Ababil Aur Kauva : Aesop's Fable
अबाबील और कौवा : ईसप की कहानी
जंगल में एक ऊँचे पेड़ पर एक अबाबील पक्षी रहता था। उसके पंख रंग-बिरंगे और सुंदर थे, जिस पर उसे बड़ा घमंड था। वह ख़ुद को दुनिया का सबसे सुंदर पक्षी समझता था। इस कारण हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता था।
एक दिन कहीं से एक काला कौवा आकर उस पेड़ की एक डाली पर बैठ गया, जहाँ अबाबील रहता था। अबाबील ने जैसे ही कौवे को देखा, तो अपनी नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहने लगा, “सुनो! तुम कितने बदसूरत हो। पूरे के पूरे काले। तुम्हारे किसी भी पंख में कोई रंग नहीं है। मुझे देखो, मेरे रंग-बिरंगे पंखों को देखो। मैं कितना सुंदर हूँ।”
कौवे ने जब अबाबील की बात सुनी, तो बोला, “कह तो तुम ठीक रहे हो। मेरे पंख काले हैं, तुम्हारे पंखों जैसे रंग-बिरंगे नहीं। लेकिन ये मुझे उड़ने में मदद करते हैं।”
“वो तो मुझे भी करते हैं। देखो।” कहते हुए अबालील उड़कर कौवे के पास जा पहुँचा और अपने पंख पसारकर बैठ गया। उसके रंग-बिरंगे और सुंदर पंखों को देखकर कौवा मंत्र-मुग्ध हो गया।
“मान लो कि मेरे पंख तुमसे बेहतर हैं।” अबाबील बोला।
“वाकई तुम्हारे पंख दिखने में मेरे पंखों से कहीं अधिक सुंदर हैं। लेकिन मेरे पंख ज्यादा बेहतर है क्योंकि ये हर मौसम में मेरे साथ रहते हैं और इनके कारण मौसम चाहे कैसा भी हो, मैं हमेशा उड़ पाता हूँ। लेकिन तुम ठंड के मौसम में उड़ नहीं पाते, क्योंकि तुम्हारे पंख झड़ जाते हैं। मेरे पंख जैसे भी हैं, वो मेरा साथ कभी नहीं छोड़ते।” कौवा बोला।
कौवे की बात सुनकर अबाबील का घमंड चूर-चूर हो गया।
सीख : दोस्ती करें, तो सीरत देखकर करें न कि सूरत देखकर, क्योंकि अच्छी सीरत का दोस्त अच्छे-बुरे हर वक़्त पर आपके साथ रहेगा और आपका साथ देगा। वहीं मौका-परस्त दोस्त अपना मतलब साधकर बुरे वक़्त में आपको छोड़कर चला जायेगा।