आसी (सिंधी कहानी) : शौकत हुसैन शोरो
Aasi (Sindhi Story) : Shaukat Hussain Shoro
उसका फज़ल खान से बहुत लगाव था। फज़ल खान भी उसे कुछ कम प्यार न करता था, इसलिए वह जब बाहर जाता था तो वह बेचैन हो उठती थी। उसे एक अनजान डर सताने लगता था। एक रात फज़ल खान से झगड़ते उसने कह दिया :
‘‘तुम कहां बाहर जा रहे हो जो...’’
‘‘जो!... सब ठीक तो है?’’ फज़ल खान ने प्यार से पूछा।
‘‘मुझे डर लग रहा है!’’ उसने हिचकते हुए कहा।
‘‘कैसा डर?’’... फज़ल भी घबरा गया।
‘‘बस... तुम बाहर जाते हो तो मुझे चैन नहीं आता है, पता नहीं क्यों...’’
‘‘पागल! यह भी कोई बात है,’’ फज़ल खान ने प्यार से उसे अपने पास खींचते कहा। उसने अपना सर फज़ल खान के सीने पर रख दिया।
वह गरीब रिश्तेदारों की लड़की थी, लेकिन थी फज़ल खान के जाति की। उसके रिश्तेदार फज़ल खान के किसान तो नहीं थे, लेकिन वर्ष दर वर्ष लाबारी (अन्न को खेतों से निकालना) के लिए उसके गाँव आते थे। फज़ल खान ने आसी को जब पहली बार बुट्टे निकालते देखा, तब अपना दिल हार बैठा।
आसी के रिश्तेदार खुद को बड़ा भाग्यशाली समझने लगे, जब फज़ल खान ने उनसे आसी का हाथ मांगा, आसी भी कम खुश न थी, आर फज़ल खान के प्यार ने तो खुशी को दोगुना कर दिया। लेकिन कभी कभी वह व्याकुल हो उठती थी; उसे कभी कभी यह डर सताने लगता कि कहीं फज़ल खान दूसरी शादी तो नहीं करेगा। उसके पिता ने भी तो पांच शादियां की थीं...
‘नहीं नहीं, ये मुझे इतना प्यार करते हैं, ऐसा कभी नहीं करेगा...’ वो खुद को दिलासा देती।
हाजी फज़ल खान अपने क्षेत्र का बड़ा जमींदार था। वह अपने सभी भाईयों में सबसे ज्यादा रौबदार और शक्तिशाली था। सभी भाईयों में वही एक पढ़ा लिखा था। पिता के रहते अपने बड़े चचेरे भाई के साथ वह हज पर से भी होकर आया था। पिता के गुजर जाने के बाद उसे भाई आपस में लड़कर फालतू खर्च करके कंगाल हो गए। फज़ल खान को यह बात अच्छी नहीं लगी कि उसके पुर्खों की जमीन बाहर के लोगों के कब्जे में आए, इसलिए पूरी जमीन उसने खुद खरीद ली। फिर जब पूरब की ओर बैराज खुला तो जल्दी ही वहां भी जमीन खरीद ली। उसकी देखभाल भी उसे ही करनी पड़ती थी। लेकिन आसी को यह बात अच्छी नहीं लग रही थी कि हाजी वहां पर हफ्ते के हफ्ते जाकर बैठे। धीरे धीरे उसे महसूस होने लगा कि जब वह ब्याहकर आई थी जो हाजी का उससे कितना प्रेम था। पूरे तीन महीने कभी बाहर नहीं गया था। उसके बाद जाता था, तो जल्दी लौट आता था। जब पहला बच्चा हुआ था तो वह कितना खुश हुआ था, पूरा दिन वह बाहर न निकला था। पहला बच्चा पंगु था, लेकिन इनके मुंह तक कोई शिकन न आई और जब थोड़े दिनों के बाद बच्चा मर गया, तो वह बहुत ही दुखी हो गया। लेकिन बाद में धीरे धीरे उसमें परिवर्तन होता गया, और अब आसी को महसूस होने लगा कि ‘बाहर भी बहुत दिन तक रहता है, आखिर इसका क्या कारण हो सकता है!’ वह ज्यादा सोच न पाती थी।
बैठे बैठे वह किसी विचार में डूब जाती थी और उसकी आंखों से आँसू गिरने लगते थे। आँसुओं का तो तालाब था उसकी आँखों में जो जल्दी से उछल पड़ता था। जब से लगातार उसकी संतान नहीं बची थी, तब से आँसुओं का तालाब उछलता रहता था। उसे विश्वास हो गया था कि अब उसकी कोई भी संतान नहीं बचेगी। वह खुद को अभागी समझकर कोसती रहती थी और हाजी उसे मनाता, चुप करवाता थक जाता था।
‘‘इतने आँसू कहां से आए, आसी! इतना मत रो।’’
‘‘अपने फूटे भाग्य पर रोऊं नहीं तो क्या करूं ?...’’
‘‘पागल, फालतू रोकर खुद को हलाक कर रही हो! तुम्हारा भाग्य किसमें फूटा है?’’
‘‘फूटा हुआ नहीं तो और क्या है? भगवान जो देता है, वही जल्दी वापस ले लेता है। मेरे जैसा भाग्य भगवान किसी का न करे...’’ वह आंसू बहाती रही और पीरों फकीरों को जगाती रही, मन्नतें मांगती रही। आखिर उसने एक तंदुरुस्त लड़के को जन्म दिया। उसने भगवान से बहुत मिनक्तें कीं कि इस पुत्र को वह बख्श दे। जब उसका लड़का कुछ बड़ा हुआ, तो बड़े धूम धाम से भगवान पर चढ़ावा चढ़ाया गया। आसी तो खुशी से फूली न समा रही थी।
उसके प्यार में कोई दूसरा भाईवार हो, यह बात फज़ल खान को अच्छी नहीं लगी। उसे महसूस होने लगा कि उसकी ओर आसी का प्यार कुछ कम हो गया है, कुछ बंट गया है। उसे यह भी महसूस होने लगा कि आसी में अब पहले जैसा आकर्षण नहीं रहा है और शायद इसलिए घर में भी कोई आकर्षण नहीं रह गया था! वह बैराज वाली जमीन पर ज्यादा रहने लगा। यह बात आसी ने पहले भी महसूस की थी, लेकिन अब उसे पक्के तौर पर अहसास हुआ, लेकिन वह कुछ समझ न सकी। उसने चाहा कि हाजी से पूछकर बात साफ करे, लेकिन उसने खुद में इतनी हिम्मत महसूस नहीं की। धीरे-धीरे उसे बातें सुनने को मिल रही थीं कि फज़ल खान का किसी से झगड़ा हो गया है और यही कारण है कि वह बैराज वाली जमीन पर ज्यादा देर तक रहता है। जब पहली बार उसने यह सुना, तब उसने ऐसा समझा था कि यह कोई अफवाह है, वह उसके साथ कभी भी ऐसा नहीं करेगा। जब यह बात जोर पकड़ने लगी, तब उसे भी डर सताने लगा।
‘‘हाजी... मैंने सुना है, कि...’’ उसका सब्र जवाब दे गया और पूछने के लिए मजबूर हो गई। वह बहुत घबरा रही थी। शब्द उसके गले में अटक रहे थे।
‘‘क्या सुना है?’’ फज़ल खान ने आश्चर्य में पूछा।
‘‘कि... कि पूरब वाले खेत पर...’’
‘‘क्या है वहां, बताओ?’’
‘‘वहां पर कोई रांड (प्राइवेट) तुमसे...’’ वह ज्यादा बोल न पाई।
फज़ल खान सब समझ गया।
‘‘तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास है या लोगों पर!’’
लेकिन आखिर लोगों की बात सच निकली और एक बार फज़ल खान खेत पर गया तो कुछ वक्त तक वहीं बैठा रहा। वे दिन कयामत जैसे दिन थे आसी के लिए... वहां की तस्वीर याद आते ही उसे डर लगने लगता।
एक दिन फज़ल खान आया, लेकिन वह अकेला न था, उसके पीछे दुल्हन के लिबास में एक औरत खड़ी थी। आसी हड़बड़ा गई, जैसे कि उसके आगे कोई बम फटा था, जिसने उसके दिल के टुकड़े टुकड़े कर दिये थे। उसकी आँखों से ऐसे आँसू निकल रहे थे, जैसे बड़ी बूंदों वाली बारिश। उस रात देर तक वह सो न सकी थी और आँसुओं का सैलाब एक बार फिर उछल पड़ा।
आमी आसी से ज्यादा भारी न थी, लेकिन उसकी जवानी और सांवरे रंग के आगे आसी कम लग रही थी। अब उसे विश्वास हो गया था कि खुशी का वक्त खत्म हो गया है। फज़ल खान सब देख रहा था, लेकिन उसके ऊपर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं समझी। उसके बड़ों ने भी तो इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया था।
आसी ने पूजा शुरू करके दी। भगवान को पुकारने के अलावा वह तावीज व टोने कराती रही। धीरे धीरे उसके दिल में फज़ल खान के लिए जो प्यार था वह कम होता, खत्म होकर संतान के प्यार से जा मिला। उसका बड़ा लड़का स्कूल में पढ़ता था। दूसरे बच्चे को पैदा हुए एक वर्ष बीत चुका था। उसके पति छोटे को बहुत चाहता था। आमी के आने के बाद आसी छोटे को पति की ओर जाने से रोकने लगी। आमी को बच्चे की बहुत चाहत थी, वह आसी के बच्चों को बहुत प्यार करती थी। एक दिन फज़ल खान ने छोटे को लाने के लिए दाई को भेजा। लेकिन आसी ने दाई को साफ जवाब दे दिया।
फज़ल खान को क्रोध आ गया, वह खुद उठकर आया। कुछ सोचकर धीरे से कहा :
‘‘क्यों आसी, छोटे को क्यों नहीं दिया?’’
‘‘छोटे में आपका क्या? आपको भगवान अपना देगा...’’ उसकी आँखें भर गईं और फज़ल खान चुपचाप बाहर निकल गया।
आमी को पुत्र तो हुआ, लेकिन वह उसके लिए जैसे इस्त्राईल बन गया। फज़ल खान बहुत रोया, लेकिन आसी को ऐसा महसूूस हुआ जैसे कोई आफत टल गई।
फज़ल खान और आसी फिर एक दूसरे से ऐसे रहने लगे जैसे कि हमेशा से ही ऐसे रहते आए हों। फज़ल खान अब अच्छी तरह जानता था कि आसी अब उसके मुंह बिल्कुल नहीं लग रही और वह खुद को ऐसे तबाह नहीं कर सकता था। उसने खुद को परखा। वह तो बिल्कुल जवान था, जवानों से भी दो कदम आगे और उसे अपने जैसी जवान औरत की जरूरत महसूस होने लगी। आसी तो अब तीन बच्चों की माँ थी, उससे पहले तो उसके कितने ही बच्चे मर चुके थे। लेकिन आसी ऐसा बिल्कुल नहीं सोच रही थी। उसका प्यार अब पहले जैसा नहीं था, लेकिन अब उसमें एक और रंग आ गया था। वह चाहती थी कि उसका पति उसे गालियां दे, मारे, लेकिन उसे फिर से छोड़कर न जाए। अब वह पहले जैसा थोड़ी थोड़ी बात पर रूठती नहीं थी। उसे गालियों में भी मजा आता था और भगवान का शुक्रिया (धन्यवाद) अदा करती थी।
अचानक ही एक बार फिर से उसकी जिंदगी में सैलाब आया। वह भगवान को पुकारती रही : हे भगवान! मैं जना का मुंह भी नहीं देखूंगी...’’ और जब दुल्हन ने घर में प्रवेश किया तो उसने मुंह फेर लिया, उसकी आँखों से पता नहीं क्यों केवल दो तीन आँसू गिरे और मिट्टी में मिल गए।
जना भैंस लग रही थी, चलती थी तो जैसे जमीन कांप रही थी। वह स्वभाव की अच्छी थी, उसे शायद आसी पर तरस आने लगा था, इसलिए वह आसी से अच्छे से पेश आई लेकिन आसी को तो जना की शक्ल सूरत ही अच्छी नहीं लग रही थी। जब जना की माँ, जो ढील ढौल में अपनी लड़की से दोगुनी थी और दो तीन कदम चलते ही सहमने (सांस फूलने) लगती थी, अपनी लड़की से मिलने आई तो उसके माथे पर बल पड़ गए। वह सहमते सहमते लड़की को समझाने लगी :
‘‘पागल मत बन, पति को ऐसे काबू में नहीं करते हैं। आसी तजुर्बेकार है, तुम तो अभी उसके आगे छोटी बच्ची हो। आसी से अलग रहो, पति को आसी से मिलने न दो, उसे पति का मुंह देखना भी नसीब न होने दे। बूढ़े आदमी का दिल जीतना जो बहुत आसान है...’’ जना मेंढक की तरह फूल गई, जब उसकी माँ ने देखा कि अब वह फटने पर है तब जाकर चुप बैठी और फिर तो एकदम ही परिवर्तन हो गया। जना ने पति को काबू में कर लिया। उसकी माँ ने शुक्रिया अदा किया और वह लड़की को कुछ और समझाकर, सामान की गाड़ी भरवाकर चली गई।
जना की माँ ने पता नहीं क्या कान भरे, आसी के लिए जैसे पानी उबलने लगा। तिल का ताड़ बनने लगा, बात बात में झगड़ा होने लगा, बात जाकर गाली गलौज तक पहुंची। चुप रहना तो आसी के लिए भी मुश्किल था। फज़ल खान हमेशा जना का ही तरफ लेता था, आसी को कई गालियां देकर निकलता था। अब घर में आसी की इज्जत बहुत कम हो गई थी। उसका पूरा सर सफेद हो गया था, मुंह में झुर्रियां पड़ गई थीं, ठुड्ठी और बांह का मांस लटक गया था। उसे कैदियों की तरह खाना और कपड़ा दिया जाता था। घर के घुटन भरे माहौल में वह यह भूल गई थी कि बाहर क्या है?
एक बार वह बहुत बीमार पड़ गई, एकदम मरने तक पहुंच गई थी। उसने फज़ल खान की ओर व्यक्ति भेजा, लेकिन उसने पूरी बात सुनी तक नहीं, जैसे कि आसी से उसका कोई संबंध न था। धीरे धीरे आसी के दिल में उसके लिए नफरत पैदा होने लगी। फज़ल खान की किसी तकलीफ के बारे में सुनकर उसे चिंता के बदले खुशी होती थी। अब जब दोनों हाथ ऊपर उठाकर वह हाजी को बद्दुआ देती थी तो उसे बिल्कुल दुःख नहीं होता था। उसके पति ने तो उसकी आंतों को भी छीन लिया था। वह यह भी नहीं समझ रहा था कि आसी की संतान उसकी अपनी संतान थी, जैसे कि उसकी पहले की संतानें थीं।
जना ने फज़ल खान को इतनी संतानें पैदा करके दीं, जो उसे किसी और की याद भी न आती थी।
आसी ने सुना कि उसका पति बहुत बीमार पड़ गया है। लेकिन उसने कोई ध्यान नहीं दिया। जैसे कि उस बात से उसका कोई संबंध ही न था। उसका पति बीमार पड़ गया तो उसके लिए क्या, अगर अच्छा भला हो तो क्या!... फज़ल खान की बीमारी ने ज़ोर पकड़ लिया। अचानक उसे वर्षों की भूली आसी याद आ गई। उसने परेशान होते कहा :
‘‘आसी कमीनी है!... मेरी इतनी बड़ी बीमारी को सुनकर भी मुझे पूछने नहीं आई...’’
आसी को उसके पुत्रों ने मजबूर किया कि इस हाल में पिताजी को चलकर ज़रूर देखे, नहीं जो दुनिया हंसेगी। उसने शपथ ली थी कि फिर कभी जना के दरवाजे पर पैर नहीं रखेगी, लेकिन पुत्रों के जोर भरने पर वह दिल पर पत्थर रखकर जना के घर में घुसी।
‘‘सुनो जी! सुना है कि मुझे ताने दे रहे थे? मुझे तुम्हारे ताने लगते भी हैं!’’ उसने अपनेपन से कहा।
‘‘नहीं नहीं... ताने कैसे! तुम नहीं पूछोगी तो क्या, पूछने वाले और भी कई हैं। तुम्हारे पूछने की कोई ज़रूरत नहीं!...’’
आसी ने मुंह फेर लिया... लेकिन उसकी आँखों से आंसू नहीं गिरे... उसकी आँखें सूख चुकी थीं।
(अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी)