अनोखी शर्त : लोककथा (उत्तराखंड)
Anokhi Shart : Lok-Katha (Uttarakhand)
किसी गाँव में एक जमींदार रहता था। जमींदार का नाम सुजान सिंह था। सुजान सिंह के गाँव से बहुत दूर ताजबर सिंह नाम का जमींदार रहता था। सुजान सिंह और ताजबर सिंह गहरे दोस्त थे। ताजबर सिंह का एक लड़का था। उसका नाम सुदीप था। जिस दिन सुदीप का जन्म हुआ , सुजान सिंह सुदीप को देखने आया। सुदीप को देखकर सुजान सिंह ताजबर सिंह से बोला -’’मित्र! यदि मेरे घर में कन्या का जन्म होगा तो मैं तुम्हारे पुत्र के लिए अपनी कन्या दूंगा। कुछ समय बाद सुजान सिंह के घर पुत्री का जन्म हुआ। उसने पुत्री का नाम कबूतरी रखा।
देखते-देखते दोनों ब्याह योग्य हो गए। उनकी शादी की तिथि तय हो गई। सुजान सिंह और ताजबर सिंह को शर्त लगाने का बड़ा शौक था। वे एक दूसरे से शर्त लगाते रहते थे। जो शर्त हारता वह दूसरे को जुर्माने के रूप में धन देता था। सुदीप और कबूतरी की शादी के बारे में सुजान सिंह ने ताजबर सिंह से पूछा - ’’आप कितने बाराती लेकर आ रहे हो ?’’
‘‘पूरे सौ ‘‘- ताजबर सिंह बोला।
’’ठीक है हम सौ मेहमानों की व्यवस्था कर लेंगे किन्तु हमारी शर्त है सभी मेहमान माँस खाने वाले होने चाहिए। बारात में सभी मेहमान युवा होने चाहिए। कोई बुजुर्ग आदमी न आए।’’
सुजान सिंह को ताजबर सिंह की शर्तों के बारे में पता था। वह कई बार ताजबर सिंह की शर्तो में उलझ भी चुका था। वह समझ गया कि ताजबर किसी शर्त में युवा मेहमानों को उलझा न दे। इसलिए उसने गाँव के एक बुजुर्ग को कन्डे(रिंगाल से बनी सामान रखने की वस्तु) के अन्दर छिपाकर बारात में भेज दिया। उस कण्डे को ढका गया था। उसमें बुजुर्ग आदमी को देखने और सांस लेने के लिए छेद बनाए गए थे। ताजबर सिंह ने शर्त रखी थी कि कोई बुजुर्ग मेहमान बारात में न आए। इसलिए सुजान सिंह ने ऐसे बुजुर्ग को बारात में भेजा जो लडकी वालों (ताजबर सिंह) की ओर से भी बुलाया गया था।
बारात सुजान सिंह के घर से ताजबर सिंह के घर पहुँच गई । ताजबर सिंह ने बारातियों का खूब स्वागत किया । मेहमानों से वह बोला - ’’देखो, भई ! हमने पहले ही कहा था, सब बाराती माँस खाने वाले होने चाहिए। इसलिए हमने सौ मेहमानों के लिए सौ बकरों का इंतजाम किया है । हमारी शर्त यह है कि हर बकरा कटेगा और माँस बचना भी नहीं चाहिए। बारात में आए युवा मेहमानों का सुजान सिंह की शर्त को सुनकर सिर घूम गया। उन्होंने सेाचा -’’सौ बकरे यानी एक मेहमान को एक बकरा खाना पड़ेगा। यह कैसे हो सकता है ? अंत में उन्होंने कन्डे में छिपाकर लाए बुजुर्ग मेहमान से इसका समाधान पूछा - वह बोला -’’ लड़की वालों से कहो - ‘‘ सौ बकरों को एक पंक्ति में बांध लो। पहले एक बकरे को काटो। उसका माँस पकाकर सब मेहमानों को खिलाओ। हर मेहमान के हिस्से थोड़ा-थोड़ा मांस आएगा। ऐसे ही बारी बारी से एक एक बकरे को काटो। उसका मांस पकाओ और मेहमानों को खिलाओ।’’
युवा मेहमानों ने ताजबर सिंह को यह बात बता दी। वह समझ गया बारातियों में कोई बुजुर्ग अवश्य आया है। ऐसी सलाह कोई बुजुर्ग अनुभवी आदमी ही दे सकता है। उसने खोजबीन की तो कन्डे के अन्दर छिपे हुए बुजुर्ग को देखा। बुजुर्ग कन्डे से बाहर आया। बुजुर्ग को देखकर ताजबर सिंह मेहमानों से बोला -’’भई! तुमने शर्त में धोखा दिया है। हमने कहा था बाराती के रूप में कोई बुजुर्ग नहीं आना चाहिए। यह देखो बुजुर्ग।‘‘
’’मैं बाराती नहीं हूँ मैं तो घराती (लड़की वालों की तरफ से ही) हूँ। इसलिए शर्त का पालन हुआ है।’’ - वह बुजुर्ग बोला।
’’लेकिन तुम कन्डे के अन्दर क्यों छिपे थे ?’’ - ताजवर सिंह के इस सवाल को सुनकर वह बुजुर्ग बोला - ’’जैसे तुम्हें शर्त पर शर्त लगाने का शौक है वैसे ही मुझे कन्डे के अन्दर छिपकर बारात में आने का शौक है ’’।
बुजुर्ग की बात को सुनकर ताजबर सिंह और सभी बाराती हँस पड़े।
(साभार : डॉ. उमेश चमोला)