Andh Vishwas Door Karo

अंध विश्वास दूर करो

एक बार यात्रा करते-करते गुरु जी और मरदाना हरिद्वार आ गए। वहां उन्होंने देखा कि लोग गंगा में खड़े होकर पूर्व दिशा में जल चढ़ा रहे हैं। गुरु जी ने एक व्यक्ति से पूछा-"आप यह जल किसे चढ़ा रहे हैं ?"
वह बोला-"स्वर्ग में हमारे पितर बैठे हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए हम यह जल चढ़ा रहे हैं?"
गुरु जी मुस्कराये । उन्होंने गंगा में खड़े होकर पश्चिम दिशा में पानी फेंकना शुरू किया। यह देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ।
"अरे, आप पश्चिम दिशा में जल क्यों चढ़ा रहे हैं ?" किसी ने पूछा।

"बात यह है," गुरु जी ने कहा-"मैं पश्चिम का रहने वाला हूं । वहाँ मेरे गांव में मेरा एक खेत है । इस वर्ष ठीक से वर्षा नहीं हुई है इसलिए मैं अपने खेत को पानी दे रहा हूं।"

सब लोग उनकी बात को सुनकर हंसने लगे। एक व्यक्ति बोला-"अरे क्या आप इतना भी नहीं समझते कि यहां से दिया हुआ पानी इतनी दूर नहीं पहुंच सकता।"

"अच्छा !" गुरु नानक ने कहा-"यदि मेरा पानी कुछ मील की दूरी तक नहीं जा सकता तो आपका दिया हुआ जल परलोक में बैठे हुए पितरों तक कैसे पहुंच जाता है ?"

उनकी बात सुनकर सब भौंचक्के से एक दूसरे के मुंह की ओर देखने लगे। वहीं पर गुरु नानक धोखे से एक ब्राह्मण के चौके में चले गए। ब्राह्मण क्रोध से जल उठा और कड़ककर बोला-'आपने मेरा चौका भ्रष्ट कर दिया हैं । मैं इसे नित्य धोता हूं, पोंछता हूं, धूप देता हूं और अपनी जातिवालों के अलावा इसमें और किसी को नहीं आने देता।"

गुरु नानक ने कहा -"पर, हे ब्राह्मण देवता अपका चौका तो पहले से ही भ्रष्ट है । आपके अंदर क्रोध का भूत बैठा है जो नीची जातिवालों को देखकर जलने लगता है । आपके अंदर कुबुद्धि की डोमनी, निर्दयता की कसाइन, और परनिंदा की मेहतरानी बैठी है । जब इतनी नीची जातियां तुम्हारे अंदर रहती हैं तो चौके के बाहर लकीर भर खींच देने से पवित्रता कैसे उत्पन्न होगी।"
उनकी बात सुनकर वह ब्रह्मण बहुत लज्जित हुआ।

(डॉ. महीप सिंह)