अख़रोट (रूसी कहानी) : लियोनिद आंद्रेयेव
Akhrot (Russian Story in Hindi) : Leonid Andreyev
एक समय की बात है। हरे-भरे एक जंगल में एक बहुत सुंदर गिलहरी रहती थी जिसे हर कोई बहुत पसंद करता था। गर्मियों में गिलहरी के बाल सुनहरे-लाल होते थे। सर्दियों के आते ही, चारों तरफ़ बर्फ़ और सफ़ेदी के छाते ही वह भी सफ़ेद कोट पहन लेती थी। वह हमेशा ही बड़ी फ़ैशनपरस्त और सुंदर लगती थी! और उस गिलहरी के दाँत सफ़ेद, धारदार और मज़बूत थे जो सरौते की तरह मेवा तोड़ सकते थे। लेकिन अफ़सोस कि गिलहरी समझदार थी – जी हाँ, समझदार! उसकी समझदारी का बहुत बुरा हश्र हुआ, जंगल में आज तक सब उस दुखद कहानी को याद करके रोते हैं।
एक बार जंगल के ऊपर से उड़ते हुए सफ़ेद पंखों वाले एक देवदूत को अपनी पैनी आँखों से वह गिलहरी दिखाई दे गई, उसे वह बहुत ही पसंद आई। उसका मन उसे कोई सुन्दर उपहार देने को ललक उठा। वह उड़ते हुए जन्नत के बग़ीचों में पहुँचा और वहाँ से एक सुनहरा अख़रोट तोड़ लाया, बिलकुल वैसा जैसा लोग क्रिसमस ट्री पर सजाते हैं। उसे लेकर वह उस गिलहरी – प्यारी छोटी सफ़ेद गिलहरी के पास आया।
“प्यारी श्वेत गिलहरी, यह अखरोट तुम्हारे लिए है, इसे मैं स्वर्ग के उपवन से तुम्हारे लिए लाया हूँ। लो, इसे खा लो,” देवदूत ने कहा।
गिलहरी ने विनम्रता से उत्तर दिया – “आपका बहुत आभार” – और आगे बोली – “मैं इसे बाद में, आपके उड़ जाने पर खाऊँगी।”
देवदूत उस पर भरोसा करके उड़ गया। लेकिन गिलहरी सोच में पड़ गई और उसके मन में अलग-अलग ख़याल आने लगे – “ठीक है, मैं अभी यह अखरोट खा लूँगी लेकिन फिर क्या? इससे अच्छा तो यह होगा कि मैं इस अखरोट को कहीं छिपा दूँ और जब कभी भी ज़िन्दगी में ऐसा मुश्किल वक़्त आए कि मेरे पास खाने के लिए कुछ न हो तब मैं इसे निकालकर खा लूँ। हरेक को हमेशा अक़लमंदी से काम लेना चाहिए, उसे फ़िज़ूलख़र्ची से बचना चाहिए और किफ़ायती होना चाहिए।”
कितने ही साल और सर्दियाँ बीत गईं, और कितनी ही बार गिलहरी के मन में उस सुनहरे अखरोट को खाने का लालच आया, वह भूख से तड़पी भी, लेकिन उसने वह अखरोट नहीं खाया। जी, हाँ, नहीं खाया उसने! लेकिन फिर गिलहरी की ज़िन्दगी में काले दिन आए: वह बूढ़ी हो गई, उसके पैर गठिया से टेढ़े हो गए, उसका सिर कमज़ोरी से काँपने लगा, और उसके सफ़ेद कोट का फ़र जगह-जगह से निकल गया था, कोट तार-तार हो गया था, वह भद्दा, बहुत भद्दा दीखने लगा था। वह कोट अब गिलहरी को पर्याप्त गर्माहट भी नहीं दे पाता था।
इन हालात में एक बार जब गिलहरी भूख से बहुत परेशान हुई तो उसने सोचा कि चलो, अब मैं अखरोट खा लेती हूँ। उसने सूखी पत्तियों के नीचे से अपना ख़ज़ाना निकाला, उसे अपने पंजों में लिया और ख़ूब निहारा। उसे देख कर उसके मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। फिर उसने अखरोट अपने मुँह में डाला। मुँह में डाल तो लिया लेकिन वह उसे तोड़ न पाई : गिलहरी के दाँत जो नहीं थे – जी, हाँ उसके दाँत गिर गए थे!
सफ़ेद जंगल के ऊपर से सफ़ेद पंखों वाला वही देवदूत फिर उड़ा और उसने देखा कि एक बड़े पेड़ के नीचे चीथड़ हो गए कोट में मरी हुई एक बूढ़ी गिलहरी पड़ी है जिसके पंजे में एक सुनहरा अखरोट था, जन्नत के बग़ीचे का अखरोट।
सीख : ज़िन्दगी में जैसे ही अखरोट मिले उसे फ़ौरन खा लेना चाहिए।