अनिमा की पूसी (असमिया बाल कहानी) : नवकांत बरुआ/নৱকান্ত বৰুৱা

Anima Ki Poosi (Assamese Baal Kahani in Hindi) : Nabakanta Barua

पूसी को लेकर अनिमा बड़ी आफत में पड़ गयी । बरफ की तरह सफेद रोमवाली यह पूसी कितनी सुन्दर है । अनिमा जब उसे गोद में लेती तो वह दोनों आँखें मूंदकर म्याऊँ म्याऊँ करने लगती। पूसी नटखट तो नहीं है लेकिन कभी-कभी वह घर के सभी लोगों को तंग कर देती है। इसी कारण, घर के सभी लोग इस बिल्ली से नफरत करते हैं। कभी माँ के तो कभी दीदी के सामान नष्ट करती रहती है।

माँ कहती है, 'अनिमा, अपनी बिल्ली को अच्छी तरह संभालो । मेरे करघे के सारे धागे तोड़ दिये उसने ।' अनिमा बैठी बैठी करघे के धागे जोड़ने लगती ।

दीदी कहती, 'तेरी बिल्ली ने मेरे वूल का बाल नष्ट कर दिया।' अनिमा पूसी को एक हल्का सा चपत लगाकर अपनी दीदी के वूल के बाल ठीक करने बैठ जाती है। काम कर चुकने के बाद चुपके-चुपके पूसी को गोद में लेकर पूछती, 'तुझे चोट लगी है न पूसी, तू इतनी नटखट क्यों है रे?' पूसी दोनों आँखें मूँद लेती है. 'म्याऊँ म्याऊँ ।'

यहाँ तक तो करीब ठीक ही था। उसे सहा जा सकता था, किन्तु एक रोज पूसी ने गजब कर दिया। उस दिन अनिमा के पिताजी की मेज पर रखे ग्लोब के साथ वह खेल रही थी। अपने हाथ से ही वह ग्लोब को घुमा देती, फिर उस ग्लोब का घूमना वह अपने हाथ ही से बन्द कर देती । अनिमा को भी इसमें बड़ा मजा आता था। इस तरह वह बराबर खेलती रहती । खेलते समय एक दिन एक कांड हो गया। मेज पर रखी दवात गिर पड़ी। दवात में रखी काली स्याहां से पिताजी की सारी किताबें तथा कापियाँ खराब हो गयीं। फिर उस दवात की स्याही मेज के नीचे जमीन पर जा पड़ी और सब गन्दा कर दिया। अनिमा उसे छिपाना चाहती थी, पर इतने में माँ वहाँ पहुँच गयी।

शाम को अनिमा के पिताजी ने आफिस से आकर ये सब करतूतें देखीं और वे गम्भीर हो गये। उनकी बहुत मूल्यवान किताबें नष्ट हो गयी थीं। तथापि उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा। शाम को बिल्ली को ले जाकर बहुत दूर छोड़ आये | अनिमा रोती - रोती सो गयी।

जाड़े की रात थी । दरवाजे तथा खिड़कियाँ सभी बन्द । अचानक अनिमा के गाल पर किसी के कोमल हाथ की छुअन का-सा अनुभव हुआ । उसकी आँखें खुल गयीं तो देखा पूसी है। उसने कुछ ऊँचे स्वर में कहा, 'पूसी तू आ गयी ।' पिताजी जग गये उन्होंने सोचा, 'बेचारी सपने मैं बड़बड़ा रही है। हठात उनकी आँखें दरवाजे पर पड़ीं। देखा कि दरवाजा खुला है। यह कैसे हुआ । सोते समय उन्होंने अच्छी तरह उसे बन्द कर रखा था। वह उठ बैठे। छाया की तरह कोई निकल गया-सा लगा। वह चिल्ला उठे, 'चोर-चोर ।'

अड़ोस-पड़ोस के लोग आकर इकट्ठे हो गये। चोर तो घुसा था, लेकिन कुछ ले नहीं सका। खिड़की का लोहा टेढ़ा कर चोर भीतर घुसा और उसके बाद दरवाजा खोल लिया होगा। शायद पूसी तब तक किसी तरह रास्ता पहचानते - पहचानते आकर वहाँ रुकी हुई थी। दरवाजा खुला पाकर वह भीतर घुस गयी होगी।

अनिमा के पिता उसके कमरे में पहुँचे और उसके हाथ से पूसी को अपनी गोद में, लेकर कहने लगे, 'मेरी अच्छी पूसी, तेरे कारण आज हम बच गये।'

अनिमा की आँखों के आँसू सूख गये ।

(अनुवाद : चित्र महंत)

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