अनोखा स्वयंवर : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा

Anokha Swayamvar : Lok-Katha (Oriya/Odisha)

उत्कल देश पर एक शक्तिशाली राजा राज करता था। उसकी एक सुंदर, प्रतिभाशाली और बुद्धिमती पुत्री थी ऐश्वर्या। सुरीली आवाज़ की सम्राज्ञी और एक बेहतरीन नृत्यांगना होने के साथ-साथ उसे वेद-ग्रंथों का भी खूब ज्ञान था। ऐश्वर्या को अपने रंग-रूप, ज्ञान और गुणों पर काफी गर्व था।

इक्कीस वर्ष की होने पर उसके पिता ने कहा, "पुत्री, मैं तुम्हारे लिए स्वयंवर आयोजित कर रहा हूं। इसमें देशभर से राजाओं-राजकुमारों को आमंत्रित किया जाएगा। जिसे तुम चाहो, अपना वर चुन सकोगी।"

"पिताजी, मेरा स्वयंवर साधारण नहीं होना चाहिए। जिसे मैं अपना जीवनसाथी चुनूंगी, वह एक विशेष व्यक्ति होगा। एक ऐसा युवा जो सर्वोत्तम से भी बढ़कर हो," ऐश्वर्या पिता से बोली।

"कौन कितना सर्वोत्तम है यह कैसे मालूम पड़ेगा पुत्री?"

"इसके लिए हमें विभिन्न श्रेणियों में प्रतियोगिताएं आयोजित करनी होंगी। सभी प्रतियोगिताएं जीतने वाले को सर्वश्रेष्ठ और उपयुक्त माना जाएगा।"

"तो फिर किस-किस तरह की प्रतियोगिताएं होनी चाहिए?"

"तीरंदाजी, गायन, नृत्यकला, शास्त्रज्ञान और सौंदर्य," ऐश्वर्या बोली।

"ठीक है ऐश्वर्या," राजा बोला, "मैं रतन से कह देता हूं। वह स्वयंवर की सभी व्यवस्थाएं करनी शुरू कर देगा।"

रतन राज्य के प्रधानमंत्री का पुत्र था। ऐश्वर्या और रतन, दोनों एक साथ पले-बढ़े थे। किसी को भी मालूम नहीं था कि रतन मन-ही-मन ऐश्वर्या को चाहता था। वह जानता था कि ऐश्वर्या से विवाह करने की अपनी अभिलाषा को वह कभी व्यक्त नहीं कर सकता था। अब वह ठहरा एक मंत्री का बेटा और ऐश्वर्या इतने बड़े देश के राजवंश की राजकुमारी।

छह महीने बाद प्रतियोगिताएं प्रारंभ हो गईं। दूर-देश से राजा, महाराजा, राजकुमार और राजसी पुरुष इनमें भाग लेने पहुंचे। सभी प्रजावासियों ने एक-एक प्रतियोगी की प्रतिभाओं को देखा। हफ्तेभर ये प्रतियोगिताएं चलती रहीं और आठवें दिन परिणाम घोषित किए गए। कोई भी राजा या राजकुमार स्पष्ट विजेता नहीं बन पाया।

कौशल का राजकुमार कामदेब सबसे सुंदर था तो उल्हास राज्य का राजकुमार प्रकृत गायन में प्रवीण था। कृतिनगर के नृत्यानंद ने नृत्य में अपना लोहा मनवाया तो कांचीपट्नम के पराक्रम सर्वोत्तम तीरंदाज़ घोषित किए गए। शास्त्रज्ञान में स्वस्तीपुर के ज्ञानचंद्र विजयी रहे।।

“अब क्या किया जाए पिताजी?" ऐश्वर्या ने पूछा।

"इन्हीं में से तुम्हें अपना वर चुनना है पुत्री," राजा ने उत्तर दिया।

"लेकिन कैसे पिताजी? मैं तो चाहती थी मेरा वर सर्वश्रेष्ठ से बढ़कर हो। पर ये प्रतियोगी तो एक-एक गुण में ही श्रेष्ठ हैं।"

“मैं तो कहता हूं कि इन पांचों युवकों को यहां कुछ दिन और अतिथि के रूप में रहने दो। शायद यह सामने आ जाए कि इनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है," राजा ने पुत्री को सलाह दी।

इस तरह पांचों राजकुमार महल में कुछ दिन और रहे। स्वयं को सबसे श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए वे हर संभव प्रयास करने लगे।

सूर्य की पहली किरण के साथ ऐश्वर्या को प्रकृत की मधुर आवाज़ में रोमांचकारी गीत सुनने को मिलते। वह नीचे बगीचे में खड़ा गा रहा होता। जैसे ही वह सीढ़ियों से उतरकर नीचे आती तो राजसी वेशभूषा में सजा-धजा कामदेब राजकुमारी के समक्ष अपना प्रणय-निवेदन रखने के लिए खड़ा रहता। इसके बाद ज्ञानचंद्र राजकुमारी के साथ वेदों और उपनिषदों पर विमर्श करना शुरू कर देता था। फिर पराक्रम भी कहां पीछे रहता। वह भी राजकुमारी को अपनी धनुर्विद्या का प्रदर्शन दिखाता। शाम के समय जब वह अपने कक्ष में आराम कर रही होती तो नृत्यानंद उसे नृत्य-कक्ष में अपना शास्त्रीय नृत्य दिखाने के लिए बुला लेता।

जैसे-जैसे ऐश्वर्या उनके साथ समय बिता रही थी, वैसे-वैसे उसकी उलझन बढ़ती जा रही थी। किससे विवाह करे, इस प्रश्न का उत्तर तलाश पाना स्वयं उसके लिए कठिन हो गया। यह दुविधा उसने रतन को बताई।

"इसमें मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता राजकुमारी ऐश्वर्या। ये निर्णय आपका है और आपको ही लेना है," रतन विनम्रतापूर्वक बोला।

"क्या मतलब है तुम्हारा? मैं क्या चाहती हूं, मुझे नहीं पता?"

अपना सिर झुकाकर रतन बोला, “विवाह के लिए आप किसी व्यक्ति को तलाश रही हैं या किसी गुण विशेष को?"

"स्वाभाविक है, किसी व्यक्ति को!" चिड़कर ऐश्वर्या ने जवाब दिया।

"तो फिर आप पर गुणों की धुन क्यों सवार है। इस चक्कर में आप वर को भूल रही हैं। सुंदर युवा, उत्कृष्ट नर्तक, कुशल धनुर्धर, प्रतिभाशाली गायक और शास्त्रज्ञाता होने से पहले वे कैसे व्यक्ति हैं, क्या आपने यह जानने का प्रयास किया?" रतन ने अपनी बात को मज़बूती से रखा।

ऐश्वर्या हैरान थी। उसने सोचा नहीं था कि रतन उसके बारे में इतनी गहराई से सोचता होगा। इससे पहले वह कुछ कहती, रतन चला गया।

रतन के कहे शब्द रातभर राजकुमारी के दिमाग में गूंजते रहे।

अगले दिन मौसम बहुत सुहावना था। पांचों राजकुमार और राजकुमारी ऐश्वर्या दक्षिण के जंगलों के भ्रमण को निकले। रतन भी उनके साथ था। वह भूल गई कि उसके साथ सुरक्षाकर्मी नहीं है। ऐश्वर्या राजकुमारों से बातें करती चली जा रही थी। इस बीच समय कैसे बीत गया, उन्हें पता ही नहीं चला। तभी रतन रुका और बोला, “अब हमें वापस चलना चाहिए!"

"लेकिन क्यों?" कामदेब ने पूछा।

"अंधेरा होने वाला है, हमें समय से राजमहल लौट जाना चाहिए।"

"तुम्हें डर तो नहीं लग रहा रतन?" नृत्यानंद ने हँसते हुए कहा।

"तुम चिंता मत करो, हम हैं न तुम्हारे साथ," पराक्रम बोला।

"हां, हां! हम हैं न साथ में," ज्ञानचंद्र ने भी अपनी बात जोड़ी।

उन्हें अनदेखा करते हुए रतन बोला, “ऐश्वर्या, महल से निकले तीन घंटे से अधिक समय हो चुका है। महाराज चिंता कर रहे होंगे। जंगल के इस इलाके में बाघ हैं। हमारे पास शस्त्र भी नहीं हैं। आओ, वापस चलें।"

रतन के निवेदन को अनसुना करते हुए ऐश्वर्या चलती रही। पांचों राजकुमार तिरस्कारपूर्ण नज़रों से रतन को देखते हुए राजकुमारी के संग हो लिए। उन पर ध्यान न देते हुए रतन भी उनके पीछे चलने लगा।

अचानक एक ज़ोरदार दहाड़ सुनाई पड़ी। सब रुक गए। कुछ ही कदमों की दूरी पर एक खतरनाक बाघ खड़ा था। ऐसा बाघ ऐश्वर्या ने कभी नहीं देखा था। वह ऐश्वर्या को घूरने लगा और उस पर गुर्राने लगा।

इससे पहले कि कोई कुछ करता, रतन राजकुमारी के आगे आकर खड़ा हो गया। बाघ ने रतन पर नज़रें गड़ा दीं। रतन बोला, “भागो ऐश्वर्या, भागो! बाघ भूखा है। जब तक मैं इसे रोक सकता हूं, रोकूँगा...आप भागोऽऽऽ।"

"हां, आओ ऐश्वर्या, सैनिकों को बुला लाते हैं," कामदेब ने कहा।

"मैं रतन को छोड़कर नहीं जाऊंगी," ऐश्वर्या बोली।

"अरे....हम छोड़कर थोड़े जा रहे हैं। मदद मांगने ही तो जा रहे हैं," नृत्यानंद के मुंह से बड़ी मुश्किल से बोल निकल पा रहे थे।

"बाघ हमें कच्चा खा जाएगा, भागो ऐश्वर्या!" पराक्रम चिल्लाया।

"रतन को छोड़कर मैं नहीं जाऊंगी," राजकुमारी बोली।

"लेकिन हम तो जान बचाएं," ज्ञानचंद्र बोला और सभी भाग लिए।

रतन एक फुरतीला और हृष्ट-पुष्ट युवक था। जैसे ही बाघ रतन की ओर बढ़ा, रतन बाघ की पीठ पर झपट पड़ा। अपनी मज़बूत भुजाओं का फंदा बनाकर उसने बाघ की गर्दन को जकड़ लिया। बाघ ने उसे फेंकने के भरसक प्रयास किए, लेकिन रतन डटा रहा। तभी बाघ की जोरदार चीख निकली और वह शांत पड़ गया। ऐश्वर्या ने पलटकर देखा, सुरक्षाकर्मी पहुंच चुके थे। उनके चलाए तीरों से बाघ धराशायी हो गया था।

रतन उठ खड़ा हुआ। बाघ ने उसे कई चोटें पहुंचाईं, लेकिन वे गंभीर नहीं थीं। ऐश्वर्या दौड़कर रतन के पास पहुंची और उसका हाल पूछा।

सुरक्षाकर्मी बोला, "महाराज आप लोगों के लिए चिंतित हो रहे थे और उन्होंने हमें आपको तलाशने के लिए भेज दिया। रास्ते में वे पांचों राजकुमार हमें मिले और उन्होंने हमें बताया कि आपकी जान खतरे में है।"

***

अगले दिन ऐश्वर्या रतन से मिलने पहुंची।

"कैसे हो तुम रतन? मैं तुम्हें अपना निर्णय बताने आई हूं।"

"अच्छा, तो किसे चुना आपने? गायक, नर्तक, धनुर्धर, शास्त्रज्ञाता या फिर वह सुंदर युवक?" रतन ने उत्सुकता से पूछा।

"नहीं, इनमें से कोई मेरा पति बनने के योग्य नहीं है। मैंने ऐसे व्यक्ति को चुना है जो अपने से अधिक मेरे जीवन को महत्त्व देता है।"

रतन ने सिर उठाकर ऐश्वर्या के चेहरे की ओर घूरकर देखा।

"क्या आप सच कह रही हैं राजकुमारी ऐश्वर्या?"

"हां, मैंने तुम्हें अपने पति के रूप में चुना है। अब मैं तुम्हारे दिल की बात जानना चाहती हूं। मुझे अपनी जीवनसंगिनी स्वीकार करोगे?"

"ऐश्वर्या, मैंने सदा आपको दिल से चाहा है। मुझे अपने योग्य समझकर आपने मुझे दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान बना दिया है।"

एक माह के पश्चात ऐश्वर्या और रतन का विवाह हुआ। इस भव्य आयोजन में सौंदर्य की प्रतिमा ऐश्वर्या और प्रसन्नचित्त रतन को देखकर उत्कलवासियों ने वर-वधू की खूब वाह-वाही की।

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