आबोतानी और चूहा (ञीशी जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा

Abotani Aur Chuha : Folk Tale (Arunachal Pradesh)

(आबोतानी ला बुङके)

ताके-हांग्गोंग एक छोटा सा गाँव था, इस गाँव के निवासी बहुत ही प्रेमपूर्वक जीवनयापन कर रहे थे। परंतु गाँव के दो मुख्य परिवारों तापु-तालोङ और ताकर-यापर के बीच मनमुटाव चल रहा था। इन दो परिवारों में आपस में बड़ा प्रेम था, गहरी मित्रता थी। किंतु अब इन दो परिवारों के सदस्य एक-दूसरे को फूटी आँखों भी नहीं सुहाते थे। इस मनमुटाव का कारण थी—ताकर ताची। ताकर-ताची ताकर-यापर की बेटी थी। असल में हुआ यों कि तापु-तालोङ का बेटा ताकर-यापर की बेटी ताकर-ताची को भगा ले गया। इस घटना से आहत ताकर-यापर का मन तापु-तालोङ के प्रति खिन्न रहने लगा और एक दिन इस मनमुटाव ने बड़े झगड़े का रूप ले लिया। तब गाँव की पंचायत ने यह निर्णय किया कि इन दो परिवारों के झगड़े के निपटारे के लिए आबोतानी को बुलाया जाए।

पंचायत की बैठक ताकर-यापर के घर पर आयोजित हुई और निर्धारित समय पर आबोतानी वहाँ पहुँच गए। सारे लोग आबोतानी का स्वागत-सत्कार करते हुए उन्हें घर के भीतर ले आए। पंचायत की बैठक आरंभ हो गई। जब आबोतानी के बोलने की बारी आई, तो उन्होंने पूर्ण रूप से एक मध्यस्थ की भूमिका अपनाकर अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहना प्रारंभ किया। जब आबोतानी बोल रहे थे, तभी एक बूँद उनके ऊपर आ गिरी। आबोतानी ने सोचा, शायद छत से पानी टपका होगा। अब जब अपनी बात समाप्त कर आबोतानी पंचायत के अन्य सदस्यों की बात को सुन रहे थे, तब पुनः एक बूँद उनके घुटने पर आ टपकी। आबोतानी ने यों ही, जहाँ बूँद टपकी थी, वहाँ उँगली फिराकर उसे चाटा। चाटते ही वे आश्चर्यचकित हो गए।

कारण, उस बूँद में गजब की मिठास भरी हुई थी।

अब आबोतानी की उत्सुकता की कोई सीमा नहीं रही। उन्होंने तुरंत गृहस्वामी ताकर-यापर से इस बूँद के बारे में पूछा कि ‘आखिर यह बूँद है क्या?’ ताकर-यापर ने उन्हें बताया कि ‘यह ओपो (मदिरा) है।’ आबोतानी ने फिर प्रश्न किया कि ‘इसे बनाने की विधि क्या है?’ ताकर-यापर ने विस्तार से बताया कि ‘ओपो बनाने के लिए सबसे पहले चावल को पकाया जाता है और फिर उसे ठंडा करने के लिए पेचे (बाँस से बना कालीन) में फैला दिया जाता है और जब चावल ठंडा हो जाए तो ओपोप (खमीर) को उसमें खूब अच्छी तरह से मिलाया जाता है। फिर ओपोप मिश्रित चावल को बरतन में डालकर नाका, यानी घर की भीतरी छत पर रखा जाता है। चूल्हे में आग जलाकर छत को गरम रखा जाता है। इससे कुछ दिनों पश्चात् चावल पककर ओपो बन जाता है। आबोतानी ने ओपो बनाने की प्रक्रिया को बड़े ध्यान से सुना।

दोनों परिवारों में सुलह कराने के पश्चात् आबोतानी ने सबसे विदाई ली। किंतु जाने से पूर्व उन्होंने ताकर-यापर को मदिरा बनाने के लिए ओपोप के बदले में योचिक (चाकू) और चमाक (चकमक पत्थर) दिए। ताकर-यापर ने बड़ी ही सावधानी से ओपोप को पत्ते में लपेटकर आबोतानी को देते हुए कहा, ‘आपकी यात्रा तो अत्यंत लंबी होगी, अतः यात्रा के दौरान सुस्ताने के लिए एक विशेष जगह बतलाता हूँ। ताकर कार्गो लिरोङ नामक जगह सुस्ताने के लिए अति उत्तम है। वहाँ अवश्य सुस्ताकर अपनी थकान मिटा लीजिएगा।’ ताकर-यापर से विदाई लेकर आबोतानी हँसी-खुशी अपनी वापसी की यात्रा पर निकल पड़े। जब आबोतानी ताकर कार्गो लिरोङ पहुँचे, तो ताकर-यापर के कथनानुसार सुस्ताने के लिए वहाँ ठहर गए। वह स्थान गोल-गोल शिलाखंडों से भरा हुआ था। आबोतानी सुस्ता रहे थे तो उनके मन में एक इच्छा जगी कि पत्तों में लिपटा यह ओपोप दिखता कैसा होगा? आबोतानी तो थे ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के। उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने तुरंत पत्तों को खोल डाला। जल्दबाजी में पत्तों को खोलते समय अचानक ओपोप पत्थरों की दरार में गिर गया। अब होना क्या था! आबोतानी अपना सिर पकड़कर बैठ गए और सोचने लगे कि यह मैंने क्या कर दिया! इतनी कीमती वस्तु मेरे हाथ से छूट गई। आबोतानी बहुत दुःखी हो गए।

ठीक उसी समय बुङके नामक एक चूहा वहाँ से गुजर रहा था, चूहे को ताकर-हांग्गोंग गाँव जाना था। आबोतानी की घोर उदासी देख चूहा रुक गया और उनसे उदासी का कारण पूछा। आबोतानी ने व्यथित मन से सारा वाकया सुनाया। चूहा बोला, “आपकी उदासी देख मेरा मन पसीज गया। मैं आपकी सहायता करूँगा। मैं आपके लिए पत्थर की दरार में घुसकर ओपोप वापस लेकर आता हूँ। अब तो आप खुश हैं?” आबोतानी का चेहरा खिल गया और उन्होंने उत्तर दिया, “हाँ-हाँ! बिल्कुल खुश हूँ। तुम तो बहुत भले हो।” परंतु चूहे ने एक शर्त रखते हुए कहा, “पहले आप यह वचन दीजिए कि बदले में मुझे कुछ वरदान देंगे, तभी मैं आपकी सहायता करूँगा। आप तो दिव्य शक्तिधारी हैं।” तब आबोतानी ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा, “मैं तुम्हें कई सारे अधिकार देता हूँ। मसलन तुम मनुष्यों के घरों में रहकर उनकी वस्तुओं के साझीदार बनोगे। धान्यागार का धान और अन्य सामग्री को खा और कुतर सकोगे।” यह सुन चूहा खुश हो गया और दरार में घुसकर ओपोप निकाल लाया, फिर उसे आबोतानी को लौटा दिया।

आबोतानी ओपोप लेकर अपने घर पहुँचे और अपनी पत्नियों को ओपो बनाने की विधि बतलाई। उनकी पत्नियों ने ओपोप को चावल में मिलाकर पोन-ओपो (चावल वाली मदिरा) और मड़ुआ में मिलाकर तेम-ओपो (मड़ुआवाली मदिरा) बनाया। भिन्न-भिन्न स्वादों वाली मदिरा का रसास्वादन कर आबोतानी गद्गद हो गए।

(ओपो ञीशी जनजाति का एक महत्त्वपूर्ण पेय है। आजकल ञीशी घरों में पीने के लिए चाय या जूस दिया जाता है। परंतु पुराने लोग चाय से परिचित नहीं थे, क्योंकि तब दुर्गम पहाड़ों में चाय की खेती नहीं होती थी। घर में कोई अतिथि आए तो पीने के लिए ओपो ही दिया जाता था। धार्मिक अनुष्ठानों में ओपो को पवित्र मानकर देवी-देवताओं को चढ़ाने का आज भी रिवाज है। पर्व-त्योहारों में ओपो का सेवन हमारे पूर्वजों के समय से चला आ रहा है। प्रस्तुत लोककथा इस तथ्य पर भी प्रकाश डालती है कि मनुष्य के घरों में चूहे का प्रवेश कैसे हुआ। ञीशी जनजाति यह मानती है कि आबोतानी के वरदान के कारण ही चूहों को घरों में प्रवेश का अधिकार मिला और इस अधिकार का निर्वाह पूरी निष्ठा से चूहे आज तक कर रहे हैं।)

(साभार : डॉ. जमुना बीनी तादर)

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