एक बुढ़िया और एक छोटा फ़र का पेड़ : रूसी लोक-कथा

An Old Woman and a Small Fir Tree : Russian Folk Tale

यह बहुत पुरानी बात है कि रूस के किसी जंगल में एक बुढ़िया रहती थी। वह बहुत तरह के जादू जानती थी। वह रोज जंगल में इधर उधर घूमा करती थी और पेड़ों की बातें सुनने की कोशिश किया करती थी।

उसे इस काम में बड़ा मजा आता था क्योंकि अगर कभी कोई पेड़ अपनी कोई इच्छा जाहिर करता तो वह उसकी उस इच्छा को सुन कर अपने जादू से उसे पूरा कर देती थी। और जब उस पेड़ की इच्छा पूरी हो जाती तो उसको बड़ी खुशी होती थी।

एक दिन एक छोटा सा फ़र का पेड़ पास में खड़ी अपनी माँ से कह रहा था — “माँ, मुझे अपने आपसे नफरत है। देखो न, बजाय पत्तों के ये सुइयाँ उग आयीं हैं मेरे सारे शरीर पर।

क्या मैं रुपहला बिर्च नहीं बन सकता? उसके पत्ते धूप में भी खूब चमकते हैं और बारिश के पानी में भी धुल कर नये नये लगने लगते हैं। मैं बहुत भद्दा हूँ। मैं अपने आपको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता माँ।”

उसकी माँ एक लम्बी सुन्दर फ़र का पेड़ थी, वह धीरे से प्यार से अपने बेटे से बोली — “मेरे बच्चे, ऐसा नहीं कहते। तुम जानते हो कि जो कुछ हम चाहते हैं वह सब इस संसार में पाना मुमकिन नहीं है।

अगर हम शान्ति से सोचें तो हम सबके पास कुछ न कुछ कमियाँ हैं पर कुछ न कुछ अच्छाइयाँ भी हैं। इसलिये हमेशा अपनी अच्छाइयों को देखना चाहिये और उनको देख देख कर खुश रहना चाहिये।”

छोटा पेड़ रुआँसा सा हो कर बोला — “पर मेरे पास तो कुछ भी अच्छा नहीं है माँ। मुझे तो वह बिर्च का पेड़ बहुत अच्छा लगता है। उसके पास रुपहली पत्तियाँ हैं जो धूप और बारिश दोनों में चमकती हैं।”

माँ अपने बेटे को फिर समझाते हुए बोली — “बेटे, सोचो ज़रा, जब जाड़ा आता है और ठंडी हवाऐं बहती हैं तो बेचारे बिर्च के पेड़ की सारी पत्तियाँ तो धीरे धीरे कर के नीचे गिर जाती हैं और उसकी टहनियाँ ठंड में नंगी खड़ी रह जाती हैं।

जबकि तुम्हारी सुइयाँ वैसी की वैसी ही बनी रहती हैं। जाड़े भर तुम्हारी ये नुकीली पत्तियाँ हरी बनी रहती हैं।”

परन्तु छोटे फ़र के पेड़ पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ। वह नाराजी से बोला — “मैं जब तक खुश नहीं हो सकता माँ, जब तक मैं बिर्च जैसी पत्तियाँ न पा जाऊँ।”

बुढ़िया ने जब यह बातचीत सुनी तो उसने अपना सिर हिलाया, मन्त्र पढ़ा, और यह लो, बुढ़िया के जादू के ज़ोर से उस छोटे फ़र के पेड़ की इच्छा पूरी हो गयी। फ़र के नुकीले पत्ते झर झर कर के नीचे गिर पड़े और वह छोटा फ़र का पेड़ बिर्च के पेड़ जैसी पत्तियों से भर गया।

अब क्या था फ़र का पेड़ खुशी से झूम उठा। उसने अपनी टहनियाँ फैलायीं, पत्तों को इधर उधर हिलाया और अपनी माँ से बोला — “देखो माँ, अब मेरी सारी पत्तियाँ बारिश और धूप में चमकेंगी।”

कुछ दिन बाद एक बकरी अपने सफेद मेमने के साथ उस जंगल में आ निकली। “मैं, मैं, माँ मुझे भूख लगी है।” मेमने ने अपनी माँ से कहा।

माँ ने कहा — “देखो इस छोटे से पेड़ पर ये सफेद पत्तियाँ लगीं हैं, यही खा लो, ये बहुत मुलायम हैं।”

और बकरी और उसके मेमने दोनों ने उन सफेद पत्तियों को खाना शुरू कर दिया। धीरे धीरे वे उस पेड़ की सारी पत्तियाँ खा गये और अब केवल भूरी टहनियाँ ही उस पेड़ पर बची थीं।

अब तो वह पेड़ बहुत ही खराब और भद्दा दिखाई देने लगा, साथ ही पत्तियाँ न होने की वजह से अब उसे ठंड भी लगने लगी। अब कोई चिड़िया भी उस पर नहीं बैठती थी इसलिये उसे अकेलापन भी बहुत लगने लगा।

फिर बारिश आयी और फिर उसकी नुकीली पत्तियाँ निकलने लगीं तो उसको बड़ी खुशी हुई। एक साल में ही वह फिर से अच्छा हरा भरा पेड़ हो गया। लेकिन इस खुशी को वह भूल गया और फिर उदास दिखायी देने लगा।

फिर पतझड़ आया और फ़र के पेड़ को छोड़ कर सभी पेड़ों की पत्तियाँ लाल पीली होने लगीं। फ़र का पेड़ फिर असन्तुष्ट सा दिखायी दे रहा था।

एक दिन वह बुढ़िया फिर वहाँ से गुजर रही थी कि उसके कानों में फिर से यह बातचीत पड़ी —
“माँ, क्या ही अच्छा होता अगर मेरे ऊपर सोने की पत्तियाँ लगतीं। इस चेस्टनट के पेड़ को देखो, इस पर ये सुनहरी पत्तियाँ कितनी सुन्दर लग रहीं हैं और मेरे ये काँटे कितने गन्दे हैं।”

माँ ने समझाया — “देखो बेटा, पागल न बनो। क्या तुम देखते नहीं कि हवा से पत्तियाँ झड़ जाती हैं जबकि तुम्हारे काँटे तुम्हें कोइ नुकसान नहीं पहुँचाते?”

बेटे ने कहा — “यह सब कहने के लिये तो ठीक है माँ पर मुझे अपना यह रूप बिल्कुल पसन्द नहीं। क्या मेरे ऊपर सुनहरी पत्तियाँ नहीं उग सकतीं?”

माँ ने फिर कहा — “बेटा, अगर तुम्हारे ऊपर सुनहरी पत्तियाँ उग भी आयीं तो तुम्हारे पास वे ज़्यादा दिन तक नहीं रहेंगी। जल्दी ही उन्हें हवा उड़ा कर ले जायेगी।”

बुढ़िया ने सुना, अपना सिर हिलाया, मन्त्र पढ़ा और यह लो बुढ़िया के जादू के ज़ोर से उसकी इच्छा पूरी हो गयी। वह छोटा फ़र का पेड़ सच्चे सोने की पत्तियों से लद गया।

अब वह पेड़ हँसा और बोला — “हाँ, अब ठीक है, अब देखो न मैं कितना अच्छा लगता हूँ। जंगल का कोई पेड़ अब मेरी बराबरी नहीं कर सकता। मैं अब धूप और बारिश दोनों में खूब चमकूँगा और हवा भी अब मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।”

वह मूर्ख फ़र का पेड़ शान से तन कर खड़ा हो गया और सबको अपनी पत्तियाँ दिखाने लगा। उसने घमंड से अपनी टहनियों को भी हिलाना शुरू कर दिया लेकिन वे तो अब इतनी भारी हो गयीं थीं कि उससे हिल ही न पा रही थीं बल्कि बोझ से और नीचे की तरफ झुक गयी थीं।

अब एक दिन क्या हुआ कि एक लालची आदमी उधर आ निकला। उसके पास एक गाड़ी भी थी। जैसे ही उसने फ़र के पेड़ को देखा तो वह तो आश्चर्यचकित रह गया। पेड़ों पर पत्ते, फल, फूल लगते तो सबने देखे थे पर सोना उगता न किसी ने देखा था और न सुना था पर वह तो यह सब सच ही देख रहा था।

उसने आँखें मल मल कर उस पेड़ को कई बार देखा। इधर से देखा उधर से देखा, नीचे से देखा ऊपर से देखा। जब उसे पूरा विश्वास हो गया कि वह सपना नहीं देख रहा है उसके पत्ते सोने के ही हैं तो वह तुरन्त ही अपनी जेब से एक बड़ा चाकू निकाल कर उसकी पत्तियाँ काटने वहाँ पहुँच गया।

उसके मन में सबसे ज़्यादा अमीर बनने की लालसा जाग उठी थी। जल्दी जल्दी में उससे कहीं पेड़ की छाल और कहीं कहीं टहनी भी कटने लगी।

सारी पत्तियाँ वह अपनी गाड़ी में भर कर अपने घर ले गया और पीछे रह गया टूटी टहनी वाला बेचारा छोटा सा घायल सा मरा हुआ सा फ़र का पेड़।

कई महीनों तक वह छोटा फ़र का पेड़ इस घटना से बहुत दुखी रहा। उसके घाव भरने में भी बहुत समय लग गया। पर धीरे धीरे हवा और धूप के सहारे वह ठीक हो गया।

अगली बार जब वह बुढ़िया उधर से गुजरी तो उसने सुना वह छोटा पेड़ कह रहा था — “मैं अपने आपको बहुत पसन्द हूँ माँ।”

माँ ने कहा — “बेटे, यह संसार बहुत अधिक सुखी हो जाये यदि हम लोग इच्छाऐं करना छोड़ दें।”

यह कहानी हमको गीता का उपदेश देती है कि हमको अपनी इच्छाओं को बढ़ाने की बजाय कम करते जाना चाहिये उसी में सुख है।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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