आबोतानी और रिलू तामी के उद्दंड बच्चे (तागिन जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा

Abotani Aur Rilu Tami Ke Uddand Bachche : Folk Tale (Arunachal Pradesh)

तागिन जनपद में ऐसी मान्यता है कि बंदर रिलू तामी की संतानें हैं। रिलू तामी हवा का इनसानी नाम है। अर्थात् दूसरे शब्दों में कहें तो बंदर हवा की संतानें हैं। कहा जाता है कि हवा का बच्चा होने के कारण बंदर बहुत चंचल, उद्दंड और उत्पात मचानेवाला प्राणी था। इनसानों और बंदरों का संबंध बहुत अच्छा नहीं था, क्योंकि बंदर क्योमि नामक जहरीले बाणों से इनसानों के बसेरों में हमला करते और इनसानों का कत्ल करते थे। उनके ऐसे उत्पात से इनसानों का जीना मुश्किल हो गया था। इसी कारण आबोतानी ने यह प्रण लिया कि इन बंदरों को सबक सिखाना ही होगा। इसके लिए आबोतानी को सही मौके का इंतजार था। एक दिन आबोतानी को वह अवसर मिल गया। एक दिन सारे-के-सारे बंदर मछली पकड़ने में व्यस्त थे। मछली पकड़ते वक्त वानरों ने बेफिक्र होकर अपने सारे धनुष-बाण नदी किनारे रख दिए थे। इधर आबोतानी ने चुपके से सारे धनुषों को एक-दूसरे की नोक से बाँध दिया, ताकि सतर्क होने पर कोई भी वानर तीर नहीं चला सके। जब आबोतानी आश्वस्त हो गए कि कोई धनुष शेष नहीं रह गया है तो उन्होंने तुरंत सामने आकर सारे बंदरों को ललकारा कि वे आकर उनका सामना करें। सारे बंदर पानी से उछल-उछलकर बाहर आए और उन्होंने अपने-अपने धनुष उठाने की कोशिश की, परंतु सारे धनुष एक-दूसरे के साथ बँधे होने के कारण कोई वानर धनुष उठाकर तीर नहीं चला पाया। अपने धनुषों की ऐसी अवस्था से खिन्न होकर बंदरों ने उन्हें पानी में फेंक दिया और आबोतानी ने तीर चलाकर बंदरों को मारना आरंभ किया। उधर बंदरों के मुखिया बेतुम तापि ने चालाकी से अपने तीर और धनुष को पहले ही छिपा रखा था, इसलिए उसने आबोतानी का सामना किया। लेकिन आबोतानी से वह अकेला लड़ नहीं पाया। बाकी सारे बंदर बिना जहरीले तीरों के कमजोर पड़ गए थे, इसलिए अंत में उन सबको भागना पड़ा। उस दिन पहली बार इनसानों ने बंदरों पर जीत हासिल की।

बंदर भी कहाँ चुप रहनेवाले थे। रिलू तामी के उन उद्दंड बच्चों ने एक दिन आबोतानी के खेत में आकर सारी फसल को नष्ट कर दिया। अपनी खेती की ऐसी दुर्दशा देखकर आबोतानी ने निश्चय किया कि आज तो इन बंदरों को सबक सिखाकर ही दम लेंगे। अतः एक दिन आबोतानी उस रास्ते पर लेट गए, जहाँ बंदरों की टोली आया-जाया करती थी। लेटने से पहले उन्होंने ताई और तायाक नामक खाद्य पदार्थ को पीसकर कान, नाक और अपने शरीर के भीतरी हिस्सों में लगाया, जिससे उनके शरीर से दुर्गंध निकलने लगी। आबोतानी मरने का अभिनय करते हुए रास्ते में लेट गए। रास्ते से गुजरते हुए जब बंदरों की टोली ने देखा कि आबोतानी उनके मार्ग में लेटा हुआ है और उसके शरीर से दुर्गंध भी आ रही है तो उन्होंने यह समझ लिया कि यह आबोतानी का मृत शरीर है। आबोतानी को मरा हुआ जानकर सारे बंदर उन्हें उठाकर ले गए।

बंदरों की टोली आबोतानी को अपने घर तक ले आई, जहाँ उनके परिजन उनका इंतजार कर रहे थे। आबोतानी के मृत शरीर को देखकर वे खुशी से झूम उठे। सारे बंदरों ने मिलकर कार्यक्रम बनाया कि आबोतानी को अब खाया जाए। बंदरों के बुजुर्ग माता-पिता ने अपने बच्चों से कहा कि आबोतानी को पकाने के लिए वे पानी और लकड़ियों का बंदोबस्त करके लाएँ। आदेशानुसार सारे बंदर उछल-उछलकर घर से बाहर निकले। उनके जाने के बाद केवल बुजुर्ग दंपती रह गए। दोनों को अकेला पाकर आबोतानी ने अपना अभिनय भंग किया और उठकर बैठ गए। यह देखकर बुजुर्ग वानर दंपती के होश उड़ गए, लेकिन वे कुछ कर नहीं पाए। आबोतानी ने ऊपर देखा तो पाया कि एक ओपुम (स्थानीय गठरी) लटका हुआ है। आबोतानी ने पूछा कि ‘इस ओपुम में रखा क्या है?’ डर के मारे दोनों ने बताया कि ‘उस ओपुम में हमारे बच्चों के कलेजे हैं। वे अपना कलेजा यहाँ रखकर जाते हैं, इसलिए उनको ऊँचाई से डर नहीं लगता।’ तब आबोतानी ने सोचा कि इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता—इन उद्दंड वानरों को सबक सिखाने का। उन्होंने पहले उन दंपती को मारा, फिर उस ओपुम को फोड़ा, जिससे सारे वानरों के कलेजे चूल्हे में जलती आग में गिरकर भस्म हो गए। इसका परिणाम यह हुआ कि जो भी वानर जंगल से पानी और लकड़ी का जुगाड़ करके लौटे, वे एक-एक करके घर के प्रवेश-द्वार पर ही धराशायी होते गए। इस प्रकार आबोतानी ने वानरों के प्रकोप से इनसानों को हमेशा के लिए छुटकारा दिलाया। इसी कारण आज भी वानर इनसानों के जनपद में नहीं रहते। वे घने जंगलों में ऊँचे-ऊँचे वृक्षों पर ही वास करते हैं। उनको आज भी ऊँचाई से डर नहीं लगता, क्योंकि आबोतानी ने उनके कलेजों को स्थायी रूप से मिटा दिया था।

(साभार : तारो सिंदिक)

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