अंधेरे में पिता (कहानी) : जेरोम वीडमैन - अनु० - इन्द्रमणि उपाध्याय

Andhere Mein Pita (English Story in Hindi) : Jerome Weidman

जेरोम वीडमैन का जन्म 14 अप्रैल, 1913 को मेनहैटन में हुआ। 1933 से उन्होंने लेखन आरंभ किया। उनके पहले कहानी संग्रह का शीर्षक था 'माय फादर सिट्स इन द डार्क।' जेरोम वीडमैन ने कई उपन्यास भी लिखे हैं।

मेरे पापा को अंधेरे में अकेले बैठे रहने की अजीब सी आदत है। कभी- कभार मुझे काम की व्यस्तताओं से घर लौटने में देर हो जाती है। उस समय पूरा घर अंधेरे में डूबा रहता है। माँ की नींद बेहद कच्ची है, इसलिए दबे पांव, हाथ में जूते उठा अपने कमरे में पहुँच अंधेरे में ही कपड़े उतारता हूँ। उन्हें धीरे से आलमारी खोल रखता हूँ। गाउन पहिन पंजों के बल चलता हुआ किचन में पानी पीने जाता हूँ। अँधेरे में वहाँ बैठे पापा से मैं टकराते टकराते बचता हूँ। वे कहीं किचन में पाजामा पहिने पाइप पीते एक कुर्सी पर बैठे हैं।

"हैलो पॉप, " मैं धीरे से कहता हूँ।

"हैलो, बेटे।"

"पापा, आप अभी तक सोए नहीं?"

"सो जाऊँगा बेटे।"

वे कहते हैं, लेकिन वहीं बैठे रहते हैं देर रात तक, जबकि मैं सो जाता हूँ। मैं जानता हूँ, अच्छी तरह से जानता हूँ, वे वहीं किचन में पाइप पीते बैठे रहेंगे।

प्रायः होता यह है कि रात को जब मैं अपने कमरे में पढ़ता रहता हूँ, तब माँ सोने से पहिले घर को समेटने में व्यस्त रहती हैं। पढ़ते हुए ही मैं अपने छोटे भाई को बिस्तर पर जाते सुनता हूँ। छोटी बहिन की बर्तनों को उठाने रखने की आवाजें आती रहती हैं। उसकी आहट बंद होते ही मैं समझ जाता हूँ कि वह भी सो गई है। कुछ देर की शांति के बाद में माँ को पिता को "गुड नाइट" कहते सुनता हूँ। इन सारे क्रिया-कलापों के बीच में किताब पढ़ता रहता हूँ, जो सबके बिस्तर पर जाने के बाद भी चलता रहता है। कुछ ही देर बाद मुझे प्यास लगती है। मैं कुछ अधिक पानी पीने का आदी हूँ। मैं किचन में पानी पीने जाता हूँ और अंधेरे में अपने पिता से टकरा जाता हूँ। बहुत बार तो मैं घबरा जाता हूँ। मैं उन्हें भूला रहता हूँ जबकि वे वहाँ होते हैं— कुर्सी पर पाइप पीते, कुछ सोचते हुए।

'आप अभी तक सोए नहीं पापा ?"

"सोऊँगा। बेटा"

लेकिन वे सोते नहीं। पाइप पीते, कुछ सोचते बैठे रहते हैं। मुझे चिंता होने लगती है। वे ऐसा क्यों करते हैं। आखिर वे क्या सोचते रहते हैं?

एक बार मैंने उनसे पूछा था-

"आप क्या सोचते हैं पापा?

"कुछ नहीं" उन्होंने सामान्य स्वर में कहा था।

एक दिन मैं उन्हें वहीं बैठा छोड़कर सोने चला गया था कुछ घंटों बाद मेरी नींद प्यास लगने से खुल गई। मैं किचन में पानी पीने गया। पिता वहीं थे। उनका पाइप बुझ चुका था, लेकिन वो किचन को एकटक देखते बैठे थे। कुछ पलों बाद जब मैं अंधेरे का अभ्यस्त हो गया, तो मैंने फ्रिज से पानी की बोतल निकाल पानी पिया। वे अभी भी वहीं थे, घूरते हुए उनकी पलकें झपक नहीं रहीं थीं। मुझे लगा, उन्हें मेरे वहाँ होने का अहसास नहीं है। मैं डर गया था।

"पापा, आप सोने क्यों नहीं जाते?"

"जाऊँगा, बेटे", उन्होंने कहा, "मेरा इंतजार मत करो। "

" लेकिन", मैंने कहा, "आप कई घंटों से यहीं बैठे हैं। बात क्या है? आखिर आप किस बात को लेकर परेशान हैं?"

"कुछ नहीं बेटे" उन्होंने कहा "कुछ भी तो नहीं। इससे मुझे आराम मिलता है बस इतनी सी तो बात है।"

जिस विश्वास भरे अंदाज में उन्होंने कहा था उसने मुझे आश्वस्ति हुई । वे परेशान नहीं लग रहे थे। उनकी आवाज में प्रसन्नता थी। वह हमेशा ऐसी ही रहती है, लेकिन अभी भी मैं समझ नहीं पाता हूँ कि एक कोने में लगातार असुविधाजनक कुर्सी में पूरी रात अंधेरे में बैठकर वे कैसे आराम पाते हैं भला । आखिर कुछ तो बात होगी।

सारी संभावनाओं पर मैं लगातार सोचता हूँ। कम से कम पैसों को लेकर तो नहीं, यह मैं जानता हूँ हमारे पास कोई बड़ी पूँजी नहीं है, किंतु जब वे पैसे को लेकर चिंतित होते हैं, तो वे उसे छिपाते नहीं हैं। वे अपने स्वास्थ्य को लेकर भी परेशान नहीं होंगे। वे उसे लेकर भी चुप नहीं रहते। परिवार के किसी सदस्य की बीमारी को लेकर भी वे परेशान नहीं होंगे। हमारे परिवार में पैसे की कमी रहती है, लेकिन स्वास्थ्य के बारे में हमारा परिवार संपन्न है। टच वुड (लकड़ी छुओ) माँ ने कहा होता यह सुनकर। तो फिर... फिर क्या कारण हो सकता है? मैं भयभीत हो जाता हूँ, क्योंकि कारण मैं नहीं जानता, किंतु इससे मेरी चिंता समाप्त नहीं हो जाती।

संभव है वे अपने गाँव और वहाँ रहने वाले अपने भाईयों को लेकर चिंतित हो अथवा अपनी माँ तथा दोनों सौतेली मांओं के बारे में अथवा अपने पिता के बारे में। किंतु वे सब तो स्वर्गवासी हो चुके हैं और फिर वे उनके बारे में इतनी देर तक चिंतित भला क्यों होंगे। मैं परेशान हूँ और उनको लेकर चिंता कर रहा हूँ, हालाँकि यह सही नहीं है। वे चिंतित नहीं होते। वे कुछ सोच रहे हैं, ऐसा भी लगता तो नहीं। वे बहुत शांत दिखते हैं, निश्चित नहीं। बस कुछ अधिक मौन और शांत, जो चिंतित होना जैसा लगता है। संभवतः वही सही है, जो वे कहते हैं - आरामदायक। किंतु ऐसा संभव लगता नहीं। मैं चिंतित हो जाता हूँ ।

काश! मुझे यह पता चल जाता कि वे आखिर सोचते क्या हैं ? यदि यही पता चल जाता, कि वे सोचते भी हैं अथवा नहीं। तब संभवतः मैं उनकी सहायता कर पाता। यह भी तो हो सकता है कि उन्हें मेरी सहायता की आवश्यकता ही न हो। यह भी तो संभव है जैसा वे कहते हैं कि वे आराम कर रहे हैं। कम से कम मुझे परेशान अथवा चिंतित होने की आवश्यकता नहीं।

लेकिन वे वहाँ क्यों बैठे रहते हैं अंधेरे में? क्या उनके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया है? ...नहीं... यह नहीं हो सकता। आखिर वे अभी मात्र त्रेपन वर्ष के हैं। और अभी भी उतने ही हाजिर जवाब और मजाक पसंद हैं। सच तो यह है कि वे अपने दैनिक व्यवहार में पहिले जैसे ही हैं। वे अभी भी शलगम के सूप को पसंद करते हैं और उसे चाव से खाते हैं। वे अभी भी टाइम्स के द्वितीय खंड को सबसे पहले पढ़ते हैं। वे अभी भी विंग कालर पहनते हैं। वे अभी भी विश्वास करते हैं कि डेव्स देश की रक्षा करने में समर्थ थे और टी० आर० पैसे वालों के हाथों का मात्र एक औजार था। वे हर कोण से पहले जैसे ही है। वे अभी भी ठीक वैसे दिखते हैं जैसे पाँच वर्ष पूर्व दिखते थे। उनसे मिलने वाले सभी परिजनों का यही मत एक स्वर से हैं। वे पूर्ण स्वस्थ हैं सभी कहते हैं। किंतु वे अंधेरे में बैठते हैं। अकेले पाइप पीते । एकटक सीधे देखते, बिना पलक झपके, देर रात तक ।

यदि यह सही है जैसा वे कहते हैं कि वे बेहद आराम से हैं, तो मुझे इस बात को यहीं छोड़ देना चाहिए। किंतु यदि ऐसा नहीं है तो ? संभवतः उन्हें सहायता की आवश्यकता हो। वे कुछ बोलते क्यों नहीं है? वे हँसते, रोते अथवा असहमति क्यों नहीं जताते। वे कुछ क्रिया अथवा प्रतिक्रिया क्यों नहीं करते। आखिर वे वहाँ क्यों बैठे रहते हैं।

सोचते-सोचते मुझे क्रोध आ जाता है। संभवतः यह मेरी अतृप्त जिज्ञासा मात्र है अथवा मैं कुछ ज्यादा ही परेशान हूँ। बहरहाल मैं नाराज हूँ।

"पापा, कुछ गड़बड़ है क्या?"

"नहीं... कहाँ ?... कुछ तो नहीं।"

...लेकिन इस बार में निश्चय कर चुका हूँ कि मैं यों ही मामले को नहीं छोडूंगा, क्योंकि मैं बेहद नाराज हूँ।

"तब आप यहाँ अकेले क्यों बैठे रहते हैं देर रात तक सोचते हुए?"

"यह आरामदायक है बेटे, और फिर मैं इसे पसंद करता हूँ।"

मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रहा हूँ। कल फिर मैं इन्हें इसी तरह बैठा पाऊँगा । और मैं फिर उलझ जाऊँगा। परेशान हो जाऊँगा। मैं इसे बंद नहीं कर सकता। मैं बेहद नाराज हूँ।

"पापा, आखिर आप क्या सोचते रहते हैं?" आप यहाँ क्यों बैठे रहते हैं? आप किस बात को लेकर परेशान हैं? आखिर आप क्या सोचते रहते हैं?"

" बेटे, मुझे कोई परेशानी नहीं है। मैं बिल्कुल ठीक हूँ। यहाँ बैठना आरामदायक है बस जाओ बेटे तुम जाकर सो जाओ। बेकार ही परेशान हो रहे हो तुम।"

मेरा क्रोध चला जाता है, लेकिन परेशानी बनी रहती है। मुझे उत्तर मिलना ही चाहिए। सब कुछ कितना बचकाना है। वे मुझे कुछ बतलाते क्यों नहीं? अचानक मुझे लगा कि यदि मुझे सही उत्तर नहीं मिला तो मैं पगला जाऊँगा ।... मैं फिर जोर देकर कहता हूँ ।

"आप सोचते क्या है पापा ? आखिर कुछ तो होगा ही?"

"कुछ नहीं बेटे साधारण सी बातें हैं वे कुछ विशेष नहीं, बस यों ही सोचता रहता हूँ।"

"मैं चुपचाप उन्हें देखता दरवाजे के पास खड़ा रहता हूँ।"

"आपका तात्पर्य है कि कुछ विशेष नहीं है। बस आप यों ही अंधेरे में बैठे रहते हैं, क्योंकि आपको ऐसा करना अच्छा लगता है पापा, है न?" प्रसन्नता भरी आवाज को बमुश्किल रोकता मैं कहता हूँ ।

“बिल्कुल सही” वे कहते हैं। मैं रोशनी में कुछ सोच नहीं पाता हूँ।"

पानी भरा ग्लास धीरे से रख मैं अपने कमरे की ओर मुड़ जाता हूँ, "गुडनाइट पापा' कहता हूँ ।

"गुडनाइट" वे धीरे से कहते हैं।

तभी अचानक मुझे याद हो आया, मुड़ता हूँ।

"आखिर आप सोचते क्या हैं पापा?" मैं पूछता हूँ।

उनकी आवाज बहुत दूर से आती मुझे लगती है। वह शांत और स्थिर है- "कुछ नहीं", वे धीरे से कहते हैं "कुछ विशेष नहीं।"

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