अन्धेर नगरी चौपट राजा : हरियाणवी लोक-कथा

Andher Nagari Chaupat Raja : Lok-Katha (Haryana)

दोस्तो, हममें से बहुत थोड़े लोगों ने ही अन्धेर नगरी चौपट राजा की कहानी नहीं सुनी होगी। इसलिए संक्षिप्त में दोहरा रहा हूँ। एक गुरु व शिष्य यात्रा करते-करते एक नगर में पहुँचे और पाया कि वहाँ सभी वस्तुओं के भाव बड़े विचित्र है। मिठाई और भाजी मात्र टके सेर बिक रही थी और ये सब वहाँ के राजा के हुक्म से हो रहा था। अब शाही फरमान को कौन रोकता। यूँ तो साधुओं का नियम था कि वे किसी जगह दो दिन से ज्यादा नहीं रुकते मगर, अब ऐसे में चेले का मन ललचा गया। वह कहने लगा, गुरु जी यहाँ तो कुछ दिन और रुक जाते हैं, बहुत सस्ती मिठाई मिल रही है। गुरु ने कहा, बेटे जिस जगह इस तरह का गोल माल हो उस जगह ज्यादा दिन रुकना ठीक नहीं। जान की जोखिम हो सकती है। मगर चेला नहीं माना। हार कर गुरु अकेले आगे चल पड़े। इधर चेला मिठाई खा-खाकर मोटा हो चला था। वो भीख मांगकर दो टके लाता और एक किलो मिठाई खाकर सो जाता।

एक दिन एक व्यक्ति की पत्नी का देहान्त पड़ोसी की दीवार के नीचे दबकर हो गया। उस व्यक्ति ने राज दरबार में दुहाई दी कि पड़ोसी ने जानबूझ कर ऐसी कच्ची दीवार बनाई थी। अतः उसे मौत का जिम्मेवार मानकर सजा दी जाए। पड़ोसी ने आकर दुहाई दी महाराज, मेरा क्या कसूर है, ये तो राज मिस्त्री जाने कि दीवार कच्ची क्यों रही, सजा राज मिस्त्री को मिलनी चाहिए न कि मुझे। अब मिस्त्री आकर कहने लगा, महाराज हमें तो जो ईंट-गारा-मसाला मिला उसी की दीवार बना दी। अब अगर मसाले में ही कमी हो तो हम क्या करें। अब राजा के सिपाही उस सेठ को पकड़ लाए जो ये सामान बेचता था और राजा ने उसे फाँसी की सजा सुना दी। सेठ जानता था कि राजा कम अक्ला है। अतः उसने फाँसी देने वालों को पटाया, फाँसी देने वाले जल्लाद ने दरबार में आकर दुहाई दी कि महाराज मैं फाँसी नहीं दे सकता क्योंकि फंदा बड़ा है और सेठ का गला छोटा। तब राजा ने कहा कि फाँसी की सजा तो दी जाएगी। जिसके गले में फंदा फिट बैठता हो, उसे फाँसी दे दी जाए। हमारी आज्ञा का पालन तो होना ही चाहिए वरना इसे राज आज्ञा कौन कहेगा। सिपाही मुटियाए चेले को पकड़ लाए। जब चेले को फाँसी दी जा रही थी तो गुरु वापिस लौट रहा था। चेले ने रो कर गुरु को फरियाद की कि उसे बचाया जाए। गुरु ने कहा कि महाराज इसे नहीं फाँसी मुझे दे दीजिए। राजा ने पूछा, क्यों भाई तुम इसके बदले में फाँसी क्यों लेना चाहते हो। गुरु ने कहा, “महाराज ये घड़ी और पल बहुत शुभ है, जो इस समय मरेगा उसे सीधा स्वर्ग मिलेगा।” राजा घामड़ था, मुस्करा कर कहने लगा, अच्छा मेरे रहते तुम स्वर्ग जाओगे? सिपाहियो इसे भगाओ और मुझे फाँसी दे दो। ये तो उस जमाने की बात है लेकिन आज के राजा इतने मूर्ख नहीं, वे राज मिस्त्री, सेठ, चेले और गुरु सब को फाँसी दे सकते हैं। खुद फाँसी नहीं चढ़ेंगे।

(डॉ श्याम सखा)

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