आबोतानी और मअजी यापम (तागिन जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा
Abotani Aur Mayji Yapam : Folk Tale (Arunachal Pradesh)
ऐसा माना जाता है कि आबोतानी ने सृष्टि के सभी जीव-जंतुओं, कीड़े-मकोड़ों, पेड़-पौधों और देवी-देवताओं की प्रजातियों से वैवाहिक संबंध बनाया। उनकी कई पत्नियों में से एक का नाम था—मअजी यापम। मअजी यापम जंगलों की देवी थीं। जंगलों की सभी संपत्तियों पर उनका अधिकार था। इसलिए जब कभी आबोतानी जंगली पशुओं का शिकार करके घर लाते तो मअजी यापम को बहुत आघात पहुँचता और वे छुप-छुपकर रोया करती थीं। जंगली पशुओं के साथ उनका संबंध खून का था। इसलिए जब कभी जंगली पशुओं को आबोतानी मारते तो उन्हें भी बराबर दर्द होता था। उनकी इस स्थिति से अनजान आबोतानी ने कभी शिकार करना नहीं छोड़ा। उनको लगता था कि उनके इस शिकार-कौशल को देखकर मअजी यापम खुश होती होंगी, परंतु वस्तुस्थिति कुछ और ही थी। इसके अतिरिक्त एक और सच्चाई थी, जिससे आबोतानी अनजान थे। वह यह कि कभी-कभी जंगली पशु भी आबोतानी के घर आकर उनके पालतू पशुओं को खा जाता था। ऐसे में मअजी यापम बहुत खुश होती थीं, क्योंकि तब उनका भी पेट भरता था। लेकिन आबोतानी को पता चलता कि उनके पालतू पशुओं को जंगली पशु खा गया है, तो वह बहुत रोते थे। इस प्रकार दोनों के बीच यह आँख-मिचौली का खेल जारी था। हालाँकि आबोतानी अब भी सच्चाई से दूर थे।
बात इतने में समाप्त नहीं हुई थी। आबोतानी के इनसानी कृत्यों पर मअजी यापम का हस्तक्षेप जारी रहा। हुआ यों कि आबोतानी ने खेतों में काम करना आरंभ किया। वे खेतों में फसल उगाने के लिए अनावश्यक पौधों और पेड़ों को साफ करके जाते। अगली सुबह जब देखते तो उस जगह फिर से वही पौधा और पेड़ उग आता। वे फिर साफ करके जाते; अगली सुबह उन पेड़-पौधों को फिर वहीं पर यथावत् पाते। आबोतानी को समझ में नहीं आया कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है। उन्होंने निश्चय किया कि वे इसका पता लगाकर ही रहेंगे। उस शाम वे खेतों से वापस घर नहीं लौटे, बल्कि खेतों के किनारे झाड़ियों की ओट में छिप गए। उन्होंने देखा कि कुछ देर बाद मअजी यापम खेत में आईं और उन्होंने जो कुछ भी किया, उसे देखकर आबोतानी के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही। वह हर कटे हुए पेड़-पौधे को छूकर कहतीं कि ‘यह मेरा है’, तो वह फिर से उग आता। इस तरह आबोतानी द्वारा काटे गए सभी अनावश्यक पेड़-पौधे पुनः-पुनः जीवित हो उठते और कटा हुआ खेत फिर से जंगल में तब्दील हो जाता।
आबो ने गुस्से और आश्चर्य के मिश्रित भाव से झाड़ियों से अचानक निकलकर मअजी यापम को दबोच लिया। मअजी यापम ने स्वयं को आबोतानी के चंगुल से आजाद कराने की बहुत कोशिश की। दोनों में मल्लयुद्ध जैसा चलने लगा। मअजी को बाँधे रखने के लिए आबोतानी ने कई जंगली रस्सियों का प्रयोग किया, परंतु जैसे ही मअजी यापम कहतीं कि ‘ये मेरा है’ तो सारी रस्सियाँ अपने आप टूट जातीं। इस तरह दोनों का मल्लयुद्ध पहाड़ों में स्थित खेत से लेकर समतल भूमि तक आ पहुँचा। पहाड़ से लेकर समतल भूमि तक के इस मल्लयुद्ध में दस दिन बीत गए। अंत में आबोतानी को बङ्ञ्यी ग्या नामक रस्सी मिली, जिससे बँधने पर आखिरकार मअजी यापम ने कहा कि ‘हाँ, यह तुम्हारा है।’
अंततः इस तरह आबोतानी ने मअजी यापम को बाँधने में सफलता हासिल की। इस मल्लयुद्ध का परिणाम यह हुआ कि अब दोनों का एक साथ रहना असंभव हो गया। इसलिए यह तय किया गया कि दोनों को हमेशा के लिए अलग हो जाना चाहिए। दोनों की विधिवत् विदाई के लिए दोरी चिजी को बुलाया गया। दोरी चिजी ने कहा कि आज के बाद तुम दोनों एक साथ नहीं रह सकते हो, इसलिए तुम दोनों के कार्य-क्षेत्र भी अलग हो जाएँगे और जंगल की संपत्ति का विभाजन हो जाएगा। दोरी चिजी ने फरमान सुनाया कि जंगलों का ऊबड़-खाबड़ और वीरान इलाका, जो अतिशय घना है तथा असामान्य बाँस, असामान्य बेंत, असामान्य पेड़ तथा असामान्य रस्सियाँ—सब मअजी-यापम के हिस्से में जाएँगे और वह सारा इलाका आबोतानी के नाम होगा, जहाँ इनसान अपना आशियाना बना सकें। आबोतानी के हिस्से में वे सारे पेड़-पौधे होंगे, जो दिखने में बिल्कुल सामान्य हों और जिन्हें उपयोग में भी लाया जा सके।
इस प्रकार आबोतानी और मअजी यापम का स्थायी बिछुड़न हो गया। आबोतानी इनसानों के गाँव बसाने लगे और मअजी यापम घने जंगलों में, ऊँचे पहाड़ों में विचरण करने चली गईं। तब से लेकर आज तक दोनों के बीच विभाजन-रेखा कायम है। आबोतानी और उनके वंशज, यानी हम मनुष्य जाति मअजी यापम के कार्यक्षेत्र में घुसपैठ नहीं करते। हम उनके जंगलों को बिना उनसे पूछे काटने की गुस्ताखी नहीं करते। जब कभी किसी विराट् वृक्ष को काटना हो, या फसल उगाने हेतु जंगल साफ करना हो, तो पहले हम किसी धर्मगुरु के सहारे अनुष्ठान का आयोजन करते हैं और किन्हीं पशुओं की बलि के माध्यम से मअजी यापम से सौदा तय करते हैं कि वे हमारे इस कार्य में बाधा न डालें। यदि कोई बिना पूछे मअजी यापम की संपत्ति पर हाथ डाले तो वे उसे भयानक सजा देती हैं।
इस प्रकार तागिन जनजाति में यह लोक-आस्था विकसित हुई कि जंगलों की भी अपनी रक्षक होती है, जिसके साथ छेड़खानी अत्यंत हानिकारक हो सकती है। ऐसा कई बार देखा भी गया है कि किसी असामान्य पेड़, रस्सी, लकड़ी या बाँस को काटने के तुरंत बाद वह व्यक्ति या तो मर जाता है या फिर भयानक रोग का शिकार हो जाता है; जिसका निवारण कभी होता है, तो कभी नहीं होता है। केवल इतना ही नहीं, जंगलों में अतिरिक्त शिकार करना भी अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि लोग मानते हैं, इससे मअजी यापम नाराज हो सकती हैं और उन्हें दंड भी दे सकती हैं।
(साभार : तारो सिंदिक)