अकादमी की रिपोर्ट : फ़्रेंज़ काफ़्का

आपने बंदर के रूप में अकादमी को मेरे पूर्व जीवन का विवरण देने के लिए यह आमंत्रित करके मुझे गौरवान्वित किया है। मुझे खेद है कि आपके आग्रह को आपकी इच्छा के अनुरूप पूरा नहीं कर पाऊँगा । जब मैं बंदर था, उस बात को अब लगभग पाँच वर्ष बीत गए हैं, कैलेंडर के अनुसार शायद समय की छोटी अवधि है, लेकिन पूरी रफ्तार के भागने के संदर्भ में यह एक अनंत लंबी अवधि है, जो मैंने किया, कम या अधिक, श्रेष्ठ निर्देश, अच्छी सलाह, प्रशंसा, आरकेस्ट्रा संगीत के साथ, फिर भी आवश्यक रूप से अकेला, क्योंकि मेरे सभी साथी, अपनी छवि बनाए रखने के लिए इस पूरे घटनाक्रम से अलग रहे। जो कुछ भी मैंने हासिल किया है, वह मैं कभी भी नहीं कर पाता, यदि मैं अडिग रूप से अपनी उत्पत्ति, अपनी युवावस्था की यादों से ही चिपका रहता । बल्कि अडिग होने का त्याग करना ही श्रेष्ठ आदेश था, जो मैंने स्वयं को दिया । एक स्वतंत्र बंदर जैसा कि मैं था, मैंने उस जिम्मेदारी को स्वयं को समर्पित कर दिया। जो भी हो, प्रतिरोध के रूप में, भूतकाल की स्मृतियों ने मेरे लिए सारे दरवाजे बंद कर दिए। यदि मानव ने अनुमति दी होती तो मैं सबसे पहले वापिस आता, उस चापाकार मार्ग पर चलकर, जो स्वर्ग को धरती से जोड़नेवाले मार्ग से इतना चौड़ा है, लेकिन जैसे ही मैंने जबरन कॅरियर की ओर स्वयं को धक्का दिया, प्रवेश द्वारा संकरा होता गया तथा मेरे पीछे यह सिकुड़ गया। मैं पुरुषों के इस संसार में अधिक सहज अनुभव करता हूँ और यहाँ मैं स्वयं को अधिक उपयुक्त पाता हूँ । मेरे पीछे चलनेवाली मेरे पिछले दिनों की तेज हवा अब कमजोर पड़ गई है और आज तो यह मेरी एडियों से खेलनेवाली मंद हवा का झोंका है। सुदूर स्थित द्वार जिससे यह आ रहा है और जिससे कभी आया, अब इतना छोटा हो गया है कि यदि मेरी शक्ति मेरी इच्छा-शक्ति को भी मिलाकर वापिस जाना पड़े तो इसके भीतर रेंगने के लिए भी मुझे अपनी चमड़ी भी उतारनी पड़ेगी । आम शब्दों में, उसी प्रकार जैसे कि मैं छवियों में स्वयं को व्यक्त करना पसंद करता हूँ, साधारण शब्दों में; बंदर, सभ्य व्यक्ति के रूप में आपका जीवन, कुछ हद तक उसी रूप में आपके पीछे होता है। वह आपसे इतना ज्यादा दूर नहीं किया जा सकता है, जितना कि मेरा मेरे से दूर किया जा सकता है। फिर भी धरती पर सभी को छोटा चिंपैजी और महान अकिलेज समान है। लेकिन कुछ हद तक शायद मैं आपके आग्रह को पूरा कर दूँ और वास्तव में मैं यह परम आनंद के साथ करता हूँ। पहली चीज जो मैंने सीखी, वह है हाथ मिलाना । हाथ मिलाने से निकटता महसूस होती है। ठीक है, आज जबकि मैं अपने कॅरियर के शिखर पर हूँ तो मैं आशा करता हूँ कि अपने शब्दों में निकटता का प्रयोग कर उस पहले हाथ मिलाने की भावना में निकटता जोड़ दूँ। मैं जो कुछ भी अकादमी को कहने जा रहा हूँ, उससे निस्संदेह अकादमी को कुछ नया नहीं मिलेगा, और वह मेरे प्रति आपकी अपेक्षाओं से बहुत कम होगा, तथा मैं इससे अधिक बेहतर ढंग से अपना संदेश विश्व तक पहुँचा भी नहीं सकता हूँ, इसके बावजूद भी यह उस पंक्ति को संकेत करता है, जो तत्कालीन बंदर को पुरुषों के इस संसार में प्रवेश करने तथा स्वयं को स्थापित करने के लिए अनुसरण करना पड़ा। यदि मैं अपनी स्थिति के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं भी होता तथा यदि इस समय संसार की महान् प्रजाति अवस्थाओं में मेरी स्थिति पूर्णतः निर्विवाद नहीं हो जाती । फिर भी मैं इतनी मामूली सूचनाओं को भी शब्दों में व्यक्त करने से भयभीत नहीं हूँ ।

मेरा संबंध गोल्ड कोस्ट से है। अपने बंदी बनाए जाने की कहानी के लिए मुझे दूसरों के प्रमाण पर निर्भर करना पड़ेगा। हैगेनबेक की कंपनी द्वारा भेजे एक शिकारी दल, इस संदर्भ में उस दल के प्रमुख के साथ तब मैंने लाल शराब की कई बोतलें पी ली थीं, ने तट के किनारे झाडियों में स्थान लिया था, जब शाम में मैं बंदरों के झुंड के साथ शराब पीने आया। उन लोगों ने हम पर गोली मारी। मैं ही अकेला था, जिसे गोली लगी। मुझे दो जगह गोली लगी। एक बार गाल में, जो हल्का घाव था, जो बड़ा, खुला लाल निशान बन गया, जिसके कारण मुझे रेड पीटर नाम मिला, एक अप्रिय, बिल्कुल अनुपयुक्त नाम, जिसे कुछ एक बंदरों ने ही सोचा होगा, मुझमें और प्रदर्शन कर रहे बंदर पीटर में एकमात्र अंतर मानो यह था कि पीटर, जो बहुत पहले नहीं भरा, उसे थोड़ा-बहुत स्थानीय प्रसिद्धि प्राप्त थी और मेरे गाल पर लाल निशान थे । यह इसी संदर्भ में था ।

मुझे दूसरी गोली नितंब के नीचे लगी । यह एक गहरा घाव था, जो आज भी मेरी हल्की लँगड़ाहट का कारण था । अभी हाल ही में मैंने एक लेख पढ़ा था, जिसे दस हजार बातूनी लोगों में से एक ने लिखा था । इन्होंने मेरे बारे में अखबार में इस प्रकार व्यक्त किया, मेरा बंदरवाला स्वभाव अभी भी पूरी तरह नियंत्रण में नहीं था, इसका प्रमाण है कि आगंतुक जब भी मुझे देखने आते हैं, मेरे अंदर यह प्रवृत्ति है कि मैं अपना पाजामा उतारकर उन्हें वह स्थान दिखाता हूँ, जहाँ गोली लगी थी। जिस हाथ से यह लिखा गया है, उनकी उँगलियाँ एक-एक करके गोली मार के उड़ा देनी चाहिए। मैं तो जिसके सामने चाहूँ अपना पाजामा उतार सकता हूँ । तुम्हें सिवाय सुव्यवस्थित रोवें और गोली से लगे घाव के कुछ और नहीं मिलेगा । इस अभिव्यक्ति के लिए मुझे शब्दों के चुनाव में स्पष्ट होना चाहिए, ताकि किसी प्रकार की गलतफहमी न हो, घाव आदारी गोली से लगी । हर चीज स्पष्ट एवं निष्कपट थी; छुपाने के लिए कुछ भी नहीं था। जब साधारण सच पर उँगली उठाई जाती है, तो श्रेष्ठ मस्तिष्क सुशीलता के औचित्य पर उँगली उठाता है। यदि उस लेख के लेखक को किसी आगंतुक के सामने अपना पाजामा उतारना पड़ता तो यह एक अलग ही कहानी होती । तब मैं उसे इसका श्रेय देता कि वह ऐसा नहीं करता है । बदले में, अपनी भद्रता के साथ उसे मुझे अकेला छोड़ देना चाहिए।

इन दो गोलियों के प्रहार के बाद मुझे होश आया और यहीं से धीरे-धीरे मेरी अपनी स्मृति शुरू होती है, है गनबेक नाव में पिंजरे के भीतर नाव के दो तलों के बीच यह चारों ओर से तार लगा पिंजरा नहीं था । यह एक तीन तरफा पिंजरा था, जो एक लॉकर से जुड़ा हुआ था, लॉकर इसका चौथा किनारा था । पूरा पिंजरा इतना छोटा था कि मैं इसमें खड़ा नहीं हो सकता था और इतना सँकरा कि मैं बैठ भी नहीं सकता था । इसलिए मुझे अपने घुटनों को मोड़कर उकडूं बैठना पड़ा और पूरे समय काँपता रहा तथा कुछ समय के लिए तो मैं किसी को भी देखना नहीं चाहता था और अँधेरे में रहना चाहता था । मेरा चेहरा लॉकर की तरफ था, जबकि पिंजरे के तारों से मेरा पीछे का मांस कट रहा था। जंगली जानवरों को कैद करने के ऐसे तरीकों के बंदी बनाने के आरंभिक दिनों में कुछ लाभ समझे जाते हैं तथा अपने अनुभव के आधार पर मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि मानव के दृष्टिकोण से वास्तव में यही मामला है। लेकिन यह मुझे पता नहीं चला। पहली बार जीवन में मुझे कोई राह नहीं सुझाई पड़ रही था; कम-से-कम कोई सीधा रास्ता नहीं। मेरे ठीक सामने लॉकर था । तख्ते से तख्ता सटा हुआ था । सच, तख्ते में आर-पार एक छेद था, जिसे जब मैंने पहली बार देखा था तो आनंदभरी अज्ञानता के साथ इसका स्वागत किया, लेकिन छेद इतना चौड़ा भी नहीं था कि इससे अपनी पूँछ बाहर निकाल सकूँ और न ही बंदर की पूरी शक्ति ही इसे बड़ा कर सकी।

जैसा कि मुझे बाद में बताया गया, मुझसे यह अपेक्षा की गई थी कि मैं असामान्य रूप से कम शोर मचाऊँगा । इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि या तो मैं जल्द ही मर जाऊँगा और यदि मैं किसी तरह जिंदा भी जाता हूँ तो शुरू की महत्त्वपूर्ण अवधि प्रशिक्षण के लिए सहज अनुगामी होगी। मैं इस अवधि में जीवित बच ही गया । निराशाजनक रूप से सिसकते हुए, कठिनाई के साथ पिस्सुओं का शिकार करते हुए, उदासीनता से नारियल चाटते हुए, लॉकर से अपने सिर को चोट पहुँचाते हुए, अपने निकट आते व्यक्ति को देखकर अपनी जुबान निकालते हुए — इस प्रकार नए जीवन में मैंने अपना समय बिताया। लेकिन इन सबसे बढ़कर एक ही विचार आता था, कोई रास्ता नहीं। निश्चित रूप से, एक अंदर के रूप में तब मुझे भी जो महसूस हुआ उसे अब मैं, मानव शब्दों में व्यक्त कर सकता हूँ। इसीलिए मैं इसे गलत उद्धृत करता हूँ, लेकिन बंदर के पुराने जीवन की सच्चाइयों तक मैं पहुँच भी नहीं सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि वह यहीं कहीं उस दिशा में है जिस ओर मैंने संकेत किया है।

अभी हाल तक मुझे हर चीज के कई-कई रास्ते दिखाई पड़ते थे और अब तो कोई नहीं है । मैं बाध्य कर दिया गया था। यदि मैं बाध्य कर दिया गया होता तो स्वतंत्र विचरण का मेरा अधिकार कम नहीं होता । ऐसा क्यों? अपने पैर की उँगलियों के बीच मांस खरोंच, लेकिन इसका उत्तर नहीं मिलेगा। अपने पीछे लगे तारों के विपरीत स्वयं को इतना दबाओ कि वह लगभग दो टुकड़ों में कट जाए तो भी तुम्हें उत्तर नहीं मिलेगा । मेरे पास कोई रास्ता नहीं था, लेकिन मुझे रास्ता ढूँढ़ना था, क्योंकि उसके बिना तो मैं जीवित नहीं रह पाऊँगा। पूरे समय लॉकर की ओर मुँह किए रहना, मुझे निश्चित रूप से मर जाना चाहिए । फिर भी जहाँ तक हैगनबेक का संबंध था, बंदरों के लिए स्थान एक लॉकर के सामने था तब तो वह ठीक था । मुझे स्वयं को बंदर होने से रोकना था । विचारों की एक श्रृंखला, जो किसी तरह मैंने अपने पेट की सहायता से बनाई थी, क्योंकि बंदर तो अपने पेट की सहायता से सोचते हैं। मुझे डर है कि आप शायद मेरे 'अनोखा' कहने का अभिप्राय बिल्कुल भी नहीं समझ पाएँगे। इस अभिव्यक्ति को मैं उसके पूरे तथा अतिलोकप्रिय अर्थ में प्रयोग करता हूँ। मैं जानबूझकर स्वतंत्रता शब्द का प्रयोग नहीं करता हूँ। मेरा आशय चारों ओर से स्वतंत्रता के व्यापक अनुभव से नहीं है। एक बंदर के रूप में शायद मैं यह जानता हूँ तथा मैं ऐसे लोगों से मिला हूँ, जो इसकी अभिलाषा करते हैं । जहाँ तक मेरी बात है तो मैंने ऐसी स्वतंत्रता की न तो पहले कभी इच्छा की और न ही अभी करता हूँ । इसी प्रसंग में मुझे यह कहना चाहिए कि प्राय: स्वतंत्रता शब्द द्वारा पुरुष धोखा खाते हैं, चूँकि स्वतंत्रता सर्वश्रेष्ठ अनुभवों में गिनी जाती है, इसलिए तदनुरूपी भ्रम भी श्रेष्ठ हो सकता है। अनेक नाट्यशालाओं में प्रायः मैंने देखा है, मेरी बारी आने से पहले ही अनेक कलाबाज, कलाबाजी के झूले पर छत की ऊँचाइयों तक अपना प्रदर्शन करने लगते हैं। वे लहराते हैं, इधर-उधर झूलते हैं, हवा में उछाल खाते हैं, एक-दूसरे की बाँहों में झूलते हैं, कोई बाल के सहारे किसी के दाँत से लटका होता है। " और वह भी मानवीय स्वतंत्रता है," मैंने सोचा, "आत्म-नियंत्रित गति । " पवित्र मदर नेचर का कितना मजाक ! क्या ऐसा तमाशा बंदरों को देखना था, किसी भी रंगशाला की दीवारें उनके ठहाकों की गूँज को नहीं झेल सकतीं।

नहीं, जो मैं चाहता था वह स्वतंत्रता नहीं थी । सिर्फ इससे बाहर निकलने का एक रास्ता भर था - दाएँ, बाएँ या किसी भी दिशा में; मैंने और कोई भी माँग नहीं की । यहाँ तक कि यह मुक्ति का रास्ता एक भ्रम तो साबित नहीं होगा वह भी नहीं। माँग तो छोटी सी थी, तो निराशा भी छोटी ही होगी । निकलना था बस कहीं भी । लकड़ी की दीवार से कुचले बाजू उठाए गतिहीन नहीं रह सकता था।

आज तो मैं इसे स्पष्ट रूप से देख सकता था। बिना गहरी आंतरिक शांति के तो मैं कभी भी मुक्ति की राह ढूँढ़ ही नहीं सकता था। सचमुच मेरे अंदर की इस गहरी शांति का सारा श्रेय शायद जहाज में बिताए शुरू के मेरे कुछ दिनों को जाता है। एक बार फिर मुझे इस शांति के लिए जहाज के चालक दल का धन्यवाद करना था ।

हर कुछ के बावजूद वे अच्छे प्राणी थे। अभी भी मुझे उनके भारी कदमों से आनेवाली आवाज को याद करके सुखद अनुभव होता है, जो मुझे अर्धस्वप्न जैसे अभी भी मेरे दिमाग में गूँजा करता है । उन्हें हर काम को जहाँ तक संभव हो धीरे-धीरे करने की आदत थी । यदि उनमें से किसी को अपनी आँखें रगड़नी होती थीं तो वह एक हाथ को ऐसे उठाता मानो झूलता हुआ वजन हो । उनकी हँसी बड़ी असभ्य, लेकिन जानदार होती थी। उनकी हँसी हमेशा ही कर्कश होती थी, जो सुनने में बड़ी भयानक लगती थी, लेकिन उसका कुछ अर्थ नहीं होता है। उनके मुँह में हमेशा ही कुछ-न-कुछ होता था, जिसे वे थूकते रहते थे और उन्हें कभी इसकी परवाह नहीं होती थी, कि वे इसे कहाँ थूकते हैं। वे हमेशा गरजते कि उन्हें मेरे कारण पिस्सू झेलना पड़ गया, फिर भी इस बारे में बहुत क्रोधित भी नहीं थे। उन्हें मालूम था कि पिस्सू मेरे रोवें में ही पोषित होता था और वे पिस्सू उछलते थे । उनके लिए यह एक साधारण वास्तविक सी बात थी। जब वे छुट्टी पर होते थे तो उनमें से कुछ लोग मेरे चारों ओर अर्धवृत्त बनाकर बैठ जाते थे। वे शायद आपस में बातें करते थे, बस भुनभुनाते थे । सिगरेट पीते, भंडार कक्ष में सामान रखते, यदि मैं हल्की सी भी गति करता तो टेहुने पर थप्पड़ मारते और बीच-बीच में उनमें कोई एक छड़ी लेकर मुझे वहाँ गुदगुदाता जहाँ मुझे गुदगुदाना अच्छा लगता था । यदि आज मुझे उस जहाज पर समुद्री पर्यटन का आमंत्रण मिलता तो मुझे निश्चित रूप से उस आमंत्रण को ठुकरा देना चाहिए, लेकिन डेको के बीच की जिन स्मृतियों को मैं याद कर पाया वे इतनी घृणास्पद नहीं थीं।

इन लोगों के बीच मैंने, जो शांति प्राप्त की उसने सबसे बढ़कर भागने से रोका। जैसा कि मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मुझे लगता है कि कम-से-कम मुझे यह आभास रहा होगा कि मुझे या तो मुक्ति की कोई राह ढूँढ़नी चाहिए या मर जाना चाहिए, लेकिन मुक्ति की वह राह उड़कर नहीं पहुँच सकती थी । अभी मैं यह नहीं कह सकता कि भागना संभव भी था या नहीं, लेकिन मैं मानता हूँ कि यह संभव रहा होगा, फिर एक बंदर के लिए तो यह हमेशा ही संभव है। आज मेरे दाँत जैसे हैं, उनके लिए तो मुझे एक मेवा तोड़ते समय भी सावधान रहना पड़ता है, लेकिन उस समय में निश्चित रूप से काफी हद तक दाँत से काट पाता था, यद्यपि मेरे पिंजरे का ताला मौजूद था। मैंने ऐसा नहीं किया। इससे मुझे क्या फायदा होता? जैसे ही मैं अपना सिर बाहर निकालता मैं पुन: पकड़ लिया जाता तथा इससे और इससे भी बदतर पिंजरे में मुझे रखा जाता; या बिना किसी की नजरों में आए ही मैं अन्य जानवरों के साथ भाग जाता, उदाहरण के लिए अजगर के साथ, जो मेरे बिल्कुल विपरीत थे और उनके निकट जीवन की साँसें ले रहा होता; या मान लो कि चुपचाप भागकर डेक तक पहुँचने में तो मैं सफल हो गया था तथा मैं उछलकर वहाँ आ भी गया था, मुझे गहरे समुद्र में कूद जाना चाहिए और फिर डूब जाना चाहिए था । तीव्रगामी उपाय, इस मानवीय ढंग से मैंने यह सोचा ही नहीं, लेकिन अपने परिवेश के प्रभाव में मैंने ऐसा नाटक किया मानो पहले ही मैंने यह सोच लिया था ।

मैं चीजों को अलग करके नहीं देखता था; लेकिन मैं हर चीज को खामोशी से देखता था, मैं उन लोगों को इधर- उधर जाते हुए देखता था, हमेशा एक ही चेहरा, एक ही चाल, कभी-कभी तो मुझे यह लगता था कि एक ही आदमी था। इसलिए वह आदमी या ये लोग निर्बाध रूप से घूमते रहते थे। मेरे सामने अस्पष्ट रूप से एक ऊँचा लक्ष्य था। मेरे से किसी ने भी यह वायदा नहीं किया कि यदि मैं उनके जैसा बन जाऊँ तो मेरे पिंजरे के छड़ हटा लिये जाएँगे। प्रकटतः असंभव आयात स्थितियों के लिए ऐसे वायदे नहीं किए जाते थे, लेकिन यदि कोई कुछ असंभव प्राप्त कर लेता है तो यही वायदे बाद में बीते दिनों पर नजर डालने पर ठीक उसी जगह मौजूद होते हैं, जहाँ पहले उन्हें ये बेकार लगे थे। अब तो मुझे इन आदमियों में कोई आकर्षण नहीं दिखाई देता था । यदि मैं स्वतंत्रता के पूर्व उल्लिखित विचार के प्रति निष्ठावान रहता तो मैं निश्चित रूप से गहरे समुद्र को ही मुक्ति की राह समझता, जो इन आदमियों के भारी चेहरे से भी पता चलता था । जो भी हो, मैं ऐसी बातें सोचने से भी बहुत पहले से इन आदमियों को देखता आ रहा था, वास्तव में, मेरे गहरे पर्यवेक्षण ने ही मुझे सही दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इन लोगों की नकल करना बहुत आसान था। पहले ही दिन मैंने थूकना सीख लिया । हम एक-दूसरे के चेहरे पर थूका करते थे । एक ही अंतर था कि मैं चाट कर बाद में अपना चेहरा साफ कर लिया करता था और वे नहीं करते थे। बाद में मैं एक अभ्यस्त व्यक्ति की तरह सिगरेट पीने लगा और यदि मैं अपना अँगूठा सिगरेट की खाँच में दबाता तो, डेकों के बीच में सराहना का शोर गूँज उठता था। एक भरा सिगरेट और खाली सिगरेट के अंतर को समझने में मुझे बहुत समय लग गया।

सबसे बड़ी परेशानी मुझे शराब की बोतल से हुई। इसकी गंध से मुझे घृणा हो गई। इसे अपनाने के लिए मैंने अपना अधिकतम प्रयास किया; लेकिन इस घृणा पर नियंत्रण करने में मुझे सप्ताह लग गए। मेरे इस आंतरिक उधेड़बुन को अन्य चीजों की तुलना में विचित्र रूप से जहाज कर्मियों ने बड़ी गंभीरता से लिया । अपनी स्मृति में मैं इन व्यक्तियों में फर्क नहीं कर सकता था; लेकिन उनमें ऐसा था जो बार - बार कभी अकेले या कभी अपने दोस्तों के साथ दिन और रात किसी भी समय आता रहता था । वह मेरे सामने शराब की बोतल लेकर बैठ जाता और मुझे दिशा-निर्देश देता रहता था । वह मुझे समझ नहीं सकता था, लेकिन मेरे अस्तित्व की गुत्थी सुलझाना चाहता था। मैं जानता हूँ कि मैं बड़ी उत्सुकता और ध्यान से उसे देखा करता था; किसी भी मानव शिक्षक को मानवता का ऐसा विद्यार्थी कभी नहीं मिला होगा। जब बोतल का ढक्कन खुल जाता है तो वह उसे अपने मुँह तक ले जाता; मैं ध्यानपूर्वक उसे देखता रहता । वह मुझसे खुश होकर अपना सिर हिलाता रहता और बोतल को अपने होंठों से लगा लेता। मैं अपने बढ़ते ध्यान के साथ उस पर मोहित था । मैं चिल्लाता और जहाँ कहीं भी नोचने का मन होता अच्छी तरह नोचता। उसे आनंद आता, वह बोतल झुकाता और एक घूँट पी जाता। मैं उसकी नकल करने को अधीर और आतुर था; मैं पिंजरे में खुद को गंदा करता, जिससे उन्हें बड़ी संतुष्टि मिलती। मुझसे थोड़ी ही दूरी पर बोतल को पकड़कर फिर तेजी से इसे वापिस लेकर एक ही घूँट में वह बोतल को खाली कर देता, फिर मेरे बेहतर निर्देशन के लिए वह अत्यधिक दूरी पर पीछे झुक जाता । मैं इतने अधिक प्रयासों के बाद इतना थक जाता कि आगे और अधिक उसका अनुसरण नहीं कर पाता तथा पिंजरे के छड़ों को पकड़कर झूल जाता, जबकि वह अपने सैद्धांतिक हाव- भाव को अपने पेट को रगड़कर हँसते हुए खत्म कर देता ।

सिद्धांत के बाद अभ्यास की बारी थी। क्या मैं सैद्धांतिक निर्देशों को लेते-लेते ही बहुत नहीं थक गया था ? वास्तव में, मैं बुरी तरह से थक गया था । यह मेरा भाग्य था । फिर भी मैं दिए गए बोतल को पकड़ लेता, जितना मुझ से संभव था। काँपते हुए इसे खोलता । इस सफल प्रयास से मेरे भीतर धीरे-धीरे नई ऊर्जा का संचार होता; मैं बोतल उठाता, लगभग उसी तरह से जैसे मैं पहले उठाता था । मैं इसे अपने होंठों से लगाता और फिर घृणा के साथ इसे फेंक देता। मेरे शिक्षक के लिए दुःख और उससे भी बड़ा दुःख मेरे लिए। हममें से किसी को भी इस बात से राहत नहीं थी कि मैं भूला नहीं था, यद्यपि मैंने बोतल फेंक दी थी और बहुत खुश होकर अपने पेट को रगड़ा और हँसने लगा।

प्रायः इसी तरह मेरे पाठ का अंत हुआ। मेरे शिक्षक को इसका श्रेय है कि वह क्रोधित नहीं हुआ। कभी-कभी सचमुच में वह अपने जलते सिगरेट को मेरे रोवें से तब तक सटाए रखता जब तक कि वह जलने नहीं लगता तथा जहाँ मैं पहुँच नहीं पाता। फिर वह स्वयं ही अपने लंबे, दयालु हाथ से उसे बुझा देता । वह मुझसे नाराज नहीं होता था। वह जानता था कि हम दोनों की एक ही लड़ाई थी बंदर के स्वभाव के विरुद्ध तथा मेरा काम ज्यादा ही कठिन था।

हम दोनों के लिए ही यह कितनी बड़ी विजय थी । एक शाम जब शायद यह किसी तरह का समारोह था जब तमाशाइयों के एक विशाल समूह के सामने, ग्रामोफोन बज रहा था, एक अधिकारी जहाज कर्मियों के बीच कह रहा था, आज इस संध्या बेला में जैसा कि कोई नहीं देख रहा था, मैंने उस शराब की बोतल को उठाया, जो लापरवाही से मेरे पिंजरे के समूह पड़ी थी, अच्छे ढंग से इसे खोला, तभी यह समूह बड़े ध्यान से मुझे देखने लगा, मैंने बिना किसी झिझक के इसे होंठों से लगाया, बिल्कुल एक अभ्यस्त पियक्कड़ की तरह। मैंने अपनी गरदन घुमाते हुए पूरा घूँट भरा और सचमुच में इसे खाली कर दिया। फिर मैंने बोतल फेंक दी, निराशा में नहीं, बल्कि एक कलाकार की तरह, फिर सचमुच में मैं अपना पेट रगड़ना भूल गया। चूँकि इसे मैं रोक नहीं सकता था तो इसके बदले में संक्षेप में और गलती से मैंने कहा, “हैलो!" क्योंकि मेरा सिर घूम रहा था और यह बिल्कुल मानव बोली की तरह था । इसी के साथ मानव समुदाय में शोर गूँज उठा, जिसकी गूँज मुझे भी सुनाई पड़ी, “सुनो, वह बातें कर रहा है।" पसीने से भीगे मेरे शरीर के ऊपर यह पुचकार की तरह था ।

मैं दुहराता हूँ; मानव की नकल करने के प्रति मुझे कोई आकर्षण नहीं था । मैं उनकी नकल करता था, क्योंकि मुझे मुक्ति का रास्ता चाहिए था और कोई कारण नहीं था । तथा मेरी उस सफलता से भी मुझे बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ। एक बार फिर मैं मानव बोली भूल गया। वह फिर महीनों तक मुझे याद नहीं आया। शराब के प्रति मेरी घृणा एक बार फिर वापिस आ गई, बल्कि अधिक तीव्रता से । लेकिन मुझे जिस राह पर चलना था वह तो पहले ही निर्धारित हो गई थी, हमेशा - हमेशा के लिए ।

जब मुझे पहली बार हैंबर्ग में अपने प्रथम प्रशिक्षक को सौंपा गया था तो शीघ्र ही मुझे महसूस हुआ कि मेरे सामने दो विकल्प हैं—जूलोजिकल गार्डन या विभिन्न अवस्थाएँ। मैं हिचकिचाया नहीं । मैंने खुद से कहा, "विभिन्न अवस्थाओं के लिए अपना अधिकतम प्रयास करो; जूलोजिकल गार्डन तो बस एक नया पिंजरा ही है। एक बार वहाँ गए और आपका काम खत्म।

सज्जनो, इस प्रकार मैंने चीजें सीखीं । आह ! कोई तभी सीखता है जब उसे सीखना पड़ता है; कोई तभी सीखता है जब उसे मुक्ति की राह चाहिए; हर कीमत पर कोई भी सीखता है । व्यक्ति सीखने के लिए खुद पर सख्ती करता है; हलके विरोध पर भी व्यक्ति अपनी तीव्र निंदा करता है । मेरे भीतर से मेरा बंदर का स्वभाव तो गायब ही हो गया ताकि मेरा पहला शिक्षक तो इस कारण परिवर्तित होकर लगभग बंदर ही हो गया । इस कारण उसे शिक्षण छोड़कर मानसिक अस्पताल ले जाना पड़ा। सौभाग्यवश वह जल्द ही बाहर आ गया।

मैंने तो कई शिक्षकों को थका दिया, वास्तव में शीघ्र ही अनेक शिक्षकों को । जैसे-जैसे मुझे अपनी क्षमताओं में भरोसा होता गया, लोगों को मेरी उन्नति में रुचि बढ़ती गई और मेरा भविष्य उज्ज्वल लगने लगा, मैंने खुद के लिए शिक्षक नियुक्त कर लिया। उन्हें मैंने पाँच संवाद कमरों में बिठाया तथा एक कमरे से दूसरे कमरे में कूदते हुए मैंने उन पाँचों से शिक्षा ली।

मेरी वह प्रगति! किस प्रकार ज्ञान की किरणें मेरे जागरूक होते मस्तिष्क में चारों ओर से आ रही थीं! मैं इससे इनकार नहीं कर सकता; मुझे यह बड़ा आनंददायक लगता था । लेकिन मुझे यह भी स्वीकार करना चाहिए; मैंने कभी भी इसका बढ़ा-चढ़ाकर मूल्यांकन नहीं किया, तब भी नहीं, अब तो बहुत ही कम । उस प्रयास के साथ जो अभी तक कभी भी दुहराया नहीं गया, मैं एक औसत यूरोपियन के सांस्कृतिक स्तर तक पहुँचने में सफल हो गया था। इस बारे में बोलने के लिए अपने आप में तो कुछ नहीं था, लेकिन पिंजरे से बाहर निकलने तथा मेरे लिए मुक्ति की विशेष राह खोलने में इसकी बड़ी भूमिका थी। वह राह थी मानवता की ओर । वह बेहतरीन कहावत है । वस्तुओं की गहराई में अपना रास्ता बनाने के लिए संघर्ष करो, और वहीं मैंने किया भी। मैंने वस्तुओं की गहराई तक संघर्ष किया। मेरे पास करने के लिए कुछ और था ही नहीं, बशर्ते कि वह स्वतंत्रता हमेशा मेरी पसंद नहीं होती। मैं जब भी अपनी विकास यात्रा को पीछे मुड़कर देखता हूँ और अब तक मैंने जो कुछ भी प्राप्त किया है उसका आकलन करता हूँ तो मुझे कोई शिकायत नहीं होती, लेकिन मैं संतुष्ट भी नहीं हूँ । पतलून की जेबों में अपने हाथ डाले, टेबल पर मेरी शराब की बोतल के साथ, एक झूलनेवाली कुरसी पर आधा लेटा, आधा बैठा मैं खिड़की के बाहर देखता हूँ, यदि कोई आगंतुक आता है तो मैं सही तरीके से उसका स्वागत करता हूँ । आगेवाले कमरे में मेरा प्रबंधक बैठता है। मैं जब घंटी बजाता हूँ तो वह मेरे पास आता है और जो कुछ मैं कहता हूँ वह सुनता है। लगभग हर शाम मैं एक प्रदर्शन करता हूँ, और मेरी जो सफलता है उसे शायद ही और बढ़ाया जा सकता है। जब भी मैं सामाजिक बैठकों, वैज्ञानिक स्वागतों तथा भोज इत्यादि से देर रात वापिस आता हूँ, एक अर्ध- प्रशिक्षित छोटा चिंपैंजी बैठा मेरा इंतजार कर रहा होता, उसे देखकर मुझे वैसे ही राहत मिलती है, जैसे बंदरों को होती है । जिद में तो मैं उसे देखना पसंद नहीं करता; क्योंकि उसकी नजर घबराए हुए अर्ध-विक्षिप्त जानवर की लगती है। किसी को भी यह दिखाई नहीं पड़ता है, लेकिन मुझे पड़ता है और मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकता । संक्षेप में, मैंने वह सब कुछ प्राप्त कर लिया है, जो मैं करना चाहता था। लेकिन मुझे यह मत कहिए कि उठाए गए कष्ट के अनुपात में इसका कोई मूल्य नहीं है, जो भी हो, मैं किसी मनुष्य के निर्णय के लिए आग्रह नहीं कर रहा हूँ, मैं तो सिर्फ जवाब दे रहा हूँ, रिपोर्ट दे रहा हूँ। अकादमी के सम्मानित सदस्यों, आपके लिए भी मैंने सिर्फ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

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