... मिस्टर रजुमीखिन से भी मेरा सलाम कहना। कहना, मिस्टर स्विद्रिगाइलोव ने बहुत-बहुत सलाम भेजा है। भूलना मत।'

वह सोन्या को उसी तरह बौखलाया, सहमा हुआ छोड़ कर बाहर निकल गया। सोन्या के दिल में तरह-तरह के धुँधले और बेचैनी पैदा करनेवाले संदेह उठ रहे थे।

बाद में पता चला कि उसी रात, ग्यारह के बाद स्विद्रिगाइलोव, अपनी सनक में इसी तरह अप्रत्याशित ढंग से कहीं और भी गया था। पानी तब भी बरस रहा था। बुरी तरह भीगा हुआ, वह ग्यारह बज कर बीस मिनट पर, वसील्येव्स्की द्वीप पर मली एवेन्यू के पास तीसरी लाइन में, अपनी मँगेतर के माँ-बाप के छोटे से फ्लैट में गया था। उसे देर तक दरवाजा खटखटाना पड़ा, तब कहीं वह अंदर जा सका। उसे वहाँ देखते ही काफी हलचल मची थी। लेकिन स्विद्रिगाइलोव की खूबी थी कि जब उसका जी चाहता, वह भलमनसाहत से पेश आ कर दूसरों का मन मोह लेता था। लिहाजा लड़की के समझदार माँ-बाप ने पहला अनुमान यह लगाया था। (जो बहुत गहरी सूझबूझ का अनुमान था) कि स्विद्रिगाइलोव ने शायद इतनी पी रखी थी कि वह कर क्या रहा है, उसे यह भी नहीं पता फिर उसके गलत निकलने पर उसे फौरन छोड़ दिया गया। दयालु और समझदार माँ अपाहिज बाप की पहिएदार कुर्सी धकेल कर वहाँ ले आई और अपनी आदत से मजबूर स्विद्रिगाइलोव से तरह-तरह के बेतुके और गोलमोल सवाल करने लगी। बात यह भी थी कि वह औरत सीधा सवाल पूछ ही नहीं सकती थी। वह हमेशा शुरू में मुस्कराती थी और अपने हाथ मलने लगती थी। फिर जब, मिसाल के लिए, यह मालूम करना जरूरी होता कि स्विद्रिगाइलोव शादी कब करना चाहता था, तब वह उत्सुकता से पेरिस और फ्रांस के राज-दरबार के बारे में बेहद दिलचस्प सवाल पूछती थी। फिर और कहीं जा कर वह धीरे-धीरे, धरती पर और वसील्येव्स्की द्वीप की तीसरी लाइन पर उतरती थी। अगर कोई दूसरा वक्त होता तो जाहिर है, उसके इस व्यवहार को देख कर सम्मान की भावना जागती, लेकिन इस समय अर्कादी इवानोविच कुछ असाधारण रूप से अधीर मालूम हो रहा था। उसने फौरन अपनी मँगेतर से मिलने का आग्रह किया हालाँकि उसे शुरू में ही बता दिया गया था कि वह सो चुकी है। लेकिन जाहिर है कि वह आखिर आ ही गई। स्विद्रिगाइलोव ने उसे बताया कि उसे किसी बहुत ही जरूरी काम से कुछ समय के लिए पीतर्सबर्ग से जाना पड़ रहा है, और इसलिए वह उसके वास्ते पंद्रह हजार रूबल लाया है। उसने उससे अनुरोध किया कि वह इस रकम को उसकी ओर से उपहार समझ कर स्वीकार कर ले, क्योंकि बहुत दिन से उसकी यह इच्छा थी कि वह शादी से पहले कोई तुच्छ रकम उसे उपहार में दे। उसके इस उपहार और आधी रात को जोरदार बारिश में आने की तात्कालिक आवश्यकता के बीच कोई तर्कसंगत संबंध दिखाई नहीं देता था। फिर भी सारा मामला संतोषजनक ढंग से निबट गया। आश्चर्य और सहानुभूति की घोर अनिवार्य अभिव्यक्तियाँ भी असाधारण सीमा तक दबी-दबी और सीमित ही रहीं। लेकिन, दूसरी ओर अत्यंत प्रशंसा भरे शब्दों में कृतज्ञता का भाव व्यक्त किया गया, और उसकी पुष्टि बेहद व्यवहारकुशल माँ के आँसुओं से की गई। स्विद्रिगाइलोव उठ खड़ा हुआ, हँसा, अपनी मँगेतर को चूमा, उसके गाल को थपथपाया, एक बार फिर कहा कि वह जल्द ही वापस आएगा और अपनी मँगेतर की आँखों में न केवल बाल-सुलभ जिज्ञासा बल्कि एक तरह का खामोश और गंभीर प्रश्न भी देख कर कुछ देर तक सोचता रहा। उसे उसने एक बार फिर चूमा और मन में यह विचार आते ही झुँझला उठा कि उसका वह उपहार व्यवहार कुशल माँ तुरंत ताले-चाभी में बंद कर देगी ताकि वह सुरक्षित रहे। वह उन लोगों को बेहद गैर-मामूली बेचैनी की हालत में छोड़ कर चला गया लेकिन उस दयावान माँ ने इस रहस्यमय मुलाकात की कई एक महत्वपूर्ण गुत्थियों को बहुत धीमी आवाज में जल्दी-जल्दी बोलते हुए, यह कह कर सुलझा दिया कि स्विद्रिगाइलोव बहुत ऊँची सामाजिक हैसियत का आदमी था, उसके जिम्मे बहुत बड़े-बड़े काम थे, उसकी दूर-दूर तक पहुँच थी, और वह बेहद अमीर आदमी था, और भगवान ही जानता था कि उसके दिमाग में क्या-क्या मंसूबे पल रहे थे। अगर वह अपने जी में ठान लेता था कि पीतर्सबर्ग से जाना है, तो बस चला जाता था और अगर उनके जी में आता कि किसी को पैसा दे दें तो बस दे डालता था; इसलिए इसमें ताज्जुब करनेवाली कोई बात नहीं थी। यह बात बेशक कुछ अजीब थी कि वह सर से पाँव तक भीगा हुआ था लेकिन मिसाल के लिए, अंग्रेज तो इससे भी ज्यादा सनकी होते हैं। अलावा इसके, जो लोग दुनिया में पहुँच चुके हैं, वे इस बात की परवाह नहीं करते कि लोग उनके बारे में क्या कहते हैं। वे बहुत ज्यादा औपचारिकता से काम नहीं लेते। शायद वह जान-बूझ कर यह दिखाने के लिए भीगे कपड़े पहने हुए फिर रहा हो कि उसे किसी की परवाह नहीं है। लेकिन सभी लोगों को याद रखना चाहिए कि किसी को कानोंकान इसकी खबर न हो, क्योंकि भगवान जाने इसका क्या नतीजा हो और पैसा फौरन ताले-चाभी में बंद कर दिया जाए। अरे, यह तो अच्छा ही हुआ कि फेदोस्या तमाम वक्त रसोई में रही और भगवान के लिए, कोई उस कुलटा औरत मादाम रेसलिख से एक शब्द भी न कहे, वगैरह-वगैरह। वे लोग दो बजे रात तक बैठे कानाफूसी करते रहे। लेकिन स्विद्रिगाइलोव की मँगेतर बहुत पहले सोने चली गई। वह भौंचक और कुछ उदास-उदास लग रही थी।

इस बीच स्विद्रिगाइलोव ठीक बारह बजे तुचकोव पुल पार करके पीतर्सबर्ग के एक उपनगर की ओर चला जा रहा था। बारिश रुक चुकी थी लेकिन हवा अभी भी तेज चल रही थी। वह काँपने लगा था और एक पल के लिए उसने छोटी नेवा के गहरे रंग के पानी को कुछ खास उत्सुकता से, बल्कि कुछ सवालिया अंदाज से भी, देखा। लेकिन पुल पर जल्द ही उसे सर्दी लगने लगी। वह मुड़ कर बोल्शोई एवेन्यू की ओर चल पड़ा। बड़ी देर तक, लगभग आधे घंटे तक वह अंतहीन बोल्शोई एवेन्यू पर चलता रहा। अँधेरे में कई बार वह सड़क की, लकड़ी के फर्शवाली पटरी पर लड़खड़ाया भी, लेकिन लगातार सड़क के दाहिनी ओर किसी चीज को देखने की कोशिश करता रहा। कुछ ही समय पहले, गाड़ी पर उधर से गुजरते वक्त यहीं कहीं उसने लकड़ी का एक बड़ा-सा होटल देखा था और उसे कुछ-कुछ याद आ रहा था कि उसका एद्रियानोपेल जैसा कोई नाम था। उसका खयाल गलत भी नहीं था। शहर के उस सुनसान इलाके में वह होटल ऐसी चलती जगह पर थी कि अँधेरे में भी उसे न देख पाना असंभव था। लंबी-सी, लकड़ी की मैली-कुचैली इमारत, जिसमें इतनी रात गुजर चुकने के बावजूद अभी तक बत्तियाँ जल रही थीं और जिंदगी की कुछ चहल-पहल भी दिखाई दे रही थी। वह अंदर गया। गलियारे में फटे-पुराने कपड़े पहने जो वेटर उसे मिला, उससे उसने एक कमरे के बारे में बात की। वेटर ने एक नजर उसे देखा, अपने आपको झिंझोड़ कर होश में लाया और फौरन उसे बहुत दूर, सीढ़ियों के नीचे एक कोने में, गलियारे के छोर पर एक छोटे-से, घुटन भरे कमरे में ले गया। कोई दूसरा कमरा खाली नहीं था; सब भरे हुए थे। फटे-पुराने कपड़ोंवाले वेटर ने उसे सवालिया नजरों से देखा।

'चाय मिलेगी?'

'जी।'

'कुछ और?'

'बछड़े का गोश्त है साहब... वोदका और चाय के साथ खाने के लिए थोड़ी-बहुत चीजें भी हैं।'

'तो गोश्त और चाय ले आओ।'

'और कुछ नहीं, साहब?' फटी वर्दीवाले वेटर ने कुछ आश्चर्यचकित हो कर पूछा।

'नहीं, कुछ और नहीं।'

फटी वर्दीवाला वेटर निराश हो कर चला गया।

'काफी अच्छी जगह है!' स्विद्रिगाइलोव ने सोचा। 'अजीब बात है कि मुझे इसका पता भी नहीं था। मैं समझता हूँ, मैं ऐसा आदमी दिख रहा हूँगा जो किसी कॉफी-हाउस में गाना-वाना सुन कर आ रहा था और रास्ते में कहीं मजा लूटने के लिए रुक गया। लेकिन, यहाँ रात को आ कर न जाने टिकता कौन होगा?'

उसने शमा जला कर कमरे को और ध्यान से देखा। कमरा इतना छोटा था और छत इतनी नीची थी कि स्विद्रिगाइलोव के लिए उसमें सीधे खड़ा होना भी मुश्किल था। कमरे में एक खिड़की थी, बिस्तर बहुत गंदा था, और रंगी हुई छोटी-सी मेज और कुर्सी ने लगभग सारी जगह घेर रखी थी। दीवारें ऐसी गोया लकड़ी के तख्तों की बनी हुई हों। दीवारों पर चिपका हुआ कागज इतना फटा हुआ, धूल से इतना अटा हुआ था कि उसका शुरूवाला पीला रंग मुश्किल से ही पहचाना जाता था। उस पर बने बेल-बूटे तो अब दिखाई भी नहीं दे रहे थे। कमरा देखने में अटारी जैसा लगता था जिसकी ढालदार छत की वजह से एक दीवार बाकी सब दीवारों से नीची थी, लेकिन इसकी वजह यह थी कि उसके ऊपर से हो कर सीढ़ियाँ जाती थीं। स्विद्रिगाइलोव शमा नीचे रख कर बिस्तर पर बैठ गया और विचारों में डूब गया। लेकिन उसका ध्यान बगलवाले कमरे से लगातार आ रही कानाफूसी की एक अजीब-सी आवाज ने खींच लिया जो बीच-बीच में ऊँची हो कर जोर की आवाज ले लेती थी। जब से वह कमरे में आया था, यह कानाफूसी कभी रुकी नहीं थी। वह सुनने लगा : एक आदमी लगभग रुआँसी आवाज से किसी दूसरे को फटकार रहा था। लेकिन उसे बस एक ही आवाज सुनाई दे रही थी। स्विद्रिगाइलोव उठ खड़ा हुआ; उसने शमा पर हाथ से आड़ की और उसे फौरन दीवार में एक पतली-सी दरार नजर आई जिसमें से हो कर बगलवाले कमरे की रोशनी आ रही थी। वह उठ कर दरार के पास गया और आँख टिका कर उसमें से देखने लगा। बगलवाले कमरे में, जो उसके अपने कमरे से कुछ बड़ा था, दो आदमी थे। उनमें से एक आदमी के सर के बाल बहुत घुँघराले थे और उसका चेहरा लाल और सूजा हुआ था। वह सिर्फ कमीज पहने हुए संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों टाँगें एक-दूसरे से काफी दूर टिकाए किसी वक्ता की मुद्रा में खड़ा था। अपना सीना पीट-पीट कर वह अपने दोस्त को लताड़ रहा था कि वह एकदम कंगाल था और उसकी निचले दर्जे के सरकारी नौकर तक की हैसियत नहीं थी। उसने अपने दोस्त से कहा कि वह उसे कीचड़ में से बाहर खींच कर लाया था, चाहे तो उसे किसी भी वक्त निकाल बाहर कर सकता है, और यह कि यह सब कुछ तो बस भगवान ही देखता और जानता था। उसका दोस्त कुर्सी पर बैठा फटकार सुन रहा था। देखने में वह ऐसे आदमी जैसा लग रहा था जो जोर से छींकना चाहता हो पर छींक न पा रहा हो। थोड़ी-थोड़ी देर बार वह बौखला कर भीगी बिल्ली की तरह वक्ता की ओर देखता था, लेकिन साफ पता चल रहा था कि उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि उसका दोस्त किस बारे में बातें कर रहा था। बहुत मुमकिन है कि वह कुछ सुन भी न रहा हो। मेज पर धीमी लौ में एक शमा जल रही थी। मेज पर ही वोदका की एक काँच की सुराही थी जो लगभग खाली हो चुकी थी। शराब के कुछ गिलास, रोटी, पानी पीने के गिलास, खीरे और एक खाली चायदानी भी वहाँ थे। इस पूरे दृश्य को ध्यान से देखने के बाद स्विद्रिगाइलोव ऊब कर दीवार के पास से हटा और एक बार फिर आ कर पलँग पर बैठ गया।

फटी वर्दीवाले वेटर ने चाय और गोश्त ले आने के बाद एक बार फिर स्विद्रिगाइलोव से पूछा कि उसे और कुछ तो नहीं चाहिए। जब उसने एक बार फिर इनकार कर दिया तो वेटर वहाँ से चला गया। स्विद्रिगाइलोव ने शरीर में कुछ गर्मी पैदा करने के लिए गिलास में फौरन चाय उँड़ेली। उसने गिलास भर चाय तो पी, लेकिन कुछ खा न सका। भूख बिलकुल मर चुकी थी। उसे कुछ-कुछ हरारत महसूस हो रही थी। अपना ओवरकोट और कोट उतार कर, वह कंबल लपेटे बिस्तर पर लेट गया। वह झुँझला रहा था। 'तबीयत इस वक्त ठीक ही रहती तो अच्छा होता,' उसने सोचा और मुस्करा पड़ा। कमरे में घुटन थी, शमा मद्धम रोशनी बिखेरती हुई जल रही थी, बाहर तेज हवा गरज रही थी, किसी कोने में एक चूहा जमीन को पंजों से खुरच रहा था, सारे कमरे में चूहों और चमड़े की बू बसी हुई थी। वह विचारों में डूबा पलँग पर लेटा रहा। एक के बाद दूसरा विचार दिमाग में आ रहा था। लग रहा था, वह किसी चीज पर अपना ध्यान केंद्रित करने को बेचैन था। 'खिड़की के नीचे बाग होगा,' उसने सोचा। 'पत्तियों की सरसराहट सुनाई दे रही है। कितनी नफरत होती है तूफानी रात के अँधेरे में पत्तियों की यह सरसराहट सुन कर! कैसा भयानक महसूस होता है!' उसे याद आया कि अभी कुछ देर पहले जब वह पेत्रोव्स्की पार्क के पास से गुजर रहा था तो नफरत से उसने इसके ही बारे में सोचा था। उसे तुचकोव पुल और छोटी नेवा नदी की भी याद आई और उसे एक बार फिर सर्दी सताने लगी, ठीक उसी तरह जैसे तब लगी थी, जब वह पुल पर खड़ा था। 'अपनी जिंदगी में कभी मैं पानी को बर्दाश्त नहीं कर सका।' उसने सोचा, 'प्राकृतिक दृश्यों के चित्रों में भी नहीं।' दिमाग में कोई अजीब विचार आते ही उसने एक बार फिर खीसें निकालीं : 'ऐसा लगता है कि आराम और कोमलता की अनुभूति की मुझे अब जरा भी परवाह नहीं होनी चाहिए, फिर भी ठीक इसी वक्त मुझे इन बातों का खयाल सताने लगा है। ठीक इस जानवर की तरह जो... इस तरह के अवसर के लिए सही स्थान चुनने में बेहद सावधानी बरतता है। मुझे पोत्रोव्स्की पार्क में चले जाना चाहिए था! लेकिन वहाँ तो बहुत अँधेरा था और सर्दी थी, हा-हा! लगता है जैसे मुझे सुखद अनुभूतियों की जरूरत है... अरे हाँ, मैं शमा को बुझा क्यों नहीं देता' (उसने फूँक मार कर शमा बुझा दी।) 'बगलवाले कमरे के लोग शायद सो गए हैं,' उसने दीवार की दरार में से रोशनी न आते देख कर सोचा। 'ओ, मार्फा पेत्रोव्ना यही वक्त है जब तुम्हें अपने प्यारे शौहर से मिलने आना चाहिए। अँधेरा हो चुका है, जगह भी मुनासिब है, और वक्त भी बेहद मुनासिब है। लेकिन इस वक्त तो तुम आओगी नहीं...'

उसे न जाने क्यों अचानक याद आया कि कुछ देर पहले, दिन में, दूनिया पर जाल फेंकने से लगभग घंटा भर पहले, उसने रस्कोलनिकोव को सलाह दी थी कि वह दूनिया को रजुमीखिन की निगरानी में सौंप दे। 'मैं समझता हूँ मैंने यह बात, जैसा कि रस्कोलनिकोव ने अंदाजा लगा लिया था, अपने आपको उकसाने के लिए कही होगी। लेकिन यह रस्कोलनिकोव भी एक ही बदमाश है! बहुत कुछ झेला है उसने। अगर वह अपने बेवकूफी भरे विचारों से छुटकारा पा ले, तो आगे चल कर बहुत बड़ा धूर्त बन सकता है, लेकिन अभी तो उसे जीने की बेहद लालसा है। इस मामले में ये लोग तो सचमुच बदमाश होते हैं। जो उसका जी चाहे करे, मुझे क्या मतलब?'

वह सो नहीं सका। दूनिया की शक्ल धीरे-धीरे उसकी नजरों के सामने उभरी। उसने उसे उसी रूप में देखा जैसी वह कुछ घंटे पहले थी। उसके शरीर में अचानक सिहरन दौड़ गई। 'नहीं' उसने होश सँभालते हुए सोचा, 'मुझे ऐसी बातों से अब छुटकारा पा लेना चाहिए, और किसी और बारे में सोचना चाहिए। कैसी मजे की बात है यह और कितनी अजीब, कि मैंने कभी किसी के लिए कोई खास नफरत महसूस नहीं की, और कभी किसी से बदला लेने की बात नहीं सोची। यह तो बहुत बुरा संकेत है, बहुत ही बुरा! मुझे कभी किसी से झगड़ा करना अच्छा नहीं लगा, कभी ताव भी नहीं आया - यह भी तो एक बुरा संकेत है! और मैं उससे अभी कैसी-कैसी बातों का वादा कर रहा था, हे भगवान! शायद वह किसी न किसी तरह मुझे एक दूसरा ही आदमी बना देती...' वह फिर शांत हो गया और दाँत कस कर भींच लिए। एक बार फिर दूनिया की तस्वीर उसकी नजरों के सामने आई। ठीक वैसी ही जैसी कि वह उस वक्त लग रही थी जब पहली गोली चलाने के बाद बेहद डर गई थी, रिवाल्वर नीचा कर लिया था और उसकी तरफ इस तरह देखने लगी थी जैसे वह जिंदा से ज्यादा मुर्दा हो, यहाँ तक कि वह आसानी से उसे दो बार पकड़ सकता था और उसे अपना बचाव करने के लिए हाथ उठाने का भी मौका न मिलता, जब तक कि वह खुद उसे याद न दिलाता। उसे याद आया, उस पल उसे किस तरह दूनिया पर तरस-सा आया था और उसका मन मसोस उठा था... 'उफ, लानत है! फिर वही विचार... मुझे इन सब बातों को अपने दिमाग से निकाल फेंकना होगा, निकाल फेंकना होगा...'

उसे अब नींद आने लगी थी और बुखार की कँपकँपी कम होने लगी थी। अचानक उसे ऐसा लगा जैसे कोई चीज कंबल के अंदर उसकी बाँह और टाँग पर दौड़ रही है। वह चौंका :

'लानत है! कोई चूहा तो नहीं है' उसने सोचा। 'मुझे मेज पर गोश्त नहीं छोड़ना चाहिए था...' उसे कंबल उतारने और उठ कर ठिठुरने के विचार से ही नफरत हो रही थी, लेकिन अचानक फिर कोई चीज तेजी से उसकी टाँग पर दौड़ गई। उसने झटक कर कंबल उतार दिया और शमा जला दी। बुखार की सर्दी से काँपते हुए उसने झुक कर पलँग को ऊपर-नीचे अच्छी तरह देखा-कहीं कुछ भी नहीं था। उसने कंबल को झटका और अचानक एक चूहा उछल कर चादर पर आ गिरा। उसने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन चूहा पलँग पर से भागा नहीं। इसकी बजाय वह चकमे दे कर पलँग पर इधर-उधर भागता रहा, उसकी उँगलियों में से बार-बार फिसलता रहा, उसके हाथ पर दौड़ता रहा और अचानक तीर की तरह भाग कर तकिए के नीचे जा छिपा। उसने तकिया नीचे फेंका। उसे फौरन महसूस हुआ कि कोई चीज तेजी से उसकी कमीज के अंदर घुसी है और तेजी से उसके सारे बदन और उसकी पीठ पर दौड़ रही है। वह घबरा कर काँपने लगा और उसकी आँख खुल गई। कमरे में अँधेरा था। वह पहले की ही तरह कंबल लपेटे पलँग पर लेटा हुआ था और खिड़की के नीचे हवा साँय-साँय चल रही थी। 'उफ, क्या बकवास है!' उसने झुँझला कर सोचा।

वह उठा और खिड़की की ओर पीठ करके पलँग की पट्टी पर बैठ गया। 'बेहतर होगा कि मैं जागता रहूँ,' उसने तय किया। खिड़की से ठंडी और नम हवा आ रही थी। पलँग से उठे बिना ही उसने कंबल खींचा और अपने चारों ओर लपेट लिया। शमा उसने नहीं जलाई। वह न तो किसी चीज के बारे में सोच रहा था और न सोचना चाहता था, लेकिन दिमाग में एक के बाद एक हर तरह की कल्पनाओं की भीड़ जमा होती जा रही थी। विचारों के बिखरे हुए टुकड़े जिनका न कोई ओर था न छोर, और न ही जिनमें कोई आपसी संबंध था। वह फिर ऊँघने लगा था। चाहे सर्दी की वजह से हो या अँधेरे की वजह से, नमी की वजह से हो या खिड़की के नीचे साँय-साँय चलती और पेड़ों को झिंझोड़ती हुई हवा की वजह से हो, लेकिन वह कल्पनातीत चीजों के प्रति बेहद जोरदार और लगाव-झुकाव का, लालसा का अनुभव कर रहा था। फिर भी उसे हर जगह फूल दिखाई देने लगे। उसकी कल्पना में फूलों से भरा एक मनोरम प्राकृतिक दृश्य उभरा। धूप निकली हुई थी, थोड़ी-थोड़ी गर्मी थी, बल्कि काफी गर्मी थी, छुट्टी का दिन था - त्रिमूर्ति का दिन गाँव में एक आलीशान, अंग्रेजी ढंग का बँगला। चारों ओर फूलों की क्यारियाँ जिनमें ढेरों खुशबूदार फूल खिले हुए; सामने बेलों में मढ़ी हुई एक बरसाती और उसके चारों ओर गुलाब की क्यारियाँ। सीढ़ियों पर, जिनमें काफी रोशनी और ठंडक थी, शानदार मोटा कालीन बिछा हुआ, और दोनों और चीनी फूलदानों में देश-विदेश के फूल-पौधे लगे हुए। खिड़कियों पर पानी से भरे गुलदानों में उसे नरगिस के सफेद, कोमल और सुगंध से बोझल फूलों के गुलदस्ते नजर आए जो अपने मोटे, चटकीले, गहरे रंग के लंबे-लंबे डंठलों पर झुके पड़ रहे थे। उसका उनको छोड़ कर जाने का जी नहीं कर रहा था, लेकिन वह सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊँची छतवाले एक कमरे में पहुँचा। वहाँ भी हर जगह फूल ही फूल थे -खिड़कियों में, बड़ी-सी बालकनी में जानेवाले खुले दरवाजों के पास, और बालकनी पर भी। फर्श पर ताजा कटा हुआ, सोंधी खुशबूवाला पुआल बिछा हुआ था, खिड़कियाँ खुली हुई थीं, कमरे में ताजी हवा के हल्के ठंडे झोंके आ रहे थे, खिड़कियों के नीचे चिड़ियाँ चहचहा रही थीं, और कमरे के बीच में कई मेजों को जोड़ कर और उन पर सफेद साटन की चादरें बिछा कर एक ताबूत रखा गया था। ताबूत नेपिल्स के सफेद रेशमी कपड़े से ढका हुआ था, जिसके किनारे-किनारे चारों ओर सफेद जाली की मोटी झालर टँकी थी। ताबूत फूलों के हारों से सजा हुआ था। सफेद जाली की फ्राक पहने, फूलों से लदी एक नौजवान लड़की ताबूत में लेटी थी। हाथ उसके सीने पर रखे हुए थे और ऐसे लग रहे थे जैसे संगमरमर से तराशे गए हों। लेकिन उसके खुले हुए हलके सुनहरे रंग के बाल गीले थे। सर पर गुलाब के फूलों का ताज था। चेहरे को, जिसकी मुद्रा कठोर थी और जो निश्चेत हो चुका था, बगल की ओर से देखने पर लगता था जैसे उसे संगमरमर को काट कर बनाया गया हो। लेकिन उसके मुर्दा पीले होठों पर जो मुस्कराहट थी, उनमें अथाह उदासी थी और शिकायत का गहरा भाव था, जो बाल-सुलभ नहीं लग रहा था। स्विद्रिगाइलोव इस लड़की को पहचानता था। आसपास न कोई प्रतिमा थी और न ही ताबूत के पास कोई शमा जल रही थी। प्रार्थना के स्वर भी सुनाई नहीं दे रहे थे। इस लड़की ने आत्महत्या कर ली थी... वह पानी में डूब कर मरी थी। वह अभी चौदह साल की थी, लेकिन उसका दिल टूट चुका था। एक अपमान का उसे ऐसा गहरा सदमा पहुँचा था कि उसका बच्चों जैसा भोला मन चीख और कराह उठा था। उसकी फरिश्तों जैसी निष्कलंक आत्मा एक ऐसे अपराध पर शर्मिंदगी के दुख में डूब गई थी जो उसने किया ही नहीं था, और उसके दिल से बरबस घोर निराशा की अंतिम चीख निकल गई थी। सबकी ओर से उपेक्षित रह कर और निर्लज्ज कुकर्म की शिकार हो कर उसने अपनी हस्ती को मिटा दिया था - एक ऐसी डरावनी काली रात में जब चारों ओर घोर अँधेरा छाया हुआ था, भारी सर्दी पड़ रही थी, बाहर बर्फ पिघल रही थी और हवा साँय-साँय चल रही थी।

स्विद्रिगाइलोव की आँख खुल गई। वह बिस्तर से उठा, खिड़की के पास गया, टटोल कर चिटकनी ढूँढी और खिड़की खोल दी। तेज हवा का झोंका दनदनाता हुआ छोटे से कमरे में घुस आया और उसके चेहरे और सीने पर, जो सिर्फ उसकी कमीज से ढका हुआ था, पाले की तरह चिपक गया। लगता था, खिड़की के नीचे सचमुच कोई बाग था, एक तरह का मनोरंजन पार्क। यकीनन वहाँ भी दिन में गानेवालों की टोली गाती होगी और छोटी-छोटी मेजों पर बैठ कर लोग चाय पीते होंगे। लेकिन इस वक्त तो झाड़ियों और पेड़ों से बारिश की बूँदें खिड़की के अंदर आ रही थीं; चारों ओर तहखाने जैसा अँधेरा था और मुश्किल से ही कुछ चीजों की काली-काली रूपरेखा देखी जा सकती थी। स्विद्रिगाइलोव नीचे झुका और खिड़की की सिल पर हाथ टिका कर पाँच मिनट तक अँधेरे में घूरता रहा। अचानक रात के अँधेरे में तोप की आवाज गूँजी, और फौरन बाद दूसरी बार यही आवाज आई।

'आह, खतरे की चेतावनी है! पानी चढ़ रहा है!' उसने सोचा। 'सबेरे तक शहर के निचले हिस्सों की सड़कें पानी में डूब जाएँगी, तहखानों में पानी भर जाएगा, डूब कर मरनेवाले चूहे पानी की सतह पर तैरने लगेंगे, और इस आँधी-पानी में सर से पाँव तक भीगे हुए लोग गालियाँ दे-दे कर अपना काठ-कबाड़ ऊपर की मंजिलों पर पहुँचाने लगेंगे... इस वक्त भला क्या वक्त होगा?' उसने यह सवाल अपने आपसे पूछा ही था कि पास ही कहीं तेजी से टिक-टिक करती घड़ी ने तीन का घंटा बजाया। 'हे भगवान, अभी घंटे भर में उजाला फूट निकलेगा! मैं भला किस बात की राह देख रहा हूँ? क्यों न यहाँ से अभी निकल चलूँ, सीधे पेत्रोव्स्की पार्क में जाऊँ, वहाँ बारिश के पानी में नहाई हुई कोई बड़ी-सी झाड़ी चुनूँ जिसमें कंधा लगाते ही सर पर अनगिनत बूँदें बरस पड़ें और...' वह खिड़की के पास से हट आया, खिड़की बंद कर दी, शमा जलाई, अपना कोट पहना, फिर ओवरकोट पहना, हैट लगाया और शमा ले कर उसी फटी वर्दीवाले वेटर को ढूँढ़ने के लिए गलियारे में निकल आया जो इस वक्त शायद दुनिया भर के कूड़े-कचरे और शमा के जले हुए टुकड़ों के बीच किसी कोने में सो रहा था। वह उसे पैसे चुका कर होटल छोड़ देना चाहता था। 'सबसे अच्छा वक्त तो यही है! इससे अच्छा वक्त चुनना मुश्किल है!'

देर तक वह शैतान की आँत जितने लंबे उस सँकरे गलियारे में चलता रहा लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं पड़ा। वह वेटर को पुकारने ही जा रहा था कि उसकी नजर अचानक एक पुरानी अलमारी और दरवाजे के बीच एक अजीब-सी चीज पर पड़ी, जो जिंदा मालूम होती थी। शमा हाथ में लिए वह नीचे झुका और उसे एक बच्ची नजर आई - कोई पाँच साल की छोटी-सी लड़की जो काँप और रो रही थी। उसके कपड़े फर्श पोंछने के झाड़न की तरह गीले थे। ऐसा नहीं लग रहा था कि वह स्विद्रिगाइलोव को देख कर डरी हो, लेकिन वह उसे अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखों से असहाय हैरानी के भाव से घूर रही थी। बीच-बीच में वह सिसक उठती थी, जिस तरह तब बच्चे करते हैं, जब वे रोना बंद कर देते हैं, कुछ तसल्ली महसूस करने लगते हैं, लेकिन फिर भी रह-रह कर सिसकियाँ लेते रहते हैं। बच्ची का चेहरा पीला पड़ चुका था। वह निढाल और सर्दी से ठिठुरी हुई लग रही थी। लेकिन 'यह यहाँ पहुँची कैसे? जरूर यहाँ छिप गई होगी और रात भर सोई नहीं है।' वह उससे पूछने लगा। उस लड़की में अचानक जैसे जान आ गई, और वह बच्चों की भाषा में तुतला कर तेजी से बोलने लगी। वह अपनी 'अम्मा' के बारे में कुछ बता रही थी और कह रही थी कि 'अम्मा मुझे मालेंगी'। वह किसी प्याले के बारे में भी बता रही थी जो उसने 'तोल' दिया था। बच्ची धाराप्रवाह बोले जा रही थी। उसकी बातों से स्विद्रिगाइलोव ने मुश्किल से ही यह अनुमान लगाया कि वह प्यार की भूखी थी। उसे उसकी माँ, जो शायद उसी होटल में खाना पकाने का काम करती हो और शराबी हो, बुरी तरह पीटती रहती थी और वह सहम कर रह गई थी। उसकी समझ में यह भी आया कि लड़की ने अपनी माँ का कोई प्याला तोड़ दिया है और इतना डर गई है कि शाम को भाग आई, जोरदार बारिश में घंटों तक आँगन में कहीं छिपी बैठी रही और आखिरकार रेंग कर उस कोने में पहुँच गई और अलमारी के पीछे छिप गई, जहाँ उसने रोते-रोते सारी रात काट दी थी। वह सर्दी और सीलन से काँप रही थी और इस डर से भी कि उसने जो कुछ किया था उसके लिए उसे मार पड़ेगी। स्विद्रिगाइलोव ने उसे गोद में उठा लिया, अपने कमरे में ले जा कर उसे बिस्तर पर बिठाया और उसके कपड़े उतारने लगा। उसने अपने नंगे पाँवों पर जो फटे हुए जूते पहन रखे थे, वे इतने भीग चुके थे कि लगता था, रात भर पानी के किसी गड्ढे में पड़े रहे हों। उसने बच्ची के कपड़े उतार कर उसे सुला दिया और कंबल खींच कर उसे अच्छी तरह सर तक लपेट दिया। वह फौरन सो गई। यह सब करके वह एक बार फिर अपने उदास विचारों में डूब गया।

'मैं भला इस पचड़े में पड़ा क्यों?' उसने अचानक खुद से सवाल किया। वह झुँझला रहा था और अपने आप पर गुस्सा खा रहा था। 'कैसी बेवकूफी की मैंने!' झुँझलाहट में उसने शमा उठा ली। वह फौरन उस फटी वर्दीवाले वेटर को खोज कर होटल ही छोड़ देना चाहता था। 'हे भगवान, इस लड़की का क्या होगा?' उसने दरवाजा खोलते हुए सोचा। लेकिन यह देखने के लिए वह फिर कमरे में चला गया कि बच्ची सो रही है या नहीं। उसने सावधानी से कंबल उठाया। बच्ची चैन से गहरी नींद सो रही थी। कंबल से उसके शरीर में कुछ गर्मी आ गई थी; पीले गालों पर कुछ-कुछ लाली दौड़ने लगी थी। लेकिन यह कितनी अजीब बात थी! बच्ची के गालों का रंग बच्चों के चेहरे के आम रंग से ज्यादा गहरा और खुला हुआ लग रहा था। 'बुखार की तमतमाहट है,' स्विद्रिगाइलोव ने सोचा। लगता था वह नशे में चूर हो, जैसे किसी ने उसे गिलास भर के शराब पिला दी हो। उसके लाल होठ गर्म हैं और तप रहे हैं। लेकिन यह क्या? अचानक उसे लगा, उस बच्ची की लंबी काली पलकें काँप और फड़फड़ा रही थीं। गोया उसके पपोटे धीरे-धीरे खुल रहे थे, जैसे दो छोटी-छोटी चंचल, तेज आँखें ऐसे अंदाज से आँख मार रही हों जो बच्चों जैसा अंदाज तो हरगिज नहीं था। लग रहा था कि बच्ची सिर्फ सोने का बहाना कर रही थी। हाँ, हाँ, ऐन यही बात थी : उसके खुले हुए होठ मुस्करा रहे थे; मुँह के दोनों कोने फड़क रहे थे, गोया वह अब भी अपने आपको रोकने की कोशिश कर रही हो। लेकिन अगले ही पल उसने यह नाटक करना बंद कर दिया। वह हँस रही थी! हाँ, वह हँस रही थी। उसके चेहरे में, जो अब बच्चों जैसा नहीं रह गया था, कुछ बेशर्मी जैसी, कुछ उकसानेवाली बात थी। उसमें वासना थी। वह वेश्या का चेहरा था, किसी फ्रांसीसी वेश्या का छिनाल चेहरा। अब उसने कुछ भी छिपाने की कोशिश किए बिना, दोनों आँखें खोल दी थीं और उन आँखों ने स्विद्रिगाइलोव पर एक दहकती हुई, निर्लज्जताभरी नजर डाली, जिनमें निमंत्रण था, वे हँस रही थीं... उसकी हँसी में, उन आँखों में, बच्चों जैसे चेहरे के उस तमाम घिनौनेपन में कोई बेहद भयानक और शर्मनाक बात थी। 'क्या पाँच साल की लड़की!' स्विद्रिगाइलोव ने बुदबुदाहट के लहजे में खुली नफरत के साथ कहा। 'क्या... क्या है भला!' लेकिन अब वह उसकी ओर पूरी तरह घूम कर देख रही थी। चेहरे से लपटें निकल रही थीं और वह अपनी दोनों बाँहें उसकी ओर फैलाए हुए थी... 'लानत है!' स्विद्रिगाइलोव डर कर चीखा ओर उसने बच्ची को मारने के लिए हाथ उठाया... लेकिन उसी पल उसकी आँख खुल गई।

वह अभी तक उसी बिस्तर पर लेटा हुआ था, अभी तक उसका शरीर कंबल में लपेटा हुआ था। कोई शमा जल नहीं रही थी, और खिड़की से दिन की रोशनी आ रही थी।

'मैं रात भर कोई डरावना सपना देखता रहा!' वह झुँझला कर उठा। लग रहा था कि वह बिलकुल टूट चुका है। एक-एक हड्डी में दर्द हो रहा था। बाहर घना कुहरा छाया हुआ था और उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। लगभग पाँच बजे थे; उसे बहुत देर हो चुकी थी! वह उठा और अपना कोट और ओवरकोट पहना जो अभी तक गीले थे। जेब टटोल कर उसने रिवाल्वर बाहर निकाला और गोली दागने की टोपी ठीक की। फिर उसने बैठ कर अपनी जेब से एक नोटबुक निकाली और उसके पहले पन्ने पर, जिस पर सबसे जल्दी नजर पड़े, बड़े-बड़े अक्षरों में कुछ लाइनें घसीटीं। उन्हें एक बार फिर पढ़ने के बाद वह मेज पर कुहनियाँ टिका कर विचारों में खो गया। रिवाल्वर और नोटबुक पास ही मेज पर पड़े थे। मक्खियों के झुंड अभी तक मेज पर रखे, बचे हुए गोश्त पर मँडला रहे थे। वह कुछ देर मक्खियों को देखता रहा और फिर दाहिने हाथ से, जो खाली था, एक मक्खी को पकड़ने की कोशिश की। देर तक वह इसी काम में व्यस्त रहा, लेकिन सफल न हुआ। आखिरकार उसे होश आया; वह चौंक कर उठा और पक्के संकल्प के साथ कमरे से बाहर निकल गया। एक मिनट बाद वह सड़क पर आ निकला था।

सारे शहर पर घना दूधिया कोहरा छाया हुआ था। स्विद्रिगोइलोव सड़क के किनारे लकड़ी की बनी गंदी फिसलनी पटरी पर चलता हुआ छोटी नेवा की ओर बढ़ा। उसने अपनी कल्पना में छोटी नेवा को देखा जिसका पानी रात में ऊपर चढ़ आया था, पेत्रोव्स्की द्वीप को देखा, गीले रास्तों, भीगी घास, भीगे हुए पेड़ों और झाड़ियों को और आखिरकार उस झाड़ी को देखा... वह मकानों को गौर से देखने लगा। वह अपने आप पर झुँझलाता हुआ किसी दूसरी चीज के बारे में सोचने की कोशिश कर रहा था। चौड़ी सड़क पर कोई घोड़ागाड़ी नहीं थी; कहीं कोई आदमी दिखाई नहीं देता था। बंद खिड़कियोंवाले, छोटे-छोटे, चटकीले पीले रंग के लकड़ी के मकान उदास और गंदे दिखाई दे रहे थे। उसके शरीर में सर्दी और सीलन समा रही थी और वह काँप रहा था। थोड़ी-थोड़ी देर बाद वह किसी बिसाती या किसी सब्जीवाले की दुकान के सामने से गुजरता और हर एक साइनबोर्ड को ध्यान से पढ़ता। सड़क किनारे की लकड़ी की पटरी अब खत्म हो चुकी थी। वह पत्थर के एक बड़े से मकान के सामने जा पहुँचा। एक छोटे से गंदे कुत्ते ने, टाँगों के बीच दुम दबाए, सर्दी में ठिठुरते हुए उसका रास्ता काटा, ओवरकोट पहने एक आदमी सड़क के आर-पार मुँह के बल मदहोश पड़ा था। स्विद्रिगाइलोव ने उसकी ओर देखा और आगे बढ़ गया। फिर उसे बाईं ओर एक ऊँची मीनार नजर आई। 'अरे,' उसने सोचा, 'मैं इसी जगह को तो ढूँढ़ रहा था। पेत्रोव्स्की द्वीप जाने की क्या जरूरत यहाँ कम-से-कम सरकारी गवाह तो होगा...' यह सोच कर वह लगभग खीसें निकाल कर हँसा और स्नेजिंस्काया स्ट्रीट में मुड़ गया। यह रहा वह मीनारवाला, बड़ा-सा घर। नाटे कद का एक आदमी सिपाहियोंवाला भूरे रंग का कोट अपने शरीर पर कस कर लपेटे सर पर यूनानी सूरमा एकिलीज जैसी पीतल की टोप पहने उस मकान के बड़े से बंद फाटक पर कंधा टिकाए झुका खड़ा था। उसने स्विद्रिगाइलोव पर अलसाई-सी, उचटती, नजर डाली। उसके चेहरे पर चिड़चिड़ेपन और उदासी का वही चिरंतन भाव था जो बिना किसी अपवाद के यहूदी नस्ल के हर आदमी के चेहरे पर कड़वाहट के साथ छुपा हुआ रहता है। वे दोनों, स्विद्रिगाइलोव और एकिलीज, एक-दूसरे को कुछ देर तक चुपचाप घूरते रहे। आखिरकार एकिलीज को यह बात अजीब-सी लगी कि एक आदमी जो नशे में भी नहीं था, उससे गज भर की दूरी पर खड़ा, एक शब्द भी कहे बिना, उसे घूरता रहे।

'तुमको क्या माँगटा, सा'ब' उसने अपनी जगह से हिले बिना या अपनी मुद्रा बदले बिना कहा।

'कुछ नहीं, बड़े मियाँ,' स्विद्रिगाइलोव ने जवाब दिया। 'सलाम!'

'यह भी आपका आने का कोई जगह होटा!'

'मैं विलायत जा रहा हूँ, बड़े मियाँ।'

'विलायत?'

'अमेरिका।'

'अमेरिका?'

स्विद्रिगाइलोव ने रिवाल्वर निकाल कर उसका घोड़ा चढ़ाया। एकिलीज ने भौहें तान कर देखा।

'क्या माँगटा तुमको... यह मसखरी करने का ठिकाना नईं!'

'काहे नहीं, यह तो बताओ!'

'काहे को का जगह... यह नहीं होने का।'

'मुझे क्या फर्क पड़ता है, बड़े मियाँ। जगह तो ठीक ही लगती है। कोई तुमसे पूछे तो कह देना, अमेरिका गया है।'

उसने रिवाल्वर अपनी दाईं कनपटी पर रखा।

'यह काम इधर करने को नईं माँगटा - यह जगह नईं होटा इसका!' एकिलीज बुरी तरह चौंक कर चीखा और उसकी आँखें फटती चली गईं।

स्विद्रिगाइलोव रिवाल्वर की लिबलिबी दबा चुका था।

अपराध और दंड : (अध्याय 6-भाग 7)

उसी दिन शाम को, लगभग सात बजे, रस्कोलनिकोव उस फ्लैट की ओर जा रहा था जहाँ उसकी माँ और बहन रहती थीं। बकालेयेव के मकान का यह फ्लैट उनके लिए रजुमीखिन ने किराए पर ले लिया था। सीढ़ियों पर जाने का रास्ता सड़क की तरफ से था। पास पहुँच कर रस्कोलनिकोव ने अपनी रफ्तार धीमी कर दी, गोया झिझक रहा हो कि अंदर जाए या न जाए। लेकिन उसने अपना इरादा पक्का कर लिया था। अब दुनिया की कोई भी चीज उसे अपने कदम पीछे लौटाने पर मजबूर नहीं कर सकती थी। 'और फिर,' उसने सोचा। 'उन लोगों को अभी तक कुछ मालूम भी तो नहीं, और ये तो मुझे सनकी समझने की आदी हो चुकी हैं...' उसके कपड़ों की हालत बहुत बुरी थी। उसने सारी रात बारिश में भीगते हुए बिताई थी, और हर वह चीज गंदी थी और फट कर तार-तार हो गई थी जो वह पहने हुए था। थकान के मारे, खुले में रहने की वजह से, शरीर से चूर-चूर हो कर, और लगभग चौबीस घंटे से उसके मन में अपने ही खिलाफ जो द्वंद्व मचा हुआ था, उसके चलते उसका चेहरा भयानक लग रहा था। पिछली रात भर वह अकेला रहा... भगवान जाने कहाँ। लेकिन, बहरहाल, उसने अपना इरादा पक्का कर लिया था।

उसने दरवाजा खटखटाया जो माँ ने खोला। दूनिया घर पर नहीं थी, नौकरानी भी कहीं गई हुई थी। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना पहले तो उसे देख कर खुशी और आश्चर्य के मारे अवाक रह गईं; फिर उसका हाथ पकड़ कर उसे कमरे में ले आईं।

'तुम आ गए!' उन्होंने खुशी के मारे हाँफते हुए कहा।

'रोद्या नाराज न होना बेटा कि मैं आँसू बहा कर इस तरह बेवकूफी से तुम्हारा स्वागत कर रही हूँ। मैं रो नहीं रही, ये तो खुशी के आँसू हैं। तुम समझते हो, मैं रो रही हूँ नहीं बेटा, मैं तो बहुत खुश हूँ। यह मेरी नादानीवाली आदत है कि रोने पर मेरा बस नहीं चलता। जब तुम्हारे बाप मरे तभी से जरा-जरा-सी बात पर मेरे आँसू निकल पड़ते हैं। बैठ जाओ बेटा, थक गए होगे। देख रही हूँ कि तुम कितना थके हुए हो। तुम्हारे कपड़े कितने मैले हो गए हैं!'

'कल बारिश में फँस गया था, माँ...' रस्कोलनिकोव ने कहना शुरू किया।

'नहीं, नहीं!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने जल्दी से उसकी बात काट कर कहा। 'तुम समझे मैं फौरन तुमसे सवाल-जवाब शुरू कर दूँगी, क्यों मैं जानती हूँ, बुढ़ियों की तरह मेरी भी यही बेवकूफी की आदत थी। लेकिन बेटा, तुम चिंता मत करो। मैं समझती हूँ, सब समझती हूँ। यहाँ तुम लोग जिस ढंग से काम करते हो, उसकी मुझे अब आदत पड़ गई है। मैं सचमुच मानती हूँ कि वह कहीं ज्यादा समझदारी का तरीका है। देखो बेटा, अब मैंने हमेशा के लिए फैसला कर लिया है... तुम्हारे विचार मेरी समझ में आ नहीं सकते, सो मुझे भी तुमसे कोई जवाब तलब नहीं करना चाहिए। शायद तुम्हारे दिमाग में तरह-तरह के विचार हैं, न जाने क्या-क्या मंसूबे हैं, या तुम्हारे दिमाग में तरह-तरह के और भी विचार आ सकते हैं। इसलिए यह मेरी नादानी ही होगी अगर मैं हर वक्त तुम्हें यह पूछ-पूछ कर तंग करती रहूँ कि तुम सोच क्या रहे हो। देखो, बात यह है कि मैं... लेकिन हे भगवान! मैं इधर-उधर पागलों की तरह भाग क्यों रही हूँ ...देखो, रोद्या, मैं अभी उस पत्रिका में तुम्हारा लेख तीसरी बार पढ़ रही थी, द्मित्री प्रोकोफिच ने मुझे ला कर दिया था। तुम अंदाजा लगा सकते हो कि उसे पढ़ कर मुझे कितना ताज्जुब हुआ होगा। मैं भी कितनी नासमझ और बेवकूफ हूँ, मैंने मन में सोचा। तो वह यह कर रहा है! और यह है सारी बातों की वजह! हो सकता है, उसके दिमाग में कुछ नए विचार भी हों। वह उनके बारे में सोच रहा है और मैं उसे तंग करती रहती हूँ, उसकी बातों में टाँग अड़ाती रहती हूँ! मैं तुम्हारा लेख पढ़ रही हूँ बेटा, और उसमें जाहिर है! ऐसी बहुत-सी बातें भी हैं, जो मेरी समझ में नहीं आतीं। लेकिन इसमें ताज्जुब की क्या बात मैं समझ ही भला कैसे सकती हूँ'

'मुझे तो दिखाओ, माँ।'

रस्कोलनिकोव ने पत्रिका ले ली और अपने लेख पर सरसरी-सी नजर डाली। यह बात उसकी मौजूदा हालत और उसकी मानसिक स्थिति से कितनी ही बेमेल रही हो, लेकिन उसके मन में भी अनायास वही कड़वी-मीठी भावना पैदा हुई जो हर लेखक के मन में अपनी कोई रचना पहली बार छपी हुई देख कर पैदा होती है। इसके अलावा वह तो अभी तेईस साल का ही था। लेकिन यह भावना पल भर ही रही। कुछ पंक्तियाँ पढ़ने के बाद उसने अपनी भवें सिकोड़ीं और चुपके से उसके हृदय में घोर निराशा की भावना जाग उठी। उसके दिमाग में फौरन उसका पिछले कुछ महीनों का आंतरिक द्वंद्व उभर आया। उसने अरुचि से झुँझला कर लेख मेज पर फेंक दिया।

'लेकिन रोद्या बेटा, मैं कितनी ही नासमझ सही, इतना तो समझ ही सकती हूँ कि जल्दी ही तुम हमारी वैज्ञानिक दुनिया में सबसे बड़े आदमी न सही, सबसे बड़े लोगों में से एक तो जरूर होगे। और उन लोगों की यह मजाल कि उन्होंने तुम्हें पागल समझा! हा-हा-हा! तुम्हें यह बात तो नहीं मालूम होगी, लेकिन उन लोगों ने सचमुच ऐसा समझा था! उफ, कैसे-कैसे नीच लोग हैं! उनसे असली प्रतिभा को पहचानने की उम्मीद ही भला क्या की जाए! और दूनिया... जानते हो, दूनिया भी लगभग ऐसा ही समझने लगी थी तुम्हारे पापा ने दो बार पत्रिकाओं में छपने के लिए चीजें भेजी थीं - पहली बार कुछ कविताएँ (अभी तक मेरे पास रखी हैं, कभी दिखाऊँगी तुम्हें), और फिर एक पूरा उपन्यास (मैंने उनकी बड़ी मिन्नत की थी कि मुझे उसको नकल कर लेने दें), और हम दोनों कितना मनाते रहते थे कि वे स्वीकार कर ली जाएँ! लेकिन उन लोगों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। जानते हो रोद्या, जिस तरह तुम रहते थे, जैसे कपड़े तुम पहनते थे और जैसा खाना तुम खाते थे, उसे देख कर अभी छह-सात दिन पहले तक मैं बहुत परेशान हो रही थी। लेकिन अब मेरी समझ में आ रहा है कि यह मेरी कितनी बड़ी नादानी थी क्योंकि, बेटा, जैसा दिमाग तुमने पाया है और जैसे गुण तुम्हारे अंदर हैं, उन्हें देखते हुए तो तुम जब भी कुछ चाहोगे वह तुम्हें मिल जाएगा। मैं समझती हूँ तुम इस वक्त कुछ चाहते ही नहीं हो, क्योंकि तुम्हें बहुत-सी दूसरी, बड़ी-बड़ी बातों के बारे में सोचना है...'

'दूनिया क्या घर पर नहीं है, माँ?'

'नहीं बेटा, वह नहीं है। वह इधर कुछ दिनों से काफी बाहर रहने लगी है और मुझे घर पर अकेला छोड़ जाती है। द्मित्री प्रोकोफिच, भगवान भला करे उसका, आ कर कुछ देर मेरे पास बैठ जाता है। हमेशा वह तुम्हारी ही चर्चा करता रहता है। वह तुमसे बहुत प्यार करता है बेटा, और तुम्हारी काफी इज्जत करता है। लेकिन मैं तुम्हारे मन में यह खयाल उठाना नहीं चाहती कि तुम्हारी बहन मेरा ध्यान नहीं रखती। मैं शिकायत नहीं कर रही। उसके अपने ढंग हैं, मेरा अपना ढंग है। इधर कुछ दिनों से वह न जाने कितनी बातें छिपाने लगी है, लेकिन मैं तुम दोनों से कोई बात नहीं छिपाती। यह मुझे पता है बेटा, कि दूनिया बेहद समझदार लड़की है। इसके अलावा, वह तुम्हें और मुझे प्यार भी बहुत करती है... लेकिन न जाने इस सबका नतीजा क्या होगा, मुझे बहुत खुशी हुई रोद्या कि तुम इस वक्त मुझसे मिलने आए; लेकिन उससे मुलाकात नहीं हो पाई। वह आएगी तो मैं उससे कह दूँगी कि जब वह सारे शहर में तितली की तरह उड़ती फिर रही थी, तब उसका भाई यहाँ आया था। बेटा मुझे दुलरा कर मुझे बिगाड़ मत देना। जब आ सको, आ जाया करना और न आ सको तो कोई बात नहीं। मैं इंतजार कर लूँगी क्योंकि देखो बेटा, यह मैं जानती हूँ कि तुम मुझसे प्यार करते हो, और इतना ही मेरे लिए बहुत है। जो कुछ तुम लिखोगे, वह मैं पढ़ा करूँगी, सबके मुँह से तुम्हारी चर्चा सुनूँगी और बीच-बीच में तुम खुद भी तो मिलने आया करोगे। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है तुम इस वक्त भी तो अपनी माँ का कलेजा ही ठंडा करने आए हो मैं क्या इतना नहीं समझती...'

पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना की आँखों से अचानक आँसू बह निकले।

'लो; मैं फिर वही सब करने लगी। बुरा न मानना बेटा, मैं तो एक नासमझ बुढ़िया ही ठहरी! हे भगवान!' वह अचानक चिल्लाईं और कुर्सी से उछल कर खड़ी हो गईं। 'मैं यहाँ बैठी क्यों हूँ। कॉफी बनी रखी है और तुम्हें देती नहीं! देखो न, बूढ़ी औरतें कैसी स्वार्थी होती हैं। मैं अभी आई, बेटा!'

'कॉफी रहने दो, माँ। मुझे अभी एक मिनट में जाना है। मैं यहाँ इसलिए नहीं आया हूँ। मेरी बात ध्यान दे कर सुनो, माँ।'

पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना डरते-डरते उसके पास आ गईं।

'माँ, वाह कुछ भी हो जाए, तुम मेरे बारे में चाहे जो कुछ सुनो, लोग मेरे बारे में चाहे जो कुछ बताएँ, क्या तुम मुझे उसी तरह प्यार करती रहोगी, जैसे अब करती हो?' उसने अचानक पूछा। ये शब्द उसके दिल की गहराई से सहज भाव से निकले थे, गोया वह अपने शब्दों के बारे में न सोच रहा हो, न ही उन्हें बोलने से पहले तौल रहा हो।

'रोद्या, मेरे बेटे, बात क्या है मुझसे तुम ऐसी बात क्यों पूछ रहे हो? क्यों?, मुझसे तुम्हारे बारे में कौन कोई बात कहेगा मैं तो किसी की बात पर विश्वास ही नहीं करूँगी, वह कोई भी क्यों न हो। उसे तो मैं खड़े-खड़े निकाल दूँगी, सचमुच।'

'मैं तुम्हें यही बताने आया हूँ कि तुम्हें मैंने हमेशा प्यार किया है और मुझे खुशी है कि हम यहाँ अकेले ही हैं। मुझे इसलिए भी खुशी है कि दूनिया भी अभी यहाँ नहीं है,' वह उसी रौ मैं बोलता रहा। 'मैं तुम्हें साफ-साफ बताने आया हूँ... तुम्हें दुख तो होगा लेकिन मैं चाहता हूँ, तुम यह जान लो कि तुम्हारा बेटा अब जितना प्यार तुझसे करता है, उतना वह अपने आपसे भी नहीं करता... यह भी कि तुम मेरे बारे में जो कुछ भी सोचती थी, कि मैं निर्दयी हूँ, मैं तुमसे प्यार नहीं करता, वह सच नहीं है। मैं तुम्हें हमेशा प्यार करता रहूँगा। बस इतना ही काफी है, माँ। यह बात तुम्हें बताना मेरे लिए जरूरी था... इसलिए मैंने यहीं से शुरू करने का फैसला किया।'

पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने उसे चुपचाप गले से लगा लिया, कस कर सीने से चिपका लिया और चुपके-चुपके रोने लगीं।

'तुम्हें न जाने क्या हो गया है, रोद्या,' वे आखिरकार बोलीं। 'मैं तमाम वक्त यही सोचती रही कि तुम हम लोगों से तंग होते जा रहे थे; लेकिन अब हर तरह से मेरी समझ में यही आता है कि तुम्हारे ऊपर कोई बहुत बड़ी आफत आनेवाली है, और इसीलिए तुम इतने दुखी हो। मुझे बहुत दिनों से ऐसा लग रहा था कि ऐसा होनेवाला है, बेटा। बुरा न मानना बेटा, कि मैं इसकी चर्चा कर रही हूँ, लेकिन मैं हमेशा इसी के बारे में सोचती रहती हूँ, और रात भर बिस्तर पर पड़ी जागती रहती हूँ। तुम्हारी बहन भी कल रात बिस्तर पर पड़ी करवटें बदल रही थी। उसे बुखार-सा था और वह लगातार तुम्हारी ही बातें कर रही थी। मैंने कुछ सुना जरूर लेकिन समझ में कुछ नहीं आया। सबेरे मेरी बड़ी बुरी हालत रही बेटा... मैं किसी बात का इंतजार करती रही। मुझे लग रहा था कि अब कुछ होनेवाला है, और वही बात हुई। तुम जा कहाँ रहे हो, रोद्या कहीं बाहर जा रहे, बेटा?'

'हाँ, माँ।'

'यही मैं भी सोच रही थी। मगर बेटा, तुम चाहो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूँ! और दूनिया भी! वह तुम्हें बहुत प्यार करती है, बेटा। और अगर तुम चाहो तो सोफ्या सेम्योनोव्ना भी हमारे साथ चल सकती है। देखो बेटा, मैं उसे खुशी से अपनी बेटी बना लूँगी। द्मित्री प्रोकोफिच हम सब लोगों के जाने में मदद करेगा... लेकिन... तुम जा कहाँ रहे हो, बेटा?'

'अच्छा, अब चलूँगा माँ।'

'हे भगवान, तुम आज ही तो नहीं जा रहे हो' वे चीखीं, गोया वह हमेशा के लिए बिछड़ रहा हो।

'मुझे अफसोस है कि मैं रुक नहीं सकता, माँ। मुझे जाना ही होगा।'

'लेकिन मैं तुम्हारे साथ क्या नहीं चल सकती, बेटा?'

'नहीं माँ, तुम नहीं चल सकतीं। बेहतर यही होगा कि तुम घुटने टेक कर मेरे लिए प्रार्थना करो। शायद तुम्हारी प्रार्थना सुन ली जाए।'

'खैर, कम-से-कम तुम्हें आशीर्वाद तो दे दूँ और तुम्हारे ऊपर सलीब का निशान तो बना दूँ, बेटा! ऐसे... ऐसे। हे भगवान, यह हम लोग क्या कर रहे हैं?'

वह बहुत खुश था, बहुत ही खुश था कि वहाँ कोई नहीं था, कि वह अपनी माँ के पास अकेला ही था। लग रहा था इस पूरी दुखदायी मुद्दत के बाद उसका दिल अचानक पिघल गया था। वह माँ के पाँवों पर गिर पड़ा और उन्हें चूमने लगा। फिर दोनों एक-दूसरे से लिपट कर रोते रहे। माँ को भी कोई आश्चर्य नहीं हुआ; उसने इस बार बेटे से कोई सवाल भी नहीं पूछा। उसने बहुत पहले ही समझ लिया था कि उसके बेटे के साथ कोई बहुत ही बुरी बात होनेवाली है और यह कि अब वह भयानक घड़ी आ गई है।

'बेटा रोद्या, मेरे लाडले,' माँ ने सिसक-सिसक कर रोते हुए कहा, 'तुम अब भी बिलकुल वैसे ही हो जैसे बचपन में थे। आ कर इसी तरह मेरे कलेजे से लग जाते थे और मुझे प्यार करते थे। जब तुम्हारे बाप जिंदा थे और हमारे ऊपर बुरा वक्त पड़ा था, तब तुम हमारे पास रह कर हमें धीरज बँधाते थे। इसके अलावा बेटा, तुम्हारे बाप के मरने के बाद कितनी ही बार हम उनकी कब्र पर जा कर रो चुके हैं और तब भी हमने एक-दूसरे को आज की ही तरह गले लगाया था। अगर मैं तमाम वक्त रोती रही हूँ तो उसकी वजह सिर्फ यह है कि एक माँ के दिल ने यह महसूस किया है कि तुम किसी मुसीबत में हो। उस दिन शाम को जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था, याद है, जब हम लोग यहाँ पहुँचे ही थे... तभी तुम्हें देख कर मुझे सारी बातों का अंदाजा हो गया था। मेरा दिल तो उसी वक्त डूबने लगा था... और आज भी जब मैंने दरवाजा खोला और तुम्हें देखा तो मैंने फौरन सोचा कि जिस घड़ी का मुझे डर था, वह घड़ी आ चुकी है। रोद्या, तुम अभी, इसी वक्त तो नहीं जा रहे हो, बेटा?'

'नहीं, माँ।'

'तुम फिर आओगे न?'

'हाँ... आऊँगा।'

'रोद्या, नाराज न होना, बेटा। मुझे तुम्हारी बातों के बारे में पूछने का कोई अधिकार नहीं है। मैं जानती हूँ, मुझे यह अधिकार नहीं है, लेकिन बेटा, मुझे... बस इतना बता दो कि तुम क्या कहीं बहुत दूर जा रहे हो?'

'हाँ, बहुत ही दूर।'

'वहाँ क्या करने जा रहे हो? वहाँ कोई नौकरी मिली है क्या... या कोई रोजगार?'

'अभी ठीक से कुछ पता नहीं माँ... बस मेरे लिए प्रार्थना करना...'

रस्कोलनिकोव दरवाजे के पास गया, लेकिन माँ ने उसे पकड़ लिया और निराशा से उसे देखने लगीं। उसका चेहरा डर के मारे विकृत हो गया था।

'बस, अब रहने दो, माँ,' रस्कोलनिकोव ने कहा। उसे अब अफसोस होने लगा था कि वह यहाँ आया ही क्यों।

'हमेशा के लिए तो नहीं जा रहे, बेटा हमेशा के लिए तो नहीं न कल आओगे न?'

'आऊँगा, आऊँगा। अच्छा, अब चलता हूँ।'

आखिरकार उसने अपने आपको छुड़ा लिया।

शाम खुशगवार थी, उसमें हल्की-हल्की गर्मी थी और चमक थी। सुबह के बाद से मौसम खुल गया था। रस्कोलनिकोव वापस अपने कमरे में जा रहा था। उसे जल्दी थी। सूरज डूबने से पहले वह सब कुछ खत्म कर देना चाहता था और तब तक किसी से मिलना नहीं चाहता था। आखिरी सीढ़ियाँ चढ़ते वक्त उसने देखा कि नस्तास्या समोवार छोड़ कर निकल आई थी और उसे ऊपर चढ़ते हुए गौर से देख रही थी। 'कोई मेरे कमरे में तो नहीं है?' वह सोचने लगा। यह सोच कर उसे नफरत-सी हुई कि शायद पोर्फिरी बैठा राह देख रहा हो। लेकिन जब वह कमरे में पहुँचा और दरवाजा खोला तो दूनिया दिखाई पड़ी। वहाँ वह सोच में डूबी हुई, अकेली बैठी थी, और लग रहा था बहुत देर से उसकी राह देख रही थी। वह चौखट पर ही रुक गया। वह हैरान हो कर सोफे से उठी और उसके सामने आ कर, सीधी खड़ी हो गई। उसकी आँखों में जो रस्कोलनिकोव पर जमी हुई थीं, दहशत और बेहद उदासी झलक रही थी। उसके इस तरह देखने से ही वह समझ गया कि वह सब कुछ जानती है।

'मैं अंदर आऊँ या चला जाऊँ?' उसने ढिठाई से पूछा।

'मैं दिन भर सोफ्या सेम्योनोव्ना के साथ रही। हम दोनों तुम्हारी राह देखते रहे। हमने सोचा था कि तुम उसके पास जरूर आओगे।'

रस्कोलनिकोव कमरे में आ कर बैठ गया; वह बेहद थका महसूस कर रहा था।

'मुझे काफी कमजोरी महसूस हो रही है, दूनिया। बहुत थक गया हूँ। इस वक्त तो सबसे बढ़ कर मैं यही चाहता हूँ कि अपने आप पर काबू पा लूँ।'

दूनिया ने अविश्वास से उसकी ओर आँखें उठाईं।

'कल सारी रात कहाँ रहे?'

'ठीक से याद नहीं। देखो दूनिया, मैं कोई पक्का फैसला कर लेना चाहता था और कई बार नेवा किनारे गया। इतना तो मुझे याद है। मैं सब कुछ वहीं खत्म कर देना चाहता था, लेकिन... कोई फैसला नहीं कर पाया...' उसने कानाफूसी में कहा और उसे फिर अविश्वास से देखा।

'प्रभु की दया है! हम लोगों को भी यही डर था... सोफ्या सेम्योनोव्ना को और मुझे भी! तो जिंदगी पर तुम्हें अभी तक भरोसा है प्रभु की दया है! प्रभु की!'

रस्कोलनिकोव कड़वाहट के साथ मुस्कराया।

'मुझे कभी कोई भरोसा नहीं था, लेकिन कुछ ही मिनट पहले माँ और मैं एक-दूसरे के गले लग कर रो रहे थे। मैं ईश्वर में विश्वास नहीं रखता, फिर भी मैंने अपने लिए माँ से प्रार्थना करने को कहा। न जाने ऐसा क्यों होता है, दूनिया मेरी समझ में नहीं आता।'

'माँ के पास गए थे तुम! तुमने उन्हें बता दिया?' दूनिया चिल्ला उठी। 'क्या सचमुच तुममें उन्हें बताने की ताकत थी।'

'नहीं, उन्हें नहीं बताया... साफ-साफ शब्दों में तो एकदम नहीं। लेकिन मेरा खयाल है कि वे बहुत कुछ समझती हैं। कल रात उन्होंने तुम्हें सोते से बड़बड़ाते सुना था। मुझे यकीन है कि उन्हें सच्चाई का कुछ-कुछ अंदाजा हो चुका है। मैंने शायद वहाँ जा कर ही गलती की। मालूम नहीं, मैं क्यों वहाँ गया था। मैं बहुत नीच हूँ, दूनिया।'

'नीच और फिर भी तकलीफ उठाने को तैयार हो! है न?'

'हाँ, तैयार हूँ। मैं अभी जा रहा हूँ, इसी वक्त। इस कलंक के मारे मैं तो डूब मरना चाहता था, लेकिन जब वहाँ नदी पर खड़ा था तो सोचा कि अभी तक अगर मैं अपने आपको इतना मजबूत समझता रहा तो मुझे कलंक से भी नहीं डरना चाहिए,' उसने जल्दी-जल्दी कहा। 'स्वाभिमान क्या यही है, दूनिया?'

'हाँ, रोद्या स्वाभिमान ही है।'

लग रहा था गोया रस्कोलनिकोव की बेजान आँखों में एक ज्वाला धधक उठी हो। वह इस बात से खुश लग रहा था कि उसमें अभी तक स्वाभिमान बाकी था।

'तुम यह तो नहीं समझती दूनिया, कि मैं महज पानी से डर गया?' उसने एक भयानक मुस्कराहट के साथ उसके चेहरे को गौर से देखते हुए पूछा।

'आह रोद्या, रहने दो अब!' दूनिया ने कड़वाहट के साथ चीख कर कहा।

अगले दो मिनट तक कोई नहीं बोला। वह सर झुकाए, जमीन पर नजरें गड़ाए बैठा रहा और दूनिया मेज के दूसरे छोर पर खड़ी दुख के साथ उसे देखती रही। अचानक वह उठ खड़ा हुआ : 'बहुत देर हो चुकी; मुझे अब चलना चाहिए। मैं इसी वक्त आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ। अलबत्ता मुझे नहीं मालूम कि मैं क्यों ऐसा कर रहा हूँ।'

दूनिया के गालों पर आँसू बह चले।

'रो रही हो दूनिया लेकिन मुझसे हाथ तो मिलाओगी न?'

'तुम्हें इसमें शक था?'

भाई के गले में बाँहें डाल कर दूनिया उससे लिपट गई।

'तुम्हारा आधा अपराध क्या बस इसी बात से धुल नहीं गया कि तुम तकलीफ उठाने को तैयार हो?' उसने रोते हुए कहा। रस्कोलनिकोव को कस कर उसने सीने से लगा लिया और उसे प्यार करने लगी।

'अपराध कैसा अपराध?' वह अचानक एक तरह के जुनून में बोला, 'यह कि मैंने एक घिनौनी, नुकसान पहुँचानेवाली, शैतान जूँ को मार डाला, एक सूदखोर खूसट बुढ़िया को एक ऐसी औरत को जो किसी का भला नहीं कर सकती थी ऐसी कि उसकी हत्या करने पर बीसियों पाप माफ कर दिए जाने चाहिए एक ऐसी औरत को, जिसने इस धरती पर गरीबों की जिंदगी को नरक बना दिया था... तुम इसे ही अपराध कहती हो मैं तो इसकी बात सोच भी नहीं रहा, और इसे धोने की बात भी नहीं सोच रहा। और उन लोगों का मतलब क्या है, जो चारों ओर से मुझ पर उँगली उठा रहे हैं : अपराध, अपराध! अब जा कर मुझे अपनी बुजदिली की सारी बेवकूफी साफ दिखाई दे रही है - अब जबकि मैंने इस बेकार के कलंक को स्वीकार कर लेने की ठान ली है! मैंने यह फैसला सिर्फ इसलिए किया है कि मैं एक कमीना और घटिया शख्स हूँ, और इसलिए भी कि शायद यही मेरे हित में हो, जैसा कि... जैसा कि पोर्फिरी ने कहा था!'

'कह क्या रहे हो रोद्या... तुमने खून बहाया है, कि नहीं?' दूनिया निराशा से चिल्लाई।

'जो सभी लोग बहाते हैं,' उसने लगभग पागलपन की हालत में कहा, 'जो बहाया जा रहा है, दुनिया में इतना बहाया गया है कि कई समुद्र भर जाएँ... जो शैंपेन की तरह उड़ेला जा रहा है, और जिसके इनाम के तौर पर लोगों को मंदिर में ले जा कर ताज पहनाया जाता है और फिर उन्हें मानवता का उद्धारक कहा जाता है। तुम कुछ और ध्यान से देखती और सोचती क्यों नहीं! मैं लोगों का भला करना चाहता था, और इस मूर्खता के बदले, जो कि सच पूछो तो ऐसी कोई मूर्खता थी भी नहीं, मैं नेकी के हजारों काम करने को तैयार था। यह पूरा विचार ऐसा कोई मूर्खता का विचार था भी नहीं, जैसा कि अब नाकाम होने के बाद लग रहा है। नाकाम होने के बाद हर बात मूर्खता लगती है! ...नादानी की यह हरकत करके मैं खुद को स्वतंत्र बनाने का पहला कदम उठाने की, आवश्यक साधन जुटाने की कोशिश कर रहा था, और बाद में चल कर जो तुलनात्मक दृष्टि से अपार लाभ होते, उनसे हर बात ठीक हो जाती। लेकिन मैं... मैं तो पहला कदम भी नहीं उठा सका, क्योंकि... क्योंकि मैं निकम्मा हूँ! इतनी-सी बात है बस! लेकिन इसके बावजूद मैं इस पूरी चीज को उस तरह नहीं देखूँगा जैसे तुम सब देखते हो। मैं अगर कामयाब हो जाता तो हर तरफ मेरी वाह-वाह होती, लेकिन अब... जेल में सड़ने दो इसे!'

'ऐसी बात नहीं है, रोद्या! तुम कह क्या रहे हो?'

'समझा! तो यह तरीका ठीक नहीं है! किसी की सौंदर्य प्रेम की भावना इससे संतुष्ट नहीं होती! खैर, मेरी समझ में यह नहीं आता कि लोगों को गोली से उड़ा देना या बाकायदा घेरेबंदी करके बमों से मार डालना ज्यादा इज्जतदार तरीका क्यों है अच्छा न लगने का डर ही बेबसी की पहली निशानी है... यह बात पहले कभी इतने साफ ढंग से मेरी समझ में नहीं आई थी जितनी कि अब आ रही है। यह बात भी अब जा कर मेरी समझ में नहीं के बराबर आ रही है कि मैंने जो कुछ किया वह अपराध क्यों है। इसका मुझे इतना पक्का यकीन कभी नहीं रहा जितना कि अब है...'

उसके पीले, मुरझाए हुए चेहरे पर लाली दौड़ रही थी। लेकिन अंतिम वाक्य कहते-कहते उसकी आँखें दूनिया की आँखों से चार हुईं। बहन की आँखों में इतनी पीड़ा थी कि वह सहम कर सँभल गया। उसने महसूस किया कि उन दोनों बेचारी औरतों को उसने यकीनन बहुत दुख पहुँचाया है। सही हो या गलत, उनके दुख का कारण निश्चित रूप से वही था।

'दूनिया, मेरी बहन! मैं अगर अपराधी हूँ तो मुझे माफ कर देना। (मैं वैसे अगर अपराधी हूँ तो मुझे माफ किया भी नहीं जा सकता।) अब मैं चलूँगा! झगड़े से अब कोई फायदा नहीं! वक्त हो गया है; अब जरा भी देर करना ठीक नहीं। मेहरबानी करके मेरा पीछा न करना। मुझे अभी कहीं और पहुँचना है... अच्छा यही होगा कि तुम फौरन जाओ और माँ के पास रहो। मेरी बात मानो; मैं तुमसे यह आखिरी और सबसे बड़ी गुजारिश कर रहा हूँ। उन्हें अकेला बिलकुल मत छोड़ना। अभी जब मैं उनके पास से आया तो वे इतनी परेशान हो गईं कि मैं नहीं समझता, वे इसे बर्दाश्त कर पाएँगी : वे या तो मर जाएँगी या पागल हो जाएँगी। इसलिए मेहरबानी करके उनके साथ ही रहना! रजुमीखिन तुम लोगों के साथ रहेगा; मैंने उससे कह दिया है... मेरे लिए रोना मत। मैं हत्यारा सही, लेकिन मैं जीवन भर साहसी और ईमानदार रहने की कोशिश करूँगा। हो सकता है तुम किसी दिन मेरी चर्चा सुनो। मैं तुम लोगों के माथे का कलंक नहीं बनूँगा, देख लेना। उन लोगों को मैं अब भी जता दूँगा! लेकिन अभी मैं चलता हूँ,' उसने जल्दी-जल्दी अपनी बात खत्म की। उसे दूनिया की आँखों में अपने शब्दों और वादों पर फिर एक अजीब-सा भाव दिखाई दिया। 'रो क्यों रही हो? इस तरह रोओ मत। मेरा कहा मानो, रोना क्या। हम लोग हमेशा के लिए तो अलग नहीं हो रहे! ...अरे हाँ, जरा ठहरो! मैं तो भूल ही गया...'

वह मेज के पास गया, एक मोटी-सी धूल भरी किताब उठाई, उसे खोला, और उसके पन्नों के बीच से हाथीदाँत पर जल-रंगों से बनी एक तस्वीर निकाली। किसी की छोटा-सी तस्वीर थी। यह उसकी मकान-मालकिन की बेटी की तस्वीर थी, जो बुखार से मर गई थी, उस अजीब लड़की की तस्वीर जो किसी मठ में जा कर रहना चाहती थी। एक मिनट तक वह उस भाव भरे, नाजुक चेहरे को गौर से देखता रहा, फिर उसने तस्वीर को चूम कर दूनिया को दे दिया।

'उससे मैं उसकी बहुत-सी बातें किया करता था, सिर्फ उससे,' उसने यादों में खो कर कहा। 'बाद में जो कुछ इतने भयानक ढंग से सामने आया, उसका बहुत-सा हिस्सा मैंने उसे दिल खोल कर बताया था। परेशान मत हो,' उसने दूनिया की ओर घूम कर कहा, 'वह भी तुम्हारी ही तरह मेरी बात से सहमत नहीं थी, और मुझे इस बात की खुशी है कि वह अब हम लोगों के बीच नहीं है। असल बात सिर्फ यह है कि अब हर चीज एकदम बदल जाएगी, दो टुकड़ों में टूट जाएगी,' वह एक बार फिर घोर अकेलेपन की मनोदशा में अचानक चिल्लाया। 'हर चीज, हर एक चीज... मैं क्या इसके लिए तैयार हूँ मैं क्या खुद ऐसा चाहता हूँ? मुझसे कहा जाता है कि मेरे लिए यह इम्तहान जरूरी है! लेकिन क्यों, ऐसे बेमतलब इम्तहान... भला क्यों? इनसे फायदा क्या है? बीस साल की बामशक्कत सजा काटने के बाद, जब मुसीबतों ने और मूर्खता ने मुझे कुचल कर रख दिया होगा और मैं बुढ़ापे से कमजोर हो जाऊँगा, तब क्या मैं जिंदगी को आज के मुकाबले में बेहतर समझ सकूँगा और तब मेरे पास जिंदा रहने के लिए बचा ही क्या होगा पर इस वक्त मैं इस तरह की जिंदगी बिताने को राजी क्यों हूँ उफ, आज सबेरे भोर में जब मैं नेवा किनारे खड़ा था, तब मुझे मालूम था कि मैं एक कमीना हूँ।'

आखिरकार वे दोनों घर के बाहर निकले। दूनिया के लिए यह सब बर्दाश्त करना काफी कठिन था, लेकिन वह उसे प्यार करती थी! वह चलते-चलते उससे दूर होती गई लेकिन कोई पचास कदम के बाद उसने मुड़ कर एक बार फिर उसे देखा। वह अब भी उसे नजर आ रहा था। सड़क के मोड़ पर पहुँच कर उसने भी पीछे घूम कर देखा। आखिरी बार उसकी आँखें मिलीं। लेकिन यह देख कर कि वह उसे देख रही है उसने बेचैन हो कर, बल्कि कुछ झुँझलाहट के साथ, हाथ के इशारे से उससे चले जाने को कहा। फिर वह तेजी से मोड़ पर मुड़ गया।

'यह मैंने बहुत ही बुरा किया, मैं जानता हूँ,' पलभर बाद ही दूनिया पर इस तरह झल्लाने पर खीझ कर उसने सोचा। 'लेकिन ये लोग मुझसे इतना प्यार ही क्यों करते हैं, जबकि मैं इस तरह के प्यार के काबिल भी नहीं हूँ... काश! मैं अकेला होता, कोई मुझसे प्यार न करता होता और मैंने भी कभी किसी से प्यार न किया होता! तब यह सब भी नहीं होता! लेकिन कहीं अगले पंद्रह-बीस साल में मेरे स्वभाव में इतना दब्बूपन तो नहीं आ जाएगा कि मैं लोगों के सामने गिड़गिड़ाता फिरूँ, और हर बात पर अपने को अपराधी कहने लगूँ हाँ, यही बात है! वे लोग मुझे इसीलिए साइबेरिया भेज रहे हैं। वे लोग यही तो चाहते हैं... देखो तो उन्हें! सड़क पर कैसे चूहों की तरह इधर से उधर भागे फिर रहे हैं... इनमें से हर कोई स्वभाव से ही बदमाश और अपराधी है, बल्कि उससे भी बदतर इनमें से हर कोई मूर्ख है! अब अगर मैं साइबेरिया भेजे जाने से बच भी गया, तो वे सब बहुत ही शरीफ बन कर सारा गुस्सा मेरे ऊपर उतारेंगे! उफ, कितनी नफरत है मुझे इन सबसे!'

वह सोचने लगा ऐसा कैसे हुआ कि वह विरोध किए बिना ही उन सबके सामने हीन बनने को, दंड भुगतने का अपमान सहने को तैयार हो गया लेकिन क्यों नहीं होना भी ऐसा ही चाहिए! क्या लगातार बीस साल का उत्पीड़न उसे कुचल कर नहीं रख देगा पानी भी तो पत्थर को घिस देता है। फिर उसके बाद किसलिए जीना, किसलिए? वह इस वक्त आत्मसमर्पण करने क्यों जा रहा था, जबकि वह जानता था कि ऐसा ही होगा, मानो यह सब कुछ किसी किताब में लिखा हुआ हो!

पिछली रात के बाद उसने अपने आप से शायद सौवीं बार यही सवाल पूछा था। फिर भी वह जा रहा था।

अपराध और दंड : (अध्याय 6-भाग 8)

उसने जब सोन्या के कमरे में कदम रखा तो अँधेरा हो चला था। दिनभर सोन्या बेचैनी से उसकी राह देखती आ रही थी। उसके साथ दूनिया भी उसकी राह देख रही थी -स्विद्रिगाइलोव की यह बात याद करके कि 'सोन्या को सब कुछ मालूम है', वह सबेरे ही वहाँ आ पहुँची थी। हम उन दोनों लड़कियों की बातचीत का या उनके आँसुओं का वर्णन नहीं करेंगे, न ही इसका कि उन दोनों में कितनी गहरी दोस्ती को गई। इस मुलाकात से दूनिया को कम-से-कम एक बात की तसल्ली तो हो गई थी, कि उसका भाई अकेला नहीं रहेगा। वह अपना अपराध स्वीकार करने सबसे पहले उसी के पास, सोन्या के पास, गया था। जब उसे इस बात की जरूरत महसूस हुई कि कोई इनसान उसके साथ हो तो उसको वह इनसान उसी की शक्ल में मिला था। लिहाजा वह जहाँ भी जाएगा, वह उसके साथ रहेगी। उसने यह बात पूछी तक नहीं : वह जानती थी कि ऐसा ही होगा। उसके मन में सोन्या के लिए एक तरह की श्रद्धा थी। शुरू में जब उसने सोन्या के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाई थी तो सोन्या के कुछ अटपटा भी महसूस हुआ था, यहाँ तक कि उसकी आँखें भर आई थीं। इसलिए कि वह अपने आपको इस लायक भी नहीं समझती थी कि आँख उठा कर दूनिया की ओर देख भी सके। जब रस्कोलनिकोव के कमरे में पहली बार उन दोनों की मुलाकात हुई थी, दूनिया का उस वक्त का चित्र उसके मन पर हमेशा के लिए, जब उसने लगाव और सम्मान के भाव से झुक कर उसका स्वागत किया था, अब वह उसके जीवन की सबसे सुंदर सबसे अंतरंग स्मृतियों के रूप में अंकित था।

आखिरकार दूनिया के सब्र ने जवाब दे दिया और वह अपने भाई के ही कमरे में उसकी राह देखने के लिए सोन्या को उसके अपने कमरे में अकेला छोड़ कर चली गई। उसे लग रहा था कि वह पहले वहीं जाएगा। जैसे ही सोन्या अकेली रह गई, यह विचार उसे सताने लगा कि वह आत्महत्या कर लेगा। इसका डर दूनिया को भी था। लेकिन दिनभर वे दोनों एक-दूसरे को तरह-तरह के तर्कों के सहारे ढाँढ़स बँधाती रही थीं कि वह ऐसा नहीं कर सकता। लिहाजा जब तक वे दोनों साथ रहीं, तब तक वे बहुत ज्यादा चिंतित नहीं थीं। लेकिन जैसे ही वे एक-दूसरे से अलग हुईं, दोनों में से कोई भी इसके अलावा कुछ और सोच भी नहीं पा रही थी। सोन्या इस बात को भूल ही नहीं पा रही थी कि स्विद्रिगाइलोव ने कल उससे कहा था कि रस्कोलनिकोव के सामने दो ही रास्ते थे -साइबेरिया का या... इसके अलावा वह यह भी जानती थी कि वह कितना अहंकारी, घमंडी, स्वाभिमानी और अविश्वासी था। 'कहीं ऐसा तो नहीं कि बुजदिली और मौत का डर ही ऐसी चीजें हैं जो उसे जिंदा रख सकती हैं...' आखिरकार उसने घोर निराशा में डूब कर सोचा। इसी बीच सूरज डूब चला था। वह उदास मन से खिड़की के सामने खड़ी बाहर देख रही थी, लेकिन उसे बस सामने के घर की बे-पुती दीवार ही दिखाई दे रही थी। आखिरकार जब उसे उस अभागे की मौत का लगभग पूरा यकीन होने लगा था, तभी उसने उसके कमरे में कदम रखा।

सोन्या के मुँह से खुशी की चीख निकल गई। लेकिन इसके चेहरे को गौर से देखने के बाद उसका रंग अचानक पीला पड़ गया।

'लो,' रस्कोलनिकोव ने मुस्करा कर कहा, 'मैं तुम्हारी सलीबें लेने आ गया, सोन्या। तुम्हीं ने तो मुझसे चौराहे पर जाने को कहा था... इसलिए अब जबकि उसका वक्त आ गया है, तुम डर क्यों रही हो?'

सोन्या ने उसे हैरत से देखा। उसका लहजा कुछ अजीब-सा लगा। सोन्या की रीढ़ में सिहरन की एक लहर दौड़ गई। लेकिन पलभर बाद ही उसने महसूस किया कि न उसका लहजा सच्चा था, और न उसके शब्द। वह उससे बातें भी आँखें चुरा कर कर रहा था और कोशिश कर रहा था कि सीधे उसके चेहरे की ओर न देखना पड़े।

'देखो सोन्या, मैं तो इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि यह रास्ता शायद मेरे लिए ज्यादा फायदेमंद रहे। अलबत्ता एक बात है... लेकिन वह एक लंबी कहानी है और उसकी चर्चा से अब कोई खास फायदा भी नहीं। जानती हो, मुझे किस बात पर गुस्सा आ रहा है... मुझे इस बात पर झुँझलाहट हो रही है कि सारे बेवकूफ जंगली जानवर मुझे घेर कर खड़े हो जाएँगे, मुझे घूरेंगे, मुझसे अपने बेवकूफी भरे सवाल पूछेंगे, जिनका जवाब मुझे देना ही पड़ेगा - मुझ पर उँगलियाँ उठाएँगे... उफ! जानती हो, मैं पोर्फिरी के पास नहीं जा रहा हूँ; मैं उससे बेजार हो चुका हूँ। मैं समझता हूँ, बेहतर तो यही रहेगा कि मैं अपने पुराने दोस्त, उस लेफ्टिनेंट बारूदी के पास चला जाऊँ। कैसे चकराएगा वह मुझे देख कर! कैसी सनसनी फैलेगी! लेकिन मुझे शांत रहना होगा। मैं इधर कुछ दिनों से चिड़चिड़ा हो रहा हूँ। जानती हो, अभी-अभी मैंने अपनी बहन को लगभग मुक्का दिखा कर इसलिए धमकाया कि उसने आखिरी बार मुड़ कर मेरी ओर देखा था। ऐसी हालत में रहना ही कितना भयानक है! उफ, कितना पतन हो चुका है मेरा! तो लाओ, कहाँ हैं तुम्हारी सलीबें...'

लग रहा था वह अपने होश में नहीं है। वह किसी एक जगह मिनट भर शांत खड़ा भी नहीं रह सकता था और न ही किसी बात पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकता था। उसके विचार एक-दूसरे को दबोच कर आगे निकलते जा रहे थे। वह ऐसी बातें कह रहा था जो उसे नहीं कहनी चाहिए थीं। हाथ थोड़े काँप रहे थे।

सोन्या ने चुपचाप एक दराज में से दो सलीबें निकालीं। एक साइप्रेस की लकड़ी की और दूसरी ताँबे की। उसने उँगलियों से अपने सीने पर सलीब का निशान बनाया, फिर उसके सीने पर सलीब का निशान बनाया, और साइप्रेस की लकड़ी का सलीब उसे पहना दिया।

'तो यह प्रतीक है मेरे सलीब उठाने का हा-हा! जैसे मैंने अभी तक काफी मुसीबतें नहीं झेली हैं! साइप्रेस की लकड़ी का सलीब - जैसी कि आम लोग पहनते हैं। ताँबेवाली लिजावेता की है, और उसे तुम अपने लिए रखोगी! लाओ, देखूँ तो जरा। यानी कि इसे वह पहने हुए थी... उस वक्त इस वक्त मुझे ऐसी ही दो चीजों की याद आ रही है - एक चाँदी का सलीब और एक छोटी-सी मूर्ति। उस दिन उन्हें मैंने उस बुढ़िया की लाश पर फेंक दिया था। दरअसल इस वक्त तो मुझे उन्हें ही पहनना चाहिए था... लेकिन मैं बकवास कर रहा हूँ। असल बात मुझे नहीं भूलनी चाहिए। शायद मैं पूरी तरह खब्तुलहवास होता जा रहा हूँ! देखो सोन्या, मैं तुम्हें पेशगी बताने आया हूँ ताकि तुम्हें मालूम रहे... बस इतना ही कहना है मुझे... मैं इसीलिए आया था। (मैं सच-सच बता दूँ, मैंने सोचा था कि वैसे कुछ और भी कहूँगा।) लेकिन तुम तो खुद ही चाहती थीं कि मैं चला जाऊँ। तो मैं जेल भेजा जाऊँगा, और तुम जो चाहती थीं वह पूरा हो जाएगा। तुम भी रो रही हो... रहने भी दो! रोओ मत। उफ कितनी नाकाबिले-बर्दाश्त बात है!'

लेकिन उसकी भावनाएँ उबल पड़ीं; सोन्या को देख कर उसका दिल खून के आँसू रो उठा। 'आखिर क्यों,' उसने सोचा, 'वह आखिर इतनी परेशान क्यों है? उसका मैं कौन हूँ? भला वह रो क्यों रही है? मेरी माँ या दूनिया की तरह मुझसे विदा क्यों ले रही है? आगे चल कर वही तो मेरी देखभाल करेगी!'

'अपने सीने पर सलीब का निशान बना कर कम-से-कम एक बार तो प्रार्थना कर लो,' सोन्या ने काँपती हुई, डरी-डरी आवाज में उससे विनती की।

'क्यों नहीं, जरूर, तुम जितनी बार कहो! और बड़ी ईमानदारी से सोन्या, सच्चे दिल से...'

दरअसल वह कुछ और ही कहना चाहता था।

उसने अपने सीने पर सलीब का निशान कई बार बनाया। सोन्या ने झपट कर शाल उठा ली और अपने सर पर डाल ली। हरे रंग की ऊनी शाल थी-शायद वही जिसका जिक्र मार्मेलादोव ने रस्कोलनिकोव से किया था, 'उस परिवार की शाल।' यह विचार बिजली की तरह रस्कोलनिकोव के दिमाग में कौंधा, लेकिन उसने कुछ पूछा नहीं। सचमुच वह खुद ही महसूस करने लगा था कि वह कितना अनमना और किसी वजह से काफी चिंतित रहने लगा था। वह डर गया। अचानक उसके दिमाग में यह बात भी आई कि सोन्या उसके साथ जाने का इरादा रखती है।

'कहाँ? तुम कहाँ जा रही हो? यहीं रहो तुम, मैं अकेला ही जाऊँगा!' उसने झुँझला कर डूबते दिल के साथ कहा और जोश में आ कर दरवाजे की ओर लपका। 'मैं वहाँ पूरी फौज ले जा कर क्या करूँगा...' बाहर जाते-जाते वह बुदबुदाया।

सोन्या कमरे के बीच में खड़ी रही। रस्कोलनिकोव ने उससे विदा तक नहीं ली। वह गोया उसे भूल चुका था। एक कड़वाहट में डूबी विद्रोही और शंका उसे झिंझोड़ रही थी।

'मैं ठीक कर रहा हूँ क्या? यह सब मुझे करना चाहिए क्या?' सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए उसके मन में ये सवाल उठे। 'क्यों न मैं यहीं रुक कर सारा किस्सा निबटा लूँ... और न जाऊँ?'

लेकिन इसके बावजूद वह गया। अचानक यह विश्वास उसके मन में बैठ चुका था कि सवालों का समय बीत चुका है। बाहर सड़क पर पहुँच कर उसे याद आया कि उसने सोन्या से विदाई का सलाम भी नहीं कहा था और उसे हरी शाल ओढ़े कमरे के बीच में खड़ा छोड़ आया था। बेचारी की हिलने तक की हिम्मत नहीं हुई थी क्योंकि वह उस पर चीख पड़ा था। यह याद आते ही वह पल भर को ठिठका। लेकिन उसी पल उसके दिमाग में एक और विचार उठा। लगा कि यह विचार उस पर अंतिम और घातक वार करने की ताक में दुबका बैठा था।

'भला इस वक्त मैं उससे मिलने गया ही क्यों? मैंने उससे कहा कि मैं काम से आया हूँ। भला कौन-सा काम? उससे काम तो मुझे कोई भी नहीं था! यह बताने के लिए कि मैं जा रहा हूँ... क्यों? यह जरूरी था क्या? क्या मैं उसे प्यार करता हूँ? एकदम नहीं! अभी तो मैं उसे कुत्ते की तरह दुतकार कर आया हूँ। या मैं सचमुच ही वे सलीबें लेना चाहता था उफ, मैं भी कितना पतित हो चुका हूँ! नहीं! मुझे जरूरत थी तो उसके आँसुओं की। मैं उसको दहशत में गिरफ्तार देखना चाहता था; यह देखना चाहता था कि उसका दिल कैसे दुखता है और कैसे खून के आँसू रोता है! मुझे किसी ऐसी चीज की जरूरत थी, जिससे मैं चिपक सकूँ ताकि मुझे कुछ और मोहलत मिल सके, ताकि मैं किसी इनसान को देख सकूँ! और मुझे अपने आप पर इतना भरोसा था! मैं अपने आपको भल समझता क्या था। मैं हूँ एक भिखारी, एक नीच अभागा जो किसी काम का नहीं है, जो कमीना है।'

वह नहर के बंध के किनारे-किनारे चला जा रहा था। उसे अब बहुत दूर नहीं जाना था। लेकिन पुल पर पहुँच कर वह एक पल के लिए रुका और इरादा बदल कर, पुल पार करके भूसामंडी पहुँच गया।

वह उत्सुकता से चारों ओर देख रहा था। कभी दाहिनी ओर देखता, कभी बाईं ओर। रास्ते में पड़नेवाली हर चीज को वह गौर से देखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन किसी भी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा था। हर चीज उसकी पकड़ से निकल जाती थी। 'हफ्तेभर में या महीनेभर में मुझे जेल की गाड़ी में बिठा कर इसी पुल से हो कर कहीं ले जाया जाएगा... तब मैं इस नहर को किस तरह देखूँगा... क्या यह सब मुझे याद आएगा?' उसके दिमाग में यह विचार बिजली की तरह कौंधा। 'मिसाल के लिए, वह साइनबोर्ड। उन अक्षरों को उस वक्त मैं किस तरह पढूँगा उस पर लिखा है : कंपनी। अगर मैं इस अक्षर क को याद कर लूँ, और महीनेभर बाद इसी को, इसी अक्षर क को, फिर देखूँ तो उस वक्त इसे मैं किस तरह देखूँगा मैं तब क्या महसूस कर रहा हूँगा और क्या सोच रहा हूँगा... हे भगवान, यह सब कुछ कितना तिरस्कार योग्य लगेगा। इस वक्त की ये सारे... अंदेशे कैसे लगेंगे। अलबत्ता यह सब काफी दिलचस्प है... एक तरह से (हा-हा-हा! जिन चीजों के बारे में मैं इस वक्त सोच रहा हूँ) ...मैं भी एक बच्चे की तरह हूँ - अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बन रहा हूँ। लेकिन अपने आपको मैं ताना किस बात का दे रहा हूँ? हे भगवान, ये लोग धक्का क्यों देते हैं! उस मोटे ने - शायद जर्मन है - अभी मुझे धक्का दिया - उसे मालूम है क्या कि उसने किसे धक्का दिया? बच्चे के साथ उस किसान भिखारिन को देखो, शायद वह मुझे अपने से ज्यादा भाग्यशाली समझ रही होगी। इसे कुछ दे क्यों न दूँ, बस यह देखने के लिए कि वह करती क्या है अच्छा, यह रहा पाँच कोपेक का सिक्का मेरी जेब में। समझ में नहीं आता कि यहाँ पहुँचा कैसे... लो माई, यह लो!'

'जुग-जुग जियो साहब, भगवान तुम्हारा भला करे!' भिखारिन की काँपती आवाज सुनाई पड़ी।

वह भूसामंडी में गया। उसे लोगों के बीच घिरे होने से चिढ़ थी... सख्त चिढ़। लेकिन इस वक्त वह जान-बूझ कर उसी जगह गया जहाँ सबसे ज्यादा भीड़ थी। तनहाई पाने के लिए वह सारी दुनिया की दौलत लुटा सकता था, लेकिन अभी वह यही महसूस कर रहा था कि वह एक मिनट के लिए भी तनहाई को झेल नहीं सकता था। भीड़ में एक आदमी, शराब के नशे में चूर, अपनी हरकतों से सबका ध्यान अपनी ओर खींचे हुए था। वह नाचने की कोशिश कर रहा था, लेकिन हर बार जब वह ठुमका लगाने के लिए पाँव चलता था, तो धड़ाम से गिर पड़ता था। लोग उसके चारों ओर भीड़ लगाए खड़े थे। रस्कोलनिकोव भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा, कई मिनट तक उस शराबी को देखता रहा, और अचानक जरा-सा हँसा। एक ही पल बाद वह उसके बारे में सब कुछ भूल चुका था और वह उसे दिखाई भी नहीं दे रहा था, हालाँकि वह अपनी नजरें उसी पर जमाए हुए था । आखिरकार वह वहाँ से चला गया... उसे यह भी याद नहीं था कि वह कहाँ था। लेकिन जब वह चौक के बीच में पहुँचा तो यकबयक उसे एक जोरदार जज्बे ने आ दबोचा और पूरे शरीर पर उसकी आत्मा पर छा गया।

अचानक उसे सोन्या के शब्द याद आए : 'जाओ, चौराहे पर खड़े हो जाओ, लोगों के आगे सर झुकाओ, धरती को चूमो क्योंकि तुमने उसे अपवित्र किया है और फिर सारी दुनिया के सामने चीख कर कहो कि मैं हत्यारा हूँ!' ये शब्द याद आते ही वह सर से पाँव तक काँप उठा। तब वह अपनी निराशा और अपनी तनहाई की भावना के, उन तमाम दिनों के लेकिन खास तौर पर पिछले कुछ घंटों की उस गहरी चिंता के भारी बोझ के नीचे इस कदर दब चुका था कि उसने झपट कर इस नए और अदम्य जज्बे की पनाह ले ली। इस जज्बे ने उसे इस तरह यकायक दबोच लिया था जैसे उसे कोई दौरा पड़ा हो। यह उसकी आत्मा में एक चिनगारी की तरह भड़का और फिर एक शोले की तरह उसके पूरे शरीर में छा गया। उसके अंदर हर चीज अचानक पिघल गई और उसकी आँखों में आँसू उबल पड़े। वह जहाँ खड़ा था, वहीं जमीन पर धड़ाम हो गया...

उसने चौक के बीच घुटनों के बल बैठ कर धरती पर सर झुकाया और आनंद और मस्ती में आ कर वहाँ की गंदी धरती को चूम लिया। फिर वह उठा और एक बार फिर सर झुकाया।

'पिए हुए है,' पास खड़े एक लड़के ने कहा।

लोग कहकहे मार कर हँस पड़े।

'यरूशलम जा रहा है, छोकरो, और अपने बच्चों से और अपने देश से विदा ले रहा है। सारी दुनिया के आगे सर झुका रहा है और राजधानी सेंट पीतर्सबर्ग को, उसकी धरती को चूम रहा है,' एक शराबी ने मस्ती में आ कर टुकड़ा लगाया।

'अभी तो कमउम्र नौजवान ही है!' कोई तीसरा बोला।

'लगता तो किसी शरीफ घर का है,' किसी ने गंभीर स्वर में कहा।

'कोई नहीं बता सकता आजकल कि शरीफ घर का कौन है और कौन नहीं है।'

इन सब टिप्पणियों और वक्तव्यों को सुन कर रस्कोलनिकोव रुक गया, और उसके मुँह से 'मैं हत्यारा हूँ' के जो शब्द निकलनेवाले थे वे उसके होठों तक आ कर ही दम तोड़ बैठे। फिर भी वह इन टिप्पणियों को सुन कर शांत रहा, और अपने चारों ओर देखे बिना ही वह थाने की ओर एक गली में मुड़ गया। रास्ते में उसकी नजर किसी ऐसी चीज पर पड़ी जिससे उसे कोई हैरानी नहीं हुई। उसे पहले से ही एहसास था कि ऐसा ही होगा। भूसामंडी में जब वह दूसरी बार धरती पर झुका था तब उसने बाईं ओर निगाह जाने पर देखा था कि सोन्या कोई पचास कदम पर खड़ी थी और चौक में बनी लकड़ी की झोंपड़ियों में से एक की आड़ ले कर उसकी नजरों से छिपने की कोशिश कर रही थी। तो वह उसके इस पूरे दुखदायी रास्ते में उसके साथ-साथ रही! उसी पल रस्कोलनिकोव ने महसूस किया और समझ लिया कि सोन्या हमेशा उसके साथ रहेगी, कि उसकी किस्मत उसे दुनिया के जिस कोने में भी ले जाए, सोन्या उसके पीछे-पीछे आएगी। उसका दिल मसोस उठा... लेकिन - अब वह अपनी मंजिल पर पहुँच चुका था...

काफी तेजी से चलता हुआ वह दालान में जा पहुँचा, जहाँ से उसे सीढ़ियाँ चढ़ कर तीसरी मंजिल पर जाना था। 'ऊपर जाने में तो और भी वक्त लगेगा,' उसने सोचा। आमतौर पर उसे लग रहा था कि वह जानलेवा पल अभी बहुत दूर है, कि अभी उसके पास बहुत सारा वक्त है, और यह कि इसी बीच वह सारे किस्से पर सोच-विचार करके अपना इरादा बदल सकेगा।

फिर वही कचरा, चक्करदार सीढ़ियों पर फिर वही अंडों के छिलके, फिर वही फ्लैटों के पूरे खुले हुए दरवाजे, फिर वही रसोईघर जिनसे खाना पकाने की बदबू और भभक आ रही थी। रस्कोलनिकोव उस दिन के बाद से यहाँ नहीं आया था। उसकी टाँगें सुन्न पड़ गईं और जवाब देने लगीं। लेकिन वह आगे बढ़ता रहा। दम लेने के लिए, अपने आपको सँभालने के लिए, मर्द की तरह अंदर जाने के लिए वह एक पल को रुका। 'लेकिन क्यों? किसलिए?' यह महसूस करके कि वह किसलिए रुका था, उसने अचानक सोचा। 'अगर मुझे जहर का प्याला ही पीना है, तो क्या फर्क पड़ता है जितनी ही दुर्गति हो, उतना ही अच्छा।' एक पल के लिए लेफ्टिनेंट बारूदी की शक्ल बिजली की तरह उसके दिमाग में उभरी और गायब हो गई। 'क्या मुझे सचमुच उसके पास जाना चाहिए? क्या मैं किसी और के पास नहीं जा सकता मिसाल के लिए, पुलिस सुपरिंटेंडेंट के पास क्यों न मैं अभी लौट पड़ूँ और सीधा पुलिस सुपरिंटेंडेंट के घर चला जाऊँ... कम-से-कम, वहाँ सब कुछ दीवारों के पीछे तो होगा... नहीं! बारूदी... लेफ्टिनेंट बारूदी के पास! अगर उसे पीना ही है, तो यह सारा जहर एक ही घूँट में पीना होगा...'

कातर भाव से उसने थाने का दरवाजा खोला। उसे ठीक से पता भी नहीं था कि वह क्या कर रहा है। उस वक्त वहाँ कम ही लोग थे - बस एक दरबान और एक मजदूर। चौकीदार ने अपनी ओट के पीछे से झाँक कर भी नहीं देखा। रस्कोलनिकोव अगले कमरे में चला गया। 'शायद अब भी मौका है कि मैं कुछ न कहूँ,' वह सोचता रहा। फ्राककोट पहने वहाँ का एक क्लर्क यानी कि जो पुलिस की वर्दी में नहीं, मेज पर बैठा कुछ लिख रहा था। कमरे में कोने में एक दूसरा क्लर्क अपनी मेज पर बैठने जा रहा था। जमेतोव वहाँ नहीं था, और जाहिर है पुलिस सुपरिटेंडेंट भी वहाँ नहीं था।

'कोई नहीं है क्या?' रस्कोलनिकोव ने उस क्लर्क से पूछा जो मेज पर बैठा कुछ लिख रहा था।

'मिलना किससे है?'

'आ-ह! किसी ने उसे कभी सुना नहीं, कभी देखा नहीं, लेकिन रूसी अंतरात्मा ...परियों की कहानी में यह बात कैसे कही गई है ...मैं भूल गया!'

'कैसे हो तुम?' एक जानी-पहचानी आवाज ने अचानक जोर से कहा।

रस्कोलनिकोव चौंका। लेफ्टिनेंट बारूदी उसके सामने खड़ा था। वह तीसरे कमरे से निकल कर वहाँ आया था। 'इसे होनी कहते हैं!' रस्कोलनिकोव ने सोचा। 'यह यहाँ क्यों है?'

'तुम? क्या काम है?' सहायक सुपरिंटेंडेंट ऊँची आवाज में बोला। (वह बहुत जोश में मालूम होता था; शायद उसने थोड़ा-सी पी हुई भी थी।) 'अगर किसी काम से आए हो, तब तो अभी समय भी नहीं हुआ। मैं तो यहाँ इत्तफाक से ही मौजूद हूँ... लेकिन मैं खुशी से कोई भी मदद करने को तैयार हूँ। एक बात माननी पड़ेगी, मैं... क्या था... क्या था माफ करना, मैं...'

'मैं रस्कोलनिकोव...'

'जानता हूँ, तुम रस्कोलनिकोव हो! तुम समझे कि मैं तुम्हें भूल गया यह न समझना कि मैं ऐसा हूँ... आँ... रोदिओन रो... रो... रोदिओनिच, यही नाम है न?'

'रोदिओन रोमानोविच।'

'अरे हाँ, रोदिओन रोमानोविच... रोदिओन रोमानोविच! यही मैं याद करने की कोशिश कर रहा था! जानते हो, मैं तुम्हारे बारे में जाँच भी कर चुका। सचमुच मुझे बेहद अफसोस है कि तब हम-तुम... आँ... बात मुझे बाद में समझाई गई, मेरा मतलब है, मैंने पता लगाया कि तुम एक नौजवान लेखक हो... और विद्वान भी हो... मैं समझता हूँ, अभी शुरू ही कर रहे हो... भगवान जानता है, कौन-सा साहित्यकार... आँ... विद्वान ऐसा है, जिसने शुरू-शुरू में कोई ऐसा काम न किया हो! तो साहब, मेरी बीवी और मैं साहित्य को इज्जत की नजर से देखते हैं और मेरी बीवी पर तो उसका काफी जोश सवार रहता है! ...साहित्य और कला की! असल शर्त तो बस यह है साहब कि आदमी शरीफ घर का हो, बाकी सब कुछ तो बड़ी आसानी से प्रतिभा, विद्या बुद्धि और मेधा से हासिल किया जा सकता है! मेरा मतलब... मिसाल के लिए हैट को ही ले लीजिए। हैट क्या चीज है कुछ भी नहीं। आप जिस हैट का भी नाम लें, मैं जिम्मरमान के यहाँ से खरीद सकता हूँ। लेकिन जो चीज हैट के नीचे होती है, साहब हैट जिस चीज को ढक कर और सुरक्षित रखता है, उसे मैं नहीं खरीद सकता... सच बताऊँ, मैं तुम्हारे यहाँ आ कर तुमसे माफी भी माँगना चाहता था, लेकिन... आँ... सोचा कि शायद तुम... आँ... लेकिन, भगवान जाने, मैं तुमसे यह क्यों नहीं पूछता कि तुम भला किसलिए आए हो... सचमुच तुम्हें कुछ चाहिए? मैंने सुना है कि तुम्हारे परिवारवाले तुमसे मिलने आए हैं।'

'जी हाँ, मेरी माँ और बहन।'

'तुम्हारी बहन से मिलने का सौभाग्य मुझे मिल चुका है... बहुत ही सुशील, पढ़ी-लिखी और खूबसूरत लड़की है। सच कहता हूँ, मुझे बेहद अफसोस है कि उस दिन हमारी झड़प हुई। बहुत ही अजीबोगरीब बात थी! और फिर मैं... आँ... तुम्हें गश आ जाने की वजह से एक अजीब-सी बात मेरे दिमाग में बैठ गई और मैं तुम्हें कुछ... आँ... बहरहाल, बाद में सारी गुत्थियाँ काफी अच्छी तरह सुलझ गईं। जुनून और कट्टरता! तुम्हारा गुस्सा मैं पूरी तरह समझ रहा हूँ। परिवार के लोगों के आने की वजह से पता बदलवाने तो नहीं आए?'

'न-हीं, मैं तो यूँ ही आ गया था... मैं पूछने आया था... सोचा था, जमेतोव शायद यहीं हो।'

'ओह, तो यह बात है! तुम्हारी और उसकी दोस्ती हो गई है, है न मैंने सुना था इसके बारे में। मगर जमेतोव तो यहाँ नहीं है। तुम जरा देर से आए। मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि वह अब हमारे यहाँ काम नहीं करता। कल से उसने यहाँ काम करना छोड़ दिया। उसने अपनी बदली करवा ली... और मुझे अफसोस के साथ यह भी कहना पड़ रहा है कि जाने से पहले वह जम कर यहाँ सबसे लड़ा... एक ही बौडम आदमी था, और कुछ नहीं। पर एक बात है, आदमी था होनहार... लेकिन बस! बस हमारे आजकल के इन होनहार नौजवानों का कोई क्या करे! सुना है वह किसी इम्तहान में बैठना चाहता है; लेकिन मैं समझता हूँ कि वह इसकी चर्चा कर-करके सबका दिमाग चाटेगा, इसके बारे में डींग हाँकता फिरेगा और फिर यहीं उसका इम्तहान खत्म हो जाएगा। हाँ... तुम्हारी या तुम्हारे मिस्टर रजुमीखिन दोस्त की बात दूसरी है! तुम लोगों को आगे चल कर विद्वानों का जीवन बिताना है... एक या दो बार नाकाम हो जाने से यकीनन तुम लोगों की हिम्मत नहीं टूटेगी! तुम लोगों के लिए जिंदगी की... आँ... ये सारी सजावटी चीजें गोया कि हैं ही नहीं कि नहीं, जिसे कहते हैं तुम लोग जोगी हो, साधु-संन्यासी हो! ...तुम्हें तो बस इसकी फिक्र रहती है कि किताब हो, कान पर कलम हो, और शोध का काम हो, यहीं तो तुम्हारी आत्मा को उड़ानें भरने का मौका मिलता है! मैं खुद थोड़ा-थोड़ा... तुमने लिविंगस्टन का यात्रा-वृत्तांत पढ़ा है?'

'नहीं।'

'मैंने पढ़ा है। मगर आजकल बहुत से शून्यवादी घूमते रहते हैं। लेकिन, जाहिर है, और उम्मीद ही क्या की जाए मैं तुमसे कहता हूँ, हम लोग जिस तरह के जमाने में रहते हैं उसे देखो। फिर भी, मैं तुमसे एकदम साफ कहता हूँ... आँ ...तुम खुद तो शून्यवादी नहीं हो? मुझे साफ-साफ बता दो, एकदम साफ-साफ!'

'न-हीं...'

'नहीं न! तो देखो, तुम मुझसे खुल कर बातें कर सकते हो। किसी तरह का कोई संकोच महसूस करने की जरूरत नहीं, मुझसे वैसे ही बातें करो जैसे खुद से करते। नौकरी एक चीज है और... तुम समझे, मैं कहने जा रहा हूँ कि दोस्ती है न नहीं, यह बात नहीं है! नहीं, दोस्ती नहीं, बल्कि इनसान की, एक नागरिक की भावना, इनसानियत की भावना और ईश्वर की लगन। भले ही मैं अफसर की हैसियत से ड्यूटी पर हूँ, लेकिन मुझे हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि मैं भी एक इनसान, एक नागरिक हूँ, और मुझे अपने हर काम के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। तुमने अभी-अभी जमेतोव का जिक्र किया। तो जमेतोव के बारे में तो यकीन के साथ कहा जा सकता है कि वह किसी बदनाम अड्डे में शैंपेन या रूसी शराब पीते वक्त फ्रांसीसी ढंग से स्कैंडल जरूर खड़ा करेगा... यह जमेतोव है ही ऐसा! लेकिन मैं, तो जनाब हमेशा, समझ लीजिए, अपने फर्ज का भी पाबंद रहा हूँ और मेरी भावनाएँ भी हमेशा बहुत ऊँचे दर्जे की रही हैं। इसके अलावा मेरी कुछ हैसियत भी है, मेरे पास ओहदा है और नौकरी है! बीवी-बच्चे हैं। मैं एक इनसान की हैसियत से और एक नागरिक की हैसियत से अपना फर्ज निभा रहा हूँ, लेकिन क्या मैं पूछ सकता हूँ कि वह कौन है? मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि शिक्षा ने तुम्हारी भावनाओं को निखारा है। इसके अलावा इधर हाल में ये दाइयाँ भी तेजी से बढ़ती जा रही हैं।'

रस्कोलनिकोव ने जिज्ञासा से अपनी भौहें सिकोड़ीं। सहायक सुपरिंटेंडेंट के मुँह से-जाहिर था कि अभी वह खाना खा कर आ रहा था - शब्द इस तरह धाराप्रवाह निकल रहे थे कि रस्कोलनिकोव को ज्यादातर खोखली आवाजों जैसे लग रहे थे। लेकिन उनमें से कुछ का मतलब थोड़ा-थोड़ा उसकी समझ में जरूर आया। उसने अफसर को सवालिया नजरों से देखा क्योंकि वह समझ नहीं पा रहा था कि वह कहना क्या चाहता था।

'मैं छोटे बालोंवाली उन नौजवान लड़कियों की बातें कर रहा हूँ,' बातूनी सहायक बोलता रहा, 'मैंने उनको दाइयाँ नाम दिया हुआ है, और मेरी समझ में यह नाम बेहद मुनासिब है। ही-ही! वे अकादमी में भरती हो जाती हैं और शरीर-रचना विज्ञान पढ़ती हैं। तुम क्या सचमुच यह समझते हो कि मैं कभी बीमार पड़ा तो अपना इलाज कराने के लिए इनमें से किसी को बुलाऊँगा... ही-ही!'

सहायक सुपरिंटेंडेंट दिल खोल कर हँसा। अपने इन छोटे-छोटे मजाकों पर उसे खुद ही बहुत मजा आ रहा था।

'देखो, मैं मानता हूँ कि ज्ञान की प्यास कभी नहीं बुझती; सो थोड़ा-सा ज्ञान प्राप्त करके ही संतोष लेना चाहिए! उसका दुरुपयोग क्यों किया जाए? इज्जतदारों को बेइज्जत क्यों किया जाए, जैसा कि वह लुच्चा जमेतोव करता है मैं पूछता हूँ जनाब, उसने क्यों भला मेरी बेइज्जती की? फिर आए दिन ये खुदकुशी के मामले भी आते रहते हैं... तुम सोच भी नहीं सकते कि इधर हाल में ये कितने बढ़ गए हैं। ये लोग अपनी आखिरी कौड़ी तक फूँक देते हैं और फिर अपने भेजे में गोली मार कर मर जाते हैं। लड़के, लड़कियाँ और बूढ़े, सभी... आज सबेरे ही इसी तरह का एक मामला हमारे सामने आया। एक साहब अभी कुछ ही अरसा हुआ इस शहर में आए थे; निल पेत्रोविच!' उसने दूसरे कमरे में किसी को पुकार कर पूछा, 'निल पेत्रोविच, क्या नाम था उस बंदे का जिन्होंने आज सबेरे पीतर्सबर्गस्की द्वीप में अपने को गोली मार ली थी?'

'स्विद्रिगाइलोव,' किसी ने दूसरे कमरे से लापरवाही के लहजे में, भर्राई हुई आवाज में जवाब दिया।

रस्कोलनिकोव चौंक उठा।

'स्विद्रिगाइलोव!' वह चीखा। 'स्विद्रिगाइलोव ने अपने को गोली मार ली!'

'क्यों?' तुम इस स्विद्रिगाइलोव को जानते थे क्या?

'हाँ... मैं जानता था... वे यहाँ कुछ ही अरसा हुआ आए थे...'

'ठीक वही। मैं जानता हूँ, वे यहाँ कुछ दिन पहले ही आए थे। उनकी बीवी अभी हाल ही में मरी हैं। सुना है, बहुत बदचलन आदमी थे, और अब अपने को गोली मार ली। सो भी ऐसी शर्मनाक हालत में कि कोई सोच भी नहीं सकता... अपनी नोटबुक में एक छोटा-सा संदेश लिख कर छोड़ गए हैं कि जब मरने जा रहे थे तो पूरी तरह होश में थे। उन्होंने किसी को अपनी मौत के लिए दोषी भी नहीं ठहराया है। सुना है बहुत पैसेवाले आदमी थे। तुम उन्हें कहाँ से जानते हो?'

'मैं... जानता था... मेरी बहन उसके यहाँ बच्चों को पढ़ाने का काम करती थी...'

'खूब! क्या कहने! तब तो हमें तुम उसके बारे में कुछ बता सकते हो। तुम्हें किसी तरह का कोई शक तो नहीं था?'

'मैं उनसे कल ही मिला था... वे... शराब पी रहे थे... मुझे तब इस तरह का कोई खयाल भी नहीं था।'

रस्कोलनिकोव को लगा, कोई भारी बोझ उसके ऊपर आ गिरा है और उसने उसे जमीन पर गिरा कर बुरी तरह दबा रखा है।

'लो, तुम्हारा रंग फिर उड़ गया। यहाँ शायद घुटन काफी है...'

'जी हाँ, मैं समझता हूँ, अब मुझे चलना चाहिए,' रस्कोलनिकोव ने बुदबुदा कर कहा। 'माफ कीजिएगा, मैंने आपको तकलीफ दी...'

'बिलकुल नहीं! मैं तो कहूँगा कि मुझे बड़ी खुशी हुई...' सहायक सुपरिंटेंडेंट ने अपना हाथ तक आगे बढ़ा दिया।

'मैं... मैं तो जमेतोव से मिलने आया था...'

'मैं समझ गया, और मैं... खुशी हुई तुमसे मिल कर।'

'मुझे भी बहुत हुई... तो मैं चला,' रस्कोलनिकोव ने मुस्करा कर कहा।

वह बाहर निकल गया। उससे सीधे चला नहीं जा रहा था। सर चकरा रहा था और टाँगें सुन्न पड़ रही थीं। दाहिने हाथ से दीवार का सहारा ले कर वह सीढ़ियाँ उतरने लगा। उसे एहसास हुआ कि एक दरबान, हाथ में रजिस्टर लिए हुए उसे धक्का दे कर सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ ऊपर थाने की ओर चला गया। उसे यह भी एहसास हुआ कि नीचे कहीं पहली मंजिल पर एक कुत्ता भूँक-भूँक कर कान खाए जा रहा था। एक औरत ने उसे बेलन फेंक कर मारा था और अब चीख रही थी। सीढ़ियाँ उतर कर वह नीचे दालान में पहुँच गया। वहाँ, फाटक के पास, सोन्या खड़ी थी। उसका चेहरा मुर्दों की तरह पीला था और वह फटी आँखों से उसे देख रही थी। वह उसके सामने जा कर रुक गया। सोन्या के चेहरे पर निराशा का दारुण भाव उभरा। वह अपने दोनों हाथ उठा कर रह गई। रस्कोलनिकोव के होठों पर एक फीकी-सी और लिजलिजी मुस्कराहट मँडरा रही थी। वह पलभर चुपचाप खड़ा मुस्कराता रहा, और फिर थाने में चला गया।

सहायक सुपरिंटेंडेंट अपनी मेज पर बैठा कुछ कागज उलट-पुलट रहा था। वही दरबान, जिसने सीढ़ियों पर रस्कोलनिकोव को धक्का दिया था, उसके सामने खड़ा था।

'अ-रे! फिर आ गए! यहाँ कुछ भूल गए थे क्या? लेकिन बात क्या है?'

रस्कोलनिकोव के होठ पीले पड़ रहे थे और वह निश्चल आँखों से सामने घूर रहा था। धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ वह मेज के पास पहुँचा, एक हाथ उस पर टिका कर झुका, कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन कह न सका। मुँह से कुछ उखड़ी-उखड़ी आवाजें ही निकलीं।

'तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है! कुर्सी! यह लो, कुर्सी पर बैठ जाओ! पानी!'

रस्कोलनिकोव धम से कुर्सी पर बैठ गया, लेकिन उसने अपनी नजरें सहायक सुपरिंटेंडेंट पर से नहीं हटाईं, जिसके चेहरे पर बेजारी और हैरत का भाव झलक रहा था। पलभर दोनों एक-दूसरे को चुपचाप देखते रहे और इंतजार करते रहे। पानी आ गया।

'मैंने ही...' रस्कोलनिकोव ने कहना शुरू किया।

'लो, थोड़ा-सा पानी पी लो।'

रस्कोलनिकोव ने हाथ से गिलास दूर हटा दिया और धीमी आवाज में लेकिन साफ-साफ, हर शब्द पर ठहरते हुए कहा :

'उस सूदखोर बुढ़िया और उसकी बहन लिजावेता का कुल्हाड़ी से खून मैंने ही किया था और उनके यहाँ डाका डाला था।'

सहायक सुपरिंटेंडेंट हक्का-बक्का रह गया। लोग चारों ओर से दौड़ पड़े।

रस्कोलनिकोव ने अपना बयान फिर दोहराया...।

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