सन्तोष का सेब : यूरोप की लोक-कथा
Apple of Contentment : European Folktale
एक बार की बात है कि यूरोप में एक स्त्री रहती थी। उसके तीन बेटियाँ थीं। उसकी पहली बेटी की दोनों आँखों में भेंगापन था फिर भी उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती थी क्योंकि उसकी अपनी दोनों आँखें भी भेंगी थीं।
उसकी दूसरी बेटी का एक कन्धा ऊँचा और एक कन्धा नीचा था और भौहों के बाल धुँए की कालिख जैसे काले थे फिर भी उसकी माँ उसको उतना ही प्यार करती थी जितना कि वह अपनी पहली बेटी को करती थी क्योंकि उसका अपना भी एक कन्धा ऊँचा और एक कन्धा नीचा था और भौहों के बाल धुँए की कालिख जैसे काले थे।
पर उसकी सबसे छोटी बेटी पके सेब की तरह सुन्दर थी। उसके रेशम से मुलायम बाल सोने के रंग जैसे थे परन्तु उसकी माँ उसे बिल्कुल भी नहीं चाहती थी क्योंकि न तो वह खुद ही बिल्कुल सुन्दर थी और न ही उसके अपने बाल ही सुनहरे थे।
उस स्त्री की दोनों बड़ी बेटियाँ रोज सुबह शाम बहुत बढ़िया कपड़े पहनती थीं और सारा दिन बाहर धूप में बैठी रहती थीं। जब कि क्रिस्टीन, उसकी सबसे छोटी वाली लड़की, बहुत ही घटिया कपड़े पहनती थी।
इसके अलावा वह घर में काम भी बहुत करती थी। वह बतखों को रोज सुबह पहाड़ी तक ले जाती थी ताकि वह हरी हरी घास खा कर मोटी हो जायें और फिर शाम को उनको घर वापस लाती थी। दोनों बड़ी बहिनों को सफेद रोटी और मक्खन खाने को मिलता था और बढ़िया दूध पीने को मिलता था मगर क्रिस्टीन को सूखी डबल रोटी के टुकड़े ही खाने को मिलते थे।
एक बार क्रिस्टीन अपनी बतखें ले कर पहाड़ी की ओर चली जा रही थी। उसके हाथों में उसकी बुनाई थी। वह धूल भरे रास्ते पर कूदती फाँदती चलती जा रही थी कि एक पुल के पास आयी जो एक नाले पर बना हुआ था।
वहाँ उसने एक लाल रंग की टोपी देखी जो एक पेड़ की डाल से झूल रही थी। उसके ऊपर चाँदी की एक घंटी भी लगी थी। वह टोपी क्रिस्टीन को बहुत अच्छी लगी। वह सोचने लगी कि वह उसको ले ले क्योंकि ऐसी टोपी उसने पहले कभी नहीं देखी थी। सो उसने वह टोपी उतार कर अपनी जेब में रख ली और बतखों के साथ आगे बढ़ चली कि उसने एक आवाज सुनी —
“क्रिस्टीन, क्रिस्टीन।”
उसने इधर उधर देखा तो उसे एक अजीब सा काला आदमी दिखायी दिया। उसका सिर तो बन्द गोभी जितना बड़ा था और टाँगें नन्हीं मूली जैसी थीं।
क्रिस्टीन ने उससे पूछा “तुम्हें क्या चाहिये।” वह आदमी अब तक उसके पास तक आ गया था और अपनी टोपी वापस माँग रहा था क्योंकि उस टोपी के बिना वह पहाड़ी पर अपने घर वापस नहीं जा सकता था।
वह आदमी वहीं रहता था मगर फिर उसकी यह टोपी यहाँ पेड़ पर कैसे लटकी रह गयी यह उसकी समझ में नहीं आया। क्रिस्टीन ने सोचा कि टोपी उसको वापस देने से पहले उस आदमी का नाम तो उसे उस आदमी से मालूम कर ही लेना चाहिये।
असल में वह आदमी वहाँ उस नाले में मछलियाँ पकड़ रहा था कि हवा से उसकी टोपी नाले में गिर गयी थी और उसने उसे पेड़ पर सूखने के लिये डाल दिया था। अब क्या क्रिस्टीन वह टोपी उसे दे देगी?
उस आदमी ने उसे सब कुछ सच सच बता दिया कि कैसे उसकी टोपी वहाँ पेड़ पर पहुँची।
क्रिस्टीन सोचने लगी कि वह क्या करे? टोपी दे या न दे? वह बहुत सुन्दर टोपी थी। अगर वह उसको टोपी दे देती है तो वह उसे टोपी के बदले में क्या देगा।
वह आदमी उसको उस टोपी के पाँच रुपये देने को तैयार था पर पाँच रुपये तो इतनी सुन्दर टोपी के लिये बहुत कम थे, और फिर उसमें चाँदी की घंटी भी तो लगी थी।
पर लो, वह आदमी तो उस टोपी के 100 रुपये भी देने को तैयार हो गया। नहीं नहीं, उसको पैसों की क्या परवाह पर इतनी सुन्दर टोपी आयेगी कहाँ से। उसको तो उसकी टोपी अच्छी लग रही थी।
आदमी बोला — “देखो क्रिस्टीन, मैं इस टोपी के बदले में तुम को यह देने के लिये तैयार हूँ।” कह कर उसने अपना खुला हुआ हाथ उसे दिखाया जिसमें बीन के एक दाने जैसा कुछ था। वह कोयले जैसा काला था।
“यह तो ठीक है पर यह है क्या?”
वह काला आदमी बोला — “यह “सन्तोष के सेब” का बीज है। इसे तुम अपने घर के पास बो देना। इसमें से एक पेड़ निकलेगा और उस पेड़ में लगेगा केवल एक सेब। जो भी उस सेब को देखेगा वही उसको देख कर उसको खाने के लिये ललचायेगा पर उस सेब को तुम्हारे सिवा कोई और नहीं तोड़ पायेगा।
जब तुम्हें भूख प्यास लगेगी तब यह माँस और पानी बन जायेगा और जब तुम्हें ठंड लगेगी तो यह गरम कपड़े बन जायेगा। दूसरी अजीब बात इसके बारे में यह है कि जैसे ही तुम यह सेब तोड़ोगी उसी समय उस सेब की जगह दूसरा सेब उग आयेगा और इस तरह उस पेड़ पर हमेशा एक सेब रहेगा। क्या अब तुम मेरी टोपी दे दोगी?”
क्रिस्टीन उस जादू वाले बीज को देख कर बहुत खुश हुई । उसने उस आदमी को उसकी टोपी वापस कर दी और उससे सेब का बीज ले लिया। उस आदमी ने अपनी टोपी अपने सिर पर रखी और गायब हो गया — ऐसे जैसे फूँक से मोमबत्ती बुझ जाये।
क्रिस्टीन उस बीज को ले कर घर पहुँची और अपने कमरे की खिड़की के सामने उसको बो दिया। सुबह उठी तो उसने खिड़की से झाँका तो वहाँ तो सेब का एक बड़ा पेड़ खड़ा था और उस पर एक सेब लटक रहा था। सेब का रंग बिल्कुल सुनहरा था।
वह बाहर गयी और आसानी से उसे तोड़ लिया। जैसे ही उसने उसे वहाँ से तोड़ा तुरन्त ही उसकी जगह एक और सेब वहाँ पर आ गया।
भूखे होने की वजह से वह सेब उसने तुरन्त ही खा लिया। खाने पर उसको लगा कि इतनी अच्छा सेब तो उसने पहले कभी खाया ही नहीं था क्योंकि उस सेब का स्वाद सेब जैसा नहीं था बल्कि शहद और दूध से बने केक जैसा था।
कुछ देर बाद उसकी सबसे बड़ी बहिन बाहर आयी और चारों तरफ देखने लगी। उसने वहाँ एक सेब का पेड़ देखा और उस पेड़ पर लटकता हुआ एक सुनहरा सेब देखा तो उसे बड़ा आश्चयहुआ। यह सेब का पेड़ रातों रात यहाँ कहाँ से आ गया?
उस पेड़ पर लगे सेब को देख कर उसकी उसी समय उस सेब को खाने की इच्छा हुई। उसे लगा मानो यही इच्छा उसके जीवन की पहली और आखिरी इच्छा थी। उसने सोचा इसे मैं ही तोड़ लेती हूँ इसको तोड़ने में क्या है।” पर इसे कहना आसान था बजाय करने के।
जैसे ही उसने सेब तोडने के लिये पेड़ पर चढ़ना शुरू किया तो उसे लगा कि वह सेब तोड़ने नहीं बल्कि चाँद पकड़ने जा रही है। वह चढ़ती गयी, और चढ़ती गयी और चढ़ती गयी।
चढ़ते चढ़ते उसे लगा कि वह चाँद भी नहीं बल्कि सूरज को पकड़ने जा रही है। दोनों ही काम आसान थे पर सेब उससे अभी भी बहुत दूर था। आखिर उसने हिम्मत छोड़ दी।
फिर उसकी दूसरी बहिन आयी और उसकी भी उस सुनहरे सेब पर नजर पड़ी तो उसकी भी उसको लेने की इच्छा होने लगी पर चाहने और पाने में तो बहुत अन्तर है सो उसको भी वह सेब नहीं मिल पाया।
अन्त में उसकी माँ आयी। उसने भी वह सेब लेना चाहा पर वह भी सेब नहीं ले पायी।
तीनों ही उस पेड़ के नीचे खड़ी उस सेब की इच्छा कर रही थीं पर तोड़ उसे कोई भी नहीं पा रहा था। मगर क्रिस्टीन जब भी चाहती वह सेब तोड़ लेती।
जब उसे भूख लगती, पेड़ का सेब उसकी भूख शान्त कर देता। जब कभी उसे प्यास लगती तो भी उसके लिये वहाँ सेब हाजिर था। जब उसे किसी अच्छे कपड़े पहनने की इच्छा होती तो वह भी उसको उस सेब से मिल जाता। अब वह दुनियाँ की सबसे ज़्यादा खुशकिस्मत लड़की थी।
एक दिन एक राजा उधर से अपने आदमियों के साथ गुजर रहा था कि उसने भी उस पेड़ से लटका हुआ वह सुनहरा सेब देखा। उसको देखते ही उसके मन में भी उस सेब को खाने की इच्छा जाग उठी। उसने अपने एक नौकर को बुलाया और कहा कि वह उस सेब को कुछ सोने के सिक्कों के बदले में खरीद लाये।
नौकर उस घर की ओर गया और उस घर का दरवाजा खटखटाया। माँ ने दरवाजा खोला और पूछा — “क्या बात है? तुम्हें क्या चाहिये?”
नौकर बोला — “कोई खास चीज़ तो नहीं, बाहर एक राजा हैं वह यह जानना चाहते हैं कि उनको यह सेब इतने सोने के बदले में मिल सकता है या नहीं।”
माँ बोली — “हाँ हाँ क्यों नहीं।”
नौकर ने उसको वह सोना दे दिया और वह सेब तोड़ने चल दिया। वह चढ़ा और चढ़ कर उसने डाल हिलायी मगर कोई फायदा नहीं हुआ। वह पेड़ पर भी चढ़ा पर फिर भी वह वहाँ तक नहीं पहुँच सका और वह वह सेब नहीं तोड़ सका।
नौकर राजा के पास वापस गया और बोला — “उस स्त्री ने वह सेब मुझे बेच तो दिया है मगर वह तो तारों से भी दूर लगता है। हाथ में ही नहीं आता।”
राजा ने एक और आदमी भेजा। वह आदमी मजबूत और लम्बा था मगर काफी कोशिशों के बाद वह भी उस सेब को नहीं तोड़ पाया। सो वह भी राजा के पास खाली हाथ वापस लौट आया। अब राजा खुद गया पर उसको भी वह सेब नहीं मिला और वह भी उसकी सुगन्ध मन में बसाये वापस चला गया।
घर आने के बाद भी राजा के मन से उस सेब को खाने की इच्छा नहीं निकली। वह उसी की बात करता, उसी के सपने देखता। जितना वह उससे दूर होता जाता उतनी ही उसकी उसको पाने की इच्छा बढ़ती जाती।
आखिर वह उदास रहने लगा और एक दिन बीमार पड़ गया। फिर एक दिन उसने एक अक्लमन्द आदमी को बुलाया और उससे वह सेब लाने के लिये कहा। उसने राजा को आ कर बताया कि जिस स्त्री ने आपके नौकर को वह सेब बेचा था उस सेब को उस स्त्री की केवल एक लड़की ही तोड़ सकती थी क्योंकि वह उसी लड़की का पेड़ था।
यह सुन कर राजा अपने आदमियों के साथ वहाँ गया और क्रिस्टीन के घर पहुँचा। वहाँ उसे केवल उसकी माँ और दोनों बड़ी बहिनें ही मिलीं क्योंकि क्रिस्टीन तो बतखें ले कर पहाड़ी पर गयी हुई थी।
राजा ने अपना टोप उतार कर झुक कर उनकी माँ को नमस्कार किया। उस अक्लमन्द आदमी ने क्रिस्टीन की माँ से पूछा — “वह आपकी कौन सी लड़की है जिसका यह पेड़ है?”
राजा ने सोच रखा था कि अगर वह उस स्त्री की सबसे बड़ी वाली लड़की हुई तो सेब लेने के बाद वह उसे घर ले जायेगा और उससे शादी कर लेगा और अपनी रानी बना लेगा। इस काम में वह देर नहीं करेगा।
स्त्री बोली — “लेकिन क्या वह लड़की आपके और आपके सभी आदमियों के सामने उस पेड़ पर चढ़ेगी? नहीं नहीं, आप ऐसा कीजिये कि अभी तो आप अपने घर जाइये और वह लड़की सेब आपको बाद में आ कर दे जायेगी।”
राजा बोला — “ठीक है, मगर सेब ज़रा जल्दी भिजवाना।”
जैसे ही राजा गया वैसे ही उसने क्रिस्टीन को बुलाया और कहा — “राजा ने यह सेब मँगवाया है। तुम यह सेब तोड़ कर अपनी बड़ी बहिन को दे दो वह यह सेब ले कर राजा के पास चली जायेगी। अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हें कुँए में फेंक दूँगी।”
क्रिस्टीन ने वह फल तोड़ कर अपनी बड़ी बहिन को दे दिया। उसकी बहिन ने उस सेब को एक रूमाल में लपेटा और उसको ले कर राजा के पास चल दी। वह बहुत खुश थी।
खट, खट, खट। वह दरवाजे पर सेब लिये खड़ी थी। उसको तुरन्त ही अन्दर बुला लिया गया। जैसे ही वह राजा के सामने आयी और उसने सेब देखने के लिये अपना रूमाल खोला तो मानो या न मानो उसमें सेब तो नहीं था बल्कि उसमें सेब की जगह एक गोल पत्थर रखा हुआ था।
जब राजा ने देखा कि वह उसके लिये सेब नहीं पत्थर ले कर आयी है तो उसको बहुत गुस्सा आया और उसने उसे घर से बाहर निकाल दिया।
राजा ने फिर अपना एक आदमी भेजा। उसने जा कर उन लड़कियों की माँ से पूछा — “क्या तुम्हारी कोई और लड़की भी है?”
“हाँ है। तुम घर चलो वह अभी तुम्हारे लिये सेब तोड़ कर लाती है।”
नौकर के जाने के बाद उसने फिर क्रिस्टीन को बुलाया और अपनी दूसरी बहिन के लिये सेब तोड़ने के लिये कहा।
क्रिस्टीन ने फिर एक सेब तोड़ा और अपनी दूसरी बहिन को दे दिया। वह भी जब राजा के पास पहुँची और उसको सेब देने के लिये अपना रूमाल खोला तो उसमें बजाय सेब के एक मुठ्ठी कीचड़ निकली। राजा ने उसको भी अपने महल से भगा दिया।
नौकर फिर उनके घर आया और उनकी माँ से पूछा — “क्या तुम्हारे और भी कोई लड़की है?”
“हाँ है तो, मगर वह तो किसी काम की नहीं है। उसको तो केवल बतखों को पालने का काम आता है।”
“कोई बात नहीं। पर कहाँ है वह?”
“वह तो बतखों को ले कर पहाड़ी पर गयी है।”
उस लड़की को बुलाया गया। कुछ देर बाद वह आयी तो नौकर ने उससे पूछा — “क्या तुम राजा के लिये एक सेब तोड़ सकती हो?”
वह गयी और जंगली बेर की तरह वह सेब तोड़ कर ले आयी। नौकर ने अपना टोप उतार कर उसे झुक कर नमस्कार किया क्योंकि यही वह लड़की थी जिसको वे ढूँढ रहे थे।
उस नौकर ने उस लड़की को राजा के महल को चलने के लिये कहा। क्रिस्टीन ने वह सेब जेब में रख लिया और राजा के नौकर के साथ चल दी। और वह नौकर उसको ले कर राजा के महल की तरफ चल दिया।
राजा के घर में उस फटे हाल लड़की को देख कर सभी अपनी अपनी हथेलियाँ मुँह पर रख कर हँसने लगे। राजा ने पूछा — “क्या तुम सेब लायी हो?”
“जी हाँ।” क्रिस्टीन ने अपनी जेब से सेब से निकाला और राजा की ओर बढ़ा दिया।
राजा ने उसको थोड़ा सा खाया और उसको लगा कि उसने ऐसा सेब पहले कभी नहीं खाया था। इसके अलावा उसने क्रिस्टीन जैसी सुन्दर लड़की भी पहले कभी नहीं देखी थी।
ऐसा इसलिये था क्योंकि उसने सन्तोष का सेब खाया था।
राजा और क्रिस्टीन की शादी हो गयी। उसकी माँ और बहिनें भी वहाँ आयीं थीं। उन्होंने सोचा कि उनके पास तो उस सेब का पेड़ है पर उनका यह सोचना गलत था क्योंकि अगले दिन तो वह पेड़ क्रिस्टीन के महल की खिड़की के सामने खड़ा था।