Afsar Aur Paighambar (Hindi Story) : Ramdhari Singh Dinkar
अफ़सर और पैग़म्बर (कहानी) : रामधारी सिंह 'दिनकर'
एक अफ़सर ने एक पैग़म्बर से पूछा,
‘‘यह जो ज़माने से
सुनता आ रहा हूँ कि जीवन का एक-एक क्षण संघर्ष है, सो इसके मानी क्या होते
हैं ? अब यही देखिये कि आज भोर से मैंने अपने जीवन में कहीं कोई संघर्ष
नहीं देखा। प्रात:काल उठा, हजामत बनायी, नहाया-धोया, अख़बार पढ़ा, फिर
खाना खाया और अब दफ़्तर से काम करके वापस जा रहा हूँ। सुबह से शाम हो गयी,
किन्तु संघर्ष तो कभी आया ही नहीं।’’
पैग़म्बर ज़रा हँसा। फिर कहने लगा, ‘‘संघर्ष देखने को
भी आँखें चाहिए। लड़ाई को वही समझ सकता है, जिसमें लड़ने की थोड़ी-बहुत
योग्यता होती है। और तुम-जैसे लोग, जो लड़ना नहीं जानते, उन्हें लड़ाई
दिखायी भी नहीं देती। और, जिन्हें लड़ाई दिखायी नहीं देती, वे जीतनेवाले
नहीं, हारनेवाले होते हैं।
और आज तुम कई लड़ाइयाँ हार चुके हो। और चूँकि जीत की तुम्हें फ़िक्र नहीं
है, इसलिए, हारकर भी तुम हार को पहचान नहीं पाते।
उदाहरण के लिए, आज भोर में जब तुम्हें सेज पर की चाय मिलने में देर हुई,
तब तुम, पौ फटते ही नौकर पर बरस पड़े। यह तुम्हारी पहली पराजय थी।
और स्नानागार में साबुन की बट्टी ज़रा ज़ोर से चिपक कर बन्द हो गयी थी और
तुमने उसे पटक कर तोड़ दिया। यह तुम्हारी दूसरी हार थी।
और रास्ते में तुम्हारी मोटर के सामने एक आदमी आ गया। तुमने मोटर तो रोक
ली, लेकिन, उस आदमी को काफ़ी भला-बुरा कहा। यह तुम्हारी तीसरी हार थी।
अब तुम स्वयं सोच लो कि दफ़्तर में आज तुम कभी जीते भी या बराबर हारते ही
रहे हो।’’