अबूझ राजा और मूर्ख मंत्री : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Aboojh Raja Aur Moorkh Mantri : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
एक राज्य था। उसका राजा नासमझ था और मंत्री मूर्ख। उस राजा के एक पंडित थे जो कि ज्ञान से कोसों दूर थे। एक दिन राजा ने पंडित से पूछा, “हे पंडित, आदमी ज़िंदा रहकर कैसे मुक्ति लाभ कर सकता है?” तब पंडित ने उन्हें जीवनमुक्ति का मंत्र देने की बात कही। ज्योतिष को बुलाया गया। एक शुभ दिन तय किया गया। राजा की बात थी तो पूरे राज्य में बात फैल गई कि राजा दीक्षा लेंगे। पंडित ने राजा के कान में जीवनमुक्ति मंत्र को चुप-चाप कह सुनाया, “गोपाल चूड़ामणि।” तब राजा ने पूछा, “इसका अर्थ क्या हुआ भला?”
पंडित बोले, “गोपाल यानी ग्वाला। ग्वाले के घर में दही होती है, चिऊड़ा होता है, वह भी महीन और मणि यानी दक्षिणी गुड़। आपको हर दिन महीन चिऊड़ा, दही, दक्षिणी गुड़ दिखता रहे। यह तीन बात हो जाए तो जीवन मुक्त हो जाएगा। महाराज इस बात को बहुत ही गुप्त रखिएगा, किसी से कहिएगा नहीं।”
राजा उस मंत्र को हर रोज़ जपते। इसी तरह कुछ दिन बीत गए। एक दिन दूसरे देश से एक पंडित उस अबूझ राजा के राज्य में आए। उनके साथ एक आज्ञाकारी नाई था। एक दिन बीता, दो दिन बीते, तीन दिन बीते, पर उनकी भेंट राजा से नहीं हो सकी। पास ही में एक परचून की दुकान थी, वह उससे उधार का सामान लेकर खाना-पीना करते रहे। तीन दिन के बाद राजमहल से उनका बुलावा आया। पंडित राजदरबार में पहुँचे। राजा ने इस नए पंडित से पूछा, “अच्छा बताइए पंडित महाशय कि लोग कैसे जीवनमुक्त होते हैं?” पंडित बोले, “यह तो बहुत गहरी बात है। हुज़ूर को एक पल में कैसे समझाऊँ? तब सभा में उपस्थित राजा के पंडित ने राजा को समझा दिया कि यह पंडित वह मंत्र नहीं जानते हैं।
राजा ने तब नए पंडित से पूछा, “अच्छा यह बताइए कि गोपाल चूड़ामणि का अर्थ क्या है?” पंडित ने तब एक श्लोक पढ़ा। उस श्लोक को सुनकर राजा, मंत्री, सभासद, सभी ने हँसी में उड़ा दिया। पंडित बेचारे सिर झुकाकर बैठ गए। राजा अबूझ है, जो समझा है वही ठीक। पंडित को विदाई में एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी। पंडित बेचारे मुरझाया चेहरा लेकर वापस लौटे तो आज्ञाकारी नाई उनका रास्ता जोहते बैठा था। पंडित ने राजा की सभा का सारा हालचाल उसे कह सुनाया।
नाई बोला, “इतनी सी बात है न स्वामी! ठीक है यहाँ और एक-दो दिन रहते हैं। मैं उसका कुछ उपाय करता हूँ।” इधर दुकानदार की उधारी चुकाएँगे कैसे, यह सोचकर पंडित चिंता के मारे सिर पर हाथ धरे बैठे रहे। उन्हें तीनों लोक अँधेरा नज़र आ रहा था। नाई बोला, “आप क्यों इतना चिंतित हो रहे हैं? मैं जाता हूँ उस परचून की दुकान से सौदा-सुलफ़ लेकर आता हूँ।”
परचून की दुकान पर पहुँचकर नाई बोला, “महाजन! राजा से मेरे स्वामी को विदाई नहीं मिली है, कल विदाई मिल जाने के बाद तेरा पाई-पाई चुकता कर देंगे। तू अभी हमें सौदा दे दे।” नाई वहाँ से सामान लेकर घर पहुँचा, रसोई की सारी तैयारी करके पंडित से बोला, “मालिक! आप खाना पकाइए तब तक मैं एक चक्कर लगाकर आता हूँ।'' इतना कहकर नाई गया और इधर-उधर नज़र डालते हुए जाकर उस राज्य के पंडित के घर के पिछवाड़े पहुँचा। राजा के पंडित आज अपने आपे में नहीं थे। नए पंडित आज पराजित होकर सभा से गए हैं, इस बात से ख़ुश राजा के पंडित के पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे।
नाई जाकर चुपचाप पिछवाड़े बैठ गया। पंडित और पंडिताइन आपस में बातचीत कर रहे थे। पंडित बोला, “राजा तो मेरे मंत्र से विभोर हो गए हैं। फिर कोई भी कहे वे क्या समझेंगे भला? जो मैंने उनके कान में पढ़ दिया है, उसे ही पकड़ रखा है राजा ने। किसी देश का एक पंडित आया था मेरे पेट पर लात मारने। आज मुँह पर कालिख लगाकर चला गया।”
पंडिताइन ने पूछा, “तुमने ऐसा क्या मंत्र दिया है राजा को?” पंडित बोला, “तुम औरत जात, तुम्हें क्या मिलेगा इन सब बातों से?” पंडिताइन ने तब ज़िद पकड़ ली। पंडित बोला, “राजा ने मुझसे एक दिन पूछा आदमी जीवनमुक्त कैसे होता है? मैं तो विद्यारंभ से ही गुरू को ठगता आया हूँ। मैंने राजा के कान में मंत्र दिया, 'गोपाल चूड़ामणि'। राजा ने इसका अर्थ पूछा, तो मैंने कहा, “जमी हुई दही, महीन चिऊड़ा और दक्षिणी गुड़। राजा का मन तो उसी मंत्र पर अटक गया है। आज नया पंडित आकर शास्त्र से कितना श्लोक बोला। पर राजा का मन क्या उससे मानता? पंडित बेचारा बिना विदाई लिए चला गया।”
नाई तो सब कान लगाकर सुन रहा था। पंडित की बेटी का नाम लाड़ली है, यह भी सुना। घूम-फिरकर घर पहुँचा, तब तक पंडित खाना पकाकर उसका इंतज़ार कर रहे थे। पंडित बोले, “अरे मेरे सिर पर आसमान टूट पड़ा है। पर तेरे पाँव ख़ुशी से नीचे नहीं पड़ रहे हैं। मेरा आज मान गया, महत्त्व गया, पर तू आनंद सागर में डुबकी लगा रहा है।”
नाई बोला, “स्वामी! आप कल सुबह-सुबह महाराज के पास जाइए। राजा आपको देखकर पूछेंगे, क्यों कल तो आप हमारे पंडित को विद्या से जीत नहीं पाए, आज फिर चेहरा दिखाने क्यों आ गए?” तब आप कहिएगा कि मेरा भतीजा काशी गया था, पढ़ाई करने के लिए। वहीं से पढ़ाई पूरी करके अभी-अभी लौटा है। जब उसने सुना कि मैं आपके राज्य में आया हूँ तो मुझसे मिलने आ गया। कल राजदरबार से लौटते समय रास्ते में उससे भेंट हो गई। वह आपसे भेंट करना चाहता है। हुज़ूर का आदेश हो तो मेरा भतीजा आज सभा में आकर आपसे भेंट करेगा और आपके सामने उसकी विद्या-बुद्धि की परख भी हो जाएगी। आपका आदेश होगा तो वह आकर आपके पंडित के सवाल का जवाब देगा।”
पंडित ने दूसरे दिन उठकर तिलक लगाकर राजा के पास पहुँचकर वैसा ही कहा। राजा बोले, “ठीक है।” पंडित ने घर वापस जाकर नाई से कहा। नाई ने दाढ़ी-मूँछ साफ़ करके जनेऊ पहनकर नहा-धोकर चंदन का टीका लगाया और राजदरबार में जा पहुँचा। राजा चातक की तरह उसका इंतज़ार कर रहे थे।
नाई के राजदरबार में पैर रखते ही राजा ने पूछा, “जीवनमुक्त कैसे होते हैं?” पंडित बना नाई बोला, “हुज़ूर, यही बात सीखने के लिए मैं पाँच साल तक 'नदिआ नवद्वीप' में पढ़ा। वहाँ इसका राज़ न मिलने पर काशी गया। काशी में सात साल पढ़ने के बाद एक गुरू मिले तो उन्होंने मुझे यह मंत्र दिया। यह मंत्र तो सबके सामने कहा नहीं जा सकता। इसे अकेले में आपसे कहूँगा।” उसके इतना कहने पर पंडित और राजा सभा से बाहर चले गए। तब नाई राजा के कान में बोला, “गोपाल चूड़ामणि का अर्थ है गोपाल यानी ग्वाला, ग्वाले के घर जमी दही, चिऊड़ा यानी महीन चिऊड़ा और मणि तो दक्षिणी गुड़ होता है। यह बात तो कई लोग जानते हैं। पर इसके भीतर और एक गूढ़ बात है जो मेरे गुरु के अलावा कोई नहीं जानता। वह बात ऐसी है कि जमी दही का चालीस सेर, एक मन महीन चिऊड़ा और एक पसेरी दक्षिणी गुड़ ब्राह्मण को दान करने पर मानव जीवनमुक्त हो सकता है।”
राजा ने सोचा कि बात तो एकदम सही है। हमारे दरबार के पंडित को जितना पता था उतना कहा, असली बात तो उनको भी पता नहीं थी। तब राजा सभा में लौटे। सभा के पंडित और इस नए पंडित के बीच प्रतियोगिता शुरू हुई। राजा के मुख्य बग़ीचे में ककड़ी फली थी। राजा के पुराने पंडित ने उस ककड़ी को देखकर श्लोक पढ़ा, “काकुड़ियाँ फल्यां?” नाई चुप बैठा था उठकर पंडित के गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया और बोला, “ककड़ी कैसे फल्यां। बीजं बोइयां, पानी उड़ेलां, खरपतवारं काटयां तब जाकर ककड़ी फल्यां। ऐसे ही बिना कुछ किए धरे ककड़ी फल्यां?”
उसकी विद्या देखकर सब चुप! दरबार का पंडित बेचारा गाल सहलाता रहा। एक ही थप्पड़ से आँखों के सामने तारे नज़र आने लगे। राजा तो अबूझ राजा, उस पर मूर्ख मंत्री, बस तय किया गया कि यह नए पंडित सभा में जीत गए और पुराने पंडित की हार हुई।
राजा बहुत ख़ुश हो गए नए पंडित से। राजमहल के ख़ज़ाने से कुंडल, सोने का कंगन, सिल्क के दो जोड़ी कपड़े, जमी दही चालीस सेर, एक मन चिऊड़ा, एक पसेरी दक्षिणी गुड़ देने का हुक्म दिया। विदाई के रूप में रास्ते का ख़र्च दिया। चलने से पहले नाई राजा को एकांत में ले जाकर बोला, “हुज़ूर! मेरे गुरू ने जो कहा था आज हुज़ूर के दरबार में उसका असली मर्म समझ में आया। आप जैसे बुद्धिमान राजा ने ही इतने बड़े ज्ञानी पंडित को अपनी सभा में रखा है। वह मेरे से हार ज़रूर गए हैं, पर किसी और से वह हारने वालों में से नहीं हैं। हुज़ूर ने तो मेरी झोली भर दी। बस एक माँग और है। मेरे गुरू ने कहा था कि जो पंडित जीवनमुक्ति मंत्र जानते होंगे, जानना कि इस संसार में वही एक बड़ा पंडित है। उनकी मूँछ के दो बाल उखाड़कर अपने उत्तरीय में गाँठ बाँधकर रखेगा तो फिर जितनी भी बड़ी सभा में जाएगा तू कहीं भी नहीं हारेगा। हुज़ूर का आदेश हो तो मैं पंडित की मूँछ के दो बाल उखाड़ लूँ। राजा तो उसके ऊपर प्रसन्न थे। बोले, “ठीक है, ले जाओ।”
उधर एक ही थप्पड़ की चोट से अक्ल गुमा चुके पंडित अपना हाथ सिर पर रखे बैठे थे। राजा का आदेश पाते ही नाई ने जाकर पंडित की मूँछ उखाड़ ली। पंडित तो मारे दर्द के चीख़ने-चिल्लाने लगे। उधर नाई सारा सामान लेकर घर पहुँचा। फिर गुड़, चिऊड़ा, दही परचून के दुकानदार को बेचकर उसका सारा बक़ाया चुकाकर अपने मालिक के पास आकर बोला, “मालिक! और यहाँ क्यों बैठे हो? इस अबूझ नगरी का पानी भी अब नहीं पिएँगे। यह रुपया रखो और यहाँ से जल्दी चलो। यहाँ से निकल भागेंगे तभी हमारी जान बच पाएगी।” दोनों फिर बिना देरी किए उस राज्य से भाग निकले।
उधर नाई के पंडित की मूँछ का बाल लेकर चले जाने के बाद राजा ने सोचा कि हमारे पंडित की मूँछों के बाल में इतनी करामात है तो हम भी दो बाल उखाड़कर अपने पास रख लेते हैं। राजा ने जब बाल रख लिया तो मंत्री ने सोचा कि राजा ने पंडित की मूँछों का बाल लिया है तो मैं भी दो बाल ले लूँ। इसी तरह सेनापति, सौदागर और बाक़ी सभासद के बाल उखाड़ लेने पर पंडित का हाल पस्त हो गया। देखते-देखते पंडित का चेहरा फूलकर कुप्पा हो गया। सुबह देखा तो यह पंडित भी जान बचाकर राज्य छोड़ भाग खड़े हुए थे।
(साभार : ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)