आत्मविश्वासी धोखेबाज की बेनकाबी : फ़्रेंज़ काफ़्का
अंत में रात दस बजे उस सुंदर घर के दरवाजे पर पहुँच गया, जहाँ मुझे शाम बिताने के लिए आमंत्रित किया गया था। मेरे बगल में खड़ा व्यक्ति, जिसे मैं शायद ही जानता हूँ, जबरदस्ती मुझे अपने साथ लेकर दो घंटे तक गलियों में चारों ओर घूमता रहा।
" ठीक हो ! " मैंने तालियाँ बजाकर यह दरशाने की कोशिश की कि मैं सचमुच में उससे विदा लेना चाहता था । पहले ही मैंने छुपे तरीके से उससे छुटकारा पाने की कोशिश की थी। अब मैं थक गया था।
'क्या तुम सीधे जा रहे हो?" उसने पूछा। उसके मुँह से ऐसी आवाज आई मानो उसने तेजी से अपना मुँह बंद किया हो ।
“हाँ! ’
जब मैं उससे मिला तो मैंने बताया कि मुझे आमंत्रित किया गया है। लेकिन मैं तो उस घर में प्रवेश करना चाहता हूँ, जहाँ मुझे आमंत्रित किया गया है और मेरी वहाँ जाने की बड़ी इच्छा थी, न कि इस गली के मुहाने पर खड़े होकर अपने सामने खड़े व्यक्ति को देखना। और न ही उसके साथ खड़े रहने की कि मानो हम उस जगह पर खड़े रहने के लिए अभिशप्त हैं । और फिर हमारे चारों ओर के मकान भी हमारी खामोशी में साझेदार बन गए तथा चारों ओर का अँधेरा भी । अदृश्य राहगीरों के कदमों की आहट, जिसे समझना मुश्किल है, गली के दूसरे छोर पर लगातार बहती हवा, किसी बंद कमरे की खिड़की के पीछे बजता ग्रामोफोन- मानो वे सभी इस खामोशी में साझेदार बन गए हो, मानो यह उनका अधिकार है, आनेवाले कल के लिए भी, और बीते कल के लिए भी।
मेरे साथी ने मुसकराते हुए यह सब अपने नाम ले लिया, और मेरे भी, दीवार के साथ ही अपना दाहिना हाथ फैलाया, उस पर अपनी ठुड्डी झुका दी, तथा अपनी आँखें बंद कर लीं।
फिर मैंने उसकी मुसकुराहट खत्म होने का इंतजार नहीं किया, क्योंकि अचानक मुझे शर्म का अनुभव हुआ, बल्कि उसकी मुसकराहट से मुझे यह जानना चाहिए कि यह व्यक्ति आत्मविश्वास के साथ धोखा देता है, और कुछ नहीं। और फिर मैं तो महीनों से इस शहर में हूँ और मैंने सोचा कि मुझे इस धोखेबाज के बारे में सब कुछ मालूम है, वे किस प्रकार रात में खुले हाथों से सराय के रखवालों की तरह हम से मिलने आते हैं, वे किस प्रकार इस विज्ञापन स्तंभ का चक्कर लगाते हैं जिसकी बगल में हम खड़े थे, इसके चारों ओर लुकाछुपी का खेल खेलते और कम-से-कम एक आँख से हमारी जासूसी करते, किस प्रकार वे गली के पेवमेंट की रेलिंग पर अचानक प्रकट होते, जबकि हम हिचकिचाते ही रह जाते हैं वहाँ जाने में! मैं उन्हें अच्छी तरह जानता था । इस शहर के सराय में वे मेरे पहले परिचित थे। उन्हें देखकर ही मुझे सबसे पहले निष्ठुर कठोरता के संकेत मिले जिससे कि अब मैं भली-भाँति परिचित हूँ। इस धरती पर हर जगह, यहाँ तक कि अब मैंने स्वयं को स्वतंत्र कर लिया था, अब तब भी जब ज्यादा कुछ आशा करने को था नहीं। किस प्रकार उन्होंने इस आदत को छोड़ने, अपनी हार मानने से मना कर दिया, बल्कि बहुत दूर से भी हमारे ऊपर नजर लगाए हुए थे और उनके साधन वही थे । वे हमारे सामने ही सारी योजनाएँ बनाते, जहाँ तक नजर जाती देखने, जहाँ हमारा लक्ष्य होता वहाँ हमें जाने से रोकते हैं, बल्कि अपने निकट ही हमारे ठहरने की व्यवस्था करते हैं और अंततः जब हम उनके व्यवहार का विरोध करते हैं तो वे सहज ही उसे स्वीकार करते हैं।
इस व्यक्ति की संगति में मुझे उस पुराने खेल को समझने में इतना लंबा समय लगा। इस अपमान से उबरने के लिए मैंने अपनी उँगलियों के सिरों को रगड़ा ।
मेरा साथी अभी भी वहाँ वैसे ही झुका हुआ था और स्वयं को एक सफल धोखेबाज समझ रहा था तथा यह आत्म संतुष्टि उसके गालों पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी ।
कंधे से पकड़ते हुए मैंने कहा, " पकड़ा गया !" तब मैं दौड़ता हुआ सीढ़ियों पर गया तथा नौकर के चेहरे पर अरुचिपूर्ण भक्ति देखकर मैं खुश हो गया। मैंने एक के बाद एक सब पर नजर डाली, जबकि उन्होंने मेरा कोट उतारा और मेरे जूते साफ किए । राहत की गहरी साँस लेते हुए तथा अपने आपको पूरी तरह खींचते हुए मैंने ड्रांइग रूम में प्रवेश किया।
(अनुवाद: अरुण चंद्र)