अक्लमन्द कैथरीन : इतालवी लोक-कथा
Akalmand Catherine : Italian Folk Tale
देवियों और सज्जनों, पलेरमो शहर में लोग एक कहानी कुछ इस तरह से सुनते सुनाते हैं कि एक समय की बात है कि पलेरमो शहर में एक बहुत ही अमीर दुकानदार रहता था। उसके एक बेटी थी जो जबसे वह छोटी सी थी तभी से वह बहुत चतुर थी। घर में हर विषय पर लोग उसकी बात सुनते थे और उसको मानते थे।
उसकी अक्लमन्दी को देखते हुए उसके पिता ने उसका नाम अक्लमन्द कैथरीन रख दिया था। जब उसकी सारी भाषाओं को सीखने की और सब तरह की किताबों को पढ़ने की बारी आयी तो उसने उनको भी बहुत जल्दी ही सीख लिया और पढ़ लिया और उनमें कोई उसका मुकाबला नहीं कर सका।
जब वह लड़की 16 साल की हुई तो उसकी माँ चल बसी। इससे कैथरीन इतनी दुखी हुई कि उसने अपने आपको एक कमरे में बन्द कर लिया और उसमें से बाहर निकलने को बिल्कुल मना कर दिया। वह वहीं अपना खाना खाती थी और वहीं सोती थी।
उसके दिमाग में बाहर घूमने की या कहीं थियेटर जाने की या फिर दिल बहलाने के किसी भी साधन की बात आती ही नहीं थी।
उसके पिता की ज़िन्दगी तो बस अपनी इसी इकलौती बच्ची के चारों तरफ ही घूमती थी सो वह उसके इस व्यवहार से बहुत दुखी हुआ।
वह सोचता रहा कि वह कैसे उसको पहले की तरह से हँसता खेलता देखे। जब उसकी समझ में कुछ न आया तो उसने इस बारे में कुछ बड़े लोगों से सलाह लेने का विचार किया।
हालाँकि वह खुद केवल एक दुकानदार ही था फिर भी उसकी जान पहचान बहुत बड़े बड़े लोगों से थी इसलिये उसने शहर के बड़े बड़े लौर्ड लोगों को बुलाया।
उसने उनसे कहा — “भले लोगों, जैसा कि आप सब को पता है कि मेरी एक बेटी है जो मेरी ऑखों का तारा है। पर जबसे उसकी माँ गयी है तबसे उसने अपने आपको एक बिल्ली की तरह अपने कमरे में बन्द कर रखा है और उसमें से बिल्कुल भी बाहर नहीं निकलती है। अब आप लोग ही मुझे कोई सलाह दें कि मैं क्या करूँ।”
लोग बोले — “तुम्हारी बेटी तो अपनी अक्लमन्दी के लिये संसार भर में मशहूर है। तुम उसके लिये एक बड़ा सा स्कूल क्यों नहीं खोल देते ताकि वह उनको उनकी पढ़ाई में मदद कर सके। शायद इससे वह अपने दुख से बाहर निकल आये।”
पिता को यह विचार बहुत पसन्द आया। वह बोला — “यह तो अच्छा विचार है। मैं ऐसा ही करूँगा।”
यह सोच कर उसने अपनी बेटी के पास जा कर कहा — “सुनो बेटी, क्योंकि अब तुम कुछ और तो करती नहीं तो मैंने यह सोचा है कि मैं तुम्हारे लिये एक स्कूल खोल देता हूँ और तुम उसको चलाओ। तुम्हारा क्या खयाल है?”
इस बात से तो कैथरीन बहुत खुश हो गयी और उसने उस स्कूल के टीचरों की भी जिम्मेदारी खुद ही ले ली।
स्कूल जल्दी ही खुल गया। स्कूल के बाहर एक साइनबोर्ड लगा दिया गया – जो भी कोई यहाँ कैथरीन के पास पढ़ना चाहे मुफ्त पढ़ सकता है।
यह साइनबोर्ड देख कर बहुत सारे बच्चे – लड़के और लड़कियाँ दोनों ही कैथरीन के पास पढ़ने आने लगे। वह उनको बिना किसी भेदभाव के कुर्सी मेज पर बराबर बराबर बिठाने लगी।
जब उसने एक बच्चे को एक बच्चे के पास बिठाया तो वह बच्चा बोला — “पर यह लड़का तो एक कोयला बेचने वाले का है।”
तो कैथरीन बोली — “इससे क्या फर्क पड़ता है। कोयला बेचने वाले का लड़का एक राजा की लड़की के पास भी बैठ सकता है। जो पहले आयेगा उसको सीट पहले मिलेगी।” और कैथरीन का स्कूल शुरू हो गया।
कैथरीन के पास एक कोड़ा था जिससे वह बच्चों को काबू में रखती थी। वैसे वह सबको एक सा पढ़ाती थी पर उन लोगों पर ज़्यादा ध्यान देती थी जो पढ़ाई में कमजोर होते थे।
अब इस स्कूल की खबर राजा के महल तक पहुँची तो राजकुमार ने भी इस स्कूल में पढ़ने की सोची। उसने अपने शाही कपड़े पहने और स्कूल आया। कैथरीन ने उसके लिये एक जगह ढूँढी और उसको उस खाली जगह में आ कर बैठ जाने के लिये कहा। राजकुमार वहाँ बैठ गया।
जब उस राजकुमार की बारी आयी तो कैथरीन ने उससे एक सवाल पूछा। राजकुमार को उस सवाल का जवाब आता नहीं था तो उसने राजकुमार को एक चाँटा मारा जिससे उसका गाल सूज गया।
राजकुमार गुस्से से लाल हो कर उठा और उठ कर महल चला गया। वह अपने पिता के पास पहुँचा और उनसे बोला — “मैजेस्टी, मेरे ऊपर दया करें। मेरी शादी कर दीजिये और मुझे उस अक्लमन्द कैथरीन से ही शादी करनी है।”
राजा ने कैथरीन के पिता को बुला भेजा। कैथरीन का पिता तुरन्त ही राजा के पास गया और सिर झुका कर बोला — “योर मैजेस्टी, हुकुम।”
राजा बोला — “उठो। मेरे बेटे को तुम्हारी बेटी कैथरीन पसन्द आ गयी है तो अब हम क्या कर सकते हैं सिवाय इसके कि हम उन दोनों की शादी कर दें।”
“जैसी आपकी मरजी मैजेस्टी। पर मैं तो केवल एक दुकानदार हूँ और राजकुमार तो शाही खून वाले हैं।”
“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जब मेरा बेटा खुद ही उससे शादी करना चाहता है तो।”
सो वह दुकानदार घर लौट आया और अपनी बेटी से कहा — “कैथरीन, राजकुमार तुमसे शादी करना चाहते हैं। तुम्हें इस बारे में क्या कहना है?”
“मुझे मंजूर है।”
किसी खास चीज़ की कोई जरूरत नहीं थी। एक हफ्ते में शादी की सब तैयारियाँ हो गयीं। राजकुमार ने कैथरीन की शादी के लिये 12 लड़कियाँ तैयार कीं। शाही चैपल खोल दिया गया और दोनों की शादी हो गयी।
शादी की रस्म के बाद रानी माँ ने उन 12 लड़कियों से कहा कि वे रात के सोने के लिये बहू के कपड़े उतार दें और उसको सोने के लिये तैयार कर दें।
पर राजकुमार ने अपनी माँ को मना करते हुए कहा — “किसी को उसके कपड़े उतारने या उसको कपड़े पहनाने की कोई जरूरत नहीं है और न ही उसके दरवाजे पर पहरा देने की ही कोई जरूरत है।”
जब राजकुमार कैथरीन के साथ अपने कमरे में अकेला रह गया तो उससे बोला — “कैथरीन, क्या तुम्हें याद है कि तुमने मुझे चाँटा मारा था? क्या तुम्हें उसके लिये कोई अफसोस है?”
“क्या? उसके लिये अफसोस? अगर तुम मुझसे पूछो तो मैं फिर ऐसा ही करूँगी।”
“अरे, क्या तुम्हें उसके लिये कोई अफसोस नहीं है?”
“नहीं, बिल्कुल भी नहीं।”
“और उसके लिये अफसोस करने का तुम्हारा कोई इरादा भी नहीं है?”
“उसके लिये कौन अफसोस करेगा?”
“तो यही तुम्हारा विचार है? कोई बात नहीं। अब मैं तुमको एक दो बात बताऊँगा।”
कह कर राजकुमार ने रस्सी का एक गोला खोलना शुरू किया। वह उस रस्सी के सहारे कैथरीन को एक चोर दरवाजे से नीचे उतारने वाला था।
जब उसने वह रस्सी खोल ली तो वह कैथरीन से एक बार फिर बोला — “या तो तुम अपना कुसूर मान लो कि तुम गलती पर थीं या फिर मैं तुम्हें इस गड्ढे में नीचे उतारता हूँ।”
कैथरीन बोली — “मैं इस गड्ढे में आराम से रहूँगी। तुम चिन्ता न करो।”
सो राजकुमार ने उसकी कमर में रस्सी बाँधी और उसको नीचे एक कमरे में उतार दिया जहाँ केवल एक मेज थी, एक कुरसी थी, एक पानी का घड़ा था और थोड़ी सी डबल रोटी थी।
अगले दिन सुबह रीति रिवाज के अनुसार राजा और रानी नयी बहू के स्वागत के लिये वहाँ आये तो राजकुमार बोला — “आप लोग अभी अन्दर नहीं आ सकते क्योंकि कैथरीन की तबीयत ठीक नहीं है।”
फिर वह उस चोर दरवाजे को खोलने गया और कैथरीन से पूछा — “तुम्हारी रात कैसी गुजरी?”
कैथरीन बोली — “बहुत सुन्दर और ताजगी भरी।”
राजकुमार ने फिर पूछा — “क्या तुम अभी भी अपने उस चाँटे के बारे में दोबारा सोच रही हो?”
“मैं तो उस चाँटे के बारे में सोच रही हूँ जो मुझे तुम्हें इसके बदले में देना चाहिये।”
दो दिन गुजर गये। अब भूख से कैथरीन का पेट एंठने लगा। उसको यह समझ ही नहीं आ रहा था कि अब उसको क्या करना चाहिये। पर फिर उसने अपने कपड़ों में से एक कील निकाली और उससे दीवार में छेद करना शुरू किया।
वह छेद करती रही, करती रही। चौबीस घंटे बाद उसको रोशनी की एक किरण दिखायी दी तब उसको थोड़ा चैन आया। उसने उस छेद को और बड़ा कर लिया और उसके बाहर झाँका तो उसे कौन दिखायी दिया? उसके पिता का मुनीम ।
उसने उसको आवाज दी “डौन टोमासो, डौन टोमासो।”
पहले तो डौन टोमासो यह समझ ही नहीं सका कि वह आवाज किसकी है और दीवार में से कहाँ से आ रही है। फिर उसने कैथरीन की आवाज पहचानी।
कैथरीन बोली — “डौन टोमासो, यह मैं हूँ अक्लमन्द कैथरीन। मेहरबानी करके मेरे पिता से कहना कि मुझे उनसे अभी अभी बहुत जरूरी बात करनी है।”
कैथरीन की आवाज सुन कर डौन टोमासो तुरन्त ही कैथरीन के पिता के पास आया और उसको साथ ले कर उस दीवार के पास लौटा और उसको दीवार की वह छोटा सा छेद दिखाया जहाँ से उसने कैथरीन की आवाज सुनी थी।
कैथरीन बोली — “पिता जी, जैसी तकदीर होती है वैसा ही होता है। मैं यहाँ एक नीचे वाले कमरे में हूँ। आप हमारे महल से यहाँ तक एक सुरंग खुदवाइये जिसमें हर 20 फीट पर एक मेहराब हो और एक रोशनी लगी हो। बाकी मैं देख लूँगी।”
दुकानदार ने ऐसा ही किया। इस बीच वह कैथरीन के लिये बराबर खाना लाता रहा – भुना हुआ मुर्गा और दूसरा ऐसा खाना जो उसको ताकत देता और उसे अपनी बेटी को उस छेद में से देता रहा।
उधर राजकुमार उस चोर दरवाजे से दिन में तीन बार उस गडढे में झाँकता और कैथरीन से पूछता — “कैथरीन, क्या तुमको अभी भी मुझे चाँटा मारने का अफसोस नहीं है?”
“अफसोस किस बात के लिये? तुम तो अब उस चाँटे के बारे में सोचो जो तुम्हें अब मिलने वाला है।”
कुछ दिनों में ही मजदूरों ने वह सुरंग तैयार कर दी जिसमें हर 20 फीट पर एक मेहराब थी और एक लालटेन थी। अब कैथरीन उस सुरंग से हो कर अपने पिता के घर पहुँच सकती थी।
बहुत जल्दी ही राजकुमार कैथरीन को इस बात पर राजी करते करते थक गया कि वह अपना कुसूर मान ले सो एक दिन उसने वह चोर दरवाजा खोला और कैथरीन से कहा — “कैथरीन मैं नैपिल्स जा रहा हूँ। तुमको मुझसे कुछ कहना है?”
“भगवान करे कि तुम्हारा समय अच्छा गुजरे और तुम वहाँ आनन्द से रहो। जब तुम नैपिल्स पहुँच जाओ तो मुझे लिखना।”
“तो मैं जाऊँ?”
कैथरीन ने पूछा — “अरे, तुम अभी भी यहीं हो? तुम गये नहीं?”
राजकुमार यह सुन कर चला गया।
जैसे ही उसने चोर दरवाजा बन्द किया कि कैथरीन अपने पिता के घर की तरफ दौड़ गयी और बोली — “पिता जी अब मेरी मदद कीजिये। मुझे एक दो मस्तूल वाली नाव ला कर दीजिये। उसमें एक सफाई करने वाला हो, कुछ नौकर हों कुछ बढ़िया पोशाकें हों और वह नाव नैपिल्स जाने के लिये तैयार हो।
नैपिल्स में मुझे वहाँ के महल के सामने एक घर किराये पर ले दें और फिर वहाँ मेरे आने का इन्तजार करें।”
दुकानदार ने अपनी बेटी के लिये तुरन्त ही एक नाव का इन्तजाम कर दिया। इस बीच राजकुमार भी अपने एक लड़ाई के जहाज़ पर नैपिल्स के लिये चल पड़ा।
कैथरीन ने अपने पिता के महल के छज्जे पर खड़े हो कर राजकुमार को उसके जहाज़ में जाते देखा। उसके जाने के बाद वह भी एक दूसरी दो मस्तूलों वाली नाव पर नैपिल्स की तरफ चल दी। वह राजकुमार से पहले नैपिल्स पहुँच गयी क्योंकि छोटे जहाज़ बड़े जहाज़ों से तेज़ जाते हैं।
अब नैपिल्स में कैथरीन रोज एक नयी पोशाक पहन कर अपने महल के छज्जे पर जा कर खड़ी हो जाती। उसकी हर दिन की पोशाक उसकी पहले दिन की पोशाक से ज़्यादा सुन्दर होती।
राजकुमार उसको रोज देखता और सोचता इस लड़की की शक्ल कैथरीन से कितनी मिलती है। उसको रोज देखते देखते वह उससे प्यार करने लगा सो उसने उसके पास अपना एक नौकर इस सन्देश के साथ भेजा कि अगर उसको कोई ऐतराज न हो तो वह उससे मिलने आना चाहता है।
कैथरीन ने जवाब में कहा कि “हाँ हाँ क्यों नहीं। मुझे बिल्कुल भी ऐतराज नहीं है। वह मुझसे मिलने जरूर आये।”
राजकुमार अपनी शाही शान से वहाँ आया और उससे बात करने बैठ गया। राजकुमार ने पूछा — “क्या तुम शादीशुदा हो?”
कैथरीन बोली — “नहीं। और तुम?”
“मैं भी नहीं। क्या तुमको ऐसा लग नहीं रहा कि मैं शादीशुदा नहीं हूँ? पर तुम्हारी शक्ल एक लड़की से मिलती है जो मुझे पलेरमो में अच्छी लगी थी। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी पत्नी बन जाओ।”
“खुशी से, राजकुमार।”
और एक हफ्ते बाद उन दोनों की शादी हो गयी। नौ महीने बाद कैथरीन ने एक बेटे को जन्म दिया जो देखने में बहुत सुन्दर था।
राजकुमार ने पूछा — “राजकुमारी, हम इसका नाम क्या रखें?”
कैथरीन बोली “नैपिल्स।” और उसका नाम नैपिल्स रख दिया गया।
दो साल बाद राजकुमार ने नैपिल्स से जाने का विचार किया। राजकुमारी का मन वहाँ से जाने का तो नहीं था पर राजकुमार ने तो अपना मन बना रखा था सो वह उसके इरादे को बदल नहीं सकी।
उसने कैथरीन के लिये अपने बेटे के लिये एक कागज लिखा कि यह उसका पहला बेटा था इसलिये उसके बाद वही राजा बनेगा और जिनोआ के लिये रवाना हो गया।
जैसे ही राजकुमार वहाँ से गया कैथरीन ने अपने पिता को लिखा कि वह एक दो मस्तूल वाली नाव जिनोआ भेज दे जिसमें कुछ फर्नीचर हो, घर साफ करने वाले हों, नौकर हों और बाकी का सामान हो। वहाँ भी वह जिनोआ के महल के सामने एक घर किराये पर ले और उसके आने का इन्तजार करे।
कैथरीन के कहे अनुसार दूकानदार ने इस सब सामान से एक जहाज लादा और उसे जिनोआ भेज दिया। कैथरीन ने भी एक दो मस्तूल वाली नाव ली और राजकुमार के जिनोआ पहुँचने से पहले ही वहाँ पहुँच गयी। वहाँ जा कर वह अपने नये घर में ठहर गयी।
जब राजकुमार ने इस सुन्दरी को उसके शाही रहन सहन और उसके हीरे जवाहरात में देखा और उसकी सम्पत्ति देखी तो फिर सोचा — “इस लड़की की शक्ल कैथरीन से और मेरी नैपिल्स वाली पत्नी से कितनी मिलती जुलती है।”
सो उसने फिर से उसके पास अपना एक नौकर भेजा कि वह उससे मिलना चाहता था जिसके जवाब में कैथरीन ने भी कह दिया कि हाँ हाँ क्यों नहीं। वह उसको अपने घर में देख कर बहुत खुश होगी।
सो राजकुमार एक बार फिर कैथरीन के घर पहुँचा और उससे बातें करनी शुरू की।
राजकुमार ने पूछा — “क्या आप यहाँ अकेली रहती हैं?”
कैथरीन बोली — “हाँ मैं एक विधवा हूँ। और आप?”
“मैं भी एक विधुर हूँ और मेरे एक बेटा है। वैसे आप एक लड़की की तरह दिखायी देती हैं जिसको मैं पलेरमो में जानता था और वैसी ही एक लड़की को मैं नैपिल्स में भी जानता हूँ।”
“क्या सचमुच? वैसे लोगों का कहना है कि हम सब इस संसार में सात जोड़े पैदा होते हैं।”
उसके बाद राजकुमार ने उससे भी शादी कर ली। नौ महीने बाद कैथरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया। उसका यह बेटा उसके पहले बेटे से भी ज़्यादा सुन्दर था। राजकुमार उसको देख कर बहुत खुश था।
उसने राजकुमारी से पूछा — “राजकुमारी, हम इसका नाम क्या रखेंगे?”
“जिनोआ।” और उन्होंने उसका नाम जिनोआ रख दिया।
एक बार फिर से दो साल निकल गये तो वह राजकुमार फिर से बेचैन हो उठा। वह फिर वहाँ से जाना चाहता था।
राजकुमारी ने पूछा — “क्या तुम मुझे और मेरे बच्चे को इस तरह अकेला छोड़ कर जा रहे हो?”
राजकुमार ने उसको तसल्ली दी — “मैं तुम्हारे लिये एक कागज लिख कर जा रहा हूँ कि यह मेरा बेटा है और मेरा छोटा राजकुमार है।”
इस कागज को लिखने के बाद जब वह वेनिस जाने के लिये तैयार हुआ तो कैथरीन ने फिर से अपने पिता को पलेरमो में लिखा कि वह उसके लिये फिर से वैसे ही एक दो मस्तूल वाली नाव सब सामान के साथ, नौकर चाकर, फर्नीचर, नये कपड़े आदि के साथ वेनिस भेजने का इन्तजाम कर दे।
वेनिस के महल के सामने एक घर किराये पर ले ले और वहाँ उसके आने का इन्तजार करे। सो उसके पिता ने एक जहाज़ भर कर सामान अपनी बेटी के लिये वेनिस भी भेज दिया।
कैथरीन ने भी फिर से एक और दो मस्तूल वाली नाव ली और वह राजकुमार से पहले ही वेनिस पहुँच कर अपने मकान में ठहर गयी।
राजकुमार ने जब कैथरीन को उसके घर के छज्जे पर देखा तो इस बार तो वह बहुत ही आश्चर्यचकित रह गया। उसके मुँह से निकला — “हे भगवान यह क्या? इसकी शक्ल तो मेरी जिनोआ वाली पत्नी से कितनी मिलती जुलती है जिसकी शक्ल मेरी नैपिल्स वाली पत्नी से मिलती थी और जिसकी शक्ल कैथरीन से मिलती थी। यह कैसे हो सकता है?”
कैथरीन तो पलेरमो में उस नीचे वाले कमरे में बन्द है। नपोली वाली नैपिल्स में है, जिनोआ वाली जिनोआ में है और यह यहाँ वेनिस में? यह सब क्या है?”
उसने फिर अपना एक नौकर उसके पास इस सन्देश के साथ भेजा कि क्या वह उससे मिलने आ सकता है। और फिर एक बार वह उससे मिलने जा पहुँचा।
वहाँ जा कर वह बोला — “क्या आप विश्वास करेंगी कि आप की शक्ल कई और लड़कियों से मिलती है जिनको मैं जानता हूँ – एक पलेरमो में रहती है, दूसरी नैपिल्स में रहती है और तीसरी जिनोआ मे रहती है।”
“हाँ हाँ क्यों नहीं। मैं आपका बिल्कुल विश्वास करूँगी। बात यह है कि हम ज़िन्दगी में सात जोड़े बन कर आते हैं।” और फिर वे अपनी सामान्य बातें करने लगे।
राजकुमार ने पूछा — “क्या आप शादीशुदा हैं?”
“मैं विधवा हूँ। और आप?”
“मैं एक विधुर हूँ और मेरे दो बेटे हैं।”
एक हफ्ते में फिर उन दोनों की शादी हो गयी। नौ महीने बाद कैथरीन ने एक बेटी को जन्म दिया जो चाँद सूरज की तरह चमकीली थी।
राजकुमार ने पूछा — “हम इसका नाम क्या रखेंगे राजकुमारी?”
कैथरीन बोली — “हम इसका नाम रखेंगे वेनिस।”
और उसका नाम वेनिस रख दिया गया।
दो साल फिर गुजर गये। राजकुमार बोला — “सुनो राजकुमारी, अब मुझे पलेरमो वापस जाना है। पर उससे पहले मैं एक कागज लिखना चाहता हूँ कि यह मेरी बेटी है और राजकुमारी है।”
यह सब करके राजकुमार पलेरमो चला गया पर हर बार की तरह से इस बार भी कैथरीन वहाँ राजकुमार से पहले ही पहुँच गयी। वह पहले अपने पिता के घर गयी और फिर वहाँ से अपने उस कमरे में पहुँच गयी जहाँ राजकुमार उसको छोड़ कर गया था।
जैसे ही राजकुमार पलेरमो पहुँचा वह तुरन्त ही उस गड्ढे की तरफ गया जहाँ उसने कैथरीन को कैद कर रखा था। वहाँ जा कर उसने वह चोर दरवाजा खोला और नीचे झाँक कर बोला — “कैथरीन, तुम कैसी हो?”
“ओह मैं? मैं बिल्कुल ठीक हूँ। तुम कैसे हो?”
“क्या तुम्हें मुझे वह चाँटा मारने पर अभी भी अफसोस नहीं है?”
“वह तो नहीं है पर तुमने क्या कभी उस चाँटे के बारे में भी सोचा है जो मैं अब तुम्हें दूँगी?”
जब भी राजकुमार उससे उस चाँटे की बात करता जो उसने उसको मारा था तो वह यही जवाब देती। उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि इस जवाब से उसका क्या मतलब था।
“छोड़ो भी और यह मान लो कि तुम्हें उस चाँटा मारने पर अफसोस है नहीं तो मैं दूसरी शादी कर लूँगा।”
“हाँ हाँ कर लो, तुम्हें रोकता कौन है?”
“पर अगर तुम्हें उसके लिये अफसोस होगा तो मैं तुम्हें वापस अपनी पत्नी बना लूँगा।”
“नहीं। कभी नहीं। मुझे उसके लिये कोई अफसोस नहीं है।”
उसके बाद राजकुमार ने यह घोषित कर दिया कि उसकी पत्नी मर चुकी है और अब वह दोबारा शादी करना चाहता है। उसने सारे राजाओं को उनकी बेटियों की तस्वीरें भेजने के लिये लिखा।
तस्वीरें आयीं तो उसको इंगलैंड के राजा की बेटी की तस्वीर सबसे ज़्यादा अच्छी लगी। राजकुमार ने उस लड़की को और उसकी माँ को शादी के लिये बुलाया। अगला दिन शादी का दिन निश्चित हो गया।
इस बीच कैथरीन ने अपने तीनों बच्चों – नैपिल्स, जिनोआ और वेनिस के लिये, शाही पोशाकों का इन्तजाम किया। वह खुद भी रानी की तरह तैयार हुई और तीनों बच्चों को ले कर रस्मी गाड़ी में सवार हो कर महल की तरफ चल दी।
उधर से राजकुमार और इंगलैंड की राजकुमारी की बारात आ रही थी। कैथरीन ने अपने बच्चों से कहा — “नैपिल्स, जिनोआ और वेनिस, जाओ और जा कर अपने पिता का हाथ चूम लो।”
बच्चे यह सुन कर अपने पिता की ओर दौड़ गये और जा कर उन्होंने राजकुमार का हाथ चूम लिया। जैसे ही राजकुमार ने बच्चों को देखा तो वह तो आश्चर्य में पड़ गया। उसको लगा कि उस लड़की ने उसको वाकई चाँटा मार दिया था।
पर यह वैसा चाँटा नहीं था जैसा कि वह सोच रहा था। यह तो एक खुशी का चाँटा था। वह हार मान बैठा और ज़ोर से चिल्लाया — “अच्छा तो वह यह चाँटा था जो तुम मुझे मारने की बात कर रही थीं।” कह कर उसने अपने तीनों बच्चों को गले लगा लिया।
इंगलैंड की राजकुमारी की तो बोलती ही बन्द हो गयी। वह वहाँ से पलटी और वापस चली गयी।
तब कैथरीन ने अपने पति को सारी कहानी सुनायी और बताया कि उसको वे तीनों लड़कियाँ एक सी क्यों लगी थीं।
अब पछतावे की बारी राजकुमार की थी। उसने बार बार अपने उस बरतावे का अफसोस किया जो उसने कैथरीन के साथ किया था। उसके बाद वे सब खुशी खुशी रहे।
(साभार : सुषमा गुप्ता)