अन्यायी राजा और नीच सुनार : कश्मीरी लोक-कथा
Anyayi Raja Aur Neech Sunar : Lok-Katha (Kashmir)
एक बार की बात है कि एक राजा अपने बागीचे में टहल रहा था कि एक बारहसिंगा उस बागीचे की बाड़ तोड़ कर बागीचे के अन्दर आ कर इधर उधर भागने लगा और बागीचे में लगे फूलों को तहस नहस करने लगा।
यह देख कर राजा को गुस्सा आ गया और उसने अपने नौकरों को बुला कर उसे पकड़ने के लिये कहा। वह खुद भी नंगी तलवार ले कर उसके पीछे भागा। अचानक वह बागीचे से बाहर भाग गया। राजा भी उसके पीछे पीछे अपने घोड़े पर भागा।
राजा उसका पीछा करते करते अपने राज्य की सीमा तक पहुँच गया पर वह उसको पकड़ नहीं सका। उसकी वहाँ से आगे जाने की इच्छा नहीं हुई सो वह वहीं पर रुक गया।
मौसम बहुत गरम था और उसको प्यास भी लग आयी थी सो वह अपने घोड़े से नीचे उतर गया और उसने नहाने की सोची। वह जब वहाँ नहा रहा था तो किसी नीच आदमी ने उसका घोड़ा और कपड़े चुरा लिये।
अब राजा के लिये तो यह बहुत ही खराब हालत हो गयी। वह अब क्या करे। वह अब अपने महल को कैसे लौटे। वह महल को नंगा कैसे जाये। “मैं ऐसा नहीं कर सकता। बहुत दिनों तक सारे लोग मेरी हँसी उड़ाते रहेंगे।” सो उसने पड़ोसी देश में घूमने का विचार किया।
वह उस पड़ोसी देश में घूमता रहा कि घूमते घूमते उसको मोती की एक कीमती माला मिल गयी। वह बोला — “भगवान का लाख लाख धन्यवाद है कि यह माला मुझे मिल गयी। इसको बेच कर अब मैं अपने लिये एक घोड़ा और कपड़े खरीद सकता हूँ। चलूँ चल कर इसको बाजार में बेचने की कोशिश करता हूँ।”
चलते चलते वह उस देश के राजा के शहर पहुँच गया। वहाँ वह एक सुनार के पास पहुँचा और उससे पूछा — “क्या तुम मुझसे एक मोती की माला खरीदोगे। मेरे पास एक कीमती माला है बेचने के लिये। मैं एक नदी पार कर रहा था मुझे यह वहाँ मिल गयी थी।”
सुनार बोला — “देखूँ तो।”
राजा ने वह मोती की माला उसको दिखायी तो वह चिल्ला कर बोला — “ओ चोर इसको तुमने कहाँ से चुराया? मैंने ऐसी दो मालाऐं राजा के लिये बनायी थीं उनमें से एक का पता नहीं चला कि वह कहाँ गयी। ओ चोर तुम ज़रा राजा के पास चलो तो।”
ऐसा कहते हुए उसने पुलिस को बुलाया और उससे उसको राजा के पास ले चलने के लिये कहा। तीनों राजा के पास पहुँचे। राजा ने सुनार की शिकायत सुनी और हुकुम दिया कि राजा के दोनों पैर काट दिये जायें।
उस राजा की रानी उतनी ही दयालु थी जितना कि राजा बेरहम और अन्यायी था। जब उसने यह सुना तो उसने उससे कहा — “आप इतना बेरहम हुकुम कैसे दे सकते हैं जबकि इस मामले की कोई गवाही नहीं है। और ये सुनार लोग तो होते ही बदमाश हैं। आप तो जानते ही है कि पैसे के लिये ये लोग कितना झूठ बोलते हैं और कितना धोखा देते हैं। सच कहिये तो मैं तो इस आदमी के कहे पर भी उतना ही विश्वास करती जितना कि सुनार के कहने पर।”
राजा ने उसे डाँट लगायी — “जबान सँभाल कर बात करो। तुम्हें क्या हक है राजकाज के मामलों में दखल देने का?”
रानी बोली — “मैं चुप नहीं रहूँगी। कुछ दिनों से मैं आपको दरबार में भी खराब व्यवहार करते देख रही हूँ। आपके सलाहकार सब आपसे नाखुश हैं और आपकी जनता आपसे विद्रोह करने के लिये तैयार है। अगर आप इसी रास्ते पर चलते रहे तो आपका सारा राज्य बरबाद हो जायेगा।”
राजा रानी की बात सुन कर बहुत गुस्सा हुआ और उससे कमरे के बाहर जाने के लिये कहा। अगली सुबह उसने रानी को उस आदमी के साथ राज्य के बाहर जाने का हुकुम दे दिया जिसके पैर काट डाले गये हों।
रानी ने उसकी इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया उलटे वह ऐसे राजा से पीछा छूट जाने से बहुत खुश थी। वह बिना पैरों वाले आदमी के पास गयी और उसको राजा का हुकुम बताया। फिर उसने उसको एक लम्बी सी टोकरी में बिठाया अपनी कमर पर लादा और एक ऐसी जगह चल दी जहाँ शहर नहीं था। यह वही राजा था जिसके पैर काटने का हुकुम राजा ने दिया था।
वहाँ उसने उसकी एक पत्नी की तरह सेवा की जब तक कि उसके घाव भरे। जल्दी ही वह उसको बहुत अच्छा लगने लगा। उसने भी उसके प्यार का बदला प्यार से दिया तो वह उसकी सचमुच में ही पत्नी बन गयी। कुछ दिनों बाद उसने एक छोटे से बेटे को जन्म दिया।
अपना घर चलाने के लिये वह जंगल से लकड़ी काटती और जा कर उनको शहर में बेच आती।
एक दिन जब वह शहर गयी हुई थी तो उसका पति सो गया और उसका बच्चा जिसको वह उसकी देखभाल में छोड़ गयी थी घुटनों चलते चलते पास के कुँए के किनारे पर पहुँच गया और कुँए में गिर गया।
जब राजा की आँख खुली तो बच्चे को वहाँ न पा कर वह बहुत दुखी हुआ। वह तो बिल्कुल पागल सा हो गया। वह चिल्ला चिल्ला कर रोने लगा — “लगता है कि मेरे बच्चे को किसी जंगली जानवर ने खा लिया है अब मैं क्या करूँ।”
शाम को जब उसकी पत्नी शहर से लौटी तो यह जान कर वह भी बहुत दुखी हुई कि उनका बच्चा वहाँ नहीं था। पर वह एक बहुत ही बहादुर और समझदार स्त्री थी इसलिये उसने खुद भी धीरज रखा और अपने पति को भी समझाया कि हमारी किस्मत में ऐसा ही लिखा था। दुखी मत होइये।
रात को राजा सो नहीं सका वह बच्चे के बारे में ही सोचता रहा और उसकी इच्छा भी करता रहा। यह उसके लिये अच्छा ही हुआ कि वह सो नहीं पाया। क्योंकि रात के तीसरे प्रहर में सूडाब्रोर और बूडाब्रोर नाम की दो चिड़े उनके खुले दरवाजे के पास वाले पेड़ पर आ कर बैठ गये और ये बातें करने लगे।
सूडाब्रोर अपने दोस्त से बोला — “देखो यह दुनियाँ कितनी मुश्किल है। ज़रा देखो तो इस आदमी के साथ क्या हुआ। इसको अपना देश छोड़ना पड़ा और अब यह बेचारा दूसरे देश में भिखारी की तरह रह रहा है जहाँ उसको बड़े अन्यायपूर्ण ढंग से सजा दी गयी। और अब यह अपने सुन्दर से बेटे के दुख में भी परेशान है। इसका बेटा कल दोपहर ही इस कुँए में गिर गया था।”
बूडाब्रोर चिड़ा बोला — “इन बेचारे लोगों को क्या क्या परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं। क्या इनके लिये कुछ नहीं किया जा सकता?”
सूडाब्रोर बोला — “हाँ हाँ किया जा सकता है। अगर राजा इस कुँए में कूद जाये तो वह आसानी से बच्चे को बचा सकता है। इसके अलावा उसके पैर भी वापस आ सकते हैं।”
राजा ने उन चिड़ों की बातें सुनी तो उनको सुन कर उसे बड़ा आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी हुई। जैसे ही सुबह हुई उसने अपनी पत्नी को जगाया और उसने उससे रात वाली बात बतायी और उससे सलाह माँगी। रानी बोली — “आप चिड़ों की बात मानें और कुँए में कूद जायें।”
राजा कुँए में कूद गया जिससे उसने अपने बच्चे की जान भी बचा ली और अपने पाँव भी वापस पा लिये।
इस घटना के बाद राजा को अपना वजीर मिल गया जो अपने राजा की खोज में इधर उधर मारा मारा फिर रहा था। उससे राजा को पता चला कि उसकी जनता उसका बेसब्री से इन्तजार कर रही है। सो वह अपनी पत्नी और बच्चे के साथ अपने राज्य वापस चला गया। वह फिर से अपनी राजगद्दी पर बैठ गया और पहले की तरह से राज करने लगा।
गद्दी पर बैठते ही सबसे पहला काम उसने यह किया कि अपनी सेना ले कर उस राजा के ऊपर चढ़ाई कर दी जिसने उसके साथ इतना बुरा व्यवहार किया था। वह जीत गया और दूसरे राजा को बहुत शरम आयी। उसको उससे दया की भीख माँगनी पड़ी। उसने उसे बताया कि उस सुनार की वजह से उसे उसके साथ ऐसा व्यवहार करना पड़ा। अब उसको वह जाते ही सजा देगा। राजा ने उसको माफ कर दिया और उसको छोड़ दिया। उसके बाद सारे राज्य में शान्ति और खुशी हो गयी।
राजा उस दूसरे राजा की पत्नी के साथ खुशी खुशी रहा, उसके कई और बच्चे हुए। वह काफी दिनों तक ज़िन्दा रहा। जब बूढ़ा हो कर वह मरा तो लोग उसके लिये बहुत रोये।
(सुषमा गुप्ता)