अंतर्जाल (कन्नड़ कहानी) : उमा राव

Antarjaal (Kannada Story) : Uma Rao

‘‘ ’’

रंगह्या जी की मृत्यु की खबर सुनने के बाद तुरन्त ही सैकडों रिश्तेदार उनके घर में इकद्दे हुए। घर के बाहर कार और स्कूटरों की लम्बी कतार हो गई। गेट के पार लगी हुई आग। घर के दरवाजे पर चप्पलियो। हाल के बीचों-बीच उनके शव को रखा गया था। शव के चेहरे को छोडकर सारे बदन को श्वेत कपडे से लपेटा गया था। चारों ओर सन्नाटा। श्वेत वस्त्र पर मालाओं के ढेर। वहीं पर सुलगाया हुआ ट्टाूप और अगरबायों की गंट्टा। उनके समीप जमीन पर बेटा केशव, सास शालिनी, छोटी बहन लक्ष्मी और उसका पति श्रीकंठह्या बैठे हुए थे। चारों ओर कुर्सियो, सोफा में अन्य रिश्तेदार और दोस्त। बरामदे में उतनी ही संख्या में पास-पडोस के लोग खडे थे। रंगह्या जी के सिर के पास ही एक तिपाई, उस पर उनकी पत्नी सवित्रम्मा की तस्वीर। उस तस्वीर को भी ककुम और माला।

सबके दिमाग में बस एक ही सवाल था। रंगह्या जी ने ऐसा क्यों किया? उन्हें आत्महत्या करने की जरूरत ही क्या थी ?

* * * * *

संचेनहल्ली कृष्णह्या रंगह्या जी सेवानिवृा आईएएस अट्टिाकारी थे, उम्र सार साल। रंगह्या प्राइमरी स्कूल मास्टर के तीसरे बेटे थे। वे अपनी प्रतिभा से आगे बढे थे और निष्ठा से काम करके अच्छा नाम भी कमाया था। सावित्री से, जो बेंगलूर के प्रसि. डॉक्टर सुखतीर्थ जी की बेटी थी, शादी की और सुख से गृहस्थी का जीवन बिताया था। अच्युत और केशव उनके दो बेटे थे। अच्युत सॉय्वेयर इंजीनियर था और अमेरिका जाकर वहो न्यान्सी से शादी कर ली थीऋ वह अमेरिका में बसा हुआ था। फिलहाल वह एक बेटी का बाप था। केशव बैंक अट्टिाकारी था और रंगह्या और सावित्रम्मा से चुनी हुई लड़की शालिनी से विवाह किया था। फिलहाल केशव की आठ साल की बेटी थी। रंगह्या जी को जो केशव के साथ रहते थे, एक कमी सता रही थी कि पिछले पोच बरस पहले उनकी पत्नी सावित्री का निट्टान हुआ था। रंगह्या साल में एक बार अमेरिका जाते थे, बेटे अच्युत के साथ चार महीना रहते थे, बहू और पोते उनकी आदर से देखरेख करते थे।

मगर रंगह्या जी ने यह अविवेकी काम क्यों कर डाला ?

* * * * *

’आई डोंट अंडरस्टेंड‘ संजीवराय ने अपनी माथा-पच्ची कर ली जो रोज शाम को उनके साथ घूमने जाते थे।

‘‘उसे क्या हुआ जो ऐसा काम किया? मैं तो उनकी पीठ पीछे थी.. अगर इतनी परेशानी थी तो हमारे घर आकर रह सकता था...’’ तरुवेकेरे से आकर लक्ष्मी ने सीना पीटते हुए कहा था।

‘‘बुजुगोङ के मन में क्या विचार आते हैं, कहना मुश्किल बात है। पिर से तो ठीक-ठाक ही दीखते हैं।’’

‘‘बेचारा अच्युत सुदूर था, मगर सप्ताह में दो बार फोन किया करता था। ईमेल भी करता था। पिछली बार जब घर आया था, कम्प्यूटर लाकर दिया था। सम्फ साट्टाना आसान था और इन्टरनेट हो तो समय भी बीतता है...’’

चारों ओर इकद्दे हुए लोग बातचीत कर रहे थे। केशव सिर झुकाकर बैठा था। उसकी ओखें लाल-लाल हो गई थीं।

सिर फटे जा रहा था।

फोन बज उठा।

‘‘तुम्हारे लिए कॉल है, अच्युत से...’’ श्रीकण्ठह्या ने फोन उठाया और केशव से कहा।

‘‘ठीक है...ठीक है... टिकट मिलने पर तुरन्त आ जाओ, आमने-सामने बैठकर बातें करेंगे। वेरी अनफॉरचुनेट।’’ केशव ने अच्युत की हो में हो मिलाया।

‘‘ओके। वी विल प्रोसीड।’’

* * * * *

पिताजी को जला कर केशव जब घर आया तो रात बारह बजे तक बिस्तर पर यों ही बैठा रहा। पिताजी ने जो ट्टाोती पहनी थी, उसी से गले में फंदा डालकर पंखे से लटके थे, यह तस्वीर बार-बार ओखों के सामने घूमती थी। शालनी छावनी देखती पीठ के बल लेटी थी।

‘‘शालिनी, हमसे कोई गलती हुई है...?’’

‘‘यानी...’’

‘‘याद कर लो कि कल क्या-क्या हुआ था...’’

‘‘मैंने कह दिया न... कल भी जब राजू घर आया, उन्होंने ही उसके कपडे बदले और नाश्ता दिया। शाम के वक्त रोज की तरह घूमने गए और वापिस आए। रात को पेटभर खाना खाया। मैंने उन्हें पीने के लिए दूट्टा दिया तो इंकार भी नहीं किया... हमारे लेटने के बाद...’’

‘‘लेटने के बाद?’’

‘‘हो...कुछ नहीं है। लेटने के बाद... मैंने नहीं देखा। रोज रात के वक्त बडी देर तक इन्टरनेट के सामने रहते थे न...’’

‘‘तुम रोज रात को उठती थी, कल उठी नहीं?’’

‘‘नहीं...नहीं।’’ शालिनी उठ बैठी।

* * * * *

‘‘केशव... आप कितनी गिल्टी फील कर रहे हैं...!’’

‘‘होण्ण्ण्श्श् उन्होंने जो किया, बडी गलती की, इसके बारे में आपने सोचा? उन्होंने हमारे कपडे उतार कर बीच सडक में खडा किया है न...’’

‘‘क्या उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया? थिंक ऑफ हिज पैन।’’

‘‘क्या वे इतने मूर्ख हैं? वे रिटायर्ड आईएएस अट्टिाकारी थे। क्या उनको सोचना नहीं था कि हम पर आरोप आएगा? पोस्टमार्टम से भी हम बच नहीं पाये ... उन्होंने नहीं सोचा कि हमारे बच्चे को कितना आघात लगेगा? इसलिए मैंने बेटी को मैके भेज दी थी...’’

‘‘शालिनी बंद करो। क्या तुम समझती हो कि उन्होंने हम पर कलंक लगाने के लिए ऐसा किया...?’’

‘‘ऐसा ही समझ लीजिए। इनफैक्ट ही रेजेक्टेड अस, यह स्वार्थ की चरम सीमा है।’’

केशव के तुरन्त शालिनी को थप्पड मार दी। शालिनी ने पहली बार पति से थप्पड खाई थी। वह कोप उठी।

‘‘सॉरी...’’ केशव तुरन्त बोल पडा।

शालिनी डर गई, फिर चेत गई और रोने लगी।

‘‘आखिर होता तो यही है। गोववालों से सुनना पडता है और आप भी मेरा अपमान करें। आफ लिए, आफ माता-पिता के लिए, मैंने क्या-क्या नहीं किया। मुझे भी नौकरी करने की बडी इच्छा थी। मगर आफ पिताजी की देखरेख के लिए नौकरी नहीं की। आप तो सुबह चले जाते हैं और रात को लौटते हैं। इनके लिए खास पथ्य का खाना बनाना, ओखों में डत्रॅप्स डालना, डॉक्टर का आना... एक बात हो तो कह सकती ह। अच्युत तो अमेरिका जाकर बैठ गया है। बेचारा, उसे पूछनेवाला कोई भी नहीं है। हय्ते में दो बार फोन करता था। अलग से कम्प्यूटर भी खरीदकर दिया है, पिता के लिए चालीस हजार का खर्चा किया है। लोग कहते हैं कि वह दूर अमेरिका में है, भला क्या कर सकता है? गलती हमारी ही है। लोग यह भी कहते हैं कि पिताजी की देखरेख न जाने कैसे की, पोते की देखरेख भी दादाजी ही करते थे। पिताजी हमेशा कम्प्यूटर लेकर करते ही क्या हैं? बेटे का ही फायदा हुआ... सबकी नजर हम पर ही है। एक चिद्दी लिख दी, बस। समझ लिया कि उनका कर्तव्य समाप्त हो गया। देखने वाले क्या चुप रह सकते हैं? उसके लिए भी टिप्पणी करते हैं। कितना भला आदमी था, बेटे और बहू पर कोई आपा न आए, संकट के समय में भी चिद्दी लिखना नहीं भूले। उस रात मैंने...’’

‘‘उस रात... क्या हुआ?’’

शालिनी तुरन्त उठकर बाथरूम गई। ठंडे पानी को मह पर खूब छिडकाया। केशव की नाराजगी उतर गई। बेचारी, मेरी विवशता उसे भोगनी पडी, सोच कर ओखों में ओसू आ गये। शालिनी कुछ कहने जा रही थी...

शालिनी आई और बोली, ‘‘सो जाइए, आट्टाी रात हो गई है’’ और उसने केशव के हाथ में कांपोज की दो गोलियो रख दीं।

* * * * *

श्रा= का काम शुरू हुआ तो सवेरे ही शास्त्री जी का मंत्र पठन जारी हुआ। गंट्टा, ट्टाूप, अगरबी का गंट्टा घर के अंदर फैल गया। सावित्रीम्मा के फोटो के बाजू में रंगह्या जी का बडा किया गया फोटो विराजमान था। दोनों को चमेली के हार से अलंकृत किया गया था।

इस बीच नीली जीन्स, सफेद टी-शर्ट पहनकर और पीठ पर बेटी गार्गी को उठाकर अच्युत आया, साथ में बडा सूटकेस भी लाया था। अच्युत और न्यान्सी ने आगे के कमरे ले लिए। कमरेभर में दूट्टा-पाउडर के डिब्बे, पानी की बोतलें, ज्यूस की बोतलें, बेटी की सुलाने की गाडी, स्लेट पडे हुए थे। उस पर अमेरिका का गंट्टा...

आते ही अच्युत ने केशव को गले लगाया और गद्गद् हुआ। केशव ने उसकी पीठ थपथपायी और कहा कि जाओ, पहले नहा लो, बाद में बातें करेंगे। इस प्रकार दोनों भाई इट्टार-उट्टार ओखें बचाकर घूमते रहे। खाने के वक्त भी खामोश रहे। आखिर सभी शाम चार बजे इकद्दे हुए, तब तक शास्त्री जी घर पहच गए थे और आने-जाने वालों का शोरगुल भी खतम हो गया था।

जब किसी ने मह नहीं खोला तो शालिनी ने ही शुरुआत की, ‘‘देखिये, दिनभर खुश थे। शाम को राजू के कपडे भी बदले। उसके साथ स्राॅबल खेलना भी नहीं भूले। खूब खाना खाया। इन्टरनेट के जोक्स को भी बताए जिन्हें पिछली रात को इन्टरनेट पर पढा था। उनके दोस्त भी कहते हैं कि शाम के वक्त जो घूमने गये थे, नॉर्मल ही थे...’’

केशव ने बात आगे बढाई, ‘‘खाना खाने के बाद राजू ने उन्हें गुड नाइट कहा, उसके बाद ही हम लेट गए। मगर वे रोज की तरह इन्टरनेट लेकर बैठ गए थे...’’

‘‘रोज यह आदत उन्होंने डाल दी थी न... मुझसे भी उन्होंने यह बात कही थी।’’

‘‘बाद में सुबह ही देखा।’’ शालिनी ने तुरन्त कहा।

‘‘आई होप ही वाज नॉट डिप्रेस्ड। उन्हें तो कोई डिप्रेशन नहीं था न...’’

‘‘सचमुच नहीं। ऐसा था तो हमें पता चलता था।’’ केशव को कुछ हिचकिचाहट हुई।

‘‘आई मीन... कभी-कभी... अपनी इंटिमेट थॉट्स को शेयर करने के लिए कोई न रहा तो...’’

‘‘हम सब थे... उनके दोस्त थे...’’

‘‘वो अलग हैं...एनिवे...ऐसा नहीं होना था।’’

‘‘ठीक है अच्युत, ऐसा होना नहीं चाहिए था, यह मुझे पता था। तुम क्या कहने की कोशिश कर रहे हो...?’’ केशव की आवाज बढ गई थी।

अच्युत ने हाथ हिलाते हुए कहा, ‘‘रिलेक्स...आई मीन ...’’ उसने उसका कंट्टाा हिलाया।

‘‘आई नो वाट यू मीन। मुझे पता है, तुमने क्या सोचा है... इतनी... परेशानी थी पिताजी के बारे में तो... तुम्हें उन्हें अमेरिका ले जाकर रखना था।’’ केशव का चेहरा लाल-लाल हो गया था, ‘‘यानी...यानी... हम पर तुम्हें भरोसा न था तो...’’

‘‘तुम गलत सोच रहे हो केशव, मैंने ऐसा नहीं कहा...’’ अच्युत उठकर आया और केशव के पास बैठ गया।

न्यान्सी हालात को समझ गई और बोली, ‘‘लगता है, गार्गी को भूख लगी है। उसे दूट्टा पिलाना है। मैं पानी गरम करूँ, तब तक... अच्युत...प्लीज, वो बेबीफुड ला दोगे?’’

अच्युत उठा तो शालिनी ने कहा, ‘‘मैं सबके लिए कॉफी लाती ह।’’ वह रसोईघर चली गई।

रात जब सोने के लिए केशव आया और दरवाजा बंद किया तो शालिनी बेटे से जो दादी के घर में था, फोन से बातें कर रही थी। ‘‘हो, बस दो दिन राजा बेटा। तुम होशियार बने रहो। दादी को परेशान मत करो, होमवर्क करना मत भूलो...हो...मिलेंगे...जरूर। बाई ... गुड नाइट...’’

शालिनी फोन रखकर केशव के बगल में लेट गई।‘‘ ’आपने न्यान्सी के गले को देखा?’’ ट्टाीरे से पूछी।

‘‘क्या?’’

‘‘उसने गले में र्‍ाॅस डाला है, जब वह झुकी तो वह दिखाई दिया।’’

‘‘रहने दे। पता ही तो था न, पिताजी ने तो इसके बारे में कुछ सोचा नहीं था।’’

‘‘अच्युत भी कन्वर्ट हुआ होगा...।’’

‘‘कन्वर्ट होता तो बता देता...’’

‘‘क्यों कहता है? इसलिए तो...कहा था कि जब तुम श्रा= का र्याबकर्म करते रहोगे, मैं दूर बैठकर देखगा, तुम्हीं सब कुछ कर दो... आपने भी उसके आने के बाद तुरन्त ही उसकी सेवा की और जने दिया था...’’

‘‘जने को तो उसने ट्टाारण कर ली...’’

‘‘शास्त्री जी को देखिये... यह सब पाप-कर्म है... देखिये तो...न्यान्सी की समझ में तो आना चाहिए न कि ऐसे अवसर पर साडी पहनना चाहिए... शास्त्री जी के साथ जो छोटा शास्त्री आया था न... उसकी उम्र सोलह-सत्रह होगी... न्यान्सी टी-शर्ट, पैंट पहनकर बैठी थी, तो छोटा शास्त्री उसे कैसे घूर-घूर कर देख रहा था... पता है आपको?... थू-थू...’’

‘‘देखो, उसे साडी पहनने आती नहीं है। शायद उसके पास साडी भी नहीं होगी।’’

‘‘क्या साडी मैं देती नहीं थी?... मन हुआ तो सब सम्भव है...’’

‘‘साडी उसे कम्फर्टेबल महसूस नहीं होगी। पैंट, शर्ट उनकी वेशभूषा है न शालिनी? डोंट मेक इट एन इश्यू।’’

‘‘वहो चाहे जैसे भी रहे। जब यहो आई है तो... वह भी ऐसे अवसर पर... जाने दीजिए, वह जो कुछ करती है, आप सबको अच्छा ही लगता है। वह तो सफेद चमडी वाली है न...’’

केशव खर्राटे मार रहा था, शालिनी ने गुनगुनाती हुई बातें बंद कर दी।

* * * * *

गार्गी की ओखें नीली थीं, वह चटाई पर बैठकर खेल रही थी। केशव, अच्युत के साथ और कुछ लोग गार्गी से बातें करने और उसे हेसाने में लगे थे। न्यान्सी ने जब उसे दादी और दादा का फोटो दिखाकर कहा कि ये तेरे दादी और दादा है, तो वह तुतुलाती हुई प्यार से बोलती थी, ‘‘टाटा...अड्ढी...’’

अच्युत ने पूछा, ‘‘पिताजी का इट्टार निकाला हुआ कोई फोटो है?’’

‘‘है...रुको...छह महीने हुए, हम सब कावेरी फिशिंग कैम्प गए थे। वहो हमने जो फोटो खींचे थे, दिखाेगा ... पिताजी ने खूब एंजॉय किया था...’’ केशव उठ खडा हुआ और पूछा, ‘‘शालिनी, कावेरी फिशिंग कैम्प का अल्बम कहो है?’’

‘‘बेडरूम कबर्ड के पिर शेल्फ में...’’ शालिनी ने कहा।

केशव जब अल्बम लेकर आया तो सभी उसे घेरकर बैठ गए। गार्गी खुशी से, ’टाटा अंकल, दाजू‘ कहती हुई अंगूठी से इशारा करने लगी।

‘‘देखो, वहो का लाग हट्स बढया है। जंगल के बीच ...यह फोटो सीढी के पिर से खींचा गया है। शाम के वक्त हम बेडे में गए थे, कावेरी नदी पर... इट वाज लाउली... यहो देखो, पिताजी लाइफ जैकेट में... गोल घर में हमने खाना खाया था, यह फोटो वहो का है। बाद में वहो कैम्प फायर था। एक ब्रिटिश ने बहुत ही बढया तरीके से गिटार बजाया... हमने बारह बजे तक सुना। पिताजी गाट सो कैरिड अवे... जाकर सो जाने के लिए तैयार नहीं थे...’’

अच्युत ने ऐसा कहा कि सब गरम यादों में तैर गए।

‘‘ही ईज सो फुल ऑफ लाइफ हीयर... पिताजी ऐसे थे, उनको क्या हो गया?’’

केशव ने ट्टाीरे से अल्बम बंद कर रख दिया।

शालिनी अंदर दूसरे दिन की तैयारी में लगी हुई थी। दसवें दिन का कार्यर्म था। घर को साफ करना था, बहुत-सी चीजें इकद्दा करके रखना था। आखिर उसने सभी काम पूरा करके सभी को खाने के लिए बुलाया; उस समय उसके चेहरे पर थकान थी।

शालिनी जब रात को सोने आई तो उसका चेहरा मोटा हो गया था।

‘‘अच्युत को देखकर कुछ सीखिये।’’ उसने पति को देखते हुए कहा।

‘‘क्या?’’ केशव को कुछ भी समझ में नहीं आया।

‘‘मैं सवेरे से काम करके मरी जा रही ह। आप सिर्फ अपना काम देखते हैं। अच्युत पत्नी को कितनी हेल्प करता है...’’

‘‘बस-बस, बहुत हो गई। वह उस बच्ची का गंदा लंगोठी लेकर इट्टार-उट्टार घूमता है। तुम मेरी जान ले रही हो, बस करो बस।’’

‘‘वे दोनों पति-पत्नी हर काम को बोटकर करते हैं, पता है आपको? सुबह न्यान्सी गार्गी को खाना खिलाती है तो रात को उसे खाना खिलाना चाहिए। कुछ भी हो...’’

‘‘वह तो अमेरिकन शालिनी है...’’

‘‘ह... मैं तो कचरे से भी गयी बीती ह।’’ शालिनी बडबडाती हुई सो गई।

* * * * *

अच्युत को अपने परिवार के साथ दूसरे दिन सुबह जाना था। शाम के वक्त सभी हॉल में बैठे थे।

‘‘अगर तुम तेरहवीं मनाने के बाद जाते तो अच्छा था।’’ केशव ने कहा।

‘‘क्या किया जा सकता है। मुझे इतने दिन जो छुड्डी मिली, बडी बात है...’’

‘‘अब की बार राजू को देख नहीं सके।’’ न्यान्सी ने कहा।

‘‘उससे आघात सहा नहीं जाता। सब कुछ पूरा होने के बाद हम उसे लेकर आऐगे और सब कुछ समझा देंगे। ही वाज सो अटेच्ड टु हिज ग्रांड फादर।’’ केशव ने कहा।

केशव उठकर अंदर गया और एक बंद लिफाफा लाया, उसे अच्युत के हाथ म थमा दिया। अच्युत ने उसे खोलकर उस पर एक नजर दौडाई।

‘‘यह विल कॉपी तुम्हारी है। जो भी हो...पिताजी सभी मामलों में पूर्ण थे...’’

अच्युत ने विल को लिफाफे में रख लिया।

‘‘अब...यहो जो कुछ भी पिताजी का है... चाहे तो... चाहे तो...’’

‘‘मुझे...कुछ भी नहीं चाहिए।’’ अच्युत ने कहा।

तभी शालिनी ने देखा कि न्यान्सी ने अच्युत को ट्टाीरे से चिकोटी काटी।

‘‘हो...सिर्फ एक चीज चाहिए... वो मक्खनचोर कान्हा का फोटो है न...कितना ब्यूटीफुल... अेंटिक... अमेरिका लेकर डाल द तो...इट विल बी युनिक... उसे...’’ सभी की नजर उट्टार पडी। चार फुट लम्बा, तीन फुट चौडा, नक्काशीदार का काला पेड... के चौखट में चोदी के पार में चित्रित किया गया लाडला मक्खन चोर कान्हा... हाथ में मक्खन लेकर, रेंगता कान्हा की ओखों में भरपूर नटखटपन, होठों में मुस्कुराहट, माथे से आट्टाा नीचे उतरा पुडया कुंकुम...

शालिनी तुरन्त उठ खडी हुई।

‘‘यहा...इस घर में...हमारे सास-ससुर जी रोज सुबह नहाने के बाद, पहले कान्हा को नमस्कार करते हैं। कहा जाता है कि उनके बुजुर्ग भी ऐसा ही करते थे। हम भी यही कर रहे हैं। हमारा राजू भी...ये मूर्ति यहीं रहने दें...प्लीज।’’ शालिनी ने कह दिया। केशव व्यग्र हुआ।

‘‘वह ठीक है...मगर मैं भी उनका बेटा ह न।’’ अच्युत ने कंट्टाा हिलाया।

‘‘इस कान्हा की पूजा सैकडों सालों से हमारे वंशज करते आए हैं, यह पूजा-पाठ यहो ऐसा ही आगे बढता रहता है।’’ शालिनी गम्भीर हो गई।

* * * * *

उस दिन तेरहवीं के पूरा होने पर अच्युत अपनी पत्नी और बेटी के साथ अमेरिका जाने पर घर शून्य लग रहा था। रात को सभी काम पूरा करने के बाद शालिनी और केशव ने एक-एक लौटा दूट्टा पिया और सोने आएऋ तब दस बज रही थी। दोनों ने फैसला किया था कि राजू को दूसरे दिन लेकर आयेंगे। दीप बुझाकर जब शालिनी लेट गई तो वह सिसकी भर रही थी।

‘‘शालिनी, क्या हुआ?’’ केशव ने शालिनी को बोहों में भरकर कहा।

‘‘मुझ से अब...मुझसे अब सहा नहीं जाता...’’

‘‘क्या हुआ...’’

‘‘आपसे कहना ही चाहिए...नहीं तो...दिस विल किल मी...’’

‘‘बताओ, क्या कहना है...’’

केशव ने लाइट ऑन किया। ’लाइट ऑफ कीजिये‘ शालिनी ने कहा। शालिनी अंट्टोरे में उठ बैठ गई। केशव उसके बगल में बैठ गया।

‘‘केशव!’’

‘‘हो...’’

‘‘उस दिन रात को... पिताजी...’’

‘‘हो...’’

‘‘मैंने उन्हें रात ग्यारह बजे देखा था। आप सबके सो जाने के बाद...’’

‘‘क्या?’’

‘‘आखिरी बार उन्हें मैंने ही देखा था...मगर आपसे क्या कह, यह सोचकर आज तक छिपाती रही...’’

‘‘इसमें छिपाने की क्या बात है?’’

‘‘मैं रात को बाथरूम जाने के लिए उठकर आई। हॉल में बिजली जल रही थी। बाथरूम का दरवाजा बंद था। पिताजी बाथरूम गए थे, इसलिए हॉल में आई। कम्प्यूटर चालू था। कौतूहलवश उसके पास जाकर देखा।’’ शालिनी फिर सिसकी, ‘‘वहो पर... स्र्ी न भर नंगी औरतों की तस्वीरें...पिताजी पैंट हाउस साइट खोल कर बैठे थे...।’’

‘‘क्या?’’

जब तक दरवाजा खुल गया। वे बाथरूम से आकर खडे थे... मुझे वहो देखकर उनको आघात लगा था...’’

‘‘क्या? तुमने जो देखा, उन्हें पता चल गया?’’

‘‘जी हो। उस समय उनके चेहरे पर जो एक्सप्रेशन हुआ था, मैं जिंदगी भर भूल नहीं सकती...वो पल... मुझे उनसे कहना था कि इट्स ओके। मगर मेरे मह से एक शब्द भी नहीं निकल सका...मैंने...उनके बहुत ही निजीपन के पलों पर हमला किया था...मैंने ही उनका खून कर दिया, ऐसा ही हुआ न?’’ शालिनी हाथों से चेहरे को छिपाकर रोने लगी।

‘‘हे भगवान...!’’

केशव सिर को दोनों घुटनों के बीच रखकर सिसकने लगा। शालिनी ने उसे हाथों से सेवारा और उसके कंट्टो पर सिर रख दिया।

* * * * *

सुबह हुई, मगर केशव अभी तक बिस्तर पर किंकर्तव्यविमूढ होकर बैठा था। शालिनी ने उठकर दोत साफ किए। दूट्टा गरम किया और केशव के पास आकर ट्टाीरे से बोली, ‘‘उठिए, कॉफी पीते हैं। आज से फिर हमें रोज की जिंदगी जीना है न...’’

केशव हाथ-मह ट्टाोकर हॉल में आकर बैठ गया तो गरम-गरम कॉफी तैयार थी।

‘‘अभी जाकर राजू को ले आता ह... मो के घर से... यहीं से उसे स्कूल बस में बिठाऐगे।’’

‘‘आपका खाने का डिब्बा तैयार है। बैंक जाते वक्त ले जाना मत भूलिएगा...’’

शालिनी नहायी और मो के घर जाने की तैयारी करने लगी।

केशव ट्टाीरे-से तैयार हुआ, स्कूटर चालू किया और बैंक के लिए निकल पडा। उसके साथियों ने उसका मुरझाया हुआ चेहरा देखा और समझ गये कि केशव बातचीत करने के मूड में नहीं है।

टेबल पर फाइलें पडी थीं। केशव ने उन पर नजरें दौडाई, मगर दिमाग में कुछ नहीं सूझा। शालिनी की बातें ओखों के सामने घूमती थीं। उसे लगा कि अगर उसी पल शालिनी उस घटना को अपने में ही छिपा कर रख लेती तो अच्छा था।

(अनुवाद : डी.एन. श्रीनाथ)

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