अजीब माँग : कश्मीरी लोक-कथा

Ajeeb Maang : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक राजा शिकार खेलने के लिये निकला तो रास्ते में उसको एक फकीर मिला। उसने उसको सलाम किया और उससे पूछा कि क्या वह उसके लिये कुछ कर सकता है।

फकीर बोला — “नहीं बहुत बहुत धन्यवाद पर क्या मैं आपके लिये कुछ कर सकता हूँ?”

राजा ने कहा — “हाँ। मुझे एक ऐसी पत्नी चाहिये जो शक्ल सूरत और लम्बाई में मेरे जैसी हो।”

फकीर बोला — “अफसोस कि आपने यह एक बहुत ही मुश्किल माँग रखी है फिर भी मैं इसे पूरा कर सकता हूँ। पर इस बात का ध्यान रहे कि ऐसी पत्नी बेवफा साबित होगी।”

राजा बोला — “आप इस बात की चिन्ता न करें बस आप मेरी इच्छा पूरी कर सकते हों तो कर दें।”

इस पर फकीर उठा और उसने एक कुल्हाड़ी से राजा के सिर के दो हिस्से किये और उन्हें जमीन में गाड़ दिया। फिर वह ज़ोर से बोला — “ओ अल्लाह तू मेरी प्रार्थना सुन और राजा को फिर से दो हिस्सों में ज़िन्दा कर दे – एक राजा खुद और दूसरा एक स्त्री के रूप में बिल्कुल उसी जैसा।” अल्लाह ने उसकी प्रार्थना सुन ली और धरती से पहले राजा निकला फिर उसी के जैसी एक स्त्री निकली। राजा यह देख कर बहुत खुश हुआ और अपनी नयी पत्नी को ले कर घर आ गया। कुछ समय बाद उसने उसके लिये जंगल में एक नया महल बनवा दिया। अब वह वहाँ उसके साथ रहने के लिये अक्सर जाने लगा। पर अफसोस वह स्त्री तो बेवफा निकली जैसा कि फकीर ने कहा था।

एक दिन जब राजा वहाँ नहीं आया तो उसने देखा कि राजा के वजीरों में से एक वजीर वहाँ से गुजर रहा था। वह एक सुन्दर नौजवान था सो उस स्त्री को उसे देखते ही उससे प्यार हो गया। उसने उसको अपने पास बुलाया और वह उसके पास चला गया। इस तरह से वे अक्सर मिलते रहे और दोनों की दोस्ती गाढ़ी होती गयी।

एक सुबह वे करीब करीब पकड़ लिये गये। राजा अपनी उस पत्नी के पास गया जबकि लोगों को यह मालूम था कि वह कहीं बहुत दूर गया हुआ है। इस तरह उनके पकड़े जाने का पूरा मौका था। इस पकड़े जाने से बचने के लिये उन्होंने अपने न पकड़े जाने का पूरी तरीके से इन्तजाम करने का फैसला किया।

उनका प्लान यह था कि वे कीतल नाम के एक कुम्हार से बात करेंगे जो उनके लिये शहर से ले कर महल तक एक सुरंग खोद देगा। इससे वह वजीर वहाँ जब चाहे तब आ जा सकेगा। उन्होंने ऐसा ही किया। यह काम छिपे तौर पर किया गया सो कुछ समय तक तो यह सब ठीक से चलता रहा पर एक दिन उनकी नीचता की पोल खुल गयी।

एक बार वजीर ने एक बहुत बड़ी दावत का इन्तजाम किया जिसमें उसने राजा को भी बुलाया। राजा ने उसका न्यौता स्वीकार कर लिया और उसके घर पहुँच गया। वहाँ वह स्त्री भी अपना वेश बदल कर बैठी हुई थी। लेकिन राजा ने फिर भी उसे पहचान लिया।

उसने सोचा “क्या मैं यह सपना देख रहा हूँ? नहीं यह तो वही है। मैं इसके कपड़ों पर कुछ निशान बना देता हूँ। फिर जब मैं वापस लौटूँगा तब देखता हूँ कि मुझे धोखा लगा या नहीं।”

यह सोच कर उसने उसके दुपट्टे मे हल्दी का निशान लगा दिया और फिर उसके पास से ऐसे गुजर गया जैसे कुछ हुआ ही न हो। रात को जब वह उसके महल पहुँचा तो वह उसका इन्तजार कर रही थी। उसके दुपट्टे पर अभी भी उसका लगाया हल्दी का निशान मौजूद था।

राजा यह सब देखते ही चिल्लाया — “ओ नीच।” और अपनी तलवार निकाल कर उसके एक ही वार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

अगले दिन उसने अपनी बादशाहत छोड़ दी और फकीर बन गया।

(सुषमा गुप्ता)

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