अंबुजमणि : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Ambujamani : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
एक महाजन था। उस महाजन के दो लड़के थे। एक दिन महाजन ने दोनों लड़कों को बुलाकर कहा, “देखो बेटा, बैठकर खाने से तो नदी का बालू भी शेष हो जाता है, इसलिए तुम लोग कमाने का कुछ उपाय करो। मैं तुम दोनों को सौ-सौ रुपए देता हूँ। तुम दोनों इसी पैसे से व्यापार करो। विदेश चले जाओ और वहाँ से क्या कुछ कमाकर तुम लोग लाओगे, वह मुझे देखना है।”
इतना कहकर महाजन ने दोनों लड़कों को एक-एक सौ रुपये दिए। बड़ा लड़का सौ रुपए लेकर रवाना हुआ। चलते-चलते रास्ते में उसने देखा कि एक बहेलिया एक तोता लेकर बेचने के लिए बाज़ार जा रहा है। महाजन के लड़के ने उससे पूछा, “कितने पैसे में इस तोते को तुम बेचोगे?” बहेलिया बोला, “बीस रुपए में।”
महाजन के लड़के ने बीस रुपए देकर तोता ख़रीद लिया। चलते-चलते उसने देखा कि एक व्यक्ति एक नेवले को बेचने के लिए ले जा रहा है। उससे दाम पूछने पर उसने कहा, “बीस रुपए दोगे तो नेवला दूँगा।” महाजन के लड़के ने बीस रुपए देकर नेवला ख़रीद लिया।
कुछ दूर और चला होगा तो देखा कि एक व्यक्ति ऊदबिलाव लेकर जा रहा है। महाजन के लड़के ने बीस रुपए में उसे भी ख़रीद लिया। फिर कुछ दूर चला तो देखा कि एक व्यक्ति साँप को पिटारे में भरकर ले जा रहा है। उसने बीस रुपए देकर वह साँप भी ख़रीद लिया। इस तरह अस्सी रुपए ख़र्च हो गए तो बाक़ी बचे बीस रुपयों के साथ तोता, नेवला, ऊदबिलाव और साँप को लेकर वह घर लौट आया।
उधर छोटा भाई सौ रुपए लेकर रवाना हुआ। वह लौटा तो अपने खाने-पीने पर ख़र्च करने के बाद चार सौ रुपए कमाकर घर लौटा। महाजन ने जब यह सब देखा तो उसने छोटे लड़के को घर पर रखकर उसे सबकुछ सौंप दिया और बड़े लड़के को एक धौल जमाकर घर से भगा दिया। बड़ा लड़का चारों को लेकर एक पेड़ के नीचे बैठा और उनसे बोला, “तुम सब अपने-अपने देश लौट जाओ। मैं तुम्हें कैसे पाल-पोस पाऊँगा अब?” तोता, नेवला, ऊदबिलाव और साँप- सबने उससे कहा, “तुम इतना हमारे मीत बन गए हो। जब भी कोई विपत्ति आए तो हमें ज़रूर याद करना। इतना कहकर तोता, नेवला और ऊदबिलाव तो जंगल में चले गए, लेकिन साँप रुक गया। साँप ने कहा, “मीत, चलो मेरे राज्य चलते हैं। वहाँ मेरे माता-पिता हैं, उनसे तुम जो माँगोगे, वह तुम्हें देंगे।” साँप को देखकर उसके माता-पिता ख़ुशी से मानो अंधे हो गए। साँप बोला, “मुझे मेरे इस मीत ने बीस रुपए देकर छुड़वाया है, नहीं तो आप लोग मुझे फिर कहाँ पाते? आप लोग पहले इनकी आवभगत करें, फिर मेरी तरफ़ ध्यान दीजिएगा।”
साँप के माता-पिता ने महाजन के लड़के का ख़ूब आदर-सत्कार किया। बहुत स्वादिष्ट भोजन उसे खिलाया। विदाई के समय उसे एक मणि लाकर दी और कहा, “यह मणि जिसके हाथ में होगी, वह जो कहेगा मणि वही करेगी। इस मणि का नाम है अंबुजमणि।” महाजन का लड़का मणि लेकर वहाँ से विदा हुआ। चलते-चलते वह एक राज्य में पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने मणि से पूछा, हे मणि, तू किसकी है?” मणि बोली, “मैं जिसके हाथ में हूँ, उसकी हूँ।” तब महाजन के लड़के ने कहा, “इस एक रात में ही इस राज्य के राजा के महल के सामने हीरा, नीलम, मोती, माणिक्य से बना एक महल खड़ा हो जाना चाहिए। इस राजा के तालाब के सामने संगमरमर का एक तालाब और राजा के बग़ीचे के सामने चाँदी के पेड़ में सोने के फूलों से भरा एक बग़ीचा बन जाना चाहिए।”
और सच में ही सुंदर महल, तालाब, बग़ीचा रातोंरात बनकर तैयार हो गया। सारे लोग देखकर भौंचक रह गए। महाजन का लड़का उस महल में रहने लगा। राजा जिस समय बग़ीचे में आते उसी समय वह भी अपने बग़ीचे में घूमता नज़र आता। राजा शिकार पर जाते तो वह भी जाता। राजा महल की छत पर हवा खाने जाते तो वह भी अपनी छत पर पहुँच जाता।
इसी तरह कुछ दिन बीत गए। एक दिन राजा महाजन के लड़के के महल में पहुँचे और उससे देर तक सुख-दुःख की बातें की, फिर बोले, “मेरा तो कोई लड़का नहीं है, एक ही लड़की है। उसका ब्याह तुम से करवा दूँगा। अपना मुल्क तुम्हें दे दूँगा। पर तुम ये बताओ यह धन-दौलत तुम्हें कहाँ से मिली।”
महाजन का लड़का इतना छल-कपट तो जानता नहीं था, उसने सारी बातें राजा को बता दीं। बस फिर क्या था, राजा यह विचार करने लगे कि किस तरह चालबाज़ी से वह मणि प्राप्त की जाए। एक दिन राजा अपनी बेटी से बोले, “तू महाजन के लड़के के पास जा। तुझसे वह ब्याह करने की बात करेगा। तू कहना मेरा बारह महीने का व्रत ख़त्म न होने तक मैं ब्याह नहीं कर सकती। पर किसी भी तरह से वह मणि उससे लाकर मुझे दो।” राजकुमारी ने वैसा ही किया। महाजन के लड़के से राजकुमारी बोली, “अगर तुम्हें मुझसे प्यार है तो वह मणि कहाँ रखी है, मुझे बताओ।” महाजन के लड़के ने कहा, “रात को सोते समय मैं अपने तकिए के नीचे मणि को रखकर सोता हूँ।” उसके दूसरे दिन राजा ने बहुत सारी मिठाई बनवा कर उसके अंदर धतूरे के बीज को कूटकर भरवा दिया और अपनी बेटी को देते हुए कहा, “महाजन के लड़के को यह मिठाई खिला देना। जब वह बेहोश हो जाएगा तब वह मणि तकिए के नीचे से निकालकर ले आना और मुझे दे देना। अगर तू ऐसा नहीं करेगी तो तुझे ही दो टुकड़ों में काट डालूँगा।”
राजकुमारी ने वैसा ही किया। मणि लाकर राजा को दे दी। राजा ने उस मणि से पूछा, “अरे हे मणि, तू किसकी है?” मणि बोली, “मैं जिसके हाथ में हूँ, उसी की हूँ।” तब राजा ने मणि को हुक्म दिया कि कल सवेरे जब यह महाजन का लड़का उठेगा तो वह फटे-पुराने कपड़े पहने एक टापू में बिना दरवाज़े वाले एक मंदिर के अंदर सोया होना चाहिए।
सच में ही सुबह जब महाजन का लड़का उठा तो अपने को एक मंदिर के अंदर पाया। चारों तरफ़ अँधेरा था। मणि को ढूँढ़ा तो पाई नहीं। अब वह पीछे की बात याद करके रोने लगा। तभी उसे अपने चारों मित्रों की बात याद आई। सोचा क्या पता चारों मित्रों को याद करूँ तो शायद वह आ जाएँ। ऐसा विचार करके वह चारों को याद करने लगा।
ऊदबिलाव पानी में घुसा। साँप ने उसके चारों तरफ़ अपने को लपेट लिया और फन फैला लिया। उसके फन पर नेवला बैठ गया। इसी तरह वे तीनों सात समंदर पार करके उस बिना दरवाज़े वाले मंदिर के पास पहुँचे। तोता उड़ते हुए वहाँ पहुँच गया। तब नेवला नीचे से मिट्टी खोदकर अंदर जाने के लिए रास्ता बनाने लगा। चारों उस गड्ढे से होते हुए अंदर महाजन के लड़के के पास पहुँचे।
महाजन का लड़का अपने मित्रों को देखकर ख़ूब रोया। सबने मिलकर महाजन के लड़के को बाहर निकाला। तोता उड़कर जंगल से ढेर सारे मीठे फल लेकर आ गया। फल खाकर उसने अपनी आपबीती अपने मित्रों को सुनाई। चारों ने मिलकर आठ दिन के लिए खाने-पीने का सामान लाकर उसके पास रख दिया और कहा, “तुम यहीं ठहरो। हम लोग जा रहे हैं, जल्दी ही उस मणि को वापस लेकर तुम्हारे पास पहुँचेंगे।”
इतना कहकर चारों मित्र राजा के महल में पहुँचे। राजा उस समय छत पर हवाख़ोरी के लिए गए हुए थे। तभी तोता वहाँ पहुँचकर बोलने लगा, “राधाकृष्ण, राधाकृष्ण, राधाकृष्ण, कृष्ण, राम, राम। चक्रधर पक्षी जन्म से उद्धार करो।” इस तरह से वह गीत गोविंद पढ़ने लगा। राजा उसे सुनकर ख़ुश हुआ। तब राजा नरम खीरा अपने हाथ में लेकर तोते को अपने पास बुलाने लगा। तोता बोला, “तुम वादा करो कि मुझे पिंजरे में नहीं रखोगे। तब मैं तुम्हारे पास आऊँगा और हमेशा तुम्हारे ही पास रहूँगा।”
राजा ने वादा किया तो तोता उड़कर राजा के हाथ पर बैठ गया। राजा जो बुलवाते, तोता वही बोलता। वहाँ रहकर वह मणि को भी ढूँढ़ता रहता। रात को तोते ने देखा कि राजा सोते समय मणि को अपनी जीभ के नीचे रखकर सोता है। तोते ने अपने मित्रों से यह बात कही। राजा सोते में ख़र्राटे भरने लगा, तभी साँप ने जाकर अपनी पूँछ राजा की नाक में घुसा दी। राजा को छींक आ गई और मणि मुँह से नीचे गिर गई। जैसे ही मणि नीचे गिरी, नेवले ने उसे अपने मुँह में दबा लिया। मणि लेकर चारों महाजन के लड़के से मिलने गए। ऊदबिलाव के ऊपर साँप अपना फन फैलाकर बैठा, उसके फन के ऊपर नेवला बैठा। तोता उनके साथ-साथ उड़ने लगा। नेवले के मुँह में मणि थी। समुद्र पार करते समय नेवले ने जम्हाई ली और ठीक उसी समय मणि मुँह से निकलकर पानी में गिर गई। नेवले की बुद्धि गुम हो गई। कितने दुःख-तकलीफ़ से मणि मिली थी, अब कहाँ मिलेगी मणि। ऊदबिलाव ने यह बात सुनी। वह तो मछलियों का राजा ठहरा। उससे सभी मछलियाँ डरती हैं। ऊदबिलाव ने सारा समुद्र छान मारा। मछलियाँ डर के मारे थर-थर काँपने लगीं। ऊदबिलाव ने राघव मछली को पकड़ा। राघव मछली ने सभी को एक जगह इकट्ठा किया और बोली, “जिसने भी मणि को लिया है, वह लाकर दे दे, नहीं तो ऊदबिलाव आज हम सबका वंश नाश कर देगा।” एक मछली उस मणि को निगल गई थी। राघव मछली की बात सुनकर उसने मणि को उल्टी करके पेट से निकाल दिया। मणि को लेकर चारों मित्र ख़ुशी-ख़ुशी मन से महाजन के लड़के के पास पहुँचे।
मणि वापस पाकर महाजन के लड़के का दिल ख़ुशी से भर गया। उसने मणि को हुक्म दिया कि तुरंत एक हवा से भी तेज़ चलने वाला जहाज़ मँगा दो। महाजन का लड़का चारों मित्रों को लेकर सात समंदर पार करके उस राजा के मुल्क में पहुँचा और मणि को हुक्म दिया कि इस राजा को फटे-पुराने कपड़े पहनाकर सात समंदर के बीच में स्थित टापू के बिना दरवाज़े वाले मंदिर में रख दे।
राजा का इस तरह बंदोबस्त करने के बाद महाजन के लड़के ने राजकुमारी को बुलाकर सारी बातें पूछीं। राजकुमारी सारी बातें मान गई, बोली, “पिताजी ने कहा था कि मेरा क़त्ल कर देंगे। इसलिए उन्होंने जो कहा वैसा ही मैंने किया। तुम्हारे जाने के बाद मेरा विवाह किसी अन्य से करने की ज़िद की, पर मैंने विवाह नहीं किया। मुझे तो यह सारी बातें पता नहीं थीं। मैं तुम्हें ढूँढ़ रही थी। मुझे पिता ने कह दिया था कि एक महीने के अंदर मैं शादी करने के लिए राज़ी न हो जाऊँ तो मेरे दो टुकड़े कर देंगे। सौभाग्य से एक महीना पूरा होने से पहले तुम पहुँच गए।”
महाजन के लड़के ने राजकुमारी की बात की सत्यता की जाँच की तो पाया कि वह सच कह रही है। महाजन के लड़के ने सोचा कि जो होना था वह तो हो चुका। बस अब राजा को इस मुल्क में वापस नहीं लाना है। ऐसा विचार करके मणि को हुक्म देकर सात समंदर के बीच उस टापू के अंदर एक दिव्य महल और बग़ीचा तैयार करवा दिया। राजा वहीं रहने लगा। महाजन के लड़के ने राजकुमारी से विवाह कर लिया। पिता और भाई को अपने पास लाकर मंत्री, उप-मंत्री बनाकर रखा। राजकुमारी और महाजन का लड़का राज्य का सुख भोग करते हुए आनंद से रहने लगे।
(साभार : अनुवाद : सुजाता शिवेन, ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)