अक्लमंद बिल्ली (उड़िया बाल कहानी) : श्रीकांत कुमार राउतराय/ଶ୍ରୀକାନ୍ତ କୁମାର ରାଉତରେ

Akalmand Billi (Oriya Children Story) : Shrikant Kumar Routray

किसी दिन एक बिल्ली ने खाने के लिए एक रोहू मछली की मुण्डी चोरी की। दोपहर का समय । चारों ओर सुनसान । घर वाले नींद में थे। बिल्ली यह तय नहीं कर पायी कि वह मुण्डी कहाँ ले जाए। इसलिए मुण्डी को दरवाजे के कोने में लुढ़काया और वहीं बैठकर भूनी मछली की सुगंध लेते-लेते सोचने लगी। इतनी बड़ी मुण्डी मिलना तो भाग्य की बात है। आज का दिन जरूरं उसके सौभाग्य का दिन है। देर तक सोच-विचार के बाद उसने पक्का कर लिया कि किसी पेड़ की छाया में मछली का मजा लेना चाहिए। वहाँ सन्नाटा होगा और कोई संकट न होगा।

मुण्डी को खूब सावधानी से जबड़े में दबाकर आहिस्ते-आहिस्ते खिसकी । उसकी नजर चारों ओर घूमती रहती थी। कान चौकन्ने थे। वह एक बरगद के पास पहुँची । नीचे बैठकर खाना उसने पसन्द नहीं किया । सोचा, ऊपर चढ़ जाना चाहिए, ताकि किसी को डर न रहे। पत्तों की झुरमुट में छिपकर वह आराम से खा सकेगी।

अपनी योजना के अनुसार वह पेड़ के ऊपर पत्तों - डालियों की ओट में जा पहुँची। बिल्ली ने रोहू की मुण्डी रखकर गौर से निहारा। वह कितनी सुन्दर है ! एक ही रोज में क्यों खाऊँ, थोड़ा-थोड़ा करके तीन रोज खाई जा सकती है। एक तो, मछली का स्वाद तीन रोज लिया जा सकता है। दूसरे, तीन रोज खाने-पीने की चिंता रहेगी ही नहीं। मछली को दाँतों से दबाया पर उसका जी नहीं हुआ उसे तोड़ने को । वाह क्या खुशबू है ! ताजा मछली है न और फिर नदी की।

सोचते-सोचते शाम हो गयी। मछली की मुण्डी को काटकर टुकड़े- टुकड़े करना उसने नहीं चाहा। विना पलक डुलाये मछली को इकटक ताक रही थी । वह तय नहीं कर पायी कि आज खाएगी या कल। ठीक उसी समय एक नेवला वहाँ आ पहुँचा। उसने बिल्ली से पूछा, 'अरे भाई, क्या ताक रही हो, कुछ है क्या?'

बिल्ली ने सोचा, ‘यह तो बड़ी आफत आ गयी । नेवला ने तो मुण्डी को देख लिया है। अभी वह जरूर मुझसे छीनकर सारा खा जाएगा। उसके लिए हड्डी तक नहीं बचेगी।' इसलिए सोच समझकर वह बोली, 'भाई मैं बड़े संकट में फँस गयी हूँ । मेरे सामने यह जो मछली की मुण्डी है, यह एक जादू की मुण्डी है। उसने जादू के बल से मुझे पेड़ के ऊपर घसीटा है और यहाँ बैठा रखा है। न मैं इसे खा सकती हूँ। और न यहाँ से जा सकती हूँ। यह सब उसके जादू मंतर का खेल है। मैं एक बेवकूफ निकम्मी बिल्ली बनी हुई हूँ । यहाँ से कैसे प्राण बचाऊँ, यही सोच रही हूँ, इसके जादू के प्रभाव से मेरे अंग-अंग निष्क्रिय हैं।'

बिल्ली की बात सुनकर नेवला पहले डर गया । उसके सामने एक रोहू मछली की मुण्डी है और बिल्ली का कहना है कि वह जादू की मछली है। उसे विश्वास नहीं हुआ। वह खाने को ललचाया। मुँह से लार टपकी । पर करे क्या ? बिल्ली ने उसे ऐसा डरा दिया है कि वह आगे कुछ सोच ही नहीं सकता। अगर वह मछली के पास आ जाये और उसके हाथ-पैर बिल्ली की तरह निकम्मे हो जाएँ तो ...? ऐसा निकम्मा बन बैठने से मछली न खाना बेहतर होगा। लेकिन क्या मछली का मोह उसे चैन से रहने देगा ? वह भी बिल्ली की तरह वहीं बैठा रहा और मुण्डी को ताकता रहा ।

नेवले को एकटक मछली पर नजर गड़ाये हुए बैठा देखकर बिल्ली ने सोचा, 'शायद यह स्थान नहीं छोड़ेगा। मुण्डी के लोभ में फँस गया है।' इसलिए वह चुपचाप बैठी रही। न पलकें डोलती थीं और न कोई अंग ।

नेवले ने जमकर इंतजार किया। बिल्ली न हिली न डुली, बस ध्यान से मछली ताकती रही। उसे विश्वास हो गया कि सचमुच बिल्ली पर जादू का असर हुआ है। उसी वक्त जाने कहाँ से एक गिद्ध वहाँ आ पहुँचा।

मछली की मुण्डी देखकर उसके मुँह में भी पानी आ गया। पर क्या कारण है कि ये दोनों मांसाहारी यहाँ बेवकूफ की तरह इसे ताक रहे हैं। उसने नेवले से जानना चाहा, तो उसने बताया, 'चुप भाई साहब चुप रहो । जबान मत खोलो। यहाँ बैठना चाहते हो तो चुपचाप बैठो। वरना यहाँ से हटो।'

गिद्ध छोड़ने वाला न था । उसने पूछा, 'असल में मामला क्या है, बताओ न?' नेवला बोला, 'तुम चुपचाप बैठो। मैं तुम्हें सारी बातें बताता हूँ ।'

'अरे भाई, यह मछली मुण्डी असली नहीं है । जादुई मछली है। इसने जादू- टू-मंतर करके बिल्ली को पेड़ पर खींचा है। देखा नहीं, कैसे पत्थर की मूर्ति बन बैठी है?"

गिद्ध ने बिल्ली की तरफ देखा, सचमुच वह पत्थर की मूर्ति जैसी थी । जरा-सा भी हिलती-डुलती न थी । पलकें भी नहीं गिराती थी मुर्दे की तरह ।

नेवले की बात पर उसे भी विश्वास हो गया और मछली को ताकते हुए बैठ गया । इतनी अच्छी और बड़ी मछली की मुण्डी । वह बिना चखे कैसे जा सकता था। बिल्ली ने मन ही मन सोचा पहले से एक दुश्मन घात लगाए बैठा था। अब दूसरा आ गया । इनकी नजर से खिसकना मुश्किल है। क्या अशुभ घड़ी थी, वह जान नहीं पाई। जाने कितने दिनों के बाद एक मौका हाथ लगा था। इतनी बड़ी मुण्डी तो सपने में भी नहीं मिलती। तीन दिन का रईसी खाना था। लेकिन यहाँ जो स्थिति पैदा हो गयी है उससे तो लगता है। और भी कोई आ सकता है। तब तो एक टुकड़ा भी उसे नहीं मिलेगा। वहाँ से खिसकने की सोचने लगी तभी जाने कहाँ से एक बाज आ गया। उसने बिल्ली और नेवला को देख गिद्ध से पूछा, 'क्या बात है? ये दोनों क्यों मछली को ताकते बैठे हैं? अरे भाई, तुम भी अजीब हो, इसे खाए बिना तुम भी बेवकूफ बने बैठे हो।'

गिद्ध बोला, 'चुप रहो, शोर मत करो। बात कहाँ से कहाँ जा पहुँची है और तुम ऐसा सवाल पूछने की हिम्मत करते हो ।'

आश्चर्य से बाज बोला, 'मामला क्या है?'

गिद्ध सहमते हुए बोला, 'मामला सचमुच गंभीर है। पहले चुपचाप बैठो। मैं सुनाता हूँ।'

यह मछली की मुण्डी नहीं है। यह जादू का एक गोला है। इसने बिल्ली पर जादू किया और उसे घर से यहाँ घसीट लाई है। ऐसा मंतर किया है कि वह मछली को न खा सकती है और न हिल-डुल सकती है। वहीं की वहीं, धरी रह गई है।'

गिद्ध की बात सुनकर बाज ने मछली की ओर एक नजर डाली और बोला- 'वाह, कितनी बड़ी मुण्डी है। आराम से तीन रोज का खाना मिल जाता। उसके मन में भी लोभ पैदा हो गया। उसे खाने की लालसा से वह भी उसे ताकते हुए, वहीं बैठ गया।

बिल्ली ने मन ही मन सोचा, नेवला, गिद्ध और बाज तीनों खाने के लिए बैठ गये हैं। इसे यहाँ से पार नहीं किया तो चौथा भी आ सकता है। अगर कोई मुझसे ज्यादा होशियार जानवर आ गया तो सब चौपट हो जाएगा। उसने एक तरकीब सोची। बोली, 'भाइयो, अब यह मछली मुण्डी एक राक्षस बनेगी। उसकी आँखों में उस राक्षस की शक्ल दिखाई दे रही है। उसके दोनों हाथों में दो तलवारें हैं। तलवारें उठाकर कह रहा है कि वह हमारा वध करेगा। आप लोग यहाँ रहेंगे तो जरूर मर जाएँगे। अगर जिन्दा रहना चाहते हो तो यहाँ से फौरन भाग जाइए।'

बिल्ली की बात सुनकर गिद्ध तुरंत भाग खड़ा हुआ। बाज भी उड़ गया। लेकिन नेवला बैठा रहा। बिल्ली ने उससे कहा, 'नेवला भाई मुझे बहुत डर लग रहा है। यह मुण्डी बोल रही है कि वह हम दोनों को मार कर खाएगी। कोई उपाय सुनाओ, कैसे यहाँ से खिसकना है।'

नेवला बोला, 'आओ भागें ।'

बिल्ली बोली, 'मैं कैसे जाऊँ? मेरे हाथ पाँव तो निष्क्रिय हैं। मैं चल नहीं सकती । हिल नहीं सकती। तुम जाओ मेरी बहन को भेज दो। उसके सहारे मैं चल दूँगी। उस सामने वाले मकान में मेरी बहन रहती है।'

बिल्ली की बात पर विश्वास करके नेवला भी वहाँ से खिसक गया। सभी के चले जाने के बाद बिल्ली ने चैन की साँस ली। वह तुरंत वहाँ से भागी और एक अँधेरे कोने में बैठकर आराम से मछली खा गयी।

(संपादक : बालशौरि रेड्डी)

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