अंधा कुत्ता (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण

Andha Kutta (English Story in Hindi) : R. K. Narayan

यह कुत्ता न देखने में बहुत अच्छा था और ऊँची नस्ल का भी नहीं था। आम कुत्तों की तरह, जो हर जगह दिखाई देते हैं, सफेद और भूरा, सड़क पर ही जन्मा, पूँछ बचपन में ही ईश्वर जाने किसने कुचल दी थी, इधर-उधर पड़ी चीजें खाकर जिन्दा रहने वाला, यह कुत्ता था। आँखों में धब्बे दिखाई देते थे, चाल-ढाल भी बहुत आकर्षक नहीं थी और भूकता यह बहुत ज्यादा था। दो साल की उम्र होने से पहले ही उसके बदन पर सैकड़ों मुठभेड़ों के निशान पड़ चुके थे। गर्म दुपहरियों में जब आराम की जरूरत महसूस होती, तो बाजार के पूर्वी दरवाजे की पुलिया के नीचे लेट जाता था। शाम होने पर फिर रोज की तरह चक्कर काटने निकलता, आस-पास की सड़कों और गलियों में घूमता फिरता, दूसरे कुत्तों से लड़ता-झगड़ता, जहाँ जो मिलता खा लेता और रात होने पर बाजार के फाटक पर फिर वापस लौट आता।

तीन साल से जिन्दगी ऐसी ही गुजर रही थी। तभी दोनों आँखों से अंधा एक भिखारी फाटक पर आ पहुँचा। एक बुढ़िया उसे रोज सवेरे यहाँ लाती, फाटक के सामने बिठा जाती, जहाँ वह भीख माँगता रहता। दोपहर को उसे कुछ खाना दे जाती, और रात को उसे फिर घर वापस ले जाती।

कुत्ता उसके पास ही सो रहा था। खाने की खुशबू से उसमें हलचल पैदा हुई। वह उठा, अपने ठिकाने से बाहर निकला और अंधे भिखारी के साथ पूँछ हिलाते हुए खड़ा हो गया, इस आशा में कि बचे हुए खाने में से कुछ उसे भी मिल जायेगा। अंधे ने अपनी बाँहें इधर-उधर घुमाई और पूछा, 'कौन है यहाँ?" जिसे सुनकर कुत्ता आगे बढ़ा और बाँह को चाट लिया। अंधे ने पूँछ से कानों तक उसके शरीर पर हाथ फेरा और कहा, 'तुम बहुत अच्छे लग रहे हो। मेरे साथ आओ।" उसने कुछ खाना कुत्ते को दिया, जो उसने कृतज्ञ होकर खा लिया।

यह एक तरह से उनकी लंबी दोस्ती की शुरुआत थी। दोनों रोज यहीं मिलते, कुत्ता भूकना कम करके उसके पास बैठा रहता और सवेरे से शाम तक पैसा माँगते और लेते देखता रहता। कई दिन तक यह देखकर कि राहगीर उसे पैसा देते हैं, यह धंधा उसकी समझ में आ गया, और अगर कोई पैसा दिये बिना आगे बढ़ने लगता तो वह भूकता हुआ उसके पीछे दूर तक जाता और फिर भी वह पैसा न देता तो उसके कपड़े दाँत में दबाकर उसे जबरदस्ती भिखारी के पास ले आता और पैसा डलवाकर ही दम लेता।

भिखारी के पास जो लोग आते थे, उनमें एक गाँव का शैतान लड़का भी था। वह अंधे को तरह-तरह से परेशान करता। यही नहीं, डिब्बे में पड़े पैसों को भी उठाकर भाग जाता। अंधा उसे गालियाँ देता, डंडा घुमाता, शोर मचाता, पर वह बाज नहीं आता था। यह लड़का हर बृहस्पतिवार को यहाँ आता, उसके सिर पर एक टोकरे में सब्जियाँ और केले भरे होते। हर हफ्ते इस दिन भिखारी को यह मुसीबत झेलनी पड़ती थी। इसी फाटक के आस-पास रंगबिरंगी लेकिन नकली खुशबुओं का एक विक्रेता एक छोटी-सी गाड़ी पर अपना सामान सजाये खड़ा होता। पास ही सस्ती छोटी-छोटी किताबों की बोरियों पर फैली एक दुकान और लोहे के फ्रेम पर सभी रंगों के रिबन लटकाकर बेचने वाला ये लोग भी यहाँ अपना धंधा चलाते थे। बृहस्पति का दिन आता तो वह लड़का भी प्रकट होता, तो ये लोग अंधे की तरफ देखकर आवाज लगाते-'आ गया है तुम्हें सताने वाला...।"

'हे भगवान! आज बृहस्पत है?' वह चिल्लाया। उसने अपनी बाँहें घुमाई और पुकारा, 'अरे ओ कुत्ते, मेरे बेटे, यहाँ आओ, कहाँ हो तुम ?' उसकी आवाजें सुनकर कुत्ता वहाँ आ गया। उसने कुत्ते का सिर सहलाया और धीरे से बोला, 'यह शैतान आ गया है। इसे...।'

बात पूरी नहीं हुई थी कि लड़का भी आ पहुँचा। उसकी आँखों में बदमाशी की चमक थी।

'अरे अंधे! बहाने करता है कि तेरे आँखें नहीं हैं। अगर सचमुच अंधा है तो मैं क्या कर रहा हूँ तुझे पता नहीं चलेगा..।" यह कहकर उसने डिब्बे की तरफ हाथ बढ़ाया।

कुत्ता समझ चुका था कि उसे क्या करना है। उसने लपककर लड़के की कलाई में दाँत गड़ा दिये। लड़का जोर से चीखा और बड़ी कोशिश के बाद हाथ छुड़ा पाया। फिर वह तेजी से भागा। कुत्ता भी उसके पीछे दौड़ा और उसे बाजार से बाहर निकालकर ही वापस लौटा।

एक दुकानदार बोला, 'देखा, कुत्ते का प्यार इस अंधे के लिए!'

एक दिन शाम को बुढ़िया उसे वापस ले जाने के लिए नहीं आई। अंधा फाटक पर इन्तजार करता और सोचता रहा कि रात कहाँ काटेगा ?

उसका इन्तजार मत करना। अब वह नहीं आयेगी। आज दोपहर वह गुजर गई...।"

अंधे का यह अकेला घर था, आज यह भी बंद हो गया। उसकी फिक्र करने वाली यह एक बुढ़िया ही थी, वह भी नहीं रही। रिबन बेचने वाला यह देखकर आगे आया। उसने अपने रिबनों में से सफेद रंग का एक मोटा रिबन निकाला और अंधे को दिया। बोला, 'इससे कुत्ते को बाँध लो और उसके साथ आना जाना शुरू करो।'

कुत्ते की जिन्दगी ने अब एक नया मोड़ ले लिया। उसने अब बुढ़िया की जगह ग्रहण कर ली। इससे उसकी अपनी आजादी बिलकुल खत्म हो गई। अब उसकी जिन्दगी इस सफेद पट्टी के दायरे में सिमट कर रह गई। जब वह दूसरे कुत्तों को देखकर भूकना और उछलना-कूदना शुरू करता तो पट्टी भी इधर उधर होती और अंधा चिल्लाकर कहता, 'बदमाश, मुझे गिरा देगा क्या? चुप हो जा...।"

कुछ दिन में कुत्ते ने अपनी हरकतों पर काबू रखना सीख लिया। अब उसने दूसरे कुत्तों पर ध्यान देना बंद कर दिया, भले ही वे उसके बिलकुल सामने आकर भूकते रहें। उसकी आवाज का दायरा और साथी-दोस्तों से संपर्क एकदम खत्म हो गये।

उसका जितना नुकसान हुआ, अंधे को उतना ही फायदा हुआ। वह जिन्दगी में जितना कभी नहीं घूमा था, घूमने लगा। अब वह दिनभर इधर-उधर जाकर भीख माँगता, कुत्ता उसे घुमाता रहता। एक हाथ में डंडा लिये और दूसरे में कुत्ते की पट्टी थामे-बाजार के बरामदे के एक कोने में उसने अब अपना घर बना लिया था-यहाँ से निकलकर वह जहाँ भी लोगों की आवाजें सुनाई देतीं, उधर ही निकल पड़ता और दुकानों, स्कूलों, अस्पतालों, होटलों, सभी जगह जा-जाकर भीख माँगता। जहाँ वह रुकना चाहता, कुत्ते की पट्टी को जोर से झटका देता, कुत्ता रुक जाता, और जब बढ़ाता। कुत्ता गड़ों में उसके पैर जाने से उसे रोकता, सामने ईंट-पत्थर दिखाई देते तो पैर पटककर सावधान करता और ऊँचाइयों पर एक-एक इंच आगे जाकर धीरे-धीरे उसे ऊपर चढ़ाता। यह दृश्य देखने के लिए लोग उत्सुक रहते और पैसे भी डालते थे। बच्चे इकट्ठा हो जाते और खाने की चीजें उसे देते।

कुत्ता वास्तव में ऐसा जानवर होता है जो बहुत सँभल-सँभल कर और सही ढंग से अपने काम करता है, और जरूरत पड़ने पर आराम भी करता है। इस कुत्ते को लोग 'टाइगर' कहने लगे थे। पर अब इस कुत्ते का आराम जाता रहा था। उसे अब तभी आराम मिलता था जब अंधा कहीं बैठे या सो जाये। रात को अंधा अपनी अंगुली में कुत्ते की पट्टी पकड़कर सोता था। कहता था-'मैं तुम्हें छोड़ ही नहीं सकता।' अब उसके मन में ज्यादा कमाई करने की भावना भी पैदा हो गई थी और आराम करने या बैठने को वह वक्त की बरबादी मानने लगा था। कुत्ते को भी इसलिए हर समय उसके साथ रहना पड़ता था। कभी-कभी उसके पैर आगे बढ़ने से इनकार कर देते, लेकिन उसके जरा रुकते ही मालिक डंडा मारकर उसे चलते रहने के लिए विवश कर देता था। कुत्ता चीखता-चिल्लाता तो मालिक एक और डंडा लगाकर कहता, 'शैतान, चीखना बंद कर। मैं तुझे खाना नहीं देता? एक और रोटी चाहिए. ?" कुत्ता धीरे-धीरे सड़कों पर उसके साथ घूमता रहता, थका होने पर भी कुछ नहीं कर पाता था। अंधा भिखारी जालिम मालिक की तरह उसे जैसे चाहता, रखता और काम लेता था। रात को बाजार बंद हो जाने के बाद देर तक लोगों को दूर से थके-माँदे कुत्ते की रोती हुई आवाजें सुनाई देती रहतीं। उसकी शक्लसूरत बदल गई थी, बदन में हड़ियाँ निकल आई थीं और साफ-सुथरी खाल चकतों से भर गई थी।

रिबन बेचने वाले, किताबों के विक्रेता और खुशबुओं का ठेला लगाने वाले तीनों दुकानदारों ने इस पर गौर किया और एक दिन, जब धंधा कुछ मंदा था, वे मिल-बैठकर इस पर बात करने लगे-'बेचारे कुत्ते पर अब मुझे तरस आने लगा है। क्या हम लोग इस बारे में कुछ कर नहीं सकते?'

रिबनवाले ने कहा, 'यह अंधा बदमाश अब सूद पर कर्ज़ भी देने लगा हैफल वाले ने मुझे यह बात बताई। अब वह जरूरत से ज्यादा कमाई करने लगा है। पैसे के लिए वह कुछ भी कर सकता है।'

खुशबूवाले को रिबन के फ्रेम से लटकती कैंची दिखाई दी। उसने कहा, 'उपाय मुझे मिल गया...।" उसने कैंची निकाल ली और उसे लेकर आगे बढ़ा।

उसने देखा, अंधा भिखारी पूर्वी फाटक के सामने से आ रहा है। कुत्ता उसके आगे चल रहा है। रास्ते में हड़ी का एक टुकड़ा पड़ा है और कुत्ता उसे लेना चाहता है। अंधा पट्टी पकड़े हाथ से उसे जोर देकर खींचता है जिससे कुत्ते को चोट लगती है और वह चीखने लगता है। इस खींचतान में उसे खून निकलने लगता है। अंधा गालियाँ भी बक रहा है।

कुत्ते की यह हालत देखकर रिबनवाला आगे बढ़ा और कैंची से उसकी पट्टी काट दी। कुत्ता तेज़ी से उछला और लपककर हड़ी पकड़ ली। अंधा अपनी जगह खड़ा रह गया, कटी हुई पट्टी हाथ में लिये। वह चिल्लाया, 'टाइगर, टाइगर, कहाँ हो तुम?'

खुशबूवाला चुपचाप उसके पास से निकला और बुड़बुड़ाया, 'शैतान! राक्षस! अब वह तुम्हारे हाथ नहीं आयेगा। अब वह आजाद हो गया है।'

स्वतंत्र होकर कुत्ता तेजी से भागा और कुछ दूर जाकर सड़क पर ही आगे-पीछे नाचने-कूदने लगा। जहाँ भी उसे कुछ खाने को मिलता, झपटकर उठाता और खुश होकर खाता। दूसरे कुत्तों के साथ भी उसने हमेशा की तरह लड़ना-झगड़ना और भौंकना शुरू कर दिया। कसाई और बेकरी की दुकान और चायवाले का ठेला फिर उसके अड़े बन गये। अब वह पहले की तरह बहुत खुश था।

रिबन वाला और उसके दोनों साथी मार्केट के सामने खड़े होकर मजा ले लेकर यह तमाशा देखने लगे। अंधा भिखारी एक ही जगह खड़ा होकर रह गया था। वह समझ नहीं पा रहा था कि कैसे, क्या हुआ और अब किस तरह आगे बढ़े! आसमान में छड़ी और हाथ चलाता वह चिल्ला रहा था, 'मेरा कुत्ता कहाँ गया? अरे, मेरा कुत्ता कहाँ चला गया? कोई उसे पकड़कर मुझ तक पहुँचा दो।... अब वह मेरे पास आया तो मैं जरूर उसकी गर्दन मरोड़ दूंगा।'

रास्ता ढूँढ़ता वह आगे बढ़ने लगा, सड़क पार करने में कई गाड़ियों का सामना करना पड़ा। बीसियों जगह टकराया, और बेहोशी की दशा में एक जगह आकर बैठ गया। उसकी दशा देखकर तीनों साथी कहते रहे, 'इसके लिए यही सही होगा। अच्छा हो, जालिम का यहीं खात्मा हो जाये...।'

थोड़ी देर बाद वह फिर उठा और किसी राहगीर की मदद से धीरे-धीरे बाजार के बरामदे के कोने में पड़े अपने गूदड़ बिस्तर पर थका-हारा आकर लेट गया।

दस दिन, पंद्रह दिन, बीस दिन तक अंधा कहीं दिखाई नहीं दिया। कुत्ता भी इस बीच किसी को नजर नहीं आया। तीनों दुकानदार आपस में बात करते, 'कुत्ता तो अब सारी दुनिया में घूम-फिर रहा और मौज-मस्ती कर रहा होगा। अब वह आजाद पंछी है... और वह बुड़ा, शायद वह हमेशा के लिए खत्म हो गया होगा...।"

यह बात खत्म भी नहीं हुई थी कि अंधे भिखारी की लकड़ी की आवाज टपटप, फिर सुनाई पड़ी। उन्होंने देखा, हमेशा की तरह वह पटरी पर चला आ रहा है, उसके आगे कुत्ता चल रहा है।

'अरे देखो, वे तो फिर उसी तरह चले आ रहे हैं.। " तीनों ने एक साथ कहा। रिबनवाला दौड़कर उनके पास गया और पूछने लगा, 'कहाँ रहे इतने दिन तुम लोग?

अंधा कहने लगा, 'पता है, क्या हुआ? कुत्ता तो भाग गया था। मैं एकाध दिन कोने में पड़ा-पड़ा मर ही जाता, भूखा-प्यासा, कोई आमदनी नहीं। एक दिन और बीतता तो मैं चल बसता। लेकिन यह वापस आ गया... ।'

'कब आया? कैसे आया ?'

'कल रात आया। रात को मैं बिस्तर पर पड़ा सो रहा था। यह आया और मेरा मुँह चाटने लगा। मैंने सोचा, अब इसे मार ही डालें। ऐसा घुसा मारा, जिसे यह याद रखेगा." अंधा बताने लगा। 'लेकिन फिर मैंने इसे माफ कर दिया। सोचा, कुत्ता ही तो है। सड़कों पर घूमता गंदगी खाता जब यह थक गया, तब लौट आया। अच्छा खाना तो मेरे ही पास मिलेगा. अब यह कहीं नहीं जायेगा। और यह देखो, अब मैं इसे इससे बाँधता हूँ.।' सबने देखा, अब लोहे की चेन उसके हाथ में थी।

कुत्ते की आँखें अब फिर उदास लगने लगी थीं, पहले की तरह मरा-सा दिखाई देने लगा था। अंधे ने बैल हाँकने वाले की तरह कहा, 'चल, आगे बढ़।' उसने जंजीर खींची, एक छड़ी लगाई और कुत्ता धीरे-धीरे सहमे कदमों से आगे बढ़ने लगा।

'अब मौत ही इसे आराम देगी, ' रिबनवाले ने गहरी साँस लेकर कहा। 'ऐसे प्राणी के लिए हम क्या कर सकते हैं जो इतने खुले मन से अपने शत्रु के पास फिर लौट आता है !'

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