आबोतानी और पोकदोर (तागिन जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा
Abotani Aur Pokdor : Folk Tale (Arunachal Pradesh)
एक जमाने की बात है, जब किसी जंगल में प्राकृतिक आपदाओं ने अपना कहर ढाया । प्रचंड तूफान और भीषण बाढ़ से पूरे जंगल में तबाही मच गई। पक्षियों की टोली ने इस भयानक मंजर का साक्षात् दर्शन किया। वे सब एक विशाल वृक्ष पर इकट्ठे होकर देख रहे थे कि बाढ़ में कई शव बह रहे थे। उन लाशों को देखकर सारे पक्षियों ने एक-दूसरे से पूछा कि वे किसकी संतति हो सकते हैं ? सिलि तअचि (एक स्थानीय पक्षी का नाम) ने कहा कि उसमें मेरे बच्चे नहीं हो सकते, क्योंकि मैंने पेड़ की जालनुमा मजबूत लताओं पर अपना घोंसला बनाकर बच्चों को सुरक्षित रखा है। बेतुम (एक और स्थानीय पक्षी का नाम) ने भी कहा कि वे मेरे बच्चे नहीं हो सकते, क्योंकि मैंने भी तापि ताजि (एक स्थानीय पौधा, जो बहुत लचीला होता है) के ऊपर अपना घोंसला बनाकर रखा है, इसलिए मेरे बच्चे भी सुरक्षित ही होंगे। अंत में पोकदोर ने कहा कि उसमें मेरे बच्चे हरगिज नहीं हो सकते, क्योंकि मैंने मजबूत पेड़ों की टहनी को भेदकर, उसके भीतर अपने बच्चों को सुरक्षित रखा है।
आखिरकार सभी पक्षी अपने-अपने निवास स्थान लौटे। वहाँ आकर देखा तो पाया कि लताओं और तापि ताजि के ऊपर जिन पक्षियों ने घोंसला बनाया था, वे सब सुरक्षित थे, कारण तेज हवाओं से लताओं एवं तापि ताजि नामक उस लचीले पौधे पर कुछ खास असर नहीं हुआ। वे झूल - झूलकर हवाओं के प्रवाह को सह गए, परंतु पोकदोर ने जिस विशाल पेड़ का सहारा लिया था, वह मजबूत होने के बावजूद अत्यंत भारी होने के कारण जड़ से उखड़ गया और बाढ़ में बह चला। बाढ़ के पानी में उस पेड़ के साथ-साथ पोकदोर के सभी बच्चे भी डूब गए। अब पोकदोर को समझ में आया कि पानी में बहती उन लाशों में उसके बच्चों की लाशें भी शामिल थीं। पोकदोर से अपने बच्चों की असमय मृत्यु सही नहीं गई और उसके मुख से अत्यंत करुण - रुदन निकल पड़ा। उसने बच्चों को खोने के गम में बहुत सी - मार किया । (सी-येमार किसी परिजन के मृत्य- शोक में गाया जानेवाला गीत है, जो अत्यंत हृदयस्पर्शी होता है।) आज भी तागिन लोग यही मानते हैं कि पोकदोर जिस प्रकार जंगल में कलरव किया करती हैं, वह उनका चहकना नहीं होकर क्रंदन हैं ।
एक दिन जंगल में शिकार के लिए घूम रहे आबोतानी ने पोकदोर को रोते हुए सुन लिया। उसकी मधुर आवाज आबोतानी के हृदय को स्पर्श कर गई । पोकदोर के शोकगीत के वशीभूत होकर आबोतानी से रहा नहीं गया तो वे पोकदोर के पास गए और उससे अनुरोध किया कि वह उन्हें भी यह गीत गाना सिखा दे । आबोतानी ने पोकदोर से यह भी कहा कि तुम अपने गीत का कुछ हिस्सा मुझे दे दो । आबोतानी के इस अनुरोध से पोकदोर अचानक से घबरा उठी। उसने आबोतानी को समझाते हुए कहा, " यह उचित नहीं हैं। तुम मुझसे जो माँग रहे हो, यह तो अपशगुन हैं, मैं तुम्हें कैसे दे सकती हूँ । इस गीत को किसी की मृत्यु के पश्चात् ही गाया जाता है। इसलिए यह गीत किसी अभिशाप से कम नहीं है। अगर तुमने इस गीत को अपना लिया तो तुम्हारे परिजन भी जीवित नहीं बचेंगे और उनके मृत्यु-शोक का भार तुमसे सँभाला नहीं जाएगा। तुम इस गीत के विषय में भूल जाओ, क्योंकि बाद में तुम हमें ही दोषी ठहराओगे ।" लेकिन आबोतानी ने उसकी एक न सुनी। वह बच्चों की तरह हठ करने लगे। कहने लगे कि "मैं अपनी इच्छानुसार तुमसे यह तुम्हारे गीत का अंश माँग रहा हूँ । इसलिए इसका जो भी परिणाम होगा, उसके लिए मैं किसी को दोषी नहीं ठहराऊँगा । "
आबोतानी की जिद के आगे हार मानकर पोकदोर ने हाँ कर दी। उसने कहा कि "ठीक है, यदि तुम इतनी ही जिद कर रहे हो तो मैं तुम्हें यह गीत दे रही हूँ ।" पोकदोर ने कहा कि “मैं यह गीत तुम्हारे पैरों में दे रही हूँ।" तो आबोतानी ने साफ इनकार कर दिया। कहा कि "मेरे पैरों में यदि दोगी तो नदी - पर्वतों में सैर करते वक्त वह मिट जाएगा। इसलिए वह ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगा।" फिर पोकदोर ने कहा कि "ठीक है, मैं इसे तुम्हारे हाथों में दे देती हूँ ।" इसे भी आबोतानी ने अस्वीकार किया, यह कहकर कि " ऐसे तो काम काज करते समय हाथों से भी वह मिट जाएगा।" अंत में आबोतानी ने स्वयं कहा, " ऐसा करो, तुम यह गीत मेरे शरीर के अंदर बसे मेरे हृदय में डाल दो, जहाँ पर वह सदा के लिए सुरक्षित रहेगा।" आबोतानी के कहे अनुसार पोकदोर ने वह गीत आबोतानी के हृदय में उँड़ेल दिया।
जैसा कि पोकदोर ने पहले ही आबोतानी को सचेत किया था कि इस गीत को अपनाने का परिणाम क्या हो सकता है ? जिस दिन आबोतानी ने पोकदोर के गीत को अपने दिल में बसाया, उसके कुछ दिन पश्चात् ही आबोतानी के सारे बच्चे मर गए। अपने बच्चों के मृत्य-शोक से पीड़ित आबोतानी को बहुत मानसिक कष्ट हुआ। अतः पोकदोर की तरह ही उन्होंने भी संतान खोने के गम में सी-ज्येमार करना आरंभ किया। आबोतानी के उसी हठ का परिणाम है सी-ज्येमार जैसे शोकगीत ने तागिन संस्कृति में जन्म लिया। यदि आबोतानी पोकदोर से वह गीत नहीं लेते तो मृत्यु-शोक इनसानों के लिए इतना पीड़ादायक कभी नहीं होता।
(साभार : तारो सिंदिक)