अंत भला तो सब भला : रूसी लोक-कथा

Ant Bhala To Sab Bhala : Russian Folk Tale

इवानोव सेना में काम कर चुका था। वहाँ उसने अपनी जान हथेली पर रखकर शत्रुओं को पराजित किया था। जब वह युद्ध के मोर्चे से घर लौटा तो उसने देखा कि उसके घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी। पिता की मृत्यु हो गई थी। युद्ध से लौटने के बाद इवानोव का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा था। एक दिन उसकी पत्नी बोली, 'इवानोव कुछ-न-कुछ करना होगा। यहाँ तो कोई काम नहीं है। हम यहाँ से कहीं ओर चलते हैं। अभी तुम पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो तो मैं कोई काम कर लूँगी।' इवानोव पत्नी की बात मानकर गाँव से चला गया। वहाँ उसकी पत्नी ने एक दुकान पर काम करना आरंभ कर दिया। इवानोव भी शहर में स्वस्थ होने लगा था। अब वह भी काम की तलाश में इधर-उधर जाने लगा था। एक दिन वह रेलवे स्टेशन पर खड़ा था। स्टेशन मास्टर को एक ऐसे युवक की तलाश थी जो रेल लाइन के रख-रखाव का काम सँभाल सके।

उसने इवानोव को काम पर रख लिया । इवानोव पूरी ईमानदारी से काम करने लगा। उसके साथ ही वेसिली नामक युवक भी काम करता था। पर उसका इस काम में मन नहीं लगता था । इवानोव उसे बहुत बार कहता, 'हमें अपने काम से प्यार करना चाहिए। जब हम काम को पूरी निष्ठा और प्रेम से करते हैं तो काम अच्छा होता है।' लेकिन वेसिली उसकी बातों को मजाक में उड़ा देता। वेसिली की एक और बहुत खराब आदत थी। वह अपने सहकर्मियों से लेकर अधिकारियों तक के व्यवहार और काम में हर वक्त कमी निकालता रहता था। वहीं इवानोव सबसे प्रेम से बात करता था और हमेशा सबकी सहायता के लिए तैयार रहता था। जो लोग उससे ईर्ष्या करते थे, इवानोव उनसे भी नम्रतापूर्वक बात करता था। अधिकारियों व सहकर्मियों को इवानोव बेहद प्रिय था । बहुत कम समय में इवानोव ने सभी के बीच में अपने लिए एक लोकप्रिय जगह बना ली थी हालाँकि रेल लाइन के रख-रखाव का ध्यान रखना सरल काम न था। सर्दियों में तो इस काम में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था।

इवानोव जब भी वेसिली से मिलता हमेशा उससे सकारात्मक बातें करता और कहता, 'क्या हुआ हमारा काम कठिन है तो। मेहनत और अच्छे विचार हमें अवश्य सफलता पर पहुँचा देंगे।' इस पर वेसिली चिढ़कर कहता, 'यह सिर्फ तुम्हारा वहम है इवानोव । इस दुनिया में केवल अमीर लोग शासन करते हैं और गरीब लोग सताए जाते हैं।' पर इवानोव उसकी बातों से कभी सहमत नहीं होता था। वह उससे कहता, "वेसिली, अपनी सोच बदलो। सोच बदल लोगे तो तुम्हारी दुनिया ही बदल जाएगी।' एक दिन अधिकारियों ने इवानोव को बुलाया और उससे बोले, “इवानोव तुम और वेसिली एक ही स्टेशन पर मिल-जुलकर काम करते हो। लेकिन वेसिली कभी भी अपना काम ढंग से नहीं करता है। बल्कि ऐसा सुनने में आया है कि कई बार तुम्हीं उसका काम करते हो।' इवानोव बोला, "नहीं सर, ऐसा नहीं है बल्कि वेसिली बहुत मेहनती है। उसे तरक्की मिलनी चाहिए।' इवानोव से वेसिली के बारे में ऐसी बातें सुनकर अधिकारी चकित रह गए। क्योंकि सभी सहकर्मी उसके दुर्व्यव्यवहार और काम सही से न करने की शिकायत करते थे ।

एक दिन बड़े अधिकारी ने वहाँ पर दौरा किया। उसने पाया कि वेसिली काम के समय पर लापरवाही से सोया हुआ है। अकेला इवानोव सारा काम सँभाल रहा है। उसकी इतनी बड़ी लापरवाही को देखते हुए उसे काम से निकाल दिया गया। वेसिली को लगा कि शायद इवानोव ने उसकी शिकायत की है इसलिए उसे नौकरी से निकाल दिया गया है।

वह वहाँ से जाते-जाते इवानोव से बोला, 'तुमने मेरी शिकायत करके अच्छा नहीं किया। मैं तुमसे इस का बदला अवश्य लूँगा।' इवानोव उसकी बात सुनकर हैरानी से बोला, "वेसिली, जरूर तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है। मैंने तुम्हारी कोई शिकायत नहीं की है।" पर वेसिली ने उसकी एक न सुनी और इवानोव के प्रति अपने मन में नफरत पाले वहाँ से चला गया।

वेसिली चुपके-चुपके इवानोव से बदला लेने की साजिश रचने लगा। इवानोव को बाँसुरी बनाने का शौक था। इसलिए वह समय मिलने पर अक्सर बाँसुरी के लायक नरकुल की तलाश में तालाब की ओर चला जाता था। उस दिन भी इवानोव नरकुलों की तलाश में तालाब की ओर गया। तालाब के एक तरफ ऊँचाई से रेल लाइन गुजरती थी । वहाँ दूर तक घनी झाड़ियाँ उगी हुई थीं। एकाएक अचानक इवानोव के कान में जोर से ठक की आवाज हुई। इवानोव यह आवाज सुनकर रुक गया। दोबारा से उसे आवाज सुनाई दी। इस बार उसे ऐसा प्रतीत हुआ, मानो लोहे से लोहा टकरा रहा हो। जैसे-जैसे वह आवाज की दिशा में बढ़ता जाता था आवाज तेज होती जाती थी। फिर कुछ देर में सब ओर सन्नाटा छा गया। आवाज थम गई। इवानोव रेल लाइन के पास पहुँचा तो यह देखकर उसके होश उड़ गए कि एक जगह से रेल पटरी उखड़ी हुई थी। तभी उसने देखा कि वेसिली वहाँ से जा रहा था। इवानोव को यह समझते देर न लगी कि यह वेसिली की शरारत है। पर इस समय यह सब सोचने का वक्त नहीं था । इवानोव के पास समय कम था। थोड़ी ही देर में रेल वहाँ से गुजरनेवाली थी और सैकड़ों जिंदगियाँ दाँव पर थीं। इस समय रेल पटरी को अपनी जगह फिट करने का समय न था, न ही साधन थे उसने तुरंत अपनी कमीज उतारी और नरकुलों पर उसे झंडे की तरह बाँध दिया। फिर वह उसे हिलाता हुआ रेल लाइन की ओर दौड़ पड़ा। कुछ पल बाद इंजन की सीटी गूँजी और पहियों की धड़-धड़ गूँजने लगी। इवानोव कमीज को झंडे की तरह हिलाता हुआ दौड़ा जा रहा था। साथ ही वह यह भी बोल रहा था, 'गाड़ी रोको, आगे लाइन टूटी हुई है।' तभी वह लड़खड़ा कर रेल लाइनों के बीच गिर पड़ा और बेहोश हो गया।

कुछ देर बाद उसके कानों में आवाज गूँजी, 'इवानोव, इवानोव कैसे हो ? सब ठीक है।' उसने अपने सामने वेसिली को खड़े पाया । उसकी नजर रेल लाइन पर गई तो देखा कि रेलगाड़ी रुकी हुई थी और यात्री डिब्बों से उतरकर वहाँ जमा हो गए थे। इंजन ड्राईवर बता रहा था कि, 'आज यदि इवानोव और वेसिली वहाँ नहीं होते तो न जाने क्या होता ?' इवानोव ने हैरानी से वेसिली की ओर देखा तो पाया कि वेसिली की आँखें पश्चाताप से गीली थीं।

कुछ देर बाद भीड़ वहाँ से छँट गई। वेसिली ने इवानोव को सहारा देकर उठाया । इवानोव उससे बोला, 'वेसिली यह क्या चक्कर है?' वेसिली रूँधे गले से बोला, “इवानोव मैं दोषी हूँ, मुझे सजा मिलनी चाहिए। मैं रेल की पटरी उखाड़कर जा रहा था कि तभी मुझे सहकर्मी येरू मिला । वह मुझसे बोला, ‘वेसिली इतने दिनों तक इवानोव जैसे देवता पुरुष के साथ रहकर तुमने कुछ नहीं सीखा, जबकि मैं इवानोव की सच्चाई, विचार और मेहनत का कायल हो गया हूँ। उसने कभी भी तुम्हारी शिकायत नहीं की। यहाँ तक कि उसने बड़े अधिकारियों से हमेशा तुम्हारे काम की प्रशंसा की। वह तो बड़े अधिकारी ने तुम्हें ड्यूटी पर सोते हुए पकड़ा और नौकरी से निकाल दिया। बस इसके बाद मैं और नहीं सुन पाया और तुम्हारी ओर भाग चला। मैंने देखा कि तुम थककर रेल की पटरियों के बीच गिर गए थे और गाड़ी रफ्तार से आ रही थी। मैंने नरकुल में लिपटी कमीज को पकड़ा और उसे लेकर आगे बढ़ चला। ईश्वर ने मेरा साथ दिया और कोई नुकसान नहीं पहुँचा।' उसकी यह बात सुनकर इवानोव उसे गले से लगाते हुए बोला, 'वेसिली, जब जागो तभी सवेरा, अंत भला तो सब भला । अब किसी से कुछ न कहना।' तभी बड़े अधिकारी वहाँ पर आए और उन्होंने दोबारा से वेसिली को काम पर बहाल कर दिया। अब वेसिली बिल्कुल बदल गया था। और हाँ इसी बीच इवानोव और वेसिली दोनों गहरे दोस्त बन गए थे।

(साभार : रेनू सैनी)

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