आसरा (कहानी) : वारणासि नागलक्ष्मी
Aasra (Telugu Story in Hindi) : Varanasi Nagalakshmi
रात के आठ बजे थे।एक फैशन मैगजीन के कार्यालय में कंप्यूटर के सामने बैठकर एक सुंदर लडकी के फोटो को फोटोशॉप के जरिए निखार रही थी एक पच्चीस साल की युवती।उसकी आंखों में लगन, काम को अच्छी तरह पूरा करने का निश्चय झलक रहे थे।
मोडल रागिनी की तसवीर स्क्रीन के एक कोने में सेट थी।स्क्रीन के बीच में जो तसवीर थी वह उस फोटो से मिलती जुलती होने के बावजूद वह किसी प्रसिद्ध चित्रकार की पैंटिंग सी लग रही थी।इस फोटोशॉपिंग के काम में माहिर होने के कारण ही वह युवती मल्टीमीडिया के क्षेत्र में काफी नाम कमा चुकी थी।
सुबह से उसी फोटो के साथ बैठी वह तरह तरह के फिल्टर इस्तेमाल करके उसमें अच्छा एफेक्ट लाने की कोशिश कर रही थी।इस तरह एक से लेकर दस तक कई अलग अलग चित्र तैयार करने के बाद सातवें और दसवें चित्र के बीच किसे लिया जाए , यही सोचती बैठी थी कि इतने में उसका मोबाइल बजा।एक पल केलिए वह समझ नहीं पाई कि उसीका मोबाइल बज रहा है पर रिंग टोन अलग था।फिर उसे ऑन करके कान से लगाया।
"हाई स्वीटी!" धीमी आवाज ने मुस्कुराते हुए कहा।
"हां बोलो ... तुम क्यों मेरे सेल में बार बार रिंग टोन बदलते रहते हो? मुझे दिक्कत होती है ना?" युवती ने कहा।उसकी आवाज में थोडा गुस्सा था और थोडा प्यार।उसकी सवाल पर प्रमोद हंस दिया।
रोज तुम्हें याद करते ही जो गाना मन में आता है उसे रिंग टोन में सेट कर देता हूं।पर दिक्कत क्या है? यह फोन तुम्हें सिर्फ मुझसे बात करने केलिए ही दिया है ना मैंने?
" यह सब छोडो,पहले यह बताओ फोन क्यों किया?" पूछते हुए आखिर दसवीं तसवीर को उसने क्लिक कर दिया।
"जानती हो अब आठ बज चुके हैं? अभी तक काम कर रहे हो?"
" हां पूरा नहीं हुआ...मतलब अभी अभी पूरा होने को है।"
"किसका फोटो? सुबह रागिनी की तसवीर लेकर बैठी थी ना? "
"वही तो कर रही हूं।"
"अरे अभी खत्म नहीं हुआ? इतनी देर क्यों? पहले एक घंटे में दो दो खत्म कर देती थी? पूरा दिन एक ही को लेकर बैठी हो और वह भी ओवर टाइम? ऐसी क्या खास बात है भई?"
" पता नहीं दस अलग अलग तसवीरें सेट की ,एक भी नहीं जंचा।पर कुछ ही देर में मिल रहे हैं न? फिर फोन पर यह बहस क्यों?बेकार पैसा मत खर्च करो...फोन रखो.." कम्प्यूटर से लगी सूपर पेन से पैड पर हल्की लकीरें खींचते हुए कहा।
" अब रहने दो ना स्वीटी। मैं तुम्हारे दफ्तर आ रहा हूं।दोनों साथ निकलेंगे।"
"अब तुम्हें इतनी दूर आने की क्या जरूरत है प्रमोद? मैं दफ्तर की गाडी में पहुंच जाऊंगी।"
" सवाल ही नहीं उठता भई।रागिनी को 'सेव' करके मशीन बंद कर दो और मेरा इंतजार करो।बस तुम्हारे दफ्तर के गेट पर हूं!" कहकर उसने मोबाइल बंद कर दिया।वह मोनालिसा की तरह मुस्कुराकर फिर काम में लग गई।
प्रमोद उसके कैबिन में आ गया। उसे देखते ही बोली," प्लीज दो मिनट रुको।"
"इस फोटो में ऐसा खास क्या है? घंटों इसी में लगी हो? फिर उसने वही सवाल पूछा।
"छोडो ना ,क्या करोगे जानकर?"
"नहीं छोडूंगा।बताना ही पडेगा!" उसकी आंखें युवती के चेहरे पर टिकी थीं।
एक पल केलिए उसके चेहरे पर काला साया सा फैलकर हट गया।" कभी किसी रागिनी केलिए जो समय नहीं निकाल सकी,वह इस रागिनी पर खर्च करना चाहा था...इस तसवीर को शाश्वतता देना चाहा..." उसकी बात खत्म होने से पहले बिजली गुल हो गई।एसी बंद हो गई।बत्तियां एक बार टिमटिमाकर इन्वर्टर की मदद से फिर जलने लगीं।यूपीएस की मदद से कंप्यूटर अपना काम बेरोक करता जा रहा था।
" शुक्र है इस यूपिएस की वजह से इतने घंटों का मेरा काम बेकार नहीं गया। न जाने किसने ईजाद किया था इसे!" उसने कहा,तभी कंप्यूटर के परदे पर रागिनी की तसवीर उभरकर आई।तृप्त होकर उसने उस तसवीर को देखा, उसे सेव किया और कंप्यूटर बंद करके प्रमोद से कहा,"अब चलें?"
दोनों बाहर निकलकर गाडी की ओर चले। गाडी में बैठकर घर की ओर जाते हुए उसने सोचा, अच्छी नौकरी है, प्यार करने वाला पति है। अपनी अलग पहचान भी बना चुकी हूं , जिंदगी में और क्या चाहिए मुझे ! वह सीट पर सिर टिकाकर बैठी बीते दिनों को याद करने लगी।
सीधे अपनी मां के पास जाइए और उन्हें सबकुछ बता दीजिए," प्रियंवदा की आंखों में देखते हुए मधुकर ने कहा।अंदर असहनीय पीडा का अनुभव करते हुए भी प्रिया निश्चल रहने की कोशिश कर रही थी।सबकुछ जान गया था मधुकर। ऐसे में उसके सामने बैठना ही दूभर हो गया था। न जाने क्या सोचता होगा मेरे बारे में!उन दोनों से कुछ ही दूरी पर हाथ मलता,होंठ चबाता बैठा था श्रीकर।वह ऐसी मुश्किल में अब फंसा था कि पहले जो दैहिक आकर्षण, स्पर्श सुख के लिए तडपना, उसीको प्यार समझ लेना, ये सब ... पहले जो थ्रिल्लिंग लगते थे,अब उनसे घिन आ रही थी ! पर देर हो चुकी थी।क्षणिक शारीरिक सुख , जल्द्बाजी में की गई गलती इस तरह 'प्वायिंट ऑफ नो रिटर्न ' तक लाकर छोडेगा,यह मालूम नहीं था।प्रिया के दिल में दुःख,वेदना और डर हिलोरें ले रहे थे।श्रीकर को देखते हुए सोचने लगी , इससे मैंने प्यार कैसे किया? जरा सी गडबड हो जाती तो घबराकर बडे भाई के पीछे छिप जानेवाला कायर है यह।अमीर बाप का बेटा,हीरो होंडा पर कालेज आता और शान दिखाता श्रीकर।वेलेन्टैन्स डे पर फूल देना , एक भी पैसा कमाने का सामर्थ्य नहीं पर प्यार की बातें करना...क्या मैं इस तरह का जीवन साथी चाहती थी? इसीलिए कहते हैं प्यार अंधा होता है।पर क्या यह असल में प्यार ही है?
"प्रियंवदा अब आप कुछ भी मत सोचिए।आप चुप होकर सोचने लग जाती हैं तो मुझे चिंता होती है।मैं आपके सामने लेक्चर झाडना नहीं चाहता।डरिए मत।जो हो गया उसे हम बदल नहीं सकते।उसीके बारे में सोचते रहने से कुछ नहीं होगा।मेरी सलाह मानिए और अपनी मां को सबकुछ साफ साफ बता दीजिए।वे पढी लिखी हैं और लेक्चरर हैं। हालात को समझकर आपको इस मुश्किल से बाहर निकलने का रास्ता बाता सकेंगी।वे आप्के पिता जी को समझा देंगी। अगर उनकी प्रतिक्रिया इससे उलटी रही तो आप फिर से निस्संकोच मेरे पास आ सकती हैं।मैं जरूर आपकी मदद करूंगा!" मधुकर ने तसल्ली दी।
प्रिया ने कुछ मिनट बाद आंख उठाकर श्रीकर को देखा।वह भी घबराया सा उसकी ओर देख रहा था।मन में उठती असहायता और डर को काबू में करते हुए प्रिया ने पूछा," तुम क्या कहते हो?"श्रीकर की असहायता और गुस्सा झुंझलाहट के रूप में बाहर आया।
"मैं क्या कहूं?गलती दोनों से हुई है।अब यह कहने की कोशिश मत करना कि सारा दोष मेरे अकेले का था!" वह तेज आवाज में बोला।
प्रिया को गुस्सा आया। श्रीकर से नफरत सी होने लगी।मधुकर वहां नहीं होता तो न जाने क्या जवाब देती।पर चेहरे पर कोई भाव दिखाए बिना उसने मधुकर की ओर देखा। देखना चाहती थी कि कहीं उसकी आंखों में मेरे प्रति बेइज्जती या नफरत तो नहीं है !
पर वहां तो विवेक और इज्जत ही दिखाई दी।उसका सारा ध्यान समस्या का समाधान ढूंढने में ही लगा हो जैसे।
"आइ हेट माइसेल्फ...शायद आपको भी मुझसे नफरत ही हो रही है..." प्रिया ने कहा।उसका चेहरा लाल हो गया।
"नो...नो...ऐसा कभी मत सोचिए।पर इस भयंकर अनुभव से आपने सबक जरूर सीखी होगी।अगर हमारी गलती की वजह से समाज हमें धिक्करने लगे तो उसे एक चुनौती के रूप में लेना चाहिए।ऐसे ऊंचा उठना चाहिए कि वही समाज हमारे सामर्थ्य को विस्मित होकर देखने लगे।" उसकी आंखों में झांकते हुए एक हिप्नोटिस्ट की तर कहा मधुकर ने। फिर आंखें उसके चेहरे से हटाते हुए मुस्कुराकर कहा,"आप सोचती होंगी कि आखिरकार मैंने लेक्चर झाड ही दिया! पर एक बात जरूर कहना चाहूंगा। आपके सामने एक समस्या है ,हिम्मत के साथ उसका सामना कीजिए।"
सहानुभूति से भरी मधुकर की बातें सुनकर ,केसेट देखने के बाद भी उससे इतनी इज्जत से बात करते देखकर , प्रियंवदा का दुःख बाढ की तरह उमड पडा।मुंह छिपाकर जोर जोर से रोने लगी।श्रीकर गुस्से से उठकर दो कदम चला और मुट्ठी कसकर मेज पर दे मारा और बाहर चला गया।श्रीकर का यह बर्ताव प्रिया के दिल में शूल की तरह चुभा।मधुकर चुपचाप बैठा रहा और प्रिया को रोने दिया।फिर धीरे से बोला," प्रियंवदा जी,अभी कुछ नहीं बिगडा।खुद को संभालिए।आंखें पोंछकर मुंह धोकर आइए।संभलकर घर जाइए।श्रीकर भी आपकी ही तरह टीनेज में है।आप दोनों अभी किशूरावस्था में हैं प्रियंवदा जी! उसकी प्रतिक्रिया को दूर्बीन से मत देखिए...अनुभव ही हमें परिपक्व बनाते हैं।"।
प्रिया ने धीरे से सिर उठाया और आंसू पोंछकर कहा," आइ एम सॉरी!" फिर उठकर मुंह धोकर आई और उसी कुर्सी पर बैठ गई।मधुकर रसोई में चाय बनाने गया था।तरह तरह के ख्याल मधुमक्खियों की तरह भिनभिनाने लगे। रागिनी क्या कर रही होगी?वह भी मेरे जैसे ही मुश्किल में फंसी है।उसका बॉय फ्रेंड केशव उससे भी बदतर हाल में है।उस कम्बख्त ने कहा था कि दस हजार देने पर वह केसेट दे देगा।दोनों सहेलियां बुरी तरह फंस गई थीं।प्रिया ने अपने गले में पहना सोने का चेन श्रीकर को देकर केसेट लेने को कहा।श्रीकर झूठ बोलकर अपने बडे भाई से पाम्च हजार मांगकर लाया और चेन बेचकर और पांच हजार जोडे और केशव को वह रकम दे आया।यह बात फोन पर प्रिया को बताई। तबतक प्रिया की नींद आंखों से दूर रही।
अगले दिन कालेज में श्रीकर उससे मिला और बताया केशव और बीस हजार यह कहकर मांग रहा है कि उस केसेट की कॉपी उसके पास है। सुनते ही प्रिया के होश उड गए।डर के मारे पसीने छूटने लगे।मर जाने की इच्छा हुई।घर पहुंची तो मां को इम्तहान के पेपर जांचते देखा। मां ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।वरना वह बेटी का चेहरा साफ पढ लेती। उस दिन प्रिया किसी तरह बच गई।
रातभर उसे भयानक सपने आते रहे।एक हफ्ते से डरी डरी रहनेवाली प्रिया को कल ही परिस्थिति का सही भान हुआ।कल तक हिम्मत से काम लेनेवाला श्रीकर एकदम ढीला पड गया।भविष्य अंधकारमय दिखने लगा।प्रिया की मां उसे बेटी कम और सहेली ज्यादा मानती थी।लाड प्यार करने वाले पिता...ये दोनों सचाई जानने के बाद क्या कहेंगे? रिश्तेदार और दोस्त मुझसे नफरत तो नहीं करने लगेंगे? दूर के रिश्ते का लडका हमेशा उसे छूने का मौका ढूंढता रहता था। अब वह कैसा बर्ताव करेगा?
उसके ख्यालों में खलल डालते हुए मधुकर की आवाज सुनाई दी," यह लीजिए चाय," चाय के साथ छोटी तश्तरी में बिस्कुट भी थे।
प्रिया ने मधुकर की ओर ऐसे देखा जैसे उसका सबकुछ लुट चुका हो। जब से वह आई है मधुकर उसे ध्यान से परख रहा था।न जाने उसकी आंखों में उसे क्या दिखा , एक पल केलिए वह सावधान हो गया। उससे कुछ दूरी बरतते हुए दूसरी कुर्सी पर बैठ गया और कहा," प्रियंवदा जी, आप होशियार हैं..." । पर प्रिया बीच में ही उसकी बात काटते हुए बोली," हां होशियार पर चरित्रहीन !" यह कहते वक्त उसके चेहरे पर पीडा झलक रही थी।
मधुकर ने सहानुभूतिपूर्ण मुस्कान के साथ कहा," चरित्र सिर्फ भौतिक नहीं होता।आप अभी छोटी हैं।गलती को सुधार सकती हैं।"
" अब वैसा मौका कहां मिलेगा?"
"आप पहले चाय पीजिए , फिर बताता हूं।" प्रिया के चाय पीने तक उसने इंतजार किया और कहा," दट्स गुड ! अच्छा,आप फौरन जाकर अपनी मां को ..."
फिर उसकी बात को काटते हुए उसने कहा," मां और पिताजी अगर इस बारे में जान लेंगे तो वहीं उनका दिल टूट जाएगा और मर जाएंगे , या लकवा मार जाएगा और जिंदगी भर खाट पर पडे रहकर मुझे कोसते रहेंगे।" उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे।
"कुछ देर पहले मैंने यही समझाया था कि जो अभी हुआ नहीं उसकी कल्पना करके खुद को तकलीफ नहीं देना।आपकी मां अबतक कितने सारे छात्रों को सिखाती रही हैं।वे आपकी हालत को भली भांति समझ जाएंगी।हां सुनते ही पहले उनपर गाज जरूर गिरेगी, दुख होगा।शुरू में उनकी प्रतिक्रिया गुस्से के रूप में भी होगी। वह सब दबने तक आपको इंतजार करना होगा।खुद पर काबू रखना होगा।"
" हम जो भी करते हैं उसके नतीजे का सामना करने केलिए तैयार रहना होगा। कायर की तरह भागना गलत है।" मधुकर ने मुट्ठी बांधकर ऊपर उठाकर कहा। यह देखकर रोते रोते प्रिया हंस पडी।फिर उसकी ओर देखकर " थैंक यू !" कहा और खडी हो गई।
"घर तक छोड दूं?" मधुकर ने उठते हुए पूछा।
"नहीं," कहती हुई वह जल्दी जल्दी दरवाजे पर पहुंच गई। मधुकर एक पल केलिए खडा सोचता रहा ,फिर दरवाजे के पास पहुंचकर कहा," ठहरिए, मैं छोड देता हूं," और गाडी निकालने लगा।
एक तरफ उसकी हमदर्दी पर आंखें बार बार नम होने लगीं और दूसरी तरफ यह शक परेशान करने लगा कि कहीं इसके मन में कोई गलत इरादा तो नहीं है !वह चुपचाप गाडी की पिछली सीट पर बैठ गई।घर पहुंचने से पहले मधुकर ने कहा," अब आप अपने लिए एक लक्ष्य बनाइए।मां , पिताजी या कोई और कुछ भी कहे मन कडा करके बर्दाश्त कर लीजिए।जिस रोज आप अपने लक्ष्य पर पहुंच जाएंगी, तब यह सब सिर्फ एक कडुई याद बनकर रह जाएगी।अगर घर में आपको ज्यादा विरोध मिले और आपको बेचैनी महसूस हो तो इस उलझन से बाहर निकलने में मैं आपकी मदद करूंगा।आल द बेस्ट!" उसने गाडी सडक के किनारे रोकी ।
गाडी से उतरकर एक बार फिर फीकी हंसी हंसते हुए प्रिया ने " थैंक्स" कहा।वह चला गया।
धीरे से ताला खोलकर घर के अंदर कदम रखने लगी तभी फोन की घंटी सुनाई दी।डरते डरते फोन का चोंगा उठाया।वहां से कोई आवाज नहीं आई तो दिल जोर जोर से धडकने लगा कि कहीं केशव तो नहीं?वह सांस रोके कुछ पल सुनती रही।फिर उसे वापस रखने ही वाली थी कि उधर से आवाज आई
"प्रिया !"
दुःख से भारी वह आवाज रागिनी की थी।
"सुबह तू कालेज नहीं आई।तुझे कई बार फोन किया था।सोमू अपनी मां की सेहत बिगडने की बात बताकर गांव भाग गया। कुछ नहीं सूझ रहा कि मैं क्या करूं..." फिर हिचकियां लेकर कुछ देर रोती रही रागिनी।फिर संभलकर कहने लगी," ...दस हजार...वह बदमाश केशव दस हजार मांग रहा है।वर्ना कालेज में सब स्टूडेंट्स को वह वीडियो के कॉपीज बेचने की धमकी दे रहा है।दस हाजार छोडो , मेरे पास सौ रुपये भी नहीं है प्रिया..." वह फिर रोने लगी।
"रागिनी रोना नहीं। दस हजार देकर भी इस शनीचर से हम पीछा नहीं छुडा पाए थे ना?यह पैसों से छूटनेवाला रोग नहीं है।हम पूरी तरह डूब गए...मैंने फैसला कर लिया कि मां को सारा मामला बता दूंगी।बाद में जो होना हो हो जाए..." अपनी आंखों में उभरे आंसुओं को पोंछते हुए कहा प्रिया ने।
"मैं घर में बता भी नहीं सकती।ऐसे जीने से तो मरना अच्छा।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता है,पर मरकर भी इस बदनामी से छुटकारा नहीं मिलनेवाला।हमारे मरने के बाद क्या होगा, लोग क्या कहेंगे,क्या सोचेंगे , इन सब बातों का ख्याल करने पर मरने की भी इच्छा नहीं होती।और कोई रास्ता न मिले तो तब पता नहीं क्या करूंगी..." चोंगा आंसुओं में भीग रहा था। प्रिया ने दरवाजे की ओर देखा।
रागिनी ने अचानक फोन काट दिया।प्रिया को लगा कोई आ गया होगा। भारी पैरों से अपने कमरे में गई और मां के मोबाइल का नंबर मिलाया।
" बोलो मेरी सोनी बेटी?"
मां की आवाज सुनते ही रोने का मन किया।
"प्रिया... बोलो क्या बात है?"
" कुछ नहीं मां,जल्दी घर आ सकोगी?"
"क्यों तबियत ठीक नहीं है? बस एक क्लास और है। पढाकर आऊं या पर्मिशन लेकर अभी आ जाऊं?"
" नहीं, पढाकर ही आना..." कहा और फोन काट दिया।घर में अकेली थी तो बिस्तर पर औंधी लेटकर, तकिये में मुंह छिपाकर जी भर रोई।
कालेज में प्रैक्टिकल कक्षाएं हो रही थीं।स्टाफ रूम में सुमती अकेली बैठी कुछ पढ रही थी।दरवाजे के पास आहट हुई तो उसने सिर उठाकर देखा।दुबला पतला लंबा सा बीस पच्चीस साल का लडका खडा था।उसने पूछा," क्या सुमती मैडम आप ही हैं?" "जी।"
वह अंदर आया और बोला," मैडम,मैं आपके एक छात्र का भाई हूं।आपसे कुछ बात करनी है।"
"अच्छा,आइए , बैठिए," सुमती ने बगल वाली कुर्सी दिखाई।
"आप जिसकी बात कर रहे हैं उसका नाम?"
"वह बाद में बताऊंगा मैडम ! आपसे सलाह मांगने आया हूं।"
"समस्या क्या है कहिए?" उसने मुस्कुराकर पूछा।
"घर में मेरी बहन के साथ बडे लाड प्यार से पेश आते हैं।" मेज पर पडे पेपर वेइट को घुमाते हुए लडके ने कहा।
सुमती ने लडके की ओर ऐसे देखा मानो कह रही हो कि आगे बोलो।
"कालेज मे कोई प्रॉजेक्ट दिया गया था जिसके लिए ्चार लोगों की इनकी टीम इंटरनेट सेंटर में जाती रही।"
सुमती ने भौंह सिकोडकर कहा ,"फिजिक्स में ऐसा कोई प्रॉजेक्ट तो नहीं दिया गया?"
"फिजिक्स नहीं मैडम, कंप्यूटर्स।"
"अच्छा,कंप्यूटर्स विभाग तो अगली बिल्डिंग में ..."
उनकी बात पूरी होने से पहले लडके ने कहा,"मैडम, मेरी बहन आपको बहुत मानती है।आपके लिए उसके मन में बहुत आदर है।इसीलिए आपके पास आया हूं।"
सुमती ने हैरान होते हुए पूछा," क्या आप प्रशांती के भाई हैं?"
लडका एक पल चुप रहा और फिर परेशान सा बोला," क्या अभी नाम बताना जरूरी है मैडम?"
बहन के प्रति उसका प्यार देखकर सुमती को अच्छा लगा,पर फिर भी वह बात अजीब भी लगी।" नाम जाने बिना मैं मदद कैसे कर सकूंगी?" उसने पूछा।
"उस उम्र के लडके लडकियों के बारे में आपको विस्तार से बताने की जरूरत क्या है मैडम? शारीरिक सामीप्य और प्यार में वे फर्क नहीं कर सकते!"
सुमती ने सिर हिलाकर हामी भरी।
"मेरी बहन उस टीम में एक लडके से दोस्ती करके उसीको प्यार समझने लगी और उससे मेल जोल बढा लिया।"
सुमती का मन इसी सोच में उलझा था कि कौन हो सकती है इसकी बहन?
"उस सेंटर में पता नहीं क्या प्रॉजेक्ट वर्क किया,पर लगता है कुछ अश्लील वीडियो वगैरह देखने लगे थे...दोनों ने नेकिंग ,वही गले मिलना शुरू कर दिया," लडका कहने में झिझक रहा था शायद इसीलिए खिडकी से बाहर देखते हुए यह सब बताया।
" ओ...नो ..." सुमती ने कहा।
"....." लडका चुप रहा।
" कम से कम अब आप अपने माता पिता को यह सब बताइए।लडका और लडके को एक साथ बिठाकर काउन्सेलिंग दिलवाइए।ऐसी बातों में देर करना ठीक नहीं।एक बार भटक गए तो जिंदगी भर उसका नतीजा भुगतना पडेगा।सिर्फ वे दोनों ही नहीं,दोनों परिवारों पर भी असर पडेगा।"
" पहले ही कुछ देरी हो गई मैडम।वह इंटरनेट सेंटर वाला बडा कमीना निकला।इनकी जानकारी के बिना दोनों का वीडियो शूट किया।
"हाय...तो फिर?" दूसरों की तकलीफ के बारे में आम तौर पर लोग जिस तरह की प्रतिक्रिया दिखाते हैं वैसा ही सुमती ने भी किया और क्लास का समय हो जाने से किताबें समेटने लगी।
सुमती को गौर से देखते हुए लडके ने कहा," पिछले हफ्ते ये सेंटर गए तो उन्हें यह कैसेट दिखाकर वह बदमाश ब्लैकमेल करने लगा।उसने दस हजार मांगे तो दोनों के होश उड गए...घर में न बताकर किसी तरह वह पैसा लाकर दिया और कैसेट ले लिया।"
"अब आप अपनी बहन पर नजर रखे रहिए।इस वाकये से सबक तो सीख ही गई होगी।अब आप ही अपने पेरेंट्स को बता दीजिए...ठीक है अब क्लास का समय हो गया,मुझे जाना होगा," सुमती ने कहा।
"पर बात वहां खत्म नहीं हुई मैडम।वर्ना मैं आपके पास नहीं आता।"
"तो?"
"चार दिन बाद दूसरा सीडी दिखाकर उसने फिर बीस हजार मांगे।"
" अरे, यह तो दल दल की तरह लगती है।बच्चे ऐसी समस्या से जूझ नहीं सकेंगे।बडों को मैदान में उतरना ही होगा।मेरी बात मानिए और दोनों के मां बाप को मामले के बारे में बताइए।"
"मेरे पिताजी जी बदनामी झेल नहीं पाएंगे,मैडम।मेरी बहन को मार डालेंगे!"
सही परवरिश नहीं करते और जब बच्चे गलत रास्ते पर जाने लगते हैं तो उनके साथ ऐसा शत्रुओं जैसा बरताव करने लगते हैं,' मन में ऐसे मां बाप की निंदा करते हुए सुमती ने कहा," उस लडकी को मार डालने से इज्जत बच जाएगी?"
"मार डालेंगे का मतलब सचमुच ऐसा नहीं करेंगे न मैडम!उसे मारेंगे,पीटेंगे, खरी खोटी सुनाकर जीना हराम कर देंगे।"
"पर आपकी बहन ने जो किया है, मां बाप का दिल जो दुखाया है ,उसके लिए इतनी सजा तो भुगतनी ही पडेगी," बडी निष्ठुरता से सुमती ने कहा।
सुमती की तरफ एकटक देखते हुए लडके ने कहा," हमारे जीवन न्याय के नियमों पर नहीं चलते हैं न मैडम!अभी मेरी बहन शर्म और डर के मारे शायद आत्महत्या की बात सोच रही हो तो?मां बाप की इस प्रतिक्रिया के कारण वह यह भी समझ सकती है कि अब इस दुनिया में उसे सहारा देनेवाला कोई नहीं बचा।ऐसे में घर में और बाहर अपमान और दुत्कार सहते हुए जीने से मर जाना अच्छा समझकर..."
इतने में टन्न करके घंटी बजी।
सुमती ने कहा," अब मुझे जाना होगा।तुम्हारी बहन के बारे में जानकर दुःख हुआ। पता नहीं मुझे यह सब तुमने क्यों बताया,पर जिसका तुम जैसा भाई हो उसे कभी बेसहारा नहीं महसूस होगा।अब चलती हूं," कहकर सुमती दरवाजे की ओर मुडी।
"एक मिनट मैडम।"
इस बार सुमती कुछ झुंझलाकर बोली," क्लास में देर से पहुंचना मुझे पसंद नहीं। वैसे भी ये सब बातें अपनों से करके उनकी मदद लेना ज्यादा बेहतर होगा," उसने ऐसे अंदाज में कहा जैसे अब इस विषय पर उसे कुछ भी नहीं सुनना या कहना है।
" सॉरी मैडम।इस विषय में आपसे ज्यादा अपना कोई नहीं होगा।मैं जिस बहन की बात कर रहा हूं वह और कोई नहीं,आप ही की बेटी प्रिया है," कहकर लडका भी खडा हो गया।
सुमती ठिठक गई ।आंखें फाडकर लडके की तरफ देखते हुए उसने पूछा, " मेरी बेटी? तुम क्या पगला गए हो? मेरी बेटी इस कालेज में नहीं पढती," उसने गुस्से को काबू में करते हुए कहा।
"जानता हूं मैडम।पर मैंने जो कुछ बताया वह आपकी बेटी प्रिया के बारे में ही है।"
यह बात हजम होने में सुमती को कुछ देर लगी। मेरी प्यारी प्रिया, हमेशा सही बर्ताव केलिए जानी जानेवाली मेरी लाडली। इतनी बडी हो जाने के बावजूद मेरी गोदी में सिमटकर ,मुझे चूमते हुए "आइ लव यू!" कहनेवाली मासूम बच्ची !उसे यकीन नहीं हो रहा था।उसने लडके की ओर आंखें तरेरकर देखते हुए पूछा," यह क्या कोई खेल खेल रहे हो मुझसे?"
सुमती के चेहरे पर तेजी से बदलते भाव देखकर ," काश यह खेल ही होता।सचाई है इसी बात का तो दुःख है !"
" क्या वह सेंटर में प्रिया के साथ जो लडका था वह तुम्ही हो?" नफरत भरी नजरों से लडके को देखते हुए उसने पूछा।
"जी नहीं, मेरा छोटा भाई है।"
उस एक पल में सुमती के मन में हजारों सवाल उठने लगे। ये सब मिलकर कोई तिकडम तो नहीं भिडा रहे हैं?मेरी मासूम बच्ची को पता नहीं क्या कहकर फंसा लिया?"
"आइ एम सॉरी...वेरी सॉरी..."
"तुम क्यों सॉरी कहते हो?" जवाब गोली की तरह आया।
"मेरे मुंह से यह सब सुनना आपको बहुत पीडा देगा यह मैं जानता हूं।"
" अगर यही सच है तो...तो फिर...तू बताने क्यों आया?" गुस्सा बढ जाने से सुमती के बोल रुक रुककर आ रहे थे।
उसने सोचा सुमती खुद को संभाल ले, तबतक चुप रहना ही ठीक होगा।
"बोलो, किस मकसद से यहां आए? सीधी सादी लडकी को फंसाकर ऊल जलूल बातें सिखाईं...उसके साथ ...तुम लोग क्या करना चाह्ते थे...!" गुस्से से वह कांपने लगी।
"मैडम, खुद को संभालिए, प्लीज।जितनी भोली आपकी बेटी है उतना ही भोला मेरा भाई भी है। दोनों टीनेज में हैं..."
उसे तर्जनी दिखाते हुए वह बीच में कह उठी," चुप...मुंह बंद रखो...गली के आवारा जैसे तू और तेरा भाई ...मेरे प्रिया से तुलना कर रहे हो? और उस लफंगे का भाई तू मुझे पाठ पढा रहा है और भाई की तरफदारी कर रहा हि?" सुमती का चेहरा तमतमा उठा।वह जानता था कि सुमती की ऐसी ही प्रतिक्रिया होगी,फिर भी उसे गुस्सा आ गया।
"मैडम, इस तरह की बातें मैं भी कर सकता हूं।क्या पता आपकी बेटी ने ही मेरे भाई को फंसाया हो? उससे शादी करने के इरादे से उसके पीछे पड गई हो? उससे एकांत में मिलकर उसे लुभाने की कोशिश की हो? फिर आप मुझे क्या जवाब देंगी?" गुस्से को दांत भींचकर काबू में रखते हुए लडके ने कहा।
सुमती की सारी हवा निकल गई।वह पागलों की तरह लडके को देखती रह गई।
"आप आवेश में आकर असली समस्या को भूल रही हैं।ये दोनों नासमझ समस्या में फंस गए, यह सच है।पर उससे कहीं बडी समस्या यह है कि इस दलदल से इन्हें बाहर कैसे निकाला जाए।"
सुमती वहीं जमीन पर बैठ गई और दोनों हाथों से अपना सिर पकड लिया।
"कल शाम को मेरी मां और पापा शादी मे गए थे। मेरा भाई सिर दर्द का बहाना करके बिना खाए सोने चला गया तो मैं उसे उठाकर थोडा खाकर सोने को कहने उसके कमरे में गया। उसके चेहरे पे आंसुओं के धब्बे देखकर जोर देकर पूछा तो सारी बात उसने बता दी।हमारे वीडियो केमेरे में वह मिनी कैसेट चलाकर देखा ।दोनों गले लगकर एक दूसरे को चूम रहे थे...बस और कुछ नहीं..." इतना बताकर वह रुका और कुछ पल बाद फिर कहा," मुझे भी पहले आप ही की तरह बहुत गुस्सा आया।
" कुछ सच ऐसे होते हैं जिन्हें सुनने से बडा दर्द होता है।मेरे भाई श्रीकर की बातों में अपने किए पर पछतावा, मां और पापा को पता चलेगा तो क्या होगा ,इस बात का डर,और उसके साथ प्रिया का भी बदनाम होने का दुःख ,ये सब मुझे महसूस हुए।रात को लेटकर उन दोनों के बारे में सोचता रहा। श्रीकर कालेज नहीं गया, मुझे लगा प्रिया भी नहीं गई होगी।"
सुमती को पिछली रात बेटी का अजीब सा बरताव याद आया। वह उससे दूर दूर ही रही।सुबह मां बेटी दोनों को कालेज जाने की जल्दी होती है इसलिए बातें लगभग होती ही नहीं हैं।पर शाम को अक्सर दोनों बैठकर इधर उधर की बहुत सी बातें करती हैं।प्रिया के पिता को हमेशा दफ्तर के काम से बाहर ही रहना पडता है। सुमती ने चिंत्त होकर मन ही मन सोचा,' हमारी परवरिश में गलती कहां हुई?'
कमरे के बाहर दो लडके दिखे तो क्लास का ध्यान आया।उन्हें यह बताकर भेज दिया कि आज क्लास नहीं ले सकती।लडके की ओर देखा जैसे कह रही हो,'आगे बताओ !'
"मां स्कूल चली गई और मैं दफ्तर से छुट्टी लेकर श्रीकर के साथ घर पर रुक गया।उसके साथ बैठकर बातें करने लगा तो तभी प्रिया हमारे घर आई..."
"क्या तुम्हारे घर आई थी? क्या पहले भी आया करती थी?" जैसे चाबुक की चोट लग गई थी सुमती को।
"नहीं मैडम, मैंने उसे बहुत कम बार देखा है।श्रीकर मुझे सब बातें बताता है,मुझसे कुछ नहीं छुपाता,पर प्रिया के बारे में कभी नहीं बताया। उसे देखकर वह भी हैरान हो गया।"
सुमती का चेहरा अपमान से तमतमा उठा।
"प्रिया बहुत परेशान हुई होगी।इसके बारे में किससे बात करती? शायद श्रीकर से बात करना ही ठीक समझकर तुम्हारे घर आई होगी।"
"मैंने प्रिया को बहुत समझाया कि इस मामले के बारे में आपको बताए और आपके साथ बैठकर सोचे कि आगे क्या करना है और आपसे मदद ले।वह मेरी बात मान गई।"
" मैं? मैं क्या मदद कर सकती हूं? खुद आग लगाकर तडपने लगे तो मुझसे क्या होगा?"
"ऐसा मत कहिए।आप ही प्रिया के पापा को इसके बारे में समझा सकेंगी।मेरी जानकारी में एक एसीपी है,उससे बात करूंगा।मेरे पापा और मम्मी से भी बात करूंगा। आप भी जरूर किसी बडे आदमी को जानती होंगी जो मदद कर सकता हो।"
सुमती अभी बीती घटना में ही अटकी हुई थी। आगे क्या करना है,उसे बेटी की मदद किस प्रकार करना है,ये सब बातें वह नहीं सोच रही थी।अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि प्रिया ने ऐसा काम किया होगा।अगर सचमुच उसकी बेटी ने ऐसा किया है तो वह मार मारकर उसके गाल लाल कर देगी...इससे पहले फूल सी बच्ची पर कभी हाथ नहीं उठाया था उसने !
"मैडम ,घर जाकर अपनी बेटी की पूरी बात पहले सुनिए।आप का मन करेगा उसे मारूं,पीटूं,आडे हाथों लूं और घर को सिर पर उठा लूं।वह सब करने के बाद कल सुबह आपको अपनी जिम्मेदारी याद आएगी, पर शायद इट मे बी टू लेट!जब कोई लडकी यह समझ लेती है कि सारे रास्ते बंद हो गए तो वह खुदकुशी करने की सोचेगी, या घर छोडकर भाग जाएगी।आज के जमाने में दोनों में ज्यादा फर्क नहीं है।आप एक दिन की देरी करेंगी तो कुछ भी हो सकता है।बाद में पछताने से कोई फायदा नहीं होगा।"
"तो क्या मैं यह कहूं ,कोई बात नहीं बेटी मुझपर भरोसा रख,सबकुछ मैं ठीक कर दूंगी?" सुमती बिफर उठी।
"मैडम,मैं यह नहीं कहता आपका गुस्सा नाजायज है और नही प्रिया ने जो किया वह गलत नहीं ।पर जब बात का पता चलते ही आपकी जो प्रतिक्रिया होगी, वह बाद में ठंडे दिमाग से सोचने के बाद बदल जाएगी।अब ऐसा कुछ नहीं हुआ कि प्रलय आ जाए..."
" तुमको क्या फर्क पडेगा? चार दिनों में तुम्हारे भाई का यह कांड सब भूल जाएंगे...लडका जो ठहरा!पर एक बार लडकी बदनाम हो गई तो जिंदगी भर समाज उसे नोच खाएगा...इससे अच्छा है कि वह मर जाए।"
"कल सुबह आपका यह विचार बदल जाएगा।कल आप जैसा बर्ताव करनेवाली हैं,आज घर जाकर ऐसा ही बर्ताव कीजिए, मैडम...यही कहने मैं आपके पास आया..." तभी फोन की घंटी बजी।" मैं अपने दोस्त से बात करने के बाद आपको फोन करके मिलने आऊंगा, तबतक खुद पर काबू रखिए।अब चलता हूं," कहकर वह चला गया।
जब सुमती घर पहुंची तो देखा प्रिया रसोई में दूध उबाल रही थी।उसकी आंखें लाल और सूजी हुई थीं और चेहरा उतरा हुआ था।उसे देखते ही सुमती गुस्से से भर गई।अपमान और दुःख के भाव उमडे।उन्हें दबाकर नकली हंसी हंसते हुए बोली,"अच्छा मां केलिए कॉफी बनाया जा रहा है?" और जल्दी से बाथ रूम में चली गई।
" चलो बाहर बैठकर पीते हैं," कहा सुमती ने।दोनों बाहर बैठ गईं।मां की आंखें लाल हैं,इस बात पर गौर करके प्रिया ने पूछा," क्या बात है मां? इतनी उदास क्यों हो?" प्रिया के मन में एक तरफ दुःख था और दूसरी ओर और मां के प्रति प्यार । दोनों भाव हलचल मचा रहे थे।
"कुछ नहीं,कालेज के पॉलिटिक्स..."
"....."
"पर तुम भी तो उदास हो? क्यों, क्या हुआ?"
" मां अगर मैं कोई भयंकर गलती करूंगी तो क्या तुम मुझे माफ कर दोगी?" आंखें झुकाकर रुंधे गले से प्रिया ने पूछा।
सुमती के मन में बेटी केलिए प्यार या दया जैसे भाव नहीं थे।पर उसने कहा," तुम ऐसी गलती क्यों करोगी?"
अचानक मां की गोद में सिर रखकर रोते हुए प्रिया ने कहा," मुझे माफ कर दो मां...माफ करना ही पडेगा...चाहे फिर मुझे मार ही डालो तो भी कोई बात नहीं!"
एक पल केलिए सुमती मानों काठ हो गई थी।फिर श्रीकर का भाई मधुकर की बातें याद आईं।प्रिया की पीठ सहलाते पूछा," ऐसी कौन सी गलती कर दी प्रिया?"
" मां...एक आवारा लडका साइबर केफे में मेरे साथ बत्तमीजी कर रहा था और मैंने बिना कुछ कहे उसको मेरे गले लगने दिया...चूमने दिया...अपने किए की मुझे जो भी सजा मिले कम है मां... मैं मरने से नहीं डरती। शायद यही एक रास्ता है," प्रिया ने बिलखते हुए कहा।
अबतक सुमती ने जो वेदना मन में दबाकर रखी थी वह एकदम से उफान की तरह बाहर निकली।" क्यों किया ऐसा प्रिया? क्या हमने तुम्हें यही सिखाया था? अपने आप पर काबू नहीं रख सकती थी?"
"नहीं मां, आपकी कोई गलती नहीं है। उस वक्त मैं सबकुछ भूल गई...कुछ भी ध्यान में नहीं था।उसकी सुंदर हंसी, फिल्मी हीरो जैसा स्टाइल, मुझपर मर मिटने की उसकी मीठी बातें ,इन्हीं में मैं खो गई...जैसे बेहोशी का आलम था..."
सुमती चिंतित हो गई।" तो , तुम उसके साथ आगे भी कुछ कर बैठी क्या?" उसका दिल जोरों से धडकने लगा।
" नहीं नहीं...बस इतना ही..."
"क्यों किया प्रिया? पापा के बारे में नहीं सोचा? घर की इज्जत को कितनी अहमियत देते हैं वे? मैं भी बडे कालेज में लेक्चरर हूं मेरी बदनामी का ख्याल नहीं आया?"
" मैंने नहीं सोचा था बात इतना आगे बढ जाएगी।उसने मेरी उंगलियों में अपनी उंगलियां उलझाईं,हाथ थामा, मुझे बहुत अछा लगा बहुत सी लडकियां उसपर मरती हैं।उसे 'हार्ट थ्रॉब ' नाम भी दिया है।ऐसा लडका मुझे पसंद करने लगा तो गर्व महसूस हुआ..." प्रिया ने खुद से नफरत करने के अंदाज में कहा।
"घर में कंप्यूटर है ना,फिर वहां क्यों गई बेटी?"
" वह सॉफ्ट वेयर हमारे कंप्यूटर में नहीं है।कालेज के कंप्यूटर में है , पर वहां हमेशा लंबी लाइन लगी रहती है।हमारी टीम में दो लडके और दो लडकियां हैं।हम चारों काम जल्दी पूरा करने के चक्कर में सेंटर गए थे।"
" तो क्या चारों ने मिलकर काम नहीं किया?"
"पहले दिन साथ ही काम किया था।फिर सोचा दो अलग अलग सेट बनाकर काम करेंगे।श्रीकर ने ही कहा था,'मैं और प्रिया एक विषय पर करेंगे तुम दोनों दूसरे पर करो।'मैं सातवें आसमान पर पहुंच गई।मैंने सोचा मीठी मीठी बातें करते काम पूरा करेंगे।एक ही हॉल में अलग अलग कंप्यूटरों पर बैठने लगे तो सेंटर वाले ने हमसे कहा कि हमें दूसरे कमरे में जाना होगा क्योंकि हमारे कंप्यूटर में यूपीएस का प्रॉबलेम आ गया है।अब सोचती हूं तो लगता है कि हमें फंसाने केलिए पहले से उसने कोई प्लान बनाया था।हम अलग केबिन में बैठे तो थोडी सी घबराहट जरूर हुई पर वह शारारत भरी नजरों से मुझे देखने लगा तो मैं रोमंटिक मूड में चली गई।मैंने सोचा,' आइ नो व्हेर टु स्टॉप।'बीच बीच में वह अपना पैर मेरे पैर से टकराता, उंगलियां छूने लगता तो यह सब मजेदार खेल ही लगा था मुझे...बस..." यहां तक एक ही सांस में कहकर प्रिया फिर रोने लगी।
सुमती चुपचाप प्रिया के सिर पर हाथ फेरते सुनती रही।
"तीसरी बार मैं ही उतावलापन महसूस कर रही थी कब सेंटर जाएंगे और श्रीकर के साथ बैठने का मौका मिलेगा ! मुझे आशा थी कि वह 'आइ लव यू ' कहेगा... उस दिन मैंने जैसे ही माउस पर हाथ रखा उसने अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रखा और दबाकर क्लिक करने लगा। मुझे लगा यह गलत है पर मैंने अपना हाथ नहीं हटाया!"
"प्रिया अगर तुझे शादी करके घर बसाना पसंद था तो हम कभी आगे पढने केलिए जोर नहीं देते।यह सब करने की क्या जरूरत थी?" सुमती का गला भी भर आया।
यह सुनते ही प्रिया झट से उठ बैठी। आंसुओं से उसका चेहरा और आगे के बाल भीग चुके थे।उसने बहुत ही संजीदगी से कहा," मां, मैं सबकुछ साफ साफ बताऊंगी...कुछ भी नहीं छुपाऊंगी...चाहे तुम मुझसे नफरत करो या मारो पीटो..."
" हां प्रिया,मैं देख रही हूं कि तुम बिना डर के सचाई बता रही हो। जब हंसी मजाक में पापा ने अपने दोस्त के बेटे से तेरी शादी की बात की और दूर के रिश्तेदार के लडके का रिश्ता आया तो तूने मना करके इतना शोर क्यों मचाया था?"
"मां वह तो शादी की बात थी।शादी और रोमान्स में फर्क होता है।क्या मेरी उम्र की लडकियां शादी करती हैं?"
"तो प्रिया तुम्हें हमने ये संस्कार दिए? मुझे खुद पर शर्म आ रही है..."
"मैं जानती हूं मां।मुझे खुद हैरानी होती है कि मैं इतनी गई गुजरी हरकत कैसे कर बैठी!अपनी जिंदगी को दस दिन पीछे ले जा सकूं तो कितना अच्छा हो!"
"चलो जो हुआ उसे भूल जा।आगे से ऐसे काम न करने को ठान ली ना,यही काफी है।"
"मैंने पूरी बात अभी बताई नहीं मां।तुमने नहीं पूछा हमेशा मेरे गले में पडी रहनेवाली चेन कहां गई?"
"कभी कभी निकालकर दूसरा कुछ पहन लेती हो ना?"
मां के चेहरे से आंखें फेरकर दूर किसी पेड को देखते हुए प्रिया ने कहा," वह...वही, सेंटर का मालिक ...उसने चोरी से हमारा वीडियो शूट किया और दस हाजार देने पर कैसेट हमें देने की बात की।श्रीकर अपने घर से पांच हजार लाया।मैंने चेन बेचकर वे पैसे श्रीकर को दे दिए।दस हजार लेकर उसने कैसेट श्रीकर को दे दिया।यह एक हफ्ते पहले की बात है," प्रिया के गालों पर आंसू बहते जा रहे थे।
"एक हफ्ता पहले इतना सबकुछ हो गया पर तूने बताया ही नहीं?"
" खतरा टल गया था।मैंने सोच लिया अब कभी जिंदगी में ऐसी मुश्किल में नहीं पडूंगी।पर उस कमीने ने उस कैसेट से एक और सीडी बनाकर रख लिया था।यह हमें तब पता चला जब वह फिर से बीस हजार मांगकर ब्लैकमेल करने लगा...वह तो न जाने कितने सीडी बना लिए होंगे...अब उससे छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं..." प्रिया के होंठ फडकने लगे,चेहरा फक पड गया।
मधुकर ने बताया कि श्रीकर ने उसे वह वीडियो दिखाई थीौसने प्रिया से पूछा," वह कैसेट कहां है?"
"श्रीकर के पास है।"
" तू कैसी बुद्धू है प्रिया? जरा भी अकल नहीं है? श्रीकर भी तो पराया लडका है।उसके पास कैसेट छोडकर आराम से कैसे बैठी है तू?"
प्रिया फटी आंखों से कुछ देर मां को देखती रही।फिर उसकी आंखें भर आईं तो बोली," श्रीकर वैसा लडका नहीं है मां।और अगर वह कैसेट मेरे पास होगा तो भी क्या फायदा?जब तक उस बदमाश के पास सीडी की कॉपी है तबतक हम सेफ नहीं हैं ना?अब मैं पीछे जाकर जो कुछ हुआ उसे बदल तो नहीं सकती।अगर मेरे जान देने से यह सब उलझन सुलझ जाए तो मैं उसके लिए भी तैयार हूं!"
"कभी ऐसी बात जुबां पर मत लाना,प्रिया! तुम मां बनोगी तभी जानोगी कि ऐसी बात से मां बाप को कितनी पीडा होती है।बच्चे को खोने का दुःख जिंदगी भर सालता रहता है।एक मां कितने सपने देखकर बच्चे को जन्म देती है।कितनी तकलीफें हम्सी खुशी सहकर उसे बडा करती है।सालों बच्चों केलिए ही जीनेवाले मां बाप बुढापे में उनकी छत्र छाया में आराम करने के सपने देखते हैं।बच्चों की जान उनकी अपनी नहीं बल्कि जन्म देनेवाले मां बाप की है।उसपर उनका हक है।और ऐसे में उनके मरने का दुःख भी हमींको उठाना पडेगा? यह कैसा इन्साफ है?"सुमती की वेदना आवेग के रूप में बाहर आई।
प्रिया ने हतप्रभ होकर मां को देखते हुए पूछा," इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी तुम मुझसे पहले की तरह प्यार कर सकती हो?"
"प्रिया एक मां हर हाल में अपने बच्चों को प्यार करती है।गुस्से में,आवेश में आकर कभी आपा खोकर बच्चे से भले ही कह दे कि इससे अछा है तू मर जाती, पर दिल से ऐसा कभी नहीं चाहती।" प्रिया का चेहरा दोनों हाथों में लेकर आँखों में झांकते हुए बडे प्यार से सुमती ने कहा।प्रिया ने अपनी दोनों बांहें मां के गले में डाल दीं।
"मां...आइ लव यू...अब कभी मरने की बात मन में नहीं आने दूंगी।अपने किए का फल जैसा भी हो उसे बरदाश्त करूंगी।आगे से कोई भी काम करने से पहले सावधानी बरतूंगी।आप दोनों का सिर नीचा हो जाए, ऐसा काम तो बिल्कुल भी नहीं करूंगी...प्रॉमिस!" प्रिया ने भारी आवाज में कहा।
मां को सबकुछ बताने के बाद प्रिया का मन जरा हल्का हुआ तो थोडा सा खाकर सो गई।सुमती की भूख मिट गई।वह इस समस्या का समाधान ढूंढते हुए परेशान होने लगी।पति को फोन लगाया।बार बार कोशिश करने पर भी फोन ऑफ आ रहा था।इस तरह की समस्या को किसके साथ बांटे, यह भी समझ में नहीं आ रहा था।पल पल दिल का बोझ बढ रहा था। दस बजे फिर एक बार पति को फोन करके सोने का फैसला कर ही रही थी कि इतने में उसका मोबाइल बज उठा।उसने उठाया,पति का नहीं था।ऑन किया तो उधर से मधुकर की आवाज आई।उसने बेसब्री से कहा," मैडम,मैं हूं ,मधुकर!"
" देखो तुमसे कुछ मांगना चाहती हूं।तुम्हारे पास जो कैसेट है वह मुझे दे दोगे?" उसने बिनती की।
उधर से क्षण भर केलिए कोई जवाब नहीं आया।फिर मधुकर ने कहा," मैडम उसके बारे में आप निश्चिंत रह सकती हैं।अभी लाकर देने को कहेंगी तो ला दूंगा।आप इस तरह बिनती करके मेरा अपमान न कीजिए..." फिर थोडा रुककर पूछा," प्रिया कैसी है? ठीक तो है ना?"
" हां बहुत देर तक मुझे सारी बातें बताती रही।"
"मैंने भी पापा को सबकुछ बता दिया।वे समझदार हैं बात की संजीदगी को समझ गए।हम दोनों मेरे दोस्त,उस एसपी से मिलने गए।उसने कहा कि हम श्रीकर को बीस हजार देकर उस सेंटर में भेजें और उसके पीछे जाकर वे लोग वहां रेड करेंगे।"
सुमती सांस रोककर सुन रही थी।
"उसने तो प्रिया को भी श्रीकर के साथ भेजने की बात की थी।पर जबतक यह मामला रफा दफा नहीं हो जाता हम कोई रिस्क लेना नहीं चाहते।मीडिया के कानों तक बात पहुंच गई तो केमेरे ,माइक लेकर आ जाएंगे और हंगामा करेंगे।इसीलिए प्रिया को इससे दूर रखने केलिए मैंने उससे रिक्वेस्ट किया।शाम को प्लान के मुताबिक सबकुछ ठीक ठाक हो गया।उस आदमी को गिरफ्तार किया, सेंटर में रखे सारे वीडियो निकाल लिए।एसपी ने वादा किया ,'मीडिया को खबर हो भी गई तो किसीका नाम बाहर नहीं आएगा,इसकी जिम्मेदारी मेरी है।' दो दिन में सारे कैसेट देखकर कुछ ऊल जलूल सीडी मिलेंगी तो उन्हें तोडकर जला देंगे।लगता है हम इस दलदल से बिना किसी खरोंच के बाहर निकल आएंगे...आप चिंतित होंगी इसीलिए फोन किया।अब आराम से सो जाइए।गुड नाइट।"
सुमती के जवाब का इंतजार किए बिना उसने फोन काट दिया।सुमती का मन उसके प्रति कृतज्ञता से भर गया।आंखें नम हुईं।सबकुछ ठीक ठाक खत्म करने केलिए भगवान से प्रार्थना की।धीरे से जाकर प्रिया की बगल में लेट गई।पर नींद नहीं आई।पिछले एक हफ्ते से प्रिया का बर्ताव सामान्य नहीं था,मैंने ही ध्यान नहीं दिया...'वीडियो के दृश्य आंखों के सामने नाचने लगे...मधुकर की भलमनसी, दूर की सोचने का स्वभाव, सेंटर वाला बदला लेने केलिए कोई कांड न कर बैठे,इस बात का डर...मकडी के जाले में फंसी कीडे की तरह वह रात भर तडपती रही।' ये सीडी पुलिस के हाथ में चली गई हैं,तो क्या वे उन्हें सचमुच तोड देंगे?' सोच सोचकर वह कांपने लगी।
ठीक सुबह होने से पहले उसकी जरा सी आंख लगी।
जोर जोर से चीखने की आवाज से सुमती चौंककर उठ गई।उनींदी अवस्था में लगा कोई बुरा सपना देख रही हूं।पर पूरा होश आने पर मालूम हुआ चीखनेवाली प्रिया है।वह हडबाडाकर उठी और हॉल में पहुंच गई।सोफा पर बैठी प्रिया की आंखें पगालाई सी थीं।वह जोर जोर से चीख रही थी।सुमती ने उसके दोनों कंधे पकडकर झकझोरते हुए पूछा," क्या हुआ? प्रिया...क्या बात है?"
सुमती को देखते ही प्रिया उससे चिपक गई।सुमती नहीं समझ पा रही थी कि यह हो क्या रहा है।उसने आसपास नजर दौडाई तो उस दिन के अखबार पर नजर पडी। पहले पन्ने पर एक फोटो था जिसमें एक लडकी रस्सी से लटक रही थी।सुर्खियों में बडे बडे अक्शर दिखाई दिए,' कालेज की छात्रा की आत्महत्या - इंटर नेट के जाल में कालेज के छात्र'। सुमती की सांस एक पल केलिए रुक सी गई।सुमती ने सरसरी नजर से खबर पढी। आत्महत्या करनेवाली रागिनी को छोड किसी और का नाम नहीं था।खबर के नीचे तसवीर में पुलिस की पकड में खडा सज्जन सा दिखनेवाला तीस बत्तीस साल का आदमी।सुमती ने दिल कडा करके अंदर के पन्नों पर छपी पूरी खबर पढी और छाती पीटकर रोती रागिनी की मां की तसवीर भी देखी।पढते हुए कांपने लगी पर दिल की गहराइओं में एक तरह की राहत भी महसूस हुई।
इस दौरान प्रिया मां के कंधे पर सिर रखकर कुछ बोले जा रही थी।पूरी खबर पढ लेने के बाद प्रिया पर सुमती का ध्यान गया। " मेरी वजह से ही रागिनी मर गई मां।कल फोन पर मुझसे कह रही थी वह खुद्कुशी करना चाहती है।पर मैंने कुछ नहीं किया।ऊपर से कहा ,मुझे भी ऐसा ही लग रहा है।यह कहकर मैं आराम से सो गई और उसने सचमुच अपनी जान ले ली..." असहनीय दुःख से प्रिया फूट फूटकर रोने लगी।
सुमती ने नाम लेकर पुकारा," प्रिया!"
पर वह अपनी ही धुन में बोलती जा रही थी," कल मैं घर पहुंची तो फोन बज रहा था। मैंने उठाया तबतक बंद हो गया।न जाने उसका ही हो...कितनी बार कोशिश की होगी मुझसे बात करने की...!"
सुमती ने इस बार जोर से कहा," प्रिया ... इधर देखो !!" प्रिया एकदम रुक गई।
" तुम खुद मदद मांगने की स्थिति में हो,फिर दूसरे की मदद न कर पाने से दुःखी होना कहां की अक्लमंदी है?क्या इस बात का दुःख है कि तुम भी उसके साथ न मरकर अभी जिंदा हो?" बहुत कडे स्वर में इतना कहकर सुमती ने प्यार भरी आवाज में,समझाने के अंदाज में कहा," देख बेटी,अब जो हो गया सो हो गया।आगे क्या करना है इसकी चिंता करो।मुझे और परेशान मत करो, मैं बहुत थक गई हूं।उठो,जाकर ठंडे पानी से नहा लो।"फिर उसने प्रिया को जबर्दस्ती बाथ रूम भेज दिया और रसोई में चली गई।दूध का पतीला गैस पर चढाकर मधुकर के बारे में सोचने लगी।अगर रागिनी को भी मधुकर जैसे लडके का आसरा मिल जाता तो वह आज जिंदा रहती।उसकी वजह से ही मेरी बेटी आज सही सलामत मेरे पास है।उसकी कितनी भी तारीफ की जाए कम है।
'उस दिन असहाय स्थिति में श्रीकर के घर गई थी।वहां पर मधुकर ने दरवाजा खोला तो उसको देखकर न जाने मन ही मन कितना खीज उठी थी मैं!पर उस दिन वह वहां नहीं मिलता तो न जाने मेरी जिंदगी आज कैसी होती।मधुकर के समझाने पर मां मुझे माफ करके सहारा न देती तो शायद मैं भी रागिनी की तरह..." सोच में पूरी तरह डूबी प्रिया गाडी रुकने से होश में आई।दोनों घर पहुंच गए थे।प्रमोद उतर गया और उसकी तरफ आया।यह देखकर भी वह हिली नहीं।प्रमोद ने गाडी का दरवाजा खोला,प्रिया की तरफ हाथ बढाकर बोला," चलकर आएगी या..." शरारत भरी नजरों से वह प्रिया को ही देख रहा था।हमेशा चुलबुली रहनेवाली प्रिया आज गुमसुम क्यों है,वह यही सोच रहा था। प्रिया ने प्यार से प्रमोद को देखा और उसका हाथ थामकर नीचे उतरी।
" किस बारे में इतना सोच रही हो ?" अंदर जाते हुए प्रमोद ने पूछा।
"सोच रही हूं? अरे उसी यूपीएस के बारे में।बिजली के जाने से तबतक किया गया सारा काम सेव करने के काम आता है ना?पंद्रह बीस मिनट सहारा बनकर आसरा देनेवाला यूपीएस कितना जरूरी है? है ना?" प्रिया ने प्रमोद की ओर देखकर कहा।
वह हंसकर बोला," कभी कभी बिल्कुल बच्चों जैसी बातें करती हो प्रिया।इतना अनोखा कंप्यूटर,सॉफ्ट वेयर ,इन सबको छोडकर तुम यूपीएस की तारीफ कर रही हो?" उसके सिर पर प्यार से हल्की सी चपत लगाकर वह घर में दाखिल हुआ।
रागिनी को और उससे जुडी यादों को मन की परतों के नीचे दबाकर वह भी अंदर गई।घर पहुंचते ही आडियो सिस्टम चलाना प्रमोद की आदत है।उसके बटन दबाते ही गाना बजने लगा,'आ चलके तुझे मैं लेके चलूं..."। ये गीतकार तो कुछ भी लिख देते हैं,ऐसा सोचकर प्रिया मुस्कुराई।क्या आंसू और गम के बिना भी कहीं कोई दुनिया होती है? फिर भी जब किसीको जब चारों ओर से अंधेरा घेर ले, समस्याओं के भंवर में कोई फंस जाए ,तब कोई इस तरह दिलासा देता है, आसरा बनता है तो क्या यह काफी नहीं होता?
(अनुवाद : आर. शान्ता सुन्दरी)