अभागा बच्चा : सिक्किम की लोक-कथा

Abhaga Bachcha : Lok-Katha (Sikkim)

यह सिक्किम में पवित्र लामाओं के आने से पूर्व की कथा है, इसकी भूमि में शैतान का एक परिवार निवास करता था। वह एक गुफा के भीतर बड़ी सी चट्टान के नीचे रहता था, उसका नाम था—मिएलोन। उसी चट्टान के नीचे घाटी बनी हुई थी, जहाँ केवल दो घर थे। एक घरवाला एक दिन अपने खेतों में कामकाज करने के लिए निकला। उसका एक बच्चा था, जिसे उसके बड़े भाई की देख-रेख में घर पर छोड़ दिया जाता। उस बच्चे का नाम था—पुन्शोहांग। घर में किसी बड़े व्यक्ति को न पाकर शैतान ने इस अवसर का लाभ उठाने के बारे में सोचा और उस घर से बच्चे को उठाकर अपनी गुफा में ले आया। वह उस बच्चे को मारकर खाना चाहता था, इसलिए विशेष अवसर की तलाश करने लगा। वह रात होने का इंतजार करने लगा, क्योंकि उसे अपनी शैतानी हरकत को अंजाम देने के लिए अंधकार चाहिए था। शैतान दंपती अपने बच्चों को सुलाकर रात को शिकार खोजने गुफा से बाहर चले गए। जब शैतान दंपती गुफा से बाहर निकले तो पुन्शोहांग का मन थोड़ा शांत हुआ, परंतु उनके खयाल मात्र से वह बहुत डरा हुआ था। इस घटना से पूर्व उसका मन इतना ज्यादा कभी नहीं घबराया था। उसने अपने मन में सोचा, ‘अब मेरी मौत निश्चित है। ये शैतान मुझे मारकर अवश्य खाएँगे। मेरे बचने का अब कोई उपाय नहीं है।’ मन में यह खयाल आते ही वह जोर-जोर से रोने लगा। शैतान के बच्चे उसके रोने की आवाज से जाग गए। उन्होंने जब पुन्शोहांग की आँखों से बहते आँसुओं की धारा देखी तो वे अपने स्थान से उतर आए। पुन्शोहांग के बहते आँसुओं को देखने के लिए वे उसके करीब आए और उसे पी गए; क्योंकि इन बच्चों ने इससे पूर्व कभी आँसू नहीं देखे थे। पुन्शोहांग को यह देखकर बड़ा क्रोध आया। उसने अपनी कमर में बँधा चाकू निकाला और बच्चों का पीछा करने लगा। बच्चे पुन्शोहांग से बचने के लिए गुफा के चारों ओर दौड़ने लगे।

शैतान दंपती सवेरे खाने के लिए केंचुआ ले आया। उन्होंने पुन्शोहांग को भी केंचुआ परोसा, जिसे खाने के बजाय उसने यहाँ-वहाँ फेंक दिया। दूसरे दिन भी रात होते ही शैतान दंपती अपने बच्चे और पुन्शोहांग को गुफा में छोड़कर बाहर चले गए। उस दिन भी पुन्शोहांग अपने भविष्य का सोचकर रोने लगा। शैतान के बच्चों ने पुनः उसके आँसुओं को पीना शुरू किया, जिसको देखकर वह उन्हें फिर से मारने के लिए दौड़ने लगा। यहाँ-वहाँ भागते हुए जब वह थक गया तो उसे नींद आने लगी। नींद से उसकी आँखें बोझिल होने लगीं और वह वहीं लुढ़क गया। चाकू म्यान से निकलकर जमीन पर गिर पड़ा। बच्चे पुन्शोहांग से काफी भयभीत हो चुके थे, वे चाहते थे कि वह गुफा से बाहर चला जाए। इसलिए वे उसके बाहर जाने की व्यवस्था करने लगे। उन्होंने चाबी की तलाश करना शुरू किया। चाबी मिलने के बाद उन्होंने पुन्शोहांग को जगाया और गुफा की चाबी उसे पकड़ा दी। पुन्शोहांग को बड़ी आसानी से चाबी मिल गई, उसने तुरंत गुफा का द्वार खोला और अपने घर की ओर भागने लगा। शैतान का भय इतना अधिक उसके मन में था कि रास्ते में दौड़ते हुए उसे महसूस हुआ कि शैतान उसका पीछा कर रहा है, जिससे बचने के लिए उसने अपने को एक गड्ढे में घास-फूस से ढककर छुपा लिया। शैतान जब गुफा में लौटी और उन्हें पुन्शोहांग वहाँ नहीं मिला तो तुरंत उसके पैरों के निशान खोजते हुए उसका पीछा करने लगा। जहाँ उसके पैरों का निशान मिलना बंद हुआ, वहीं शैतान खड़ा होकर पुन्शोहांग को तलाशने लगा। शैतान सोचने लगा, अचानक पैरों के निशान कहाँ गायब हो गए? उसने पुन्शोहांग को बहुत खोजा, पर उसे वह कहीं नहीं मिला; न उसके पैरों के निशान और न ही पुन्शोहांग। शैतान बहुत परेशान हो गया। उसने अपनी शक्ति के बल पर पता करने की चेष्टा की कि अचानक पुन्शोहांग कहाँ गायब हो गया? उसे यही उत्तर मिल रहा था कि पुन्शोहांग उससे बहुत दूरी पर नहीं है, पर वह उस स्थान का पता नहीं लगा पाया। अंत में हारकर वह वहाँ से चला गया। पुन्शोहांग अपने को शैतान के हाथों से बचा देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसे यह यकीन हो पाना मुश्किल हो रहा था कि वह अपने घर जाने की स्थिति में आ चुका है! अपने घर पहुँचकर उसे मालूम हुआ कि वह दो रातों से गायब था। अपने परिवार जन के बीच पहुँचकर उसने सुकून की साँस ली; परंतु दुर्भाग्य से पुन्शोहांग के बाल-मन में बसा डर इतना बैठ चुका था कि वह उसी रात मर गया।

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

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