आठवीं चाबी : हिंदी लोक-कथा

Aathvin Chaabi : Folktale in Hindi

सिंध का एक बुद्धिमान राजा जब बूढ़ा हो गया और उसे लगा कि वह अधिक नहीं जीएगा तो उसने अपने दीवान को बुलवाया और उसे आठ चाबियाँ देते हुए कहा, “मेरे कूच का समय नज़दीक आ गया है। राजकुमार जब तक बड़ा नहीं हो जाता आप सिंहासन की रक्षा करें। जब वह ख़ुद राजकाज चलाने लायक हो जाए तो आप उसे सात चाबियाँ दे दें, पर आठवीं उसे पाँच बरस शासन करने के बाद ही दें।” दीवान ने उसे वचन दिया कि वह ऐसा ही करेगा। और राजा शांति से मर गया।

राजकाज की बागडोर दीवान ने अपने हाथ में ले ली। राजकुमार की शिक्षा-दीक्षा की उसने समुचित व्यवस्था की, जैसे वह उसका अपना बेटा हो। राजकुमार के बड़े होने तक उसने बड़ी निष्ठा से राजकाज किया। फिर एक शुभ दिन उसे समृद्ध और सुशासित राज्य संभला दिया। सात चाबियाँ भी उसने राजकुमार के हवाले कर दी। राजतिलक के बाद राजकुमार ने बड़ी उत्सुकता से उन चाबियों से सात तहखाने खोले। तहखानों में सोने-चाँदी और हीरे-मोतियों के अंबार लगे थे। वह बहुत ख़ुश हुआ। वफ़ादार दीवान का उसने बहुत आभार माना जिसने उसके लिए हर चीज़ की रक्षा की और यथासमय उसे मुकुट पहनाया।

कुछ दिन बाद दीवान से जलने वाले एक चुगलखोर ने नए राजा के कान भरे कि राजमहल में आठ तहखाने हैं जबकि दीवान ने उसे सिर्फ़ सात चाबियाँ ही दी हैं।

युवा राजा के आग-आग लग गई। उसे लगा कि दीवान विश्वासघाती है। आठवें तहखाने का धन वह ख़ुद हजम करना चाहता है। उसने दीवान से कहा कि वह फ़ौरन आठवीं चाबी उसके हवाले करे, नहीं तो वह अभी उसका सर कलम करवा देगा। उसने राजा के पाँव पकड़ लिए और कहा कि उसने उसके पिता को वचन दिया था कि राजतिलक के पाँच बरस बाद ही वह उसे आठवीं चाबी देगा। पर युवा राजा को इतना धीरज कहाँ! उसने कहा कि उसे चाबी अभी चाहिए, इसी वक़्त। चाबी हाथ में आते ही वह आठवें तहखाने की ओर भागा, ताले में चाबी घुमाई और झटके से दरवाज़ा खोला। तहखाना एकदम ख़ाली था। उसे सहसा विश्वास नहीं हुआ। यहाँ तक कि दीवारें भी सपाट थीं। उनमें एक ताक तक नहीं था। ख़ाली तहखाने में उसने चारों तरफ़ देखा। एक दीवार उसे कुछ अलग नज़र आई। उस पर एक सुंदर लड़की का चित्र बना हुआ था। राजा की आँखें चित्र पर चिपककर रह गईं। वह ज्यों-ज्यों चित्र को देखता त्यों-त्यों उसका सम्मोहन बढ़ता गया। चित्र की लड़की को वह प्राणप्रण से चाहने लगा। लड़की के सौंदर्य से वह इतना अभिभूत हुआ कि उसे मूर्च्छा आ गई। दीवान उसके पीछे ही खड़ा था। उसने राजा को थामा और मुँह पर गुलाबजल छिड़का। राजा को चेत हुआ। चेत होते ही उसकी नज़र चित्र में बनी लड़की की ओर मुड़ी। उसने दीवान को आदेश दिया कि जैसे भी हो वह इस लड़की को जल्दी से जल्दी उससे मिलवाए, नहीं तो वह राजपाट और अन्न-जल सब छोड़ देगा।

दीवान को यह बहुत विचित्र लगा कि राजा उस लड़की पर मुग्ध हो गया जिसे उसने कभी देखा तक नहीं। पर उसने राजा को आश्वस्त किया और वचन दिया कि इस लड़की की खोज में वह निकल पड़ेगा। उसी हफ़्ते मंत्री ने जहाज़ में विक्रययोग्य तरह-तरह का सामान भरा और भरोसे के कुछ नौकरों के साथ तुरंत निकल पड़ा। वे हर बंदरगाह पर रुकते और हर राज्य के दरबारियों और मोतबरों को आठवें तहखाने में मिला चित्र दिखाते। पर उन्हें ऐसा कोई नहीं मिला जिसने चित्र की अपूर्व सुंदरी को देखा या उसके बारे में सुना हो। इस तरह पूरे एक बरस भटकने के उपरांत वे दूरदराज के एक राज्य में पहुँचे। वहाँ बंदरगाह के तट पर उन्होंने उस चित्र को लोगों को दिखाने के लिए रखा। चित्र को देखते ही पास खड़े लोग चिल्लाए, “यह तो हमारी राजकुमारी है!” दीवान को तुरंत वहाँ के राजा के पास ले जाया गया। राजमहल में राजकुमारी की एक झलक देखते ही दीवान को पक्का भरोसा हो गया कि यह वही अपूर्व सुंदरी है। दीवान ने राजा को अनूठे उपहार भेंट किए और बताया कि वह सौदागर है और अपना माल बेचने के लिए उसके राज्य में रुकना चाहता है। राजा ने उसे व्यापार की अनुमति दे दी। कुछ ही दिनों में उसने राजकुमारी के स्वभाव और उसके वंश के बारे में काफ़ी जानकारी इकट्ठी कर ली। जब वह पूरी तरह से संतुष्ट हो गया तो वापस अपने राज्य की ओर चल पड़ा। कुछ महीनों की यात्रा के बाद दीवान ने अपनी राजधानी के बंदरगाह पर लंगर डाला। उसने राजा को बताया कि चित्र की अपूर्व सुंदरी का पता चल गया। वह चित्र से भी कई गुना अधिक सुंदर है। उसे एक नज़र देखने के लिए राजा अधीर हो उठा।

जहाज़ को फिर भाँति-भाँति की विक्रययोग्य वस्तुओं से भरा गया और राजा को लेकर जहाज़ फिर चल पड़ा। महीनों की कठिन समुद्री यात्रा के बाद जहाज़ ने अपूर्व राजकुमारी के राज्य की भूमि को छूआ। दीवान राजकुमारी के पिता से मिला और पिछले बरस की तरह फिर व्यापार की अनुमति माँगी। दीवान को पता था कि राजकुमारी को खिलौनों से बहुत लगाव है और इस राज्य के लोग बहुत अच्छे खिलौने बनाते हैं। इसलिए वह राजकुमारी के लिए एक से एक अनोखे खिलौने लेकर आया था। ये खिलौने चलते थे, बोलते थे। शेर और बाघ दहाड़ते थे। पक्षी हवा में तिरछे उड़ते थे। राजकुमारी मुग्ध हो गई। मंत्री ने कहा, “हमारे जहाज़ में ऐसे-ऐसे खिलौने हैं कि ये उनके पासंग भी नहीं हैं। हमारे मालिक जहाज़ पर ही हैं। उन्होंने मुझे हमारे देश के मामूली खिलौने ही जहाज़ से बाहर लाने दिए। हमारे जहाज़ पर चलिए! आपको एक से एक अद्भुत खिलौने दिखाऊँगा।” राजकुमारी का कुतूहल चरम पर पहुँच गया। छह दासियों के साथ वह तुरंत मंत्री के साथ चल पड़ी। जहाज़ पर युवा राजा ने उसकी अगवानी की और उसे शिष्टतापूर्वक आश्चर्यजनक खिलौने दिखाने लगा। हर नए खिलौने को देखकर राजकुमारी ख़ुशी से उछल पड़ती। इस बीच मल्लाहों ने लंगर की रस्सियाँ काट दीं और पाल खोल दिए। जहाज़ ने बंदरगाह छोड़ दिया। यह सब उन्होंने ऐसी होशियारी से किया कि राजकुमारी और दासियों को भनक तक नहीं लगी। वे तट से काफ़ी दूर आ गईं।

राजकुमारी और दासियों को जब यह पता चला कि उनका हरण किया गया है तो वे भय से सुन्न हो गईं। फिर सहसा वे चीखने-चिल्लाने और जहाज़ की चीज़-बस्त तोड़ने लगीं। युवा राजा ने यह कहकर राजकुमारी को शांत किया कि कैसे उसका चित्र देखकर वह उस पर आसक्त हुआ और कैसे उसे ढूँढ़ने के लिए उसने सात समंदर की यात्रा की। युवा राजा के प्रणय निवेदन और उसकी सौजन्यता से राजकुमारी पसीज गई। उसका प्रतिरोध ठंडा पड़ गया। राजकुमारी को लगा कि वह भी उसे चाहने लगी है। युवा राजा के राज्य में पहुँचने पर उसकी रानी बनने के लिए वह राज़ी हो गई। वहाँ पहुँचने में अभी महीनों की देर थी, पर प्रेम की मदभरी लहरों में डूबते-उतरते प्रेमीयुग्म बहुत ख़ुश थे।

जहाज़ मंजिल पर पहुँचने ही वाला था। क्षितिज पर धरती की झलक दिखने लगी थी। दोनों प्रेमी एक-दूसरे की आँखों में आँखें डाले जहाज़ की पाटन पर टहल रहे थे। बूढ़ा मंत्री गलही पर बैठा अधमुंदी आँखों से जहाज़ की गति से कटती लहरों को देख रहा था। उसने सर उठाकर पास आती ज़मीन की ओर ताका। तभी तोता-मैना का एक जोड़ा उड़ता हुआ आया और उसके पास जंगले पर बैठ गया। बूढ़ा मंत्री पखेरुओं की भाषा जानता था। वह उनके बोलने का इंतज़ार करने लगा। जंगले की रस्सी पर बैठने के थोड़ी देर बाद मैना बोली, “मुझे यहाँ जहाज़ पर अच्छा नहीं लग रहा। कोई कहानी सुनाओ न!” तोता कुछ पल सोचता रहा। फिर कहने लगा, “एक कहानी यहीं, ऐन हमारी आँखों के सामने घटित हो रही है। युवा राजा और उसकी मंगेतर को देखो! कितने ख़ुश हैं! राजा सिर्फ़ तीन दिन और जीएगा।

तीन दिन बाद ये तट पर लंगर डालेंगे। राजा की अगवानी के लए उसकी फौज, हाथी और घोड़े आएँगे। राजा की सवारी के लिए शाही घोड़ा भी तैयार होगा। पर यह घोड़े का रूप धरे एक राक्षस होगा। जैसे ही राजा घोड़े पर बैठेगा वह उसे लेकर आकाश में उड़ जाएगा और उसे समुद्र में गिरा देगा।”

मैना की आँखें डबडबा गईं, “तो विवाह से पहले ही राजकुमारी का सुहाग उजड़ जाएगा? कैसी सुंदर जोड़ी है! बेचारी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ेगा। क्या राजा किसी तरह बच नहीं सकता?” तोते ने कहा, “बच सकता है प्रिय, अगर कोई राजा के घोड़े को छूने से पहले ही घोड़े का सर काट दे। पर यह बात किसी से कहना मत! जो भी यह बात किसी से कहेगा उसका एक तिहाई शरीर पत्थर का हो जाएगा।” फिर तोता-मैना उड़ गए। यह सुनकर बूढ़ा मंत्री स्वामी के जीवन के लिए चिंतित हो गया। प्रसन्नचित राजा राजकुमारी के साथ चहलक़दमी कर रहा था। राजकुमारी का चेहरा भी ख़ुशी से दमक रहा था। उन्हें क़तई भान नहीं था कि कैसा भविष्य उनकी प्रतीक्षा कर रहा है।

अगले दिन तोता-मैना फिर आए और उसी स्थान पर बैठे। मंत्री ने उन्हें देखा और उनके पास जाकर बैठ गया। उनका एक शब्द भी वह अनसुना नहीं छोड़ना चाहता था। मैना ने पाटन पर टहलते राजा और उसकी मंगेतर को देखा और तोते से पूछा, “अगर राजा राक्षस-घोड़े से बच जाए फिर तो उन्हें ख़तरा नहीं है न? उसके बाद तो वे विवाह करके सुख से रहेंगे?” तोते ने कहा, “नहीं प्रिये, इतनी जल्दी मत करो! राजा और राजकुमारी शायद कभी सुख से न रह सकेंगे। राक्षस-घोड़े से वह बच गया तो विवाह समारोह में मर जाएगा। समारोह में राजा शुद्ध सोने की एक तश्तरी देखेगा। तश्तरी उसे इतनी अच्छी लगेगी कि वह उसे उठाएगा और विवाह करा रहे पंडितों को देने के लिए राजस्वर्णकारों को वैसी तश्तरियाँ बनाने का आदेश देगा। इसके थोड़ी देर बाद ही वह अचेत होकर गिर जाएगा और मर जाएगा। उस तश्तरी पर हलाहल चुपड़ा हुआ होगा। तश्तरी को छूने से हलाहल राजा की त्वचा में प्रवेश करके कुछ ही देर में उसके प्राण ले लेगा।” मैना फिर व्याकुल हो गई, “राजा के प्राण बच नहीं सकते?” “अगर कोई कपड़े से तश्तरी को उठाकर दूर फेंक दे तो राजा बच सकता है। पर याद रखना, यह बात किसी से कहना मत, नहीं तो तुम्हारा एक तिहाई शरीर पत्थर का हो जाएगा।” यह कहकर तोता-मैना उड़ गए। मंत्री गहन चिंतन में डूबा नहीं बैठा रहा।

अगला दिन समुद्रीयात्रा का आख़िरी दिन था। अपने अंतस् में रहस्य को दबाए हुए मंत्री गलही में आ बैठा। उसे लगता था कि तोता-मैना आज फिर आएँगे और वे आए भी। मैना ने तोता से पूछा, “अगर राजा ज़हर लगी तश्तरी से बच गया तब तो वह राजकुमारी के साथ सुख से जी सकेगा न?” “नहीं प्रिये, राजा अधिक नहीं जीएगा। राजकुमारी के भाग्य में दुख ही लिखा है। विवाह के उपरांत दूल्हा-दुल्हन शाही शयनकक्ष में सोने जाएँगे। जब वे गाढ़ी नींद सो जाएँगे तो छत से लटके एक साँप के मुँह से ज़हर की एक बूंद दुल्हन के गाल पर टपकेगी। जब राजा की आँख खुलेगी और वह दुलहन के गाल को चूमेगा तो उसके प्राण पखेरू उड़ जाएँगे।” मैना का मन अनुकंपा से भर गया। पूछा, “सुहागरात के इस भयानक अंत को रोकने का क्या कोई उपाय नहीं है?” तोते ने कहा, “एक उपाय है प्रिय! अगर कोई सुहागकक्ष में छुप जाए और दुलहन के गाल पर ज़हर की बूँद गिरते ही उसे चाट ले तो राजा बच जाएगा और ज़हर चाटने वाला भी नहीं मरेगा अगर वह तुरंत एक पाव दूध पी ले। पर सुहागकक्ष में छुपने का साहस कौन कर सकता है! लगता है राजा की मौत टल नहीं सकती। सुनो प्रिय, अगर तुमने यह बात किसी को बताई तो तुम्हारा एक तिहाई शरीर पत्थर का हो जाएगा।” इतना कह कर तोता-मैना उड़ गए।

मंत्री ने मन ही मन प्रण किया कि अपना बस चलते वह स्वामी का बाल भी बाँका नहीं होने देगा, चाहे इसमें उसके प्राण ही क्यों न चले जाएँ। चिंतित मंत्री ने निश्चय किया कि वह एक पल के लिए भी राजा को दृष्टि से ओझल नहीं होने देगा। जहाज़ के तट पर पहुँचते ही राजा नीचे उतरा और राक्षस-घोड़े की ओर बढ़ा। इससे पहले कि वह उस पर बैठ पाता मंत्री ने म्यान से तलवार निकाली और एक ही झटके में घोड़े का सर धड़ से अलग कर दिया। राजा की भुकुटियाँ तन गई। राजा ने उससे इसका कारण पूछा, पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। इससे राजा का क्रोध और भड़क गया। मंत्री जानता था कि इसके बारे में उसने एक शब्द भी कहा तो उसका एक तिहाई शरीर पत्थर का हो जाएगा। मंत्री का व्यवहार राजा को बहुत अजीब लगा। पर उसने बहुत ही स्वामीभक्ति से उसके कुल की सेवा की है। इसलिए उसने उसे क्षमा कर दिया।

विवाह की भव्य तैयारियाँ की गईं। विवाह में शामिल होने के लिए दूर-दराज देशों से अतिथि आए। विवाह समारोह में राजा की नज़र सोने की एक सुंदर तश्तरी पर पड़ी। उसे उठाने के लिए राजा ने ज्यों ही हाथ बढ़ाया त्यों ही मंत्री ने लपक कर उसे उठाया और उसे बहते नाले में फेंकने के लिए भागा। राजा की समझ में नहीं आया कि मंत्री ने ऐसा क्यों किया। राजा के पूछने पर भी उसने होंठ नहीं खोले। राजा आग-बबूला हो गया। पर इतने अतिथियों के सामने उसने कुछ कहना-करना उचित नहीं समझा।

विवाह संपन्न होने के उपरांत दूल्हा-दुल्हन शयनकक्ष में जाकर सो गए। उन्हें पता नहीं था कि वहाँ मंत्री पर्दे के पीछे छुपा हुआ है। मंत्री पूरी तरह चौकन्ना था। थोड़ी देर बाद छत से एक साँप नीचे उतरा और सोई हुई दुल्हन के गाल पर ज़हर की बूँद गिराई। मंत्री तत्काल पलंग की ओर बढ़ा, दुल्हन के गाल पर से ज़हर चाटा और साथ लाया दूध पी गया। इससे दुल्हन की नींद उचट गई। उसने आँखें खोलीं। उसे लगा कि मंत्री ने उसके गाल को चूमा है। उसने चिल्लाकर राजा को जगाया। अपने शयनकक्ष में मंत्री को देखकर राजा ग़ुस्से से पागल हो गया। उसने पहरेदारों को बुलाकर आदेश दिया कि इसे कारागार में बंद कर दें और सूरज निकलते ही नगर की प्राचीर पर इसे फाँसी लगा दें।

पहरेदारों ने मंत्री को कारागार में डाल दिया। सुबह अंतिम इच्छा पूछे जाने पर मंत्री ने कहा कि मरने से पहले वह महाराज से मिलना चाहता है। राजा उससे मिलने से इंकार न कर सका। जंजीरों से जकड़े मंत्री को राजा के सामने लाया गया। वहाँ उसने राजा को सारी बात बताई। जैसे ही उसने बताया कि कैसे तोते ने असुर-अश्व की बात किसी को बताने से मना किया था उसके हाथ और पाँव संगमरमर के हो गए। फिर हलाहल से पुती तश्तरी की बात बताने से वह छाती तक संगमरमर का हो गया। अंत में छत में छुपे साँप के ज़हर टपकाने की बात कहने पर उसके कंधे और सर भी संगमरमर के हो गए।

राजा सन्न रह गया। कुछ पल उपरांत धक्के से उबरने पर वह फूट-फूटकर रोने लगा। स्वामीभक्त मंत्री की परिणति पर उसका हृदय फटा जा रहा था। मंत्री की पथराई हुई देह को उसने अलग कक्ष में रखवाया, उसे मालाएँ पहनाई और उसकी पूजा करने लगा।

कुछ बरस पश्चात रानी ने पुत्र को जन्म दिया। राजा हर दिन राजकुमार को उस कक्ष में ले जाता जहाँ मंत्री की पाषाण देह रखी हुई थी। वह उसे दिवंगत मंत्री की स्वामीभक्ति और उसके उपकार के बारे में बताता। एक दिन जब राजकुमार तीन साल का हो गया तो वे ही तोता-मैना जिन्होंने जहाज़ पर राजा के बारे में भविष्यवाणी की थी, उस कक्ष में आए और बातचीत करने लगे। राजा इस समय उनकी बोली समझ सकता था क्योंकि वह मंत्री की मूर्ति के पास खड़ा था। तोते ने मैना से कहा, “देखो, राजा कितना दुखी है ! मंत्री के साथ जो हुआ उसे वह भुला नहीं पा रहा। अगर राजा चाहे तो मंत्री फिर ज़िंदा हो सकता है।” मैना ने पूछा, “कैसे, कैसे?” तोते ने जवाब दिया, “राजा को अपने बेटे की बलि देनी होगी और उसके ख़ून के छींटे मंत्री की मूर्ति पर डालने होंगे। इससे मंत्री फिर हाड़-माँस का हो जाएगा।”

राजा सोच में पड़ गया। वह क्या करे? क्या करना उचित होगा? वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि उसका रोम-रोम मंत्री का ऋणी है। उसने तीन बार उसके प्राण बचाए। इससे पहले कि उसका मन डवाँ-डोल हो जाए, उसने म्यान में से तलवार निकाली और राजकुमार का सर काट दिया। फिर उसका खून उसने मूर्ति पर छिड़का। मंत्री तुंरत जी उठा। यह जानकर कि उसे पुर्नजीवन कैसे मिला, मंत्री ने संपूर्ण चेतना से भगवान का स्मरण किया। ऐसी प्रार्थना की भगवान अनदेखी कैसे करता? बच्चे का सर आप ही धड़ से जुड़ गया और वह उठकर खड़ा हो गया। मानो नींद से उठा हो। तब राजा ने रानी को बुलाया और उसे सारी बात बताई। वह यह सुनकर काँप गई कि उसके पति ने स्वयं अपने पुत्र का सर काटा। पर उसने यह स्वीकार किया कि राजा के पास और कोई चारा नहीं था। जो हो, मंत्री की प्रार्थना और भगवान की कृपा से राजकुमार फिर जीवित हो गया था। राजा, रानी और राजकुमार ने बहुत लंबी आयु पाई। वे जब तक जीए सुख से जीए। ऐसा मंत्री जिनका सलाहकार हो उन्हें कोई कष्ट हो भी कैसे सकता है!

(साभार : भारत की लोक कथाएँ, संपादक : ए. के. रामानुजन)

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