अपनी-अपनी अक्ल : जोहान मार्टिन

(‘सौ कहानियाँ’ नामक फ्रेंच ग्रन्थ कथानकों का खजाना है। यह फ्रेंच कथा साहित्य का पहला ‘साहित्यिक’ संकलन है, जहाँ से कहानियों की (साहित्यिक फॉर्म के रूप में) शुरुआत होती है। विख्यात लेखक रबेलियास तथा बालजाक ने इस खजाने का उन्मुक्त उपयोग अपनी कृतियों के लिए किया है : समय 15वीं सदी, इस ग्रन्थ की यह 78वीं कथा है।)

ब्राबान्त का प्रदेश सुन्दरियों के लिए विख्यात है। इतनी सुन्दर लड़कियाँ और किसी प्रदेश में नहीं होतीं। लेकिन वहाँ के पुरुषों के लिए यह भी कहा जाता है कि सुन्दरी स्त्री के सम्पर्क और साथ में रहने के कारण उम्र बढ़ने के साथ-साथ वे बुद्धू होते जाते हैं।

इसी प्रदेश के एक आदमी की यह कहानी है। यह आदमी एक विद्वान के रूप में जाना जाता था। इस विद्वान के भाग्य में घूमना-फिरना बहुत लिखा था। इस विद्वान ने एक बेहद सुन्दरी लड़की से शादी की। भाग्यानुसार विद्वान को विदेशों में जाना पड़ा। वह समुद्री यात्राओं पर साइप्रस और रोड्स तक गया। कई महीने इन यात्राओं में लग गये। जब वह जेरुसलम पहुँचा, तो वहाँ उसका स्वागत हुआ और उसे ‘समुद्री कप्तान’ की पदवी दी गयी, क्योंकि जहाज के मल्लाहों ने उसकी बड़ी तारीफ की थी। उसने इतनी समुद्री यात्राएँ की थीं कि वह जहाजियों के सब काम भी सीख गया था।

जब उस विद्वान को ‘समुद्री कप्तान’ की पदवी मिली, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। पर घर से निकले इतने महीने हो गये थे कि उसे पत्नी की याद सताने लगी। वह जल्दी-से-जल्दी अपनी पत्नी के पास पहुँचना चाहता था।

जिन दिनों वह विद्वान घर से बाहर था, उन दिनों का अकेलापन उसकी पत्नी से बरदाश्त नहीं हुआ। वह एक अमीर विद्वान के प्रेम में आसक्त हो गयी। उस अमीर विद्वान ने उसे प्यार भी खूब दिया और उसका घर भी तमाम उपहारों से भर दिया। धीरे-धीरे उस स्त्री की रुचि अमीर के प्रति घटती गयी। अमीर को भी लगा कि वह सिर्फ उसे धन के लिए प्यार करती है, अतः वह धीरे-धीरे कतराने लगा।

तब उस औरत ने एक जहाजी से प्यार करना शुरू किया। वह जहाजी उसके प्रेम में इतना डूब गया कि जो भी वस्तुएँ वह विदेशों से लाया था, सब उपहार स्वरूप उसने अपनी सुन्दरी प्रेमिका को दे दीं। कुछ महीनों बाद इस प्रेम का ज्वार भी उतरने लगा।

तब उस औरत ने एक पादरी को प्यार करना शुरू किया। पादरी उसके प्रेम में मतवाला हो गया।

जब वह पादरीवाला प्रेम-प्रकरण चल ही रहा था, तभी एक रात उस सुन्दरी का पति यात्रा से लौटा। घर वापस आकर और अपनी सुन्दरी पत्नी को वैसा ही पाकर वह बहुत प्रसन्न हुआ। रात में अपनी पत्नी को यात्राओं के किस्से सुनाये और पदवी प्राप्त करने की बात भी बतायी।

सुबह जब उसकी आँख खुली, तो उसने चारों तरफ देखा - एकाएक जैसे वह अपने घर को पहचान नहीं पाया। उसमें तमाम वस्तुएँ भरी हुई थीं। हर जगह सुन्दर साज-सामान सजा था। विदेशी वस्तुएँ रखी थीं। पत्नी के पास भी तमाम आभूषण और कीमती कपड़े थे।

यह सब देखकर पति का माथा ठनका। उसे लगा कि पत्नी ने उसके पीछे उसके साथ विश्वासघात किया है। जब पत्नी सोकर उठी, तो वह अपने को रोक नहीं पाया। उसने जब पूछा, तो पत्नी बिफर उठी, “यह सब मैंने अपना पेट काट-काटकर जमा किया है! मुझ पर शक करते तुम्हें शर्म नहीं आती?”

पति चुप हो गया, पर उसके मन का शक दूर नहीं हुआ। आखिर उसने एक तरकीब सोची। बड़ा पादरी उसका दोस्त था। उसे उसने मिला लिया और यह तय किया कि जब उसकी पत्नी कनफेशन करने के लिए आएगी, तो बड़ा पादरी अपना लबादा उसे दे देगा और उसका पति पादरी के रूप में खड़ा होकर खुद अपनी पत्नी के पापों का स्वीकार सुन सकेगा।

पत्नी को यह बात नहीं मालूम थी। कुछ दिनों बाद जब कनफेशन के लिए पहुँची, तो बड़े पादरी के भेस में उसका पति ही लबादा पहने वेदी पर खड़ा था। सुन्दरी अपने पति को पहचान भी नहीं पायी।

सुन्दरी ने पापों का स्वीकार शुरू किया, “मैं स्वीकार करती हूँ कि मैंने एक विद्वान के साथ सुख की रातें गुजारीं...”

इतना सुनना था कि पादरी के भेस में खड़ा उसका पति तिलमिलाने लगा। तब वह सुन्दरी आगे बोली, “मैं यह भी स्वीकार करती हूँ कि उसके बाद एक जहाजी के साथ मैंने रंगीन रातें गुजारीं... और फिर एक पादरी...”

इतना सुनना था कि पादरी के रूप में खड़ा पति आपे से बाहर हो गया। उसने अपना लबादा चीरकर फेंक दिया और चीखता हुआ पत्नी की ओर लपका - “पापिन व्यभिचारिणी... तेरा गला...”

पर वह सुन्दरी बहुत चतुर थी। एकाएक वह घबरा गयी थी, पर उसने तत्काल अपने को सँभाल लिया और बड़ी चतुराई से बोली, “तुम बड़े भोले हो! मैं जानती थी कि पादरी के रूप में तुम खड़े हुए हो... तभी तो मैंने अपने पापों का स्वीकार किया। मैं गलत कब कह रही हूँ। मैंने कहा कि एक विद्वान के साथ मैंने सुख की रातें गुजारीं - तो तुम पहले विद्वान नहीं कहे जाते थे? फिर मैंने कहा कि एक जहाजी के साथ रंगीन रातें गुजारीं, तो इसमें गलत क्या था - तुम्हें ‘जहाजी कप्तान’ की पदवी नहीं मिली? और क्या मैंने तुम्हारे साथ रंगीन रातें नहीं गुजारीं?”

तब पति बोला, “पर वह तीसरा पादरी...?”

इस पर पत्नी ने हँसकर कहा, “अभी तुम पादरी नहीं बने हुए थे? क्या इसके बाद मैं तुम्हारे साथ रातें नहीं गुजारूँगी?”

“ओह!” पति ने कहा और शान्त हो गया। उसने पत्नी को क्षमा करके अपनी गलती कबूल कर ली।

तो पाठको! यह बात सही साबित हो गयी कि ब्राबान्त प्रदेश के पुरुष उम्र बढ़ने के साथ बुद्धू होते जाते हैं।

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